आर एस राणा
नई दिल्ली। कोरोना वायरस के कारण देशभर में चल रहे 21 दिन के लॉकडाउन की मार दूध किसानों पर पड़ रही है। होटल, रेस्त्रां, हलवाई समेत कमर्शियल ऑफिस बंद होने के कारण सहकारी संस्थाओं की दूध की बिक्री करीब 25 से 30 फीसदी तक घट गई है। बिक्री कम होने के कारण देश में बड़ी सहकारी समितियां किसानों से दूध खरीदने से मना कर रही हैं।
किसानों से दूध की खरीद मुख्यत: सहकारी समितियां के साथ ही निजी कंपनियां करती हैं। सहकारी समितियों ने निजी कंपनियों को इस समस्या के लिए दोषी ठहराया है कि वे किसानों से खरीद नहीं कर रही हैं जबकि निजी कंपनियों का कहना है कि पुलिस की बर्बरता और कोरोना वायरस संक्रमण की आशंका के कारण दैनिक श्रमिकों ने नौकरी छोड़ दी है, जबकि दूध की बिक्री कम हो रही है इसलिए उनके पास अपनी डेयरियों को बंद करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।
सहकारी समितियां किसानों से दूध कम खरीद रही हैं
राजस्थान सहकारी डेयरी फेडरेशन लिमिटेड (आरसीडीएफएल) जोकि राजस्थान के सबसे बड़े दूध खरीददारों में से एक है, ने दूध की खरीद में 25 फीसदी की कमी कर दी है। आरसीडीएफएल के डिप्टी मैनेजर विनोद गेरा कहते हैं कि 15 मार्च से पहले हम एक दिन में 41 लाख लीटर दूध की खरीद करते थे लेकिन अब हमने इसे घटाकर 30 लाख लीटर कर दिया है। किसान जोकि पहले निजी कंपनियों को दूध बेच रहे थे, उन्होंने आरसीडीएफएल को दूध बेचना शुरू कर दिया है इसलिए हमारे पास खरीद से इनकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। डेयरी मालिक अधिक दूध को पाउडर में बदलते हैं लेकिन गेरा का कहना है कि यह भी एक निश्चित क्षमता है। हम उत्तर प्रदेश में दूध भेज रहे हैं क्योंकि वहां हमारा पाउडर बनाने का संयंत्र हैं। उन्होंने कहा कि इसका मतलब यह नहीं है कि हम अतिरिक्त दूध खरीदे और फिर परिवहन कर उसे संयंत्र में पहुंचाये।
लॉकडाउन के बाद दूध की मांग में आई कमी
गाँव स्तर पर कुल 1,90,500 सहकारी समितियाँ हैं। एक अनुमान के अनुसार, 1 मार्च से 15 मार्च तक दूध की औसत खरीद प्रति दिन लगभग 500 लाख लीटर थी और बिक्री केवल प्रति दिन लगभग 390 लाख थी। जबकि लॉकडाउन के सात दिन के बाद 30 मार्च को दैनिक खरीद 533 लाख लीटर तक पहुंच गई जबकि बिक्री घटकर 330 लाख लीटर प्रति दिन रह गई।
अमूल के दूध की बिक्री में 10 फीसदी की आई कमी
गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड, अमूल के मैनेजिंड डायरेक्टर रूपिंदर सिंह सोढ़ी ने माना कि उसके ब्रांड की बिक्री में 10 फीसदी की गिरावट आई है। लॉकडाउन के तुरंत बाद, घबराहट हुई थी और लोगों ने तीन-चार दिनों के लिए दूध का भंडारण किया था लेकिन इसके बाद 30 फीसदी तक की गिरावट आ गई थी। हालांकि अब बिक्री थोड़ा स्थिर हो गई है लेकिन अभी भी हमारी बिक्री में 10 फीसदी कम है। उन्होंने कहा कि उम्मीद है जैसे ही गर्मी बढ़नी शुरू होगी, दूध उत्पादन में कमी और मांग में बढ़ोताी होगी।
लॉकडाउन लागू करने से पहले सरकार की दूरदर्शिता और नीतियों पर उठाया सवाल
कोल्हापुर मिल्क यूनियन जोकि महाराष्ट्र में दूध की एक बड़ी कंपनी है, इसके 25 फीसदी दूध का कोई खरीदार नहीं है। किसानों से खरीदे जाने वाले 12 लाख लीटर में से 3 लाख बिना बिके रह जाता है। कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर डीवी घनेकर ने लॉकडाउन लागू करने से पहले सरकार की दूरदर्शिता और नीतियों को दोषी ठहराया। उन्होंने कहा कि मिठाई की दुकानें हमारे उपभोक्ताओं का एक बड़ा हिस्सा हैं। अगर केमिस्ट और किराने की दुकानों को खुला रखने की अनुमति है, तो हमें यह समझ नहीं आ रहा कि मिठाई की दुकानों को क्यों बंद कर दिया?
झारखंड में नहीं है दूध को पाउडर में बदलने का संयंत्र
झारखंड मिल्क फेडरेशन ने लॉकडाउन के तीन बाद से किसानों से दूध नहीं खरीदा है क्योंकि कंपनी के पास भंडारण क्षमता नहीं है। जेएमएफ के मैनेजिंग डायरेक्टर सुधीर कुमार सिंह ने आउटलुक को बताया कि उन्होंने राज्य सरकार को रियायती मूल्य पर बचा हुआ दूध खरीदने और गरीबों और प्रवासियों के बीच वितरित करने की पेशकश की लेकिन सरकार ने प्रस्ताव नहीं माना। उन्होंने कहा कि चूंकि झारखंड में दूध को पाउडर में बदलने के लिए कोई संयंत्र नहीं है, इसलिए मैंने दो दूध के टैंकर यानि 20,000 लीटर दूध को लखनऊ भेजा है। उन्होंने कहा कि यह वास्तव में दुखद है कि हजारों प्रवासी श्रमिक भूखे रह रहे हैं और बचा हुआ दूध उन तक नहीं पहुंचाया जा रहा।.............. आर एस राणा
नई दिल्ली। कोरोना वायरस के कारण देशभर में चल रहे 21 दिन के लॉकडाउन की मार दूध किसानों पर पड़ रही है। होटल, रेस्त्रां, हलवाई समेत कमर्शियल ऑफिस बंद होने के कारण सहकारी संस्थाओं की दूध की बिक्री करीब 25 से 30 फीसदी तक घट गई है। बिक्री कम होने के कारण देश में बड़ी सहकारी समितियां किसानों से दूध खरीदने से मना कर रही हैं।
किसानों से दूध की खरीद मुख्यत: सहकारी समितियां के साथ ही निजी कंपनियां करती हैं। सहकारी समितियों ने निजी कंपनियों को इस समस्या के लिए दोषी ठहराया है कि वे किसानों से खरीद नहीं कर रही हैं जबकि निजी कंपनियों का कहना है कि पुलिस की बर्बरता और कोरोना वायरस संक्रमण की आशंका के कारण दैनिक श्रमिकों ने नौकरी छोड़ दी है, जबकि दूध की बिक्री कम हो रही है इसलिए उनके पास अपनी डेयरियों को बंद करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।
सहकारी समितियां किसानों से दूध कम खरीद रही हैं
राजस्थान सहकारी डेयरी फेडरेशन लिमिटेड (आरसीडीएफएल) जोकि राजस्थान के सबसे बड़े दूध खरीददारों में से एक है, ने दूध की खरीद में 25 फीसदी की कमी कर दी है। आरसीडीएफएल के डिप्टी मैनेजर विनोद गेरा कहते हैं कि 15 मार्च से पहले हम एक दिन में 41 लाख लीटर दूध की खरीद करते थे लेकिन अब हमने इसे घटाकर 30 लाख लीटर कर दिया है। किसान जोकि पहले निजी कंपनियों को दूध बेच रहे थे, उन्होंने आरसीडीएफएल को दूध बेचना शुरू कर दिया है इसलिए हमारे पास खरीद से इनकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। डेयरी मालिक अधिक दूध को पाउडर में बदलते हैं लेकिन गेरा का कहना है कि यह भी एक निश्चित क्षमता है। हम उत्तर प्रदेश में दूध भेज रहे हैं क्योंकि वहां हमारा पाउडर बनाने का संयंत्र हैं। उन्होंने कहा कि इसका मतलब यह नहीं है कि हम अतिरिक्त दूध खरीदे और फिर परिवहन कर उसे संयंत्र में पहुंचाये।
लॉकडाउन के बाद दूध की मांग में आई कमी
गाँव स्तर पर कुल 1,90,500 सहकारी समितियाँ हैं। एक अनुमान के अनुसार, 1 मार्च से 15 मार्च तक दूध की औसत खरीद प्रति दिन लगभग 500 लाख लीटर थी और बिक्री केवल प्रति दिन लगभग 390 लाख थी। जबकि लॉकडाउन के सात दिन के बाद 30 मार्च को दैनिक खरीद 533 लाख लीटर तक पहुंच गई जबकि बिक्री घटकर 330 लाख लीटर प्रति दिन रह गई।
अमूल के दूध की बिक्री में 10 फीसदी की आई कमी
गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड, अमूल के मैनेजिंड डायरेक्टर रूपिंदर सिंह सोढ़ी ने माना कि उसके ब्रांड की बिक्री में 10 फीसदी की गिरावट आई है। लॉकडाउन के तुरंत बाद, घबराहट हुई थी और लोगों ने तीन-चार दिनों के लिए दूध का भंडारण किया था लेकिन इसके बाद 30 फीसदी तक की गिरावट आ गई थी। हालांकि अब बिक्री थोड़ा स्थिर हो गई है लेकिन अभी भी हमारी बिक्री में 10 फीसदी कम है। उन्होंने कहा कि उम्मीद है जैसे ही गर्मी बढ़नी शुरू होगी, दूध उत्पादन में कमी और मांग में बढ़ोताी होगी।
लॉकडाउन लागू करने से पहले सरकार की दूरदर्शिता और नीतियों पर उठाया सवाल
कोल्हापुर मिल्क यूनियन जोकि महाराष्ट्र में दूध की एक बड़ी कंपनी है, इसके 25 फीसदी दूध का कोई खरीदार नहीं है। किसानों से खरीदे जाने वाले 12 लाख लीटर में से 3 लाख बिना बिके रह जाता है। कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर डीवी घनेकर ने लॉकडाउन लागू करने से पहले सरकार की दूरदर्शिता और नीतियों को दोषी ठहराया। उन्होंने कहा कि मिठाई की दुकानें हमारे उपभोक्ताओं का एक बड़ा हिस्सा हैं। अगर केमिस्ट और किराने की दुकानों को खुला रखने की अनुमति है, तो हमें यह समझ नहीं आ रहा कि मिठाई की दुकानों को क्यों बंद कर दिया?
झारखंड में नहीं है दूध को पाउडर में बदलने का संयंत्र
झारखंड मिल्क फेडरेशन ने लॉकडाउन के तीन बाद से किसानों से दूध नहीं खरीदा है क्योंकि कंपनी के पास भंडारण क्षमता नहीं है। जेएमएफ के मैनेजिंग डायरेक्टर सुधीर कुमार सिंह ने आउटलुक को बताया कि उन्होंने राज्य सरकार को रियायती मूल्य पर बचा हुआ दूध खरीदने और गरीबों और प्रवासियों के बीच वितरित करने की पेशकश की लेकिन सरकार ने प्रस्ताव नहीं माना। उन्होंने कहा कि चूंकि झारखंड में दूध को पाउडर में बदलने के लिए कोई संयंत्र नहीं है, इसलिए मैंने दो दूध के टैंकर यानि 20,000 लीटर दूध को लखनऊ भेजा है। उन्होंने कहा कि यह वास्तव में दुखद है कि हजारों प्रवासी श्रमिक भूखे रह रहे हैं और बचा हुआ दूध उन तक नहीं पहुंचाया जा रहा।.............. आर एस राणा
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