आर एस राणा
नई दिल्ली। जानलेवा कोरोना वायरस के कारण देशभर में 21 दिनों के लॉकडाउन की वजह से देशभर में यार्न मिलें बंद पड़ी हुई है जिस कारण देश में कपास की खपत में भारी कमी आई है। इसलिए कपास की कीमतों में भी गिरावट दर्ज की जा रही है।
इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च के अनुसार, लॉकडाउन से कपड़ा क्षेत्र की मांग और आपूर्ति दोनों पर असर पड़ने की आशंका। वर्ष 2020-21 के दौरान इंडस्ट्री पोर्टफोलियो एबीडिटा में कम से कम 15 फीसदी की गिरावट संभव है। कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएआई) के प्रेसिडेंट अतुल गनात्रा ने कहा कि मिलों के बंद होने से कपास की खपत में 25 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलो) की कमी हो सकती है।
सीजन के अंत तक 42 लाख गांठ के निर्यात की उम्मीद
सीएआई 2019-20 सीजन के अंत तक 42 लाख गांठ कपास निर्यात के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आश्वस्त है, जिसमें से 31 लाख गांठ के निर्यात सौदे पहले ही हो चुक हैं। गनात्रा ने माना कि अगर लॉकडाउन की अवधि बढ़ी तो खपत में और कमी आएगी और इससे कारोबार की अनिश्चितता भी बढ़ेगी। इंटरनेशनल कॉटन एडवायजरी बोर्ड ने कहा है कि कोरोना वायरस की वजह से कपास की सप्लाई चेन बुरी तरह से प्रभावित हुई है। बोर्ड के मुताबिक "ब्रांड और खुदरा विक्रेता सौदों को रद्द कर रहे हैं। एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया में स्पिनरों और कपड़ा कंपनियों पर वित्तीय संकट बढ़ने का खतरा है। फसल सीजन 2019-20 के लिए बोर्ड का वैश्विक कपास उत्पादन का अनुमान 2.59 करोड़ टन पर अपरिवर्तित है। हालांकि, आईसीएसी ने खपत अनुमान को संशोधित कर 2.46 करोड़ टन कर दिया है।
देश कपास के बंपर उत्पादन और खपत में कमी का सामना कर रहा
भारत कपास के बंपर उत्पादन और खपत में कमी का सामना कर रहा है। सीएआई ने 2019-20 सीज़न के लिए 354.50 लाख गांठ कपास के उत्पादन के अनुमान को स्थिर रखा है। पहली अक्टूबर से शुरू हुए चालू कपास सीजन में 31 मार्च तक 283.03 लाख गांठ की दैनिक आवक एवं 12.50 लाख गांठ का आयात हो चुका है। भारत महामारी के खिलाफ लड़ाई के अलावा वैश्विक मंदी का भी सामना कर रहा है। दुनिया के ज्यादातर देशों से निकलने वाले डेटा भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कोई सकारात्मक स्थिति नहीं दिखा रहे हैं, जो पहले से ही मंदी के दौर से गुजर रहा है।
देश से कपास का निर्यात बढ़ना जरुरी
भारत कपास के आयात पर निर्भर नहीं है, बल्कि यहां से कपास का निर्यात होना ज्यादा जरूरी है। इसलिए, अमेरिका, यूके, यूएई और चीन सहित प्रमुख बाजारों से मांग आनी महत्वपूर्ण है। सीएआई को लॉकडाउन के बाद अपने बड़े खरीदारों बांग्लादेश और चीन से मांग निकलने की उम्मीद है। हालांकि विश्व बाजार भी इस समय मंदी बनी हुई है। विश्व बाजार में कोरोना के कारण और मंदी आने की आशंका है, जिससे नौकरियों पर भी खतरा मंडरा रहा है। ऐसे में 21 दिनों का लॉकडाउन भारतीय टेक्सटाइल और कपास क्षेत्र के लिए भारी पड़ने जा रहा है। यह सही है कि रुपये में कमजोरी से भारत से निर्यात के लिए अच्छा मौका मिला था, लेकिन लॉकडाउन के कारण यह भी हाथ से निकल गया।
विश्व बाजार में दाम 11 साल के न्यूनतम स्तर पर
विश्व बाजार में कपास का दाम 50 सेंट के नीचे का स्तर छू चुका है, तथा यह 11 साल के निचले स्तर पर है और पिछले एक महीने में ही करीब 17 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। सीएआई के अनुसार 20 मार्च तक कपास के निर्यात सौदे 37,000 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी-356 किलो) पर हुए थे। उनका मानना है कि आगे विश्व बाजार में कपास का भाव 45-60 सेंट प्रति पाउंड के दायरे में रह सकता है जिसका निर्यात सौदों पर भी पड़ेगा।....... आर एस राणा
नई दिल्ली। जानलेवा कोरोना वायरस के कारण देशभर में 21 दिनों के लॉकडाउन की वजह से देशभर में यार्न मिलें बंद पड़ी हुई है जिस कारण देश में कपास की खपत में भारी कमी आई है। इसलिए कपास की कीमतों में भी गिरावट दर्ज की जा रही है।
इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च के अनुसार, लॉकडाउन से कपड़ा क्षेत्र की मांग और आपूर्ति दोनों पर असर पड़ने की आशंका। वर्ष 2020-21 के दौरान इंडस्ट्री पोर्टफोलियो एबीडिटा में कम से कम 15 फीसदी की गिरावट संभव है। कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएआई) के प्रेसिडेंट अतुल गनात्रा ने कहा कि मिलों के बंद होने से कपास की खपत में 25 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलो) की कमी हो सकती है।
सीजन के अंत तक 42 लाख गांठ के निर्यात की उम्मीद
सीएआई 2019-20 सीजन के अंत तक 42 लाख गांठ कपास निर्यात के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आश्वस्त है, जिसमें से 31 लाख गांठ के निर्यात सौदे पहले ही हो चुक हैं। गनात्रा ने माना कि अगर लॉकडाउन की अवधि बढ़ी तो खपत में और कमी आएगी और इससे कारोबार की अनिश्चितता भी बढ़ेगी। इंटरनेशनल कॉटन एडवायजरी बोर्ड ने कहा है कि कोरोना वायरस की वजह से कपास की सप्लाई चेन बुरी तरह से प्रभावित हुई है। बोर्ड के मुताबिक "ब्रांड और खुदरा विक्रेता सौदों को रद्द कर रहे हैं। एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया में स्पिनरों और कपड़ा कंपनियों पर वित्तीय संकट बढ़ने का खतरा है। फसल सीजन 2019-20 के लिए बोर्ड का वैश्विक कपास उत्पादन का अनुमान 2.59 करोड़ टन पर अपरिवर्तित है। हालांकि, आईसीएसी ने खपत अनुमान को संशोधित कर 2.46 करोड़ टन कर दिया है।
देश कपास के बंपर उत्पादन और खपत में कमी का सामना कर रहा
भारत कपास के बंपर उत्पादन और खपत में कमी का सामना कर रहा है। सीएआई ने 2019-20 सीज़न के लिए 354.50 लाख गांठ कपास के उत्पादन के अनुमान को स्थिर रखा है। पहली अक्टूबर से शुरू हुए चालू कपास सीजन में 31 मार्च तक 283.03 लाख गांठ की दैनिक आवक एवं 12.50 लाख गांठ का आयात हो चुका है। भारत महामारी के खिलाफ लड़ाई के अलावा वैश्विक मंदी का भी सामना कर रहा है। दुनिया के ज्यादातर देशों से निकलने वाले डेटा भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कोई सकारात्मक स्थिति नहीं दिखा रहे हैं, जो पहले से ही मंदी के दौर से गुजर रहा है।
देश से कपास का निर्यात बढ़ना जरुरी
भारत कपास के आयात पर निर्भर नहीं है, बल्कि यहां से कपास का निर्यात होना ज्यादा जरूरी है। इसलिए, अमेरिका, यूके, यूएई और चीन सहित प्रमुख बाजारों से मांग आनी महत्वपूर्ण है। सीएआई को लॉकडाउन के बाद अपने बड़े खरीदारों बांग्लादेश और चीन से मांग निकलने की उम्मीद है। हालांकि विश्व बाजार भी इस समय मंदी बनी हुई है। विश्व बाजार में कोरोना के कारण और मंदी आने की आशंका है, जिससे नौकरियों पर भी खतरा मंडरा रहा है। ऐसे में 21 दिनों का लॉकडाउन भारतीय टेक्सटाइल और कपास क्षेत्र के लिए भारी पड़ने जा रहा है। यह सही है कि रुपये में कमजोरी से भारत से निर्यात के लिए अच्छा मौका मिला था, लेकिन लॉकडाउन के कारण यह भी हाथ से निकल गया।
विश्व बाजार में दाम 11 साल के न्यूनतम स्तर पर
विश्व बाजार में कपास का दाम 50 सेंट के नीचे का स्तर छू चुका है, तथा यह 11 साल के निचले स्तर पर है और पिछले एक महीने में ही करीब 17 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। सीएआई के अनुसार 20 मार्च तक कपास के निर्यात सौदे 37,000 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी-356 किलो) पर हुए थे। उनका मानना है कि आगे विश्व बाजार में कपास का भाव 45-60 सेंट प्रति पाउंड के दायरे में रह सकता है जिसका निर्यात सौदों पर भी पड़ेगा।....... आर एस राणा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें