आर एस राणा
किसानों
की आय बढ़ाने को लेकर गंभीर केंद्र सरकार हर वह कदम उठा रही है, जिससे
खेती मुनाफे का सौदा साबित हो। इसीलिए केंद्र सरकार ने कॉन्ट्रैक्ट खेती
अधिनियम ड्राफ्ट पर हितधारकों से सुझाव मांगे है।
केंद्र सरकार
ने कॉन्ट्रैक्ट खेती अधिनियम के नए ड्राफ्ट में जहां किसानों के हितों की
रक्षा पर बल दिया है, वहीं कंपनियों के लिए भी नियम उदार बनाने पर जोर
दिया है। उप—कृषि विपणन सलाहकार और समिति के सदस्य सचिव डॉ. एस के सिंह ने
आउटलुक को बताया कि नए ड्राफ्ट के अनुसार कंपनी और किसान सीधे अनुबंध कर
सकेंगे, इसके लिए कहीं रजिस्ट्रशन या कोई डाक्यूमेंट जमा कराने की जरुरत
नहीं होगी। इस अनुबंध को पूरी तरह से पारदर्शी बनाने के लिए आॅन—लाईन
प्रावधान किया जायेगा। इसके अलावा किसान और कंपनी किसी भी एग्री जिंस,
डेयरी या पोल्ट्र उत्पादों में अनुबंध कर सकेंगे। केंद्र सरकार केवल उन्हीं
एग्री जिंसो की एक लिस्ट जारी करेगी, जिन एग्री जिंसों को राज्य सरकार ने
अपने यहां उगाने पर प्रतिबंध कर रखा है।
एपीएमएसी एक्ट से होगा बाहर
उन्होंने
बताया कि कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) अधिनियम को इससे पूरी तरह से अलग
रखा गया है। विवादों के निपटारे पर उन्होंनें बताया कि किसान और कंपनी के
बीच में अनुबंध के अवसर पर किसान किसी को भी अनुबंध में रख सकता है, जैसे
कि गांव के सरपंच या फिर नम्बरदार या अन्य किसी भी व्यक्ति को। अगर यहां
भी विवाद का हल नहीं होता है तो फिर 3 सदस्यों की एक कमेटी बनाई जायेगी,
जिसमें एक सदस्य किसान की तरफ से होगा, दूसरा कंपनी की तरफ से होगा, तथा
तीसरा सदस्य इन दोंनो से अलग होगा, लेकिन इस विषय का जानकार होगा।
उन्होंने
बताया कि कॉन्ट्रैक्ट खेती अधिनियम के नए ड्राफ्ट में बहुत से बदलाव किए
गए है, तथा हितधारकों से सुझाव मांगे गए हैं, अत: व्यवाहरिक सुझाव आने पर
उसको भी इसमें शामिल किया जायेगा।
मॉडल भाव से 10 फीसदी अधिक कीमत पर होगा अनुबंध
किसानों
के हितों की रक्षा के लिए अनुबंध के समय आस—पास की मंडियों के मॉडल भाव से
10 फीसदी अधिक भाव पर अनुबंध होगा। अगर संबंधीत एग्री जिंस का व्यापार
आसपास की मंडियों में नहीं होता है तो फिर होलसेल की मंडियों में सात दिन
के भाव के आधार पर औसत कीमत तय की जायेगी, तथा उस पर 10 फीसदी और जोड़कर ही
अनुबंध हो सकेगा।
फायदे या नुकसान में दोनों होंगे शामिल
एग्री
जिंसों की कीमतों में भारी उठा—पटक होती रहती है, ऐसे में किसी एग्री जिंस
में अनुबंध के समय जो भाव तय किया गया है, उसके बाद फसल की पकाई के उसमें
बड़ी तेजी या फिर गिरावट आती है तो कंपनी के साथ ही किसान को भी मुनाफे और
घाटे में शामिल होना होगा। अगर किसी प्राकृति आपदा से कोई नुकसान होता है,
तो कंपनी का अनुबंध निरस्त माना जायेगा।
कई राज्यों में हो रही कॉट्रेक्ट खेती
उन्होंने
बताया कि इस समय महाराष्ट्र में 10 कंपनी किसानों से प्याज और अन्य फसलों
की कॉन्ट्रैक्ट खेती करा रही है, इसके अलावा पंजाब में आॅन रिकार्ड
कॉन्ट्रैक्ट खेती हो रही है। हरियाणा में 7 कंपनियां जौ और बासमती चावल की,
गुजरात में 2 कंपनियां, मध्य प्रदेश, कर्नाटका तथा छत्तीसगढ़ में एक—एक
कंपनी कॉन्ट्रैक्ट खेती कर रही है।
क्या है कॉन्ट्रैक्ट खेती?
कॉन्ट्रैक्ट
खेती में किसान को पैसा नहीं खर्च करना पड़ता। खाद बीज से लेकर सिंचाई और
मजदूरी सब खर्च कॉन्ट्रैक्टर के जिम्मे होता है। कॉन्ट्रैक्टर ही उसे खेती
के गुर बताता है। कॉन्ट्रैक्ट खेती में उत्पादक और खरीदार के बीच कीमत पहले
ही तय हो जाती है। फसल की क्वालिटी, मात्रा और उसकी डिलीवरी का वक्त फसल
उगाने से पहले ही तय हो जाता है।
कांट्रेक्ट खेती का मकसद है
फसल
उत्पाद के लिए तयशुदा बाज़ार तैयार करना। इसके अलावा कृषि के क्षेत्र में
पूँजी निवेश को बढ़ावा देना भी कांट्रेक्ट खेती का उद्देश्य है।
क्या कहना है एक्सपर्ट का
विजय सरदाना, सदस्य, कमोडिटी डेरिवेटिव्स एडवायजरी कमेटी, सिक्यूरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड आॅफ इंडिया (सेबी)
के
अनुसार कॉन्ट्रैक्ट खेती अधिनियम का ड्राफ्ट अच्छा है लेकिन इसमें थोड़ा
और सुधार किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि ड्राफ्ट में बोर्ड बनाने की
बात कहीं गई है, जिसकी तकनीकी तौर पर जरुरत नहीं है। कॉन्ट्रैक्ट खेती
किसान और कंपनी के बीच का मामला है जबकि बोर्ड बनाने से इसमें सरकार का
हस्तक्षेप बढ़ेगा। कॉन्ट्रैक्ट खेती में छोटे किसानों का समूह बनाकर उन्हें
कंपनी से जोड़ने पर जोर दिया जाना चाहिए।....... आर एस राणा
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