29 नवंबर 2012
जिंस के मिनी एल्गो सौदों पर रोक का फैसला
जिंस नियामक वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) ने 1 दिसंबर से सूक्ष्म एवं लघु अनुबंधों में एल्गोट्रेडिंग पर रोक लगाने का फैसला किया है। देश के प्रमुख जिंस एक्सचेंजों पर सूक्ष्म एवं लघु अनुबंध छोटे कारोबारी लॉट में चालू हैं। इसका मकसद उन छोटे और सीमांत कारोबारियों को वायदा कारोबार का फायदा मुहैया कराना है, जो बड़े अनुबंधों का ऑर्डर नहीं दे सकते।
हालांकि ऐसे अनुबंध छोटे और सीमांत कारोबारियों को आकर्षित नहीं कर पाए हैं। शायद इसकी वजह उनमें जागरूकता का अभाव और उनके पास अन्य जरूरी तकनीक नहीं होना है। एफएमसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'सूक्ष्म एवं लघु अनुबंध शुरू करते समय हमें उम्मीद थी कि छोटे ट्रेडिंग लॉट और टिक साइज की वजह से छोटे कारोबारियों को वायदा कारोबार का फायदा मिलेगा। लेकिन अब तक इन अनुबंधों में एल्गो ट्रेडिंग का फायदा बड़े कारोूारियों ने ही उठाया है। इसलिए हम इन काउंटरों पर एल्गो ट्रेडिंग बंद कर रहे हैं।'
एफएमसी ने सभी राष्ट्रीय स्तर के जिंस एक्सचेंजों को सूचना भेज दी है कि 1 दिसंबर से सूक्ष्म एवं लघु अनुबंधों में ट्रेडिंग बंद की जाए। एल्गो ट्रेडिंग तकनीक आाधारित प्री-प्रोगाम्ड मैथेमेटिकल मॉडल के जरिये होने वाला कारोबार है। इसमें ऑर्डर देने के त्वरित निर्णयों में मानवीय हस्तक्षेप की जरूरत नहीं होती है। यह सिस्टम अपने आप ऑर्डरों निपटाता है। जब तक एक आम कारोबारी को बाजार में गतिविधियों के बारे में पता चलता है और वह पॉजिशन लेने की सोचता है, उससे पहले ही यह सिस्टम लेन-देन पूरा कर देता है, जिससे कारोबारियों को फायदा होता है।
एफएमसी ने अब तक जिंसों में एल्गो ट्रेडिंग को न स्वीकृति दी है और ही इस पर रोक लगाई है। इसलिए एल्गो ट्रेडिंग के तहत सदस्यों का पंजीकरण अभी जिंस एक्सचेंजों का ही विशेषाधिकार है। इस समय सभी एक्सचेंज छोटे अनुबंधों में एल्गो ट्रेडिंग की सुविधा मुहैया करवाते हैं। एफएमसी के चेयरमैन रमेश अभिषेक के मुताबिक एल्गो ट्रेडिंग के औपचारिक दिशानिर्देश दिसंबर के पहले पखवाड़े में तैयार किए जाएंगे। हालांकि दिशानिर्देश में एल्गो ट्रेडिंग के लिए पंजीकरण प्राप्त करने को ट्रेडर के लिए योग्यता तय की जाएगी। जिंस एक्सचेंज कृषि व गैर-कृषि जिंसों दोनों के लघु अनुबंधों में एल्गो ट्रेडिंग की सुविधा मुहैया कराते हैं। (BS Hindi)
जूट के एमएसपी में भारी बढ़ोतरी की उम्मीद नहीं
फसल विपणन सीजन (अप्रैल-मार्च) 2012-13 में कच्चे जूट के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में 30 फीसदी से ज्यादा की बढोतरी के बाद अगले सीजन में ऐसी बढो़तरी की संभावना नहीं है। केंद्रीय कृषि विभाग के वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक पिछले कुछ वर्षों के दौरान कच्चे जूट का एमएसपी उत्पादन लागत से कम रहा है, जिसे 2012-13 में सही स्तर पर लाया गया। लेकिन इस साल भी इतनी बढ़ोतरी की उम्मीद करना ठीक नहीं है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'जूट के एमएसपी में ज्यादा से ज्यादा पिछले साल की तुलना में 2-5 फीसदी बढ़ोतरी की जा सकती है। इसके अलावा किसानों को उनकी उपज के लिए पर्याप्त क्षतिपूर्ति दी जाती है। जरूरी है कि सरकार उनको बाजार मुहैया कराए।Ó आमतौर पर जूट की बुआई मार्च से मई में होती है और कटाई अगस्त-सितंबर के आसपास। फिलहाल कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) जूट क्षेत्र के कीमत ढांचे पर विचार कर रहा है। सीएसीपी कृषि जिंसों की कीमत तय करने वाली नोडल एजेंसी है। हालांकि एमएसपी कितना बढ़ेगा, इसका अंतिम फैसला कैबिनेट करती है। फसल विपणन सीजन 2012-13 में एक्स-असम ग्रेड के कच्चे जूट टीडी-5 की कीमत में 34 फीसदी की भारी बढ़ोतरी की गई थी। इसकी कीमत 1,675 रुपये से बढ़ाकर 2,250 रुपये प्रति गांठ की गई थी, जो एक दशक में सबसे ज्यादा बढो़तरी थी। जूट की एक गांठ 180 किलोग्राम की होती है।
अधिकारी ने कहा, 'पिछले साल कपास की तरह जूट की स्थिति कुछ अलग थी। कीमतों में भारी गिरावट की वजह से जूट किसान संकट में थे। मगर इस साल वैसी स्थिति नहीं है, इसलिए कीमतों में भारी बढ़ोतरी की उम्मीद न के बराबर है।Ó उन्होंने कहा कि उस समय उत्पादन लागत करीब 37 फीसदी बढ़ गई थी, इसलिए बढ़ोतरी जरूरी हो गई थी। कच्चे जूट की कीमतों में भारी बढ़ोतरी न करने का फैसला इसलिए अहम है कि सरकार पैकेजिंग में जूट के इस्तेमाल के प्रावधानों में संशोधन नहीं कर रही है। (BS Hindi)
Govt may form inter-ministerial panel on sugar decontrol
New Delhi, Nov 29 In order to fast track decontrol of sugar sector, the government is mulling setting up an inter-ministerial panel to review recommendations of the
Rangarajan Committee on sugar deregulation.
The panel could be chaired by Agriculture Minister Sharad Pawar and ministers from finance, commerce, food and new and renewable energy ministries and the Planning Commission Deputy Chairman could be members in it, sources said.
"The PMO is considering setting of an inter-ministerial panel on sugar decontrol to fast track implementation of some of the recommendations made in the Rangarajan report," according to sources.
At present, sugar is the only sector fully controlled by the government. The sector is regulated right from production through distribution in the open market and ration shops.
Last month, the PM-constituted committee led by PMEAC Chairman C Rangarajan had submitted the report suggesting scrapping of major controls on the sugar sector.
The Food Ministry is considering implementation of some of the recommendations, which do not require approval of the state governments, by year-end. It has has sought views of the state governments on the Rangarajan report.
Barring two key regulations with respect to fixing sugarcane price and sharing of 70 per cent revenue by sugar firms with farmers, the Rangarajan report has suggested giving freedom to mills to sell sugar in the open market and having a
stable export and import policy.
It has recommended removal of obligation on part of mills to supply 10 per cent of sugar at cheaper rate to the government to meet the ration shops demand.
In the long term, it has recommended doing away with the cane area reservation and minimum distance criteria between sugar mills besides suggesting removal of controls on by—products like molasses. (PTI)
Food Min puts on hold PDS sugar price hike
New Delhi, Nov 29 (PTI) The Food Ministry has decided to put on hold its proposal to hike retail price of sugar sold through the ration shops as the government is considering the Rangarajan report on sugar decontrol.
Since 2002, sugar is being sold at Rs 13.50 per kg in ration shops, while the government buys it from mills at about Rs 22-23 per kg.
According to a senior government official, "The Food Ministry has started examining the recommendations of the Rangarajan report on sugar decontrol. The issue of raising the central issue price (retail price) of sugar would be discussed
along with the report's suggestion on removal of levy sugar mechanism".
Among various recommendations, the Rangarajan report has suggested removal of levy sugar mechanism under which mills are required to sell 10 per cent of their production to the government at cheaper rate for supply through ration shops.
The report suggested the government to buy sugar meant for ration shops distribution at ex-mill price from the open market and allow states to fix the retail price.
Presently, the Ministry has sought views of the state governments on recommendations of the Rangarajan report.
Sugar production in the country is estimated to be 23 million tonnes this year just sufficient to meet the demand. Last year, production had stood at 26 million tonnes. (PTI)
27 नवंबर 2012
15 लाख टन गेहूं निर्यात को मंजूरी!
सरकार द्वारा अपने गोदामों से 15 लाख टन अतिरिक्त गेहूं के निर्यात को मंजूरी दिए जाने की संभावना है। सरकार का मकसद अपने सरप्लस स्टॉक को बेचना है। जुलाई में सरकार ने पीएसयू जैसे एमएमटीसी, एसटीसी और पीईसी के जरिये मार्च 2013 तक 20 लाख टन एफसीआई के गेहूं को निर्यात करने की स्वीकृति दी थी। इसमें से 15 लाख टन के लिए अनुबंध किए जा चुके हैं और 8 लाख टन को भेजा जा चुका है।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, 'हमने केंद्रीय भंडार से 15 लाख टन अतिरिक्त गेहूं के निर्यात के लिए एक कैबिनेट नोट भेजा है। इस प्रस्ताव पर जल्द ही चर्चा हो सकती है।' सरप्लस अनाज के निर्यात से भंडारण की समस्या कम होगी, क्योंकि इस समय सरकार के पास 405 लाख टन गेहूं का भंडार है। यह निर्धारित बफर स्टॉक 212 लाख टन से करीब दोगुना है। पिछले दो वर्षों में रिकॉर्ड उत्पादन और खरीद से सरकारी गोदामों में अनाज का स्टॉक बढ़ा है। अब तक एफसीआई का ज्यादातर गेहूं पड़़ोसी देशों जैसे बांग्लादेश, दक्षिण कोरिया, थाईलैंड, वियतनाम, इंडोनेशिया, यमन, ओमान, जकार्ता आदि को निर्यात किया गया है।
भारत से निर्यातित गेहूं की खेप को वैश्विक बाजार में 300-319 डॉलर प्रति टन की ऊंची कीमत मिली है। फसल वर्ष 2011-12 में देश में 9.39 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन हुआ था। पीएसयू के जरिये एफसीआई के गेहूं के निर्यात के अलावा सितंबर 2011 के बाद निजी कारोबारियों ने 30 लाख टन गेहूं का निर्यात किया है। (BS Hindi)
परिष्कृत चीनी पर आयात शुल्क बढऩे का प्रस्ताव
खाद्य मंत्रालय ने घरेलू बाजार में चीनी की भरमार की स्थिति से बचाने के लिए परिष्कृत चीनी पर आयात शुल्क बढ़ाकर 20 प्रतिशत करने की सिफारिश की है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने यह जानकारी दी है। मौजूदा समय में परिष्कृत चीनी के साथ साथ कच्ची चीनी पर आयात शुल्क 10-10 फीसदी है।
अधिकारी ने कहा, 'हमने आयातित चीनी पर आयात शुल्क को बढ़़ाकर 20 प्रतिशत करने और कच्ची चीनी पर आयात शुल्क को 10 प्रतिशत बरकरार रखने की सिफारिश की है।'
अधिकारी ने कहा कि वित्त मंत्रालय को इस मसले पर अभी भी फैसला करना है। पिछले महीने कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा था कि सरकार चीनी पर आयात शुल्क ढांचे को संशोधित करने के बारे में पेराई के संदर्भ में हुई प्रगति की समीक्षा करने के बाद तीन महीने के बाद ही कोई फैसला करेगी। चीनी निर्यात के बारे में अधिकारी ने कहा कि मुक्त चीनी निर्यात नीति की समयावधि सितंबर में समाप्त हो गई है और इस पर अगले महीने समीक्षा की जाएगी। (BS Hindi)
प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा बिल लागू करने की तैयारी शुरू
आर एस राणा नई दिल्ली
प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा बिल को अभी संसद की मंजूरी तो नहीं मिली है लेकिन केंद्र सरकार ने इसको लागू करने की तैयारी शुरू कर दी है। खाद्य मंत्रालय ने खाद्यान्न के भंडारण, खरीद और आवंटन का आकलन करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया है जिसको 15 दिसंबर तक अपनी रिपोर्ट देनी है।
खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिजनेस भास्कर को बताया कि प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा बिल को ध्यान में रखते हुए सभी संबंधित मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों की 9 सदस्यीय विशेषज्ञ समिति बनाई गई है। अगले 10 साल को ध्यान में रखते हुए समिति को खाद्यान्न के भंडारण, खरीद और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में आवंटन का आकलन करके रिपोर्ट तैयार करनी है।
विशेषज्ञ समिति की अभी तक दो बैठक हो चुकी हैं तथा जल्द ही तीसरी बैठक होगी। समिति को 15 दिसंबर से पहले अपनी रिपोर्ट सरकार को देनी है। उन्होंने बताया कि प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा बिल के लागू होने के बाद केंद्रीय पूल में खाद्यान्न के अधिक स्टॉक की आवश्यकता होगी। इसके साथ ही खाद्यान्न के भंडारण के लिए भी अतिरिक्त गोदामों की आवश्यकता होगी। खाद्य सुरक्षा बिल लागू होने के बाद सरकारी एजेंसियों को ज्यादा खाद्यान्न की खरीद करनी पड़ेगी।
उन्होंने बताया कि विशेषज्ञ समिति खाद्यान्न से संबंधित सभी पहलुओं का अध्ययन करके रिपोर्ट तैयार करेगी, उसी के आधार पर आगे की रणनीति तय की जाएगी।
प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा बिल इस समय संसद की स्थाई समिति के पास है। गरीबों को सस्ते अनाज का कानूनी अधिकार दिलाने के उद्देश्य से प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक के मसौदे को कैबिनेट अपनी मंजूरी पहले ही दे चुका है। हालांकि सरकार के कुछ वरिष्ठ मंत्री अनाज की उपलब्धता और सब्सिडी के बढ़ते बोझ को लेकर इस पर चिंता जता चुके हैं।
यूपीए की प्रमुख सोनिया गांधी की इस प्रिय योजना के लागू होने से देश की 63.5 फीसदी आबादी को कानूनी तौर पर तय सस्ती दर से अनाज का हक मिल जाएगा। इस कानून के लागू हो जाने के बाद सरकार का खाद्य सब्सिडी पर खर्च 27,663 करोड़ रुपये बढ़कर 95,000 करोड़ रुपये सालाना हो जाएगा। इस पर अमल के लिए खाद्यान्न की जरूरत मौजूदा 550 लाख टन से बढ़कर 610 लाख टन के पार हो जाएगी।
विधेयक के तहत प्राथमिकता वाले परिवारों को प्रति व्यक्ति सात किलो मोटा अनाज, गेहूं या चावल क्रमश: एक, दो और तीन रुपये प्रति किलो के भाव पर सुलभ कराया जाएगा। गरीबी रेखा से ऊपर एपीएल श्रेणी के परिवार में प्रति व्यक्ति को तीन किलो अनाज सस्ते दाम पर दिया जाएगा, जिसका वितरण मूल्य न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के 50 फीसदी से अधिक नहीं होगा। (Business Bahskar.....R S Rana)
मिल्क पाउडर का बगैर शुल्क आयात नहीं
दुनिया में दूध के सबसे बड़े उत्पादक देश भारत में अब स्किम्ड मिल्क पाउडर (एसएमपी) का शुल्क मुक्त आयात नहीं होगा। देश में एसएमपी के बढ़ते उत्पादन को देखते हुए अब इसके आयात पर 15 फीसदी कस्टम ड्यूटी लगाने का फैसला किया गया है। यही नहीं, इस दर पर साल में सिर्फ 10,000 टन एसएमपी का ही आयात हो सकता है। इससे ज्यादा का आयात अगर हुआ तो उस पर 60 फीसदी की दर से शुल्क वसूला जाएगा। अब तक साल भर में 50,000 टन तक एसएमपी का आयात शुल्क मुक्त था।
केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीईसी) के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, यह फैसला कृषि मंत्रालय से बातचीत के बाद लिया गया है। सितंबर के आंकड़ों को देखें तो उस समय देश भर में हर रोज 300 लाख किलो दूध का संग्रहण हो रहा था, जबकि खपत 260 लाख किलो की ही थी। इससे जाहिर है कि शेष दूध का उपयोग एसएमपी बनाने में होता है। इसके बावजूद शुल्क मुक्त आयात देसी एसएमपी उत्पादकों के लिए खतरा बन रहा था क्योंकि इस समय अंतरराष्ट्रीय एसएमपी बाजार में भी मंदी है।
आयातित एसएमपी इस वजह से देसी के मुकाबले सस्ता पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि अब एसएमपी के आयात पर 10,000 टन तक 15 फीसदी आयात शुल्क देय होगा, जबकि इससे ऊपर 60 फीसदी शुल्क। इसी के साथ एसएमपी का निर्यात भी खोल दिया गया है। घरेलू बाजार में दुग्ध उत्पादों की कीमतों में आई अप्रत्याशित तेजी को देखते हुए सभी तरह के दुग्ध उत्पादों के निर्यात पर फरवरी 2011 में प्रतिबंध लगा दिया गया था।
स्टर्लिंग एग्रो इंडस्ट्रीज लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर कुलदीप सलूजा ने बताया कि घरेलू बाजार में एसएमपी का स्टॉक ज्यादा है, जबकि दूध का फ्लड सीजन चल रहा है। ऐसे में आयात होने की संभावना भी नहीं है। घरेलू बाजार में फिलहाल एसएमपी के दाम 150-160 रुपये प्रति किलो चल रहे है। निर्यात की अनुमति के बाद से लेकर अब तक खाड़ी देशों को करीब 25,000 टन एसएमपी के निर्यात सौदे हुए हैं, जबकि घरेलू बाजार में कुल उपलब्धता अब भी एक लाख टन से ज्यादा की है। इसमें से 80,000 टन का स्टॉक तो एनडीडीबी (राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड) के पास ही है।
पराग मिल्क फूड्स प्राइवेट लिमिटेड के जीएम (सेल्स) वी पी एस मलिक ने बताया कि भारतीय निर्यातक 2,600-2,700 डॉलर प्रति टन की दर से एसएमपी के निर्यात सौदे कर रहे हैं, जबकि न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया के निर्यातक 3,300-3,400 डॉलर प्रति टन की दर से बेच रहे हैं। बंपर स्टॉक के कारण ही अप्रैल-मई से अभी तक घरेलू बाजार में एसएमपी की कीमतों में 20 से 25 रुपये प्रति किलो की गिरावट आ चुकी है। (Business Bhaskar....R S Rana)
अगले चार महीनों के लिए 70 लाख टन चीनी का कोटा
सरकार ने खुले बाजार में बेचने के लिए चार महीनों (दिसंबर 2012 से मार्च 2013) के लिए 70 लाख टन चीनी का कोटा जारी किया है। चीनी मिलों को निर्धारित कोटे की चीनी पूरे चार माह की अवधि में करने की छूट होगी। इस तरह उन पर हर महीने निश्चित कोटे की चीनी बेचने की बंदिश से मुक्ति मिल गई है।
खाद्य मंत्रालय ने दिसंबर 2012 से मार्च 2013 के लिए खुले बाजार में चीनी बेचने के लिए 70 लाख टन चीनी का कोटा जारी किया है। इसमें 66 लाख टन चीनी सामान्य कोटे की होगी। इसके अलावा दो लाख टन चीनी लेवी कोटे की बची हुई है। जबकि अन्य दो लाख टन चीनी अक्टूबर-नवंबर में जारी किए गए कोटे की बची हुई मात्रा है।
खुले बाजार में चीनी की बिक्री के लिए खाद्य मंत्रालय कोटे में जारी आवंटित की गई चीनी की मात्रा महीने के आधार पर तय करता था। लेकिन इस बार दिसंबर 2012 से मार्च 2013 के लिए जारी किए गए कोटे की चीनी बेचने के लिए मिलों को स्वतंत्रता दी गई है। लेकिन उन्हें यह कोटा इन चार महीनों की अवधि में बेचनी होगी। लेकिन वे चाहें तो किसी भी महीने कितनी भी मात्रा में चीनी बेच सकेंगी। खाद्य मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार सालाना 210 लाख टन चीनी की खपत होती है, इस आधार पर चार महीने का कोटा 70 लाख टन ही होता है।
खाद्य मंत्रालय ने अक्टूबर-नवंबर के लिए 40 लाख टन चीनी का कोटा जारी किया था। मालूम हो कि प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएमईएसी) के अध्यक्ष सी. रंगराजन की अगुवाई में गठित विशेषज्ञ समिति ने प्रधानमंत्री को सौंपी अपनी रिपोर्ट में चीनी उद्योग को नियंत्रण मुक्त करने की सिफारिशें की थीं। समिति ने सबसे पहले मिलों को चीनी खुले बाजार में बेचने की आजादी देने की सिफारिश की थी।
समिति ने लेवी चीनी प्रणाली को भी खत्म करने का सुझाव दिया है। चालू पेराई सीजन 2012-13 (अक्टूबर से सितंबर) के दौरान पहली अक्टूबर से 15 नवंबर तक 9.84 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है जो पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 2 लाख टन ज्यादा है। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) ने चालू पेराई सीजन में 240 लाख टन चीनी के उत्पादन का अनुमान लगाया है जबकि पिछले पेराई सीजन में 260 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। (Business Bahskar)
गेहूं निर्यात के लिए 322 डॉलर की सबसे ऊंची बोली
गेहूं निर्यात के लिए स्टेट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एसटीसी) को 322.22 डॉलर प्रति टन की सबसे ऊंची बोली मिली है। एसटीसी द्वारा 1.50 लाख टन गेहूं निर्यात के लिए जारी निविदा पर आठ कंपनियों ने बिड भरी थी। कंपनी ने दिसंबर-जनवरी में शिपमेंट के लिए 1.50 लाख टन गेहूं निर्यात के लिए निविदा आमंत्रित की थी।
कंपनी के सूत्रों के मुताबिक इस निविदा के लिए आठ कंपनियों ने बिड भरी है लेकिन एक कंपनी की बिड अधूरी होने के कारण रद्द हो गई है। उन्होंने बताया कि निविदा में सबसे ऊंची बोली 322.22 डॉलर प्रति टन और सबसे कम भाव की बोली 313.25 डॉलर प्रति टन की मिली। खाद्य मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार सार्वजनिक कंपनियां एसटीसी, एमएमटीसी और पीईसी अभी तक 11.50 लाख टन गेहूं के निर्यात सौदे कर चुकी है जबकि करीब सात लाख टन से ज्यादा की शिपमेंट भी हो चुकी है।
यह सारा गेहूं भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के गोदामों से उठ रहा है। केंद्र सरकार ने गेहूं के भारी-भरकम स्टॉक को हल्का करने के लिए केंद्रीय पूल से 20 लाख टन गेहूं के निर्यात की अनुमति दे रखी है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमतों में आई तेजी से विदेशी बाजारों में भारतीय गेहूं अन्य देशों के मुकाबले सस्ता पड़ रहा है इसीलिए निर्यात सौदों में तेजी आई है। हालांकि घरेलू बाजार में गेहूं के दाम बढऩे से प्राइवेट स्टॉक से प्राइवेट कंपनियों द्वारा किए जा रहे निर्यात सौदों में पहले की तुलना में कुछ कमी आई है।
सूत्रों के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2012-13 के पहले छह महीनों अप्रैल से सितंबर के दौरान 3,619.12 करोड़ रुपये का गेहूं निर्यात हो चुका है। केंद्रीय पूल में पहली नवंबर को 405.75 लाख टन गेहूं का भारी-भरकम स्टॉक बचा हुआ था जबकि अप्रैल 2013 में गेहूं की नई फसल की आवक शुरू हो जाएगी। (Business Bhaskar)
26 नवंबर 2012
Gold prices at all-time high of Rs 32,950
New Delhi, Nov 26 (PTI) Gold prices today surged by Rs
100 to all-time high of Rs 32,950 per 10 grams here on
sustained demand from stockists and retailers to meet the
rising requirements during the ongoing wedding season.
The previous record of gold price was Rs 32,900, set on
September 14.
Silver also rose by Rs 200 to Rs 63,200 per kg on
increased offtake by industrial units.
Traders said the gold sentiment turned bullish on rising
wedding season demand and a weak rupee against the US dollar.
Continuing its decline against the American currency for
the fifth day, the rupee in early today declined to 55.61 a
dollar due to persistent dollar demand from banks and
importers.
On the domestic front, gold of 99.9 and 99.5 per cent
purity added Rs 100 each to Rs 32.950 and Rs 32,750 per 10
grams, respectively, a level never seen before. The yellow
metal had gained Rs 450 in last three sessions. Meanwhile,
sovereigns held steady at Rs 25,650 per piece of eight grams.
Similarly, silver ready strengthened by Rs 200 to Rs
63,200 per kg and weekly-based delivery by Rs 340 to Rs 63,860
per kg, respectively. Silver coins continued to be asked
around previous level of Rs 81,000 for buying and Rs 82,000
for selling of 100 pieces.
खाद्य सुरक्षा बिल
केंद्र ने गरीबों को सस्ते अनाज का कानूनी अधिकार दिलाने के उद्देश्य से प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विघेयक के मसौदे को मंजूरी दे दी। संप्रग की प्रमुख सोनिया गांधी की इस दिली योजना के लागू होने से देश की 63.5 प्रतिशत आबादी को कानूनी तौर पर तय सस्ती दर से अनाज का हक हासिल हो जाएगा।
प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह की अध्यक्षता में यहां शाम को हुई मंत्रिमंडल की बैठक में इस विधेयक के मसौदे को मंजूरी दी गई। कृषिमंत्री शरद पवार द्वारा अनाज की उपलब्धता और सब्सिडी का बोझ ऊंचा होने को लेकर कुछ चिंता जताई थी।
अब इस विधेयक को एक दो दिन में संसद के चालू सत्र में पेश किया जा सकता है। इस कानून के लागू होने के बाद सरकार का खाद्य सब्सिडी पर खर्च 27663 करोड़ रुपए बढ़कर 95000 करोड़ रुपए सालाना हो जाएगा। इस पर अमल के लिए खाद्यान्न की जरूरत मौजूदा के 5.5 करोड़ टन से बढ़कर 6.1 करोड़ टन पर पहुंच जाएगी।
कांग्रेस ने 2009 के चुनाव घोषणापत्र में इस कानून को लाने का वादा किया था। राष्ट्रपति ने भी जून, 2009 में संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए इसकी घोषणा की थी। देश के ग्रामीण क्षेत्र की तीन चौथाई (75 फीसद आबादी) और शहरी क्षेत्रों में 50 प्रतिशत आबादी को इस कानून के दायरे में लाया जा रहा है।
इस कानून का लाभ पाने वाली ग्रामीण आबादी की कम से कम 46 प्रतिशत आबादी को ‘प्राथमिकता वाले परिवार’ की श्रेणी में रखा जाएगा, जो मौजूदा सार्वजनिक वितरण प्रणाली में ये गरीबी रेखाGet Fabulous Photos of Rekha से नीचे के परिवार कहे जाते हैं। शहरी क्षेत्रों की जो आबादी इसके दायरे में आएगी उसका 28 प्रतिशत प्राथमिकता वाली श्रेणी में होगा।
विधेयक के तहत प्राथमिकता वाले परिवारों को प्रति व्यक्ति सात किलो मोटा अनाज, गेहूं या चावल क्रमश: एक, दो और तीन रुपए किलो के भाव पर सुलभ कराया जाएगा। यह राशन की दुकानों के जरिए गरीबों को दिए जाने वाले अनाज की तुलना में काफी सस्ता है। मौजूदा पीडीएस व्यवस्था के तहत सरकार 6.52 करोड़ बीपीएल परिवारों को 35 किलो गेहूं या चावल क्रमश: 4.15 और 5.65 रुपए किलो के मूल्य पर उपलब्ध कराती है।
सामान्य श्रेणी के लोगों को कम से कम तीन किलो अनाज सस्ते दाम पर दिया जाएगा, जिसका वितरण मूल्य न्यूनतम समर्थन मूल्य के 50 फीसद से अधिक नहीं होगा। वर्तमान में गरीबी रेखा से ऊपर (एपीएल) के 11.5 परिवारों को कम से कम 15 किलो गेहूं या चावल क्रमश: 6.10 और 8.30 रुपए किलो के भाव पर उपलब्ध कराया जाता है।
यह प्रस्तावित कानून वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाले मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह के पास सितंबर, 2009 से है। अनुमान है कि इस कार्यक्रम से सरकारी खजाने पर 3.5 लाख करोड़ रुपए का वित्तीय बोझ पड़ेगा।
सोनिया गांधी की अगुवाई वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) और प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएमईएसी) के अध्यक्ष सी. रंगराजन की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति ने भी इस विधेयक पर अपनी सिफारिशें दी थीं। एनएसी ने सिफारिश की थी की कि 2011-12 से पहले चरण के तहत प्राथमिकता और सामान्य परिवारों को मिलाकर कुल आबादी के 72 प्रतिशत हिस्से को सब्सिडी वाले अनाज का कानूनी अधिकार दिया जाए।
एनएसी ने दूसरे चरण में 2013-14 तक 75 प्रतिशत आबादी को इसके दारे में लाने का प्रस्ताव किया था। पर विशेषज्ञ समिति का मत था कि यह सुझाव व्यावहारिक नहीं है। समिति ने सुझाव दिया था कि केवल जरूरतमंद परिवारों को दो रुपए किलो के भाव पर गेहूं और तीन रुपए किलो पर चावल का कानूनी अधिकार दिया जाए। बाकी की आवादी के लिए सस्ते कानून की योजना का क्रियान्वयन सरकारी आदेश के तहत रखा जाए। खाद्य मंत्रालय ने इस विधेयक के मसौदे के अंतिम रूप देन से पहले इस पर राज्य सरकारों की भी राय आमंत्रित की थी।
इस विधेयक में बेसहारा और बेघर लोगों, भुखमरी और आपदा प्रभावित व्यक्तियों जैसे विशेष समूह के लोगों के लिए भोजन उपलब्ध कराने का प्रावधान है। इसके अलावा इसमें गरीब गर्भवती महिलाओं तथा स्तनपान काराने वाली माताओं और बच्चों के लिए पौष्टिक आहार की व्यवस्था का प्रावधान है।
गर्भवती महिलाओं को लाभ : खाद्य मंत्री केवी थामस ने इससे पहले कहा था कि गर्भवती महिलाओं तथा स्तनपान कराने वाली माताओं को पौष्टिक अधिकार का अधिकार दिलाने के अलावा उन्हें छह माह तक 1000 रुपए प्रति माह की दर से मातृका लाभ भी दिया जाएगा। साथ ही आठवीं कक्षा तक के बच्चों को भी भोजन सुलभ कराने का प्रावधान किया जाएगा। थॉमस ने कल कहा था कि इस प्रस्तावित कानून से सालाना वित्तीय दायित्व 3.50 लाख करोड़ रुपए बनेगा।
खाद्य मंत्रालय ने अनाज उत्पादन बढ़ाने के लिए 1,10,600 करोड़ रुपए के निवेश और समन्वित वाल विकास सेवा (आईसीडीएस) के लिए 35000 करोड़ रुपए के प्रावधान का सुझाव दिया है।
विशेष समूहों के लिए भोजन की व्यवस्था पर सालाना 8920 करोड़ रुपए और मातृका लाभ योजना पर 14512 करोड़ रुपए का खर्च आएगा। यह बोझ केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर उठाएंगी। महिलाओं को अधिकार सम्पन्न बनाने के लिए इस योजना के तहत राशन कार्ड परिवार की सबसे बड़ी महिला के दाम जारी करने का प्रस्ताव है।
विधेयक में यह महत्वपूर्ण प्रावधान भी किया गया है कि सूखा या बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा के कारण अनाज की कमी होने पर संबंधित राज्यों को नकद भुगतान करेगा। व्यक्ति को उसके हक के अनुसार सस्ता अनाज सुलभ न होने की स्थिति में राज्य सरकार पर उसे ‘खाद्य सुरक्षा भत्ता’ देना होगा।
शिकायतों के निवारण के लिए जिला शिकायत निवारण अधिकारी, राज्य खाद्य आयुक्त और राष्ट्रीय खाद्य आयुक्त के कार्यालय बनाए जाएंगे। विधेयक के मसौदे में जिला शिकायत निवारण अधिकारी की सिफारिश का अनुपालन न करने वाले सरकारी कर्मचारी पर 5000 तक के अर्थदंड का प्रावधान किया है। (Bhasha)
Govt likely to permit export of addl 1.5 mln tons of FCI wheat
New Delhi, Nov 26 (PTI) The government is likely to
allow export of an additional 1.5 million tonnes of wheat from
its godowns in order to clear surplus stocks.
In July, the government had allowed export of 2 million
tonnes of FCI wheat through PSUs such as MMTC, STC and PEC by
March 2013. Of this, 1.5 million tonnes has been contracted
8 lakh tonnes shipped so far.
"We have moved a cabinet note for export of an
additional 1.5 million tonnes of wheat from the central pool.
The proposal may come up for discussion soon," a senior
government official said.
The export of surplus foodgrains will ease storage
problems as the government currently has wheat stock of 40.5
million tonnes, which is double the stipulated buffer stock
requirement of 21.2 million tonnes.
The foodgrains stocks have piled up in the government
godowns due to record production and procurement in the last
two consecutive years.
Much of the FCI wheat have so far been exported to
neighbouring Bangladesh besides South Korea, Thailand,
Vietnam, Indonesia, Yemen, Oman, Jakarta, among others.
Wheat shipments from India have fetched higher price in
the range of USD 300-319 per tonne.
The country produced a record 93.9 million tonnes of
wheat in the 2011-12 crop year (July-June). Besides export of
FCI wheat through PSUs, private trade has also shipped over 3
million tonnes of the grain since September 2011.
22 नवंबर 2012
Govt to move from quarterly to 4-monthly release of sugar
New Delhi. In a move towards decontrol of the
sugar sector, the government has decided to allocate the
open market sale quota for the next four months (December-
March) instead of current system of quartely release.
The Food Ministry, which oversees the sugar sector, is
likely to allocate seven million tonnes of sugar for the next
four months of 2012-13 fiscal.
"We are moving from quarterly to a four-monthly release
of sugar to test if this quota system can be dispensed with in
step towards deregulation," a senior Food Ministry official
said.
That apart, the ministry has decided not to put any
condition for selling the open market sale quota. Earlier, it
used to direct mills to sell atleast a minimum quantity of
sugar every month out of total quarterly quota.
The sugar sector is controlled by the government. Through
regulated release mechanism, the Food Ministry allocates sugar
quota to be sold in the open market be each mills. Currently,
the quota is fixed on a quarterly basis.
Recently, the Rangarajan Committee has recommended doing
away with the regulated release mechanism and advocated giving
freedom to mills to sell sugar in the open market.
"We have decided to allocate seven million tonnes of sugar
for open market sale during December-March period," the
official said. The monthly requirement is about 1.7 million
tonnes.
The country has produced 26 million tonnes of sugar in
the 2011-12 marketing year (October-September), against the
annual demand of 22 million tonnes. For the ongoing 2012-13
marketing year, the production is estimated at about 23-24
million tonnes.
गेहूं उत्पादन में आएगी गिरावट!
देश में रबी सीजन की प्रमुख फसल गेहूं का उत्पादन 2012-13 में मामूली घटने का अनुमान है। इसकी वजह किसानों पर गेहूं उपजाने की बढ़ती लागत का दबाव है। इससे गेहूं का रकबा स्थिर है, जिससे उत्पादकता पर भी असर पड़ सकता है।
बिज़नेस स्टैंडर्ड से बातचीत करते हुए गेहूं शोध संस्थान, करनाल की निदेशक इंदू शर्मा ने कहा, 'इस सीजन में गेहूं का रकबा संभवतया स्थिर रहेगा और उत्पादन पिछले साल की तुलना में मामूली घटने की संभावना है। पिछले साल गेहूं का अनुमानित रकबा 29.9 लाख हेक्टेयर था और गेहूं के स्थिर न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी (1,285 रुपये प्रति क्विंटल) को देखते हुए रकबे में बढ़ोतरी की कोई संभावना नहीं है।'
शर्मा ने कहा कि गेहूं की उत्पादकता उस समय अधिक होती है, जब लंबे समय तक कड़ी सर्दी पड़ती है। तापमान में मामूली उतार-चढ़ाव से भी उत्पादन में कमी आ सकती है। वहीं, डीएपी (डाई अमोनियम फॉस्फेट) की कीमतों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। इसकी कीमत पिछले साल 470 रुपये प्रति 50 किलोग्राम थी, जो इस साल बढ़कर 1,200 रुपये प्रति 50 किलोग्राम हो गई है। इससे भी किसान गेहूं का रकबा बढ़ानेे को निरुत्साहित हो रहे हैं।
मॉनसून के देर तक सक्रिय रहने से धान की कटाई में देरी हुई है। इससे कुछ क्षेत्रों में गेहूं की बुआई में देरी हुई है। देश में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्य हैं। विभिन्न राज्यों के किसानों से मिलीं सूचनाओं से पता चलता है कि बुआई में 5 से लेकर 20 दिन तक की देरी हुई है। शर्मा ने कहा कि रबी सीजन 2011-12 अपवादस्वरूप अच्छा वर्ष रहा, जिसमें गेहूं की कटाई तक मौसम ठंडा बना रहा। इसके नतीजतन उत्पादन में 7.5 फीसदी बढ़ोतरी हुई, जो अप्रत्याशित थी। साथ ही, 12 वर्षों में पहली बार गेहूं उत्पादन में इतनी बढ़ोतरी हुई।
उन्होंने कहा कि गेहूं के एमएसपी के फैसले का अगले सीजन पर असर पड़ेगा, क्योंकि इस सीजन के लिए तो किसान बीज और अन्य इनपुट्स खरीद चुके हैं और करीब 80 फीसदी बुआई हो चुकी है। इस सीजन में गेहूं की कीमतें खुले बाजार में एमएसपी से 20 फीसदी ज्यादा हैं और इनके कटाई तक इन्हीं स्तरों पर बने रहने की संभावना है। इससे गेहूं उत्पादक किसानों को थोड़ी राहत मिलेगी। हालांकि पंजाब और हरियाणा में किसान मुख्य रूप से सरकारी खरीद पर ही निर्भर हैं। पंजाब और हरियाणा के विभिन्न जिलों के किसानों ने बताया कि उन्हें गेहूं के स्थान पर कोई वैकल्पिक फसल ढूंढनी होगी। क्योंकि इसमें कीटनाशकों की बहुत अधिक जरूरत पड़ती है और कीटनाशकों की बढ़ती कीमत की वजह से गेहूं की खेती उनके लिए फायदेमंद नहीं है।
लेकिन गेहूं का सुनिश्चित बाजार होने की वजह से वे इसकी खेती नहीं छोड़ पा रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस साल उत्पादकता पिछले साल से कम रहने की संभावना है, क्योंकि ग्लोबल वॉर्मिंग का कृषि उत्पादकता पर असर पड़ रहा है। तापमान में उतार-चढ़ाव के प्रति गेहूं काफी संवेदनशील होता है और पिछले साल की तुलना में तापमान में मामूली बढ़ोतरी से भी उत्पादन पर असर पड़ सकता है। (BS Hindi)
आयात से लगेगी चने की तेजी पर लगाम
मौसम बिगडऩे का असर चने की बुआई पर पड़ रहा है। इस कारण कारोबारियों को अगले दो महीने में आयात में तेजी से बढ़ोतरी की संभावना दिख रही है। आयात के चलते उपलब्धता बढ़ेगी। इससे फरवरी तक चने की कीमतें वर्तमान स्तर से करीब 10-15 फीसदी गिर सकती है।
इंडिया पल्सेज ऐंड ग्रेन्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष सुरेश अग्रवाल ने कहा, 'चने की कीमतें पहले ही अगस्त से अक्टूबर के दौरान 4,800 से 5,000 रुपये प्रति क्विंटल की ऊंचाई छू चुकी हैं। हमें इस वित्त वर्ष में करीब 5,00,000 टन चने के आयात की संभावना दिखाई दे रही है। इससे उपलब्धता सुधरेगी और कीमतों में नरमी आएगी।Ó अग्रवाल के मुताबिक मौसम बिगडऩे से इस साल चने की बुआई घटी है। साथ ही, सभी दलहन की भी बुआई में गिरावट आई है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस साल रबी सीजन में दलहन की बुआई 63 लाख हेक्टेयर दर्ज की गई है, जो पिछले साल 76.1 लाख हेक्टेयर थी। विश्लेषकों का मानना है कि चने की कीमतें 4,000 रु. प्रति क्ंिवटल से ज्यादा हैं, इसलिए आने वाले समय में चने की कीमतों में गिरावट का रुझान रहेगा।
पैराडाइम कमोडिटी एडवाइजर्स प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक और सीईओ बीरेन वकील ने कहा, 'घरेलू बाजार में कम आपूर्ति सेचने का आयात बढ़ा है। अगले साल फरवरी-मार्च तक चने में नरमी की संभावना है।' हालांकि आयात में बढ़ोतरी के कारण कीमतों में कमजोरी नजर आ रही है, लेकिन कारोबारियों का मानना है कि यह रुझान थोड़े समय ही रहेगा। उन्होंने कहा, 'फिलहाल कीमतों पर पहले से ही दबाव है और वर्तमान स्तरों पर कोई हाजिर मांग नजर नहीं आ रही है। इससे संकेत मिलता है कि आगे कीमतें और गिरेंगी।'
अग्रवाल ने कहा, 'सरकार ने चने का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 3,200 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है, इसलिए आयात बढऩे की स्थिति में भी हमें नहीं लगता कि कीमतें 3,500 रुपये से नीचे जाएंगी।' सरकार ने सभी रबी फसलों विशेष रूप से दलहन के एमएसपी में बढ़ोतरी की है। सरकार ने पाया है कि दलहन से कम आमदनी होने के कारण इनके प्रति किसानों की रुचि घट रही है। चने का एमएसपी विपणन वर्ष 2013-14 के लिए बढ़ाकर 3,200 रुपये प्रति क्विंटल किया गया है जो 2012-13 में 2,800 रुपये था। इसमें 14 फीसदी बढ़ोतरी की गई है।
विश्लेषक कंपनी कैपिटालाइन ने कहा, 'इसका मतलब है कि इस रुझान के बाद चने का रकबा घटेगा और उत्पादन पर भी असर पड़ेगा। एनसीडीईएक्स पर चना वायदा अक्टूबर के पहले तीन सप्ताह में लगातार चढ़ा था, क्योंकि खरीफ सीजन की दालों की शुरुआती बंपर आवक की संभावना खत्म हो गई थी। इसका वायदा पिछले तीन सप्ताह के दौरान 4,369 रुपये प्रति क्विंटल की ऊंचाई से गिरकर 4,000 के स्तर पर आ गया है और इस समय 4,100-4,200 के आसपास चल रहा है।' वायदा कीमतों में गिरावट त्योहारी मौसम की समाप्ति नजदीक आने से मांग में गिरावट के बीच हाजिर बाजार में अधिक आपूर्ति के कारण वायदा बाजार में बुधवार को चने की कीमतें 27 रुपये की गिरावट के साथ 4,294 रुपये प्रति क्विंटल रह गईं।
एनसीडीईएक्स में चने के दिसंबर डिलिवरी वाले अनुबंध की कीमत 27 रुपये अथवा 0.62 फीसदी गिरावट के साथ 4,294 रुपये प्रति क्विंटल रह गई जिसमें 68,970 लॉट के लिए कारोबार हुआ। इसी प्रकार चने के जनवरी डिलिवरी वाले अनुबंध की कीमत 17 रुपये अथवा 0.42 फीसदी की गिरावट के साथ 4,051 रुपये प्रति क्विंटल रह गई। (BS Hindi)
भारत से चावल का निर्यात घटने का अनुमान: एफएओ
मौजूदा फसल वर्ष के दौरान भारत में चावल का उत्पादन घटने और घरेलू मांग बढऩे से विश्व बाजार में उसका निर्यात प्रभावित हो सकता है। संयुक्त राष्ट्र के फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन (एफएओ) ने अपना ताजा राइस मार्केट मॉनीटर रिपोर्ट में कहा है कि पिछले फसल वर्ष 2011-12 (जुलाई-जून) के विपरीत इस साल भारत में चावल का उत्पादन कम हो सकता है। इससे निर्यात कम होगा।
एफएओ का अनुमान है कि मौजूदा फसल वर्ष 2012-13 के दौरान भारत में चावल का उत्पादन 1000 लाख टन से कम रहेगा। बीते फसल में चावल का उत्पादन 1043.2 लाख टन तक पहुंच गया था। यह उत्पादन अपने में रिकॉर्ड था। बीते फसल वर्ष में भारत से चावल का निर्यात बढऩे के कारण वह थाईलैंड को पीछे धकेलकर सबसे बड़ा निर्यातक देश बन गया।
(Business Bhaskar)
खाद्य सुरक्षा मिशन के दायरे में अब 27 राज्य
बिजनेस भास्कर नई दिल्ली
वर्ष 2012-13 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) के तहत देशभर के 27 राज्यों को शामिल किया गया है। एनएफएसएम में शामिल राज्यों के चिन्हित किए गए जिलों में गेहूं, चावल, दलहन और मोटे अनाजों की पैदावार बढ़ाने के लिए किसानों को बीज, खाद, सिंचाई और कीटनाशकों पर सब्सिडी दी जाएगी। इसके साथ ही अन्य राज्यों में भी एनएफएसएम स्कीम के तहत होने वाले कुल आवंटन का 10 फीसदी खर्च किए जाने की योजना है।
एनएफएसएम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि चावल, गेहूं, दलहन और मोटे अनाजों की पैदावार में बढ़ोतरी के लिए वर्ष 2012-13 में 27 राज्यों में एनएफएसएम स्कीम चलाई जाएगी। 11वीं पंचवर्षीय योजना में इस स्कीम में 9 राज्य शामिल थे। उन्होंने बताया कि वर्ष 2012-13 में चावल का उत्पादन बढ़ाने के लिए 24 राज्यों के 210 जिलों को चिन्हित किया गया है। जबकि गेहूं का उत्पादन बढ़ाने के लिए 12 राज्यों के 165 जिलों का चुनाव गया है। दलहन का उत्पादन बढ़ाने के लिए 16 राज्यों के 468 जिलों को चिन्हित किया गया है।
उन्होंने बताया कि एनएफएसएम स्कीम के तहत चिन्हित किए जिलों में किसानों को प्रमाणित बीजों के साथ ही खाद और कीटनाशकों पर सब्सिडी दी जाएगी। इन जिलों में चावल, गेहूं, दलहन और मोटे अनाजों के प्रति हैक्टेयर उत्पादन में बढ़ोतरी पर जोर दिया जाएगा। पिछले दो सालों के देश में गेहूं का रिकॉर्ड उत्पादन हो रहा है। वर्ष 2010-11 में 868.7 लाख टन गेहूं का उत्पादन हुआ था जबकि वर्ष 2011-12 में 939 लाख टन का उत्पादन हुआ है।
इसी तरह वर्ष 2011-12 में देश में 10.43 करोड़ टन रिकॉर्ड चावल का उत्पादन हुआ है। उन्होंने बताया कि मानसूनी वर्षा में देरी के कारण वर्ष 2011-12 में दलहन उत्पादन वर्ष 2010-11 के मुकाबले कम हुआ था। वर्ष 2010-11 में देश में 182.4 लाख टन दालों का उत्पादन हुआ था जबकि वर्ष 2011-12 में उत्पादन घटकर 172.1 लाख टन का हुआ है। चालू रबी सीजन में एनएफएसएम स्कीम के तहत दालों का उत्पादन बढ़ाने के लिए 100 करोड़ का अतिरिक्त आवंटन किया गया है।
एनएफएसएम के तहत रबी सीजन 2012 में दलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए 600 करोड़ रुपये का आवंटन किया जाना था लेकिन अब इसे बढ़ाकर 700 करोड़ रुपये कर दिया है। देश में दालों की सालाना खपत 200 लाख टन से ज्यादा की होती है ऐसे में घरेलू आवश्यकता की पूर्ति के लिए हर साल करीब 30 से 35 लाख टन दलहनों का आयात करना पड़ता है। वर्ष 2011-12 में 34.91 लाख टन दालों का आयात हुआ था। (Business Bhaskar.....R S Rana)
21 नवंबर 2012
Sugar ends steady on adequate stocks
New Delhi. The wholesale sugar prices ruled steady in the national capital today following sporadic buying amid adequate stocks position.
Marketmen said small buying support and sufficient stocks position mainly held prices unmoved. The following were today quotations per quintal: Sugar ready: M-30 3,600-3,750, S-30 3,575-3,725. Mill delivery: M-30 3,380-3,710; S-30 3,360-3,690.
Sugar mill gate (including duty): Mawana 3560, Kinnoni 3710, Asmoli 3620, Dorala 3530, Budhana N.T, Thanabhavan N.T,Ramala 3390, Bulandshar N.T, Morna 3400, Sakoti 3400, Chandpur NT, Dhanora 3490, Khatuli 3475, Baghpat 3410, Amroha NT, Simbholi 3610, Modi Nagar 3520, Anupshar 3390 and Nazibabad 3380.
Rice exports from India may decline in 2013: FAO
New Delhi, Nov 21. The fall in rice production in
the current crop year in India against rising domestic demand
is expected to affect exports of the key staple in 2013,
United Nation's body FAO has said.
"By contrast, the 2012 production shortfall and rising
domestic needs may depress India's exports next year," Food
and Agriculture Organisation (FAO) said in its latest Rice
Market Monitor (RMM) report.
The global body on the farm sector has pegged India's
rice production to be lower at 100 million tonnes in the
2012-13 crop year (July-June) from record high of 104.32
million tonnes in 2011-12 crop year.
FAO said the spurt in exports from India has helped it
displace Thailand as the world's largest rice exporter with
shipments expected to touch 9 million tonnes in 2012.
Thailand is pegged to ship 6.5 million tonnes of the
grain this year.
Thailand had exported 10.7 million tonnes of rice in last
year, while India's outbound shipments stood at 4.8 million
tonnes in 2011, it added.
"As for exports in 2012, the most outstanding development
is the emergence of India as the top rice supplier, after
decades of Thailand's hegemony," it said.
Earlier, the United States Department of Agriculture
(USDA) had also put India as the world's largest rice exporter
for 2012 beating Thailand.
Global rice trade is anticipated to grow by 2.5 per cent
in 2012 calendar year to a new high of 37.3 million tonnes,
FAO said.
"Early prospects for 2013 are also positive, with trade
forecast even higher, at 37.5 million tonnes," it added. (PTI)
PM forms committee to review agri schemes for Eastern India
New Delhi, Nov 21. Prime Minister Manmohan Singh has
constituted an apex committee, under his chairmanship, to
review various schemes launched by the government to bring
green revolution in Eastern states.
The 'Apex Committee on Agriculture for Eastern India',
which was formed earlier this month, has 13 members including
Finance Minister P Chidambaram, Agriculture Minister Sharad
Pawar, Planning Commission Deputy Chairman Montek Singh
Ahluwalia and Rural Development Minister Jairam Ramesh.
The panel has been formed to provide necessary impetus to
various programmes for the development of agriculture in the
seven eastern states, including the flagship scheme 'Bringing
Green Revolution in Eastern India (BGREI)'.
BGREI scheme, which was launched in 2010-11 fiscal, seeks
to address the constraints affecting productivity of
rice-based cropping systems in Eastern India. The scheme has
already helped boost rice production.
It has helped in producing a record 55.3 million tonnes
of rice in the Eastern region in 2011-12 crop year (July-June)
out of the total 104.32 million tonnes.
"Government has formed an apex committee on agriculture
for Eastern India in order to ensure coordinated delivery
of services in the 7 eastern states of Assam, Bihar, Odisha,
Chhattisgarh, Jharkhand, Eastern Uttar Pradesh and West
Bengal," a senior government official said.
The terms of reference include reviewing of the progress
of implementation of schemes aiding agriculture development in
Eastern India. It would also review policies aimed towards
improving infrastructure related to irrigation, power, roads,
marketing, processing and procurement of foodgrains.
The other members in the committee include -- Science and
Technology Minister S Jaipal Reddy, Fertiliser and Chemicals
Minister M K Alagiri, Food Minister K V Thomas, Water
Resources Minister Harish Rawat, Tribal Affairs Minister K C
Deo, Environment Affairs Minister Jayanthi Natarajan, Power
Minister Jyotiraditya Scindia.
The government has also increased the allotment under the
BGREI to Rs 1,000 crore in 2012-13 fiscal from Rs 400 crore in
2011-12. (PTI)
एमपी व यूपी में महंगा मिलेगा पंजाब का सरकारी गेहूं
बिजनेस भास्कर नई दिल्ली
खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की फ्लोर मिलों को पंजाब का गेहूं ऊंचे दाम पर खरीदना पड़ेगा जबकि उसी राज्य में ख्ररीदा गया गेहूं कम मूल्य पर मिलेगा। इस तरह केंद्रीय खाद्य मंत्रालय ने इन दोनों राज्यों के लिए दोहरे न्यूनतम मूल्य तय किए हैं।
खाद्य मंत्रालय ने गेहूं उत्पादक राज्यों पंजाब और हरियाणा की फ्लोर मिलों के लिए निविदा भरने का न्यूनतम भाव क्रमश: 1,484 और 1,446 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है।
खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की फ्लोर मिलों के लिए निविदा भरने के दोहरे दाम तय किए हैं। मध्य प्रदेश की फ्लोर मिलों के लिए वहीं से खरीदे गए गेहूं का न्यूनतम भाव 1,414 रुपये और पंजाब के गेहूं का भाव 1609 रुपये प्रति क्विटंल तय किया गया है। मध्य प्रदेश की फ्लोर मिलों को निविदा के जरिये सरकारी गेहूं खरीदने के लिए इससे ज्यादा भाव ऑफर करना होगा। इसी तरह से उत्तर प्रदेश में स्थानीय गेहूं का भाव 1403 रुपये और पंजाब के गेहूं का भाव 1,572 रुपये प्रति क्विटंल तय किया गया है। उत्तर प्रदेश की फ्लोर मिलों से इस भाव से ऊंची बोली लगानी होगी।
अधिकारी ने बताया कि ओएमएसएस के तहत 65 लाख टन गेहूं का अतिरिक्त आवंटन किया गया है। प्रमुख उत्पादक राज्यों पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश को छोड़कर अन्य राज्यों में इसकी बिक्री का भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य 1,285 रुपये प्रति क्विंटल के साथ पंजाब में खरीद के सभी खर्चों (टैक्स, वैट व अन्य खर्च) और परिवहन लागत (लुधियाना से राज्य की राजधानी) पर जोड़कर तय किया गया है। उन्होंने बताया कि बिहार, झारखंड, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराचंल, आंध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के लिए एक-एक लाख टन गेहूं का आवंटन किया गया है।
11.5 लाख टन सरकारी गेहूं निर्यात के सौदे
नई दिल्ली -सार्वजनिक कंपनियां केंद्रीय पूल से अभी तक 11.5 लाख टन गेहूं के निर्यात सौदे कर चुकी हैं जबकि इसमें से सात लाख टन से ज्यादा का शिपमेंट भी हो चुका है। इसके अलावा प्राइवेट स्टॉक से निर्यातक करीब 28 लाख गेहूं के निर्यात सौदे कर चुके हैं। खाद्य मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार सार्वजनिक कंपनियां एसटीसी, एमएमटीसी और पीईसी अभी तक 11.50 लाख टन गेहूं के निर्यात सौदे कर चुकी है जबकि करीब सात लाख टन से ज्यादा की शिपमेंट भी हो चुका है।
यह गेहूं भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के गोदामों से निर्यात हो रहा है। केंद्र सरकार ने गेहूं के भारी-भरकम स्टॉक को कम करने के लिए केंद्रीय पूल से 20 लाख टन गेहूं के निर्यात की अनुमति दे रखी है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमतों में आई तेजी से विदेशी बाजारों में भारतीय गेहूं अन्य देशों के मुकाबले सस्ता पड़ रहा है इसीलिए निर्यात सौदों में तेजी आई है। (Business Bhaskar....R S Rana)
20 नवंबर 2012
FDI in the interests of farmers:Pawar
Ludhiana, Nov 20 Union Agriculture Minister Sharad
Pawar today asserted FDI in retail was in the interest of the
farmers and the consumers across the country.
The fears that the FDI in multi brand retail would
badly affect interests of the small shopkeepers and traders
were unfounded, Pawar told reporters after inaugurating the
seventh national conference on "Krishi Vigyan Kendras–2012" in
the Punjab Agricultural University (PAU) premises here.
On the trend of paddy-wheat cycle in Punjab, he said it
was not only was affecting fertility of the agricultural land,
but was also causing depletion of underground water in the
state.
Pawar said discussion had been held with Punjab
government on the need to change this cycle and he would also
discuss the issue with Punjab Chief Minister Parkash Singh
Badal.
He said the Punjab government should look at bringing more
area under the cultivation of oil seeds and pulses.
The Minister said the Centre’s main focus was to bring a
second revolution by encouraging maximum paddy cultivation in
Eastern parts of the country, including Uttar Pradesh, Bihar
and Chhattisgarh.
Replying to a question, he said the MSP on wheat was
likely to be announced within a week.
On the issue of storage of food grains, Pawar said the
Centre was working towards increasing storage capacity of food
grains by setting up more godowns.
He said higher land prices in Punjab and Maharashtra were
becoming obstacles in this regard.
Earlier, during his inaugural speech at the three-day
conference, Pawar lauded the role played by PAU and the Punjab
farmers for enhancing agriculture production in the country.
He praised the role of Krishi Vigyan Kendras in the
country while stating there was need to do more towards
upgradation of technology in the agriculture sector.( PTI )
Punjab CM favours PPP mode for setting up agriculture markets
Chandigarh, Nov 20 Punjab Chief Minister Parkash
Singh Badal today favoured Public-Private Partnership (PP)
mode for setting up of agricultural markets.
Speaking at the global conference on wholesale markets
here, he said this would enhance remunerative income of
farmers by improving their marketing network.
"..the government of India has proposed a draft
legislation which provides for establishment of private
wholesale market network.
"We also need to promote public private partnership in
agriculture markets. Accordingly, the Punjab government (has
proposal) to amend existing legislations (APMC Act)," he said.
Meanwhile, a proposal to allow private companies to set
up market yards in Punjab which will provide alternate
marketing channel to farmers has been sent to the state
government by Punjab State Agricultural Marketing Board
(PSAMB).
Besides, the board that controls marketing network of
agricultural produce in the state has proposed direct purchase
of farm produce.
It has also mooted a law for contract farming in the
state.
This would entail carrying out amendments in the Punjab
Agricultural Produce Markets (APMC) Act 1961.
"We have submitted a proposal to the Punjab government to
allow private companies to set up market yards in the state
along with the direct purchase of farm produce and law for
contract farming," PSAMB General Manager S S Randhawa told
PTI.
"Necessary amendments will be required to be carried out
in APMC Act by framing rules and laws before allowing setting
up of private market yards, direct purchase and law for
contract farming," he added.
The amendments in the APMC Act has been hanging fire for
the last several years as SAD-BJP-led Punjab government could
not carry them out allegedly due to pressure of commission
agents.
The direct purchase of crops from farmers will allow them
to fetch better returns for their produce.
The Haryana government had already allowed direct
purchase of horticulture produce from farmers.
The framing of law for contract farming is aimed at
reducing disputes among farmers and corporates on agreements
signed between them, sources said.
Proposing more reforms in agricultural produce marketing
sector, PSAMB has also suggested for setting up of special
markets for particular commodities and single license for all
the market committees. (PTI)
Punjab CM seeks Rs 5,000 cr for crop diversification
Chandigarh, Nov 20 Punjab Chief Minister Parkash
Singh Badal today sought allocation of Rs 5,000 crore for
promoting farm diversification from the Centre.
During his meeting with Agriculture Minister Sharad
Pawar, Badal also demanded procurement of alternate crops,
especially maize, by Food Corporation of India at minimum
support prices, an official release said.
This he said was to encourage farmers to shift from paddy
crop.
Badal said the livestock sector can play a major role in
improving the income of the small and landless farmers in the
rural areas. However, to achieve this it was essential to
bring funding, interest on loans as well as Income tax
exemptions on par with agriculture.
Demanding a slew of incentives to promote dairying in a
big way, Badal said the Centre should grant exemption from
custom duty for import of machinery relating to dairy,
poultry, feed and fodder, besides additional allocation under
various Dairy Development schemes.
Badal demanded that small ruminants such as goatry and
piggery be included under National Mission on Protein
Supplement besides setting up of an ICAR unit for research in
fisheries and prawns in the state.
Responding to the demands raised by the Chief Minister,
Pawar gave in principle consent for launching a technology
mission to promote crop diversification in the region.
To strengthen the research for development of maize, the
ICAR would set up a state-of-the-art institute over a land
area of 100 hectares to be provided by the state.
To ensure marketing of maize, he desired the state should
create a legal frame work to facilitate contact farming of
maize with the poultry and cattle feed industry.
To encourage the adoption of fisheries in saline and
waterlogged areas, Pawar announced setting up five ultra-
modern demonstration centres -- one each at Mansa, Bathinda,
Muktsar, Faridkot and Ferozepur districts.
A research centre for fisheries and prawn culture would
be set up to meet the need of state farmers for quality
seedlings.
Pawar assured the Chief Minister that he would soon
take up the matter for export of dairy and poultry products
through Attari-Wagah border with Ministries of Commerce and
External Affairs.
To ensure development and modernization of milk
processing infrastructure in the state, the National Dairy
Development Board shall be asked to provide soft loan to the
state milk federation, he said. (PTI)
सेबी ने सात कंपनियों पर जुर्माना लगाया
बाजार नियामक सेबी ने निवेशकों की शिकायतों का समाधान नहीं करने वाली कंपनियों की नकेल कसी है। चालू वित्त वर्ष में अब तक ऐसी कंपनियों पर 21 लाख रुपए से अधिक जुर्माना लगाया गया है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की ताजा सूचना के अनुसार वित्त वर्ष 2012-13 में अब तक 21.35 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है।
ये जुर्माना उन सात कंपनियों पर लगाया गया है जो निवेशकों की शिकायतों दूर करने में विफल रहीं हैं। इससे पूर्व वित्त वर्ष 2011-12 की पूरी अवधि सेबी ने ऐसी कुल 5 कंपनियों पर जुर्माना लगाया था जबकि 2010-11 में यह संख्या तीन थी। हालांकि 2011-12 में सेबी ने 53.30 लाख रुपए का जुर्माना लगाया था जबकि 2010-11 में यह राशि 43 लाख रुपए थी। जिन कंपनियों पर जुर्माना लगाया गया है, उनमें अर्न्स्ट हेल्थकेयर (10 लाख रुपए), गुजरात फिलामेंटस (5 लाख रुपए) तथा गुजरात एक्वा इंडस्ट्रीज (10,000 रुपया) शामिल हैं। (Live Hindustan)
बासमती की पैदावार कम रहने के अनुमान से भाव में तेजी
आर एस राणा राजपुरा (पंजाब)
पंजाब और हरियाणा में चालू सीजन में बासमती धान की पैदावार करीब 25 से 30 फीसदी घटने की आशंका है। इसीलिए चालू महीने में पूसा-1,121 बासमती धान की कीमतों में 27.2 फीसदी और चावल की कीमतों में 15.5 फीसदी की तेजी आ चुकी है। सऊदी अरब के साथ-साथ ईरान से भी बासमती की आयात मांग बढ़ी है। जिससे मौजूदा कीमतों में और भी तेजी आने की संभावना है।
पटियाला के जिला मंडी अधिकारी जी. जे. औलख ने बताया कि चालू सीजन में पंजाब में बासमती धान की पैदावार कम हुई है हरियाणा में कैथल जिले के खाद्य एवं वितरण नियंत्रक सुरेंद्र सैनी ने बताया कि हरियाणा में बासमती के मुकाबले परमल धान की पैदावार ज्यादा हुई है। यही कारण है कि बासमती धान के किसानों को पिछले साल के मुकाबले अच्छा दाम मिल रहा है।
एपीडा के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से अक्टूबर के दौरान 19 लाख टन बासमती चावल के निर्यात सौदों का रजिस्ट्रेशन हुआ है जो पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 3 लाख टन ज्यादा हैं। मूल्य के आधार पर चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से सितंबर के दौरान 9,054.58 करोड़ रुपये के बासमती चावल का निर्यात हुआ है जो पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 26.66 फीसदी ज्यादा है।
कैथल स्थित खुरानिया एग्रो के प्रबंधक रामविलास खुरानिया ने बताया कि पंजाब और हरियाणा में बासमती धान का उत्पादन पिछले साल की तुलना में 25 से 30 फीसदी कम होने का अनुमान है। जिससे चालू महीने में ही पूसा-1121 बासमती धान की कीमतों में 600 रुपये की तेजी आकर भाव 2,800 रुपये, पूसा बासमती की कीमतें 2,000 रुपये से बढ़कर 2,600 रुपये और बासमती न.1 की कीमतें 2,800 रुपये से बढ़कर 3,200 रुपये प्रति क्विंटल हो गई।
राजपुरा आढ़तिया एसोसिएशन के अध्यक्ष राजीव डेहरा ने बताया कि पैदावार कम होने और निर्यात मांग बढऩे से बासमती चावल की कीमतों में चालू महीने में 500 से 700 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। पूसा बासमती चावल सेला के दाम चालू महीने में 4,500 रुपये से बढ़कर 5,200 रुपये, पूसा बासमती सेला के दाम 3,900 रुपये से बढ़कर 4,400 रुपये और बासमती न. 1 कच्चा की कीमतें 5,400 रुपये से बढ़कर 6,300 रुपये प्रति क्विंटल हो गई।
पटियाला जिले के बलौपुर गांव के किसान नराता सिंह ने बताया कि पूसा 1121 बासमती धान की कीमतें पिछले साल की तुलना में 900 रुपये प्रति क्विंटल ज्यादा है। पिछले साल उन्होंने 1,900 रुपये प्रति क्विंटल की दर से धान बेचा था जबकि चालू सीजन में पूसा 1,121 बासमती धान 2,800 रुपये प्रति क्विंटल बिका है। (Business Bhaskar....R S Rana)
गतिरोध का असर अब चीनी की कीमतों पर
गन्ना किसानों और चीनी मिलों के बीच कीमत पर चल रहे गतिरोध का असर अब चीनी की कीमतों पर भी पडऩे लगा है। गन्ना पेराई में देरी के कारण महीने भर में वायदा बाजार में चीनी के दाम करीब 7 फीसदी और हाजिर में 2 फीसदी बढ़ गए हैं। उत्पादन कम रहने और पेराई में देरी की आशंका के बीच चीनी और महंगी होने की संभावना जताई जा रही है।
प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में गन्ना पेराई अटकने के कारण बाजार में सटोरिये हावी हो रहे हैं और उन्हीं की वजह से हाजिर बाजार में चीनी का भाव बढ़कर 3,518 रुपये प्रति क्विंटल (कोल्हापुर एम ग्रेड) और कानपुर में 3,670 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है। सटोरिये वायदा सौदों का आकार बढ़ा रहे हैं, जिसके कारण महीने भर में चीनी 7 फीसदी चढ़कर 3,500 रुपये प्रति क्विंटल के पार पहुंच गई है। नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) में चीनी का नवंबर अनुबंध 3,511 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है। बाजार के जानकार बता रहे हैं कि गन्ने की कीमत पर छिड़ी जंग ने ही वायदा बाजार में चीनी महंगी कर दी है। महाराष्ट्र में किसानों और मिलों के बीच गतिरोध के कारण चीनी मिलों में गन्ने की पेराई शुरू नहीं हुई है। हालांकि राज्य के वित्त मंत्री और चीनी मिलों के प्रमुखों के बीच बातचीत के बाद ज्यादातर मिल मालिक 2,500 रुपये प्रति टन अग्रिम भुगतान के लिए राजी हैं।
लेकिन किसान 3,000 रुपये प्रति टन कीमत मांग रहे हैं। पिछले सत्र में उन्हें 2,300 रुपये प्रति टन अग्रिम भुगतान किया गया था। ऐंजल कमोडिटी की वेदिका नार्वेकर के मुताबिक चीनी की कीमतें आपूर्ति से तय होती हैं। फिलहाल प्रमुख उत्पादक राज्यों में पेराई नहीं के बराबर है, जिससे आपूर्ति कमजोर हो सकती है और सटोरिये फायदा उठा सकते हैं। चीनी की कीमतें बढऩे लगी हैं और उत्पादन कम रहा तो इसमें और तेजी आएगी। कृषि मंत्रालय की अग्रिम रिपोर्ट के मुताबिक इस बार 3,353 लाख टन चीनी उत्पादन की उम्मीद है। (BS HIndi)
चीनी उत्पादन 20 फीसदी ज्यादा
देश में अक्टूबर से शुरू हुए नए सीजन में करीब 10 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है। यह पिछले साल की इसी अवधि में हुए उत्पादन से 20 फीसदी ज्यादा है। भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) ने एक बयान में ऐसा कहा है। इस्मा ने इस सीजन में 240 लाख टन चीनी उत्पादन का अनुमान लगाया है, जो पिछले सीजन के वास्तविक उत्पादन 263.4 लाख टन से करीब 9 फीसदी कम है। चीनी सीजन अक्टूबर से सितंबर तक होता है। चालू चीनी सीजन 2012-13 में 15 नवंबर तक 9.84 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है। यह पिछले साल की इसी अवधि में हुए उत्पादन से करीब 2 लाख टन ज्यादा है।
हालांकि पिछले साल इस समय तक 215 चीनी मिलों ने पेराई शुरू कर दी थी, लेकिन इस साल 15 नवंबर तक 178 चीनी मिलों ने ही पेराई शुरू की है। इसकी मुख्य वजह उत्तर प्रदेश में पेराई में देरी होना है। वहां दीवाली के चलते 15 नवंबर तक महज 3 मिलों ने पेराई शुरू की थी, जबकि पिछले साल वहां 43 मिलें चालू हो चुकी थीं। इसके अलावा राज्य सरकार ने अभी गन्ने की कीमत (सैप या राज्य समर्थित मूल्य) तय नहीं किया है। इसी कीमत दर पर मिलें किसानों को गन्ने का भुगतान करेंगी। इस्मा के अनुसार चालू सीजन में राज्य में 79 लाख टन चीनी उत्पादन का अनुमान है। इस साल करीब 2 लाख टन चीनी का अधिक उत्पादन कर्नाटक की चीनी मिलों के ज्यादा उत्पादन की बदौलत रहा है। कर्नाटक ने इस साल 15 नवंबर तक 4.20 लाख टन चीनी का उत्पादन किया, जबकि इसने पिछले साल 2.37 लाख टन चीनी का उत्पादन किया था।
महाराष्ट्र में 93 मिलें चालू हो चुकी हैं, जबकि पिछले साल इस समय तक 95 मिलें चालू हो गई थीं। महाराष्ट्र के 66 लाख टन चीनी उत्पादित करने की संभावना है। महाराष्ट्र सरकार ने गन्ना पेराई 1 नवंबर के बजाय 15 अक्टूबर से ही शुरू कर करने का फैसला लिया, लेकिन साथ ही इस तारीख से पहले पेराई शुरू करने वाली मिलों पर जुर्माना लगाने का आदेश दिया। इसके अलावा निर्धारित उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) 2,058 रुपये प्रति टन से कम भुगतान करने वाली मिलों पर भी जुर्माना लगाया जाएगा। पेराई सीजन 2012-13 के दौरान आने वाले सीमित गन्ने के सर्वोत्तम उपयोग और आकर्षक कीमत की पेशकश करने वाली मिलों में गन्ना जाने और स्थानीय मिलों के समक्ष पैदा होने वाले संकट को टालने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने ये फैसले लिए।
उत्तर प्रदेश में भी पेराई शुरू हो चुकी है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चीनी मिलें शुरू हो चुकी हैं और आने वाले दिनों में अन्य मिलें भी चालू हो जाएंगी। ये मिलें गाजियाबाद, बिजनौर और सीतापुर जिलों में स्थित हैं। राज्य में पेराई शुरू हो चुकी है, जबकि अखिलेश यादव सरकार द्वारा गन्ने के राज्य परामर्शी मूल्य (सैप) की घोषणा अभी की जानी बाकी है। वर्ष 2011-12 के दौरान उत्तर प्रदेश में गन्ने का कुल भुगतान करीब 18,206 करोड़ रुपये रहा था, जबकि चीनी उत्पादन करीब 69.58 लाख टन। चीनी उत्पादन के 2012-13 के दौरान 75 लाख का आंकड़ा छूने की संभावना है। (BS Hindi)
तंबाकू की कीमतों में तेजी
इस साल तंबाकू किसानों को भारी मुनाफा मिल रहा है। फ्लू क्योर्ड वर्जीनिया टोबैको (एफसीवी) की कीमत कर्नाटक नीलामी में बढ़कर 145 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गई है जबकि पिछले साल राज्य में पंजीकृत 42,000 तंबाकू किसानों को अधिकतम कीमत 125 रुपये प्रति किलोग्राम मिली थी।
तंबाकू बोर्ड के चेयरमैन जी कमल वर्धन राव के अनुसार आने वाले दिनों में कीमतें और बढ़ सकती है। इसकी वजह भारतीय तंबाकू की मांग अचानक बढऩा है। प्रमुख उत्पादक देशों जैसे ब्राजील और तंजानिया में तंबाकू उत्पादन घटने से भारतीय तंबाकू की मांग बढ़ी है। ब्राजीलिया एफसीवी फसल का उत्पादन इस बार करीब 58.7 करोड़ किलोग्राम रहने की संभावना है, जो 2011 के 70.8 करोड़ किलोग्राम से 20 फीसदी कम है। इसी तरह तंजानिया में 2012 में इसका उत्पादन करीब 9 करोड़ किलोग्राम रहने की संभावना है, जो पिछले साल के 12.2 करोड़ किलोग्राम उत्पादन से 3.2 करोड़ किलोग्राम कम है। कम बारिश और ऊंचे तापमान की वजह से इन दो देशों में फसल की गुणवत्ता और उत्पादन प्रभावित हुआ है। भारत में भी उत्पादन घटने की संभावना है। हाल में आए नीलम तूफान के कारण हुई लगातार बारिश का फसल पर असर पड़ा है। इसके चलते आंध्र प्रदेश में केवल उत्तरी
हल्की मिट्टी (एनएलएस) को छोड़कर ज्यादातर निम्न गुणवत्ता वाली तंबाकू का उत्पादन होगा। एनएलएस में गुणवत्ता अच्छी बताई जा रही है। राव ने कहा कि आंध्र प्रदेश में उत्पादन 50 लाख किलोग्राम से ज्यादा नहीं गिरेगा। तंबाकू उत्पादन का नियमन करने वाले बोर्ड ने चालू वित्त वर्ष में आंध्र प्रदेश में 17 करोड़ किलोग्राम तंबाकू उत्पादन निर्धारित किया है। आंध्र प्रदेश का उत्तरी हल्की मिट्टी वाला क्षेत्र देश में सबसे बेहतर गुणवत्ता वाली एफसीवी तंबाकू के लिए जाना जाता है। पिछले साल इस तंबाकू की अधिकतम कीमत 150 रुपये प्रति किलोग्राम रही थी।
कर्नाटक के लिए तंबाकू उत्पादन 10 करोड़ किलोग्राम तय किया गया है। राज्य में तंबाकू की नीलामी शुरू हो चुकी है जो ïफरवरी तक चलेगी, क्योंकि एक दिन में 1,000 गांठ ( करीब एक लाख किलोग्राम) से ज्यादा तंबाकू की बिक्री नहीं की जा सकती। कर्नाटक में वर्ष 2011 की नीलामी 10 अप्रैल, 2012 को समाप्त हुई थी। ïïवहीं, जून 2012 के अंत में कथित रूप से करीब 1.5 करोड़ किलोग्राम तंबाकू का स्टॉक इन दो राज्यों के कारोबारियों के पास था। तंबाकू विशेषज्ञों के मुताबिक कम उत्पादन और मजबूत कीमतों से स्टॉक चालू वर्ष में खप जाने की संभावना है। (BS Hindi)
खपत घटने पर भी दालें सस्ती होने के आसार नहीं
मांग में कमी के बावजूद आगामी दिनों में घरेलू बाजार में दालों की कीमतों में नरमी की संभावना नहीं है। कारोबारियों के मुताबिक सर्दी के सीजन की वजह से बाजार में हरी सब्जियों की आवक बढ़ रही है। इससे दालों के उठाव व खपत में कमी दर्ज की जा सकती है। लेकिन मांग घटने के बावजूद कीमतों में गिरावट की उम्मीद नहीं है क्योंकि मौजूदा रबी सीजन में दलहनी फसलों की बुवाई पिछड़ रही है।
कारोबारियों का भी कहना है कि रबी सीजन में शुरूआती बुवाई के आंकड़े अच्छे नहीं आ रहे हैं। इस आधार पर दलहन के रकबे में गिरावट दर्ज किए जाने के आसार हैं। इससे आगामी महीनों में दालों में गिरावट आने की संभावना कम है। आमतौर पर सर्दी के सीजन में हरी सब्जियों की आवक अधिक होने के कारण दालों की खपत कम हो जाती है।
थोक कारोबारियों के अनुसार पिछले एक सप्ताह में दिल्ली दालों के भाव 200 रुपये प्रति क्विंटल तक कम हुए हैं। हालांकि, अरहर व मूंग दाल के भाव में तेजी दर्ज की गई है। इस दौरान दिल्ली थोक बाजार में उड़द दाल का भाव 4,500-5,500 रुपये से घटकर 4,300-5,300 रुपये प्रति क्विंटल रह गया है जबकि अरहर दाल का भाव 50 रुपये बढ़कर 4,100-4,300 रुपये प्रति क्विंटल हो गया।
मूंग दाल के भाव में भी 200 रुपये की तेजी आकर भाव 5,200-6,200 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गए। थोक कारोबारी गुरुदयाल ने बताया कि आवक में कमी की वजह से मूंग व अरहर की कीमतों में तेजी दर्ज की गई है। अन्य दालों का स्टॉक अच्छा होने के कारण इनकी कीमतों में गिरावट का रुख रहा।
दालों के थोक कारोबारी शंकर लाल ने बताया कि इस साल दालों के भाव में अधिक गिरावट की संभावना नहीं है। फिलहाल भावों में 100-200 रुपये का उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है।
लेकिन रकबा कम रहने की संभावना से कीमतों में अधिक गिरावट नहीं आ सकेगी। कृषि विभाग के मुताबिक रबी सीजन में 16 नवंबर तक दलहन की बुवाई पिछले साल की तुलना में 12.61 लाख हेक्टेयर कम क्षेत्र में की गई है।
(Business bahskar)
PSUs contract 11.5 lakh tonnes of FCI wheat for export so far
New Delhi, Nov 20. The public trading agencies have
contracted about 11.5 lakh tonnes of FCI wheat for exports and
have shipped about seven lakh tonnes so far.
To clear surplus stocks in the Food Corporation of India
(FCI), the Centre has allowed export of 20 lakh tonnes of
wheat through PSUs such as MMTC, STC and PEC by March 2013.
"Out of 20 lakh tonnes, as much as 11.5 lakh tonnes has
been contracted for export and about 7 lakh tonnes has been
shipped so far," a senior Food Ministry official told PTI.
The PSUs hope to give contracts for the rest of the
quantity by February next year, the official said.
Much of Indian wheat exports have so far been to
neighbouring Bangladesh followed by South Korea, Thailand,
Vietnam, Indonesia, Yemen, Oman, Jakarta, among others.
Wheat shipments from India have fetched higher price in
the range of USD 300-319 per tonne. Recently, a tender was
awarded at USD 315 a tonne, higher than USD 308 a tonne quoted
on the Chicago Board of Trade (CBoT).
"A few months back, Indian wheat was quoted lower by USD
30 a tonne compared to CBoT price. Now, we are getting good
price as global buyers are confident that India is coming up
as an assured and long-time supplier," the official said.
Wheat stocks in the central pool stood at 405 lakh tonnes,
as on November 6, almost double the 212 lakh tonnes of the
actual buffer requirement for the same period.
The government godowns are overflowing due to a record
production and procurement in the last two consecutive years. (PTI)
19 नवंबर 2012
खाद्य तेलों का आयात 101 लाख टन से ज्यादा
नई दिल्ली - तेल वर्ष 2011-12 (नवंबर से अक्टूबर) के दौरान देश में खाद्य तेलों का रिकॉर्ड 101.9 लाख टन का आयात हुआ है। सॉल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार घरेलू तिलहनों की पैदावार में कमी आने के साथ ही खपत में बढ़ोतरी होने से खाद्य तेलों के आयात में बढ़ोतरी हुई है।
एसईए के कार्यकारी निदेशक डॉ. बी. वी. मेहता के अनुसार वर्ष 2011-12 में तिलहनों की घरेलू पैदावार कम हुई थी जबकि खाद्य तेलों की घरेलू खपत में इस दौरान 7.5 से 8 लाख टन की बढ़ोतरी हुई है। उन्होंने बताया कि मलेशिया और इंडोनेशिया की सरकारों ने घरेलू स्टॉक कम करने के लिए पाम तेल के निर्यात को भी बढ़ावा दिया है।
उन्होंने बताया कि तेल वर्ष 2011-12 में कुल 101.9 लाख टन खाद्य तेलों का आयात हुआ है जो पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 17.53 फीसदी ज्यादा है। पिछले तेल वर्ष में कुल आयात 86.7 लाख टन खाद्य तेलों का आयात हुआ था। अक्टूबर महीने में खाद्य तेलों के आयात में 15.89 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल आयात 1,036,107 टन का हुआ है जबकि पिछले साल अक्टूबर महीने में 894,045 टन खाद्य तेलों का आयात हुआ था। (Business Bhaskar)
यूपी व गुजरात में भी शुरू होगी उड़द की सरकारी खरीद
आर एस राणा नई दिल्ली
आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश के बाद नेफेड गुजरात और उत्तर प्रदेश में भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर उड़द की खरीद शुरू करेगी। पैदावार कम होने के बावजूद उत्पादक मंडियों में उड़द के दाम घटकर एमएसपी से नीचे आ गए हैं लेकिन उपभोक्ताओं को अभी भी ऊंचे भाव पर उड़द दाल की खरीद करनी पड़ रही है।
नेफेड के मुख्य प्रबंधक (दलहन) एस. बिश्वास ने बिजनेस भास्कर को बताया कि आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अभी तक 6,400 टन उड़द की खरीद की जा चुकी है। मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश की मंडियों में सरकारी खरीद के लिए कांटे लगा दिए गए हैं लेकिन त्योहारी छुट्टियों के कारण मंडियों में उड़द की आवक नहीं हो रही है। 19 नवंबर से आवक बनने की संभावना है जिससे इन राज्यों में भी समर्थन मूल्य पर खरीद शुरू हो जाएगी।
केंद्र सरकार ने चालू खरीफ विपणन सीजन 2012-13 के लिए उड़द का एमएसपी 4,300 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू सीजन में उड़द की पैदावार कम होने का अनुमान है लेकिन आयातित उड़द सस्ती होने के कारण उत्पादक राज्यों की मंडियों में उड़द एमएसपी से 700 से 1,100 रुपये प्रति क्विंटल नीचे बिक रही है। प्रमुख उत्पादक राज्यों में इसके दाम घटकर 3,200 से 3,650 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं। हालांकि फुटकर में उड़द दाल का भाव अभी भी 65 से 70 रुपये प्रति किलो ही चल रहा है।
बंदेवार दाल एंड बेसन मिल्स के प्रबंधक एस. बंदेवार ने बताया कि आयातित उड़द सस्ती है। मुंबई पहुंच आयातित उड़द एफएक्यू क्वालिटी 650 डॉलर और एसक्यू क्वालिटी 680 डॉलर प्रति टन है। रुपये में इसका भाव 3,400 से 3,600 रुपये प्रति क्विंटल पड़ रहा है। म्यांमार में उड़द का स्टॉक ज्यादा है इसीलिए आगामी दिनों में आयात बराबर बना रह सकता है।
दलहन के थोक कारोबारी एन. मित्तल ने बताया कि आंध्र प्रदेश की उत्पादक मंडियों में उड़द का भाव 3,500 रुपये, महाराष्ट्र की मंडियों में 3,500 से 3,600 रुपये, मध्य प्रदेश की मंडियों में 3,250 से 3,600 रुपये, उत्तर प्रदेश की मंडियों में 3,200 से 3,450 रुपये और राजस्थान की मंडियों में 3,300 से 3,650 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है।
कृषि मंत्रालय के प्रारंभिक अनुमान के अनुसार चालू खरीफ में उड़द की पैदावार में 10.9 फीसदी की कमी आकर कुल उत्पादन 11.4 लाख टन होने का अनुमान है। जबकि वर्ष 2011-12 खरीफ सीजन में उड़द की पैदावार 12.8 लाख टन की हुई थी। (Business Bhaskar....R S Rana)
9.84 lakh tons of sugar has been produced in the current sugar
9.84 lakh tons of sugar has been produced in the current sugar season 2012-13 upto 15th November, 2012. This is about 2 lakh tons higher to the production in the corresponding period last year of 7.76 lakh tons upto 15th November, 2011. However, against 215 sugar mills crushing sugarcane last year at the same time, 178 sugar mills have started their crushing operations as on 15th November, 2012; the major difference being that as against 43 sugar mills which had started crushing last year in Uttar Pradesh, only 3 have started the crushing operations as on 15th November, 2012 therein. The major reason could be that the Diwali this time was later than last year.
However, as against 178 sugar mills which have been crushing sugar as on 15th November this year, 177 sugar mills had started crushing at the same time 2 years back in 2010-11 sugar season.
The higher production of around 2 lakh tons is mainly on account of higher production from the sugar mills in Karnataka who had produced 2.37 lakh tons last year, but have already produced 4.20 lakh tons this year. 49 sugar mills in Karnataka are crushing sugar as on 15th November, 2012, against 48 sugar mills on the corresponding date last year. In Maharashtra, 93 sugar mills have started their operations against 95 sugar mills last year.
The production estimates of ISMA are still at 240 lakh tons during the current sugar season. (ISMA)
दूध पाउडर निर्यातकों की साख पर 'बट्टा'
हालांकि सरकार ने हाल ही में दुग्ध उत्पादों के निर्यात पर लगी पाबंदी हटा दी लेकिन दूध पाउडर के निर्यातकों को साख का मसला परेशान कर सकता है क्योंकि भारत अक्सर ऐसा रुख अख्तियार करने लगा है। कपास निर्यात के मामले में ऐसा पहले भी हो चुका है, जहां पिछले साल सरकार कपास के निर्यात पर पूर्ण पाबंदी के फैसले में संशोधन के लिए बाध्य हुई थी।
खास तौर से स्किम्ड मिल्क पाउडर निर्यातकों को निर्यात बाजार में साख के मसले का सामना करना पड़ रहा है, जिस पर पिछले दो साल से पाबंदी लगी हुई थी। फरवरी 2007 से अब तक इसके निर्यात पर दो बार पाबंदी लगाई जा चुकी है और इसकी कुल अवधि 22 महीने रही है। 14 महीने की पाबंदी इस साल जून में हटाई गई थी। फरवरी 2007 में भी आठ महीने के लिए पाबंदी लगाई गई थी।
ग्राहकों को लुभाने के लिए कंपनियां भारी छूट की पेशकश कर रही हैं क्योंकि घरेलू कीमतों में उन्हें दबाव महसूस हो रहा है। इस साल जून में निर्यात बहाल हो गया था, लेकिन कंपनियां अतिरिक्त भंडार के निर्यात के लिए संघर्ष कर रही है, जो घरेलू बाजार में पड़ा हुआ है और कीमतों पर असर डाल रहा है। कृष्णा ब्रांड के नाम से दूध पाउडर और अन्य उत्पाद बेचने वाली कंपनी भोला बाबा के निदेशक जितेंद्र अग्रवाल ने कहा, 'भारतीय आपूर्तिकर्ताओं को अब भरोसेमंद नहीं माना जाता है। वैश्विक कारोबारी समुदाय हमारे साथ निर्यात अनुबंध करने में संशयवादी हो रहे हैं। भारतीय आपूर्तिकर्ताओं को निर्यात अनुबंध हासिल करने की खातिर भारी छूट देने के लिए मजबूर किया जा रहा है। यहां भरोसे का संकट है और यह जल्द समाप्त नहीं होने वाला है।'
उन्होंने कहा, हर आयातक भारतीय एसएमपी खरीदने को तैयार नहीं है, लेकिन हम पाकिस्तान, बांग्लादेश और पश्चिम एशियाई देशों में माल बेचने में सक्षम हुए हैं।
उद्योग की दूसरी कंपनियां भी ऐसी ही राय दे रही हैं। मधुसूदन ब्रांड के नाम से दूध पाउडर बेचने वाली कंपनी एसएमसी फूड्स के निदेशक संदीप अग्रवाल ने कहा, दूध पाउडर निर्यात की अस्थिर नीति निर्यातकों के लिए परेशानी खड़ी कर रही है। आज की परिस्थितियों में वैश्विक स्तर पर दूध पाउडर के कारोबार में हम सबसे निचले पायदान में हैं और हमने कीमत संबंधी ताकत खो दी है। हमारे लिए 2600-2700 डॉलर प्रति टन की कीमतें पेश की जा रही हैं जबकि न्यूजीलैंड व ऑस्ट्रेलिया के आपूर्तिकर्ताओं को 3400 डॉलर प्रति टन।
फरवरी 2011 में लगाई गई पाबंदी करीब 14 महीने टिकी और इसके पहले देश से सालाना 60,000-70,000 टन एसएमपी का निर्यात होता था। अग्रवाल ने कहा, देश में 80,000 टन के भारी भरकम एसएमपी स्टॉक के चलते इसकी कीमतें देसी बाजार में दब गई हैं जबकि सामान्य तौर पर करीब 30,000 टन का स्टॉक होता है। देश में कीमतें 140-150 रुपये प्रति किलोग्राम के दायरे में है और अप्रैल-मई के 175 रुपये प्रति किलोग्राम के मुकाबले कीमतें काफी नीचे आ गई हैं। (BS Hindi)
दिसंबर तक और बढ़ेगी चांदी की चमक
बढ़ती निवेश मांग से चांदी की कीमतें दिसंबर के अंत 12 फीसदी उछलकर 36 डॉलर प्रति औंस पर पहुंच सकती हैं। वहीं, 2013 के अंत तक इसकी कीमतें 50 डॉलर का आंकड़ा छू सकती हैं। यह अनुमान लंदन की कीमती धातुओं की वैश्विक सलाहकार कंपनी थॉमसन रॉयटर्स जीएफएमस की अंतरिम रिपोर्ट 'चांदी बाजार की समीक्षा' में लगाया गया है।
इसका मतलब है कि चांदी की कीमतें भारत में चालू वित्त वर्ष के अंत तक 70,000 रुपये और अगले साल 90,000 रुपये प्रति किलोग्राम के आसपास पहुंच जाएंगी। इस साल की शुरुआत में सफेद धातु ने रिकॉर्ड बढ़त दर्ज की थी। शुक्रवार को यह 32.22 डॉलर प्रति औंस पर बंद हुई। इस समय मुंबई में चांदी का कारोबार करीब 61,000 रुपये प्रति किलोग्राम पर हो रहा है। आने वाले समय में चांदी की दिशा तय करने में निवेश मांग की प्रमुख भूमिका होगी। इस साल बीते फरवरी महीने में चांदी उछलकर 37 डॉलर प्रति औंस पर पहुंच गई थी, लेकिन मार्च से मई के दौरान गिरकर 30 डॉलर प्रति औंस से नीचे आ गई। इस औद्योगिक धातु की कीमतों में गिरावट की वजह अमेरिका में कमजोर आर्थिक आंकड़े, यूरोजोन संकट और चीन में कर्ज शर्तों को कठोर करने से संबंधित चिताएं रहीं।
रिपोर्ट में इस बात के लिए सचेत किया गया है कि लघु अवधि में कीमतों में गिरावट भी देखने को मिल सकती है, क्योंकि विकसित देशों में कमजोर आर्थिक माहौल के चलते जोखिम परिसंपत्ति कही जाने वाली इस धातु से निवेशक दूरी बना सकते हैं।
थॉमसन रॉयटर्स जीएफएमएस के वैश्विक प्रमुख (धातु विश्लेषण) फिलिप क्लापविज्क के अनुसार, 'बीते मई महीने में कीमतों में गिरावट के दौरान कुछ निवेशकों ने बुरी तरह हाथ जलाए थे और इनमें से बहुत से फिर से चांदी की खरीद के अनिच्छुक हैं।' इसके बावजूद रिपोर्ट में कहा गया है कि कीमती धातुओं में बढ़ती रुचि के चलते चांदी की निवेश मांग मध्य अगस्त से फिर से बढऩे लगी है। हालांकि सलाहकार कंपनी का मानना है कि निवेश की नई लहर 2011 की शुरुआत की तुलना में छोटी है। वर्ष 2012 में लगातार 10वें साल इसके खनन उत्पादन में मामूली बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इससे चांदी के औद्योगिक उपयोग में 6 फीसदी कमी आने की संभावना है। इसकी वजह औद्योगिक विश्व में आर्थिक गतिविधियां कमजोर होना है। मितव्ययता और प्रतिस्थापन धातुओं से भी चांदी पर दबाव बना है। इस धातु के इस्तेमाल को घटाने के कार्यक्रमों से भी इसकी मांग कम हो रही है। चांदी के बर्तन और फोटोग्राफी में लगातार इसकी मांग घट रही है। (BS Hindi)
मजबूत मांग के सहारे तेज रहेगा मक्का
भारतीय मक्के की कीमत अंतरराष्टरीय बाजार में अन्य देशों के मक्के से कम है जिससे इसका निर्यात बढऩे की संभावना है। यही कारण है कि नई आवक के बावजूद मक्के की कीमतों में मजबूती का रुख है। घरेलू बाजार में भी पोल्ट्री फीड निर्माताओं की मांग ठीक है। ऐसे में लंबी अवधि में मक्का और महंगा हो सकता है। घरेलू उत्पादन कम होने से भी कीमतों में तेजी आई है। दिल्ली में मक्के के भाव 1,400 रुपये और महाराष्ट में 1,425 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। महीने भर में मक्का 100 रुपये प्रति क्विंटल महंगा हो चुका है।
अमेरिकी अनाज परिषद (यूएसजीसी) के भारत में वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अंतरराष्टय बाजार में भारतीय मक्के की कीमत करीब 305 डॉलर प्रति टन है, जबकि अन्य देशों के मक्के का भाव 330 डॉलर प्रति टन है। इसलिए भारतीय मक्के की मांग बढ़ रही है। महाराष्ट की सांगली मंडी के मक्का कारोबारी दिनेश मूंदड़ा ने कहा कि फसल कमजोर होने से इसकी आवक कम हो रही है, जबकि निर्यात मांग मजबूत है। जिससे नई आवक के बावजूद मक्के के दाम गिर नहीं रहे हैं। कमोडिटीइनसाइटडॉटकॉम के वरिष्ठ जिंस विश्लेषक प्रशांत कपूर कहते हैं कि आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और राजस्थान से नया मक्का आ रहा है, बावजूद इसके महीने भर में दाम 100 रुपये प्रति क्विंटल चढ़ चुके हैं। उन्होने कहा कि ऊंचे भाव पर कुछ समय के लिए हल्की गिरावट संभव है, लेकिन निर्यातकों के लिए स्टॉकिस्ट खरीद खूब कर रहे हैं। इससे लंबी अवधि में मक्का तेज ही रहेगा। वर्ष 2012-13 में मक्के का वैश्विक उत्पादन 3.8 करोड़ टन घटकर 83.90 करोड़ टन रहने का अनुमान है। भारत में भी उत्पादन 6.5 फीसदी गिरने की संभावना है। (BS Hindi)
निचले स्तर पर लिवाली से सोने में तेजी
समीक्षाधीन सप्ताह के दौरान दिल्ली सर्राफा बाजार में चार दिन कारोबार हुआ। वैश्विक संकेतों के बीच सप्ताह के अंत में मौजूदा निचले स्तर पर लिवाली के चलते सोने की कीमतों में तेजी आई। जबकि लिवाली समर्थन के अभाव में चांदी की कीमतों में गिरावट आई।
बुधवार और गुरुवार को 'विश्वकर्मा और भैया दूज' के कारण बाजार बंद रहा। इसकेअलावा दीपावाली के शुभदिन भी खरीदारी मामूली रही। बाजार सूत्रों के अनुसार मौजूदा शादी-विवाह के मौसम और विदेशों में तेजी के कारण सप्ताह के अंतिम दिन स्टॉकिस्टों की लिवाली के चलते सोने की कीमतों में तेजी आई। हालांकि औद्योगिक मांग कमजोर पडऩे से चांदी की कीमतों पर बिकवाली दबाव रहा। ताजा लिवाली के चलते सोना 99.9 और 99.5 शुद्ध के भाव चढ़कर क्रमश: 32,485 और 32,285 रुपये प्रति दस ग्राम तक जा पहुंचे। बाद में मौजूदा उच्चस्तर पर मांग कमजोर पडऩे और स्टॉकिस्टों की बिकवाली के चलते यह क्रमश: 32,000 और 31,800 रुपये तक लुढ़कने के बाद सप्ताह के अंत में क्रमश: 32,175 और 31975 रुपये प्रति दस ग्राम बंद हुए। गिन्नी के भाव सीमित कारोबार के दौरान पूर्वस्तर 25,500 रुपये प्रति आठ ग्राम अपरिवर्तित बंद हुए। खरीदारी और बिकवाली के झोंकों के बीच चांदी में शुरुआती लाभ लुप्त हो गया और अंत में भाव हानि के साथ बंद हुए।
चांदी तैयार के भाव 400 रुपये की गिरावट के साथ 61,100 रुपये और चांदी साप्ताहिक डिलिवरी के भाव 15 रुपये टूटकर सप्ताहांत में 60,900 रुपये किलोग्राम पर बंद हुए। चांदी सिक्का के भाव 1,000 रुपये चढ़कर सप्ताहांत में 78,000-79,000 रुपये प्रति सैकड़ा पर बंद हुए। (BS Hindi)
15 नवंबर 2012
काली मिर्च के निर्यात बाजार में भारत गंवा रहा है अपना आधार
काली मिर्च के वैश्विक निर्यात बाजार में भारत की स्थिति कमजोर हुई है और यह वियतनाम, इंडोनेशिया, ब्राजील और मलयेशिया के बाद पांचवें स्थान पर आ गया है। मौजूदा वर्ष के लिए इंटरनैशनल पेपर कम्युनिटी (आईपीसी) के अनुमान में ये बातें कही गई हैं। दो दशक पहले तक भारत विश्व में अग्रणी निर्यातक देश था और अब वस्तुत: यह देश वैश्विक बाजार से बाहर हो गया है क्योंकि साल 2012 में यहां से महज 17,500 टन काली मिर्च के निर्यात का अनुमान है जबकि वियतनाम से 1,08,000 टन, इंडोनेशिया से 53,000 टन, ब्राजील से 27,500 टन और मलयेशिया से 20,000 टन काली मिर्च का निर्यात हो सकता है। अब आईपीसी का एकमात्र सदस्य श्रीलंका ही भारत से पीछे है। इंडोनेशिया और ब्राजील ने निर्यात बाजार में जिस तरह से जोश दिखाया है, वह काबिलेतारीफ है क्योंकि 3 साल पहले ये देश भारत से काफी पीछे थे। आईपीसी के आंकड़ों के मुताबिक, दिलचस्प रूप से साल 2011 में भारत चौथे पायदान पर था।
पिछले 2-3 सालों में भारत की तरफ से पेश काली मिर्च के ऊंचे भाव के चलते यह देश वैश्विक कारोबार से बाहर हो गया है। इन तीन सालों के ज्यादातर सीजन में भारतीय काली मिर्च की कीमतें बाकी उत्पादक देशों के मुकाबले 1,000 डॉलर प्रति टन ज्यादा थीं। सैकड़ों वर्षों से भारतीय काली मिर्च अपनी गुणवत्ता के लिए मशहूर थीं, लेकिन अब यह श्रीलंका समेत दूसरे देशों की तरफ से पेश उत्पाद की गुणवत्ता का मुकाबला नहीं कर पा रहा है।
श्रीलंका भी भारत के मुकाबले बेहतर काली मिर्च पेश कर रहा है। वियतनाम एएसटीए किस्म की काली मिर्च भरपूर मात्रा में भारत के मुकाबले कम कीमत पर पेश कर रहा है, जो भारतीय मालाबार गारबल्ड किस्म के समान है। ऐसे में भारत ने ईयू व अमेरिका में अपना पारंपरिक बाजार गंवा दिया है। मौजूदा वर्ष में जनवरी-अक्टूबर के दौरान देश से काली मिर्च का निर्यात वियतनाम के निर्यात के मुकाबले महज 16 फीसदी रहा। वियतनाम विश्व का सबसे बड़ा उत्पादक व निर्यातक देश है। वियतनाम ने कुल 1,02,759 टन काली मिर्च (काली व सफेद दोनों) का निर्यात किया जबकि भारत से महज 16,000 टन का निर्यात हुआ। साल 2011 में जनवरी-अक्टूबर के दौरान भारत से 20,000 टन का निर्यात हुआ था और अब यह करीब 4,000 टन कम है, जो वैश्विक बाजार में भारत की स्थिति के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहा है।
वियतनाम ने 88,435 टन काली मिर्च व 14,324 टन सफेद मिर्च का निर्यात किया। निर्यात की यह मात्रा पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले करीब 7.4 फीसदी कम है। हालांकि निर्यात की कीमत 9.5 फीसदी बढ़कर 67.90 करोड़ डॉलर हो गई। सफेद मिर्च के निर्यात के मामले में भारत की हिस्सेदारी महज 1300 टन रही।
पिछले 10 महीनों में काली मिर्च की औसत निर्यात कीमत 6382 डॉलर प्रति टन रही जबकि सफेद मिर्च की 9229 डॉलर प्रति टन। साल 2011 की समान अवधि के मुकाबले काली मिर्च की कीमतें 1016 डॉलर प्रति टन ज्यादा और सफेद मिर्च की कीमतें 1427 डॉलर प्रति टन ज्यादा रहीं।
वियतनाम से सबसे ज्यादा आयात अमेरिका में हुआ और यह 14,226 टन था (13.8 फीसदी)। जीसीसी, जर्मनी, हॉलैंड, सिंगापुर, भारत और मिस्र भी वियतनाम से काली मिर्च के बड़े आयातक हैं। सफेद मिर्च के मामले में सबसे बड़ा आयातक जर्मनी रहा। उसके बाद हॉलैंड का स्थान था और इस मामले में अमेरिका तीसरे स्थान पर रहा।
आईपीसी के ताजा अनुमान के मुताबिक, अगले सीजन (2013) में काली मिर्च का वैश्विक उत्पादन 3,16,832 टन रहने का अनुमान है। यह पिछले साल के मुकाबले थोड़ा कम है। साल 2011 में कुल उत्पादन 3,17,750 टन रहा था। हालांकि निर्यातकों का मानना है कि अगले सीजन में उत्पादन बढ़ेगा। उनके मुताबिक कुल उत्पादन 3,59,832 टन रह सकता है। आईपीसी के अनुमान के मुताबिक, अगले साल कुल निर्यात 2,14,541 टन रहेगा, जिसमें 29,341 टन सफेद मिर्च शामिल है। निर्यात के मामले में वियतनाम पहले स्थान पर रहेगा और यहां से 85,000 टन काली मिर्च व 10,000 टन सफेद मिर्च का निर्यात होगा। भारत से 25,000 टन का निर्यात हो सकता है, जिसमें 23,200 टन काली मिर्च व 1800 टन सफेद मिर्च शामिल है। (BS Hindi)
बाजार में दूध पाउडर निर्यातकों की साख पर लग रहा 'बट्टाÓ
पिछले महीने के आखिर में एक ओर जहां सरकार ने दुग्ध उत्पादों के निर्यात पर लगी पाबंदी हटा दी थी, वहीं दूसरी ओर साख का मसला दूध पाउडर के निर्यातकों को परेशान करेगा क्योंकि यह भारत अक्सर ऐसा रुख अख्तियार करने लगा है। कपास निर्यात के मामले में ऐसा पहले भी हो चुका है, जहां पिछले साल सरकार कपास के निर्यात पर पूर्ण पाबंदी के फैसले में संशोधन के लिए बाध्य हुई थी।
खास तौर से स्किम्ड मिल्क पाउडर निर्यातकों को निर्यात बाजार में साख के मसले का सामना करना पड़ रहा है, जिस पर पिछले दो साल से पाबंदी लगी हुई थी। फरवरी 2007 से अब तक निर्यात पर दो बार पाबंदी लगाई जा चुकी है और इसकी कुल अवधि 22 महीने रही है। 14 महीने की पाबंदी इस साल जून में हटाई गई थी। फरवरी 2007 में भी 8 महीने के लिए पाबंदी लगाई गई थी। ग्राहकों को लुभाने के लिए कंपनियां भारी छूट की पेशकश कर रही हैं क्योंकि घरेलू कीमतों में उन्हें दबाव महसूस हो रहा है।
इस साल लजून में निर्यात बहाल हो गया था, लेकिन कंपनियां अतिरिक्त भंडार के निर्यात के लिए संघर्ष कर रही है, जो घरेलू बाजार में पड़ा हुआ है और कीमतों पर असर डाल रहा है। कृष्णा ब्रांड के नाम से दूध पाउडर और अन्य उत्पाद बेचने वाली कंपनी भोला बाबा के निदेशक जितेंद्र अग्रवाल ने कहा, 'भारतीय आपूर्तिकर्ताओं को अब भरोसेमंद नहीं माना जाता है। वैश्विक कारोबारी समुदाय हमारे साथ निर्यात अनुबंध करने में संशयवादी हो रहे हैं। भारतीय आपूर्तिकर्ताओं को निर्यात अनुबंध हासिल करने की खातिर भारी छूट देने के लिए मजबूर किया जा रहा है। यहां भरोसे का संकट है और यह जल्द समाप्त नहीं होने वाला है।Ó उन्होंने कहा, हर आयातक भारतीय एसएमपी खरीदने को तैयार नहीं है, लेकिन हम पाकिस्तान, बांग्लादेश व पश्चिम एशियाई देशों में माल बेचने में सक्षम हुए हैं।
उद्योग की दूसरी कंपनियां भी ऐसी ही राय दे रही हैं। मधुसूदन ब्रांड के नाम से दूध पाउडर बेचने वाली कंपनी एसएमसी फूड्स के निदेशक संदीप अग्रवाल ने कहा, दूध पाउडर निर्यात की अस्थिर नीति निर्यातकों के लिए परेशानी खड़ी कर रही है। आज की परिस्थितियों में वैश्विक स्तर पर दूध पाउडर के कारोबार में हम सबसे निचले पायदान में हैं और हमने कीमत संबंधी ताकत खो दी है। हमारे लिए 2600-2700 डॉलर प्रति टन की कीमतें पेश की जा रही हैं जबकि न्यूजीलैंड व ऑस्ट्रेलिया के आपूर्तिकर्ताओं को 3400 डॉलर।
फरवरी 2011 में लगाई गई पाबंदी करीब 14 महीने टिकी और इसके पहले देश से सालाना 60,000-70,000 टन एसएमपी का निर्यात होता था। अग्रवाल ने कहा, देश में 80,000 टन के भारी भरकम एसएमपी स्टॉक के चलते इसकी कीमतें देसी बाजार में दब गई हैं जबकि सामान्य तौर पर करीब 30,000 टन का स्टॉक होता है। देश में कीमतें 140-150 रुपये प्रति किलोग्राम के दायरे में है और अप्रैल-मई के 175 रुपये प्रति किलोग्राम के मुकाबले कीमतें काफी नीचे आ गई हैं। (BS Hindi)
मुनाफे का जलवा तो बढ़ा आलू का रकबा
रबी सत्र वाले आलू की बुआई शुरू हो गई है। इस बार फसल के दाम ज्यादा मिलने से आलू किसान खासे उत्साहित हैं और वे पहले से ज्यादा आलू की बुआई कर रहे हैं। सत्र 2012-13 में आलू का रकबा 5 से 10 फीसदी बढऩे की संभावना है। ज्यादा बुआई और अनुकूल मौसम से इस बार बंपर पैदावार की उम्मीद है, जिससे उपभोक्ताओं को आलू की महंगाई से निजात भी मिल सकता है।
उत्तर प्रदेश में गाजीपुर के आलू किसान बटुकनारायण मिश्रा कहते हैं कि चालू सत्र 2011-12 में किसानों को आलू का भाव औसतन 800 रुपये प्रति क्विंटल मिला, जो इससे पिछले सत्र के औसत भाव 400 रुपये प्रति क्विंटल से दोगुना है। बेहतर भाव मिलने से किसान इस बार ज्यादा बुआई कर रहे हैं। मिश्रा ने पिछली बार 6 बीघा में आलू की फसल लगाई थी लेकिन इस बार वह 8 बीघा में आलू लगा रहे हैं। राष्टï्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास फाउंडेशन के निदेशक आर पी गुप्ता ने कहा कि बिहार, बंगाल और पूर्वी उत्तर प्रदेश में काफी हद तक आलू की बुआई हो चुकी है।
मुनाफा अधिक होने से किसानों का जोर अधिक आलू लगाने पर है। गुप्ता के मुताबिक सत्र 2012-13 में आलू का रकबा 5 से 10 फीसदी बढ़ सकता है। पिछले सत्र में 18.87 लाख हेक्टेयर में आलू लगा था, जो इससे पिछले सत्र के 18.63 लाख हेक्टेयर से ज्यादा था, लेकिन फसल को नुकसान होने से उत्पादन में कमी आई थी। फिलहाल आलू लगाने के लिए मौसम अनुकूल है। किसानों के पास आलू का बीज भी पर्याप्त है।
हाल में दाम गिरने से बीज भी सस्ता हुआ है। दिल्ली स्थित आलू-प्याज कारोबारी संघ के अध्यक्ष त्रिलोकचंद शर्मा कहते हैं कि उन्हें भी इस बार आलू की ज्यादा बुआई की खबर मिल रही है। सत्र 2011-12 में 415 लाख टन आलू का उत्पादन हुआ था, जो पहले वाले सत्र के 423 लाख टन से ज्यादा है।
इस समय शीतगृहों में कुल भंडारण का 10 फीसदी आलू ही बचा है। (BS Hindi)
अपने रुख पर कायम रह सकता है सीएसीपी!
सरकार ने कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) को भले ही अपनी सिफारिशों पर पुनर्विचार करने को कहा हो लेकिन आयोग सत्र 2013-14 के लिए गेहूं के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 1,285 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाने की शायद सिफारिश न करे।
कैबिनेट की हालिया बैठक में गेहूं के एमएसपी पर निर्णय टाल दिया गया था और सरकार ने सीएसीपी से कहा था कि डीजल की कीमतों में 5 रुपये प्रति लीटर के इजाफे को देखते हुए वह एमएसपी सिफारिश पर फिर से विचार करे। हालांकि अधिकारियों ने बताया कि सीएसीपी अपने पहले के निर्णय में बदलाव लाने के पक्ष में नहीं है। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी के बावजूद मौजूदा एमएसपी से गेहूं की कुल उत्पादन लागत अब भी कम है।
सीएसीपी के अनुमान के अनुसार 2013-14 में गेहूं की उत्पादन लागत करीब 1,098.47 रुपये प्रति क्विंटल होगी, जिसमें परिवहन, बीमा और विपणन शुल्क भी शामिल है। मामले से जुड़े एक अधिकारी ने कहा कि अगर इसमें प्रति क्विंटल 30 रुपये डीजल खर्च जोड़ दिया जाए तब भी उत्पादन लागत 1,285 रुपये प्रति क्विंटल की एमएसपी से कम ही होगी। आयोग अगले कुछ दिनों में अपनी संशोधित सिफारिश सरकार को भेज सकती है, जिस पर कैबिनेट में विचार किया जाएगा। हालांकि कृषि मंत्रालय चाहता है कि गेहूं किसानों को डीजल कीमतों में बढ़ोतरी के बाद 10 फीसदी बोनस दिया जाए। (BS Hindi)
सरकार महंगा करेगी खुले बाजार में सप्लाई का गेहूं
आर. एस. राणा नई दिल्ली
गेहूं की कीमतों में आई तेजी का फायदा केंद्र सरकार भी उठाएगी। खाद्य मंत्रालय ने खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत गेहूं के बिक्री भाव में 199 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी करने का फैसला किया है।
रोलर फ्लोर मिलों को ओएमएसएस के तहत गेहूं की बिक्री के लिए निविदा भरने का न्यूनतम भाव तय करने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के साथ परिवहन खर्च जोड़ा जा रहा था। लेकिन अब इन दोनों के साथ गेहूं खरीद के दूसरे खर्च भी शामिल करने की योजना है। सरकार के इस कदम से गेहूं व इसके उत्पाद सस्ते होने की उम्मीद नहीं होगी और महंगाई दर को बढ़ावा मिलेगा।
खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि ओएमएसएस के तहत गेहूं का बिक्री भाव बढ़ाने का फैसला किया गया है। इससे बढ़ती सब्सिडी में कुछ कमी आएगी। अभी तक ओएमएसएस के तहत रोलर फ्लोर मिलों को गेहूं की बिक्री विपणन सीजन 2012-13 के एमएसपी 1,285 रुपये प्रति क्विंटल में परिवहन लागत (लुधियाना से राज्य की राजधानी के आधार पर) जोड़कर की जा रही थी।
नए आवंटन के तहत इसमें पंजाब से खरीद में होने वाले खर्च (टैक्स, आढ़त व अन्य खर्च) को भी जोड़ा जाएगा। ऐसे में रोलर फ्लोर मिलों के लिए निविदा भरने के न्यूनतम भाव में 199 रुपये प्रति क्विंटल की और बढ़ोतरी हो जाएगी।
उन्होंने बताया कि ओएमएसएस के तहत नए आवंटन के तहत दिल्ली की फ्लोर मिलों के लिए गेहूं की खरीद के लिए निविदा भरने का न्यूनतम भाव 1,527 रुपये और कर्नाटक की मिलों के लिए 1,751 रुपये प्रति क्विंटल होगा। जबकि अभी तक दिल्ली में सरकारी गेहूं की बिक्री का न्यूनतम भाव 1,328 रुपये और कर्नाटक में 1,552 रुपये प्रति क्विंटल था।
रबी विपणन सीजन 2012-13 में गेहूं की खरीद की इकोनॉमिक लागत 1822.50 रुपये प्रति क्विंटल रही है। उन्होंने बताया कि अन्य राज्यों की फ्लोर मिलों के लिए भी निविदा भरने के न्यनूतम भाव में 199 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी हो जाएगी। आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने हाल ही में ओएमएसएस के तहत 65 लाख टन अतिरिक्त गेहूं के आवंटन को मंजूरी दी है। इसमें से नवंबर-दिसंबर के लिए फ्लोर मिलों को 15 लाख टन गेहूं का आवंटन किए जाने की संभावना है।
उन्होंने बताया कि सीसीईए ने, जो 65 लाख टन गेहूं का आवंटन किया है, उसका आवंटन फ्लोर मिलों के लिए मार्च 2013 तक किया जाएगा। वैसे भी अप्रैल महीने में गेहूं की नई फसल की आवक शुरू हो जाएगी। इससे पहले केंद्र सरकार ने 19 जून को ओएमएसएस के तहत 30 लाख टन गेहूं बेचने का फैसला किया था, जिसका आवंटन किया जा चुका है। केंद्रीय पूल में पहली सितंबर को 405.75 लाख टन गेहूं का बंपर स्टॉक बचा हुआ था।
14 नवंबर 2012
किसी के दबाव में एनसीडीईएक्स की हिस्सेदारी नहीं बेचेंगे अरोड़ा
एनसीडीईएक्स की हिस्सेदारी बेचने का दबाव झेल रही गौरव अरोड़ा द्वारा प्रवर्तित जेपी कैपिटल सर्विसेज लिमिटेड ने फिलहाल अपनी हिस्सेदारी बनाए रखने का फैसला किया है और कंपनी दूसरे हिस्सेदारों के दबाव का सामना करेगी। अरोड़ा ने कहा, मैं अपनी हिस्सेदारी नहीं बेचने जा रहा। करीब दो साल पहले एक्सचेंज के बोर्ड में ऐंकर निवेशक के तौर पर उन्हें प्रवेश मिला था।
एनसीडीईएक्स में एंकर इन्वेस्टर के तौर पर जेपी का प्रवेश 7 अक्टूबर को हुआ था और तब कंपनी को 113.4 लाख शेयर भारी छूट के साथ 59 रुपये प्रति शेयर पर आवंटित किए गए थे जबकि एक्सचेंज के राइट्स इश्यू के जरिए इन शेयरों का कारोबार 110 रुपये प्रति शेयर पर हुआ था।
इस कंपनी को इस शर्त पर शेयरों का आवंटन हुआ था कि कंपनी एक्सचेंज का औसत मासिक कारोबार में इजाफा करेगी, जिसे अरोड़ा पूरा नहीं कर पाए।
जैसा कि जेसी ने स्पष्ट किया है कि कंपनी एक्सचेंज में अपनी हिस्सेदारी नहीं बेचने जा रही है। एक्सचेंज की 9 नवंबर को होने वाली बैठक में इस मसले पर चर्चा होनी थी, जिसे टल गया और एनसीडीईएक्स की अगली बोर्ड बैठक 16 नवंबर को होगी, लेकिन समझा जाता है कि हिस्सेदारी बेचने का मुद्दा एजेंडे से हटा दिया गया है।
इस प्रगति पर नजर रखने वाले सूत्रों का हालांकि कहना है कि यह समय बताएगा कि वे कब तक दबाव झेलने में सक्षम हो पाते हैं क्योंकि जिंस बाजार नियामक वायदा बाजार आयोग ने एक्सचेंज को पहले ही बता दिया है कि किसी ब्रोकर को ऐंकर इन्वेस्टर के तौर शामिल किया जाना आयोग को असहज लग रहा है। हालांकि ऑन रिकॉर्ड एफएमसी ने इतना ही कहा है कि यह मामला एक्सचेंज के बोर्ड और शेयरधारक के बीच का है। संपर्क किए जाने पर जेसी के प्रवर्तक गौरव अरोड़ा ने कहा, मैंने एक्सचेंज में निवेशित रहने का फैसला किया है और मैं हिस्सेदारी नहीं बेचने जा रहा। इस संबंध में एनसीडीईएक्स के प्रबंध निदेशक रामलिंग रामशेषन को भेजे गए ईमेल का जबाब बिजनेस स्टैंडर्ड को नहीं मिला।
इस कंपनी को इस शर्त पर शेयरों का आवंटन हुआ था कि कंपनी एक्सचेंज का औसत मासिक कारोबार बढ़ाकर तीन सालों में किसी भी तीन लगातार महीने में क्रमश: कम से कम 7,000 करोड़ रुपये, 12,000 करोड़ रुपये और 16,000 करोड़ रुपये पर पहुंचा देगी जबकि शेयर आवंटन के समय कारोबार 3,000 करोड़ रुपये के स्तर पर था।
लेकिन पहले दो सालों में कंपनी अपने वादे के मुताबिक कारोबार बढ़ाने में नाकाम रही। तीसरे साल भी इसमें नाकामी का मतलब यह होगा कि कंपनी को शेयर की कीमतों के अंतर का भुगतान करने की दरकार होगी, जो करीब 130 करोड़ रुपये है। हालांकि पहले दो सालों में मासिक औसत कारोबार 5500-6700 करोड़ रुपये के दायरे में रहा।
इस प्रगति पर नजर रखने वालों ने बताया कि इसी वजह से गौरव अरोड़ा खरीदार की तलाश कर रहे हैं। किसी भी खरीदार ने अभी तक इसमें दिलचस्पी नहीं ली है। ऐसे चरण में किसी के लिए भी यह आसान नहीं होगा क्योंकि खरीदार को गौरव की तरफ से किए गए वादे को पूरा करना होगा। इस मामले में फैसला लेने के लिए 16 नवंबर को एनसीडीईएक्स की बैठक होने वाली है, जिसमें एंकर इन्वेस्टर जेपी कैपिटल की तरफ से कारोबार में इजाफा करने के वादे पर चर्चा होगी। सूत्रों के मुताबिक, जेसी ने खरीदारों की तलाश का काम आनंद राठी व ऐंजल ब्रोकिंग को सौंपा है, जो फिलहाल इस पर काम कर रही हैं। गौरव अरोड़ा ने कहा, कारोबार में बने रहने के लिए हमारे पास दो विकल्प हैं, पहला, मूल कारोबार ब्रोकिंग में लौट जाएं या फिर एनसीडीईएक्स का एंकर निवेशक बने रहें। लेकिन फिलहाल हमने दूसरा विकल्प चुनने का फैसला किया है। इस बीच, श्री रेणुका शुगर्स के प्रबंध निदेशक नरेंद्र मुरकुंबी ने इस पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। एक्सचेंज में इस कंपनी की हिस्सेदारी 12.50 फीसदी है और यह दूसरा बड़ा हिस्सेदार है। (BS Hindi)
वाम दल का रिटेल में एफडीआई के खिलाफ नोटिस
लेफ्ट पार्टियों ने 22 नवंबर को लोकसभा का सत्र शुरू होते ही मल्टीब्रांड रिटेल में एफडीआई के खिलाफ प्रस्ताव रखने का नोटिस दिया है। माना जा रहा है कि यह सत्र हंगामेदार रहेगा। इस मुद्दे पर विपक्षी दल ही नहीं, बल्कि यूपीए को बाहर से समर्थन दे रहीं पार्टियां और सरकार में शामिल डीएमके भी सरकार के साथ नहीं हैं।
तृणमूल कांग्रेस ने एफडीआई पर ही यूपीए-2 से समर्थन वापस लिया था, जिसके बाद से यूपीए सरकार सपा और बसपा के समर्थन के सहारे चल रही है, जबकि सपा और बसपा दोनों मल्टीब्रांड रिटेल सेक्टर में एफडीआई के खिलाफ हैं।
सीपीआई के राष्ट्रीय सचिव डी राजा ने चार दलों की बैठक के बाद बताया, वाम दल मत विभाजन के प्रावधान वले नियमों के तहत प्रस्ताव पेश करेंगे और मल्टी-ब्रांड रिटेल में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति देने वाले सरकारी फैसले को खारिज करने की सदन से मांग करेंगे। लोकसभा कार्यवाही में नियम 184 और राज्यसभा में नियम 167 के तहत किसी भी मामले में बहस के बाद मत विभाजन का प्रावधान है।
वाम दलों के जारी वक्तव्य में कहा गया, बैठक में सीपीएम, सीपीआई, आरएसपी और फॉरवर्ड ब्लॉक के शीर्ष नेता शामिल हुए। बैठक में सभी नागरिकों की भोजन तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी खाद्य सुरक्षा विधेयक और सार्वभौमिक जनवितरण प्रणाली के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान छेड़ने का भी फैसला लिया गया।
राजा ने कहा कि ये पार्टियां पांच करोड़ दस्तखत इकट्ठा करने के लिए देश भर में अभियान शुरू करेंगी और दिसंबर, जनवरी महीने में लेफ्ट कार्यकर्ता घर-घर जाकर लोगों के हस्ताक्षर लेंगे। (भाषा)
मल्टीब्रांड रिटेल में एफडीआई को लेकर सरकार की मुश्किलें बढ़ने की आशंका
नई दिल्ली: मल्टीब्रांड रिटेल में एफडीआई पर यूपीए के सहयोगी दलों का विरोध जारी है। आज भी डीएमके ने कहा कि वह खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश के खिलाफ है। उसने इसको लेकर पहले ही एक प्रस्ताव भी पास किया है। बताया जा रहा है कि इस मुद्दे पर पार्टी का पक्ष रखने के लिए डीएमके नेता टीआर बालू, प्रधानमंत्री से मुलाकात करने वाले भी हैं।
डीएमके का यह ताजा बयान अचानक इसलिए भी अहम हो गया है, क्योंकि सीपीएम ने सोमवार से शुरू हो रहे संसद के शीत सत्र के लिए एफडीआई पर चर्चा का नोटिस दिया है। इसका मतलब है कि इस मुद्दे पर केंद्र सरकार के लिए अपने पक्ष में समर्थन जुटाने में खासी मशक्कत करनी पड़ सकती है। संसद का शीतकालीन सत्र हंगामेदार होने के आसार हैं। लेफ्ट पार्टियों ने 22 नवंबर को लोकसभा का सत्र शुरू होते ही मल्टीब्रांड रिटेल में एफडीआई के खिलाफ प्रस्ताव रखने का नोटिस दिया है।
तृणमूल कांग्रेस ने एफडीआई पर ही यूपीए-2 से समर्थन वापस लिया था, जिसके बाद से यूपीए सरकार सपा और बसपा के समर्थन के सहारे चल रही है, जबकि सपा और बसपा दोनों मल्टीब्रांड रिटेल सेक्टर में एफडीआई के खिलाफ हैं।
सीपीआई के राष्ट्रीय सचिव डी राजा ने चार दलों की बैठक के बाद बताया, वाम दल मत विभाजन के प्रावधान वले नियमों के तहत प्रस्ताव पेश करेंगे और मल्टी-ब्रांड रिटेल में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति देने वाले सरकारी फैसले को खारिज करने की सदन से मांग करेंगे। लोकसभा कार्यवाही में नियम 184 और राज्यसभा में नियम 167 के तहत किसी भी मामले में बहस के बाद मत विभाजन का प्रावधान है।
वाम दलों के जारी वक्तव्य में कहा गया, बैठक में सीपीएम, सीपीआई, आरएसपी और फॉरवर्ड ब्लॉक के शीर्ष नेता शामिल हुए। बैठक में सभी नागरिकों की भोजन तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी खाद्य सुरक्षा विधेयक और सार्वभौमिक जनवितरण प्रणाली के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान छेड़ने का भी फैसला लिया गया।
राजा ने कहा कि ये पार्टियां पांच करोड़ दस्तखत इकट्ठा करने के लिए देश भर में अभियान शुरू करेंगी और दिसंबर, जनवरी महीने में लेफ्ट कार्यकर्ता घर-घर जाकर लोगों के हस्ताक्षर लेंगे। (ND-TV Khabar)
12 नवंबर 2012
धनतेरस पर सोने की बिक्री 30 फीसदी बढ़ी
सोने के दाम ऊंचे होने के बावजूद रविवार को धनतेरस के शुभ अवसर पर सोने की बिक्री में 30 प्रतिशत तक उछाल दर्ज किया गया.
शादी ब्याह के लिये आभूषण खरीदने वाले ग्राहकों ने भी धनतेरस के मौके पर ही खरीदारी करना बेहतर समझा और वह सराफा बाजार की तरफ खिंचे चले गये.
सोने के दाम इस समय राष्ट्रीय राजधानी में 32,000 रुपये प्रति 10 ग्राम और मुंबई में 32,100 रुपये प्रति दस ग्राम बोले जा रहे हैं.
पी.सी. ज्वैलर्स के प्रबंध निदेशक बलराम गर्ग ने कहा ‘हमें उम्मीद नहीं थी, लेकिन बिक्री काफी अच्छी रही. हमें केवल पिछले धनतेरस की तुलना में अच्छी बिक्री की उम्मीद थी.’
एक अन्य ज्वैलर्स पी.पी. ज्वैलर्स के निदेशक पवन गुप्ता ने कहा ‘खरीदारी की भारी भीड़ से स्पष्ट है कि सोने के ऊंचे दाम का मांग पर कोई असर नहीं है. हमें 25 से 30 प्रतिशत वृद्धि की उम्मीद है.’ धनतेरस के दिन सोने और चांदी जैसी कीमती धातुओं की खरीदारी को शुभ माना जाता है.
राजधानी के चांदनी चौक स्थित ज्वैलर्स के अनुसार ज्यादा मांग सोने के जेवरातों की रही. सोने और चांदी के सिक्कों के मुकाबले शादी ब्याह के लिये आभूषण के खरीदार ज्यादा रहे.
राजधानी के कुछ आभूषण विक्रेताओं ने यह भी कहा कि पिछले साल के मुकाबले बिक्री कम रही. खरीदारी के नाम पर लोगों ने केवल कम वजन वाले सोने के सिक्के और जेवरातों की ही खरीदारी की.
देश की वाणिज्यिक राजधानी मुंबई में यूटी जावेरी खुदरा श्रंखला के मालिक कुमार जैन ने कहा ‘इस साल उम्मीद से अधिक खरीदारी हुई. हमें बिक्री कारोबार में 25 से 30 प्रतिशत वृद्धि की उम्मीद है.’
त्रिभुवनदास भीमजी जावेरी की विपणन प्रमुख किरन दीक्षित ने कहा ‘पिछले साल के मुकाबले अधिक ग्राहक पहुंचे. संकेत ऐसे हैं कि सिक्कों की तुलना में आभूषण ज्यादा बिके हैं, शादी ब्याह का समय होने से जेवरात की मांग ज्यादा रही.’ सर्राफा व्यापारियों के अनुसार कल अपराह् दो बजे तक धनतेरस का मुहुर्त है इसलिये कल भी खरीदारी जारी रहने की उम्मीद है.
सिक्के और आभूषण के रुप में सोने की खरीदारी के साथ साथ नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) में एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) में भी रिकार्ड सौदे हुये. एनएसई में धनतेरस पर गोल्ड ईटीएफ के लिये हुये विशेष कारोबारी सत्र में 1,337 करोड़ रुपये का रिकार्ड कारोबार हुआ. पिछले वर्ष इस दिन 636 करोड़ रुपये का कारोबार हुआ था.
एनएसई के अनुसार एक्सचेंज में 4,441 किलो सोने का कारोबार हुआ.
भारत दुनिया में सोने का सबसे बड़ा उपभोक्ता है. वर्ष 2012 में सोने का आयात 750 से 800 टन रहने की उम्मीद है. हालांकि, एक साल पहले यह 969 टन रहा था. (aaj Tak)
जांच के घेरे में एनसीडीईएक्स
नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) में अनियमितता के चलते ग्वार वायदा के कारोबार पर रोक के महज चार महीने बाद एक्सचेंज एक बार फिर वायदा बाजार आयोग के घेरे में आ गया है। इस बार हालांकि मामला एनसीडीईएक्स के पंजीकृत गोदामों में डिलिवरी के लिए रखी काली मिर्च की खराब गुणवत्ता का है।
कारोबारी सूत्रों के मुताबिक, एनसीडीईएक्स से जुड़ी वेयरहाउसिंग कंपनियों नैशनल कोलेटरल मैनेजमेंट सर्विसेज और जेआईसीएस लॉजिस्टिक्स ने 2500-3000 टन काली मिर्च की ऐसी खेप स्वीकार की है, जिसकी गुणवत्ता एनसीडीईएक्स के अनुबंध के मानकों के मुताबिक नहीं है। यह काली मिर्च विभिन्न कारोबारियों किशोर स्पाइसेज, हरतिया स्पाइसेज, अनुशा ट्रेडिंग, वीबी ट्रेडर्स, डीएस संस और ग्लोब कमोडिटीज प्राइवेट लिमिटेड जैसे एनसीडीईएक्स के हाजिर प्रतिभागियों ने गोदाम में जमा किया है। जब कारोबारियों ने इसकी शिकायत पिछले हफ्ते एनसीडीईएक्स से की तो एक्सचेंज ने हाल में जमा किए गए काली मिर्च की बानगी लेकर इसे पास के मान्यताप्राप्त प्रयोगशाला में जांच के लिए भेज दिया।
एनसीडीईएक्स के प्रमुख (कॉरपोरेट सर्विसेज) ए कुमार ने कहा, हालांकि यह बानगी प्रथम दृष्टया ठीक नजर आ रही है, लेकिन हमने इसे जांच के लिए भेज दिया है और इसकी रिपोर्ट मंगलवार तक आने की उम्मीद है। शिकायत मिलने के बाद एक्सचेंज ने हाजिर प्रतिभागी को 2-3 दिन के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया था, लेकिन बाद में इसे बहाल कर दिया गया।
इस बीच, जिंस बाजार नियामक वायदा बाजार आयोग ने इस मामले की जांच शुरू कर दी है। कारोबारी सूत्रों के मुताबिक, एफएमसी के एक वरिष्ठ अधिकारी फिलहाल कोच्चि के दो गोदामों की जांच कर रहे हैं, जहां कथित तौर पर खराब गुणवत्ता वाली काली मिर्च का बड़ा भंडार है। एफएमसी अधिकारी के मोबाइल पर बार-बार संपर्क किए जाने के बाद भी हालांकि कोई जवाब नहीं मिला।
अधिकारी का यह दौरा हालांकि उपभोक्ता मामलों के मंत्री के वी थॉमस के दौरे से टकरा रहा है, जिनके चुनाव क्षेत्र में समस्या खड़ी हो गई है। मंत्री के हस्तक्षेप से हालांकि इस मुद्दे का तार्किक समाधान होने की संभावना है। डिलिवरी के लिए एनसीडीईएक्स के गुणवत्ता मानक में कहा गया है कि एमजी-1 में 11 फीसदी नमी होगी और यह दूसरे मानकों को भी पूरा करेगा और यही काली मिर्च डिलिवरी में दी जा सकती है। सूत्रों ने खुलासा किया है कि खराब गुणवत्ता वाली काली मिर्च में 13.5 फीसदी से ज्यादा नमी है और यह दूसरे मानक भी पूरा नहीं कर रहा है।
एक्सचेंज ने काली मिर्च की अनिवार्य डिलिवरी (स्टैगर्ड डिलिवरी) हाल में शुरू की है और इससे डर पैदा हुआ है कि खराब गुणवत्ता वाले सभी कार्गो (जो मानकों को पूरा करने में नाकाम रहे हैं) जल्दबाजी में एक्सचेंज को डिलिवरी के लिए सौंप दिए गए हैं। बाजार के सूत्रों का अनुमान है कि खराब गुणवत्ता वाली 100 करोड़ रुपये की काली मिर्च की डिलिवरी की जा चुकी है जबकि कुमार का आकलन इकाई अंकों में है। भारत की काली मिर्च दुनिया भर में अपनी गुणवत्ता के लिए जानी जाती है। (BS Hindi)
ओएमएसएस के तहत 65 लाख टन गेहूं आवंटित
गेहूं उत्पादों की कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र सरकार ने खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत रोलर फ्लोर मिलों के लिए 65 लाख टन गेहूं का आवंटन किया है। आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) की शनिवार को हुई बैठक में राज्य और केंद्र शासित राज्यों के रिटेल उपभोक्ताओं के लिए भी पांच लाख टन गेहूं और पांच लाख टन चावल का आवंटन किया गया। रिटेल उपभोक्ताओं के लिए आवंटित किए गए गेहूं और चावल की बिक्री नेफेड, एनसीसीएफ और केंंद्रीय भंडारों के माध्यम से की जाएगी।
सूत्रों के अनुसार गेहूं की बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए सरकार ने ओएमएसएस के तहत फ्लोर मिलों के लिए 65 लाख टन गेहूं का आवंटन नवंबर 2011 से मार्च 2012 के लिए किया है। इससे बाजार में गेहूं और गेहूं उत्पादों की कीमतों में कमी आएगी। इससे पहले भी सरकार ने 19 जून को ओएमएसएस के तहत 30 लाख टन गेहूं का आवंटन किया जा था जिसका उठाव रोलर फ्लोर मिलों द्वारा किया जा चुका है।
ओएमएमएस के तहत दिल्ली में गेहूं की निविदा भरने का न्यूनतम भाव 1,328 रुपये प्रति क्विंटल है जबकि दिल्ली बाजार में गेहूं का दाम बढ़कर इस समय 1,650 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है। इसी तरह से बंगलुरू में गेहूं का दाम बढ़कर शनिवार को 1,820 रुपये प्रति क्विंटल हो गया। केंद्रीय पूल में पहली नवंबर को 405.75 लाख टन गेहूं का भारी-भरकम स्टॉक बचा हुआ है। (Business Bahskar)
हिमाचल में सेब उत्पादन बढ़कर डेढ़ गुना होने का अनुमान
चालू सीजन में हिमाचल प्रदेश में सेब का उत्पादन पिछले सीजन के मुकाबले बढ़कर लगभग डेढ़ गुना हो सकता है। इस सीजन में राज्य में दो करोड़ बॉक्स (प्रति बॉक्स 20 किलो) सेब का उत्पादन होने का अनुमान है जो पिछले साल के उत्पादन के मुकाबले 65 लाख बॉक्स ज्यादा होगा।
राज्य के बागवानी विभाग के निदेशक गुरदेव सिंह ने बताया कि इस साल उत्पादन बढ़कर दो करोड़ बॉक्स तक पहुंचने की संभावना है। पिछले साल राज्य में करीब 1.40 करोड़ बॉक्स सेब का उत्पादन हुआ था। निकटवर्ती ढल्ली सेब बाजार के कारोबारियों के अनुसार इस समय उत्पादक अपनी उपज को कोल्ड स्टोरों में रखने में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं।
इस वजह से सप्लाई काफी कम है। सामान्यतया मंडी में करीब 1,000 बॉक्स की रोजाना आवक होनी चाहिए, लेकिन मंडी में सिर्फ 200 बॉक्स की सप्लाई हो रही है। यह सप्लाई भी किन्नौर और ऊंचाई वाले कुछ क्षेत्रों से हो रही है। किन्नौरी सेब अपनी क्वालिटी और लंबी शेल्फ लाइफ के लिए जाना जाता है और इसका मूल्य भी बेहतर रहता है।
एग्री कमोडिटी ट्रेडिंग कंपनी अडानी एग्रीफ्रेश के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कंपनी ने चालू सीजन में अब तक 16,300 टन सेब की खरीद की है, जबकि कंपनी ने कुल 22,000 टन सेब खरीद का लक्ष्य रखा है। पिछले साल कंपनी ने सिर्फ 6,000 टन सेब की खरीद की थी। अधिकारी के अनुसार अभी सप्लाई हो रहे सेब का आकार छोटा है और इसका रंग भी अच्छा नहीं है।
बागवानी विभाग के अधिकारियों का कहना है कि पूरे राज्य में उत्पादन बढऩे की संभावना के बावजूद शिमला, कुल्ली, मंडी, सिरमौर और चंबा जिलों में उत्पादन प्रभावित हुआ है क्योंकि मई व जून माह में फलों के विकास के दौर में इन क्षेत्रों में कम बारिश हुई थी।
देश में फसल वर्ष 2009-10 के दौरान सेब का उत्पादन रिकॉर्ड स्तर पर 8.92 लाख टन रहा था। लेकिन वह अपवाद था। इसके बाद वर्ष 2010-11 में उत्पादन घटकर 2.75 लाख टन रह गया। जबकि पिछले साल यानि 2011-12 के दौरान चार लाख टन उत्पादन रहा था। (Business Bhaskar)
एसएपी तय न होने से गन्ने के मूल्य में भारी गिरावट
सीजन वर्ष 2012-13 (अक्टूबर से सितंबर) के लिए गन्ने का राज्य समर्थित मूल्य (एसएपी) तय नहीं किया है जिसकी वजह से चीनी मिलों में पेराई शुरू नहीं हो पाई है। किसानों को रबी सीजन की बुवाई के लिए खेत खाली करने हैं इसलिए वे खेतों से गन्ने की कटाई करके मजबूरी में कोल्हू संचालकों को औने-पौने दाम पर बेच रहे हैं।
भारतीय किसान मजदूर संगठन के संयोजक वी. एम. सिंह ने बताया कि चालू पेराई सीजन के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने अभी तक गन्ने का एसएपी तय नहीं किया है। साथ ही, चीनी मिलों ने पेराई भी शुरू नहीं की है जबकि किसानों को गेहूं की बुवाई के लिए खेत खाली करने हैं। इसलिए किसानों को मजबूरन कम दाम पर कोल्हू संचालकों को गन्ना बेचना पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि राज्य में केवल एक-दो मिल ने ही गन्ने की खरीद शुरू की है।
मुजफ्फरनगर जिले के गांव खरड़ के किसान जितेंद्र मलिक ने बताया कि 30 बीघे में गन्ना लगाया हुआ है जिसमें से पांच बीघे में गेहूं लगाना है। चीनी मिलों में पेराई शुरू नहीं हुई है इसलिए कोल्हू संचालकों को गन्ना बेचना पड़ रह है। कोल्हू संचालक 200-215 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गन्ने की खरीद कर रहे हैं जबकि अक्टूबर में कोल्हू संचालकों द्वारा 240 से 250 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गन्ना खरीदा जा रहा था।
शामली जिले के बझेड़ी गांव के किसान गौरव चौधरी ने बताया कि गेहूं की बुवाई के लिए खेत खाली करने हैं लेकिन चीनी मिलों में अभी तक गन्ने की खरीद शुरू नहीं की है। इसका फायदा कोल्हू संचालक उठा रहे हैं। कोल्हू संचालकों ने सप्ताह भर में ही गन्ने के दाम 40-50 रुपये प्रति क्विंटल तक घटा दिए हैं। इस समय कोल्हू संचालक 190 से 210 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गन्ने की खरीद कर रहे हैं।
फेडरेशन ऑफ गुड़ ट्रेडर्स के अध्यक्ष अरुण खंडेलवाल ने बताया कि राज्य सरकार ने गन्ने का एसएपी तय नहीं किया है जिसकी वजह से चीनी मिलों में पेराई शुरू नहीं हुई है इसलिए कोल्हुओं में गन्ने की आवक ज्यादा हो रही है जिसकी वजह से पिछले दस दिनों में ही गुड़ की कीमतें 3,500 रुपये से घटकर 2,700 रुपये प्रति क्विंटल रह गई हैं।
पेराई सीजन वर्ष 2011-12 के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने गन्ने का एसएपी 235 से 250 रुपये प्रति क्विंटल तय किया था जबकि चालू पेराई सीजन के लिए इसमें 20 से 30 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी किए जाने की संभावना है। केंद्र सरकार ने पेराई सीजन 2012-13 के लिए गन्ने का एफआरपी 170 रुपये प्रति क्विंटल घोषित किया हुआ है। (Business Bhaskar.....R S Rana)
09 नवंबर 2012
जीएम फसल पर फिर सवाल
जीन-संशोधित यानी जीएम फसलें इंसान की सेहत और पर्यावरण दोनों के लिए खतरनाक हैं। यह बात एक बार फिर हमारे सामने निकलकर आई है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एक तकनीकी विशेषज्ञ समिति यानी टीईसी ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट में न सिर्फ जीएम फसलों को खतरनाक बतलाया, बल्कि सरकार से सिफारिश की है कि बीटी कपास समेत सभी जीन सवंद्धित फसलों के खेतों में परीक्षण पर, अगले दस साल तक पूरी तरह पाबंदी लगा दी जाए। तकनीकी विशेषज्ञ समिति ने अपनी रिपोर्ट में इस बात को भी रेखांकित किया कि हमारे यहां जीएम खाद्य फसलों के खेतों में परीक्षण के लिए मौजूदा नियामकीय प्रणाली व व्यवस्था संतोषजनक नहीं है। जब तक इसमें व्यापक बदलाव और इसका पुनर्गठन नहीं किया जाता, तब तक जीएम फसलों का खेतों में परीक्षण नहीं किया जाए। समिति ने जीएम फसलों के स्वास्थ और पर्यावरण पर दीर्घकालिक प्रभाव पर अलग से अध्ययन करने के साथ-साथ उच्चाधिकार प्राप्त एक नियामक तंत्र बनाने का सुझाव भी दिया।
यह कोई पहली बार नहीं है, जब जीएम फसलों पर सवाल उठे हों, बल्कि इससे पहले भी इन फसलों को लेकर नकारात्मक राय सामने आई है। अभी ज्यादा दिन नहीं बीते हैं, जब कृषि मंत्रालय की संसदीय समिति ने जीएम फसलों से संबंधित अपनी एक रिपोर्ट में जीएम फसलों को जीव जंतुओं पर खतरनाक और प्रतिकूल असर डालने वाला बतलाया था। गहन जांच और प्रयोगों से यह बात मालूम चली, कि जीएम फसलों के बीजों की वजह से मेमनों के जननांगों और दूसरे अंगों के वजन में कमी के साथ-साथ खून में कई तरह की गड़बड़ियां पाई गईं। इसके अलावा, यदि इस तरह की फसलें किसी दुधारू जानवर को खिलाई जाएं, तो उसका दूध पीने वाले इंसान को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। यानी जीएम फसलों का ना सिर्फ इंसान की सेहत पर बुरा असर पड़ेगा, बल्कि इससे हमारे पालतू जानवर और पर्यावरण भी नहीं बच पाएगा। ये फसलें इंसान की सेहत और पर्यावरण दोंनो के लिए मुफीद नहीं हैं।
गौरतलब है कि जैव प्रौधोगिकी नियामक द्वारा बीटी बेंगन की व्यावसायिक खेती को मंजूरी देने के बाद से ही, पूरे मुल्क में ये बहस जारी है कि, जीन परिवर्धित खाद्यानों की खेती क्या हमारी जरुरत बन गए हैं? या हम इसे हड़बड़ी में बिना इसके खतरों को जाने-पहचानें अपने यहां लागू कर रहे हैं। मसलन बीटी बेंगन के सीमित प्रयोग के लिए कम से कम 30 परीक्षण चाहिए होते हैं, लेकिन हमारे यहां 10 से कम परीक्षण किए गए। यही नहीं टैस्ट भी एक ही कम्पनी ने किए, जिसमें भी मूल्यांकन के वाजिब बंदोबस्त नहीं थे। जाहिर है कि, इन प्रयोगों में कई खामियां थीं। सच बात तो यह है कि जीएम फसलों के टेस्ट के लिए वैज्ञानिक दृष्टि से जितने गहन और लंबे परीक्षण की जरुरत होती है, वह वास्तव में हमारे देश में कहीं हुए ही नहीं। जबकि म्यूटेशन का नतीजा मालूम चलने में दसियों और कुछ मामलों में सैंकड़ों साल लग जाते हैं। मोंसेंटो और मायको ने हमारे यहां जो भी परीक्षण किए, वे जल्दबाजी में किए गए थे। खरगोश, चूहों पर महज 90 दिनों के परीक्षण के नतीजे, इंसानों के मामले में मुफीद नहीं। खासकर, जैनेटिक म्यूटेशन के मामलों में।
बहुराष्ट्रीय कंपनियां अरसे से यह भ्रामक प्रचार कर रही हैं कि खाद्य संकट का समाधान जीएम बीजों से ही मुमकिन है। पर इन सब हवाई बातों से अलग, देश में बीटी काटन का तजुर्बा हमारे सामने है। बीटी काटन के मुताल्लिक भी हमें कई फायदे गिनाए गए, लेकिन उनका क्या हश्र हुआ? ये बात अब सबके सामने है। आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश जैसे सूबों में बीटी काटन की वजह से न सिर्फ फसलें तबाह हो गईं, बल्कि किसान भी बर्बाद हो गए। बीटी बीज की खरीदी व उसकी फसल पर दवा छिड़कने को लिए गए कर्ज से किसान उबर नहीं पाए और हजारों किसानों ने आत्महत्याएं कर लीं। जीई फसलों का सबसे ज्यादा प्रचार-प्रसार अमेरिका में है, लेकिन यहां भी किए गए एक शोध के मुताबिक जीएम फसलों से उत्पादकता बढ़ाने में कोई कामयाबी नहीं मिली। एक बात और, फूड क्राप्स के तौर पर जीई फसल का दुनिया भर में कहीं भी उत्पादन नहीं हो रहा। अमेरिका में भी जिसकी बहुराष्ट्रीय कंपनियां, हिंदुस्तान के बीज बाजार पर अपना कब्जा करना चाहती हैं, वहां सिर्फ जीएम सोयाबीन और मक्का पैदा किया जा रहा है। और इसका इस्तेमाल भी फूड क्राप्स के तौर पर नहीं किया जाता। यूरोपीय देशों ने साफ तौर पर अपने यहां बीटी बेंगन जैसे जैनेटिक माडिफिकेशन से विकसित फसलों की खेती पर पाबंदी लगा रखी है।
जीएम फसलों के खतरनाक प्रभावों को देखते हुए, जहां यूरोपीय देश एक-एक कर अपने यहां इन फसलों की खेती पर पाबंदी लगा रहे हैं, तो दूसरी तरफ हमारे देश में इन फसलों के लिए एक तरह का उतावलापन बना हुआ है। जीएम बीज के कारोबार से जुड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों और उनसे जुड़े संस्थानों का स्वार्थ तो समझ में आता है, लेकिन इस पूरे मामले में हमारी सरकार के कुछ मंत्रियों ने जिस तरह का रुख दिखलाया है, वह समझ से परे है? जीएम फसलों की जांच के नकारात्मक नतीजे सामने आने के बाद भी, वे क्यों इन फसलों की पैरवी कर रहे हैं? सर्वोच्च न्यायालय की पहल पर गठित विशेषज्ञ समिति की सिफारिशें सामने आने के बाद, उम्मीद है अब उनका भी नजरिया बदलेगा और वे इन फसलों की पैरवी करने से बाज आएंगे। (Khrinews.com)
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