19 नवंबर 2012
दूध पाउडर निर्यातकों की साख पर 'बट्टा'
हालांकि सरकार ने हाल ही में दुग्ध उत्पादों के निर्यात पर लगी पाबंदी हटा दी लेकिन दूध पाउडर के निर्यातकों को साख का मसला परेशान कर सकता है क्योंकि भारत अक्सर ऐसा रुख अख्तियार करने लगा है। कपास निर्यात के मामले में ऐसा पहले भी हो चुका है, जहां पिछले साल सरकार कपास के निर्यात पर पूर्ण पाबंदी के फैसले में संशोधन के लिए बाध्य हुई थी।
खास तौर से स्किम्ड मिल्क पाउडर निर्यातकों को निर्यात बाजार में साख के मसले का सामना करना पड़ रहा है, जिस पर पिछले दो साल से पाबंदी लगी हुई थी। फरवरी 2007 से अब तक इसके निर्यात पर दो बार पाबंदी लगाई जा चुकी है और इसकी कुल अवधि 22 महीने रही है। 14 महीने की पाबंदी इस साल जून में हटाई गई थी। फरवरी 2007 में भी आठ महीने के लिए पाबंदी लगाई गई थी।
ग्राहकों को लुभाने के लिए कंपनियां भारी छूट की पेशकश कर रही हैं क्योंकि घरेलू कीमतों में उन्हें दबाव महसूस हो रहा है। इस साल जून में निर्यात बहाल हो गया था, लेकिन कंपनियां अतिरिक्त भंडार के निर्यात के लिए संघर्ष कर रही है, जो घरेलू बाजार में पड़ा हुआ है और कीमतों पर असर डाल रहा है। कृष्णा ब्रांड के नाम से दूध पाउडर और अन्य उत्पाद बेचने वाली कंपनी भोला बाबा के निदेशक जितेंद्र अग्रवाल ने कहा, 'भारतीय आपूर्तिकर्ताओं को अब भरोसेमंद नहीं माना जाता है। वैश्विक कारोबारी समुदाय हमारे साथ निर्यात अनुबंध करने में संशयवादी हो रहे हैं। भारतीय आपूर्तिकर्ताओं को निर्यात अनुबंध हासिल करने की खातिर भारी छूट देने के लिए मजबूर किया जा रहा है। यहां भरोसे का संकट है और यह जल्द समाप्त नहीं होने वाला है।'
उन्होंने कहा, हर आयातक भारतीय एसएमपी खरीदने को तैयार नहीं है, लेकिन हम पाकिस्तान, बांग्लादेश और पश्चिम एशियाई देशों में माल बेचने में सक्षम हुए हैं।
उद्योग की दूसरी कंपनियां भी ऐसी ही राय दे रही हैं। मधुसूदन ब्रांड के नाम से दूध पाउडर बेचने वाली कंपनी एसएमसी फूड्स के निदेशक संदीप अग्रवाल ने कहा, दूध पाउडर निर्यात की अस्थिर नीति निर्यातकों के लिए परेशानी खड़ी कर रही है। आज की परिस्थितियों में वैश्विक स्तर पर दूध पाउडर के कारोबार में हम सबसे निचले पायदान में हैं और हमने कीमत संबंधी ताकत खो दी है। हमारे लिए 2600-2700 डॉलर प्रति टन की कीमतें पेश की जा रही हैं जबकि न्यूजीलैंड व ऑस्ट्रेलिया के आपूर्तिकर्ताओं को 3400 डॉलर प्रति टन।
फरवरी 2011 में लगाई गई पाबंदी करीब 14 महीने टिकी और इसके पहले देश से सालाना 60,000-70,000 टन एसएमपी का निर्यात होता था। अग्रवाल ने कहा, देश में 80,000 टन के भारी भरकम एसएमपी स्टॉक के चलते इसकी कीमतें देसी बाजार में दब गई हैं जबकि सामान्य तौर पर करीब 30,000 टन का स्टॉक होता है। देश में कीमतें 140-150 रुपये प्रति किलोग्राम के दायरे में है और अप्रैल-मई के 175 रुपये प्रति किलोग्राम के मुकाबले कीमतें काफी नीचे आ गई हैं। (BS Hindi)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें