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19 जुलाई 2025

चालू वित्त वर्ष के पहली तिमाही में डीओसी का निर्यात एक फीसदी घटा - एसईए

नई दिल्ली। चालू वित्त वर्ष 2025-26 की पहली अप्रैल से जून के दौरान डीओसी के निर्यात में एक फीसदी की मामूली कमी आकर कुल निर्यात 1,094,593 टन का ही हुआ है, जबकि पिछले तेल वर्ष की समान अवधि में इनका निर्यात 1,102,632 टन का हुआ था।


सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, एसईए के अनुसार जून में डीओसी के निर्यात में 7 फीसदी की कमी आकर कुल निर्यात 313,404 टन का ही हुआ है, जबकि पिछले साल जून में इसका निर्यात 335,196 टन का हुआ था।

चालू मानसून सीजन में 9 जुलाई 2025 तक, देशभर के राज्यों में बारिश सामान्य की तुलना में 15 फीसदी अधिक हुई है, जोकि खरीफ फसलों की बुवाई के लिए अनुकूल है। गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे प्रमुख तिलहन उत्पादक क्षेत्रों में बुआई जल्द शुरू होने एवं बारिश अनुकूल होने से मूंगफली और सोयाबीन जैसी फसलों की बुवाई में बढ़ोतरी हुई है। कपास की बुआई भी अच्छी चल रही है। हालांकि, अच्छे मानसून के बावजूद, 11 जुलाई 2025 तक खरीफ तिलहनों की बुआई 137.27 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 139.82 लाख हेक्टेयर से थोड़ा कम है।

फसलवार आंकड़ों से पता चलता है कि मूंगफली की बुआई में अच्छी बढ़ोतरी हुई है। इसकी बुआई पिछले साल की समान अवधि 28.04 लाख हेक्टेयर की तुलना में बढ़कर 32.99 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है। हालांकि सोयाबीन का रकबा 107.78 लाख हेक्टेयर की तुलना में घटकर 99.03 लाख हेक्टेयर रह गया। इसका प्रमुख कारण कीमतों में उतार-चढ़ाव और अन्य लाभकारी फसलों से प्रतिस्पर्धा के कारण हुआ है। कपास की बुवाई 92.83 लाख हेक्टेयर में हुई है, जो पिछले वर्ष के 95.22 लाख हेक्टेयर से थोड़ा कम है। कुल मिलाकर, अच्छे मानसून ने खरीफ उत्पादन के लिए एक मजबूत नींव रखी है। हालांकि उत्पादन का सही अनुमान आगे मानसून कैसा रहता है, ही बुआई के कुल आंकड़ों पर निर्भर करेगा।

सरसों के तेल, विशेष रूप से पारंपरिक 'कच्ची घानी' किस्म की अच्छी घरेलू मांग के कारण, देशभर के उत्पाद राज्यों में इसकी पेराई में तेजी आई हैं, जिससे सरसों डीओसी का उत्पादन बढ़ा है। अत: सरसों डीओसी के निर्यात में बढ़ोतरी हुई है। तेल वर्ष 2025-26 (अप्रैल से जून) की पहली तिमाही के दौरान, चीन ने लगभग 180,000 टन भारतीय सरसों डीओसी का आयात किया, जो पिछले साल की समान अवधि के दौरान केवल 7,000 टन की तुलना में बड़ी वृद्धि है। इस तेज वृद्धि का श्रेय काफी हद तक वैश्विक बाजारों में भारत के प्रतिस्पर्धी मूल्य को भी जाता है। मई 2025 में, भारतीय सरसों डीओसी की कीमत 201 डॉलर प्रति टन थी, जो हैम्बर्ग एक्स-मिल कीमत 313 डॉलर प्रति टन से काफी कम थी। 14 जुलाई 2025 तक भी, भारतीय सरसों डीओसी की कीमत में बढ़त बनी हुई है, जो हैम्बर्ग के 246 डॉलर प्रति टन के मुकाबले 198 डॉलर प्रति टन है। इस मूल्य अंतर के साथ-साथ खपत वाले देशों के नजदीक होने के कारण लॉजिस्टिक लाभ ने वैश्विक डीओसी व्यापार में, विशेष रूप से चीन के लिए, जो अपने प्रोटीन फीड आयात में तेजी ला रहा है, एक विश्वसनीय और लागत प्रभावी आपूर्तिकर्ता के रूप में भारत की स्थिति को मजबूत किया है।

भारतीय बंदरगाह पर जून में सोया डीओसी का भाव तेज होकर 389 डॉलर प्रति टन हो गया, जबकि मई में इसका दाम 382 डॉलर प्रति टन था। इस दौरान सरसों डीओसी का मूल्य जून में भारतीय बंदरगाह पर घटकर 198 डॉलर प्रति टन का रह गया, जबकि मई में इसका भाव 201 डॉलर प्रति टन था। इस दौरान कैस्टर डीओसी का दाम मई के 77 डॉलर प्रति टन से तेज होकर जून में 79 डॉलर प्रति टन का हो गया।

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