नई दिल्ली। कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) ने बुधवार देशभर में कॉटन की बिक्री कीमतों में 200 रुपये प्रति कैंडी, एक कैंडी 356 किलो की बढ़ोतरी की। अत: घरेलू बाजार में भी कॉटन की कीमतों में तेजी दर्ज की गई।
सीसीआई ने बुधवार को ई-नीलामी के के माध्यम से देशभर के राज्यों में लगभग 8,32,200 गांठ, एक गांठ 170 किलो कॉटन की बिक्री। निगम चालू सीजन में खरीदी हुई करीब 65 फीसदी से ज्यादा कॉटन की बिक्री घरेलू बाजार में कर चुकी है। प्राइवेट बाजार में कॉटन का बकाया स्टॉक सीमित मात्रा में ही बचा हुआ है इसलिए नई फसल तक मिलो को सीसीआई से ही ज्यादा कॉटन की खरीद करनी होगी। ऐसे में घरेलू बाजार में कॉटन की कीमतों में तेजी, मंदी काफी हद तक सीसीआई के बिक्री दाम पर निर्भर करेगी।
स्पिनिंग मिलों की मांग बनी रहने के कारण बुधवार को शाम के सत्र में गुजरात के साथ ही उत्तर भारत के राज्यों में कॉटन की कीमतों में तेजी जारी रही।
गुजरात के अहमदाबाद में 29 शंकर-6 किस्म की कॉटन के भाव बुधवार को 350 रुपये तेज होकर दाम 57,600 से 58,000 रुपये प्रति कैंडी, एक कैंडी-356 किलो हो गए। पंजाब में रुई हाजिर डिलीवरी के भाव बढ़कर 5,960 से 5,970 रुपये प्रति मन बोले गए। हरियाणा में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के भाव तेज होकर 5,660 से 5,770 रुपये प्रति मन बोले गए। ऊपरी राजस्थान में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के दाम 5,800 से 6,000 रुपये प्रति मन बोले गए।
लोअर राजस्थान में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के दाम बढ़कर 57,200 से 57,300 रुपये कैंडी बोले गए।
देशभर की मंडियों में कपास की आवक 8,300 गांठ, एक गांठ-170 किलो की हुई।
घरेलू वायदा कारोबार में कॉटन की कीमतों में तेजी का रुख रहा। एमसीएक्स पर जुलाई 25 महीने के वायदा अनुबंध में कपास के दाम 460 रुपये तेज होकर 55,900 रुपये प्रति कैंडी हो गए। आईसीई के इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग में कॉटन की कीमतों में नरमी दर्ज की गई।
स्पिनिंग मिलों की मांग बनी रहने के कारण गुजरात में कॉटन की कीमतों में तेजी आई। व्यापारियों के अनुसार प्राइवेट बाजार में जिनर्स के पास कॉटन का बकाया स्टॉक कम है। इसलिए मिलों को कॉटन की ज्यादा खरीद सीसीआई से करनी पड़ रही है। ऐसे में हाजिर बाजार में कॉटन की कीमतों में तेजी, मंदी काफी हद तक सीसीआई के बिक्री भाव पर ही निर्भर करेगी।
कृषि मंत्रालय के अनुसार 11 जुलाई तक चालू खरीफ सीजन देशभर में कपास की बुआई 2.51 फीसदी कम होकर 92.83 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है, जबकि पिछले साल इस समय तक 95.22 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी थी।

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