नई दिल्ली। देश में गन्ने के बुआई क्षेत्रफल में पिछले दस साल में करीब 18 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। केंद्रीय खाद्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि इस दौरान गन्ने का उत्पादन जहां 40 फीसदी बढ़ा है, वहीं उत्पादकता में भी 19 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
भारतीय चीनी प्रौद्योगिकी संघ (एसटीएआई) के 83वें शताब्दी वार्षिक सम्मेलन के अनुसार केंद्रीय खाद्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने देश के चीनी उद्योग में आए महत्वपूर्ण परिवर्तन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सरकार ने भारत के किसानों को अन्नदाता को ऊर्जादाता बना दिया।
उन्होंने कहा कि पिछले दस वर्षों में देश में चीनी का उत्पादन 58 फीसदी बढ़ा है। सरकार ने गन्ने के उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) 2013-14 के 210 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 2025-26 के चीनी सत्र के लिए 355 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया। पेराई सीजन 2023-24 का गन्ना किसानों को लगभग 99.9 फीसदी बकाया राशि का भुगतान किया जा चुका है। इसी तरह से पेराई सीजन 2024-25 का भी किसानों को 90 फीसदी से अधिक बकाया राशि का भुगतान किया जा चुका है। चीनी की खुदरा कीमत लगभग स्थिर बनी हुई है जिस कारण हमारी सरकार किसानों और उपभोक्ताओं दोनों के हितों का ध्यान रख रही है।
जोशी ने कहा कि एक स्थायी चीनी उद्योग के लिए हमारी सरकार ने कई पहल की हैं, जिनमें राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति 2018 भी शामिल है, जिसे 2022 में संशोधित किया गया है, ताकि इथेनॉल उत्पादन के लिए विभिन्न फीडस्टॉक जैसे गेहूं के अवशेष, कृषि अपशिष्ट और औद्योगिक अपशिष्ट को अनुमति दी जा सके। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार ने इथेनॉल उत्पादन के लिए गन्ने के रस, गन्ने के सिरप, बी-हैवी और सी-हैवी गुड़ के उपयोग की भी अनुमति दी है।
खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग ने इथेनॉल उत्पादन की क्षमता बढ़ाने के लिए चीनी मिलों के लिए एक ब्याज अनुदान योजना शुरू की हुई है। इसके अतिरिक्त, मौजूदा गन्ना आधारित इथेनॉल संयंत्रों को बहु फीडस्टॉक आधारित संयंत्रों में परिवर्तित करने हेतु सहकारी चीनी मिलों (सीएमएस) के लिए एक वित्तीय सहायता योजना बनाई गई है ताकि इथेनॉल उत्पादन क्षमता को और बढ़ाया जा सके। इन पहलों ने अतिरिक्त चीनी भंडार को कम करने और जैव ईंधन अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में मदद की है। इन सभी विकासों ने देश के चीनी क्षेत्र को एक सुस्त कमोडिटी बाजार से एक जीवंत ऊर्जा क्षेत्र में बदल दिया है।
उन्होंने कहा कि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चीनी उत्पादक देश है, जो कि वैश्विक उत्पादन का लगभग 20 फीसदी है, और दुनिया का सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है, जहाँ वैश्विक चीनी खपत का लगभग 15 फीसदी हिस्सा है। वैज्ञानिकों और अनुसंधान संस्थानों के निरंतर प्रयासों से यह क्षेत्र प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 5.5 करोड़ से ज्यादा किसानों और 5 लाख से अधिक श्रमिकों को रोजगार प्रदान करता है। पिछले एक दशक में, गन्ने की नई किस्में विकसित की गई है, जिसके परिणामस्वरूप उत्पादकता में बढ़ोतरी हुई है और गन्ने का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है।
भारत के इथेनॉल क्षेत्र में भी परिवर्तन हुआ है, जिसमें मिश्रण दर 2013 के दौरान लगभग 1.5 फीसदी से बढ़कर 2025 तक लगभग 20 फीसदी हो गई है, जिसे महत्वपूर्ण क्षमता विस्तार, फीडस्टॉक विविधीकरण और इथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम के तहत प्रगतिशील नीतिगत उपायों का समर्थन प्राप्त है।
उन्होंने उद्योग से सतत विकास सुनिश्चित करने के लिए शून्य द्रव उत्सर्जन, जल दक्षता और हरित ऊर्जा को प्राथमिकता देने का आग्रह किया। अनुसंधान एवं विकास तथा डिजिटल तकनीकों के साथ, गन्ना मिलें बहु-उत्पादक, ऊर्जा-कुशल जैव-शोधन संयंत्रों के रूप में विकसित होंगी। हम सब मिलकर 2047 तक विकसित भारत के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक लचीला, विविध और विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी भारतीय चीनी क्षेत्र का निर्माण करेंगे।

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