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29 जुलाई 2025

देश का सब्जी बीज बाजार वर्ष 2030 तक 970 मिलियन डॉलर पर पहुंचने का अनुमान

नई दिल्ली। नवाचार, अनुसंधान एवं विकास पर ध्यान केंद्रित करने के साथ ही नीतिगत सुधारों के बल पर देश को 2030 तक 970 मिलियन डॉलर के सब्जी बीज केंद्र में बदला जा सकता है।


वर्ष 2024 में 8.45 बिलियन डॉलर के मूल्य वाला वैश्विक सब्जी बीज बाजार तेजी से विस्तार कर रहा है और विशेषज्ञों का मानना है कि भारत इसका अगला प्रमुख केंद्र बनने की अच्छी स्थिति में है, बशर्ते सही नीतियां बनाई जाएं और प्रभावी ढंग से उन्हें लागू किया जाएं।

सरकार द्वारा सब्जियों और फलों के लिए अपने व्यापक कार्यक्रम के माध्यम से बागवानी क्षेत्र पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। एक राष्ट्रीय सम्मेलन में विशेषज्ञों ने इस बात पर जोर देकर कहा कि बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) को मजबूत करने और जैव प्रौद्योगिकी के उपयोग के साथ-साथ नीतिगत समर्थन प्रदान करने से भारतीय सब्जी बीज बाजार 2023-24 के 740 मिलियन डॉलर से बढ़कर 2030 तक 970 मिलियन डॉलर का हो सकता है, जो कि 4.6 फीसदी की वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ रहा है।

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के कृषि आयुक्त डॉ. पी के सिंह ने कहा कि बागवानी, विशेष रूप से सब्जी उत्पादन में भारत की वृद्धि, समृद्ध जर्मप्लाज्म, विविध उत्पादन परिस्थितियों, अनुसंधान एवं विकास नवाचारों और निजी एवं सार्वजनिक संस्थानों द्वारा किए गए रणनीतिक निवेश से जुड़ी है। उन्होंने आगे कहा कि बीज क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास, संकर बीजों को अपनाने और विज्ञान-आधारित बीज उद्योग की ओर रुझानों के कारण बागवानी हाशिये से मुख्यधारा में आ गई है। फिर भी हमारी वैश्विक क्षमता का अभी भी काफी हद तक दोहन नहीं हुआ है।

भारतीय बीज उद्योग महासंघ (एफएसआईआई) द्वारा शुक्रवार को राजधानी में आयोजित 'भारत को वैश्विक बीज केंद्र बनाने में सब्जी बीज क्षेत्र की भूमिका' नामक राष्ट्रीय सम्मेलन में वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों, कृषि वैज्ञानिकों, बीज उद्योग के नेताओं और नीति निर्माताओं ने नियामक बाधाओं और देश की निर्यात क्षमता को उजागर करने के तरीकों पर विचार-विमर्श किया।

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के संयुक्त सचिव (बीज) अजीत कुमार साहू ने कहा कि भारत का बीज क्षेत्र एक निर्णायक मोड़ पर है। समृद्ध कृषि-जलवायु विविधता, प्रतिस्पर्धी उत्पादन प्रणालियों, एक गतिशील निजी क्षेत्र और मजबूत सार्वजनिक अनुसंधान संस्थानों के साथ, हमारे पास वैश्विक बीज उत्पादन केंद्र बनने के लिए सभी आवश्यक तत्व मौजूद हैं।

उन्होंने कहा कि मंत्रालय लाइसेंसिंग को सुव्यवस्थित कर रहा है, साथ ही विज्ञान-आधारित नियामक सुधार लागू कर रहा है, एसएटीएचआई प्लेटफॉर्म के माध्यम से डिजिटल ट्रेसेबिलिटी को सक्षम बना रहा है, और प्रसंस्करण संयंत्रों, भंडारण और परीक्षण प्रयोगशालाओं सहित आधुनिक बीज अवसंरचना में निवेश कर रहा है। ये कदम यह सुनिश्चित करेंगे कि किसानों को पूर्ण क्यूआर-कोड-आधारित ट्रेसेबिलिटी वाले प्रमाणित, उच्च-गुणवत्ता वाले बीज समय पर प्राप्त हों, जिससे फसल के नुकसान को कम करने, उत्पादकता में सुधार करने और उन्हें नकली इनपुट से बचाने में मदद मिलेगी।

जहा सरकारी अधिकारियों ने भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को उत्प्रेरित करने के लिए बनाए जा रहे सक्षम नीतिगत पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रकाश डाला, वहीं कृषि वैज्ञानिकों ने उत्पादकता बढ़ाने, जैव प्रौद्योगिकी और सार्वजनिक-निजी सहयोग की परिवर्तनकारी भूमिका पर ज़ोर दिया।

भारत वर्तमान में सालाना लगभग 12 करोड़ डॉलर मूल्य के सब्जियों के बीजों का निर्यात करता है। भारत से मुख्यतः दक्षिण पूर्व एशिया और मध्य पूर्व को इनका निर्यात होता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर लंबे समय से चली आ रही नीतिगत बाधाओं को दूर कर दिया जाए, तो यह आसानी से दोगुना या तिगुना हो सकता है, जिनमें से प्रमुख है 2016 से लंबित 100 से ज़्यादा कीट जोखिम विश्लेषण (पीआरए) का लंबित होना, जिससे अनुमानित 5.5 करोड़ डॉलर का व्यापार ठप पड़ हुआ है।

एफएसआईआई के उपाध्यक्ष, कृषि मामले एवं नीति निदेशक - आईबीएसएल और बायर क्रॉपसाइंस लिमिटेड में ट्रेट्स लाइसेंसिंग के प्रमुख श्री राजवीर राठी ने कहा कि हम एकीकृत विनियामक दृष्टिकोण और घरेलू बीज पंजीकरण के लिए "एक राष्ट्र, एक लाइसेंस" मॉडल तथा एकल-खिड़की निर्यात मंजूरी प्रणाली की शुरुआत का आह्वान करते हैं। डिजिटल अनुमोदन और लंबी अवधि की लाइसेंस वैधता के साथ, ये भारत में बीजों के व्यापार को आसान बनाने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

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