नई दिल्ली। मानसून सीजन के पहले तीन महीनों पहली जून से 31 अगस्त के दौरान देशभर में सामान्य की तुलना में 10 फीसदी बारिश हुई है, जबकि इस दौरान देशभर के 36 सबडिवीजनों में से 8 में बारिश सामान्य से कम हुई है।
भारतीय मौसम विभाग, आईएमडी के अनुसार पहली जून से 31 अगस्त तक देशभर में 629.7 मिलीमीटर बारिश हुई है, जबकि इस दौरान सामान्यतः: 700.7 मिलीमीटर बारिश होती है।
पहली जून से 31 अगस्त तक देशभर के 36 सबडिवीजनों में से 8 में बारिश सामान्य की तुलना में कमी हुई है, जबकि इस दौरान 24 सबडिवीजनों में बारिश सामान्य हुई है। दो सब डिवीजनों में बारिश सामान्य से ज्यादा और दो में बहुत ज्यादा हुई है।
आईएमडी के अनुसार मानसूनी सीजन के पहली तीन महीनों में पूर्वोत्तर भारत में बारिश सामान्य से 17 फीसदी कम हुई है। इस दौरान झारखंड और बिहार में बारिश सामान्य की तुलना में क्रमश: 37 और 27 फीसदी कम हुई है। पश्चिमी बंगाल में इस दौरान 28 फीसदी बारिश सामान्य से कम हुई है।
उत्तर पश्चिम भारत के राज्यों में पहली जून से 31 अगस्त तक बारिश सामान्य की तुलना में 3 फीसदी अधिक हुई है, लेकिन इस दौरान पूर्वी उत्तर प्रदेश में बारिश सामान्य से 28 फीसदी कम हुई है। अन्य राज्यों में पूर्वी राजस्थान में इस दौरान सामान्य से 7 फीसदी और पंजाब में 3 फीसदी कम बारिश हुई है।
मध्य भारत के राज्यों में चालू मानसूनी सीजन के पहले तीन महीनों में बारिश सामान्य से 10 फीसदी कम हुई है। इस दौरान मध्य महाराष्ट्र में पहली जून से 31 अगस्त के दौरान सामान्य से 23 फीसदी, मराठवाड़ा में 21 फीसदी और विदर्भ में 13 फीसदी बारिश कम हुई है। झारखंड में इस दौरान सामान्य से 20 फीसदी कम बारिश दर्ज की गई। पूर्वी मध्य प्रदेश में इस दौरान सामान्य से 18 फीसदी और पूर्वी मध्य प्रदेश में 12 फीसदी बारिश कम हुई है। उड़ीसा में इस दौरान सामान्य की तुलना में 14 फीसदी और गुजरात रीजन में 15 फीसदी बारिश सामान्य से कम हुई है।
दक्षिण भारत के राज्यों में पहली जून से 31 अगस्त तक बारिश सामान्य की तुलना में 17 फीसदी कम हुई है। इस दौरान साउथ ईस्ट कर्नाटक में बारिश सामान्य से 30 फीसदी और नॉर्थ ईस्ट कर्नाटक में 11 फीसदी कम हुई है। इस दौरान केरल में सामान्य से 48 फीसदी और लक्षद्वीप में 29 फीसदी कम बारिश हुई है।
जानकारों के अनुसार देशभर के अधिकांश राज्यों में अगस्त में बारिश सामान्य से काफी कम हुई है, जिसका असर रबी फसलों पर पड़ने की आशंका है। इससे दलहन, तिलहन के साथ ही मोटे अनाजों की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता में कमी आयेगी।
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