24 फ़रवरी 2014
कृषि जिंसों की कीमतों में कमी का निर्यात पर असर
हाल में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कृषि जिंसों की कीमतों में गिरावट से भारतीय कारोबारी हताश हैं। दिसंबर से ज्यादातर कृषि जिंसों के दाम लगातार गिरे हैं। चीनी को सरकार का नीतिगत समर्थन नहीं मिल रहा है, वहीं अमेरिका से भारी आपूर्ति का देश के मक्का निर्यात पर असर पड़ा है। केयर रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, 'हाल में कीमतों में गिरावट का रुझान खाद्य तेल जैसी आयात होने वाली जिंसों के लिए अच्छा रहेगा, जिनमें हमारी आयात निर्भरता 50-55 फीसदी है। इससे आयात की लागत कम करने में मदद मिलेगी। हालांकि ग्वार, मक्का या चीनी जैसी जिंसों के मामले में कम कीमतों का मतलब है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कम दाम मिलेंगे। इससे किसान अन्य फसलों की ओर रुख कर सकते हैं जो अच्छा नहीं होगा। लिहाजा, कम कीमतों की वजह से किसानों को अन्य फसलों की ओर रुख नहीं करना चाहिए।'
शुरुआत में कीमतों में अच्छी तेजी के बाद चावल (बासमती व गैर-बासमती दोनों) की कीमतें पिछले दो महीने में 3-4 फीसदी गिर चुकी हैं। अखिल भारतीय चावल निर्यातक संघ के अध्यक्ष एम पी जिंदल ने इसकी वजह अमेरिका और ईरान के बीच विवाद सुलझना बताया है। ईरान भारत के लिए बासमती चावल निर्यात का मुख्य बाजार है। उन्होंने कहा, 'इस समझौते के बाद विश्व के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक अमेरिका ईरान को बासमती की आपूर्ति शुरू कर सकता है। लेकिन हमें उम्मीद है कि मार्च में चावल की कीमत और निर्यात दोनों सुधरेंगे।'
चालू वित्त वर्ष के पहले 9 महीनों के दौरान बासमती का निर्यात 0.75 फीसदी बढ़कर 27 लाख टन और गैर बासमती चावल का निर्यात 0.25 फीसदी बढ़कर 52 लाख टन रहा है। अमृतसर की पूजा ट्रेडिंग कॉरपोरेशन के निदेशक विमल सेठी ने कहा, 'हाल में गेहूं की कीमतें 0.6 फीसदी की मामूली गिरावट के साथ 1,650 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गई हैं, जिससे वैश्विक कीमतों से प्रतिस्पर्धा करने का मौका मिला है। लेकिन सरकारी नीतियों में आए दिन बदलाव और गेहूं की घटिया गुणवत्ता से भारत की निर्यात संभावनाएं कमजोर हुई हैं। कभी सरकार गेहूं के निर्यात की इजाजत देती है मगर कुछ महीनों के बाद इस पर प्रतिबंध लगा देती है। पाकिस्तान, अमेरिका और ब्राजील जैसे प्रतिस्पर्धी देशों में नीतिगत बदलाव इतनी जल्दी नहीं होते हैं। वैश्विक खरीदार लंबी अवधि के करारों को ज्यादा तरजीह देते हैं, इसलिए भारत को पर्याप्त ऑर्डर नहीं मिलते हैं। (BS Hindi)
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