14 फ़रवरी 2014
वैश्विक बाजार में पिघल रहीं धातुएं
देसी बाजार में छाई सुस्ती के कारण धातुओं की खपत कम होने और निर्यात बाजार में प्रभावी मौजूदगी के अभाव में भारत को आम धातुओं की कीमत में गिरावट का कोई फायदा नहीं होगा। समझौते की अनिवार्यता के तहत तांबे के कैथोड का निर्यात किया जाता है, जबकि इसके बदले कॉन्संट्रेट का आयात होता है। इस्पात विनिर्माता भी निर्यात करते हैं, लेकिन उसके बदले विशेषीकृत इस्पात का आयात होता है। कच्चे माल के लिहाज से बात करें तो लौह अयस्क के प्रमुख उत्पादक राज्यों में खनन गतिविधियों पर लगी सरकारी पाबंदी के बाद लौह अयस्क का निर्यात बढऩे की संभावना पर भी पानी फिर गया है। लेकिन आमतौर पर लौह अयस्क के निर्यात से जो फायदा होता है वह कोकिंग कोल के बढ़ते आयात के कारण समाप्त हो जाता है। दूसरी ओर देसी बाजार में धातुओं की मांग सुस्त चल रही है और बुनियादी ढांचा विकास में प्रस्तावित निवेश की परियोजनाओं पर भी काम आगे नहीं चल रहा है। एस्सार स्टील इंडिया के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी दिलीप उम्मेन कहते हैं, 'वैश्विक कीमतों का भारतीय इस्पात उद्योग पर सीधा असर पड़ता है, लेकिन देसी बाजार में भी मांग बढ़ रही है, हालांकि महज 3.5 फीसदी दर पर। अपने इस्पात उत्पाद बेचने के लिए भारत पूरी तरह विदेशी बाजारों पर निर्भर नहीं है। फिलहाल देश में उपलब्ध अधिशेष उत्पादों का ही निर्यात किया जाता है। अगर भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) दर 6 से 8 फीसदी के सामान्य स्तर पर पहुंच जाती है तो भारत के पास निर्यात करने के लिए अधिशेष नहीं होगा।'
भारत करीब 40 लाख टन विशेषीकृत स्टील का आयात करता है, जो लौह अयस्क के निर्यात से होने वाले फायदे को निर्थक साबित कर देता है। ब्लूमबर्ग द्वारा संकलित किए गए आंकड़ों के अनुसार 63.5 फीसदी लौह की मात्रा वाले लौह अयस्क की कीमत पिछले साल 155.3 डॉलर प्रति टन से 20.48 फीसदी घटकर 123.5 डॉलर प्रति टन रह गई है। इसी तरह ग्राहक कंपनियों की ओर से घटती मांग के कारण एचआरसी इस्पात के भाव भी पिछले एक साल के दौरान 549 डॉलर प्रति टन से 13.66 फीसदी घटकर अब 474 डॉलर प्रति टन हो गए हैं।
इस्पात के बढ़ते भंडार को कम करने के लिए इस्पात मिलें अपनी क्षमता से कम पर परिचालन कर रही हैं और इस वजह से कोकिंग कोल की खपत भी घटी है। नतीजतन कोकिंग कोल का भाव एक साल के दौरान 202 डॉलर प्रति टन से 28.71 फीसदी घटकर 144 डॉलर प्रति टन रह गया है। उम्मेन ने बताया, 'अमेरिका और यूरोप जैसे विकसित बाजारों की अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटने के संकेत मिलने लगे हैं और इसलिए इस्पात की बढ़ती मांग के कारण इसके दाम में भी तेजी आई है। इसलिए मौजूदा वैश्विक मांग या कीमतों को देखकर भविष्य में मांग या भाव का अंदाजा लगाना सही नहीं होगा।'
पिछले साल वैश्विक स्तर पर छाई सुस्ती के कारण आम धातुओं में सबसे ज्यादा 22 फीसदी गिरावट निकल के भाव में दर्ज की गई है। आमतौर पर अर्थव्यवस्था की विकास दर के अनुसार ही बढऩे वाले आम धातुओं का प्रदर्शन पिछले एक साल के दौरान बहुत अच्छा नहीं रहा है। इसकी वजह मांग में सुस्ती और लंदन मेटल एक्सचेंज के समक्ष पंजीकृत गोदामों में बढ़ता भंडार है। इस दौरान तांबे, एल्युमीनियम और जस्ते की मांग में गिरावट दर्ज की गई। प्राइसवाटरहाउस कूपर्स के सलाहकार (खनन) पुखराज सेठिया कहते हैं, 'निर्यात के लिए अधिशेष मात्रा के अभाव में धातुओं की घटती कीमत से भारत को फायदा नहीं पहुंचेगा।' (BS Hindi)
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