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28 जून 2025

खाद्य तेलों के आयात शुल्क में कटौती से किसानों को नुकसान की आशंका - सोपा

नई दिल्ली। सोपा ने केंद्र सरकार द्वारा 30 मई 2025 को क्रूड खाद्वय तेलों के आयात पर सीमा शुल्क में 11 फीसदी की कटौती करने के निर्णय पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है। उद्योग का मानना है कि इस फैसले से तिलहन प्रसंस्करणकर्ताओं के साथ ही तिलहन किसानों को नुकसान होगा।


सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) के अनुसार आयात शुल्क में कमी से घरेलू तेल प्रसंस्करण उद्योग और किसानों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

सोपा के अनुसार सामान्य परिस्थितियों में, सरकार बढ़ती मुद्रास्फीति से उपभोक्ताओं को राहत देने करने के लिए आयात शुल्क में कटौती करती है। विडंबना यह है कि यह शुल्क कटौती ऐसे समय में की गई है जब देश की मौजूदा मुद्रास्फीति दर अप्रैल 2025 में 3.16 फीसदी थी, जो कि जुलाई 2019 के बाद सबसे कम है। हालांकि हम इस निर्णय के बारे में सरकार की मंशा की सराहना करते हैं, जो कि वैश्विक व्यापार गतिशीलता में बदलाव, विशेष रूप से भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच चल रहे व्यापार सौदे के संबंध में हो सकता है। हालांकि इस नीतिगत बदलाव ने घरेलू तिलहन उत्पादन, प्रसंस्करण इकाइयों और लाखों किसानों की आजीविका पर इसके दीर्घकालिक प्रभाव के बारे में गंभीर चिंता पैदा कर दी हैं।

सोपा के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा एमएसपी में वृद्धि की घोषणा के एक दिन बाद शुल्क में कटौती का निर्णय विरोधाभासी प्रतीत होता है और यह निर्णय तिलहन उत्पादन, तिलहन की खेती करने वाले किसान और प्रसंस्करण उद्योग को नुकसान पहुंचेगा। क्रूड खाद्य तेलों पर सीमा शुल्क में 11 फीसदी की कटौती से भारतीय बाजार में सस्ते आयातित तेलों की बाढ़ आ जाएगी, जिससे घरेलू खाद्य तेल की कीमतों में गिरावट आएगी।

खाद्य तेलों की कीमतों में गिरावट का सीधा मतलब स्थानीय किसानों को कम दाम मिलेगा, जिससे धान और मक्का जैसी वैकल्पिक फसलों की तुलना में तिलहन की खेती कम आकर्षक हो जाएगी, जो प्रति हेक्टेयर अधिक सकल लाभ प्रदान करती हैं।

विशेषज्ञों और किसान का मानना है कि इस निर्णय से चालू खरीफ सीजन में तिलहन की खेती के रकबे में कमी आएगी, क्योंकि किसान अधिक फायदे वाली फसलों की ओर रुख कर सकते हैं।

घरेलू तिलहन प्रोसेसर, विशेष रूप से छोटे और मध्यम आकार की पेराई इकाइयाँ, जोकि पहले से ही खली की कमजोर मांग और अधिक लागत के कारण नकारात्मक मार्जिन का सामना कर रही हैं। शुल्क में कमी से प्रोसेसर के मार्जिन में और कमी आएगी, क्योंकि उन्हें कम कीमत वाले आयातित तेलों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी होगी, जिससे संभावित रूप से अधिक इकाइयों को ब्रेक-ईवन क्षमता से कम पर काम करने या पूरी तरह से बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है।

रिफाइनिंग के लिए क्रूड तेल के आयात में वृद्धि के कारण बड़ी, बंदरगाह-आधारित रिफाइनरियों को अल्पावधि में लाभ होगा, लेकिन छोटे और क्षेत्रीय प्रसंस्करणकर्ताओं को इससे नुकसान होगा।

सोपा के अनुसार यह बदलाव भारत के खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए
भी झटका माना जा रहा है, क्योंकि इससे घरेलू तिलहन उत्पादन हतोत्साहित होगा, जो प्रसंस्करण बुनियादी ढांचे और आत्मनिर्भरता में निवेश के लिए प्रतिकूल है। किसान संगठन और सोपा जैसे उद्योग निकाय चिंतित हैं कि इस कदम से लाखों लोगों की आजीविका खतरे में पड़ जाएगी और खाद्य तेलों के आयात पर देश की निर्भरता बढ़ जाएगी।

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