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28 जून 2025

चालू सप्ताह में सीसीआई ने दूसरी बार कॉटन की बिक्री कीमतों में बढ़ोतरी की

नई दिल्ली। कॉटन कारपोरेशन ऑफ इंडिया, सीसीआई से घरेलू स्पिनिंग मिलों की खरीद बढ़ने से निगम शुक्रवार को इसकी बिक्री कीमतों में 100 रुपये प्रति कैंडी, एक कैंडी 356 किलो की बढ़ोतरी की। मालूम हो कि सीसीआई ने 25 जून को भी कॉटन की बिक्री कीमतों में 100 रुपये प्रति कैंडी की बढ़ोतरी की थी।


घरेलू बाजार में जिनिंग मिलों के पास कॉटन का बकाया स्टॉक नहीं के बराबर बचा हुआ है, जिस कारण स्पिनिंग मिलों के साथ ही व्यापारियों ने सीसीआई से खरीद बढ़ा दी है। निगम ने 26 जून को फसल सीजन 2024-25 की खरीदी हुई 2,60,600 गांठ कॉटन की बिक्री की है। इससे पहले 24 जून को भी निगम ने घरेलू बाजार में 1,26,200 गांठ कॉटन की बिक्री की थी।  

व्यापारियों के अनुसार प्राइवेट बाजार की तुलना में सीसीआई द्वारा बेची जा रही कपास की गुणवत्ता अच्छी है। साथ ही जिनिंग मिल के पास कॉटन का बकाया नहीं के बराबर है। ऐसे में नई फसल तक स्पिनिंग मिलों को कॉटन की ज्यादातर खरीद सीसीआई से ही करनी होगी। अत: आगामी दिनों में इसकी कीमतों में तेजी, मंदी काफी हद तक सीसीआई के बिक्री दाम पर भी निर्भर करेगी।

स्पिनिंग मिलों की मांग बनी रहने के कारण शुक्रवार को शाम के सत्र में गुजरात में कॉटन की कीमत तेज हुई। गुजरात के अहमदाबाद में 29 शंकर-6 किस्म की कॉटन के भाव शुक्रवार को चौथे दिन 50 रुपये तेज होकर दाम 54,200 से 54,400 रुपये प्रति कैंडी, एक कैंडी-356 किलो हो गए।

देशभर की मंडियों में कपास की आवक 8,500 गांठ, एक गांठ-170 किलो की हुई।

आईसीई के इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग में कॉटन की कीमतों में शाम के सत्र में तेजी का रुख रहा।

स्पिनिंग मिलों की मांग बनी रहने के कारण गुजरात में कॉटन की कीमत 50 रुपये प्रति कैंडी तेज हुई। व्यापारियों के अनुसार चालू सप्ताह में सीसीआई ने कॉटन के बिक्री कीमतों में लगातार दूसरी बार बढ़ोतरी की है। उधर जिनर्स के पास कॉटन का बकाया स्टॉक कम है। अत: मिलों को कॉटन की ज्यादा खरीद सीसीआई से करनी पड़ रही है। घरेलू बाजार सीसीआई के पास कॉटन का स्टॉक ज्यादा है।

राजस्थान में खरीफ फसलों की बुआई 32.84 लाख हेक्टेयर के पार

नई दिल्ली। चालू खरीफ सीजन में राजस्थान में खरीफ फसलों की बुआई 32.84 लाख हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्रफल में हो चुकी है जोकि तय लक्ष्य का 20 फीसदी है। राज्य के कृषि निदेशालय ने चालू खरीफ सीजन में 165.39 लाख हेक्टेयर में फसलों की बुआई का लक्ष्य तय किया है।


राज्य के कृषि निदेशालय के अनुसार चालू खरीफ सीजन में 23 जून 25 तक मोटे अनाजों की बुआई 13.52 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है। मोटे अनाजों में बाजरा की 10.57 लाख हेक्टेयर में तथा मक्का की 1.90 लाख हेक्टेयर में हुई है। इसके अलावा धान की रोपाई 25 हजार और ज्वार की बुआई 78 हजार हेक्टेयर में हो चुकी है।

दलहनी फसलों की बुआई चालू खरीफ सीजन में 4.83 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है। खरीफ दलहन में मूंग की बुआई 4.03 लाख हेक्टेयर में और मोठ की 56 हजार तथा उड़द की 8 हजार हेक्टेयर तथा छौला की 15 हजार हेक्टेयर में हो चुकी है ।

चालू खरीफ सीजन में तिलहनी फसलों की बुआई राज्य में 6.59 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है। तिलहनी फसलों में मूंगफली की बुआई 4.42 लाख हेक्टेयर में, सोयाबीन की 1.79 लाख हेक्टेयर में तथा शीशम की 17,000 हेक्टेयर में हुई है।

चालू खरीफ में कपास की बुआई राज्य में 5.50 लाख हेक्टेयर में तथा ग्वार सीड की बुआई 1.32 लाख हेक्टेयर में और गन्ने की बुआई 3 हजार हेक्टेयर में हो चुकी है।

केंद्र सरकार ने जुलाई के लिए 22 लाख टन चीनी का कोटा जारी किया

नई दिल्ली। केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मामले मंत्रालय ने जुलाई 2025 के लिए 22 लाख टन चीनी का का मासिक कोटा जारी किया है जो कि जुलाई 2024 के लिए जारी किए गए कोटा से कम है। जुलाई 2024 में केंद्र सरकार ने घरेलू बिक्री के लिए 24 लाख टन चीनी का मासिक कोटा जारी किया था।


मालूम हो कि सरकार ने जून 2025 के लिए 23 लाख टन चीनी का कोटा जारी किया था।

जानकारों के अनुसार 22 लाख टन की घोषणा के साथ, बाजार में स्थिरता बने रहने की संभावना है। पिछले साल जून में चीनी की खपत 21.30 लाख टन की हुई थी।

दिल्ली में गुरुवार को एम ग्रेड चीनी की थोक कीमत 4,320 रुपये और कानपुर में 4,300 रुपये तथा मुंबई में 4,120 रुपये और कोलकाता में 4,340 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। पिछले कार्यदिवस के मुकाबले इसके दाम 20 रुपये प्रति क्विंटल तक तेज हुए हैं।

सीसीआई ने कॉटन की बिक्री कीमतों में बढ़ोतरी की, जिनर्स के पास स्टॉक नहीं के बराबर

नई दिल्ली। घरेलू बाजार में जिनिंग मिलों के पास कॉटन का बकाया स्टॉक नहीं के बराबर बचा होने के कारण कॉटन कारपोरेशन ऑफ इंडिया, सीसीआई ने कॉटन की बिक्री कीमतों में बुधवार को 100 रुपये प्रति कैंडी, एक कैंडी 356 किलो की बढ़ोतरी की।


सूत्रों के अनुसार स्पिनिंग मिलों की खरीद सीसीआई से बढ़ गई है, क्योंकि जिनर्स के पास हल्की क्वालिटी के माल ही ज्यादा बचे हुए हैं। निगम ने 24 जून को घरेलू व्यापारियों को 1,26,200 गांठ, एक गांठ 170 किलो कॉटन की बिक्री की थी।

सीसीआई ने बुधवार को फसल सीजन 2023-24 के साथ ही 2024-25 के दौरान खरीदी हुई कपास की बिक्री कीमतों के फ्लोर प्राइस में 100 रुपये प्रति कैंडी की बढ़ोतरी की है। इस बढ़ोतरी के बाद फसल सीजन 2024-25 की खरीदी हुई कॉटन का सबसे ऊंचा फ्लोर प्राइस 55,800 रुपये प्रति कैंडी हो गया है।

व्यापारियों के अनुसार निगम द्वारा बेची जा रही कपास की गुणवत्ता, जिनिंग मीलों से बेहतर है। वैसे भी जिनिंग मिल के पास कॉटन का बकाया नहीं के बराबर है। ऐसे में नई फसल तक स्पिनिंग मिलों को कॉटन की ज्यादातर खरीद सीसीआई से ही करनी होगी। अत: आगामी दिनों में इसकी कीमतों में तेजी, मंदी काफी हद तक सीसीआई के बिक्री दाम पर भी निर्भर करेगी।

स्पिनिंग मिलों की मांग बनी रहने के कारण बुधवार को शाम के सत्र में गुजरात में कॉटन की कीमत तेज हुई, जबकि इस दौरान उत्तर भारत के राज्यों में इसके दाम स्थिर हो गए।

गुजरात के अहमदाबाद में 29 शंकर-6 किस्म की कॉटन के भाव बुधवार को दूसरे दिन 50 रुपये तेज होकर दाम 54,000 से 54,200 रुपये प्रति कैंडी, एक कैंडी-356 किलो हो गए।

पंजाब में रुई हाजिर डिलीवरी के भाव 5,740 से 5,750 रुपये प्रति मन बोले गए। हरियाणा में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के भाव 5,530 से 5,610 रुपये प्रति मन बोले गए। ऊपरी राजस्थान में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के दाम 5,680 से 5,800 रुपये प्रति मन बोले गए।लोअर राजस्थान में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के 54,800 से 55,000 रुपये कैंडी बोले गए।

देशभर की मंडियों में कपास की आवक 10,550 गांठ, एक गांठ-170 किलो की हुई।

आईसीई के इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग में कॉटन की कीमतों में शाम के सत्र में मिलाजुला रुख रहा।

स्पिनिंग मिलों की मांग बनी रहने के कारण गुजरात में कॉटन की कीमत 50 रुपये प्रति कैंडी तेज हुई, लेकिन इस दौरान उत्तर भारत के राज्यों में भाव स्थिर हो गए। व्यापारियों के अनुसार स्पिनिंग मिल जरुरत के हिसाब से ही कॉटन की खरीद कर रही है, क्योंकि विश्व बाजार में इसके दाम घरेलू बाजार के मुकाबले नीचे बने हुए हैं। चालू सीजन में कॉटन के आयात में भारी बढ़ोतरी का अनुमान है साथ ही घरेलू बाजार में सीसीआई के पास कॉटन का बंपर स्टॉक मौजूद है। इसलिए घरेलू बाजार में कॉटन की कीमतों में तेजी, मंदी काफी हद तक सीसीआई के बिक्री भाव पर भी निर्भर करेगी।

कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार कपास का उत्पादन 306.92 लाख गांठ (एक गांठ 170 किलोग्राम) होने का अनुमान है, जो क‍ि इसके पिछले फसल सीजन 2023-24 के 325.22 लाख गांठ के मुकाबले कम है।

मध्य प्रदेश से मूंग तथा उड़द और उत्तर प्रदेश से उड़द की खरीद को केंद्र की मंजूरी

नई दिल्ली, मध्य प्रदेश में मूंग और उड़द तथा उत्तर प्रदेश में उड़द को मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत खरीदने के प्रस्ताव को केंद्र सरकार ने स्वीकृति दे दी है। साथ ही खरीद से संबंधित व्यवस्था को लेकर केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह ने राज्य के कृषि मंत्रियों के साथ मंगलवार को संवाद भी किया और नेफेड, एनसीसीएफ व राज्य के संबंधित अधिकारियों को आवश्यक दिशा-निर्देश दिए।

मध्य प्रदेश की राज्य सरकार से प्राप्त प्रस्ताव पर मंत्रालय द्वारा विचार करने तथा केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह द्वारा राज्य सरकार तथा अन्य हितधारकों के साथ बैठक के उपरांत मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत राज्य में ग्रीष्मकालीन मूंग तथा ग्रीष्मकालीन उड़द खरीद करने की मंजूरी प्रदान की गई है।

उत्तर प्रदेश में मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत राज्य में ग्रीष्मकालीन उड़द खरीद करने की मंजूरी प्रदान की गई है।

केंद्रीय कृषि मंत्री ने बैठक में कहा कि मूंग और उड़द की खरीद के फैसले से केंद्र सरकार को बड़ा वित्तीय भार वहन करना पड़ेगा, लेकिन बावजूद इसके प्रधानमंत्री के नेतृत्व में किसान हित में सरकार किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि यह बहुत जरूरी है कि खरीद सही तरीके से हो। किसानों से सीधे खरीद से ही बिचौलियों की सक्रियता कम होगी और लाभ सही मायनों में किसान तक पहुंच पाएगा। अधिकारियों को दिशा-निर्देश देते हुए उन्होंने कहा कि आधुनिकतम व कारगर प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल के साथ किसानों के पंजीकरण की उचित व्यवस्था की जाएं। आवश्यकता हो तो खरीद केंद्रों की संख्या में भी इजाफा करें व उचित और पारदर्शी व्यवस्था के साथ खरीद सुनिश्चित करें।  

शिवराज सिंह चौहान ने भंडारण को लेकर मिल रही अनियमितताओं की शिकायत को लेकर भी चिंता व्यक्त की और अधिकारियों व कृषि मंत्रियों को इस दिशा में ठोस कदम उठाने के प्रयास करने की बात कही। उन्होंने उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री से कहा कि केंद्र सरकार किसानों के हित में हर संभव काम करेगी।

बैठक में मध्य प्रदेश के किसान कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री एदल सिंह कंषाना, उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही, केंद्रीय कृषि सचिव देवेश चतुर्वेदी व अन्य वरिष्ठ अधिकारी शामिल हुए।

चालू खरीफ में धान एवं दलहन के साथ कपास तथा मोटे अनाज की बुआई बढ़ी

नई दिल्ली। चालू खरीफ सीजन में फसलों की बुआई में तेजी आई है। धान के साथ ही दलहन एवं कपास की बुआई पिछले साल की तुलना में आगे चल रही है। चालू खरीफ में अभी तक 137.84 लाख हेक्टेयर में फसलों की बुआई हो चुकी है, जोकि पिछले खरीफ सीजन की समान अवधि के 124.88 लाख हेक्टेयर से ज्यादा है।


कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ सीजन में 20 जून 25 तक देशभर के राज्यों में धान की रोपाई बढ़कर 13.22 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसकी रोपाई केवल 8.37 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।

दलहनी फसलों की बुआई चालू खरीफ सीजन में बढ़कर 9.44 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 6.63 लाख हेक्टेयर में तुलना में बढ़ी है। इस दौरान मूंग की बुआई 4.43 लाख हेक्टेयर में और उड़द की 1.39 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले इस समय तक इनकी बुआई क्रमश: 2.67 लाख हेक्टेयर और 0.62 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी। अरहर की बुआई 2.48 लाख हेक्टेयर और अन्य दलहन की 0.94 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है।

चालू खरीफ सीजन में तिलहनी फसलों की बुआई 5.38 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय 5.49 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। तिलहनी फसलों में मूंगफली की बुआई 1.78 लाख हेक्टेयर में, सोयाबीन की 3.70 लाख हेक्टेयर में तथा सनफ्लावर की 27,000 हेक्टेयर में हुई है। पिछले साल की समान अवधि में इनकी बुआई क्रमश: 1.91 लाख हेक्टेयर में, 2.71 लाख हेक्टेयर में तथा 26,000 हेक्टेयर में ही हुई थी।

मोटे अनाजों की बुआई बढ़कर चालू खरीफ सीजन में 18.03 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई केवल 14.77 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई थी। मोटे अनाजों में मक्का की 12.32 लाख हेक्टेयर में तथा बाजरा की 3.70 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इनकी बुआई क्रमश: 10.31 और 2.71 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी। ज्वार की बुआई 1.51 लाख हेक्टेयर में हुई है।

चालू खरीफ में गन्ने की बुआई 55.07 लाख हेक्टेयर में और कपास की 31.25 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले खरीफ सीजन की समान अवधि में इनकी बुआई क्रमश: 54.88 लाख हेक्टेयर और 29.12 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।

मई में कैस्टर तेल का निर्यात 23 फीसदी घटा - उद्योग

नई दिल्ली। मई में कैस्टर तेल का निर्यात 23.17 फीसदी घटकर 68,982 टन का ही हुआ है, जबकि पिछले साल मई में इसका निर्यात 89,786 टन हुआ था।


सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, एसईए के अनुसार चालू वर्ष 2025 के पहले पांच महीनों जनवरी से मई के दौरान कैस्टर तेल का निर्यात 308,699 टन का ही हुआ है जबकि इसके पिछले वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 346,624 टन का हुआ था।

एसईए के अनुसार मूल्य के हिसाब से वर्ष 2025 के पहले पांच महीनों में कैस्टर तेल का निर्यात 4,075.78 करोड़ रुपये का ही हुआ है, जबकि पिछले वर्ष 2024 के जनवरी से मई के दौरान इसका निर्यात 4,213.27 करोड़ रुपये का हुआ था। चालू वर्ष 2025 के मई में डीओसी का निर्यात मूल्य के हिसाब से 882.46 करोड़ रुपये का ही हुआ है, जबकि पिछले साल मई में इसका निर्यात 1,066.24 करोड़ रुपये का हुआ था।

व्यापारियों के अनुसार चालू सीजन में बुआई में आई कमी से कैस्टर सीड का उत्पादन कम होने का अनुमान है। उत्पादक मंडियों में कैस्टर सीड की दैनिक आवक पहले की तुलना में कम हुई है।

गुजरात में कैस्टर सीड के भाव शनिवार को 5 रुपये तेज होकर दाम 1,280 से 1,320 रुपये प्रति 20 किलो हो गए, तथा दैनिक आवक 60,000 बोरी, एक बोरी 35 किलो की हुई।

कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2024-25 के दौरान कैस्टर सीड का उत्पादन 17.30 लाख टन ही होने का अनुमान है, जोकि इसके पिछले फसल सीजन के दौरान उत्पादन 19.59 लाख टन का हुआ था।

कृषि मंत्रालय के अनुसार खरीफ सीजन में कैस्टर सीड की बुआई 12 फीसदी घटकर केवल 8.67 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।

सरकार का फोकस दलहन एवं तिलहन के उत्पादन को बढ़ाने पर – शिवराज सिंह

नई दिल्ली। सरकार का पूरा फोकस इस वक्त दलहन एवं तिलहन के उत्पादन को बढ़ाने पर है। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष पर आधारित 'सहकार से समृद्धि 2025' विषय पर मुंबई में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहां किसान अपनी फसलों को वहां बेच सकते हैं, जहां उसका उचित दाम मिल रहा हो। इसमें ट्रांसपोर्टेशन का पूरा खर्च सरकार वहन करेगी।


उन्होंने कहा कि यह अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष है। संयुक्त राष्ट्र संघ में आज आयोजन हो रहा होगा लेकिन सहकारिता भारत की मिट्टी और इसकी जड़ों में वर्षों से व्याप्त है। हजारों साल पहले भारत के ऋषियों ने उद्घोष किया था, ‘आत्मवत् सर्वभूतेषु। सभी प्राणियों में एक ही चेतना है। विश्व के कल्याण का भाव की सहकारिता है।

उन्होंने कहा कि किसान का महत्व कभी समाप्त नहीं हो सकता। आज भी कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। जीडीपी में कृषि क्षेत्र की भागीदारी 18 फीसदी है। लगभग 46 फीसदी आबादी कृषि पर ही निर्भर है। मैं स्वयं किसान हूं। अपने खेतों में ट्रैक्टर चलाकर खेती करता हूं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में किसान कल्याण के लिए कार्य करना ही जीवन का उद्देश्य है। चौहान ने बताया कि खाद्यान्न उत्पादन में लगभग 44 फीसदी की वृद्धि हुई है। किसानों की समृद्धि और कृषि क्षेत्र की उन्नति के लिए जो रोडमैप बनाया गया उसमें शामिल हैं, प्रति हेक्टेयर उत्पादन को बढ़ाना, उत्पादन की लागत घटाना, उत्पादन के ठीक दाम, फसल नुकसान की स्थिति में उचित मुआवजा, कृषि का विविधीकरण और उर्वरकों में सीमित उपयोग के साथ आने वाली पीढ़ी के लिए धरती को सुरक्षित रखना।

कृषि मंत्री शिवराज सिंह ने कहा कि हमें देश की परिस्थितियों के अनुसार कृषि क्षेत्र में उन्नति के मार्ग तय करने होंगे। भारत में अत्यधिक किसान छोटी जोत वाले हैं। इसलिए हमारी नीतियों का केंद्र छोटा किसान है। तीन चीजें और जो प्रधानमंत्री के नेतृत्व में तय हुई हैं उनमें शामिल हैं, पहला देश 144 करोड़ आबादी के खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना,  दूसरा किसानों की आय बढ़ाना और तीसरा देशवासियों को पोषणयुक्त आहार उपलब्ध करवाना।

शिवराज सिंह ने कहा कि किसानों को उनके उत्पादन का सही दाम मिले, इसके लिए भारत सरकार पूरी कोशिश कर रही है। किसान द्वारा पंजीकरण के बाद अरहर, मसूर और उड़द की भी खरीद की जाएगी। दलहन-तिलहन साथ ही सोयाबीन में भी रिकॉर्ड स्तर पर खरीद हुई है।

कृषि मंत्री ने विकसित कृषि संकल्प अभियान का ब्योरा भी दिया। कहा कि किसान तक शोध की सही जानकारी पहुंचाने के लिए भी व्यापक स्तर पर कोशिश की गई। प्रधानमंत्री के विजन में ‘लैब टू लैंड’ को जोड़ने के लिए ‘विकसित कृषि संकल्प अभियान’ भी आयोजित किया गया। वैज्ञानिकों की 2,170 टीमों ने जमीनी स्तर पर जाकर किसानों से संवाद किया, उन्हें कृषि की विभिन्न पद्धतियों और शोध की जानकारी दी। साथ ही उनकी व्यावहारिक समस्याओं को सुनकर आगे के शोध की दिशा तय करने का भी काम किया। इस अभियान के दौरान कई महत्वपूर्ण अनुभव और नवाचार देखने मिले, जिनका आगे की नीतियां तय करने व अनुसंधान करते समय अवश्य ध्यान रखा जाएगा। अभियान के दौरान कई गंभीर मुद्दे भी सामने आए हैं, जिनमें सबसे गंभीर है, किसानों को घटिया कीटनाशक और घटिया बीज का विषय। इसलिए अब अमानक बीज एवं कीटनाशक बनाने वाले और बेचने वालों के खिलाफ सरकार सख्त कदम उठाने जा रही है। कड़ा कानूनी प्रावधान बनाने की दिशा में तत्परता से काम चल रहा है। 

उन्होंने कहा कि टमाटर, आलू, प्याज इन फसलों के उत्पादन की बिक्री से जुड़ा एक और प्रावधान किसानों के हित में किया गया है। किसान इन फसलों को जहां उत्पादन के ज्यादा दाम मिल रहे हैं, बेचना चाहे तो सरकार परिवहन का खर्चा उठाएगी। बाजार हस्तक्षेप योजना (एमआईएस) के जरिये यह प्रावधान किया गया है। भंडारण की व्यवस्था के लिए भी वित्तीय सहायता देने की कोशिश की जाएगी।

उन्होंने कहा कि तिलहन का उत्पादन बढ़ाना हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है। सोयाबीन का उत्पादन बढ़ाने के लिए तत्परता से प्रयास किए जा रहे हैं। 26 जून को इंदौर में सोयाबीन उत्पादन पर अहम बैठक की जाएगी। वर्तमान बजट में ‘कपास मिशन’ की घोषणा के लिए प्रधानमंत्री का धन्यवाद करता हूं। 27 जून को इसी संबंध में कपास पर गुजरात में अहम बैठक की जाएगी। आगे गन्ने की खेती के लिए भी विशेष बैठक उत्तर-प्रदेश में की जाएगी। समस्याओं के अनुरूप ही उनके समाधान खोजने की कोशिश और कारगर कार्यान्वयन के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि नाफेड, एफपीओ सहित सभी संस्थाएं बेहतर काम कर रही हैं, लेकिन अभी भी अनंत संभावनाएं बाकी हैं। भारत को दुनिया का फूड बास्केट बनाने के लिए पूरे प्रयास करने होंगे। छोटी जोत होने के बावजूद हम ऐसा करके रहेंगे।

कॉटन के आयात में 156 फीसदी की भारी बढ़ोतरी होने का अनुमान - उद्योग

नई दिल्ली। पहली अक्टूबर 2024 से शुरू हुए चालू फसल सीजन 2024-25 में कॉटन का आयात 156.57 फीसदी बढ़कर 39 लाख गांठ, एक गांठ 170 किलो होने का अनुमान है जबकि इस दौरान निर्यात 17 लाख गांठ का ही होने का अनुमान है।


कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया, सीएआई के अनुसार मई 2025 अंत तक कॉटन का आयात बढ़कर 26.25 लाख गांठ का हो चुका है, वहीं इस दौरान निर्यात 15.25 लाख गांठ का हुआ है। फसल सीजन 2023-24 के दौरान 15.20 लाख गांठ कॉटन का आयात हुआ था। फसल सीजन 2024-25 के दौरान देश से कॉटन का निर्यात 17 लाख गांठ होने का अनुमान है।

सीएआई के अनुसार पहली अक्टूबर 2024 से शुरू हुए चालू फसल सीजन 2024-25 में देश में 301.15 लाख गांठ कॉटन के उत्पादन का अनुमान है, जोकि इससे पहले के अनुमान 291.35 लाख गांठ की तुलना में ज्यादा है।

सीएआई के अनुमान के अनुसार पंजाब में कॉटन का उत्पादन फसल सीजन 2024-25 में 1.50 लाख गांठ, हरियाणा में 7.80 लाख गांठ, अपर राजस्थान में 10.10 लाख गांठ एवं लोअर राजस्थान के 9.40 लाख गांठ को मिलाकर कुल 28.80 लाख गांठ होने का अनुमान है।

सीएआई के अनुसार मध्य भारत के राज्यों गुजरात में चालू फसल सीजन में 76 लाख गांठ, महाराष्ट्र में 85 लाख गांठ तथा मध्य प्रदेश के 19 लाख गांठ को मिलाकर कुल 180 लाख गांठ के उत्पादन का अनुमान है।

दक्षिण भारत के राज्यों में तेलंगाना में चालू फसल सीजन में 48 लाख गांठ, आंध्र प्रदेश में 11.50 लाख गांठ एवं कर्नाटक में 23 लाख गांठ तथा तमिलनाडु के 4 लाख गांठ को मिलाकर कुल 86.50 लाख गांठ के कॉटन के उत्पादन का अनुमान है।

ओडिशा में चालू खरीफ में 3.85 लाख गांठ एवं अन्य राज्यों में 2 लाख गांठ कॉटन के उत्पादन का अनुमान है।

सीएआई के अनुसार पहली अक्टूबर 2024 को कॉटन का बकाया स्टॉक 30.19 लाख गांठ का बचा हुआ था, जबकि 301.15 लाख गांठ के उत्पादन का अनुमान है। चालू सीजन में करीब 39 लाख गांठ कॉटन का आयात होने की उम्मीद है। ऐसे में कुल उपलब्धता 370.34 लाख गांठ की बैठेगी।

चालू फसल सीजन में कॉटन की कुल घरेलू खपत 305 लाख गांठ होने का अनुमान है, जबकि इस दौरान 17 लाख गांठ के निर्यात की उम्मीद है।

सीएआई के अनुसार उत्पादक मंडियों में मई अंत तक 285.09 लाख गांठ कॉटन की आवक हो चुकी है, जिसमें से 208 लाख गांठ की खपत हो चुकी है। अत: पहली जून को मिलों के पास 35 लाख गांठ एवं सीसीआई, महाराष्ट्र फेडरेशन, एमएनसी, जिनर्स एवं निर्यातकों के साथ ही व्यापारियों के पास 85.28 लाख गांठ कॉटन का बकाया स्टॉक है।

कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार कपास का उत्पादन 306.92 लाख गांठ (एक गांठ 170 किलोग्राम) होने का अनुमान है, जो क‍ि इसके पिछले फसल सीजन 2023-24 के 325.22 लाख गांठ के मुकाबले कम है।

चालू वित्त वर्ष के पहले दो महीनों में डीओसी का निर्यात 1.79 फीसदी बढ़ा - एसईए

नई दिल्ली। चालू वित्त वर्ष 2025-26 के पहले दो महीनों अप्रैल एवं मई में डीओसी का निर्यात 1.79 फीसदी की मामूली बढ़ोतरी होकर कुल निर्यात 781,189 टन का हुआ है, जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इनका निर्यात 767,436 टन का हुआ था।


सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, एसईए के अनुसार मई में डीओसी के निर्यात में 4 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल निर्यात 315,326 टन का हुआ है, जबकि पिछले साल मई में इसका निर्यात 302,280 टन का ही हुआ था।

ऑयल वर्ल्ड की रिपोर्ट के अनुसार, पशुधन उत्पादन में वृद्धि और मिश्रित फीड में सोया डीओसी की बढ़ती हिस्सेदारी के कारण अफ्रीकी देशों में सोया डीओसी की खपत बढ़ रही है। भारत ने वित्तीय वर्ष 2025-26 के पहले दो महीनों में मध्य पूर्व और अफ्रीकी देशों को 1,18,000 टन से अधिक सोया डीओसी का निर्यात किया, जिसे मुख्य रूप से केन्या और कुवैत को भेजा गया। 2024-25 में, भारत ने इस क्षेत्र में निर्यात को बढ़ाने के लिए मुख्य रूप से संयुक्त अरब अमीरात (ईरान और अन्य देशों को) को 800,000 टन से अधिक सोया डीओसी का निर्यात किया था। अफ्रीकी देश सोया डीओसी के लिए बढ़ते बाजार हैं। भारत के पास लॉजिस्टिक लाभ है और वह अफ्रीकी देशों को कंटेनर लोड द्वारा छोटे पार्सल भेज सकता है।

सुदूर पूर्व के देशों में, लॉजिस्टिक और मूल्य कम होने के कारण भारतीय सरसों डीओसी को मवेशी चारा के उपयोग लिए बहुत अच्छी मांग बनी हुई है। वित्तीय वर्ष 2025-26 के पहले दो महीनों में, भारत ने लगभग 3.5 लाख टन सरसों डीओसी का निर्यात किया, जिसमें चीन सबसे आगे है, उसके बाद दक्षिण कोरिया, थाईलैंड और बांग्लादेश का स्थान है। इससे सरसों की घरेलू कीमत को भी समर्थन मिला और यह 5,950 रुपये प्रति क्विंटल के एमएसपी से ऊपर बनी रही। 2024-25 में, भारत ने मूल्य समानता के कारण सुदूर पूर्व और दक्षिण पूर्व देशों को मुख्य रूप से दक्षिण कोरिया, थाईलैंड और बांग्लादेश को 18.62 लाख टन से अधिक सरसों डीओसी का निर्यात किया था। भारतीय सरसों डीओसी की मौजूदा कीमत एफओबी कांडला सिर्फ 200 डॉलर प्रति टन है, जबकि सरसों डीओसी (कैनोला खली) एफओबी एक्स-मिल हैम्बर्ग 290 डॉलर प्रति टन है।

भारतीय बंदरगाह पर मई में सोया डीओसी का भाव कमजोर होकर 382 डॉलर प्रति टन रह गए, जबकि अप्रैल में इसका दाम 388 डॉलर प्रति टन था। इस दौरान सरसों डीओसी का मूल्य मई में भारतीय बंदरगाह पर घटकर 201 डॉलर प्रति टन का रह गया, जबकि अप्रैल में इसका भाव 207 डॉलर प्रति टन था। इस दौरान कैस्टर डीओसी का दाम अप्रैल के 79 डॉलर प्रति टन से कमजोर होकर मई में 77 डॉलर प्रति टन का रह गया।

शुरूआती चरण में खरीफ फसलों धान एवं दलहन तथा तिलहन की बुआई बढ़ी - कृषि मंत्रालय

नई दिल्ली। चालू खरीफ सीजन के शुरूआती चरण में धान के साथ ही दलहन एवं तिलहन की बुआई बढ़कर 89.29 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले खरीफ सीजन की समान अवधि में इनकी बुआई केवल 87.81 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।


कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ सीजन में 13 जून 25 तक देशभर के राज्यों में धान की रोपाई बढ़कर 4.53 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसकी रोपाई केवल 4 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।

दलहनी फसलों की बुआई चालू खरीफ सीजन में बढ़कर 3.07 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 2.60 लाख हेक्टेयर में तुलना में बढ़ी है। इस दौरान मूंग की बुआई 1.56 लाख हेक्टेयर में और उड़द की 0.43 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले इस समय तक इनकी बुआई क्रमश: 1.38 लाख हेक्टेयर और 0.18 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी। अरहर की बुआई 0.30 लाख हेक्टेयर और अन्य दलहन की 0.73 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है।

चालू खरीफ सीजन में तिलहनी फसलों की बुआई बढ़कर 2.05 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक केवल 1.50 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई थी। तिलहनी फसलों में मूंगफली की बुआई 0.58 लाख हेक्टेयर में, सोयाबीन की 1.07 लाख हेक्टेयर में तथा सनफ्लावर की 22,000 हेक्टेयर में हुई है। पिछले साल की समान अवधि में इनकी बुआई क्रमश: 0.71 लाख हेक्टेयर में, 0.40 लाख हेक्टेयर में तथा 22,000 हेक्टेयर में ही हुई थी।

मोटे अनाजों की बुआई मामूली कम होकर चालू खरीफ सीजन में 5.89 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 5.90 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी थी। मोटे अनाजों में मक्का की 3.60 लाख हेक्टेयर में तथा बाजरा की 0.86 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इनकी बुआई क्रमश: 4.28 और 0.03 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी। ज्वार की बुआई 1.01 लाख हेक्टेयर में हुई है।

चालू खरीफ में गन्ने की बुआई 55.07 लाख हेक्टेयर में और कपास की 13.19 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले खरीफ सीजन की समान अवधि में इनकी बुआई क्रमश: 54.88 लाख हेक्टेयर और 13.28 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।

अक्टूबर से मई के दौरान सोया डीओसी का निर्यात 11 फीसदी घटा - सोपा

नई दिल्ली। चालू फसल सीजन 2024-25 के पहले आठ महीनों अक्टूबर 24 से मई 25 के दौरान सोया डीओसी का निर्यात 10.84 फीसदी घटकर केवल 14.63 लाख टन का ही हुआ है, जबकि पिछले फसल सीजन की समान अवधि में इसका निर्यात 16.41 लाख टन का हुआ था।


सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, सोपा के अनुसार चालू फसल सीजन के अक्टूबर से मई के दौरान 62.34 लाख टन सोया डीओसी का उत्पादन हुआ है, जबकि नई सीजन के आरंभ में 1.33 लाख टन का बकाया स्टॉक बचा हुआ था। इस दौरान 14.63 लाख टन सोया डीओसी का निर्यात हुआ है जबकि 5.55 लाख टन की खपत फूड में एवं 42 लाख टन की फीड में हुई है। अत: पहली जून को मिलों के पास 1.49 लाख टन सोया डीओसी का बकाया स्टॉक बचा हुआ है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 2.31 लाख टन से कम है।

सोपा के अनुसार फसल सीजन 2024-25 के पहले आठ महीनों में देशभर की उत्पादक मंडियों में 83.50 लाख टन सोयाबीन की आवक हुई है, जिसमें से मई अंत तक 79 लाख टन की पेराई हुई है। इस दौरान 3.85 लाख टन सोयाबीन की खपत डारेक्ट हुई है जबकि 0.09 लाख टन का निर्यात हुआ है। अत: प्लांटों एवं व्यापारियों तथा किसानों के पास पहली जून को 22.84 लाख टन सोयाबीन का बकाया स्टॉक बचा हुआ है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 45.71 लाख टन की तुलना में कम है।

सोपा के अनुसार चालू फसल सीजन 2024-25 में देश में सोयाबीन का उत्पादन 125.82 लाख टन का हुआ है, जबकि 8.94 लाख टन का बकाया स्टॉक नई फसल की आवक के समय बचा हुआ था। अत: कुल उपलब्धता 134.76 लाख टन की बैठी है, जबकि चालू सीजन में करीब 25 हजार लाख टन सोयाबीन के आयात का अनुमान है। पिछले फसल सीजन में 118.74 लाख टन सोयाबीन का उत्पादन हुआ था, जबकि नई फसल की आवक के समय 24.07 लाख टन का बकाया स्टॉक बचा हुआ था। अत: पिछले साल कुल उपलब्धता 142.81 लाख टन की बैठी थी, जबकि 6.25 लाख टन का आयात हुआ था।

खाद्य तेलों के आयात शुल्क में कटौती से किसानों को नुकसान की आशंका - सोपा

नई दिल्ली। सोपा ने केंद्र सरकार द्वारा 30 मई 2025 को क्रूड खाद्वय तेलों के आयात पर सीमा शुल्क में 11 फीसदी की कटौती करने के निर्णय पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है। उद्योग का मानना है कि इस फैसले से तिलहन प्रसंस्करणकर्ताओं के साथ ही तिलहन किसानों को नुकसान होगा।


सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) के अनुसार आयात शुल्क में कमी से घरेलू तेल प्रसंस्करण उद्योग और किसानों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

सोपा के अनुसार सामान्य परिस्थितियों में, सरकार बढ़ती मुद्रास्फीति से उपभोक्ताओं को राहत देने करने के लिए आयात शुल्क में कटौती करती है। विडंबना यह है कि यह शुल्क कटौती ऐसे समय में की गई है जब देश की मौजूदा मुद्रास्फीति दर अप्रैल 2025 में 3.16 फीसदी थी, जो कि जुलाई 2019 के बाद सबसे कम है। हालांकि हम इस निर्णय के बारे में सरकार की मंशा की सराहना करते हैं, जो कि वैश्विक व्यापार गतिशीलता में बदलाव, विशेष रूप से भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच चल रहे व्यापार सौदे के संबंध में हो सकता है। हालांकि इस नीतिगत बदलाव ने घरेलू तिलहन उत्पादन, प्रसंस्करण इकाइयों और लाखों किसानों की आजीविका पर इसके दीर्घकालिक प्रभाव के बारे में गंभीर चिंता पैदा कर दी हैं।

सोपा के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा एमएसपी में वृद्धि की घोषणा के एक दिन बाद शुल्क में कटौती का निर्णय विरोधाभासी प्रतीत होता है और यह निर्णय तिलहन उत्पादन, तिलहन की खेती करने वाले किसान और प्रसंस्करण उद्योग को नुकसान पहुंचेगा। क्रूड खाद्य तेलों पर सीमा शुल्क में 11 फीसदी की कटौती से भारतीय बाजार में सस्ते आयातित तेलों की बाढ़ आ जाएगी, जिससे घरेलू खाद्य तेल की कीमतों में गिरावट आएगी।

खाद्य तेलों की कीमतों में गिरावट का सीधा मतलब स्थानीय किसानों को कम दाम मिलेगा, जिससे धान और मक्का जैसी वैकल्पिक फसलों की तुलना में तिलहन की खेती कम आकर्षक हो जाएगी, जो प्रति हेक्टेयर अधिक सकल लाभ प्रदान करती हैं।

विशेषज्ञों और किसान का मानना है कि इस निर्णय से चालू खरीफ सीजन में तिलहन की खेती के रकबे में कमी आएगी, क्योंकि किसान अधिक फायदे वाली फसलों की ओर रुख कर सकते हैं।

घरेलू तिलहन प्रोसेसर, विशेष रूप से छोटे और मध्यम आकार की पेराई इकाइयाँ, जोकि पहले से ही खली की कमजोर मांग और अधिक लागत के कारण नकारात्मक मार्जिन का सामना कर रही हैं। शुल्क में कमी से प्रोसेसर के मार्जिन में और कमी आएगी, क्योंकि उन्हें कम कीमत वाले आयातित तेलों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी होगी, जिससे संभावित रूप से अधिक इकाइयों को ब्रेक-ईवन क्षमता से कम पर काम करने या पूरी तरह से बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है।

रिफाइनिंग के लिए क्रूड तेल के आयात में वृद्धि के कारण बड़ी, बंदरगाह-आधारित रिफाइनरियों को अल्पावधि में लाभ होगा, लेकिन छोटे और क्षेत्रीय प्रसंस्करणकर्ताओं को इससे नुकसान होगा।

सोपा के अनुसार यह बदलाव भारत के खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए
भी झटका माना जा रहा है, क्योंकि इससे घरेलू तिलहन उत्पादन हतोत्साहित होगा, जो प्रसंस्करण बुनियादी ढांचे और आत्मनिर्भरता में निवेश के लिए प्रतिकूल है। किसान संगठन और सोपा जैसे उद्योग निकाय चिंतित हैं कि इस कदम से लाखों लोगों की आजीविका खतरे में पड़ जाएगी और खाद्य तेलों के आयात पर देश की निर्भरता बढ़ जाएगी।

13 जून 2025

दाल मिलों की मांग घटने से उड़द एवं चना मंदा, अरहर में मिलाजुला रुख

नई दिल्ली। दाल मिलों की खरीद कमजोर होने के कारण घरेलू बाजार में गुरुवार को  उड़द एवं चना के भाव में गिरावट दर्ज की गई जबकि इस दौरान अरहर की कीमतों में मिलाजुला रुख रहा। मसूर के दाम तेज हुए, जबकि मूंग की कीमत दिल्ली में तेज हुई।


जानकारों का मानना है कि दालों का आयात इसी तरह से बेरोकटोक जारी रहा तो देश कभी भी दालों के मामले में आत्मनिर्भर नहीं बन पायेगा। वास्तव में आत्मनिर्भर की बात तो भूल ही जाइए, इसी तरह से आयात जारी रहा तो किसान को दलहन की बुआई से भी हतोत्साहित करेगा। केंद्र सरकार चाहे कितना भी न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी बढ़ा ले।

बर्मा से आयातित उड़द एफएक्यू एवं एसक्यू के भाव में चेन्नई में लगातार तीसरे दिन कमजोर हो गए। उड़द एफएक्यू के भाव जून एवं जुलाई शिपमेंट के 15 डॉलर कमजोर होकर 750 डॉलर प्रति टन, सीएडंएफ रह गए, जबकि इस दौरान एसक्यू उड़द के भाव जून एवं जुलाई शिपमेंट के 15 डॉलर घटकर 825 डॉलर प्रति टन, सीएडंएफ बोले गए। लेमन अरहर के भाव चेन्नई में जून तथा जुलाई शिपमेंट के 40 डॉलर तेज होकर 750 डॉलर प्रति टन, सीएडंएफ हो गए।

चेन्नई में आयातित उड़द की कीमत डॉलर में तीसरे दिन कमजोर हो गई, हालांकि इस दौरान म्यांमार में इनके दाम स्थिर बने रहे। घरेलू बाजार में दाल मिलों की मांग कमजोर होने से इसके भाव में गिरावट दर्ज की गई। जानकारों के अनुसार दाल मिलें उड़द की खरीद जरूरत के हिसाब से कर रही है क्योंकि हाल ही में उड़द के आयात पड़ते सस्ते हुए हैं। म्यांमार के निर्यातकों की बिकवाली बराबर बनी हुई है। जबलपुर लाइन से देसी उड़द की आवक पहले की तुलना में बढ़ी है। हालांकि खपत का सीजन होने के कारण उड़द दाल में मांग भी बनी रहने की उम्मीद है साथ ही दक्षिण भारत की दाल मिलों की खरीद भी उड़द में अभी बनी रहेगी। जानकारों के अनुसार जबलपुर और गुजरात की गर्मियों की फसल पहले की तुलना में बढ़ी है। ऐसे में उड़द की कीमतों में तेजी मानकर व्यापार नहीं करना चाहिए।

चेन्नई में लेमन अरहर के दाम तेज हुए हैं, लेकिन म्यांमार में इसके दाम स्थिर ही बने रहे। घरेलू बाजार में दाल मिलों की सीमित मांग से अरहर की कीमतों में मिलाजुला रुख रहा। आयात पड़ते महंगे होने के कारण आयातकों की बिकवाली कम हुई है, इसलिए इसके भाव में हल्का सुधार बन सकता है। हालांकि दाल मिलें जरुरत के हिसाब से ही अरहर की खरीद कर रही है। आम का सीजन होने के कारण अरहर दाल खपत चालू महीने में कमजोर बनी रहने की उम्मीद है। हालांकि उत्पादक राज्यों कर्नाटक के साथ ही महाराष्ट्र में देसी अरहर की आवकों में काफी कमी आई है। महाराष्ट्र और कर्नाटक में अरहर का उत्पादन अनुमान ज्यादा था, साथ ही बर्मा से लेमन अरहर का आयात बराबर बना रहने की उम्मीद है। केंद्र सरकार लगातार अरहर की कीमतों की समीक्षा कर रही है।

दाल मिलों की खरीद कमजोर होने से चना के भाव घट गए। जानकारों के अनुसार चना की कीमतों में सीमित तेजी, मंदी बनी हुई है, हालांकि व्यापारी इसके भाव में ज्यादा मंदे में नहीं है। वैसे भी उत्पादक राज्यों की मंडियों में चना की आवक पहले की तुलना में कम हुई है। हालांकि स्टॉकिस्टों की पास चना का स्टॉक ज्यादा है, लेकिन केंद्रीय पूल में कम है। मानसूनी सीजन शुरू होने के कारण बेसन की खपत अगले से बढ़ेगी, इसलिए दाल मिलों की खरीद चना में बनी रहने की उम्मीद है। चालू रबी सीजन में व्यापारी चना का उत्पादन अनुमान कम मान रहे हैं। इसलिए आगे इसकी कीमतों में आगे सुधार बनने की उम्मीद है।

देसी मसूर के दाम दिल्ली में दूसरे दिन स्थिर बने रहे, साथ ही इस दौरान आयातित मसूर की कीमत भी स्थिर हो गई। जानकारों के अनुसार नीचे दाम पर स्टॉकिस्ट बिकवाली नहीं करना चाहते, हालांकि दाल मिलें भी जरुरत के हिसाब से ही खरीद कर रही हैं। इसलिए इसके भाव में सीमित तेजी, मंदी बनी रहने का अनुमान है। जानकारों के अनुसार प्रमुख उत्पादक राज्यों मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की मंडियों में मसूर की आवक पहले की तुलना में कम हुई है तथा चालू सीजन में मसूर का घरेलू उत्पादन अनुमान कम है। कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू रबी में मसूर का उत्पादन 18.17 लाख टन होने का अनुमान है।

मूंग की कीमतों मे दिल्ल में तेजी का रुख रहा, जबकि अन्य मंडियों में इसके दाम स्थिर हो गए। व्यापारियों के अनुसार दाल मिलें मूंग की खरीद जरुरत के हिसाब से ही कर रही है क्योंकि समर सीजन में मूंग की आवक पहले की तुलना में बढ़ी है, तथा नई फसल का उत्पादन अनुमान ज्यादा है। मध्य प्रदेश की मंडियों से मूंग की समर्थन मूल्य पर खरीद शुरू नहीं होने से कीमतों पर दबाव है। अत: मूंग में तेजी मानकर व्यापार नहीं करना चाहिए। हालांकि उत्पादक राज्यों की मंडियों में खरीफ मूंग की आवक पहले की तुलना में कम हुई है, लेकिन माना जा रहा है कि उत्पादक राज्यों में बकाया स्टॉक ज्यादा है। साथ ही सरकार भी केंद्रीय पूल से लगातार मूंग की बिकवाली कर रही है।

उत्तर प्रदेश में 34,720 टन मूंग की न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी पर खरीद को मंजूरी दे दी है।

चेन्नई में उड़द एफएक्यू के दाम 6,600 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर हो गए, जबकि एसक्यू के भाव 25 रुपये घटकर 7,325 रुपये प्रति क्विंटल रह गए।

दिल्ली में उड़द एफएक्यू के दाम कमजोर होकर 6,850 रुपये प्रति क्विंटल रह गए, जबकि एसक्यू के भाव 125 रुपये घटकर 7,650 से 7,700 रुपये प्रति क्विंटल रह गए।

मुंबई में उड़द एफएक्यू के भाव 6,700 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर हो गए।

कोलकाता में उड़द एफएक्यू के भाव 6,750 से 6,800 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर हो गए।

गुंटूर में उड़द पॉलिश के भाव 7,050 से 7,100 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर हो गए, जबकि विजयवाड़ा में उड़द पॉलिश के दाम 50 रुपये घटकर 7,200 रुपये प्रति क्विंटल रह गए।

चेन्नई में लेमन अरहर के भाव शाम के सत्र में 25 रुपये तेज होकर 6,125 रुपये प्रति क्विंटल  हो गए।

दिल्ली में लेमन अरहर के भाव शाम के सत्र में 100 रुपये कमजोर होकर 6,550 रुपये प्रति क्विंटल रह गए।

मुंबई में लेमन अरहर के भाव शाम के सत्र में 25 रुपये बढ़कर 6,125 रुपये प्रति क्विंटल हो गए।

देसी अरहर के दाम कटनी, अकोला तथा कानपुर में कमजोर हुई जबकि अन्य अधिकांश उत्पादक मंडियों में लगभग स्थिर बने रहे।

मुंबई में अफ्रीकी देशों से आयातित अरहर के भाव स्थिर हो गए। सूडान से आयातित अरहर के भाव 6,200 से 6,250 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर हो गए। इस दौरान गजरी अरहर के भाव 5750 से 5800 रुपये प्रति क्विंटल बोले गए। मतवारा की अरहर के भाव 5,700 से 5,800 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर हो गए। सफेद अरहर के दाम 6,000 से 6,050 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर हो गए।

दिल्ली में देसी मसूर के दाम 6,625 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर हो गए।

मुंद्रा बंदरगाह पर मसूर के भाव 5,900 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर हो गए। कांडला बंदरगाह पर मसूर के भाव 5,900 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर हो गए। हजिरा बंदरगाह पर मसूर के भाव 6,000 रुपये प्रति क्विंटल बोले गए। कनाडा की मसूर के दाम कंटेनर में 6,150 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर हो गए। पटना में देसी मसूर के भाव 6,500 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर हो गए।

दिल्ली में राजस्थान के बेस्ट चना के दाम 25 रुपये कमजोर होकर 5,725 से 5,750 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। इस दौरान मध्य प्रदेश के चना का व्यापार 25 रुपये घटकर 5,675 से 5,700 रुपये प्रति क्विंटल की दर से हुआ।

इंदौर में बोल्ड मूंग के भाव 6,400 से 6,500 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर हो गए। जयपुर में मूंग के बिल्टी भाव 6,200 से 6,700 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर हो गए। जलगांव में चमकी मूंग के दाम 6,500 से 7,000 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर हो गए। दिल्ली में मूंग के दाम 50 रुपये तेज होकर 6,675 से 6,700 रुपये प्रति क्विंटल हो गए।

मई में खाद्वय एवं अखाद्य तेलों का आयात 22 फीसदी घटा - एसईए

नई दिल्ली। चालू तेल वर्ष 2024-25 के मई 2025 में खाद्वय एवं अखाद्य तेलों का आयात 22 फीसदी घटकर 1,187,068 टन का ही हुआ है, जबकि पिछले साल मई में इनका आयात 1,529,804 टन का हुआ था। इस दौरान खाद्वय तेलों का आयात 1,175,028 टन का एवं अखाद्य तेलों का आयात 12,040 टन का हुआ है। सोया तेल के आयात में लगातार वृद्धि हुई है, जबकि आरबीडी पामोलीन के आयात में कमी दर्ज की गई।


सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार चालू तेल वर्ष के पहले सात महीनों नवंबर-24 से मई-25 के दौरान देश में खाद्वय एवं अखाद्य तेलों का आयात 9 फीसदी कम होकर 7,884,768 टन का ही हुआ है, जबकि पिछले तेल वर्ष की समान अवधि में इनका आयात 8,678,447 टन का हुआ था। हालांकि खाद्य तेलों के आयात के आंकड़ों में नेपाल से आयात हुई मात्रा शामिल नहीं है।

केंद्र सरकार ने 30 मई 2025 को क्रूड खाद्य तेलों जैसे पाम, सोया और सूरजमुखी के आयात शुल्क को 20 फीसदी से घटाकर 10 फीसदी कर दिया था, जिस कारण कुल आयात शुल्क 27.5 फीसदी से घटकर 16.5 फीसदी रह गया। यह कदम उद्योग, उपभोक्ता और आत्मनिर्भर भारत के व्यापक दृष्टिकोण के मोर्चे पर एक जीत है। क्रूड और रिफाइंड तेलों के बीच 19.25 फीसदी का बढ़ा हुआ शुल्क घरेलू रिफाइनिंग को फिर से मजबूत करेगा, साथ ही सस्ते आयात पर निर्भरता कम करेगा।

सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया केंद्र सरकार के इस निर्णय की सराहना करता है। यह रिफाइंड पाम तेल के आयात में कमरेगा और मांग को वापस क्रूड पाम तेल की ओर ले जाएगा, जिससे घरेलू रिफाइनिंग क्षेत्र को फिर से सहारा मिलेगा। इस कदम से खाद्य तेल के आयात की कुल मात्रा पर कोई असर नहीं पड़ेगा और इससे खाद्य तेल की कीमतों पर कोई दबाव पड़ने की संभावना नहीं है। इसके विपरीत, क्रूड तेल पर शुल्क में कटौती से घरेलू कीमतों में कमी आएगी, जिसका लाभ उपभोक्ताओं को मिलेगा।

चालू तेल वर्ष 2024-25 की पहले सात महीनों नवंबर 24 से मई 25 के दौरान 1,236,581 टन की तुलना में 819,171 टन रिफाइंड तेल (आरबीडी पामोलीन) का आयात किया गया। नवंबर 23 से मई 24 के दौरान 7,331,103 टन की तुलना में 6,858,092 टन क्रूड तेल का आयात किया गया। आरबीडी पामोलीन और सीपीओ के कम आयात के कारण रिफाइंड तेल का अनुपात 14 फीसदी से घटकर 11 फीसदी रह गया, जबकि सोया तेल के आयात में वृद्धि के कारण क्रूड पाम तेल का अनुपात 86 फीसदी से बढ़कर 89 फीसदी हो गया।

एसईए के अनुसार नवंबर 2024 से मई 2025 के दौरान पाम तेल का आयात नवंबर 2023 से मई 2024 के 4,977,233 टन की तुलना में कम होकर 3,329,890 टन का रह गया, जबकि सॉफ्ट तेलों का आयात पिछले साल की समान अवधि के 3,590,452 टन से बढ़कर 4,347,373 टन का हो गया। अत: पाम तेल की हिस्सेदारी 58 फीसदी से घटकर 43 फीसदी की रह गई, जबकि सॉफ्ट तेल की हिस्सेदारी 42 फीसदी से बढ़कर 57 फीसदी की हो गई।

विश्व बाजार में कॉटन के दाम कमजोर होने से घरेलू बाजार में कीमतों पर दबाव

नई दिल्ली। विश्व बाजार में कॉटन की कीमतों में गिरावट आने से घरेलू बाजार में भी इसकी कीमतों पर दबाव बना हुआ है। स्पिनिंग मिलों की मांग कमजोर बनी रहने के कारण बुधवार को गुजरात के साथ ही उत्तर भारत में कॉटन की कीमतों में नरमी आई।


गुजरात के अहमदाबाद में 29 शंकर-6 किस्म की कॉटन के भाव बुधवार को 50 रुपये कमजोर होकर 53,700 से 54,000 रुपये प्रति कैंडी, एक कैंडी-356 किलो रह गए।

पंजाब में रुई हाजिर डिलीवरी के भाव नरम होकर 5,700 से 5,710 रुपये प्रति मन बोले गए।हरियाणा में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के भाव कमजोर होकर 5,510 से 5,570 रुपये प्रति मन बोले गए। ऊपरी राजस्थान में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के दाम 5,690 से 5,760 रुपये प्रति मन बोले गए। लोअर राजस्थान में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के 54,700 से 54,800 रुपये कैंड़ी बोले गए। देशभर की मंडियों में कपास की आवक 16,500 गांठ, एक गांठ-170 किलो की हुई।

आईसीई कॉटन वायदा के भाव में मंगलवार को गिरावट का रुख रहा था। जुलाई-25 वायदा अनुबंध में इसके दाम 0.57 सेंट कमजोर होकर भाव 65.42 सेंट रह गए थे। दिसंबर-25 वायदा अनुबंध में इसके दाम 0.64 सेंट कमजोर होकर 67.71 सेंट रह गए। मार्च-26 वायदा अनुबंध में इसके दाम 0.66 सेंट कमजोर होकर भाव 69.06 सेंट रह गए।

स्पिनिंग मिलों की मांग कमजोर के कारण गुजरात के साथ ही उत्तर भारत के राज्यों में कॉटन की कीमतों में नरमी आई है। व्यापारी कॉटन के भाव में बड़ी तेजी के पक्ष में नहीं है। विश्व बाजार में पिछले सप्ताह कॉटन की कीमतों में मंदा आया था, जिस कारण स्पिनिंग मिल जरुरत के हिसाब से ही कॉटन की खरीद कर रही है। व्यापारियों के अनुसार चालू सीजन में कपास के उत्पादन में कमी आई थी, लेकिन एक तो घरेलू बाजार से कॉटन के निर्यात में कमी आई है, वहीं दूसरी तरफ चालू सीजन में अभी तक आयात ज्यादा मात्रा में हुआ है। घरेलू बाजार में सीसीआई के पास कॉटन का बंपर स्टॉक मौजूद है। इसलिए घरेलू बाजार में कॉटन की कीमतों में तेजी, मंदी काफी हद तक सीसीआई के बिक्री भाव पर भी निर्भर करेगी।

गेहूं की सरकारी खरीद 300 लाख टन पर पहुंची, कीमतों में हल्का सुधार

नई दिल्ली। चालू रबी विपणन सीजन 2025-26 में 9 जून 2025 तक देशभर में गेहूं की न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी पर खरीद 300 लाख टन की हो चुकी है। जबकि पिछले साल कुल खरीद 266 लाख टन की ही हुई थी। अधिकांश राज्यों में गेहूं की खरीद बंद हो चुकी है, ऐसे में तय लक्ष्य 322.7 लाख टन से कम रहने की आशंका है।


चालू रबी विपणन सीजन 2025-26 में पंजाब से 119.19 लाख टन गेहूं की खरीद हुई है जबकि इस दौरान हरियाणा से 72.06 लाख टन गेहूं की खरीद हुई है। मध्य प्रदेश से चालू रबी में 77.53 लाख टन गेहूं की खरीद हुई है।

अन्य राज्यों में राजस्थान से 20.60 लाख टन तथा उत्तर प्रदेश से चालू रबी में 10.26 लाख टन तथा बिहार से 18,197 टन गेहूं की सरकारी खरीद ही हुई है। गुजरात से चालू रबी में 3,780 टन तथा एवं हिमाचल प्रदेश से 2,991 टन के अलावा उत्तराखंड से 343 टन गेहूं खरीदा गया है।

दिल्ली में मंगलवार को गेहूं के दाम 5 रुपये तेज होकर भाव 2,730 से 2,735 रुपये प्रति क्विंटल हो गए, तथा इसकी दैनिक आवक 10,000 बोरियों की हुई।

सूत्रों के अनुसार खुले बाजार बिक्री योजना, ओएमएसएस के तहत गेहूं की बिक्री केंद्र सरकार 2,475 से 2,525 रुपये प्रति क्विंटल की दर से कर सकती है, तथा इसकी बिक्री जुलाई या फिर अगस्त में शुरू होने की उम्मीद है उसके बाद ही भाव में मंदे के आसार है।

केंद्र सरकार ने स्टॉकिस्टों, व्यापारियों एवं मिलर्स को हर सप्ताह गेहूं के स्टॉक की जानकारी देना अनिवार्य किया हुआ है, इसके बावजूद भी चालू सीजन में स्टॉकिस्टों ने गेहूं की खरीद बड़ी मात्रा में की है।

चालू रबी विपणन सीजन 2025-26 में केंद्र सरकार ने गेहूं की खरीद का लक्ष्य बढ़ाकर 322.7 लाख टन कर दिया था, जबकि पहले 310 लाख टन की खरीद का लक्ष्य तय किया था। चालू रबी सीजन में पंजाब से 124 लाख टन तथा हरियाणा से 75 लाख टन, मध्य प्रदेश से 60 लाख टन के लक्ष्य को बढ़ाकर 70 लाख टन कर दिया है। उत्तर प्रदेश से 30 लाख टन गेहूं के अलावा राजस्थान से 20 लाख टन और गुजरात से एक लाख टन की खरीद का लक्ष्य तय किया था। बिहार से 2 लाख टन तथा उत्तराखंड से 50 हजार टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य तय किया था।

रबी विपणन सीजन 2024-25 में केंद्र सरकार ने 320 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य किया था, लेकिन खरीद हुई थी केवल 266 लाख टन की ही।

रबी विपणन सीजन 2024-25 के दौरान पंजाब एवं हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश के किसानों से 2,425 रुपये प्रति क्विंटल, एमएसपी की दर से गेहूं की खरीद की गई, जबकि मध्य प्रदेश के साथ ही राजस्थान में राज्य सरकार गेहूं की खरीद पर किसानों को बोनस दिया है।

कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2024-25 में देश में रिकॉर्ड 1175.07 लाख टन गेहूं के उत्पादन का अनुमान है। गेहूं की बुआई रबी सीजन में बढ़कर 326 लाख हेक्टेयर में हुई थी, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 315.6 लाख हेक्टेयर से ज्यादा थी।

07 जून 2025

मिलों की सीमित मांग से कॉटन की कीमतों में मिलाजुला रुख, सीसीआई ने बेची 700 गांठ

नई दिल्ली। स्पिनिंग मिलों की मांग सीमित होने के कारण शुक्रवार को कॉटन की कीमतों में मिलाजुला रुख रहा। सीसीआई ने 700 गांठ, एक गांठ -170 किलो कॉटन की बिक्री की।


गुजरात के अहमदाबाद में 29 शंकर-6 किस्म की कॉटन के भाव शुक्रवार को 50 रुपये तेज होकर 53,800 से 54,100 रुपये प्रति कैंडी, एक कैंडी-356 किलो हो गए।

पंजाब में रुई हाजिर डिलीवरी के भाव नरम होकर 5,700 से 5,710 रुपये प्रति मन बोले गए।हरियाणा में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के 5,530 से 5,580 रुपये प्रति मन बोले गए। ऊपरी राजस्थान में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के दाम नरम होकर 5,680 से 5,740 रुपये प्रति मन बोले गए। लोअर राजस्थान में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के 54,600 से 54,700 रुपये कैंड़ी बोले गए। देशभर की मंडियों में कपास की आवक 14,200 गांठ, एक गांठ-170 किलो की हुई।

घरेलू वायदा कारोबार में कॉटन की कीमतों में गिरावट का रुख रहा। एनसीडीईएक्स पर अप्रैल 26 महीने के वायदा अनुबंध में कपास के दाम 11 रुपये कमजोर होकर भाव 1,590 रुपये प्रति 20 किलो रह गए। एमसीएक्स पर मई 25 महीने के वायदा अनुबंध में कपास के दाम 500 रुपये कमजोर होकर भाव 53,100 रुपये प्रति कैंडी रह गए। इस दौरान आईसीई के इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग में कॉटन शाम के सत्र में नरमी का रुख रहा।

स्पिनिंग मिलों की मांग सुधरने के कारण गुजरात में कॉटन की कीमतों में हल्का सुधार आया, लेकिन उत्तर भारत के राज्यों में स्थिर से नरम हुए। व्यापारी कॉटन के भाव में बड़ी तेजी के पक्ष में नहीं है। विश्व बाजार में हाल ही में कॉटन की कीमतों में मंदा आया है, जिस कारण स्पिनिंग मिल जरुरत के हिसाब से ही कॉटन की खरीद कर रही है। व्यापारियों के अनुसार चालू सीजन में कपास के उत्पादन में कमी आई थी, लेकिन एक तो घरेलू बाजार से कॉटन के निर्यात में कमी आई है, वहीं दूसरी तरफ चालू सीजन में अभी तक आयात ज्यादा मात्रा में हुआ है। घरेलू बाजार में सीसीआई के पास करीब 70 लाख गांठ का स्टॉक बचा हुआ है। इसलिए घरेलू बाजार में कॉटन की कीमतों में तेजी, मंदी काफी हद तक सीसीआई के बिक्री भाव पर भी निर्भर करेगी।

अप्रैल में कैस्टर तेल के निर्यात में 13 फीसदी की कमी आई - एसईए

नई दिल्ली। चालू वित्त वर्ष 2025-26 के पहले महीने अप्रैल के दौरान कैस्टर तेल का निर्यात 12.95 फीसदी घटकर 63,373 टन का ही हुआ है जबकि इससे पिछले वित्त वर्ष के अप्रैल के दौरान इसका निर्यात 72,801 टन का हुआ था।


सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, एसईए के अनुसार अप्रैल में मूल्य के हिसाब से कैस्टर तेल का निर्यात घटकर 830.47 करोड़ रुपये का ही हुआ है, जबकि पिछले वित्त वर्ष के अप्रैल के दौरान इसका निर्यात 881.35 करोड़ रुपये का हुआ था।

व्यापारियों के अनुसार चालू सीजन में बुआई में आई कमी से कैस्टर सीड का उत्पादन कम होने का अनुमान है, तथा उत्पादक मंडियों में नई फसल की आवकों में पहले की तुलना में कमी आई है। ऐसे में जानकारों का मानना है कि आगे इसके भाव में सुधार आयेगा।

गुजरात में कैस्टर सीड के भाव गुरुवार को 1,230 से 1,255 रुपये प्रति 20 किलो पर स्थिर हो गए, तथा दैनिक आवक 75,000 बोरी (1 बोरी 35 किलो) की हुई। राजकोट में कैस्टर तेल कमर्शियल के भाव 5 रुपये तेज होकर 1,285 रुपये और एफएसजी के दाम 5 रुपये बढ़कर 1,295 रुपये प्रति 10 किलो बोले गए।

कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2024-25 के दौरान कैस्टर सीड का उत्पादन 17.30 लाख टन ही होने का अनुमान है, जोकि इसके पिछले फसल सीजन के 19.59 लाख टन की तुलना में कम है।

कृषि मंत्रालय के अनुसार खरीफ सीजन में कैस्टर सीड की बुआई 12 फीसदी घटकर केवल 8.67 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।