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03 दिसंबर 2025

सीसीआई ने नवंबर में 153,100 गांठ कॉटन बेची, कुल बिक्री 91 लाख गांठ से ज्यादा

नई दिल्ली, 2 दिसंबर। कॉटन कारपोरेशन आफ इंडिया, सीसीआई ने नवंबर में 153,100 गांठ, एक गांठ 170 किलो कॉटन की बिक्री की है। निगम द्वारा फसल सीजन 2024-25 में खरीदी हुई कॉटन की बिक्री नवंबर अंत तक 91,08,300 गांठ की हो चुकी है।


सीसीआई ने पिछले सप्ताह कस्तूरी मोड की कॉटन की कीमतों में 100 रुपये प्रति कैंडी, एक कैंडी 356 किलो की कटौती की थी तथा निगम 2024-25 फसल सीजन में खरीदी हुई कॉटन में से नवंबर अंत तक 91,08,300 गांठों की बिक्री कर चुकी है। अत: निगम के पास अब सात लाख गांठ से भी कम कॉटन बची हुई है।

स्पिनिंग मिलों की सीमित मांग के कारण मंगलवार को शाम के सत्र में गुजरात में कॉटन की कीमत स्थिर हो गई, जबकि इस दौरान उत्तर भारत के राज्यों में इसके भाव तेज हुए।

गुजरात के अहमदाबाद में 29 शंकर-6 किस्म की कॉटन के भाव मंगलवार को 52,000 से 52,300 रुपये प्रति कैंडी, एक कैंडी-356 किलो पर स्थिर हो गए।

पंजाब में रुई हाजिर डिलीवरी के भाव बढ़कर 5,150 से 5,250 रुपये प्रति मन बोले गए।हरियाणा में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के भाव 5,060 से 5,080 रुपये प्रति मन बोले गए।
ऊपरी राजस्थान में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के दाम तेज होकर 5,180 से 5,240 रुपये प्रति मन बोले गए। लोअर राजस्थान में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के दाम बढ़कर 49,000 से 50,000 रुपये कैंड़ी बोले गए।

देशभर की मंडियों में कपास की आवक 141,000 गांठ, एक गांठ-170 किलो की हुई।

घरेलू वायदा कारोबार में कॉटन की कीमत में गिरावट का रुख रहा। एनसीडीईएक्स पर अप्रैल 26 महीने के वायदा अनुबंध में कपास के दाम 14 रुपये कमजोर होकर 1,520 रुपये प्रति 20 किलो रह गए। आईसीई के इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग में कॉटन की कीमतों में तेजी का रुख रहा।

केंद्र सरकार ने कॉटन के आयात पर शून्य शुल्क की समय सीमा को 30 सितंबर 2025 से बढ़ाकर 31 दिसंबर 2025 किया हुआ है।

व्यापारियों के अनुसार गुजरात में कॉटन की कीमत स्थिर हो गई, जबकि इस दौरान उत्तर भारत के राज्यों में सुधार आया। व्यापारियों के अनुसार जिनिंग मिलों की बिक्री कमजोर है इसलिए इसके भाव में हल्का सुधार और भी बन सकता है। हालांकि कॉटन की कुल उपलब्धता घरेलू बाजार में ज्यादा है। सीसीआई घरेलू बाजार में लगातार पिछले साल की खरीदी हुई कॉटन बेच रही है। अत: मिलों को आसानी से कच्चा माल मिल रहा है। इसलिए स्पिनिंग मिल कॉटन की खरीद जरुरत के हिसाब से ही कर रही है। ऐसे में कॉटन की कीमतों में अभी बड़ी तेजी के आसार कम है। सूती धागे में घरेलू मांग तो अच्छी है, लेकिन निर्यात सौदे कम हो रहे हैं।

चालू पेराई सीजन में नवंबर अंत तक चीनी का उत्पादन 50 फीसदी बढ़ा - एनएफसीएसएफ

नई दिल्ली। पहली अक्टूबर 2025 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन (अक्टूबर-25 से सितंबर-26) में नवंबर अंत तक चीनी का उत्पादन 50 फीसदी बढ़कर 41.35 लाख टन का हो चुका है, जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में इसका उत्पादन केवल 27.60 लाख टन का ही हुआ था।


नेशनल फेडरेशन ऑफ को ऑपरेटिव शुगर फैक्ट्री लिमिटेड (एनएफसीएसएफ) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार चालू पेराई सीजन में 30 नवंबर 2025 तक 486 लाख टन गन्ने की पेराई हो चुकी है, जबकि पिछले पेराई सीजन में इस दौरान केवल 334 लाख टन गन्ने की पेराई ही हो पाई थी। नवंबर के आखिर तक औसत चीनी की रिकवरी 8.51 फीसदी की बैठ रही है, जबकि पिछले साल इसी तारीख को यह 8.27 फीसदी की दर्ज की गई थी।

महाराष्ट्र और कर्नाटक के कुछ इलाकों को छोड़कर जहां किसानों का आंदोलन चल रहा है, गन्ना पेराई का काम अभी पूरे देश में जोरों पर है। एनएफसीएसएफ के अनुसार चालू पेराई में कुल चीनी का उत्पादन 350 लाख टन होने का अनुमान है। इस दौरान एथेनॉल के उत्पादन में लगभग 35 लाख टन चीनी का इस्तेमाल होने की उम्मीद है। अत: चालू पेराई सीजन में कुल 315 लाख टन चीनी का उत्पादन। प्रमुख उत्पादक राज्य महाराष्ट्र में चालू पेराई सीजन में 110 लाख टन, उत्तर प्रदेश में 105 लाख टन, कर्नाटक में 55 लाख टन तथा गुजरात में 8 लाख टन चीनी के उत्पादन का अनुमान है।

देश में चीनी की सालाना खपत 290 लाख टन होने का अनुमान है, जबकि चालू पेराई सीजन के आरंभ में 50 लाख टन चीनी का बकाया स्टॉक बचा हुआ था। ऐसे में चालू पेराई सीजन के अंत में चीनी मिलों के गोदामों में लगभग 75 लाख टन चीनी का बकाया स्टॉक बचेगा। ऐसे में उद्योग केंद्र सरकार ने 10 लाख टन और चीनी के निर्यात की अनुमति देने की मांग कर रहा है। इस कदम से न सिर्फ घरेलू चीनी की कीमतों में मजबूती आएगी।

उद्योग लंबे समय से चीनी के न्यूनतम बिक्री मूल्य, एमएसपी में बढ़ोतरी नहीं करने से उलझन और अनिश्चितता का सामना कर रहा है। एनएफसीएसएफ ने एक रिलीज में कहा कि चीनी न्यूनतम बिक्री मूल्य बढ़कर 41 रुपये प्रति किलो करने की जरूरत है। 

राजस्थान में गेहूं एवं चना के साथ ही सरसों की बुआई में बढ़ोतरी

नई दिल्ली। चालू रबी सीजन में राजस्थान में तय लक्ष्य के 85 फीसदी क्षेत्रफल में फसलों की बुवाई हो चुकी  है। चना के साथ ही सरसों एवं गेहूं की बुआई पिछले साल की तुलना में बढ़ी है।


राज्य के कृषि निदेशालय के अनुसार 27 नवंबर तक राज्य में रबी फसलों की बुआई 101.95 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में केवल 90.50 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई थी। चालू रबी सीजन में राज्य में 120.15 लाख हेक्टेयर में फसलों की बुआई का लक्ष्य तय किया है।

चालू रबी सीजन में तिलहनी फसलों की बुआई राज्य में बढ़कर 34.58 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक केवल 33.18 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हो पाई थी। तिलहनी फसलों में सरसों की बुआई बढ़कर 33.25 लाख हेक्टेयर में, तारामीरा की 1.22 लाख हेक्टेयर में हुई है, जबकि पिछले रबी की समान अवधि में इनकी बुआई क्रमश: 32.30 लाख हेक्टेयर और 78,000 हेक्टेयर में ही हुई थी।

रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की बुआई राज्य में चालू रबी सीजन में बढ़कर 20.79 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में इस समय तक 16.55 लाख हेक्टेयर में ही इसकी बुआई हुई थी। अन्य रबी दलहन की बुआई 28 हजार हेक्टेयर में हो चुकी है जोकि पिछले साल की समान अवधि के 38 हजार हेक्टेयर की तुलना में कम है।

चालू रबी सीजन में राज्य में गेहूं की बुआई बढ़कर 27.56 लाख हेक्टेयर में और जौ की बुआई 3.67 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई क्रमश: 21.46 लाख हेक्टेयर एवं 3.12 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।

29 नवंबर 2025

महाराष्ट्र में 165 चीनी मिलों में गन्ने की पेराई आरंभ, 15.14 लाख टन हो चुका है उत्पादन

नई दिल्ली। पहली अक्टूबर 2025 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन (अक्टूबर-25 से सितंबर-26) में 27 नवंबर तक महाराष्ट्र में 165 चीनी मिलों ने पेराई आरंभ कर दी है तथा इस दौरान राज्य में 15.14 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है।


शुगर कमिश्नर के अनुसार 27 नवंबर के आखिर तक राज्य में 194.09 लाख टन गन्ने की पेराई हो चुकी है और 15.14 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है। राज्य की औसत चीनी रिकवरी 7.8 फीसदी की है। राज्य में 27 नवंबर के आखिर तक कुल 165 फैक्ट्रियों (85 कोऑपरेटिव और 80 प्राइवेट) ने पेराई सीजन आरंभ कर दी है।

पिछले सीजन में इसी समय तक राज्य में केवल 150 चीनी फैक्ट्रियों (69 कोऑपरेटिव और 81 प्राइवेट) ने ही पेराई आरंभ की थी। पिछले साल की समान अवधि में राज्य में 58.33 लाख टन गन्ने की पेराई की थी और 3.87 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। औसत चीनी की रिकवरी दर 6.65 फीसदी की थी।

कोल्हापुर डिवीजन ने 45.69 लाख टन गन्ने की पेराई हो चुकी है और 41.51 लाख क्विंटल चीनी का उत्पादन किया है। कोल्हापुर डिवीजन में रिकवरी की दर 9.09 फीसदी है। डिवीजन में 32 फैक्ट्रियां ( 22 को ऑपरेटिव और 10 प्राइवेट) में पेराई चल रही हैं। कई चीनी फैक्ट्रियों ने किसानों के अकाउंट में पेराई किए गए गन्ने की पहली किस्त जमा करना शुरू कर दिया है।

इस तरह से पुणे डिवीजन में कुल 27 फैक्ट्रियां (17 कोऑपरेटिव और 10 प्राइवेट) ने पेराई आरंभ कर दी हैं। उन्होंने अब तक 46.85 लाख टन गन्ने की पेराई की है और 38.93 लाख क्विंटल चीनी का उत्पादन किया है। पुणे डिवीजन में गन्ने में रिकवरी की दर 8.31 फीसदी है। सोलापुर डिवीजन गन्ना पेराई में तीसरे नंबर पर है। जिले में कुल 36 फैक्ट्रियां (13 कोऑपरेटिव और 23 प्राइवेट) ने पेराई आरंभ कर दी है तथा अब तक डिवीजन में 41.49 लाख टन गन्ने की पेराई हो चुकी है और 29.52 लाख क्विंटल चीनी का उत्पादन हुआ है। डिवीजन में रिकवरी दर 7.11 फीसदी की बैठ रही है।

राज्य का अहमदनगर (अहिल्यानगर) डिवीजन गन्ना पेराई में चौथे नंबर पर है। इस डिवीजन में कुल 22 फैक्ट्रियां (13 कोऑपरेटिव और 9 प्राइवेट) ने पेराई आरंभ कर दी है तथा इन सभी फैक्ट्रियों ने अब तक 24.61 लाख टन गन्ने की पेराई की है और 17.42 लाख क्विंटल चीनी का उत्पादन किया है। अहमदनगर डिवीजन में चीनी की रिकवरी दर 7.08 फीसदी है।

छत्रपति संभाजीनगर और नांदेड़ डिवीजन गन्ना पेराई में पांचवें और छठे नंबर पर हैं। छत्रपति संभाजीनगर डिवीजन में कुल 18 शुगर फैक्ट्रियां (10 कोऑपरेटिव और 8 प्राइवेट) ने पेराई शुरू कर दी हैं तथा उन्होंने 17.64 लाख टन गन्ने की पेराई की है और 11.4 लाख क्विंटल चीनी का उत्पादन किया है। गन्ने में रिकवरी की दर 6.46 फीसदी है।

नांदेड़ डिवीजन में कुल 28 फैक्ट्रियां चल रही हैं (10 कोऑपरेटिव और 18 प्राइवेट) और उन्होंने 16.32 लाख टन गन्ने की पेराई की है और 11.51 लाख क्विंटल चीनी का उत्पादन किया है।

राजस्थान में रबी फसलों की बुआई 78 फीसदी पूरी, चना एवं सरसों तथा गेहूं की ज्यादा

नई दिल्ली। चालू रबी सीजन में राजस्थान में तय लक्ष्य के 78 फीसदी क्षेत्रफल में फसलों की बुवाई हो चुकी  है। चना के साथ ही सरसों एवं गेहूं की बुआई पिछले साल की तुलना में बढ़ी है।


राज्य के कृषि निदेशालय के अनुसार 24 नवंबर तक राज्य में रबी फसलों की बुआई 94.03 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में केवल 86.52 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई थी। चालू रबी सीजन में राज्य में 120.15 लाख हेक्टेयर में फसलों की बुआई का लक्ष्य तय किया है।

चालू रबी सीजन में तिलहनी फसलों की बुआई राज्य में बढ़कर 34.05 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक केवल 32.49 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हो पाई थी। तिलहनी फसलों में सरसों की बुआई बढ़कर 32.80 लाख हेक्टेयर में, तारामीरा की 1.14 लाख हेक्टेयर में हुई है, जबकि पिछले रबी की समान अवधि में इनकी बुआई क्रमश: 31.64 लाख हेक्टेयर और 74,000 हेक्टेयर में ही हुई थी।

रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की बुआई राज्य में चालू रबी सीजन में बढ़कर 20.28 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में इस समय तक 18.53 लाख हेक्टेयर में ही इसकी बुआई हुई थी। अन्य रबी दलहन की बुआई 23 हजार हेक्टेयर में हो चुकी है जोकि पिछले साल की समान अवधि के 36 हजार हेक्टेयर की तुलना में कम है।

चालू रबी सीजन में राज्य में गेहूं की बुआई बढ़कर 25.42 लाख हेक्टेयर में और जौ की बुआई 3.22 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई क्रमश: 18.53 लाख हेक्टेयर एवं 2.89 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।

खरीफ सीजन में खाद्यान्न का उत्पादन 17.33 करोड़ टन होने की उम्मीद -कृषि मंत्रालय

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने खरीफ सीजन 2025-26 में उत्पादन के पहले अग्रिम अनुमान जारी कर दिये हैं। मंत्रालय द्वारा इस संबंध में जारी सूचना के मुताबिक खरीफ सीजन में खाद्यान्न का उत्पादन 17.33 करोड़ टन होने का अनुमान है जो कि पिछले खरीफ सीजन 2024-25 के उत्पादन के मुकाबले 38.70 लाख टन अधिक है।


केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बताया कि देश में कुछ क्षेत्रों में अत्यधिक वर्षा ने फसलों को प्रभावित किया, लेकिन ज्यादातर क्षेत्रों को अच्छे मानसून से काफी लाभ हुआ है, इससे कुल मिलाकर फसलों की अच्छी वृद्धि हुई है। पहले अग्रिम अनुमान के अनुसार, वर्ष 2025-26 के दौरान खरीफ सीजन की प्रमुख फसल चावल का उत्पादन 1245.04 लाख टन अनुमानित है, जो कि गत वर्ष के खरीफ चावल उत्पादन से 17.32 लाख टन ज्यादा है। चालू खरीफ सीजन में मक्का का उत्पादन 283.03 लाख टन अनुमानित है, जो कि गत वर्ष के खरीफ मक्का उत्पादन से 34.95 लाख टन अधिक है।

केंद्रीय कृषि मंत्री ने बताया कि पहले अग्रिम अनुमान के अनुसार वर्ष 2025-26 के दौरान कुल खरीफ पोषक/मोटे अनाजों का उत्पादन 414.14 लाख टन और कुल खरीफ दलहन उत्पादन 74.13 लाख टन होने का अनुमान है, जिसमें अरहर का उत्पादन 35.97 लाख टन, उड़द का उत्पादन 12.05 लाख टन तथा मूंग का उत्पादन 17.20 लाख टन होने का अनुमान है।

फसल सीजन 2025-26 के दौरान देश में खरीफ सीजन में तिलहनी फसलों का कुल उत्पादन 275.63 लाख टन होने का अनुमान है। इसमें 110.93 लाख टन मूंगफली के उत्पादन का अनुमान शामिल है, जो कि पिछले वर्ष की तुलना में 6.81 लाख टन अधिक है और सोयाबीन का उत्पादन 142.66 लाख टन होने का अनुमान है।

इस दौरान गन्ने का उत्पादन 4,756.14 लाख टन होने का अनुमान है, जो कि पिछले वर्ष की तुलना में 210.03 लाख टन बढ़ने का अनुमान है। कपास का उत्पादन 292.15 लाख गांठ (एक गांठ 170 किलोग्राम) तथा पटसन एवं मेस्ता का उत्पादन 83.45 लाख गांठ (एक गांठ 180 किलोग्राम) के उत्पादन का अनुमान है।

मंत्रालय के मुताबिक यह अनुमान गत वर्षों की उपज प्रवृत्तियों, अन्य जमीनी स्तर के इनपुट और क्षेत्रीय अवलोकन तथा मुख्यतः राज्यों से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर तैयार किए गए हैं। फसल कटाई प्रयोगों से प्राप्त वास्तविक उपज आंकड़े आने पर इसमें संशोधन किया जाएगा।

केंद्र सरकार ने दिसंबर 2025 के लिए 22 लाख चीनी का कोटा जारी किया

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने दिसंबर 2025 के लिए 22 लाख टन चीनी का कोटा जारी किया है, जो कि दिसंबर 2024 के लिए जारी किए गए कोटे के बराबर है। नवंबर 2025 में केंद्र सरकार ने घरेलू बिक्री के लिए 20 लाख टन चीनी का कोटा जारी किया था।

जानकारों के अनुसार फसल सीजन 2023-24 (अक्टूबर 2023 से सितंबर 2024) के दौरान कुल कोटा 291.50 लाख टन का जारी किया था, जबकि 2024-25 सीजन के दौरान (अक्टूबर 2024 से सितंबर 2025) के लिए चीनी का कोटा 275.50 लाख टन का जारी किया था। व्यापारियो के मुताबिक दिसंबर 2025 के लिए 22 लाख टन चीनी कोट जारी होने से बाजार में इसकी कीमतों में तेजी की संभावना नहीं है। गन्ने का पेराई सीजन होने के कारण बाजार में ओवरसप्लाई होने का अनुमान है।

दिल्ली में बुधवार को एम 30 ग्रेड चीनी के थोक दाम 4,360 रुपये और कानपुर में 4,340 रुपये तथा रायपुर में 4,300 रुपये और मुंबई में 4,100 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर हो गए।

26 नवंबर 2025

बागवानी फसलों की पैदावार में बढ़ोतरी, प्याज उत्पादन में 27 फीसदी बढ़ने का अनुमान

नई दिल्ली। देश में बागवानी फसलों का उत्पादन इस बार नए रिकॉर्ड बना रहा है। प्याज उत्पादन में 27 फीसदी का बड़ा उछाल देखने को मिला है, जबकि आलू और टमाटर का उत्पादन भी लगातार बढ़ रहा है।


केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा जारी 2024-25 के तीसरे अग्रिम अनुमान बताते हैं कि किसानों की मेहनत, नई तकनीक और सरकारी योजनाओं की वजह से देश की बागवानी फसलें तेजी से बढ़ रही हैं। इस बढ़ोतरी ने न सिर्फ किसानों को नई उम्मीद दी है, बल्कि भारत को बागवानी क्षेत्र में और मजबूत बना दिया है।

इस साल बागों का कुल एरिया 29.086 मिलियन हेक्टेयर से बढ़कर 29.488 मिलियन हेक्टेयर होने का अनुमान है। यह लगभग 400,000 हेक्टेयर की बढ़ोतरी है। सरकार का कहना है कि बेहतर बीज, सिंचाई की सुविधा, मॉडर्न टेक्नोलॉजी और ट्रेनिंग प्रोग्राम बागों के एरिया को बढ़ाने में मदद कर रहे हैं।

उत्पादन के मामले में भी इस साल बहुत अच्छा प्रदर्शन देखने को मिला है। पिछले वर्ष कुल उत्पादन 3547.44 लाख टन का था, जो कि इस बार बढ़कर 3690.55 लाख टन होने की उम्मीद है। किसानों की बढ़ती जागरूकता,खेती के आधुनिक तरीके और उपजाऊ फसलों का चयन कुल उत्पादन बढ़ाने में काफी मददगार साबित हुआ।

फलों के उत्पादन में इस साल लगभग 5.12 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है तथा कुल फल उत्पादन 1187.60 लाख टन रहने का अनुमान है। केला, आम, तरबूज, कटहल, पपीता, मंदारिन और अमरूद जैसे प्रमुख फलों का उत्पादन बढ़ा है। सरकार ने बताया कि फलों की खेती में नई तकनीक, पौध गुणवत्ता और वैज्ञानिक सहायता से काफी सुधार हुआ है।

सब्जियों के उत्पादन में भी महत्वपूर्ण बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। इस साल सब्जियों का कुल उत्पादन 2156.84 लाख टन होने की संभावना है। खास तौर पर प्याज के उत्पादन में 26.88 फीसदी की बड़ी वृद्धि हुई है। पिछले साल प्याज का उत्पादन 242.67 लाख टन था, जो इस बार बढ़कर 307.89 लाख टन होने की उम्मीद है। आलू का उत्पादन भी बढ़कर 581.08 लाख टन तक पहुंचने का अनुमान है।

मसालों और औषधीय पौधों की खेती में भी अच्छी प्रगति हुई है। मसाला उत्पादन 124.84 लाख टन से बढ़कर 125.03 लाख टन होने का अनुमान है। लहसुन, अदरक और हल्दी जैसे मसालों का उत्पादन बढ़ा है। औषधीय और सुगंधित पौधों का उत्पादन पिछले साल 7.26 लाख टन था, जो इस बार बढ़कर 7.81 लाख टन होने की उम्मीद है। इसके साथ ही टमाटर का उत्पादन भी बढ़कर 194.68 लाख टन तक पहुंचने की संभावना है।

केंद्रीय कृषि मंत्री ने बताया कि सरकार किसानों के लिए नई तकनीक और आधुनिक उपकरण उपलब्ध करा रही है। इससे उत्पादन में सुधार हो रहा है और किसानों की आय भी बढ़ रही है। बाजार तक आसान पहुंच, भंडारण सुविधा, प्रसंस्करण इकाइयों का विस्तार और प्रशिक्षण कार्यक्रम किसानों की मदद कर रहे हैं कि वे अपनी फसलों का बेहतर मूल्य प्राप्त कर सकें।

चालू रबी में गेहूं एवं दलहन के साथ ही तिलहनी फसलों की बुआई बढ़ी - कृषि मंत्रालय

नई दिल्ली। चालू रबी सीजन में फसलों की बुआई बढ़कर 306.31 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई केवल 272.78 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी। गेहूं के साथ ही दलहन एवं तिलहनी फसलों की बुआई में बढ़ोतरी हुई है।  


कृषि मंत्रालय के अनुसार 21 नवंबर तक रबी सीजन की प्रमुख फसल गेहूं की बुआई बढ़कर 128.37 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल इस समय तक कुल 107.09 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।

चालू रबी में दलहनी फसलों की बुआई बढ़कर 73.36 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 68.15 लाख हेक्टेयर से ज्यादा है। रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की बुआई चालू रबी सीजन में बढ़कर 53.71 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में इस समय तक 49.30 लाख हेक्टेयर में ही इसकी बुआई हुई थी।

अन्य रबी दलहन में मसूर की बुआई बढ़कर 9.01 लाख हेक्टेयर में तथा मटर की 5.58 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है। पिछले साल की समान अवधि में इनकी बुआई क्रमश: 8.57 लाख हेक्टेयर में और 4.80 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।

चालू रबी सीजन में तिलहनी फसलों की बुआई देशभर में बढ़कर 76.64 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक केवल 72.69 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हो पाई थी। तिलहनी फसलों में सरसों की बुआई बढ़कर 73.80 लाख हेक्टेयर में हो चुकी जबकि पिछले साल इस समय तक 69.58 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हो पाई थी। हालांकि मूंगफली की बुआई घटकर 1.12 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है, जबकि पिछले साल इस समय तक 1.27 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।

चालू रबी सीजन में राज्य में धान की रोपाई बढ़कर 8.26 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल इस समय तक केवल 7.59 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।

मोटे अनाजों की बुवाई चालू रबी में बढ़कर 19.69 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 17.26 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी। मोटे अनाजों में ज्वार की 8.99 लाख हेक्टेयर और मक्का की 6.57 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई क्रमश: 8.43 और 5.38 लाख हेक्टेयर में हुई थी।

जौ की बुआई चालू रबी सीजन में बढ़कर 3.50 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 3 लाख हेक्टेयर से ज्यादा है।

साफ्टा के तहत नेपाल से साफ्टा के तहत नेपाल से जीरो ड्यूटी पर रिफाइंड खाद्य तेलों का आयात चिंताजनक - एसएआई


नई दिल्ली। साफ्टा एग्रीमेंट के तहत नेपाल के रिफाइनर हर महीने लगभग 70,000 से 80,000 टन रिफाइंड सोया और सूरजमुखी तेल भारत में जीरो ड्यूटी पर निर्यात कर रहे हैं, जोकि घरेलू उद्योग के लिए चिंताजनक है।

सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अध्यक्ष संजीव अस्थाना के अनुसार जुलाई में, केंद्र सरकार ने रिफाइंड तेलों के ज्यादा आयात को रोकने के लिए क्रूड और रिफाइंड तेलों के बीच ड्यूटी का अंतर 8.25 फीसदी से बढ़ाकर 19.25 फीसदी कर दिया था। यह तरीका असरदार साबित हुआ है और इससे आरबीडी पाम तेल का आयात लगभग बंद हो गया है। लेकिन, साफ्टा एग्रीमेंट के तहत एक नया मुद्दा सामने आया है, जिसमें नेपाल के रिफाइनर ने बड़ी मात्रा में  हर महीने लगभग 70,000 से 80,000 टन रिफाइंड सोया और सूरजमुखी तेल भारत को  जीरो ड्यूटी पर निर्यात करना शुरू कर दिया है। इस मुद्दे को रेगुलेट करने के लिए, एसोसिएशन ने माननीय केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के सामने जोर देकर कहा है कि पड़ोसी देशों से आने वाले तेलों के लिए नेफेड या दूसरी सरकारी एजेंसियों के जरिए ऐसे आयात को चैनलाइज करने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि सरकार ने तिलहन उत्पादन को बढ़ावा देने और खाने के तेल के आयात पर हमारी निर्भरता कम करने के लिए तिलहन पर टेक्नोलॉजी मिशन शुरू किया है, जो अभी भी हमारी घरेलू जरूरत का लगभग 60 फीसदी है। खाने के तेल के आयात की मात्रा पिछले साल के 160 लाख टन के स्तर के आसपास ही रही है। हालांकि, आयात वैल्यू 1.31 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 1.61 लाख करोड़ रुपये हो गई है, जो 18.3 बिलियन डॉलर के बराबर है। यह सरकार और इंडस्ट्री दोनों के लिए चिंता की बात है, क्योंकि हमारी आयात निर्भरता कम नहीं हुई है, जबकि आयात बिल तेजी से बढ़ा है। तिलहन के लिए एमएसपी में बढ़ोतरी के बावजूद, एमएसपी को और समझदारी से कैलकुलेट करने की तुरंत जरूरत है, क्योंकि चावल और गेहूं के लिए मौजूदा एमएसपी स्ट्रक्चर किसानों को तिलहन की खेती से दूर कर रहा है।

हम भारत सरकार को 1 लाख करोड़ रुपये की रिसर्च, डेवलपमेंट और इनोवेशन (आरडीआई) स्कीम शुरू करने के लिए बधाई देते हैं, जो टेक्नोलॉजी से चलने वाली ग्रोथ को बढ़ावा देने के लिए एक दूरदर्शी कदम है। डीप-टेक, एग्री-टेक, बायोटेक्नोलॉजी, क्लीन एनर्जी और दूसरे उभरते सेक्टर में हाई-रिस्क, हाई-इम्पैक्ट रिसर्च के लिए लंबे समय की, कम लागत वाली फाइनेंसिंग देकर, यह स्कीम हमारी खाने की तेल इंडस्ट्री के लिए नए मौके बनाती है। यह बेहतर तिलहन किस्मों, क्लाइमेट-रेजिलिएंट खेती, प्रिसिजन एग्रीकल्चर, प्रोसेसिंग ऑप्टिमाइजेशन और डिजिटल ट्रेसेबिलिटी में इनोवेशन को तेज कर सकती है, जिससे आयात पर निर्भरता कम करने और हमारे खाने के तेल सेक्टर की घरेलू क्षमता को मजबूत करने में मदद मिलेगी।

हम सरकार की 25,060 करोड़ रुपये के एक्सपोर्ट प्रमोशन मिशन (ईपीएम) को मंजूरी का भी स्वागत करते हैं, जो निर्यात स्कीम को एक सिंगल, डिजिटल और नतीजे पर आधारित प्लेटफार्म में जोड़ता है। निर्यात प्रोत्साहन और निर्यात दिशा के जरिए, यह मिशन ट्रेड फाइनेंस तक पहुंच को आसान बनाएगा, कंप्लायंस का बोझ कम करेगा, और एमएसएमई और लेबर-इंटेंसिव सेक्टर के लिए मार्केट की तैयारी को बढ़ाएगा।

उन्होंने कहा कि एसईए को इन दोनों स्कीम का इस्तेमाल करके भारत की खेती और उससे जुड़ी चीजों/बाय-प्रोडक्ट्स के लिए लोकल और ग्लोबल मार्केट में मौके बढ़ाने की काफी संभावना दिखती है। इन दोनों स्कीम का लॉन्च वाकई एक अच्छा कदम है।

हमें यह भी उम्मीद है कि कृषि विभाग अपनी वेबसाइट पर “ऑल इंडिया क्रॉप सिचुएशन” के तहत तिलहन समेत अलग-अलग फसलों पर हर सप्ताह बुआई का अपडेट डेटा फिर से शुरू करेगा, जिसे पिछले साल से बंद कर दिया गया था। यह डेटा ऑयल मील बनाने वालों/एक्सपोर्ट करने वालों, वेजिटेबल ऑयल के आयात करने वालों के लिए मददगार था क्योंकि इससे फसल की स्थिति को समझने और आयात और निर्यात से जुड़े प्लान के लिए गए फैसले लेने में मदद मिली है।

कृषि मंत्रालय द्वारा जारी डेटा से पता चलता है कि 14 नवंबर तक, रबी फसलों के तहत तिलहन का रकबा में 3 लाख हेक्टेयर की बढ़ोतरी होकर कुल रकबा 86.8 लाख हेक्टेयर हो गया। सरसों के किसानों को अच्छी कीमत मिलने की वजह से, रकबा लगभग 3.7 लाख हेक्टेयर बढ़ गया है। राजस्थान में सरसों की फसल की बुआई सबसे अधिक है तथा यहां लगभग 30.5 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी है, जो नॉर्मल बुआई एरिया का 85 फीसदी है। सरसों के दाम 6,200 रुपये प्रति क्विंटल के एमएसपी से ज्यादा है, जिससे किसान रकबा बढ़ा रहे हैं। अगर मौसम अच्छा रहा, तो हम इस सीजन में पिछले साल के मुकाबले 8 से 10 लाख टन उत्पादन बढ़ने की उम्मीद कर सकते हैं। 

राजस्थान में रबी फसलों की बुआई 73 फीसदी पूरी, चना के साथ ही सरसों की बढ़ी

नई दिल्ली। चालू रबी सीजन में राजस्थान में 73 फीसदी क्षेत्रफल में फसलों की बुवाई हो चुकी  है। चना के साथ ही सरसों एवं गेहूं की बुआई पिछले साल की तुलना में बढ़ी है।


राज्य के कृषि निदेशालय के अनुसार 20 नवंबर तक राज्य में रबी फसलों की बुआई 88.24 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में केवल 78.67 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई थी। चालू रबी सीजन में राज्य में 120.15 लाख हेक्टेयर में फसलों की बुआई का लक्ष्य तय किया है। ऐसे में तय लक्ष्य की 73 फीसदी बुआई पूरी हो चुकी है।

चालू रबी सीजन में तिलहनी फसलों की बुआई राज्य में बढ़कर 33.72 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक केवल 32.04 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हो पाई थी। तिलहनी फसलों में सरसों की बुआई बढ़कर 32.50 लाख हेक्टेयर में, तारामीरा की 1.12 लाख हेक्टेयर में हुई है, जबकि पिछले रबी की समान अवधि में इनकी बुआई क्रमश: 31.21 लाख हेक्टेयर और 73,000 हेक्टेयर में ही हुई थी।

रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की बुआई राज्य में चालू रबी सीजन में बढ़कर 19.90 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में इस समय तक 17.55 लाख हेक्टेयर में ही इसकी बुआई हुई थी। अन्य रबी दलहन की बुआई 22 हजार हेक्टेयर में हो चुकी है जोकि पिछले साल की समान अवधि के 29 हजार हेक्टेयर की तुलना में कम है।

चालू रबी सीजन में राज्य में गेहूं की बुआई बढ़कर 21.74 लाख हेक्टेयर में और जौ की बुआई 3 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई क्रमश: 14.81 लाख हेक्टेयर एवं 2.41 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।

चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में पीली मटर एवं मसूर तथा अरहर का आयात घटा, उड़द का बढ़ा

नई दिल्ली। चालू वित्त वर्ष 2025-26 की पहली छमाही अप्रैल से सितंबर के दौरान पीली मटर के आयात में 66 फीसदी की, मसूर के आयात में 49 फीसदी की एवं अरहर के आयात में 28 फीसदी की कमी आई है। हालांकि इस दौरान उड़द के आयात में 0.81 फीसदी की हल्की बढ़ोतरी दर्ज की गई।


वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार चालू वित्त वर्ष 202-26 के पहली छमाही अप्रैल-25 से सितंबर-26 के दौरान पीली मटर का आयात 66 फीसदी घटकर 3,42,082 टन का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका आयात 10,16,191 टन का हुआ था।

इसी तरह से चालू वित्त वर्ष 2025-26 के पहली छमाही में मसूर का आयात 49 फीसदी घटकर 2,28,253 टन का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका आयात 4,45,591 टन का हुआ था।

वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2025-26 के पहली छमाही अप्रैल से सितंबर के दौरान अरहर का आयात 28 फीसदी घटकर 3,97,264 टन का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका आयात 5,53,695 टन का हुआ था।

व्यापारियों के अनुसार चेन्नई में लेमन अरहर के भाव 725 डॉलर प्रति टन, सीएडंएफ है, जबकि हाजिर बाजार में इसके दाम 6,550 रुपये प्रति क्विंटल है। अत: इन भाव में आयातकों को 100 रुपये प्रति क्विंटल की डिस्पैरिटी का सामना करना पड़ रहा है।

चालू वित्त वर्ष 2025-26 के पहली छमाही अप्रैल से सितंबर के दौरान उड़द का आयात 0.81 फीसदी बढ़कर 3,99,612 टन का हो चुका है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका आयात 3,96,391 टन का ही हुआ था।

जानकारों के अनुसार चेन्नई में उड़द एसक्यू के भाव 810 डॉलर प्रति टन, सीएडंएफ हैं, जबकि हाजिर बाजार में इसके दाम 7,325 रुपये प्रति क्विंटल है। अत: इन भाव में आयातकों को 75 रुपये प्रति क्विंटल की डिस्पैरिटी का सामना करना पड़ रहा है।

कृषि मंत्रालय के अंतिम अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2024-25 के दौरान देश में दालों का उत्पादन बढ़कर 256.8 लाख टन का हुआ था, जोकि इसके पिछले फसल सीजन की समान अवधि के 242.5 लाख टन की तुलना में ज्यादा है।

अक्टूबर में कैस्टर तेल का निर्यात 5.20 फीसदी बढ़ा - एसईए



नई दिल्ली। अक्टूबर में देश से कैस्टर तेल का निर्यात 5.20 फीसदी बढ़कर 50,485 टन का हुआ है, जबकि पिछले साल अक्टूबर में इसका निर्यात केवल 47,950 टन का ही हुआ था।

सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, एसईए के अनुसार मूल्य के हिसाब से अक्टूबर में कैस्टर तेल का निर्यात 694.82 करोड़ रुपये का हुआ है, जो कि पिछले साल अक्टूबर के 598.41 करोड़ रुपये की तुलना में ज्यादा है।

एसईए के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2025-26 के पहले 7 महीनों अप्रैल से अक्टूबर के दौरान कैस्टर तेल का निर्यात 398,985 टन का ही हुआ है, जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि के दौरान इसका निर्यात 436,595 टन का हुआ था।

एसईए के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2025-26 के पहले 7 महीनों अप्रैल से अक्टूबर के दौरान मूल्य के हिसाब से कैस्टर तेल का निर्यात 5,315.28 करोड़ रुपये का हुआ है।

गुजरात में गुरुवार को कैस्टर सीड के भाव 1,330 से 1,360 रुपये प्रति 20 किलो पर स्थिर हो गए, जबकि दैनिक आवक 30 हजार बोरियों (1 बोरी=75 किलोग्राम) की हुई। राजकोट में कैस्टर तेल कमर्शियल के दाम 2 रुपये कमजोर होकर 1,373 रुपये प्रति 10 किलो रह गए, जबकि एफएसजी के दाम 1,385 रुपये प्रति 10 किलो पर स्थिर हो गए। राजस्थान में कैस्टर सीड की  आवक 5,000 बोरियों और सीधी मिलो में 3,000 बोरियों की आवक हुई।

व्यापारियों के अनुसार हाल ही में कैस्टर सीड के दाम तेज हुए, जिस कारण उत्पादक मंडियों में इसकी दैनिक आवकों में बढ़ोतरी हुई है।

कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2024-25 के दौरान कैस्टर सीड का उत्पादन 17.30 लाख टन का ही होने का अनुमान है, जोकि इसके पिछले फसल सीजन के दौरान उत्पादन 19.59 लाख टन का हुआ था।

20 नवंबर 2025

केंद्र ने राजस्थान एवं आंध्र प्रदेश से खरीफ फसलों की समर्थन मूल्य पर खरीद को दी मंजूरी

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने आंध्र प्रदेश और राजस्थान द्वारा भेजे गए मार्केट इंटरवेंशन स्कीम (एमआईएस) के तहत न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीफ फसलों की खरीद के प्रस्तावों को मंजूरी दे दी है। इस फैसले से दोनों राज्यों के किसानों को कुल 9,700 रुपये करोड़ से अधिक का आर्थिक सहारा मिलेगा।


केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में किसानों को उचित दाम और आय स्थिरता देना सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। मंज़ूर किए गए प्रस्ताव खरीफ सीजन के लिए किसानों को बड़ा राहत पैकेज प्रदान करेंगे।

राजस्थान से केंद्र सरकार ने समर्थन मूल्य पर मूंग, उड़द, मूंगफली और सोयाबीन की रिकॉर्ड स्तर पर खरीद की अनुमति दी है। इसके तहत राज्य से 3,05,750 टन मूंग एवं 1,68,000 टन उड़द के अलावा 5,54,750 टन मूंगफली तथा 2,65,750 टन सोयाबीन की खरीद को मंजूरी दी गई है।

राजस्थान से समर्थन मूल्य पर मूंग, उड़द, मूंगफली और सोयाबीन की खरीद के लिए 9,436 करोड़ रुपये का खर्च आयेगा। राज्य में पीओएस, आधारित सत्यापन, आधार-लिंक्ड डीबीटी भुगतान और खरीद प्रबंधन की तैयारी पहले से पूरी कर ली गई है ताकि किसानों को भुगतान तुरंत मिल सके।

इसी तरह से आंध्र प्रदेश से केंद्र सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य के तहत 37,273 टन मूंगफली की खरीद को मंजूरी दी है, जिसकी कुल कीमत 270.71 रुपये करोड़ बैठती है। इसके अलावा 97,887 टन प्याज की एमआईएस स्कीम के तहत खरीद को भी स्वीकृति दी गई है, जिसका मूल्य 24.47 रुपये करोड़ है। केंद्र एवं राज्य एजेंसियां इन खरीद कार्यों को पूरा करेंगी।

केंद्र सरकार का कहना है कि यह निर्णय किसानों को न्यायसंगत दाम, बाजार स्थिरता और सुरक्षित आय सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। केंद्र ने राज्यों को निर्देश दिया है कि वे खरीद कार्य सुचारू रूप से संचालित करें ताकि किसानों को किसी भी प्रकार की परेशानी न हो।

चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से अक्टूबर के दौरान डीओसी का निर्यात 3 फीसदी बढ़ा - एसईए

नई दिल्ली। चालू वित्त वर्ष 2025-26 के पहले सात महीनें अप्रैल से अक्टूबर के दौरान डीओसी के निर्यात में 3 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल निर्यात 2,464,303 टन का हुआ है, जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इनका निर्यात 2,388,327 टन का हुआ था।


सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, एसईए के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2025-26 के अक्टूबर में डीओसी के निर्यात में 21 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल निर्यात 371,235 टन का हुआ है, जबकि पिछले साल अक्टूबर में इसका निर्यात 305,793 टन का ही हुआ था।

भारत सरकार ने अधिसूचना संख्या 37/2025-26 दिनांक 3 अक्टूबर, 2025 को डी-ऑयल राइस ब्रान के निर्यात पर प्रतिबंध हटा लिया है, जिसके परिणामस्वरूप निर्यात फिर से शुरू हो गया है और अक्टूबर 2025 के दौरान वियतनाम और नेपाल को 14,589 टन डी-ऑयल राइस ब्रान का निर्यात किया गया।

चीन से भारी मांग के कारण सरसों डीओसी का निर्यात बढ़ा है और अप्रैल से अक्टूबर 2025 के दौरान इसका निर्यात बढ़कर 581,823 टन का हुआ है, जबकि पिछले वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात केवल 14,886 टन का ही हुआ था। हाल ही में कुछ नई कंपनियों ने भारतीय निर्यात निरीक्षण परिषद (ईआईसी) के माध्यम से जीएसीसी, चीन से संपर्क कर अपनी कंपनियों को चीन को सरसों डीओसी के निर्यात की अनुमति मांगी है। वर्तमान में भारतीय सरसों डीओसी की कीमत 217 अमेरिकी डॉलर बताई जा रही है, जबकि हैम्बर्ग एक्स-मिल में सरसों डीओसी की कीमत 244 अमेरिकी डॉलर है।

पिछले दो वर्षों में मूंगफली के उत्पादन में वृद्धि के कारण इसकी पेराई में वृद्धि हुई है और मूंगफली डीओसी के निर्यात को बढ़ावा मिला है। अक्टूबर 2025 में देश से 19,300 टन मूंगफली डीओसी का निर्यात किया गया, जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में केवल 7,823 टन मूंगफली डीओसी का निर्यात हुआ था। एसईए के फसल सर्वेक्षण के अनुसार, गुजरात में खरीफ मूंगफली की खेती का क्षेत्रफल पिछले वर्ष के 19.09 लाख हेक्टेयर से लगभग 3.0 लाख हेक्टेयर बढ़कर 22.02 लाख हेक्टेयर हो गया है और मूंगफली का उत्पादन 46.07 लाख टन अनुमानित है। पूरे भारत में मूंगफली की बुवाई का कुल क्षेत्रफल पिछले वर्ष के 49.96 लाख हेक्टेयर से 1.60 लाख हेक्टेयर कम होकर 48.36 लाख हेक्टेयर का गया।

भारतीय बंदरगाह पर अक्टूबर में सोया डीओसी का भाव कमजोर होकर 387 डॉलर प्रति टन रह गया, जबकि सितंबर में इसका दाम 398 डॉलर प्रति टन था। इस दौरान सरसों डीओसी का मूल्य अक्टूबर में भारतीय बंदरगाह पर बढ़कर 211 डॉलर प्रति टन का हो गया, जबकि सितंबर में इसका भाव 198 डॉलर प्रति टन था। इस दौरान कैस्टर डीओसी का दाम सितंबर के 101 डॉलर प्रति टन से कमजोर होकर अक्टूबर में 99 डॉलर प्रति टन रह गया।

चालू रबी में गेहूं एवं दलहन के साथ ही तिलहनी फसलों की बुआई बढ़ी

नई दिल्ली। चालू रबी सीजन में गेहूं के साथ ही दलहन एवं तिलहनी फसलों की बुआई में बढ़ोतरी हुई है। कृषि मंत्रालय के अनुसार 14 नवंबर तक देशभर में रबी फसलों की कुल बुआई 208.19 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में केवल 188.73 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई थी।


रबी सीजन की प्रमुख फसल गेहूं की बुआई बढ़कर 66.23 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल इस समय तक केवल 56.55 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।

चालू रबी में दलहनी फसलों की बुआई बढ़कर 52.82 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 48.93 लाख हेक्टेयर से ज्यादा है। रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की बुआई चालू रबी सीजन में बढ़कर 37.43 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में इस समय तक 34.04 लाख हेक्टेयर में ही इसकी बुआई हुई थी।

अन्य रबी दलहन में मसूर की बुआई बढ़कर 6.83 लाख हेक्टेयर में तथा मटर की 4.75 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है। पिछले साल की समान अवधि में इनकी बुआई क्रमश: 6.08 लाख हेक्टेयर में और 4.24 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।

चालू रबी सीजन में तिलहनी फसलों की बुआई देशभर में बढ़कर 66.17 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक केवल 62.93 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हो पाई थी। तिलहनी फसलों में सरसों की बुआई बढ़कर 64.23 लाख हेक्टेयर में हो चुकी जबकि पिछले साल इस समय तक 60.52 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हो पाई थी।

चालू रबी सीजन में राज्य में धान की रोपाई बढ़कर 7.44 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल इस समय तक केवल 6.82 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।

मोटे अनाजों की बुवाई चालू रबी में बढ़कर 15.53 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 13.50 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी। मोटे अनाजों में ज्वार की 8.82 लाख हेक्टेयर और मक्का की 4.26 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई क्रमश: 8.21 और 3.63 लाख हेक्टेयर में हुई थी।

जौ की बुआई चालू रबी सीजन में बढ़कर 1.83 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 1.22 लाख हेक्टेयर से ज्यादा है।

शुरूआती चरण में चीनी का उत्पादन 48 फीसदी बढ़ा, 325 मिलों में पेराई आरंभ

नई दिल्ली। पहली अक्टूबर 2025 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन 2025-26 (अक्टूबर से सितंबर) में अभी तक 10.50 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 7.10 लाख टन की तुलना में 47.88 फीसदी अधिक है।


राष्ट्रीय सहकारी चीनी कारखाना संघ लिमिटेड (एनएफसीएसएफ) के अनुसार देशभर में 325 चीनी मिलों में पेराई आरंभ हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक केवल 144 मिलों में ही पेराई आरंभ हुई थी।

चालू पेराई सीजन 2025-26 में अभी मिलों ने 128 लाख टन गन्ने की पेराई की है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 91 लाख टन की तुलना में ज्यादा है। इस दौरान गन्ने में औसत चीनी की रिकवरी दर 8.2 फीसदी आई है जोकि पिछले वर्ष की समान अवधि के 7.80 फीसदी के मुकाबले ज्यादा है।

देश में गन्ने का नया पेराई सीजन पहली अक्टूबर से शुरू होता है लेकिन इस वर्ष, यह देखा गया है कि मानसूनी बारिश अक्टूबर एवं महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में नवंबर तक जारी रही थी। जानकारों के अनुसार मानसून की वापसी में देरी हुई। साथ ही महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र के कुछ हिस्सों में हुई बेमौसम भारी बारिश के कारण सोयाबीन, ज्वार, दालें, मक्का, सब्जियों की फसल को नुकसान हुआ। अत: खेतों में खड़े गन्ने का वजन बढ़ने की उम्मीद के बावजूद, गीले खेतों के कारण समय पर कटाई नहीं हो पा रही है। इस स्थिति को देखते हुए, गन्ने के नए पेराई सत्र की शुरुआत में देरी हुई है। इसके अलावा, कर्नाटक और महाराष्ट्र में गन्ना मूल्य आंदोलन ने पूरे भारत में गन्ना पेराई को धीमा कर दिया। जानकारों के अनुसार पिछले गन्ना पेराई सीजन में भी देरी हुई थी, क्योंकि महाराष्ट्र में चुनावों थे। अत: गन्ने की पेराई पिछले सीजन में नवंबर के अंत तक शुरू हो पाई थी।

एनएफसीएसएफ के अनुसार नए पेराई सीजन में देरी से शुरुआत के बावजूद, देशभर में 350 लाख टन चीनी के उत्पादन का अनुमान है। प्रमुख उत्पादक राज्य महाराष्ट्र में चालू पेराई सीजन में लगभग 125 लाख टन, उत्तर प्रदेश में 110 लाख टन और कर्नाटक में 70 लाख टन चीनी के उत्पादन का अनुमान है। चालू पेराई सीजन में करीब 35 लाख टन चीनी के उत्पादन का अनुमानित उपयोग इथेनॉल उत्पादन में होने की उम्मीद है।

देश में चीनी की सालाना खपत करीब 290 लाख टन होने का अनुमान है, जबकि पहली अक्टूबर से शुरू हुए चालू पेराई सीजन के आरंभ में लगभग 50 लाख टन चीनी का बकाया स्टॉक बचा हुआ था। अत: घरेलू बाजार में 20-25 लाख टन चीनी का स्टॉक कुल खपत के मुकाबले ज्यादा है। केंद्र सरकार ने निर्यात के लिए 15 लाख टन चीनी की अनुमति दी है। अत: केंद्र सरकार द्वारा समय पर की गई इस अग्रिम घोषणा से बाजार की धारणा को स्थिर करने में मदद मिलेगी।

जनवरी से अप्रैल 2026 तक के निर्यात अवसर की अवधि केवल 2 महीने दूर है तथा जानकारों को उम्मीद है कि केंद्र सरकार चालू पेराई सीजन के मध्य तक और भी करीब 10 लाख की अनुमति दे सकती है। इससे चीनी मिल मालिकों को आंशिक रूप से राहत मिलेगी, जो पिछले 6 वर्षों से चीनी के न्यूनतम समर्थन मूल्य में संशोधन न होने और पिछले 3 वर्षों से इथेनॉल खरीद मूल्यों के स्थिर रहने के कारण अर्ध-मंदी की स्थिति में हैं।

केंद्र ने 15 लाख टन चीनी के निर्यात की अनुमति दी, विश्व बाजार में भाव में हल्का सुधार

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने पहली अक्टूबर 2025 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन 2025-26 (अक्टूबर से सितंबर) के लिए 15 लाख टन चीनी के निर्यात की अनुमति दी है। अत: भारत सरकार द्वारा उम्मीद से कम कोटे की अनुमति से जहां विश्व बाजार में चीनी की कीमतों में हल्का  सुधार आया, वहीं घरेलू बाजार में इसके दाम स्थिर बनी रहे।


केंद्र सरकार ने पिछले तीन चीनी सत्रों के दौरान चीनी के औसत उत्पादन को ध्यान में रखते हुए चालू पेराई सीजन में चीनी मिलों के बीच आनुपातिक आधार पर 15 लाख टन का निर्यात कोटा आवंटित किया गया है।

चीनी मिल, रिफाइनरी एवं निर्यातक द्वारा उल्लिखित मात्रा तक सभी ग्रेड की चीनी का निर्यात किया जा सकता है। पिछले तीन चीनी पेराई सत्रों में से कम से कम एक चीनी सत्र में संचालित होने वाली चीनी मिलों के बीच 15 लाख टन का निर्यात कोटा आनुपातिक आधार पर निर्धारित किया गया है, जिसमें पिछले तीन चालू चीनी पेराई सत्र पेराई सीजन 2022-23 एवं पेराई सीजन 2023-24 के अलावा पेराई सीजन 2024-25 के दौरान उनके औसत चीनी उत्पादन को ध्यान में रखा गया है। सभी चीनी मिलों को उनके तीन वर्षों के औसत चीनी उत्पादन का 5.286 फीसदी निर्यात कोटा आवंटित किया गया है।

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को लिखे पत्र में खाद्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि चालू पेराई सीजन के लिए केंद्र सरकार ने 15 लाख टन चीनी के निर्यात की अनुमति देने का निर्णय लिया है और शीरे पर 50 फीसदी निर्यात शुल्क को हटा दिया गया है।

घरेलू बाजार में शनिवार को चीनी की थोक कीमत स्थिर बनी रही। दिल्ली में एम 30 ग्रेड चीनी के दाम 4,320 रुपये और मुंबई में 4,120 रुपये तथा कोलकाता में 4,400 रुपये तथा हैदराबाद में 4,180 रुपये और कानपुर में 4,280 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर बने रहे।

चालू सप्ताह के अंत में शुक्रवार को आईसीई शुगर वायदा में तेजी देखने को मिली थी, क्योंकि भारत द्वारा अपेक्षा से कम निर्यात कोटा तय किए जाने और ब्राजील में शुगर मिक्स घटने से ग्लोबल सप्लाई आउटलुक से कीमतों को सहारा मिला। इसके साथ ही क्रूड ऑयल में मजबूती ने भी मार्केट सेंटीमेंट सुधारने में योगदान दिया।

चालू सप्ताह के अंत में मार्च आईसीई रॉ शुगर वायदा बढ़कर 14.96 सेंट प्रति पाउंड पर बंद हुआ था, जो 3 हफ्तों का ऊपरी स्तर है। दिसंबर लंदन व्हाइट शुगर भी इस दौरान बढ़कर 431.60 डॉलर प्रति टन पर बंद हुआ। रॉ–व्हाइट शुगर प्रीमियम में हल्की मजबूती देखी गई क्योंकि रिफाइंड शुगर की कीमतों में अधिक तेजी रही।

भारत के खाद्य मंत्रालय पेराई सीजन 2025–26 के लिए केवल 15 लाख टन चीनी के निर्यात की अनुमति दी है, जबकि बाजार 20 लाख टन की उम्मीद कर रहा था। कम कोटा से विश्व बाजार में भारत की सप्लाई सीमित रहने की संभावना है।

ब्राजील की मिलों ने अक्टूबर के दूसरे पखवाड़े में सिर्फ 46 फीसदी गन्ना शुगर प्रोडक्शन के लिए इस्तेमाल किया। अत: अधिक गन्ना एथेनॉल की ओर शिफ्ट होने से शुगर आउटपुट घटा, जिससे बाजार हल्का सपोर्ट मिला है।

एशियाई पाम तेल गठबंधन का लक्ष्य क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ाना - अतुल चतुर्वेदी

बाली, इंडोनेशिया 14 नवंबर 2025। एशियाई पाम तेल गठबंधन (एपीओए) के अध्यक्ष अतुल चतुर्वेदी ने 21वें इंडोनेशियाई पाम तेल सम्मेलन और 2026 मूल्य परिदृश्य (आईपीओसी 2025) के अवसर पर बोलते हुए इस बात पर ज़ोर दिया कि “एपीओए पाम उत्पादक और पाम उपभोक्ता देशों के बीच संबंधों को मजबूत करने के लिए है।”


उन्होंने कहा कि इसका गठन मुख्यतः क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ाने के साथ ही मिथकों को तोड़ने और पाम के सतत विकास को समर्थन देने के लिए किया गया है। आईपीओसी 2025 पाम तेल उद्योग के लिए एक प्रमुख वार्षिक वैश्विक मंच है, जिसने 12-14 नवंबर को इंडोनेशिया के बाली में आयोजित अपने दो दिवसीय प्रमुख कार्यक्रम में इस क्षेत्र के शीर्षस्थ लोगों को एक साथ लाया।

उद्योग के नेताओं, नीति निर्माताओं, व्यापारियों और नवप्रवर्तकों की इस प्रतिष्ठित सभा को संबोधित करते हुए और भारत के पाम तेल नीति संतुलन अधिनियम' पर जानकारी देते हुए, अतुल चतुर्वेदी ने एपीओए और सीपीओपीसी (पाम ऑयल उत्पादक देशों की परिषद) के बीच हाल ही में हस्ताक्षरित अत्यंत महत्वपूर्ण समझौता ज्ञापन का उल्लेख किया, जिससे सकारात्मक जनधारणा को बढ़ावा मिलने और पाम तेल से जुड़ी भ्रामक सोशल मीडिया की खबरों का समाधान होने की उम्मीद है। इस समझौता ज्ञापन पर इस वर्ष सितंबर में मुंबई में आयोजित सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, एसईए की 54वीं वार्षिक आम बैठक में हस्ताक्षर किए गए थे।

आयात के बारे में बात करते हुए उन्होंने बताया कि भारत के खाद्य तेल के आयात में पाम ऑयल की हिस्सेदारी लगभग 50 फीसदी है। आयात में भारत का हिस्सा सोया तेल (29 फीसदी) और सूरजमुखी तेल (21 फीसदी) से यह ज्यादा है। हालाँकि, सॉफ्ट ऑयल की बढ़ती मांग के कारण इसकी हिस्सेदारी 60 फीसदी से घटकर अब 50 फीसदी रह गई है।

भविष्य के बारे में उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे जीडीपी बढ़ेगी, निम्न और मध्यम आय वर्ग की क्रय शक्ति मजबूत होने की उम्मीद है, जिससे मांग में और तेजी आएगी। वर्तमान में, भारत में खाद्य तेल की खपत लगातार बढ़ रही है, हालांकि विभिन्न क्षेत्रों में खपत में काफी भिन्नता है क्योंकि समृद्ध क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति 25 किलोग्राम से अधिक खपत होती है जबकि गरीब क्षेत्रों में 10 किलोग्राम से कम खपत होती है, हालांकि औसत खपत लगभग 17.5 से 18.0 किलोग्राम प्रति व्यक्ति है।

पाम तेल के आयात में थाईलैंड प्रमुख रूप में उभरा है, जो कि भारत में पाम तेल के आयात में 10 फीसदी का योगदान देता है और लगातार बाजार में बढ़त बना रहा है, जबकि इंडोनेशिया, जो लगभग 48 फीसदी आयात करता है, की हिस्सेदारी में कमी आ रही है। मलेशिया से 30 फीसदी से बढ़कर 37 फीसदी की हो गई है जोकि मजबूत वृद्धि के संकेत हैं। आईपीओसी 2025 14 नवंबर को समाप्त हो गया है।

पाम ऑयल कॉन्क्लेव 2025 का आयोजन 6 दिसंबर 2025 को भोपाल होना है। यह कॉन्क्लेव एशियन पाम ऑयल अलायंस (एपीओए) के बैनर तले सॉलिडारिडाड रीजनल एक्सपर्टिस सेंटर (एसआरईसी) और दा सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के सहयोग से आयोजित किया जा रहा है। पाम ऑयल संवादों के माध्यम से धारणाओं को नया आकार देना जैसा कि स्वास्थ्य, बाजार, जलवायु विषय पर आधारित यह कॉन्क्लेव नीति निर्माताओं, उद्योग जगत के नेताओं और स्वास्थ्य विशेषज्ञों को एक साथ लाएगा ताकि भारत के खाद्य तेल पारिस्थिति की तंत्र में पाम तेल की उभरती भूमिका पर सार्थक संवाद को बढ़ावा दिया जा सके।

अक्टूबर में खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात 9 फीसदी घटा - एसईए

नई दिल्ली। अक्टूबर 2025 में खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात 9 फीसदी घटकर 1,332,173 टन का हुआ है, जबकि पिछले साल अक्टूबर में इनका आयात 1,459,814 टन का हुआ था। इस दौरान खाद्य तेलों का आयात 1,327,548 टन का एवं अखाद्य तेलों का आयात 4,625 टन का हुआ है।


सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार तेल वर्ष 2024 से 2025 के दौरान देश में खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात 1 फीसदी बढ़कर 163.6 लाख टन का हुआ है, जबकि इसके पिछले तेल वर्ष की समान अवधि में इनका आयात 162.3 लाख टन का हुआ था।

आपूर्ति और मांग के बीच के अंतर को पाटने के लिए भारत ने 1990 के दशक से खाद्य तेलों के आयात का सहारा लिया था। शुरुआती दौर में, आयात की मात्रा बहुत कम थी। हालांकि, पिछले 20 वर्षों (2004-05 से 2024-25) में आयात की मात्रा 2.2 गुना बढ़ गई है, जबकि आयात की लागत लगभग 15 गुना बढ़ गई है। तेल वर्ष 2024-25 में भारत को 160 लाख टन (16.0 मिलियन टन) खाद्य तेलों के आयात पर लगभग 1.61 लाख करोड़ रुपये (18.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर) खर्च करने होंगे।

साफ्टा समझौते के तहत नवंबर 2024 से अक्टूबर 2025 के दौरान नेपाल से भारत में शून्य शुल्क पर 7.5 लाख टन आयात हुआ है।

1 नवंबर, 2025 तक विभिन्न बंदरगाहों पर खाद्य तेलों का स्टॉक 1,003,000 टन (सीपीओ और सीपीकेओ 560,000 टन, आरबीडी पामोलिन 10,000 टन, डिगम्ड सोयाबीन तेल 270,000 टन, क्रूड सूरजमुखी तेल 160,000 टन और रेपसीड तेल 3,000 टन) अनुमानित है। घरेलू उत्पादन और खपत को ध्यान में रखते हुए पाइपलाइन स्टॉक 728,000 टन का है। 1 नवंबर, 2025 तक कुल स्टॉक 1,731,000 टन होने का अनुमान है, जबकि 1 अक्टूबर, 2025 तक कुल स्टॉक 1,985,000 टन था, जो अक्टूबर 2025 में आयात में आई कमी के कारण 254,000 टन कम हुआ है।

भारत सरकार ने 31 मई, 2025 से प्रभावित क्रूड और रिफाइंड तेलों के बीच शुल्क अंतर को 8.25 फीसदी से बढ़ाकर 19.25 फीसदी कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप रिफाइंड पाम तेल का आयात बंद हो गया। हालांकि साफ्टा समझौते के तहत शून्य शुल्क पर नेपाल से भारत को बड़ी मात्रा में रिफाइंड सोयाबीन और सूरजमुखी तेल का आयात हुआ। नवंबर 24-अक्टूबर 25 के दौरान 1,931,254 टन की तुलना में 1,737,228 टन रिफाइंड तेलों का आयात किया गया और नवंबर 23-अक्टूबर 24 में 14,031,317 टन की तुलना में 14,273,520 टन क्रूड तेल का आयात किया गया। आरबीडी पामोलीन के कम आयात के कारण रिफाइंड तेल के आयात का अनुपात 12 फीसदी से मामूली रूप से घटकर 11 फीसदी रह गया।

सोया तेल के आयात ने 2024-25 (नवंबर-अक्टूबर) के दौरान 54.7 लाख टन का नया रिकॉर्ड बनाया है, जिसने 2015-16 में 42.3 लाख टन के पिछले उच्च आयात को तोड़ दिया। नवंबर 2024 से अक्टूबर 2025 के दौरान, पाम तेल का आयात नवंबर 2023 से अक्टूबर 2024 के 9,015,574 टन से घटकर 7,582,742 टन रह गया। जबकि सोया तेल के आयात में तीव्र वृद्धि के कारण सॉफ्ट तेलों का आयात पिछले वर्ष की इसी अवधि के 6,946,996 टन से बढ़कर 8,428,006 टन का हो गया। इस दौरान पाम तेल की हिस्सेदारी 56 फीसदी से घटकर 47 फीसदी रह गई, जबकि सॉफ्ट ऑयल की हिस्सेदारी 44 फीसदी से बढ़कर 53 फीसदी की हो गई।

सितंबर के मुकाबले अक्टूबर में आयातित खाद्य तेलों के दाम भारतीय बंदरगाह पर कमजोर हुए हैं। अक्टूबर में आरबीडी पामोलिन का भाव भारतीय बंदरगाह पर घटकर 1,106 डॉलर प्रति टन रह गया, जबकि सितंबर में इसका भाव 1,119 डॉलर प्रति था। इसी तरह से क्रूड पाम तेल का भाव भारतीय बंदरगाह पर अक्टूबर में घटकर 1,148 डॉलर प्रति टन रह गया, जबकि सितंबर में इसका भाव 1,164 डॉलर प्रति टन था। क्रूड सोया तेल का भाव अक्टूबर में भारतीय बंदरगाह पर 1,181 डॉलर प्रति टन रह गया, जोकि सितंबर में इसका भाव 1,182 डॉलर प्रति टन था।