28 फ़रवरी 2014
एफएमसी के आदेश पर रोक लगाने से उच्च न्यायालय का इनकार
बंबई उच्च न्यायालय ने वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) के आदेश पर रोक लगाने की फाइनैंशियल टेक्नोलॉजीज इंडिया (एफटीआईएल) और इसके प्रवर्तक जिग्नेश शाह की याचिका आज खारिज कर दी।
एफएमसी ने एफटीआईएल को मल्टी-कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) में उसकी हिस्सेदारी 26 प्रतिशत से घटाकर 2 प्रतिशत पर लाने का आदेश दिया है। न्यायमूर्ति अभय ओका की अध्यक्षता वाली पीठ ने एफएमसी की आपत्ति के बाद एफटीआईएल को अंतरिम राहत देने से मना कर दिया।
पीठ ने कहा कि यह जनहित में नहीं होगा। पीठ एफटीआईएल और इसके प्रवर्तक की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें एफएमसी के हाल के आदेश को चुनौती दी थी। एफएमसी ने अपने आदेश में कहा था कि एफटीआईएल व शाह देश में कोई शेयर बाजार चलाने के लायक नहीं हैं। (BS Hindi)
चीनी का उत्पादन घटने के बावजूद तेजी नहीं: इक्रा
अगले अक्टूबर में समाप्त होने वाले मार्केटिंग वर्ष 2013-14 के दौरान देश में चीनी का उत्पादन घटने की संभावना है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी इक्रा की एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में अत्यधिक बारिश और महाराष्ट्र में पिछले साल सूखे के कारण उत्पादन प्रभावित हो सकता है।
रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में ज्यादा बारिश के अलावा किसानों का रुझान गन्ने की खेती में घटने के कारण चीनी का उत्पादन प्रभावित हो सकता है। महाराष्ट्र में पिछले साल सूखा के कारण गन्ने की फसल प्रभावित हुई थी। तमिलनाडु में भी कम बारिश होने कारण उत्पादन कम रहेगा। इक्रा का अनुमान है कि चीनी का उत्पादन 15 फीसदी कम रह सकता है।
इसके अलावा चालू सीजन में पेराई देरी से शुरू हो पाई क्योंकि गन्ने की खरीद के मूल्य का मसला सुलझ नहीं पाया। लेकिन पिछले साल का बकाया स्टॉक काफी ज्यादा 85 लाख टन रहने और विश्व बाजार में निर्यात कम होने के कारण चीनी की देश में सुलभता मांग से ज्यादा रहेगी।
इक्रा के सीनियर वाइस प्रेसीडेंट सब्यसाची मजूमदार ने कहा कि घरेलू बाजार में फिलहाल चीनी के दाम कम ही रहेंगे। उत्पादन में कमी आने के बावजूद सरप्लस स्टॉक और कमजोर निर्यात की वजह से तेजी को बल नहीं मिलेगा। इक्रा का मानना है कि चीनी मिलों को रॉ शुगर निर्यात करने के लिए 3333 रुपये प्रति टन सब्सिडी दिए जाने से भी निर्यात को ज्यादा समर्थन नहीं मिलेगा क्योंकि विश्व बाजार में मूल्य घट रहे हैं।
चीनी उद्योग में निवेश की संभावनाएं : विशेषज्ञ
6वीं शुगर एशिया 2014 कांफ्रेस यहां गुरुवार को शुरू हुई। विशेषज्ञों के अनुसार भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चीनी उत्पादक देश है। इस वजह से इस उद्योग में इंजीनियरिंग, टेक्नोलॉजी और कृषि क्षेत्र में निवेश की अच्छी संभावनाएं हैं। कांफ्रेंस के आयोजकों के बयान के अनुसार सरकार ने मिलों को पूरा उत्पादन खुले बाजार में बेचने की पूर्ण आजादी दे दी है।
यह सकारात्मक कदम है। इससे विलय, अधिग्रहण और नई मिलों की स्थापना का रास्ता खुलेगा। इस कांफ्रेस में अमेरिका, नीदरलैंड, चैक रिपब्लिक, टर्की, इराक, श्रीलंका, इंडोनेशिया और जर्मनी के उद्योग प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। (Business Bhaskar)
नए सीजन में 310 लाख टन गेहूं खरीद होगी
आर एस राणा : नई दिल्ली... | Feb 28,
एफसीआई सरकारी खरीद के लिए 12,076 केंद्र खोलेगी
रबी विपणन सीजन 2014-15 में गेहूं की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद करने के लिए भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) देशभर में 12,076 खरीद केंद्र खोलेगी। सबसे ज्यादा खरीद केंद्र उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में क्रमश: 6,025 और 3,000 हैं। खाद्य मंत्रालय ने अप्रैल से शुरू होने वाले रबी विपणन सीजन के लिए 310 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य किया है।
खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिजनेस भास्कर को बताया कि रबी विपणन सीजन 2014-15 में गेहूं की एमएसपी पर खरीद के लिए देशभर में 12,076 खरीद केंद्र खोलने की योजना है।
सबसे ज्यादा खरीद केंद्र उत्तर प्रदेश में 6,025 खोले जायेंगे। इसके अलावा मध्य प्रदेश में गेहूं की सरकारी खरीद के लिए 3,000, पंजाब में 1,793, हरियाणा में 372, राजस्थान में 370, गुजरात में 220 और उत्तराखंड में 203 खरीद केंद्र खोले जायेंगे। अन्य राज्यों में उत्तराखंड में 68 और पश्चिमी बंगाल में 25 खरीद केंद्र खोले जायेंगे।
उन्होंने बताया कि प्रमुख उत्पादक राज्यों की मांग के आधार पर नए रबी विपणन सीजन में 310 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद का लक्ष्य किया गया है जबकि पिछले रबी विपणन सीजन में एमएसपी पर 250.84 लाख टन गेहूं की खरीद हुई थी।
मध्य प्रदेश से गेहूं की सरकारी खरीद 15 मार्च से और अन्य राज्यों पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान आदि से खरीद पहली अप्रैल से शुरू की जायेगी।
उन्होंने बताया कि पंजाब से गेहूं की खरीद का लक्ष्य 110 लाख टन, मध्य प्रदेश से 80 लाख टन, हरियाणा से 65 लाख टन, उत्तर प्रदेश से 30 लाख टन, राजस्थान से 18 लाख टन, गुजरात से 1.50 लाख टन, उत्तराखंड से 1.60 लाख टन, महाराष्ट्र से 0.17 लाख टन, पश्चिमी बंगाल से 0.20 लाख टन और अन्य राज्यों से 3.53 लाख टन गेहूं खरीद का लक्ष्य तय किया है।
चालू रबी विपणन सीजन 2014-15 के लिए केंद्र सरकार ने गेहूं के एमएसपी में 50 रुपये की बढ़ोतरी कर भाव 1,400 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है।
कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार वर्ष 2013-14 में गेहूं की रिकॉर्ड पैदावार 956 लाख टन होने का अनुमान है जबकि वर्ष 2012-13 में 935.1 लाख टन गेहूं की पैदावार हुई थी। केंद्रीय पूल में पहली फरवरी को 411.38 लाख टन खाद्यान्न का स्टॉक मौजूद है।
खाद्यान्न के कुल स्टॉक में 242 लाख टन गेहूं और 169.38 लाख टन चावल की हिस्सेदारी है। केंद्रीय पूल में खाद्यान्न का स्टॉक तय मानकों बफर के मुकाबले ज्यादा ही है। (Business Bhaskar.....R S Rana)
CCEA hikes fixed cost of urea, modifies investment policy
New Delhi, Feb 28. The Cabinet Committee on Economic
Affairs today cleared the hike in fixed cost of urea by up to
Rs 350 per tonne, a move that would lead to increase in
subsidy by about Rs 900 crore.
It also approved changes to the policy that aims at
encouraging new investment in the urea sector by removing
'guaranteed buyback' clause and including a provision of bank
guarantee of Rs 300 crore from companies.
For urea plants, the fixed cost mainly includes salary &
wages, contract labour, repair & maintenance and selling
expenses.
"CCEA has approved raising fixed cost of urea by up to Rs
350 per tonne. It has also approved amendments to the New
Investment Policy for urea sector," sources said.
In line with the recommendation of the the Group of
Ministers (GoM), the fixed cost of urea has been increased by
up to Rs 350 per tonnes. The minimum fixed cost, including the
hike, should be Rs 2,300 per tonnes under the New Pricing
Scheme (NPS) III.
In the case of plants which are more than 30 years older,
they will be given additional Rs 150 per tonne.
To boost investment in the urea sector, CCEA also cleared
amendments to the New Investment Policy for urea sector by
dropping the 'guaranteed buyback' provision, that assured
buyback of urea for eight years from start of production.
Other changes in the policy include insertion of a
provision of bank guarantee of Rs 300 crore from companies
keen to set urea plants under this policy. Government will
provide subsidy on sale of urea produced from the new plants.
The NIP policy was notified in January last year to
incentivise firms to invest in the urea sector and reduce
dependence on imports.
Sources said the 'guaranteed buyback' provision had to be
amended in the policy as government had received 13 investment
proposals entailing capacity addition of 16 million tonne
mainly due to this clause.
The proposed capacity addition by the applicants was more
than double the actual requirement, forcing the Fertiliser
Ministry to have a second thought on this clause.
Urea production in the country is stagnant at 22 million
tonnes and the gap of 8 million tonnes is met through imports.
So far, about 4 million tonnes of urea has been imported.
Spices scheme of Rs 670 cr to continue till FY'17
New Delhi, Feb 28. The government today approved the
continuation of Rs 670 crore scheme for spices during the 12th
Five Year Plan (2012-17).
It is expected to push up spices exports to USD 3 billion
by March, 2017.
The decision was taken by the Cabinet Committee of
Economic Affairs (CCEA). The projected outlay of the scheme is
Rs 670 crore for the Plan period, an official statement said.
"The CCEA has approved the proposal of the Department of
Commerce for continuation of central sector scheme for export
oriented production, export development and promotion of
spices of Spices Board in the 12th Plan period with some
modifications as recommended by the Expenditure Finance
Committee," it said.
The scheme aims to enhance spices export by building
processing capabilities, expansion of markets, increasing
production and productivity of cardamom, modernising spice
cultivation and post-harvest operations.
"This will attract youth to spices cultivation, promote
organic cultivation, address food safety concerns of importing
countries, market and productivity driven research, skill
development, transfer of technology etc," it added.
India mainly exports mint products, chilli, pepper and
spice oils and oleoresins.
27 फ़रवरी 2014
ट्रेड पोजिशन जुड़ेगी ओपन इंटरेस्ट से
जिंस डेरिवेटिव्ज नियमों को प्रतिभूति डेरिवेटिव्ज के समान बनाने के लिए वायदा बाजार नियामक वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) ट्रेडिंग पोजिशन सीमा को ओपन इंटरेस्ट से जोडऩे के एक प्रस्ताव पर विचार कर रहा है। प्रतिभूति बाजार में डेरिवेटिव खंड में शेयरों की सीमा इसके बाजार पूंजीकरण से जुड़ी हुई होती है और अगर कारोबार फ्री फ्लॉट मार्केट कैप से 95 फीसदी से पार निकलता है तो स्टॉक एक्सचेंज उसमें आगे की पॉजिशन रोक देता है और केवल स्वायर ऑफ (दिन की बिकवाली या खरीदारी को बराबर करने) की स्वीकृति मिलती है।
जिंसों में यह जरूरत महसूस की जा रही थी कि पोजिशन सीमा और ओपन इंटरेस्ट में जुड़ाव होना चाहिए। इसकी जरूरत विशेष रूप से कृषि जिंसों के लिए होती है, जिनमें पिछले कुछ वर्षों के दौैरान ग्वार जैसी कुछ जिंसों में भारी कारोबार और ओपन इंटरेस्ट दर्ज किया गया है, जो उस जिंस के वार्षिक उत्पादन से भी ज्यादा थे। अब एफएमसी ने महसूस किया है कि ज्यादा पोजिशन सीमा होनी चाहिए, लेकिन इसे वैज्ञानिक तरीके से अंजाम देने के लिए इन्हें ओपन इंटरेस्ट से जोड़ा जा रहा है।
ऐसे सुरक्षा इंतजाम और सीमाएं संबंधित जिंस के उत्पादन या खपत पर आधारित हो सकती हैं। हालांकि नए नियम किस तरह काम करेंगे, इसकी सही जानकारी का पता नियामक के इनकी घोषणा करने के बाद ही चल पाएगा। वित्त मंत्रालय ने एफएमसी से कहा है कि वह बाजार को अनावश्यक रूप से नियंत्रित करने की घटनाओं को कम करे और जिंसों में सुसंगठित कारोबारी पद्धतियों की शुरुआत करे।
एफएमसी ने अब ट्रेड पोजिशन को ओपन इंटरेस्ट से जोडऩे की योजना बनाई है, जिससे सदस्यों को ओपन इंटरेस्ट के आधार पर परिवर्तित पॉजिशन बनाए रखने में मदद मिलेगी। एफएमसी के इस कदम से कारोबारी जिंसों में भागीदारी की गहराई देख सकते हैं और बाजार भागीदार यह देख सकते हैं कि कारोबारी नियमित रूप से इसका इस्तेमाल कारोबार के लिए कर रहे हैं या नहीं या जिंस में भागीदारी ज्यादा है या कम। इससे विभिन्न जिंसों में एक्सचेंज पर कारोबारी मात्रा को देखने में मदद मिलेगी।
एफएमसी ने यह कदम जिंस बाजार में भागीदारी को बढ़ाने के लिए उठाया है। गैर -कृषि जिंसों पर जिंस लेन-देन कर (सीटीटी) लगाने के बाद जिंस कारोबार घटा है। इस समय पॉजिशन सीमा 15 फीसदी है और ग्राहक इसका पूरा इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं। एफएमसी उन कारकों को लेकर भी चिंतित है, जो हाजिर और वायदा बाजार में असमानता पैदा कर रहे हैं। एक आधिकारिक सूत्र ने कहा कि वायदा में कारोबार में उतार-चढ़ाव को रोकने के लिए सर्किट होता है, लेकिन हाजिर बाजार में कारोबार पर सर्किट नहीं होता है, इसलिए हाजिर बाजार में कीमतें में अनियंत्रित उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है।
वायदा में नियंत्रित उतार-चढ़ाव की वजह से कीमतों में अंतर देखने को मिलता है। आदर्श स्थिति यह है कि वायदा बाजार इस चीज को दर्शाता है कि हाजिर बाजार में क्या हो रहा है और यह आगे के रुझानों के संकेत देता है। लेकिन कीमतों में अंतर की वजह से वायदा से गलत संकेत मिलते हैं। कई बार वायदा में छोटी जिंसों के रुझान हाजिर बाजार के रुझानों पर असर डालते हैं। हालांकि विशेषज्ञों के मुताबिक छोटी जिंसों के लिए निगरानी की निगरानी की जरूरत है, ताकि अत्यधिक सट्टेबाजी को खत्म किया जा सके। (BS HIndi)
सप्लाई पर किसानों की लगाम से बढऩे लगे प्याज के दाम
किसानों के प्याज की आपूर्ति कम करने से पिछले दो सप्ताह के दौरान इसकी कीमतें रिकॉर्ड 50 फीसदी बढ़ गई हैं। हालांकि पहले कीमत उत्पादन लागत तक गिर गई थी। एशिया की सबसे बड़ी प्याज मंडी लासलगांव (महाराष्ट्र) में इसका भाव बुधवार को 8-10 रुपये प्रति किलोग्राम था। दो सप्ताह पहले भाव 5.50 रुपये प्रति किलोग्राम था और इसमें लगातार बढ़ोतरी हो रही है।
नासिक स्थित राष्ट्रीय बागवानी शोध एवं विकास संस्थान (एनएचआरडीएफ) द्वारा घोषित मॉडल कीमत से पता चलता है कि 15 फरवरी के बाद प्याज की कीमत 50 फीसदी बढ़ी है। मंगलवार को इसका भाव 9.15 रुपये प्रति किलोग्राम था, जबकि दो सप्ताह पहले भाव 6 रुपये प्रति किलोग्राम था। हाजिर बाजार में प्याज की कीमतें दो सप्ताह पहले 3.50 रुपये प्रति किलोग्राम थीं। किसान मंडियों में बेचने के बजाय सड़कों पर प्याज फेंकने की योजना बना रहे थे। लेकिन किसानों के आपूर्ति सीमित करने से हाजिर मंडियों में दाम सुधरे हैं।
एनएचआरडीएफ के निदेशक आर पी गुप्ता ने कहा, 'जब 15 फरवरी को प्याज की कीमत गिरकर 6 रुपये प्रति किलोग्राम पर आ गई थी, तब कुल आवक घटकर 322.5 टन रह गई थी। मंगलवार को भाव 9.15 रुपये प्रति किलोग्राम होने से आवक 1,640 टन दर्ज की गई। इसका मतलब है कि आपूर्ति पर किसानों का पूर्ण नियंत्रण है।' प्याज के ज्यादा समय तक ठीक न रहने की वजह से निर्यात मांग नहीं आ रही है। देरी वाली खरीफ सीजन की फसल की गुणवत्ता रबी जितनी अच्छी नहीं है।
रबी सीजन वाला प्याज 12 महीने तक खराब नहीं होता है। इसलिए निर्यातक बड़ी मात्रा में खरीद के सौदे नहीं कर रहे हैं। देश के सबसे बड़े प्याज निर्यात हाउस में से एक के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'हालिया कीमत बढ़ोतरी किसानों के सीमित आपूर्ति करने की वजह से हुई है, क्योंकि माल रोकने की उनकी क्षमता बढ़ी है। निर्यातक और बड़े खरीदार बाजार में नहीं आ रहे हैं।' चालू वित्त वर्ष के पहले 8 महीनों (अप्रैल से नवंबर तक) में देश से प्याज का निर्यात 33 फीसदी गिरकर 8.53 लाख टन रहा है। भारत मध्य पूर्व, श्रीलंका और कई दक्षिण-पूर्वी एशियाई और पड़ोसी देशों जैसे मलेशिया, सिंगापुर, माॉरिशस, बांग्लादेश और नेपाल को प्याज का निर्यात करता है। (Bs Hindi)
मार्च में गुड़ के दाम 10% घटने का अनुमान
आर एस राणा : नई दिल्ली... | Feb 27, 2014, 00:04
मौसम साफ रहा तो मार्च में कोल्हुओं में गन्ने की आवक बढ़ जायेगी, जिससे गुड़ का उत्पादन बढऩे से इसकी मौजूदा कीमतों में 8 से 10 फीसदी की गिरावट आ सकती है। गुड़ की प्रमुख उत्पादक मंडी मुजफ्फरनगर में गुड़ के दाम 950 से 1,050 रुपये प्रति 40 किलो चल रहे हैं।
गुड़ के थोक कारोबारी हरिशंकर मुंदड़ा ने बताया कि मार्च महीने में गर्म मौसम होने के बाद कोल्हूओं में गन्ने की आवक बढ़ जायेगी। मौसम में गर्माहट होने से गन्ने में वजन कम होना शुरू हो जाता है, वैसे भी कोल्हु संचालक किसानों को भुगतान दो-तीन दिन में दे देते हैं। पिछले तीन सालों से गुड़ के स्टॉकिस्टों को घाटा ही उठाना पड़ा है इसलिए चालू सीजन में गुड़ में स्टॉकिस्टों की मांग भी कमजोर है।
ऐसे में मौसम साफ रहा तो मार्च महीने में गुड़ की कीमतों में 200 से 250 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आने की आशंका है। मुजफ्फरनगर मंडी में गुड़ चाकू का भाव 950 से 1,050 रुपये, रसकट का भाव 950 से 960 रुपये और खुरपापाड़ गुड का भाव 940 से 970 रुपये प्रति 40 किलो चल रहा है। मुजफ्फरनगर मंडी में दैनिक आवक 5,000 कट्टों (एक कट्टा-40 किलो) की चल रही है।
फेडरेशन ऑफ गुड़ ट्रेडर्स के अध्यक्ष अरुण खंडेलवाल ने बताया कि चालू सीजन में मुजफ्फरनगर मंडी में 3.60 लाख कट्टे (एक कट्टा-40 किलो) का स्टॉक हो चुका है जो पिछले साल के लगभग बराबर ही है। पिछले साल मंडी में कुल स्टॉक 13 लाख कट्टों का हुआ था।
लेकिन चालू सीजन में कुल स्टॉक पिछले साल की तुलना में कम होने की आशंका है। प्रमुख खपत राज्यों पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में मध्य प्रदेश का गुड़ सस्ता पड़ रहा है, वैसे भी चीनी की कीमतों में ज्यादा तेजी की उम्मीद नहीं है। ऐसे में आगामी दिनों में गुड़ की दैनिक आवक बढऩे के अनुमान से दाम घटने की ही संभावना है।
मैसर्स देशराज राजेंद्र कुमार के प्रबंधक देशराज ने बताया कि गुड़ में खपत राज्यों की मांग सीमित मात्रा में बनी हुई है। बुधवार को दिल्ली में गुड़ चाकू की कीमतें 2,700-2,800 रुपये और गुड़ पेड़ी का भाव 2,750-2,850 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। एनसीडीईएक्स पर मार्च महीने के वायदा अनुबंध में गुड़ की कीमतों में चालू महीने में 3.7 फीसदी की तेजी आ चुकी है। (Business Bhaskar....R S Rana)
खरीफ पर अल नीनो का प्रभाव संभव, पर 2009 जैसी स्थिति नहीं
भरोसा : अल नीनो की भविष्यवाणी के बाद कृषि मंत्री का विश्वास
<> मैंने भारतीय मौसम विभाग के अधिकारियों से अल नीनो के बारे में बात की है। खरीफ में अल नीनो की आशंका बन रही है, लेकिन वर्ष 2009 जैसा प्रभाव पडऩे का अंदेशा नहीं है। खरीफ में कम बारिश की स्थिति से निपटने के लिए करीब 500 जिलों में आकस्मिक योजना तैयार की जा रही है। - शरद पवार, केंद्रीय कृषि मंत्री
अल नीनो की भविष्यवाणी
ऑस्ट्रेलिया के ब्यूरो ऑफ मेट्रोलॉजी ने आशंका जताई
यूएस क्लाइमेंट प्रिडिक्शन सेंटर ने भी चेतावनी दी
अल नीनो से कहीं सूखा तो कहीं भारी बारिश का खतरा
इसका असर खाद्यान्न की पैदावार पर पड़ सकता है
खरीफ में मानसून पर पडऩे वाले अल नीनो पर सरकार कड़ी नजर रखे हुए हैं। केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने दिल्ली में खरीफ फसलों पर आयोजित दो दिवसीय सम्मेलन के अवसर पर संवाददाताओं से कहा कि देश में खरीफ फसलों पर अल नीनो से पडऩे वाले प्रभाव के बारे में अभी से कुछ कहना जल्दबाजी होगा।
उन्होंने कहा कि मैंने हाल ही में भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अधिकारियों से अल नीनो के बारे में विचार-विमर्श किया है, हालांकि खरीफ में अल नीनो की संभावना बन रही है, लेकिन देश में फसलों पर वर्ष 2009 जैसा प्रभाव पडऩे की आशंका नहीं है। उन्होंने कहा कि खरीफ में कम बारिश होने की आशंका से देश के करीब 500 जिलों में आकस्मिक योजना के लिए तैयारी की जा रही है।
दुनिया भर के मौसम में बदलाव से जुड़ी घटना अल नीनो से इस साल असर होने की आशंका बढ़ गई है। ऑस्ट्रेलिया के ब्यूरो ऑफ मेट्रोलॉजी और यूएस क्लाइमेंट प्रिडिक्शन सेंटर इस साल मौसम में अल नीनो होने की चेतावनी जारी कर चुका है।
यह घटना हर 4 साल से 12 साल में होती है। यह एक ऐसी मौसम संबंधी घटना है, जिसकी वजह से भारत समेत दुनिया के कई देशों में भयंकर सूखे का दौर बन सकता है। साथ ही कई देशों में इसके असर से बाढ़ का खतरा भी बनता है। ऐसे में इसका असर खाद्यान्न की पैदावार पर पड़ सकता है।
शरद पवार ने केंद्र और राज्य सरकारों के कृषि वैज्ञानिकों से तिलहन और मोटे अनाजों का उत्पादन बढ़ाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि देश में खाद्यान्न का रिकॉर्ड उत्पादन हो रहा है।
इसके बावजूद वर्ष 2012-13 में देश में 73,840 करोड़ रुपये मूल्य के खाद्य तेलों का आयात हुआ है। इसलिए इनकी उत्पादकता बढ़ाने की जरूरत है। कई जिंसों की बिक्री न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे हो रही है, जो चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि एमएसपी निर्धारण करने की विधि पर ध्यान देने की जरूरत है।
कृषि विकास के लिए जैव-प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार की वचनबद्धता को दोहराते हुए उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र बढऩे की संभावना बहुत कम है, इसलिए सीमित भूमि से ही उत्पादकता बढ़ाकर खाद्यान्न, फल और सब्जियों की बढ़ती मांग को पूरा करना है। उन्होंने झांसी में रानी लक्ष्मीबाइ केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय स्थापित करने की घोषणा भी की। (Busines Bhaskar....R S Rana)
26 फ़रवरी 2014
Gold reaches 17-week high on US data as SPDR holdings expand
London, Feb 26. Gold today traded near a
17-week high as holdings in the biggest exchange-traded
product backed by the metal headed for the first monthly gain
since December 2012.
Gold rose 0.4 per cent to USD 1,345.46 an ounce, the
highest level since October 30 and silver by 0.5 per cent to
USD 21.97 an ounce.
Gold prices are set for the first back-to-back monthly
gains since August as concern that the US recovery may be
faltering and turmoil in emerging markets increased demand for
a store of value.
Assets in the SPDR Gold Trust climbed for the third day
yesterday in the longest stretch of gains since November 2012.
Meanwhile, bullion rallied 11 per cent this year even as
the US Federal Reserve scaled back stimulus, rebounding from
last year's 28 per cent drop.
Gold, silver maintain upward march on higher global cues
New Delhi, Feb 26. Gold prices today rose for the
fourth straight day by adding Rs 135 to Rs 31,500 per ten gram
on steady buying by stockists for the marriage season amid a
higher global cues.
Silver also extended gains for the fifth day by adding Rs
50 to Rs 48,300 per kg on increased offtake by industrial
units.
Traders said sentiment remained bullish as stockists
increased their positions to meet the seasonal demand.
They said firming global trend, where gold rose to
17-week high after US economic data missed estimates and
unrest in emerging markets boosting haven demand, further
fuelled the uptrend.
Gold in Singapore, which normally sets price trend on the
domestic front, rose by by 0.4 per cent to USD 1,345.46 an
ounce, the highest since October 30 and silver by 0.6 per cent
to USD 21.98 an ounce.
On the domestic front, gold of 99.9 and 99.5 per cent
purity advanced by Rs 135 each to Rs 31,500 and Rs 31,300 per
ten gram respectively. It had gained 215 in last three days.
Sovereign, however, held steady at Rs 25,500 per piece of
eight gram in limited deals.
Silver ready gained Rs 50 to Rs 48,300 per kg while
weekly-based delivery shed Rs 10 at Rs 47,840 per kg. The
white metal had gained Rs 750 in previous four sessions.
On the other hand, silver coins continued to be asked at
last level of Rs 89,000 for buying and Rs 90,000 for selling
of 100 pieces.
Govt keeping watch on monsoon; El Nino may not impact severely
New Delhi, Feb 26. Amid reports of El Nino possibly
impacting monsoon in India, Agriculture Minister Sharad Pawar
today said the government will keep a close watch on monsoon
progress this year and ruled out any major impact on foodgrain
production.
"It is too early to say. I had discussion yesterday with
Met officials. They said they will be able to come out with
monsoon forecast in second week of April," Pawar told
reporters replying to a query on monsoon forecast for 2014.
On concerns over El Nino conditions, he said, "Our Met
Department is seriously concentrating on this subject. This
type of situation we have seen in 2009 as well. But whatever
assessment made by experts about this issue, they said it will
not be that severe which will impact overall production and
productivity. But still, we are keeping a close eye (on it)."
El Nino refers to the warming of ocean water in the
central and east Pacific and cooling of West. This condition
occurs every 4 to 12 years. It had last hit India's monsoon
in 2009, leading to worst drought in nearly four decades.
Addressing the Kharif 2014 Conference, Pawar said that the
country may surpass the agriculture growth target of 4 per
cent during the 12th Five Year Plan (2012-17).
Speaking on the sidelines of the conference, Pawar
expressed concern that India's agriculture is still dependent
on vagaries of monsoon and asked farm scientists to develop
drought resistant varieties.
"Whether we like it or not, uncertainty of rains seems to
be a permanent problem to this country. Our scientists have to
develop certain varieties which are resistant to various types
of stress particularly during delayed monsoon."
Scientists are developing such varieties but they need to
focus more, he added.
Earlier, Agriculture Commissioner J S Sandhu said that the
government must be prepared for delayed and deficient monsoon
this year in the backdrop of private agencies predicting below
normal monsoon for India.
"We have not yet received monsoon forecast from the Met
Department. Some private agencies have predicted below normal
monsoon and there will be El Nino impact. We should be
prepared for delayed onset of monsoon and prolonged dry
spell," Sandhu said while presenting a paper on the country's
preparedness for kharif sowing to begin from June.
He also said that contingency plans for 449 districts in
23 states have already been prepared.
He also stressed on the need to review the methodology of
fixing the minimum support price as farmers are complaining
about increased input costs even as the government has hiked
the support price significantly in the last ten years.
India to forecast likely El Nino effect on monsoon in April - minister
NEW DELHI, Feb 26. - The Indian weather office willgive its outlook on the likely impact of El Nino on the monsoonin mid-April, but the impact of the weather pattern is unlikelyto be as severe as 2009, Farm Minister Sharad Pawar toldreporters on Wednesday. In 2009, the worst drought in nearly four decades ravagedfarms in India, one of the world''s leading producers of an arrayof farm commodities, forcing the country to import largequantities of sugar and hoisting global prices to a record high. Indian farmers depend heavily on the annual June-Septembermonsoon rains, as 55 percent of farmland does not haveirrigation facilities. Australia''s Bureau of Meteorology and the U.S. ClimatePrediction Center have warned of increased chances of the returnof the El Nino weather pattern that can trigger drought, hitting production of key foods such as rice, wheat and sugar.
25 फ़रवरी 2014
मंडियों में फसल आते ही सरकारी गोदामों से गेहूं की बिक्री बंद
आर एस राणा : नई दिल्ली... | Feb 25, 2014, 08:51AM IST
नई फसल
एमपी में सरकारी गेहूं की बिक्री बंद
नई सरकारी खरीद 15 मार्च से होगी
अन्य राज्यों के लिए दो और निविदाएं
इसके बाद वहां भी बिक्री बंद होगी
50 लाख टन गेहूं की बिक्री हो पाई है
अब तक
6 लाख टन गेहूं और बिक सकेगा दो निविदाओं में
95 लाख टन गेहूं का आवंटन हुआ था ओएमएसएस में
खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत मध्य प्रदेश में गेहूं की बिक्री सरकार ने बंद कर दी है जबकि अन्य राज्यों में फ्लोर मिलों को गेहूं बेचने के लिए दो ओर निविदा जारी की जाएंगी। ओएमएसएस के तहत अभी तक केवल 50 लाख टन गेहूं की बिक्री ही हो पाई है।
खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिजनेस भास्कर को बताया कि मध्य प्रदेश में 15 मार्च से गेहूं की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद शुरू की जायेगी और ओएमएसएस के तहत गेहूं की बिक्री बंद कर दी गई है। नई फसल की आवक शुरू होने के कारण सरकारी बिक्री बंद की गई है। देश के अन्य राज्यों में की रोलर फ्लोर मिलों को गेहूं बेचने के लिए भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) दो ओर निविदा जारी करेगी।
उन्होंने बताया कि पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात तथा अन्य प्रमुख उत्पादक राज्यों में गेहूं की एमएसपी पर खरीद पहली अप्रैल से शुरू की जायेगी। उन्होंने बताया कि रबी विपणन सीजन 2014-15 में एमएसपी पर 310 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य तय किया है जबकि पिछले विपणन सीजन में 250.84 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद हुई थी।
आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने 21 जून को ओएमएसएस के तहत 95 लाख टन गेहूं बेचने की अनुमति दी थी जिसमें से अभी तक केवल 50 लाख टन गेहूं की ही बिक्री हुई है। आगामी दो निविदा में ओर लगभग पांच-छह लाख टन गेहूं की बिक्री होने का अनुमान है। अभी तक हुई गेहूं की सरकारी खरीद में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात की है।
उन्होंने बताया कि चालू रबी विपणन सीजन 2014-15 के लिए केंद्र सरकार ने गेहूं के एमएसपी में 50 रुपये की बढ़ोतरी कर भाव 1,400 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है जबकि मध्य प्रदेश में राज्य सरकार किसानों को अलग से 100 रुपये प्रति क्विंटल का बोनस दे सकती है।
कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार वर्ष 2013-14 में गेहूं की रिकॉर्ड पैदावार 956 लाख टन होने का अनुमान है जबकि वर्ष 2012-13 में 935.1 लाख टन गेहूं की पैदावार हुई थी।
केंद्रीय पूल में पहली फरवरी को 411.38 लाख टन खाद्यान्न का स्टॉक मौजूद है। इसमें 242 लाख टन गेहूं और 169.38 लाख टन चावल की हिस्सेदारी है। केंद्रीय पूल में खाद्यान्न का स्टॉक बफर के तय मानकों के मुकाबले ज्यादा ही है। पहली जनवरी को केंद्रीय पूल में 250 लाख टन खाद्यान्न का बफर स्टॉक होना चाहिए।
(Business Bhaskar....R S Rana)
Gold gains for third day on sustained buying, global cues
New Delhi, Feb 25. Gold prices today gained for the
third straight session by adding Rs 15 to Rs 31,365 per ten
gram on sustained buying by stockists and retailers for the
ongoing marriage season amid a firming global trend.
Silver also rose for the fourth day by gaining Rs 370 to
Rs 48,250 per kg on increased offtake by jewellers and
industrial units.
Traders said sustained buying by stockists and retailers
for the ongoing marriage season mainly led an upward trend in
precious metals.
Firming global trend, where gold and silver rose to
16-week high on speculation that weakening US growth and
turmoil in Ukraine will boost demand for the precious metals
as a haven, also supported the uptrend, they said.
Gold in New York, which normally sets price trend on the
domestic front, climbed 1.1 per cent to USD 1,338 an ounce,
the highest since October 31. Silver also moved up by 1.3 per
cent to USD 22.08 an ounce, the highest since October 31.
On the domestic front, gold of 99.9 and 99.5 per cent
purity rose by Rs 15 each to Rs 31,365 and Rs 31,165 per ten
gram respectively. It had gained Rs 200 in last two days.
Sovereign shot up by Rs 100 to Rs 25,500 per piece of eight
gram.
In a similar fashion, silver ready rose further by Rs 370
to Rs 48,250 per kg and weekly-based delivery by similar
margin to Rs 47,850 per kg. The white metal had gained Rs 380
in the previous three sessions.
Silver coins, however, held steady at Rs 89,000 for buying
and Rs 90,000 for selling of 100 pieces.
NAFED credit limit likely to be raised to Rs 3,500 crore
New Delhi, Feb 25. Agri-procurement agency NAFED's
credit limit is likely to be doubled to Rs 3,500 crore for
smooth procurement operations, a senior agriculture ministry
official said today.
At present, the National Agricultural Cooperative
Marketing Federation (NAFED) credit limit is at Rs 1,631 crore
and in addition Rs 150 crore guarantee has also been
transfered to the federation, which was given to Central
Warehousing Cooperation (CWC) for procurement operations.
Under price support scheme (PSS) for the procurement of
farm produce from the farmers, NAFED procures 16 commodities
at minimum support price on behalf of the government.
At present NAFED owes around Rs 2,000 crore to banks and
has negative net worth of Rs 147 crore.
"Agriculture Ministry has written a letter to Finance
Ministry to raise the credit limit of the NAFED to Rs 3,500
crore, and it is likely to be get approved," Agriculture
Secretary Ashish Bahuguna told reporters here.
Bahuguna added that at present NAFED is procuring
groundnut and for smoother procurement operations of mustard
and chickpeas in coming days, the federation might require
additional funds.
NAFED had earlier also sought immediate release of Rs 25
crore from the Agriculture Ministry to meet the financial
requirement of the voluntary retirement scheme (VRS) that it
has offered to its 500-odd employees.
Nafed has also put on the block its properties, including
the head office, and was reported to be in talks with state-
owned NBCC, the federation was also in talks with IFFCO for
sale of its two fertiliser units.
Nafed is running huge losses because of high interest
costs. It had invested nearly Rs 4,000 crore in joint venture
businesses for undertaking export-import operations through
loans from commercial banks during 2003-06.
Nafed owes debt to eight lenders including Punjab
National Bank, Oriental Bank, South Indian Bank, Syndicate
Bank and Central Bank.
Nafed has a number of properties in cities such as Delhi,
Kolkata, Mumbai, Chennai, Pune, Nashik and Jaipur.
24 फ़रवरी 2014
बढ़ेगा रत्नाभूषणों का निर्यात
अमेरिका और चीन की अर्थव्यवस्थाओं में सुधार के संकेतों से भारत के हीरे के आभूषणों का निर्यात आगामी महीनों में बढऩे की संभावना है। दुनियाभर में होने वाली आभूषणों की खपत में अमेरिका और चीन का हिस्सा दो-तिहाई होता है। चालू वित्त वर्ष के पहले 9 महीनों में रत्नाभूषणों का निर्यात 8.70 फीसदी गिरकर 2,507.59 करोड़ डॉलर (1,50,256.57 करोड़ रुपये) रहा, जो पिछले साल की इसी अवधि में 2,746.47 करोड़ डॉलर (1,49,955.27 करोड़ रुपये) था।
डी बीयर्स की पैतृक कंपनी एंगलो अमेरिकन के मुख्य कार्याधिकारी मार्क कुटिफानी ने हाल में कंपनी के नतीजे पेश करते हुए कहा, 'हमें 2014 में हीरे के आभूषणों की मांग में थोड़ी बढ़ोतरी होने की उम्मीद है, क्योंकि वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है। तराशे हीरों की मांग अमेरिका और चीन में सबसे ज्यादा बनी रहने की संभावना है। अन्य बाजारों में भी वृद्धि का अनुमान है।'
रत्नाभूषणों की वैश्विक मांग में कमजोरी पिछले साल अगस्त से दिसंबर तक बनी रही। यह ऐसा दौर था जब विनसम डायमंड को 6,000 करोड़ रुपये का ऋण न चुकाने के कारण डिफॉल्टर घोषित कर दिया गया था। बैंकों ने हीरे के आभूषण क्षेत्र को संदेह की नजर से देखना शुरू कर दिया और उसे ऋण देना रोक दिया। इसके अलावा ऋण की वसूली के लिए इस क्षेत्र पर दबाव बनाया, जिससे हीरा प्रसंस्करणकर्ताओं की कार्यशील पूंजी में भारी कमी आई है। वहीं इन्वेंट्री (भंडार) बढ़कर 90 दिन की खपत जितनी हो गई, जबकि आमतौर पर इन्वेंट्री 30 दिन की खपत जितनी होती है। इससे भी हीरे के आभूषण निर्यातकों पर बोझ बढ़ा।
रत्नाभूषण निर्यात संवर्धन परिषद (जीजेईपीसी) के चेयरमैन विपुल शाह ने कहा, 'पिछले साल अगस्त में यह स्थिति थी। लेकिन अब अचानक स्थितियां बदल गई हैं। बैंकों ने हीरा प्रसंस्करण क्षेत्र को सकारात्मक परिदृश्य के रूप में देखना शुरू कर दिया है। वास्तविकता यह है कि कुछ बैंकों ने तो अच्छे साख वाली कंपनियों से ऋण के लिए संपर्क करना शुरू कर दिया है, इसलिए कार्यशील पूंजी अब कोई मसला नहीं रह गया है।'
डी बीयर्स ने भी हीरे के आभूषणों की मांग, विशेष रूप से अमेरिका और चीन में अच्छी रहने का अनुमान जाहिर किया है। डी बीयर्स का कच्चे हीरों का उत्पादन 2013 में 12 फीसदी बढ़कर 3.12 करोड़ कैरेट रहा, जो इससे पिछले साल 2.79 करोड़ कैरेट था। हालांकि इन्वेंट्री की आपूर्ति कम रहने के कारण भारत में कच्चे और तराशे हुए हीरे की कीमतें जनवरी से 3-5 फीसदी बढ़ चुकी हैं। (BS Hindi)
कृषि जिंसों की कीमतों में कमी का निर्यात पर असर
हाल में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कृषि जिंसों की कीमतों में गिरावट से भारतीय कारोबारी हताश हैं। दिसंबर से ज्यादातर कृषि जिंसों के दाम लगातार गिरे हैं। चीनी को सरकार का नीतिगत समर्थन नहीं मिल रहा है, वहीं अमेरिका से भारी आपूर्ति का देश के मक्का निर्यात पर असर पड़ा है। केयर रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, 'हाल में कीमतों में गिरावट का रुझान खाद्य तेल जैसी आयात होने वाली जिंसों के लिए अच्छा रहेगा, जिनमें हमारी आयात निर्भरता 50-55 फीसदी है। इससे आयात की लागत कम करने में मदद मिलेगी। हालांकि ग्वार, मक्का या चीनी जैसी जिंसों के मामले में कम कीमतों का मतलब है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कम दाम मिलेंगे। इससे किसान अन्य फसलों की ओर रुख कर सकते हैं जो अच्छा नहीं होगा। लिहाजा, कम कीमतों की वजह से किसानों को अन्य फसलों की ओर रुख नहीं करना चाहिए।'
शुरुआत में कीमतों में अच्छी तेजी के बाद चावल (बासमती व गैर-बासमती दोनों) की कीमतें पिछले दो महीने में 3-4 फीसदी गिर चुकी हैं। अखिल भारतीय चावल निर्यातक संघ के अध्यक्ष एम पी जिंदल ने इसकी वजह अमेरिका और ईरान के बीच विवाद सुलझना बताया है। ईरान भारत के लिए बासमती चावल निर्यात का मुख्य बाजार है। उन्होंने कहा, 'इस समझौते के बाद विश्व के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक अमेरिका ईरान को बासमती की आपूर्ति शुरू कर सकता है। लेकिन हमें उम्मीद है कि मार्च में चावल की कीमत और निर्यात दोनों सुधरेंगे।'
चालू वित्त वर्ष के पहले 9 महीनों के दौरान बासमती का निर्यात 0.75 फीसदी बढ़कर 27 लाख टन और गैर बासमती चावल का निर्यात 0.25 फीसदी बढ़कर 52 लाख टन रहा है। अमृतसर की पूजा ट्रेडिंग कॉरपोरेशन के निदेशक विमल सेठी ने कहा, 'हाल में गेहूं की कीमतें 0.6 फीसदी की मामूली गिरावट के साथ 1,650 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गई हैं, जिससे वैश्विक कीमतों से प्रतिस्पर्धा करने का मौका मिला है। लेकिन सरकारी नीतियों में आए दिन बदलाव और गेहूं की घटिया गुणवत्ता से भारत की निर्यात संभावनाएं कमजोर हुई हैं। कभी सरकार गेहूं के निर्यात की इजाजत देती है मगर कुछ महीनों के बाद इस पर प्रतिबंध लगा देती है। पाकिस्तान, अमेरिका और ब्राजील जैसे प्रतिस्पर्धी देशों में नीतिगत बदलाव इतनी जल्दी नहीं होते हैं। वैश्विक खरीदार लंबी अवधि के करारों को ज्यादा तरजीह देते हैं, इसलिए भारत को पर्याप्त ऑर्डर नहीं मिलते हैं। (BS Hindi)
रिकॉर्ड अनाज पैदावार से टूटा किसानों का सपना
आर एस राणा नई दिल्ली | Feb 24, 2014, 08:36AM IS
टेंशन : भरपूर उत्पादन से सरकार की बांछें खिलीं, लेकिन यह किसानों के लिए घाटे का सौदा
किस पर मार ज्यादा - प्रमुख उत्पादक राज्यों की मंडियों में मक्का, चना, बाजरा, उड़द, अरहर और मूंगफली के दाम अब भी हैं न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे
12-20 फीसदी नीचे दाम पर मंडियों में बिक रही हैं कई जिंस एमएसपी के मुकाबले
26.32 करोड़ टन खाद्यान्न की रिकॉर्ड पैदावार का अनुमान लगाया गया है इस बार
देश में 26.32 करोड़ टन खाद्यान्न की रिकॉर्ड पैदावार के अनुमान से जहां केंद्र सरकार की बांछें खिली हुई हैं, वहीं खाद्यान्न का उत्पादन करने वाले किसानों के लिए यह घाटे का सौदा साबित हो रहा है। पैदावार ज्यादा होने के अनुमान से कई जिंसों की बिकवाली किसानों को मजबूरन न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से 12-20 फीसदी नीचे दामों पर करनी पड़ रही है।
प्रमुख उत्पादक राज्यों की मंडियों में मक्का, चना, बाजरा, उड़द, अरहर और मूंगफली के दाम एमएसपी से नीचे बने हुए हैं। मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2013-14 में मक्का की पैदावार रिकॉर्ड 232.9 लाख टन होने का अनुमान है।
बी एम इंडस्ट्रीज के डायरेक्टर एम एल अग्रवाल ने बताया कि विश्व बाजार में दाम कम होने से मक्का का निर्यात कम हुआ है। प्रमुख उत्पादक राज्यों महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और मध्य प्रदेश की मंडियों में किसानों को मजबूरन 1,125 से लेकर 1,150 रुपये प्रति क्विंटल की दर से मक्का बेचनी पड़ रही है जबकि विपणन सीजन 2013-14 के लिए केंद्र सरकार ने एमएसपी 1,310 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है।
बाजरा का उत्पादन भले ही 2010-11 के रिकॉर्ड 103.7 लाख टन से घटकर 88 लाख टन हो जाने का अनुमान है, लेकिन मांग कम होने से किसानों को मंडियों में 1,075-1,100 रुपये क्विंटल की दर से बाजरा बेचना पड़ रहा है जबकि एमएसपी 1,250 रुपये प्रति क्विंटल है।
अजय इंडस्ट्रीज के डायरेक्टर सुनील अग्रवाल ने बताया कि चालू रबी सीजन में चने की पैदावार रिकॉर्ड 97.9 लाख टन होने का अनुमान है जबकि आयातित चने का दाम कम है। ऐसे में उत्पादक मंडियों में चने के भाव 2,600 से 2,800 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं जबकि सरकार ने चने का एमएसपी 3,100 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है।
इसी तरह अरहर के दाम उत्पादक मंडियों में 3,900-4,200 रुपये प्रति क्विंटल हैं, जबकि एमएसपी 4,300 रुपये प्रति क्विंटल है। उड़द का एमएसपी भी 4,300 रुपये प्रति क्विंटल है जबकि मंडियों में भाव 4,000-4,200 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। श्रीराजमोती इंडस्ट्रीज के मैनेजिंग डायरेक्टर समीर भाई शाह ने बताया कि केंद्र सरकार द्वारा निर्यात नियमों को सख्त किए जाने के कारण मूंगफली दाने का निर्यात सीमित मात्रा में हो रहा है।
कृषि मंत्रालय के अनुसार मूंगफली का उत्पादन रिकॉर्ड 91.4 लाख टन होने का अनुमान है। केंद्र सरकार ने खरीफ विपणन सीजन 2013-14 के लिए मूंगफली का एमएसपी 4,000 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है, जबकि उत्पादक मंडियों में इसके दाम 3,000 से 3,225 रुपये प्रति क्विंटल ही चल रहे हैं। (Business Bhaskar....R S Rana)
IARI to organise three-day Krishi Mela from Feb 26
New Delhi, Feb 24. The Indian Agriculture Research
Institute (IARI) is going to organise a three day 'Krishi
Vigyan Mela' with the purpose to educate farmers about the
latest seed varieties which are resilient to climate change.
"The mela will be organised at the PUSA complex here from
February 26-28 and Agriculture Minister Sharad Pawar will
inaugurate the event," IARI Director H S Gupta told reporters
here.
At the inaugural function, Agriculture Minister Sharad
Pawar will also announce the establishment of Rani Lakshmi Bai
Central Agricultural University in Bundelkhand region
encompasses 7 districts in Uttar Pradesh and 6 in Madhya
Pradesh, he added.
This year's mela is on the theme of 'Climate Resilient
Technologies for Sustainable Agriculture',Gupta added.
"The latest seed varieties developed by IARI, which are
resilient to climate change and at the same time raise
productivity will be the main attraction of the mela," Gupta
said.
There will be more than 200 stalls in the annual farmers
event displaying a range of products, services and for the
farmers. Besides IARI, the state agricultural universities,
agriculture research institutes, private sector undertakings
and progressive farmers will also take part in the mela.
Gold climbs to 16-week high as US data adds to haven demand
London, Feb 24. Gold today rose to the highest
price in more than 16 weeks on speculation weaker US economic
data and political turmoil in Ukraine raised haven demand.
Gold gained 0.7 per cent to USD 1,333.49 an ounce. It
reached USD 1,334.61 earlier today, the highest since October
31. Silver also rose 0.4 per cent to USD 21.87 an ounce.
Sales of previously owned US homes dropped in January to
the lowest level in more than a year, data showed February 21.
Gold, silver up on seasonal buying
New Delhi, Feb 24. Gold prices rose by Rs 160 to Rs
31,350 per ten grams in the national capital today on
sustained buying for the ongoing wedding season.
Silver also gained for the third day by adding Rs 120 to
Rs 47,880 per kg on increased offtake by industrial units and
coin manufacturers.
Traders said sustained buying for the ongoing wedding
season mainly influenced gold and silver prices.
In the national capital, gold of 99.9 and 99.5 per cent
purity advanced by Rs 160 each to Rs 31,350 and Rs 31,150 per
ten grams, respectively. It had gained Rs 40 in the previous
session. Sovereign, however, held steady at Rs 25,400 per
piece of eight grams in limited deals.
In line with a general firm trend, silver ready rose by Rs
120 to Rs 47,880 per kg and weekly-based delivery by Rs 20 to
Rs 47,480 per kg, after gaining Rs 260 in last two trades.
Silver coins also spurted by Rs 1,000 to Rs 89,000 for
buying and Rs 90,000 for selling of 100 pieces on hectic
demand for the ongoing wedding season.
22 फ़रवरी 2014
रुपये में स्थिरता से कपास के निर्यात में सुधार
भारतीय रुपये में लौटी स्थिरता की वजह से कपास निर्यात में तेजी लौटती दिख रही है। पिछले कुछ महीनों के दौरान डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में स्थिरता आई है। पहले से ही कपास का बड़ा भंडार जुटाकर बैठे चीन ने भारत से कपास के आयात में बढ़ोतरी शुरू कर दी है। इसके अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश, इंडोनेशिया और वियतनाम से भी मांग में इजाफो हो रहा है। इसलिए चालू कपास वर्ष (अक्टूबर-सितंबर) के दौरान 60 लाख कपास गांठों (एक गांठ में 170 किग्रा कपास होता है) का निर्यात किया जा चुका है और आने वाले एक महीने में 10 लाख गांठों का निर्यात होने की संभावना है। इस कपास ंवर्ष में कुल निर्यात 100 लाख गांठ तक रहने की उम्मीद है। कपास सलाहकार बोर्ड (सीएबी) ने हाल ही में कपास वर्ष 2013-14 के लिए 90 लाख गांठों के निर्यात का अनुमान पेश किया था। पिछले साल कपास का कुल निर्यात 101.4 लाख गांठ था जबकि वर्ष 2011-12 में निर्यात 129.6 लाख गांठ था।
हालांकि कुछ समय पहले चीन ने कपास के बजाय कपास के धागों के आयात को बढ़ावा देने का फैसला किया था, लेकिन इसके बावजूद चीन ने कुछ हद तक कपास की खरीद जारी रखी है। भारत से कपास निर्यात की स्थिति तय करने में रुपये की कीमत की भूमिका भी अब काफी अहम हो चुकी है। कुछ महीनों पहले तक रुपये की बढ़ती कीमत की वजह से कपास की कीमत चढ़ जाने के कारण कई आयातक भारतीय निर्यातकों से किए गए करार रद्द करने की फिराक में थे, लेकिन एक बार फिर से इन आयातकों ने करार को जारी रखने में रुचि दिखाई है। पिछले एक महीने के दौरान रुपये की कीमत 62 रुपये के इर्दगिर्द स्थिर है, जबकि पिछले एक महीने के दौरान शंकर 6 प्रकार के कपास की कीमत 43,000 रुपये प्रति कैंडी के उच्च स्तर पर स्थिर बनी हुई है।
मुंबई के एक कपास निर्यातक एम बी लाल ने कहा, 'हालांकि कुछ महीनों पहले चीन ने भारत से कपास आयात में कमी करना शुरू कर दिया था लेकिन रुपये में स्थिरता की वजह से उन्होंने भारत से खरीदारी फिर से बढ़ा दी। पाकिस्तान और बांग्लादेश ने भी आयात की शुरुआत कर दी है। निर्यात में रुपये की भूमिका अहम होती जा रही है। (BS Hindi)
दालों का वायदा शुरू करने की तैयारी
जिंस बाजार नियामक वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) की सकारात्मक प्रतिक्रिया के बाद कृषि उत्पादों पर केंद्रित नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव्ज एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) एक हफ्ते से 10 दिनों के भीतर अरहर, उड़द और चावल के वायदा कारोबार को फिर से शुरू करने के लिए अनुमति के वास्ते आवेदन देने की योजना बना रहा है। एसीडीईएक्स के प्रबंध निदेशक समीर शाह ने कहा, 'हम एक हफ्ते से 10 दिनों के भीतर ही वायदा सौदा कारोबार की अनुमति के लिए आवेदन करने की योजना बना रहे हैं।Ó
खास बात यह है कि पणजी में गुरुवार को एफएमसी के चेयरमैन रमेश अभिषेक ने कहा था कि नियामक अरहर, उड़द और चावल का वायदा कारोबार जल्दी ही शुरू करने के बारे में गंभीरता से विचार कर रहा है। वर्ष 2006-07 में दालों की कीमतें आसमान छूने लगीं, आपूर्ति की कमी की वजह से कीमतों में जबरदस्त इजाफा हो गया और आलोचक इसके लिए वायदा कारोबार को जिम्मेदार ठहराने लगे। इसके बाद एफएमसी ने इन जिंसों के वायदा कारोबार पर वर्ष 2007 में प्रतिबंध लगा दिया। इसके साथ ही सरकार ने योजना आयोग के सदस्य अभिजीत सेन की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति गठित की। सेन समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि कीमतों में बढ़ोतरी का वायदा कारोबार से कोई संबंध नहीं है। समिति की रिपोर्ट के मुताबिक किसी भी जिंस की कीमतों का संबंध उस जिंस की मांग और आपूर्ति से है इसलिए कीमतों में इजाफे के लिए वायदा कारोबार को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। पिछले छह सालों के दौरान बेहतर विनियामक और जांच की बेहतर सुविधाओं की वजह से नियमन में काफी व्यापक सुधार हुआ है। शहर की एक जिंस कारोबार फर्म एमके कॉमोट्रेड के सीईओ अशोक मित्तल का कहना है, 'दालों में वायदा कारोबार शुरू करने की मांग जिंस कारोबारियों की ओर से की जा रही है। प्रतिबंध के पहले एनसीडीईएक्स में होने वाले सबसे लोकप्रिय कारोबारों में से दालों का वायदा कारोबार भी एक था। इस क्षेत्र में कारोबार के लिहाज से काफी बेहतरीन संभावनाएं हैं क्योंकि भारत में इन खाद्यान्नों का आयात बड़ी मात्रा में होता है ऐसे में इसके संग्रह की भी खासी जरूरत है। स्थानीय स्तर पर भी दालों का कारोबार काफी बेहतर होता है।Ó
एनसीडीईएक्स फिलहाल करार के मसौदे पर काम कर रहा है जो कुछ ही समय में तैयार हो जाएगा। एक आधिकारिक सूत्र के मुताबिक एक्सचेंज पहले भी इस प्रस्ताव के साथ एफएमसी से गुहार लगा चुका है। मित्तल ने कहा, 'पिछले छह सालों के दौरान एफएमसी ने कमियों को दूर करने के लिए कई सकारात्मक कदम उठाए हैं। इसलिए दालों का वायदा कारोबार सबसे सफलतम करारों में से एक हो सकता है।Ó भारत हर साल ऑस्ट्रेलिया, म्यांमार और अन्य क्षेत्रों से करीब 30 लाख टन दालों का आयात करता है। एमसीएक्स जैसे अन्य एक्सचेंज भी जल्दी ही इस दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं। (BS Hindi)
ऑटो उद्योग में प्लास्टिक का बढ़ता उपयोग बना वरदान
देश के ऑटो उद्योग में प्लास्टिक का बढ़ता उपयोग प्लास्टिक इंडस्ट्री के लिए वरदान साबित हो रहा है। कार निर्माण में बढ़ते प्लास्टिक उत्पादों से अनुमान है कि भविष्य में कारों के निर्माण में 50 फीसदी तक प्लास्टिक के उत्पादों का उपयोग किया जाने लगेगा। यह बात शुक्रवार को प्लास्ट इंडिया फाउंडेशन के अध्यक्ष सुभाष कडकिया ने कही।
उन्होंने बताया कि दिल्ली के प्रगति मैदान में 5 से 10 फरवरी २०१५ को ९वें प्लास्टइंडिया एक्सपो का आयोजन किया जाएगा। रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के सहयोग से इसका आयोजन होगा। इसमें 40 देशों के 2,000 डेलीगेट के साथ ही करीब 1,50,000 लोगों के भाग लेने की संभावना है।
फैडरेशन का मुख्य उद्देश्य भारत में प्लास्टिक उद्योग के विकास को बढ़ावा देना है। प्रिसिजन पाइप्स एंड प्रोफाइल्स कंपनी के चेयरमैन एवं मैनेजिंग डायरेक्टर अजय जैन ने कहा कि ऑटो उद्योग के लिए प्लास्टिक अब सिर्फ विकल्प नहीं रह गया है, बल्कि यह पसंदीदा मैटेरियल बन गया है।
अल्युमिनियम की तुलना में 3 गुना और शीट मेटल की तुलना में 7 गुना हल्का होने के साथ ही यह नियामक, फंक्शनल और पर्यावरण जरूरतें पूरी करता है। बम्पर, डेशबोर्ड, फेंडर और बॉडी ट्रिम में प्लास्टिक का खूब उपयोग हो रहा है।
सिलेंडर कवर हेड, एयर डक्ट, ऑयल पेन्स और रिइनफोस्र्ड टायर ऐसे क्षेत्र हैं, जहां प्लास्टिक परंपरागत शीट मेटल एवं एल्युमिनियम पार्ट का स्थान ले रहा है। ईंधन टैंक और बैटरी बॉक्स बनाने में मेटल के स्थान पर प्लास्टिक का उपयोग किए जाने से कंपोनेंट का वजन क्रमश: 40 से 70 फीसदी तक घटा है, जिससे ईंधन की ज्यादा बचत हो रही है। यही वजह है कि प्लास्टिक कंपोनेंट का उपयोग ऑटो सेक्टर में बढ़ रहा है। (Business Bhaskar....R S Rana)
कीमतों में भारी उठा-पटक से ग्वार उद्योग को नुकसान
आरएस राणा : नई दिल्ली... | Feb 22, 2014, 11:33AM IS
बाधा : कीमतें स्थिर न होने से निर्यात सौदे हो रहे हैं प्रभावित
40.85 फीसदी मूल्य के हिसाब से घट चुका है निर्यात अप्रैल-दिसंबर २0१3 के दौरान
800 से 1000 रुपये प्रति क्विंटल तक की गिरावट आ चुकी है ग्वार सीड के भाव में
3 करोड़ क्विंटल ग्वार सीड उत्पादन का अनुमान है चालू सीजन में
ग्वार सीड और गम की कीमतों में चल रही भारी उठा-पटक से उद्योग को भारी नुकसान हो रहा है। कीमतें स्थिर नहीं हो पाने के कारण ग्वार गम के निर्यात सौदे प्रभावित हो रहे हैं। सितंबर से अभी तक उत्पादक मंडियों में ग्वार सीड की कीमतों में 800 से 1,000 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी-मंदी रही है।
वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2013-14 के पहले 9 महीनों (अप्रैल से दिसंबर) के दौरान ग्वार गम और पाउडर के निर्यात में मूल्य के हिसाब से 40.85 फीसदी की गिरावट आई है।
टिंकू राम गम एंड केमिकल प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर विपिन अग्रवाल ने बताया कि स्टॉकिस्टों की सक्रियता के कारण ग्वार सीड और गम की कीमतों में भारी उठा-पटक बनी हुई है, जिससे निर्यात सौदे प्रभावित हो रहे हैं। विदेशी आयातक घरेलू बाजार में भाव स्थिर होने का इंतजार कर रहे हैं लेकिन घरेलू बाजार में सीड की कीमतों में 10-20 फीसदी की भारी तेजी-मंदी बनी हुई है।
इसीलिए बड़े आयातक नए सौदे सीमित मात्रा में ही कर रहे हैं। इस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में ग्वार गम की कीमतें 2,200-2,300 डॉलर और पाउडर की कीमतें 3,000 रुपये प्रति प्रति टन चल रही है।
हरियाणा ग्वार गम एंड केमिकल के डायरेक्टर सुरेंद्र सिंघल ने बताया कि उत्पादक मंडियों में कीमतों मेंं भारी तेजी-मंदी के कारण प्लांट कच्चे माल की खरीद सीमित मात्रा में कर रहे हैं, जिसकी वजह से प्लांट पूरी क्षमता से उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं।
चालू सीजन में 90 फीसदी प्लांटों को भारी घाटा उठाना पड़ा है। उत्पादक मंडियों में शुक्रवार को ग्वार सीड का भाव 4,900 से 5,000 रुपये प्रति क्विंटल रहा।
ग्वार गम का भाव जोधपुर में 13,500 से 14,000 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। महीने भर में सीड की कीमतों में 800 से 1,000 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आई है। उन्होंने बताया कि चालू सीजन में ग्वार सीड का उत्पादन बढ़कर 2.75 से 3 करोड़ बोरी (एक बोरी-एक क्विंटल) होने का अनुमान है, जोकि पिछले साल की तुलना में ज्यादा है।
वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2013-14 के अप्रैल से दिसंबर के दौरान मूल्य के हिसाब से तो ग्वार गम के निर्यात में गिरावट आई है लेकिन मात्रा के हिसाब से निर्यात बढ़ा है।
मूल्य के हिसाब से अप्रैल से दिसंबर के दौरान 10,159.33 करोड़ रुपये का ग्वार गम का निर्यात हुआ है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में 17,175.71 करोड़ रुपये का निर्यात हुआ था। मात्रा के हिसाब से इस दौरान निर्यात पिछले साल के 2.86 लाख टन से बढ़कर 4.65 लाख टन का हुआ है। (Business Bhaskar...R S Rana)
21 फ़रवरी 2014
कठोर नियमों की वजह से मूंगफली निर्यात पर असर
मूंगफली में अफ्लैटॉक्सिन के स्तर को नियंत्रित करने के लिए यूरोपीय संघ और मलेशिया द्वारा कठोर नियमों को लागू करने की वजह से आने वाले महीनों में भारत का मूंगफली निर्यात काफी बुरी तरह प्रभावित हो सकता है।
भारत से मूंगफली निर्यात करने वाले दो सबसे बड़े निर्यातकों ने भारतीय निर्यातकों से इन देशों को भेजे जाने वाले माल के साथ ही स्वास्थ्य प्रमाण पत्र भी भेजने के लिए कहा है। हालांकि दोनों देशों ने भारतीय निर्यात निरीक्षण परिषद (ईआईसी) का गठन किया है, यह संस्था भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत है और स्वास्थ्य प्रमाण पत्र जारी करने के मामले में यह नोडल एजेंसी है।
यह स्वास्थ्य प्रमाण पत्र मौजूदा नियमों के साथ ही अन्य प्रमाण पत्र हासिल करने के लिए भी जरूरी है। जिसमें वैश्विक खाद्य गुणवत्ता मानक एचएसीसीपी भी शामिल है।
ईआईसी के अधिकारी के मुताबिक, 'मलेशिया और यूरोपीय संघ को मूंगफली निर्यातकों के लिए स्वास्थ्य प्रमाण पत्र जारी करने के लिए हमें नोडल एजेंसी के तौर पर नियुक्त किया गया है। इसलिए हम निर्यातकों से हमारे क्षेत्रीय कार्यालयों से निर्यात ऑर्डर पूरा करने के लिए प्रमाण पत्र हासिल करने की गुजारिश करते हैं।'
खास बात यह है कि इन दोनों क्षेत्रों के आयातकों की ओर से लगातार मिल रही शिकायतों के आधार पर कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने कई बार इस बारे में वाणिज्य मंत्रालय को सूचित किया। उन्होंने मंत्रालय को बताया कि निर्यातक वैश्विक नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं। ईआईसी के अधिकारी के मुताबिक इन दोनों क्षेत्रों के आयातकों ने एपीडा से शिकायत करते हुए कहा कि अगर भारतीय निर्यातकों ने वैश्विक मानकों का पालन नहीं किया तो वे मूंगफली आयात पर पाबंदी लगा देंगे। (BS Hindi)
उड़द, चावल और तुअर कॉन्ट्रेक्ट फिर से लांच करने पर विचार
कमोडिटी रेगूलेटर फोरवर्ड मार्केट कमीशन (एफएमसी) ने गुरुवार को कहा है कि वह उड़द, तुअर और चावल में फिर से फ्यूचर कॉन्ट्रेक्ट शुरू करने पर विचार कर रहा है।
एफएमसी चेयरमैन रमेश अभिषेक ने कहा कि हम तीन कमोडिटी तुअर, उड़द और चावल में फिर से फ्यूचर कॉन्ट्रेक्ट को रिलांच करने पर सकारात्मक विचार कर रहे हैं। बढ़ती कीमतों को रोकने के लिए एफएमसी ने 2007 में इन के कॉन्ट्रेक्ट पर प्रतिबंध लगाया था।
इसके बाद, योजना आयोग के सदस्य अभिजीत सेन की अध्यक्षता में बनी एक कमेटी ने अपरी रिपोर्ट में कहा है कि फ्यूचर ट्रेडिंग सामान्य तौर पर किसानों द्वारा तय कीमत के आधार पर होती है और मूल्य वृद्धि में फ्यूचर ट्रेडिंग की कोई भूमिका नहीं है।
अभिषेक ने कहा कि एफएमसी द्वारा दालों के कॉन्ट्रेक्ट पर से प्रतिबंध हटाने के पीछे मानना है कि पिछले पांच सालों में रेगूलेशन में सुधार हुआ है और मूल्य तय करने की प्रक्रिया में भी सुधार हुआ है, जिसकी वजह से बाजार में अस्थिरिता भी नियंत्रण में है। (Business Bhaskar)
निर्यात मांग न होने से घटे बासमती चावल के दाम
आरएस राणा : नई दिल्ली... | Feb 21, 2014, 08:59AM IS
संभावना : मार्च माह में फिर से बढ़ सकती है चावल की मांग
12 फीसदी तक कम हुई है बासमती चावल की कीमतें
27.43 लाख टन हो चुका है चालू वित्त वर्ष के पहले नौ माह में बासमती चावल का निर्यात
बासमती चावल की निर्यात मांग कम होने से इसकी कीमतों में गिरावट आई है। चालू महीने में उत्पादक मंडियों में पूसा-1121 बासमती चावल सेला की कीमतों में 10-12 फीसदी की गिरावट आकर गुरुवार को भाव 7,000-7,200 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। हालांकि चालू वित्त वर्ष 2013-14 के पहले 9 महीनों (अप्रैल से दिसंबर) के दौरान बासमती चावल के निर्यात में 20.95 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल निर्यात 27.43 लाख टन का हो चुका है।
खुरानिया एग्रो के प्रबंधक रामविलास खुरानिया ने बताया कि बासमती चावल में निर्यातकों की मांग कम होने से कीमतों में 1,000 रुपये प्रति क्विंटल से ज्यादा की गिरावट आ चुकी है। उत्पादक मंडियों में जनवरी महीने में पूसा-1121 बासमती चावल सेला का भाव 8,100 से 8,200 रुपये प्रति क्विंटल था, जबकि गुरुवार को भाव घटकर 7,000 से 7,200 रुपये प्रति क्विंटल रह गए।
हालांकि ट्रेडिशनल बासमती चावल और डुप्लीकेट बासमती (डीपी) की कीमतों में इस दौरान 2,00 से 400 रुपये प्रति क्विंटल का ही मंदा आया है। उत्पादक मंडियों में बासमती पूसा-1121 धान की कीमतें इस दौरान घटकर 4,200 से 4,250 रुपये प्रति क्विंटल रह गईं।
ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष एमपी जिंदल ने बताया कि ईरान की मांग कम होने से जनवरी-फरवरी में बासमती चावल के निर्यात सौदों में कमी आई है। हालांकि मार्च महीने में निर्यात सौदों में फिर से तेजी आने की संभावना है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में पूसा-1121 बासमती चावल सेला के निर्यात सौदे 1,400 से 1,450 डॉलर और ट्रेडिशनल बासमती के निर्यात सौदे 1,650-1,750 डॉलर प्रति टन की दर से हो रहे हैं। उन्होंने बताया कि चालू वित्त वर्ष में बासमती चावल के कुल निर्यात में पिछले साल की तुलना में 10 से 12 फीसदी की बढ़त होने का अनुमान है।
एपीडा के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2013-14 के (अप्रैल से दिसंबर) के दौरान 27.43 लाख टन बासमती चावल की निर्यात शिपमेंट हो चुकी है, जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 24.19 लाख टन का ही निर्यात हुआ था। वित्त वर्ष 2012-13 में देश से कुल 34.56 लाख टन बासमती चावल का निर्यात हुआ था।
उधर वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2013-14 के पहले 9 महीनों अप्रैल से दिसंबर के दौरान बासमती चावल का निर्यात मूल्य के हिसाब से 59.64 फीसदी बढ़कर 20,649.65 करोड़ रुपये का हो चुका है, जबकि वित्त वर्ष 2012-13 की समान अवधि में 12,935.47 करोड़ रुपये मूल्य का निर्यात हुआ था।
(Business Bhaskar....R S Rana)
दलहन ज्यादा, नई नीति से होगा फायदा
देश में दलहन फसलों की रिकॉर्ड पैदावार होने का अनुमान है, लेकिन इसका फायदा किसानों को मिलेगा, इस पर शक है। किसानों को उनकी फसल का सही दाम मिलने के लिए जरूरी है कि सरकार बाजार के सभी दरवाजे खोल दे। दलहनी फसलों की कीमतों में लगातार गिरावट पर दाल कारोबारियों का कहना है कि सरकार को आयात और निर्यात दोनों से बंदिश हटानी होगी और चने की तरह दूसरी प्रमुख दलहन फसलों का वायदा कारोबार शुरू करना होगा। इंडियन पल्सेस ऐंड ग्रेन एसोसिएशन के चेयरमैन प्रवीण डोगरे का कहना है कि भारत दुनिया में दलहन का सबसे बड़ा उत्पादक और साथ में आयातक भी है लेकिन किसानों को फायदा नहीं हो रहा है। पिछले पांच सालों से दलहन की कीमतें जहां की तहां हैं जबकि महंगाई लगातार बढ़ती जा रही है। चने जैसी प्रमुख दलहन फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के नीचे बिक रही है। सरकारी नीति के कारण बहुत ज्यादा निर्यात नहीं किया जा सकता है। निर्यात पर करों के बोझ के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में हम टिक नहीं पाते। इसलिए दलहन का निर्यात भी करना होगा और जरूरत पडऩे पर आयात भी। पिछले एक साल में चने की कीमतों में करीब 25 फीसदी गिरावट आ चुकी है। इस बार भी रिकॉर्ड उत्पादन है। लिहाजा, कीमतों में बढ़ोतरी मुश्किल है। इसलिए कारोबारी चाहते हैं कि सरकार निर्यात पर लगी बंदिशें हटाने के साथ ही अरहर सहित सभी दलहन फसलों का वायदा कारोबार शुरू करने की अनुमति दे।
दलहन कारोबारियों का मानना है कि पिछले कुछ दिनों से केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने संकेत दिए हैं कि सरकार दलहन नीति में बदलाव कर सकती है। अनुकूल मौसम और बुआई में बढ़ोतरी से चालू फसल वर्ष के दौरान देश में चावल, गेहूं और दलहन की रिकॉर्ड पैदावार होने का अनुमान है। केंद्र सरकार के दूसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक वर्ष 2013-14 में खाद्यान्न उत्पादन 2.3 फीसदी बढ़कर 26.32 करोड़ टन के रिकॉर्ड पर पहुंच सकता है। वर्ष 2013-14 में दलहन की पैदावार बढ़कर 197.7 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले वर्ष 2012-13 में 183.4 लाख टन दलहन फसलों की पैदावार हुई थी। चने की रिकॉर्ड 97.9 लाख टन पैदावार होने का अनुमान है जबकि पिछले साल चने का उत्पादन 88.3 लाख टन हुआ था। अरहर की भी रिकॉर्ड 33.4 लाख टन पैदावार होने जा रही है।
चने की कीमतों में लगातार गिरावट के बावजूद इस साल चने की बुआई पिछले 53 साल का रिकॉर्ड तोडऩे के करीब पहुंच चुकी है। खेतों में नमी और रबी सीजन के दौरान हल्की बारिश से चने का रकबा नये रिकॉर्ड की ओर बढ़ रहा है। चालू रबी सीजन में दलहन फसलों की बुआई 161.9 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में हो चुकी है जबकि पिछले साल दलहन फसलों का रकबा 152.65 लाख हेक्टेयर ही था। चने का रकबा 103 लाख हेक्टेयर के पार पहुंच चुका है। देश में चने की बुआई 1959-60 में रिकॉर्ड 103.30 लाख टन हुई थी।
कनाडा से दलहन आयात में आ सकती है दिक्कत
भारत को दलहन जैसी कुछ प्रमुख कृषि जिंसों का निर्यात करने वाले कनाडा के सस्कैचेवन राज्य ने लॉजिस्टिक्स की समस्या के कारण भारत को किए जाने वाले कृषि निर्यात में गिरावट की आशंका जताई है। सस्कैचेवन के कृषि मंत्री लाइल स्टीवर्ट ने कहा, 'अगला वित्त वर्ष मजबूत दिखाई दे रहा है लेकिन हमें लॉजिस्टिक्स की समस्या का सामना करना पड़ रहा है।' (BS Hindi)
सोने पर आयात शुल्क 2 फीसदी करने की मांग
वाणिज्य मंत्रालय के तहत कार्यरत उच्च स्तरीय आभूषण संवद्र्घन संस्था जेम्स ऐंड ज्वेलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (जीजेईपीसी) ने सरकार से सोने का आयात शुल्क मौजूदा 10 फीसदी से घटाकर 2 फीसदी करने की गुजारिश की है।
वाणिज्य मंत्रालय और वित्त मंत्रालय को सौंपे ज्ञापन में जीजेईपीसी ने कहा कि सोने का आयात शुल्क बढ़ाने का सरकार का उद्देश्य पूरा हो चुका है क्योंकि चालू खाता घाटा अब नियंत्रण में आ चुका है। जीजेईपीसी के चेयरमैन विपुल शाह ने कहा, '80:20 अनुपात नियम लागू होने के बाद से सोने के कुल आयात में वांछित कमी आ चुकी है, इस नियम के तहत 20 फीसदी आयातित सोना ज्वेलरी निर्यातकों को दिया जाता है। इसलिए आयात शुल्क में बढ़ोतरी को वापस ली जानीचाहिए और इसे 2 फीसदी कर देना चाहिए।'
शाह ने तर्क दिया कि सोने के आयात पर पाबंदी का असर रत्नों और आभूषण के निर्यात पर पड़ रहा है। अप्रैल 2013 से लेकर जनवरी 2014 तक पिछले दस महीनों के दौरान निर्यात 2.22 फीसदी घटकर 1,63,742.91 करोड़ रुपये रह गया जबकि पिछले साल की समान अवधि में यह आंकड़ा 1,67,669.77 करोड़ रुपये था। इसी हफ्ते पेश अपने अंतरिम बजट में वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने भविष्य में ऐसी किसी भी संभावना से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा, 'सोने के आयात शुल्क में कमी को लेकर कोई भी कदम चालू खाता घाटे के विश्लेषण और अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव के आकलन के बाद ही उठाया जाएगा।Ó इस बीच जीजेईपीसी का तर्क है कि चरणबद्घ तरीके से आयात शुल्क में इजाफे से आधिकारिक तरीके से सोने के आयात में कमी आई है लेकिन इससे सोने की तस्करी का कारोबार चमक गया है। (BS Hindi)
Centre aims to procure 31 MT wheat in 2014-15 mktg year
New Delhi, Feb 21. Government is targeting to procure
31 million tonnes (MT) of wheat during 2014-15 marketing year
-- 22 per cent higher than the current year, Parliament was
informed today.
In a written reply to Rajya Sabha, Food Minister K V
Thomas said: "The estimate fixed for purchase of wheat in the
current year -- Rabi Marketing Season (RMS) 2014-15 is 310
lakh tonnes."
Food Corporation of India (FCI), the nodal agency for
procurement and distribution of foodgrains, had procured 25.4
MT of wheat in 2013-14 marketing year.
The wheat marketing year runs from April to March but the
FCI's procurement operation gets completed in three months
only.
For the current marketing year, the government had fixed
procurement target at 42.10 MT, but procurement dropped
significantly due to fall in production and aggressive buying
by private traders.
"In the meeting of state food secretaries to review
preparation of procurement of wheat in RMS 2014-15, the states
have reported that they have no problem of storage space for
wheat to be procured to meet the estimates," Thomas said in
the reply.
Meanwhile, Agriculture Ministry in its second advance
estimate has pegged the foodgrains production in the current
crop year to all-time high of 263.2 MT as the country is
likely to achieve record rice, wheat and pulses output on the
back of good monsoon.
Wheat production is estimated to rise at record 95.60 MT
in 2013-14 against 93.51 MT in the previous year.
Previous record of foodgrains, rice and wheat was
achieved during 2011-12 crop year at 259.3 MT, 105.3 MT and
94.88 MT, respectively. In pulses, all-time high was 18.34 MT
last year.
Gold holds below 15-week high as Fed cuts weighed against data
London, Feb 21. Gold today held below a 15-week
high as investors weighed indications US policy makers will
press on with stimulus cuts against weaker economic data.
Gold fell by 0.2 per cent to USD 1,320.80 an ounce and
silver by 0.4 per cent to USD 21.73 an ounce.
Meanwhile, bullion added 0.2 per cent this week after
climbing to USD 1,332.45 an ounce on February 18, the highest
since October 31.
US reports since last week showed retail sales and factory
output unexpectedly dropped in January and housing starts
slumped, while a Chinese manufacturing index fell to the
lowest level in seven months, data showed yesterday.
The Fed's January meeting minutes released this week
signalled policymakers supported a continued decrease in bond
purchases. They cut monthly bond-buying by USD 10 billion at
each of the past two meetings, leaving purchases at USD 65
billion.
Gold falls on subdued demand; silver up on scattered buying
New Delhi, Feb 21. Gold prices fell by Rs 100 to Rs
31,150 per ten grams in the national capital today on
slackened demand amid a weak global trend.
However, silver recovered by Rs 50 to Rs 47,550 per kg on
scattered buying.
Traders said sluggish demand and a weak global trend on
speculation that recent rally is curbing physical demand in
Asia and as the US Federal Reserve indicated that it will
press on with cuts to stimulus, mainly influenced the
sentiment.
Gold in Singapore, which normally sets price trend on the
domestic front, fell by 0.5 per cent to USD 1,316.08 an ounce.
On the domestic front, gold of 99.9 and 99.5 per cent
purity fell by Rs 100 each to Rs 31,150 and Rs 30,950 per ten
grams, respectively. Sovereign followed suit and lost Rs 100
at Rs 25,400 per piece of eight grams.
On the other hand, silver ready recovered by Rs 50 to Rs
47,550 per kg and weekly-based delivery by Rs 140 to Rs 47,350
per kg, while silver coins remained steady at Rs 88,000 for
buying and Rs 89,000 for selling of 100 pieces.
20 फ़रवरी 2014
Chouhan writes to PM over APEDA's move on basmati rice issue
Bhopal, Feb 20. Madhya Pradesh Chief Minister
Shivraj Singh Chouhan has expressed dismay over Agricultural
and Processed Food Products Export Development Authority's
appeal against the decision of Geographic Indication, Chennai
to accept Madhya Pradesh as a 'basmati' rice cultivating area.
Chouhan, in a letter to Prime Minister Manmohan
Singh, yesterday said that the state government and farmers'
bodies had presented before Geographic Indication, Chennai,
numerous authentic and indisputable historic documents and
laboratory reports to prove that Madhya Pradesh has been
traditionally growing basmati rice variety for over a century.
The quality of basmati rice grown in Madhya Pradesh is
as good as, if not superior to, basmati grown in northern
India, he said in the letter.
It seems that APEDA, which has the mandate of
promoting export of agriculture produce, has "succumbed to
certain vested interests of northern India," he said.
"Acting against its own mandate and under bogey of WTO
and international courts, it has filed an appeal against GI
order dated December 31, 2013, thereby hurting the legal and
legitimate rights of Madhya Pradesh's farmers," Chouhan said.
"It implies that APEDA has apparently no objection to
basmati rice grown in Pakistan but has definite objection to
include Madhya Pradesh as basmati cultivation area," he said.
in the letter.
Chouhan urged the Prime Minister to immediately
intervene in the matter and direct APEDA to accept the GI
Chennai's order dated December 31, 2013 in letter and spirit.
The chief minister said he would like to emphasise
that his government will continue to press for the interests
and rights of state's basmati farmers.
He also wrote similar letters to Union Agriculture
Minister Sharad Pawar and Union Commerce and Industries
Minister Anand Sharma.
Logistical problems at home concern for Saskatchewan exports
Panaji, Feb 20. The Canadian state of Saskatchewan
fears its agricultural produce export to India could plummet
due to logistical problems back home.
"The next financial year looks to be strong but we are
experiencing logistical issues back home," Lyle Stewart,
Minister for Agriculture, Saskatchewan, told on the
sidelines of ongoing 'The Pulses Conclave' in Goa organised by
India Pulses and Grains Association (IPGA).
Saskatchewan is the largest Canadian trading partner
for India.
"All products are sent through sea port and there is
competition with other commodities that may slowdown export
for the next financial year," he explained.
India is the fourth largest market for agricultural
products from Saskatchewan region, with the US leading the
buyers followed by China and Japan.
The region exported agricultural produce worth USD 691
million (lentils USD 335 million and peas USD 354 million) to
India.
Stewart, who is currently on a 12-day mission to
India, United Arab Emirates and Morocco, said that problems
with rail transportation is another hurdle faced by
the region, which proves to be an impediment for exports.
"The slowdown will affect other commodities too. The
problems are associated with our rail system. We expect that
the federal government will work out a solution. Ideally, we
can supply more in a normal year," said Stewart.
He said the rail transportation will take off after
weather warms up there following which the exports will catch
up.
Stewart said besides the logistical issue faced by
Saskatchewan, the year-on-year growth with India will also
depend on the demand from the country.
"We are trying to compliment Indian production," he
said while terming India as "natural partner" due to its large
population.
"Business with India is extremely important as the
country with 1.2 billion people has high needs for food
products. I am here to service good relationship with India,"
he said.
"Government of India and Canada are talking about the
trade agreements to further boost the ties. We are here to
encourage both the governments to pursue their trade
relations," the Minister said.
Since India has an ambitious goal to increase
agricultural productivity, the research assistance from
Saskatchewan can also help it achieve the same, he added.
Burdwan district extends KCC facilities to 4.82 lakh farmers
Burdwan( WB), Feb 20. Burdwan, considered the
rice bowl of Bengal, is probably the first district in the
country to provide credit facilities through Kisan Credit
Cards (KCC) to 4.82 lakh farmers, a top district official said
today.
Against a target of giving 4.7 lakh Kisan Credit Cards to
the farmers, the district administration has already succeeded
in extending credit facilities through KCC to 4.82 lakh,
Burdwan District Magistrate Saumitra Mohan told PTI.
He said probably no other district in the country have
such a large number (4.82 lakh) of farmers been provided
credit facilities through KCC.
The agri-based district is regarded as the rice bowl of
Bengal producing the largest amount of paddy.
The district administration held regular and rigorous
meetings with all the stakeholders which made a positive
difference, the DM said adding this feat was achieved
mostly during the last two years.
"We are now planning to have mobile camps throughout the
district to further help the needy farmers to better access
the credit facilities," Mohan said.
A helpline number is also planned to be introduced soon
for providing KCC on demand.
पॉलिमर प्रसंस्करणकर्ताओं पर चोट
करीब एक साल तक लगातार कीमतों में कटौती की मार झेलने वाले पॉलिमर विनिर्माता पॉलिप्रोपलीन की कीमतें 2 रुपये प्रति किलोग्राम बढ़ा सकते हैं। इसकी वजह सालाना रखरखाव के लिए रिलायंस इंडस्ट्रीज द्वारा अपनी तीन इकाइयों को बंद करने का ऐलान और वैश्विक बाजार में कीमतों में आई मजबूती है। पॉलिथिलीन की कीमतें हालांकि इसी स्तर पर बनी रहने की संभावना है। इससे पहले हल्दिया पेट्रोकेमिकल ने सालाना रखरखाव के लिए अपनी इकाइयां बंद की थीं। उद्योग के सूत्रों ने आगाह किया कि घरेलू बाजार में मांग में बढ़ोतरी इसकी वजह नहीं है बल्कि पॉलिमर के प्रमुख उत्पादकों द्वारा क्षमता में की गई कटौती है।
इसके अलावा चीन, ताइवान और जापान में मांग बढऩे के चलते आयात महंगा हो गया है। इन देशों के बाजार 15 दिसंबर के बाद से निष्क्रिय हो गए थे और अब चीनी नव वर्ष के बाद खुल गए हैं। पॉलिमर खास तौर से पॉलिप्रोपलीन की वैश्विक कीमतें 100-120 डॉलर प्रति टन बढ़ गई हैं और अब यह 1400-1420 डॉलर प्रति टन पर बिक रहा है जबकि एक महीने पहले इसका भाव 1300-1320 डॉलर प्रति टन था।
दूसरी ओर पॉलिविनाइल यानी पीवीसी विनिर्माता देश में इसका इस्तेमाल करने वालों के पास ज्यादा भंडार होने के चलते दुविधा में हैं, लेकिन कीमतें बढ़ाने के लिए मौके का इंतजार कर रहे हैं। दक्षिण पूर्वी व पूर्वी देशों से मांग में तेजी के चलते वैश्विक कीमतें बढ़ी हैं और यह पिछले कुछ दिनों में 970-990 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 1000-1020 डॉलर प्रति टन हो गई हैं।
कंपनी के सूत्रों ने कहा - कीमतों में बढ़ोतरी के लिए विनिर्माता वैश्विक कीमतों व डॉलर की चाल का इंतजार करेंगे और एक हफ्ते में ऐसा हो सकता है। अगर वैश्विक कीमतों में बढ़त जारी रहती है और रुपये के मुकाबले डॉलर स्थिर रहता है या मजबूत होता है तो कीमतें बढ़ सकती हैं। हालांकि आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि आयात के मोर्चे पर घरेलू बाजार में पीवीसी की कीमतें अपेक्षाकृत ज्यादा हैं क्योंकि मुनाफा बनाए रखने के लिए विनिर्माता कीमतों में कटौती नहीं करेंगी। इसकी वजह कच्चे माल की लागत ऊंची रहना भी है। सूत्रों ने कहा कि आयातित व घरेलू कीमतों के बीच का अंतर आज भी करीब 2 रुपये प्रति किलोग्राम है। पीवीसी की आधारभूत किस्म की कीमतें जनवरी में दो बार कम की गई थीं और कुल कटौती विभिन्न उत्पादों में करीब 3.50 रुपये प्रति किलोग्राम की थी। मौजूदा समय में देश में पीवीसी की आधारभूत किस्म की कीमतें 55 रुपये प्रति किलोग्राम हैं और इसमें कर शामिल नहीं है।
पॉलिप्रोपलीन और पॉलिथिलीन के मामले में घरेलू बाजार में मांग कमजोर है और ग्राहकों को खींचने के लिए विनिर्माता कीमत सुरक्षा योजना की पेशकश कर रहे हैं। पॉलिप्रोपलीन में सरकार ने सऊदी अरब से आयात पर एंटी-डंपिंग ड्यूटी समाप्त कर दी है, जो विश्व के प्रमुख विनिर्माताओं में से एक है। सूत्रों ने कहा कि इस वजह से भी घरेलू बाजार में नरमी है क्योंकि सऊदी से आयात करना सस्ता है।
पीई अभी भी 80-85 रुपये प्रति किलोग्राम के दायरे में है जबकि पीपी 84-86 रुपये प्रति किलोग्राम के दायरे में। कीमत सुरक्षा योजना के तहत एक बार जब उपभोक्ता उत्पाद खरीदता है तो उसे होने वाली नुकसान की भरपाई की जाती है, अगर कंपनी एक हफ्ते या महीने के भीतर कीमतों में कटौती का ऐलान करती है। पॉलिमर के प्रमुख विनिर्माता हल्दिया पेट्रोकेमिकल्स, इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन, गेल और रिलायंस इंडस्ट्रीज हैं। पॉलिप्रोपलीन का इस्तेमाल रोजाना इस्तेमाल होने वाले सामानों में किया जाता है। (BS Hindi)
18 फ़रवरी 2014
Sugar output drops by 13% so far; cane arrears cross Rs 12k cr
New Delhi, Feb 18. The country's sugar output fell
over 13 per cent to 14.37 million tonnes so far this year on
delayed crushing while sugarcane arrears have crossed Rs
12,000 crore till date, industry body Indian Sugar Mills
Association (ISMA) said today.
Mills had manufactured 16.58 million tonnes of sugar in
the corresponding period of the 2012-13 marketing year
(October-September), it said in a statement.
According to ISMA, sugar output in Maharashtra has
reached 4.98 million tonnes while in Uttar Pradesh it declined
18 per cent to 3.57 million tonnes and by four per cent to 2.7
million tonnes in Karnataka so far this year.
Sugar recovery in Maharashtra and Uttar Pradesh -- the
country's top two sugar producing states -- was at 10.96 per
cent and 8.91 per cent, respectively.
Mills have produced 7,50,000 tonnes of sugar in Gujarat,
6,60,000 tonnes in Andhra Pradesh and 4,50,000 tonnes in Tamil
Nadu till February 15 of the ongoing 2013-14 marketing year,
it said in a statement.
ISMA said the total raw sugar production has reached
8,00,000 tonnes till January this year, while mills are aiming
to manufacture additional 10,00,000 tonnes in the remaining
months of the current marketing year.
On sugarcane arrears, the industry body said total cane
payment dues of farmers have crossed Rs 12,000 crore, of which
Rs 8,000 crore pertains to Uttar Pradesh and Rs 3,000 crore
for Karnataka alone as on date, it said in a statement.
On exports, ISMA said about 8,50,000 tonnes of sugar has
been sold in the overseas market till January of this year.
Of this, 4,50,000 tonnes was raw sugar and the rest refined.
"Another 1.2 to 2 lakh tonnes, mostly raw sugar, are in
transit for getting exported," it added.
The country had sugar stock of 11.7 million tonnes till
January this year.
ISMA, which has pegged sugar output at 25 million tonnes
for this year, said it will soon review the estimate figures.
17 फ़रवरी 2014
जिंस एक्सचेंजों को अलग शुल्क लगाने की अनुमति
जिंस बाजार नियामक, वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) ने राष्ट्रीय स्तर के जिंस एक्सचेंजों को बाजारों को डिलिवरी और गैर-डिलिवरी आधारित जिंस अनुबंधों के लिए अलग-अलग कारोबार शुल्क लगाने की अनुमति दे दी। वर्ष 2009 से इन जिंस एक्सचेंजों को जिंस अथवा समयसीमा पर आधारित अलग-अलग कारोबार शुल्क लगाने से रोक दिया गया था। छह राष्ट्रीय स्तर के जिंस एक्सचेंजों को जारी दिशानिर्देशों में वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) ने कहा, 'पूर्व के निर्देशों को खत्म करते हुए, आयोग ने अब फैसला किया है कि जिंस एक्सचेंज अलग-अलग जिंसों के लिए अलग अलग कारोबार शुल्क लगा सकती हैं।' इसमें कहा गया है कि यह कदम बाजार को अधिक सक्षम बनाएगा और बाजार कारोबारियों को कम लागत का लाभ उठाने का अवसर देगा।
एमसीएक्स, एनसीडीईएक्स, एनएमसीई, आईसीईएक्स, एसीई और यूसीएक्स जैसे राष्ट्रीय एक्सचेंज को इस दिशानिर्देश को अपनाने का निर्देश दिया गया है और 20 फरवरी तक अनुपालन रिपोर्ट जमा कराने को कहा गया। एफएमसी का मानना है कि अलग-अलग कारोबार शुल्क ढांचे को लागू करने का औचित्य यह है कि डिलिवरी आधारित अनुबंधों की पेशकश लागत, गैर-डिलिवरी आधारित अनुबंधों की पेशकश की लागत से कहीं अधिक है। इसमें कहा गया है कि अधिक सक्षमता और कम कारोबार लागत को लाते हुए बाजार में प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करने की भी आवश्यकता है। विश्लेषकों ने कहा कि रोजमर्रा के मामले में जिंस एक्सचेंजों को अधिक स्वतंत्रता प्रदान करने की दिशा में एफएमसी द्वारा उठाया गया यह एक बेहतर कदम है। (BS Hindi)
चीनी विनियंत्रण का भी नहीं मिला मिलों को लाभ
अब तक चीनी कंपनियां कई दशकों से बरकरार नियंत्रणों से उद्योग को मुक्त कराने की कोशिश कर रही थीं। इस साल सरकार ने क्षेत्र को आंशिक नियंत्रण मुक्त कर भी दिया, लेकिन यह उद्योग दूसरे संकट में फंस गया है। ऐसे समय में जब गन्ने की कीमतें ऊंची बनी हुई हैं, तब घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी के दामों में लगातार गिरावट आ रही है। पिछले साल 4 अप्रैल को चीनी उद्योग को नियंत्रण मुक्त किया गया था। इसके बाद चीनी उद्योग के लिए बड़ी मात्रा में आपूर्ति के अनुबंध करने के असवर खुले थे। लेकिन उद्योग इन मौकों को भी नहीं भुना पा रहा है। भारतीय बाजार में चीनी की कीमतें विनियंत्रण की घोषणा के बाद मई के सर्वोच्च स्तर से करीब 12 फीसदी गिर चुकी हैं, जबकि पिछले साढे तीन महीनों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी के दाम 20 फीसदी टूटे हैं।
अगर आज की तारीख में मिलें कच्ची चीनी का निर्यात करती हैं तो उन्हें कीमत 4,400 रुपये प्रति टन मिलती है, जो उनकी उत्पादन लागत से भी कम है। वहीं घरेलू बाजार में सफेद चीनी की बिक्री पर उन्हें महाराष्ट्र जैसे राज्य में 3,500 रुपये प्रति टन और उत्तर प्रदेश में 7,000 रुपये प्रति टन का घाटा हो रहा है। पहले, जब मिलों से कहा गया था कि न कोई लेवी कोटा होगा और न ही मुक्त बिक्री कोटा। उद्योग अपनी योजना के मुताबिक खुले बाजार में चीनी बेच सकेगा। राज्यों से कहा गया था कि वे अपनी सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के लिए चीनी खुले बाजार से खरीदें। इससे उद्योग को बड़ी मात्रा में चीनी बिक्री की संभावना दिखाई दी थी। हालांकि ज्यादातर राज्यों ने चीनी आपूर्ति के लिए सहकारी मिलों से करार किया और निजी मिलों को मायूस होना पड़ा।
विदेश में चीनी के भारी उत्पादन के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी के दामों में तेजी से गिरावट आई है और इस वजह से निर्यात भी नहीं हो रहा है। आइसक्रीम और शीतलपेय बनाने वाली कंपनियां सफेद चीनी की बड़ी खरीदार होती हैं और निजी मिलें गर्मियों के सीजन में आपूर्ति के लिए उनके साथ करार करती हैं। लेकिन यह मौका भी उनके हाथ नहीं लगा, क्योंकि लगातार गिरती कीमतों और अगले कुछ महीनों के दौरान कीमतों का रुझान कमजोर रहने के अनुमानों के कारण मुश्किल से ही कोई आइसक्रीम व शीतलपेय कंपनी आपूर्ति का करार कर रही है। इससे पहले यह संभव नहीं था, क्योंकि मिलों को ही नहीं पता होता था कि निश्चित समयावधि में वे कितनी चीनी बेच पाएंगी । क्योंकि बिक्री का कोटा सरकार द्वारा तय किया जाता था।
एक दिग्गज शीतलपेय कंपनी ने अपनी आंशिक जरूरत पूरी करने के लिए उत्तरी भारत की एक चीनी मिल के साथ करार किया है। डालमिया भारत शुगर ऐंड इंडस्ट्रीज ने आपूर्ति का करार किया है। हालांकि कंपनी के सीईओ बीबी मेहता ने कहा, 'चीनी उद्योग ने बड़े खरीदारों के साथ बड़ी आपूर्ति के अनुबंध करने का एक अन्य मौका भी खो दिया है, क्योंकि चीनी की कीमतों में गिरावट का रुख बना हुआ है और आगे का आउटलुक भी कमजोर बना हुआ है।'
पेट्रोल में एथेनॉल के मिश्रण की स्वीकृति से उद्योग के लिए तेल विपणन कंपनियों को इसकी आपूर्ति भी एक मौका था। हालांकि कुछ वजहों से तेल विपणन कंपनियां एथेनॉल की कम खरीद कर रही हैं। भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने कहा, 'मिलों पर गन्ना किसानों का बकाया 31 जनवरी, 2014 तक अब तक के सर्वोच्च स्तर 10,000 करोड़ रुपये पर पहुंच गया है। अगर सरकार नहीं जागी तो अगले कुछ महीनों में यह 15,000 करोड़ रुपये पर पहुंच जाएगा।' (BS HIndi)
चावल, गेहूं व दलहन की रिकॉर्ड पैदावार होने का अनुमान
अच्छी तस्वीर : खाद्यान्न उत्पादन 26.32 करोड़ टन होने की उम्मीद
अनुकूल मौसम और बुवाई क्षेत्रफल में हुई बढ़ोतरी से चालू फसल वर्ष (2013-14) के दौरान देश में चावल, गेहूं और दलहन की रिकॉर्ड पैदावार होने का अनुमान है। केंद्र सरकार द्वारा शुक्रवार को जारी दूसरे अग्रिम अनुमानों के अनुसार वर्ष 2013-14 में खाद्यान्न उत्पादन 2.3 फीसदी बढ़कर 26.32 करोड़ टन रिकॉर्ड होने का अनुमान है।
कृषि मंत्रालय द्वारा जारी दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार वर्ष 2013-14 में गेहूं का रिकॉर्ड उत्पादन 956 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले वर्ष 2012-13 में गेहूं का 935.1 लाख टन का उत्पादन हुआ था।
इसी तरह से वर्ष 2013-14 में चावल का रिकॉर्ड उत्पादन 10.61 करोड़ टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 10.52 करोड़ टन चावल का उत्पादन हुआ था। दलहन की भी रिकॉर्ड पैदावार 197.7 लाख टन होने का अनुमान है।
साथ ही कपास का उत्पादन भी वर्ष 2013-14 में 356 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलो) होने का अनुमान है। दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार वर्ष 2013-14 में देश में खाद्यान्न की पैदावार रिकॉर्ड पैदावार 26.32 करोड़ टन होने का अनुमान है जबकि फसल वर्ष 2012-13 में 25.71 करोड़ टन खाद्यान्न की पैदावार हुई थी।
मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2013-14 में दलहन की पैदावार बढ़कर 197.7 लाख टन होने का अनुमान है जबकि वर्ष 2012-13 में 183.4 लाख टन दालों की पैदावार हुई थी।
रबी दलहन की प्रमुख फसल चने की रिकॉर्ड पैदावार 97.9 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले वर्ष 88.3 लाख टन की पैदावार हुई थी। अरहर की पैदावार भी रिकॉर्ड 33.4 लाख टन होने का अनुमान है। तिलहनों की पैदावार वर्ष 2013-14 में बढ़कर 329.8 लाख टन होने का अनुमान है जबकि वर्ष 2012-13 में 309.4 लाख टन तिलहनों की पैदावार हुई थी।
तिलहन की प्रमुख फसलों सरसों की पैदावार बढ़कर 82.5 लाख टन और मूंगफली की पैदावार 91.4 लाख टन होने का अनुमान है। हालांकि सोयाबीन की पैदावार पिछले साल के 146.6 लाख टन से कम होकर 124.5 लाख टन ही होने का अनुमान है। वर्ष 2013-14 में मोटे अनाजों ज्वार, बाजरा और मक्का का उत्पादन बढ़कर 416.4 लाख टन होने का अनुमान है जबकि वर्ष 2012-13 में 400.4 लाख टन का उत्पादन हुआ था।
मोटे अनाजों में मक्का की रिकॉर्ड 232.9 लाख टन की पैदावार होने का अनुमान है। ज्वार की पैदावार 55.3 लाख टन और बाजरे की पैदावार 88 लाख टन होने का अनुमान है। दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार गन्ने का उत्पादन पिछले साल के 3,412 लाख टन से बढ़कर 3,459.2 लाख टन होने का अनुमान है। जूट का उत्पादन इस दौरान 113 लाख गांठ (एक गांठ-180 किलो) होने का अनुमान है। (Business Bhaskar....R S Rana)
Govt announces service tax exemption for rice
New Delhi, Feb 17. Finance Minister P Chidambram
today announced that service tax would be abolished on rice
from the staple's loading to storage stage.
Rice was originally exempt from service tax. However,
later the Finance Ministry had said that only paddy is
agri-produce, while rice is a processed item.
Presenting the interim budget for 2014-15 fiscal,
Chidambram said: "By virtue of the definition of 'agricultural
produce' in Finance Act 2012, read with the Negative List,
storage or warehousing of paddy was excluded from the levy of
service tax. Rice was not. The distinction is somewhat
artificial. Hence, I propose to exempt loading, unloading,
packing, storage and warehousing of rice from service tax."
The FM's decision comes following pressure from Tamil
Nadu Chief Minister Jayalalithaa who had shot off a letter to
Prime Minister Manmohan Singh seeking his personal
intervention in the issue. She had also also sought to remit
and return the already levied service tax since July 1, 2012.
Jayalaithaa had said that the levy of service tax on rice
as "discriminatory and completely unjust" against people in
south and east where the grain is the staple food.
"The interpretation given by the Ministry of Finance
defies logic and common sense. From time immemorial, rice has
been regarded as an 'agricultural commodity'," she had said.
Govt raises agri credit target to Rs 8 lakh cr for 2014-15
New Delhi, Feb 17. In a bonanza for farmers ahead of
general elections, the government today said it has set an
agriculture credit target of Rs 8 lakh crore for 2014-15 as
against an expected level of Rs 7.35 lakh crore this fiscal.
Presenting the interim budget for the next fiscal,
Finance Minister P Chidambaram said farm exports would
increase to over USD 45 billion this fiscal, as against USD 41
billion in 2012-13. He also estimated sharp increase in growth
of agriculture sector to 4.6 per cent this year.
"We are proud of stellar performance of agriculture.
...Agriculture credit is likely to touch Rs 7,35,000 crore,
exceeding the target of Rs 7,00,000 crore. ...I am therefore
encouraged to set a target of Rs 8,00,000 crore for 2014-15,"
he said in his budget speech.
Chidambaram further said interest subvention scheme on
farm credit, introduced way back in 2006-07, would continue
during the next fiscal. At present, interest rate on farm loan
is 7 per cent, while it is 4 per cent for those who repay on
time.
"There is a subvention of 2 per cent and incentive of 3
per cent for prompt payment. Thus reducing the effective rate
of interest on farm loans to 4 per cent, so far Rs 23,924
crore has been released under the scheme. I propose to
continue the scheme in 2014-15," he added.
Highlighting the improved growth of agriculture sector
during the UPA tenure, the Minister said: "Agriculture GDP
growth increased to 3.1 per cent in five years of UPA-I,
further to 4 per cent in the first four years of UPA-2. In the
current year, agri growth is estimated at 4.6 per cent."
Chidambaram said that foodgrain production in last ten
years has increased from 213 million tonnes to 263 million
tonnes this year.
"Foodgrain production in 2012-13 was 255 million tonnes.
The estimate for the current year is 263 million tonnes. The
estimates of production of sugarcane, cotton, pulses, oilseeds
point to a new record," he said.
That apart, Chidambaram said the UPA government enacted
the landmark food law that ensures legal right over cheaper
foodgrains to 67 per cent of the country's population. It also
decontrolled the sugar sector.
No policy paralysis; economy stable: Chidambaram
New Delhi, Feb 17. Rejecting arguments of "policy
paralysis", Finance Minister P Chidambaram today said the
economy is more stable than what it was two years ago
following several steps taken by the government and that the
growth will be higher in the second half of the fiscal.
"Thanks to the numerous measures, I was confident that
the decline will be arrested and growth cycles will turn in
the second quarter. I believe, I have been vidicated...second
quarter at 4.8 per cent and growth for whole year has been
estimated at 4.9 per cent.
"This means that growth in Q3 and Q4 of 2013-14 will be
at least 5.2 per cent," he said in the interim budget.
He said the UPA government's record on economic growth
front is "unparalleled".
"Madam speaker, I reject the argument of policy
paralysis. Just as there are business cycles, there is a cycle
around the trend growth rate of an economy.
"I can confidently assert that the economy is more
stable today than what it was two years ago," Chidambaram
said.
India's economic growth slowed to a decade low of 4.5
per cent in 2012-13 due to global as well as domestic factors,
like high interest rate.
The government took several steps, including setting up
of Cabinet Committee on Investment (CCI) under chairmanship of
Prime Minister Manmohan Singh to fast track big ticket
projects.
While industrial growth contracted for three consecutive
months through December, good monsoon rains in 2013 were a
good news for the agricultural sector, which has about 15 per
cent share in the GDP.
Agri credit to cross Rs 7 lakh cr;exports to surge over $45 bn
New Delhi, Feb 17. Agriculture credit is likely to
exceed the target of Rs 7,00,000 crore while farm exports are
expected to increase to over USD 45 billion in the current
fiscal, Finance Minister P Chidambaram said today.
"We are proud of stellar performance of agriculture.
...Agriculture credit is likely to touch Rs 7,35,000 crore,
exceeding the target of Rs 7,00,000 crore," he said while
presenting the interim Budget for 2014-15 fiscal.
Chidambaram also stated that agricultural exports are
likely to cross USD 45 billion this fiscal, as against USD
41 billion in 2012-13.
Highlighting the improved growth of agriculture sector
during the UPA tenure, the Minister said: "Agriculture GDP
growth increased to 3.1 per cent in five years of UPA-I,
further to 4 per cent in the first four years of UPA-2. In the
current year, agri growth is estimated at 4.6 per cent."
Chidambaram attributed the likely increase in farm growth
this fiscal to estimated bumper production in various crops.
"Foodgrain production in 2012-13 was 255 million tonnes.
The estimate for the current year is 263 million tonnes. The
estimate of production of sugarcane, cotton, pulses, oilseeds
point to a new record," he said.
The likely record foodgrain production is on the back of
a good monsoon this year.
Gold jumps Rs 465 on global cues; regains crucial Rs 31K level
New Delhi, Feb 17. Gold regained the crucial Rs
31,000 per ten grams level after a gap of two months here
today on sustained buying by stockists and retailers amid a
firming global trend.
After gaining Rs 235 in last three sessions, gold further
spurted by Rs 465 to Rs 31,450 per ten grams, a level last
seen on December 12.
On similar lines, silver shot up by Rs 900 to Rs 47,900
per kg after rising Rs 2,060 in previous three sessions on
increased offtake by industrial units and jewellers.
In Mumbai, gold of 99.9 and 99.5 per cent purity traded at
Rs 31,010 and Rs 30,950 per ten grams, respectively while
silver enquired at Rs 48,500 per kg.
Traders said persistent buying by stockists and retailers
to meet the ongoing wedding season demand mainly led to an
upward trend in precious metals.
Firming global trend where gold advanced to the highest
level in more than three months as demand for haven assets
increased on speculation that the US economic recovery will
slow, further fuelled the uptrend, they said.
Gold in Singapore, which normally sets the price trend on
the domestic front, rose by 0.9 per cent to USD 1,330.03 an
ounce, the highest since October 31 and silver surged 2.2 per
cent to USD 21.97 an ounce, the highest since November 7.
In the national capital, gold of 99.9 and 99.5 per cent
purity surged by Rs 465 each to Rs 31,450 and Rs 31,250 per
ten grams, respectively. Sovereign shot up by Rs 200 to Rs
25,600 per piece of eight grams.
Silver ready recorded a handsome gain of Rs 900 to Rs
47,900 per kg and weekly-based delivery by Rs 1590 to Rs
48,200 per kg. Silver coins zoomed up by Rs 1,000 to Rs 89,000
for buying and Rs 90,000 for selling of 100 pieces.
14 फ़रवरी 2014
मार्च में आने वाली नई फसल के गेहूं निर्यात के लिए सौदे शुरू
आर एस राणा : नई दिल्ली... | Feb 14, 2014, 01:35AM IS
घरेलू कारोबार : दक्षिण भारतीय मिलों ने यूपी से खरीद सौदे किए
1600-1625 रुपये प्रति क्विंटल पर कांडला बंदरगाह पहुंच के खरीद सौदे हुए
80,000 टन नई फसल के गेहूं के सौदे किए हैं फिलहाल निर्यातकों ने
75,000 टन के खरीद सौदे दक्षिण भारत की फ्लोर मिलों ने किए
गेहूं की आने वाली नई फसल के मार्च-अप्रैल डिलीवरी के निर्यात सौदे शुरू हो गए हैं। निर्यातक कंपनियों ने गुजरात और उत्तर प्रदेश से कांडला बंदरगाह पहुंच गेहूं के खरीद सौदे 1,600 से 1,625 रुपये प्रति क्विंटल की दर से करीब 75,000 से 80,000 टन के निर्यात सौदे किए हैं। दक्षिण भारत की रोलर फ्लोर मिलों ने भी उत्तर प्रदेश से अप्रैल डिलीवरी का करीब 75,000 टन गेहूं खरीदा है।
प्रवीन कॉमर्शियल कंपनी के प्रबंधक नवीन गुप्ता ने बताया कि निर्यातक कंपनियों ने गेहूं की आने वाली नई फसल के निर्यात सौदे शुरू कर दिए हैं। आईटीसी के साथ ही दो अन्य नामी कंपनियों ने गुजरात से मार्च डिलवरी के करीब 40,000 टन गेहूं के निर्यात सौदे किए हैं।
उत्तर प्रदेश से भी करीब 35,000-40,000 टन गेहूं के निर्यात सौदे 1,600 से 1,625 रुपये प्रति क्विंटल कांडला बंदरगाह पहुंच किए है। उत्तर प्रदेश से गेहूं की खरीद 1,440 रुपये प्रति क्विंटल रैक लोडिंग के आधार पर की गई है। उधर दक्षिण भारत की फ्लोर मिलों ने भी उत्तर प्रदेश से अप्रैल डिलीवरी के करीब तीन रैकों के सौदे किए हैं।
एम संस इंटरनेशनल लिमिटेड के सलाहकार टी पी एस नारंग ने बताया कि मई-जून में रूस और यूक्रेन में गेहूं की आने वाली फसल के आधार पर विश्व बाजार में गेहूं के दाम तय होंगे। हालांकि चालू रबी में गेहूं की घरेलू पैदावार ज्यादा होने का अनुमान है, ऐसे में आगामी दिनों में निर्यात सौदे बढऩे का अनुमान है।
केंद्र सरकार ने गेहूं निर्यात के लिए न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) 260 डॉलर प्रति टन तय किया हुआ है तथा इस समय सार्वजनिक कंपनियां 275 डॉलर प्रति टन से नीचे की निविदा को स्वीकार नहीं कर रही हैं। यह सही है कि निर्यातकों के साथ ही स्टॉकिस्टों की अच्छी मांग से गेहूं उत्पादकों को दाम अच्छा मिलेगा।
गेहूं के थोक कारोबारी राधेश्याम गुप्ता ने बताया कि केंद्र सरकार ने गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमईपी) 1,400 रुपये प्रति क्विंटल तय हुआ है। मध्य प्रदेश और राजस्थान की राज्य सरकारें किसानों को अलग से 100 रुपये प्रति क्विंटल का बोनस दे सकती है, इसीलिए कंपनियां गुजरात और उत्तर प्रदेश से खरीद को तरजीह दे रही हैं।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2013-14 के पहले 9 महीनों (अप्रैल से दिसंबर) के दौरान 6,831.49 करोड़ रुपये मूल्य का 41.62 लाख टन गेहूं का निर्यात हो चुका है। कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू रबी में गेहूं की बुवाई पिछले साल के 298.19 लाख हैक्टेयर से बढ़कर 315.32 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है।
(Business Bhaskar....R S Rana)
वैश्विक बाजार में पिघल रहीं धातुएं
देसी बाजार में छाई सुस्ती के कारण धातुओं की खपत कम होने और निर्यात बाजार में प्रभावी मौजूदगी के अभाव में भारत को आम धातुओं की कीमत में गिरावट का कोई फायदा नहीं होगा। समझौते की अनिवार्यता के तहत तांबे के कैथोड का निर्यात किया जाता है, जबकि इसके बदले कॉन्संट्रेट का आयात होता है। इस्पात विनिर्माता भी निर्यात करते हैं, लेकिन उसके बदले विशेषीकृत इस्पात का आयात होता है। कच्चे माल के लिहाज से बात करें तो लौह अयस्क के प्रमुख उत्पादक राज्यों में खनन गतिविधियों पर लगी सरकारी पाबंदी के बाद लौह अयस्क का निर्यात बढऩे की संभावना पर भी पानी फिर गया है। लेकिन आमतौर पर लौह अयस्क के निर्यात से जो फायदा होता है वह कोकिंग कोल के बढ़ते आयात के कारण समाप्त हो जाता है। दूसरी ओर देसी बाजार में धातुओं की मांग सुस्त चल रही है और बुनियादी ढांचा विकास में प्रस्तावित निवेश की परियोजनाओं पर भी काम आगे नहीं चल रहा है। एस्सार स्टील इंडिया के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी दिलीप उम्मेन कहते हैं, 'वैश्विक कीमतों का भारतीय इस्पात उद्योग पर सीधा असर पड़ता है, लेकिन देसी बाजार में भी मांग बढ़ रही है, हालांकि महज 3.5 फीसदी दर पर। अपने इस्पात उत्पाद बेचने के लिए भारत पूरी तरह विदेशी बाजारों पर निर्भर नहीं है। फिलहाल देश में उपलब्ध अधिशेष उत्पादों का ही निर्यात किया जाता है। अगर भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) दर 6 से 8 फीसदी के सामान्य स्तर पर पहुंच जाती है तो भारत के पास निर्यात करने के लिए अधिशेष नहीं होगा।'
भारत करीब 40 लाख टन विशेषीकृत स्टील का आयात करता है, जो लौह अयस्क के निर्यात से होने वाले फायदे को निर्थक साबित कर देता है। ब्लूमबर्ग द्वारा संकलित किए गए आंकड़ों के अनुसार 63.5 फीसदी लौह की मात्रा वाले लौह अयस्क की कीमत पिछले साल 155.3 डॉलर प्रति टन से 20.48 फीसदी घटकर 123.5 डॉलर प्रति टन रह गई है। इसी तरह ग्राहक कंपनियों की ओर से घटती मांग के कारण एचआरसी इस्पात के भाव भी पिछले एक साल के दौरान 549 डॉलर प्रति टन से 13.66 फीसदी घटकर अब 474 डॉलर प्रति टन हो गए हैं।
इस्पात के बढ़ते भंडार को कम करने के लिए इस्पात मिलें अपनी क्षमता से कम पर परिचालन कर रही हैं और इस वजह से कोकिंग कोल की खपत भी घटी है। नतीजतन कोकिंग कोल का भाव एक साल के दौरान 202 डॉलर प्रति टन से 28.71 फीसदी घटकर 144 डॉलर प्रति टन रह गया है। उम्मेन ने बताया, 'अमेरिका और यूरोप जैसे विकसित बाजारों की अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटने के संकेत मिलने लगे हैं और इसलिए इस्पात की बढ़ती मांग के कारण इसके दाम में भी तेजी आई है। इसलिए मौजूदा वैश्विक मांग या कीमतों को देखकर भविष्य में मांग या भाव का अंदाजा लगाना सही नहीं होगा।'
पिछले साल वैश्विक स्तर पर छाई सुस्ती के कारण आम धातुओं में सबसे ज्यादा 22 फीसदी गिरावट निकल के भाव में दर्ज की गई है। आमतौर पर अर्थव्यवस्था की विकास दर के अनुसार ही बढऩे वाले आम धातुओं का प्रदर्शन पिछले एक साल के दौरान बहुत अच्छा नहीं रहा है। इसकी वजह मांग में सुस्ती और लंदन मेटल एक्सचेंज के समक्ष पंजीकृत गोदामों में बढ़ता भंडार है। इस दौरान तांबे, एल्युमीनियम और जस्ते की मांग में गिरावट दर्ज की गई। प्राइसवाटरहाउस कूपर्स के सलाहकार (खनन) पुखराज सेठिया कहते हैं, 'निर्यात के लिए अधिशेष मात्रा के अभाव में धातुओं की घटती कीमत से भारत को फायदा नहीं पहुंचेगा।' (BS Hindi)
दुनिया भर में जीएम फसलों का रकबा तीन फीसदी बढ़ा
विरोधियों ने आईएसएएए पर क्षेत्रफल बढ़ा-चढ़ाकर दर्शाने का आरोप लगाया
भले ही जेनेटिकली मॉडीफाइड (जीएम) फसलों की खेती अब दो दर्जन से ज्यादा देशों में हो रही है, लेकिन अमेरिका और ब्राजील में ही किसानों के बीच ज्यादा लोकप्रिय हो पाई हैं। एशिया में मुख्य रूप से चीन में जीएम मक्का और चावल की ही खेती ज्यादा हो रही है।
जीएम फसलों की वकालत करने वाले संगठन इंटरनेशनल सर्विस फॉर एक्वीजिशन ऑफ एग्री-बायोटेक एप्लीकेशंस (आईएसएएए) की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2013 में 1752 लाख हैक्टेयर में जीएम फसलों की खेती हुई।
यह क्षेत्रफल पिछले वर्ष के मुकाबले तीन फीसदी ज्यादा था। इसमें अमेरिका और ब्राजील के किसानों की हिस्सेदारी ज्यादा थी। हालांकि बायोटेक के आलोचक इस संगठन पर यूरोप और विकासशील देशों का क्षेत्रफल बढ़ा-चढ़ाकर दर्शाने का आरोप लगाते हैं। जिससे इन क्षेत्रों में जीएम फसलों को ज्यादा समर्थन दर्शाया जा सके।
यूरोप में विरोधियों का कहना है कि बायोटेक फसलों की वजह से पेस्टीसाइड्स का इस्तेमाल बढ़ा है और इससे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है।
जीएम उपज मानव और पशु आहार के लिए सुरक्षित होने की भी अभी तक पुष्टि नहीं हो पाई है। जबकि जीएम फसलों के समर्थक और बीज कंपनियां इन्हें सामान्य फसल से अलग नहीं मानती हैं। आईएसएएए के चेयरमैन क्लाइव जेम्स ने एक बयान में कहा कि बायोटेक फसलें गरीब किसानों के लिए काफी लाभदायक हैं।
किसानों को पानी की कमी और खरपतवार व कीटों के हमले का सामना करना पड़ता है। जलवायु में परिवर्तन भी हो रहा है। ऐसे में नई तकनीक का उपयोग समय की मांग है। इसे बढ़ावा दिया जाना चाहिए। अमेरिका में किसानों ने पिछले साल 701 लाख हैक्टेयर में जीएम मक्का, सोयाबीन, कॉटन, कनोला, अलफला और कुछ अन्य फसलों की खेती की।
हालांकि पिछले वर्ष इनका रकबा 2012 के मुकाबले करीब एक फीसदी कम रहा। ब्राजील में किसानों ने 403 लाख हैक्टेयर में बीटी सोयाबीन, मक्का और कॉटन की खेती की। वहां रकबा करीब दस फीसदी ज्यादा रहा। अमेरिका में जीएम फसलों का रकबा सबसे ज्यादा है।
1996 में जीएम फसलों की खेती की शुरूआत सबसे पहले अमेरिका में ही हुई थी। अमेरिका और ब्राजील को छोड़कर बाकी देशों में रकबा सीमित ही है। चीन में 2013 के दौरान रकबा पांच फीसदी बढ़कर 42 लाख हैक्टेयर हो गया। आईएसएएए का अनुमान है कि जीएम फसलों की कुल कीमत 14.6 अरब डॉलर से बढ़कर 15.6 अरब डॉलर हो गई। (Business Bhaskar)
Gold, silver surge on strong seasonal demand, global cues
New Delhi, Feb 14. Gold prices spurted by Rs 180 to
Rs 30,980 per ten grams in the national capital today on
brisk buying by stockists and retailers for the ongoing
marriage season amid a firming global trend.
Silver surged by Rs 800 to Rs 46,000 per kg on increased
offtake by jewellery fabricators and coin makers.
In Mumbai, gold of 99.9 and 99.5 per cent purity rebounded
by Rs 170 and Rs 190 to Rs 30,650 and Rs 30,520 per ten grams,
respectively. Silver jumped by Rs 1,050 to Rs 46,800 per kg.
Traders said sentiments bolstered as stockists and
retailers remained net buyers to meet the ongoing marriage
season demand amid a firming global trend where gold traded
above USD 1,300.
Gold in Singapore, which normally sets price trend on the
domestic front, rose 0.6 per cent to USD 1,310.70 an ounce,
the highest since November 8 and silver by 1.9 per cent to USD
20.88 an ounce, its highest since November 14.
At the domestic front, gold of 99.9 and 99.5 per cent
purity surged by Rs 180 each to Rs 30,980 and Rs 30,780 per
ten grams, respectively. Sovereign rose by Rs 100 to Rs 25,400
per piece of eight grams.
In a similar fashion, silver ready shot up by Rs 800 to
Rs 46,000 per kg and weekly-based delivery by Rs 755 to
Rs 45,515 per kg.
Silver coins too spurted by Rs 1,000 to Rs 87,000 for
buying and Rs 88,000 for selling of 100 pieces.
Country likely to harvest record rice, wheat & pulses output
New Delhi, Feb 14. Foodgrains production is estimated
to reach an all-time high of 263.2 million tonnes in 2013-14
crop year as the country is likely to achieve record rice,
wheat and pulses output on the back of good monsoon.
In the second advance estimates for major crops released
today, the Agriculture Ministry has pegged rice production at
record 106.19 million tonnes (MT) as against 105.24 MT in the
previous crop year (July-June, 2012-13).
Wheat production, too, is estimated to rise at record
95.60 MT in 2013-14 against 93.51 MT in the previous year.
Government has projected pulses production at record 19.77
MT in 2013-14 against 18.34 MT last year, while coarse cereals
output is likely to rise at 41.64 MT against 40.04 MT in the
period under review.
Barring coarse cereals, the country is expected to witness
record production in other three components of foodgrains --
wheat, rice and pulses as good monsoon in 2013 boosted area
under cultivation of these crops.
"India is likely to produce 263.2 MT of foodgrains during
2013-14 (includes Kharif 2013 and Rabi crops in the field at
present) compared to 257.13 MT last year," an official
statement said.
Record output would help the government in its fight to
contain inflation, particularly in food items.
Wholesale inflation has eased to a seven-month low of 5.05
per cent in January, on decline in the rate of price rise in
food articles, mainly vegetables. Retail inflation also fell
to 2-year low of 8.79 per cent in January.
Previous record of foodgrains, rice and wheat was achieved
during 2011-12 crop year at 259.3 MT, 105.3 MT and 94.88 MT,
respectively. In pulses, all-time high was 18.34 MT last year.
In non-foodgrains categories, the record production is
expected in cotton and oilseeds at 35.60 million bales and
32.98 MT, respectively. Last year, cotton output stood at
34.22 million bales (of 170 kg each) and oilseeds at 30.94 MT.
13 फ़रवरी 2014
राइस ब्रान तेल खरीदना चाहे थाईलैंड
थाईलैंड ने भारत से राइस ब्रान तेल के आयात में रुचि दिखाई है। दूसरी ओर, भारत अपनी घरेलू मांग पूरी करने के लिए खाद्य तेल का शुद्ध आयातक है। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के कार्यकारी निदेशक बी वी मेहता ने कहा, 'थाईलैंड ने भारत से राइस ब्रान तेल का आयात करने में दिलचस्पी दिखाई है। थाईलैंड राइस ब्रान तेल का बड़ा बाजार है। हालांकि सरकारी नीति के मुताबिक बड़ी मात्रा में खाद्य तेल के निर्यात की इजाजत नहीं है।Ó
भारत दुनियाभर में राइस ब्रान तेल का मुख्य उत्पादक है। देश में हर साल 9 लाख टन राइस ब्रान तेल का उत्पादन होता है, जबकि इसका वैश्विक उत्पादन करीब 12 लाख टन है। हर साल जापान 70,000 टन, थाईलैंड 60,000 टन और चीन करीब 50,000 टन राइस ब्रान तेल का उत्पादन करता है। भारत हर साल उत्पादन में 50,000 टन की बढ़ोतरी कर रहा है।
देश में उत्पादित होने वाले कुल 9 लाख टन तेल में से केवल 3 लाख टन का उपभोग ही खाद्य तेल के रूप में होता है। शेष तेल का इस्तेमाल या तो वनस्पति उद्योग या अन्य तेलों के साथ मिश्रण में किया जाता है। मेहता ने कहा कि देश में 90 लाख टन राइस ब्रान का उत्पादन होता है। इसमें से करीब 50 लाख टन का इस्तेमाल तेल उत्पादन में और शेष का उपयोग पशुओं के चारे के रूप में होता है। देश में धान का उत्पादन 2004-05 में 12.5 करोड़ टन था, जो 2013-14 में बढ़कर 15.8 करोड़ टन होने का अनुमान है।
मेहता ने कहा, 'देश में राइस ब्रान की अच्छी उपलब्धता है। अगर चावल मिल मालिकों को अच्छी कीमत मिलेगी हो ज्यादा राइस ब्रान का इस्तेमाल तेल उत्पादन में होगा। इससे हमारा खाद्य तेल आयात कम हो सकता है।'
देश हर साल पाम तेल, सोयाबीन तेल और सूरजमुखी तेल समेत 1 करोड़ टन खाद्य तेल का आयात करता है। एसईए के मुताबिक इससे आयात बिल 60,000 करोड़ रुपये के आसपास पहुंच जाता है। देश की खाद्य तेल की सालाना जरूरत करीब 1.8 करोड़ टन अनुमानित है।
पिछले साल जापान ने भी भारत से तेल आयात करने में रुचि दिखाई थी। जापान की भारतीय कंपनियों के साथ मिलकर राइस ब्रान के मूल्य संवर्धित उत्पाद तैयार करने में ज्यादा दिलचस्पी है, जिन्हें जापान में चावल तेल या 'हृदय तेलÓ के नाम से जाना जाता है।
हालांकि सरकार की वर्तमान नीति बड़ी मात्रा में खाद्य तेल के निर्यात की इजाजत नहीं देती है। मेहता ने दावा किया कि अगर स्वीकृति दी जाए तो भारत में हर साल 25,000 टन राइस ब्रान तेल के निर्यात की संभावनाएं मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि कुछ कंटेनरों का पहले ही निर्यात किया जा चुका है।
एसईए का मानना है कि राइस ब्रान तेल की भारतीय बाजार में भी भारी संभावनाएं हैं। राइस ब्रान तेल में ओरिजानोल होता है स्वास्थ्य की दृष्टिï से इसके कई फायदे हैं। राइस ब्रान तेल की कीमत जैतून तेल की 1/5 है और सूरजमुखी तेल से करीब 10 फीसदी ज्यादा है। देश में इसकी खपत पिछले 4-5 वर्षों में 20-25 फीसदी की दर से बढ़ रही है। इस समय राइस ब्रान तेल की कीमत 115-125 रुपये प्रति लीटर है। (BS Hindi)
यार्न के बंपर निर्यात से कपास के मूल्य में ज्यादा गिरावट संभव नहीं
मौजूदा रुख : ऊंचे भाव पर मांग की नरमी से कपास के दाम सुस्त पड़े
मजबूत निर्यात
कॉटन यार्न
105.50 करोड़ किलो का निर्यात हुआ अप्रैल-दिसंबर में
75.74 करोड़ किलो शिपमेंट पिछले साल समान अवधि में
कपास
65 लाख गांठ के सौदे हुए चालू सीजन में अभी तक
55 लाख गांठ का निर्यात हुआ इस अवधि में
बाजार भाव
42800-42900 रुपये प्रति कैंडी पर कपास अहमदाबाद में सुस्त
89 सेंट प्रति पाउंड पर भाव है कॉटन का विश्व बाजार में
कॉटन यार्न में निर्यात मांग बढऩे से कपास की कीमतों में ज्यादा मंदे की संभावना नहीं है। चालू वित्त वर्ष 2013-14 के पहले 9 महीनों (अप्रैल से दिसंबर) के दौरान कॉटन यार्न के निर्यात सौदों के रजिस्ट्रेशन में 39 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल निर्यात सौदे 105.50 करोड़ किलो के हो चुके हैं।
हालांकि ऊंचे भाव में मिलों की मांग कम होने से बुधवार को अहमदाबाद मंडी में शंकर-6 किस्म की कपास की कीमतों में 200-300 रुपये की गिरावट आकर भाव 42,800 से 42,900 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी-356 किलो) रह गए।
मुक्तसर कॉटन प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर नवनीत ग्रोवर ने बिजनेस भास्कर को बताया कि कॉटन यार्न में चीन और बांग्लादेश की आयात मांग अच्छी बनी हुई है। चीन में कपास के आयात पर शुल्क यार्न के मुकाबले ज्यादा है। इसीलिए चीन के आयातक कॉटन यार्न का आयात ज्यादा मात्रा में कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि घरेलू बाजार में कॉटन यार्न के दाम 235 से 240 रुपये प्रति किलो चल रहे हैं तथा आगामी महीनों में निर्यात मांग अच्छी रहने का अनुमान है।
ऐसे में घरेलू बाजार में कपास की मौजूदा कीमतों में ज्यादा मंदे की संभावना नहीं है। विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2013-14 के अप्रैल से दिसंबर के दौरान कॉटन यार्न के निर्यात सौदों का रजिस्ट्रेशन 105.50 करोड़ किलो का हुआ है जबकि वित्त वर्ष 2012-13 की समान अवधि में 75.74 करोड़ किलो का हुआ था।
कॉटन कारपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (सीसीआई) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि चालू फसल सीजन 2013-14 (अक्टूबर से सितंबर) में अभी तक करीब 65 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलो) कपास के निर्यात सौदों का रजिस्ट्रेशन हो चुका है तथा लगभग 55 लाख गांठ की शिपमेंट भी हो चुकी है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कपास का भाव 89 सेंट प्रति पाउंड है। नॉर्थ इंडिया कॉटन एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश राठी ने बताया कि कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएआई) ने कपास के आरंभिक उत्पादन के अनुमान में कमी है।
हालांकि घरेलू बाजार में दाम बढऩे से कपास के निर्यात सौदों में तो पहले की तुलना में कमी आई है लेकिन यार्न की निर्यात मांग अच्छी बनी हुई है। अहमदाबाद मंडी में बुधवार को कपास की कीमतों में गिरावट देखी गई, लेकिन भविष्य में दाम तेज ही बने रहने की संभावना है।
कृषि मंत्रालय के पहले आरंभिक अनुमान के अनुसार वर्ष 2013-14 में कपास की पैदावार 353 लाख गांठ होने का अनुमान है जबकि वर्ष 2012-13 में 340 लाख गांठ की पैदावार हुई थी। उधर सीएआई के अनुसार कपास का उत्पादन 374 लाख गांठ होने का अनुमान है। (Business Bhaskar....R S Rana)
विरोधाभासों के बीच जीएम फसलों का रकबा सौ गुना
वैश्विक स्तर पर जीएम फसलों का विकास काफी तेजी से हुआ है। 1996 में शुरू जीएम फसलों की खेती अब 1700 लाख हैक्टेयर में होने लगी है। जीएम फसलों की खेती में अमेरिका ब्राजील पहले और दूसरे नंबर हैं। वर्ष 1996 में जीएम फसलें 17 लाख हैक्टेयर में उगाई गईं थी।
इस तरह 16 वर्षों में रकबा 100 गुना हो गया। इसके बावजूद जीएम फसलों को लेकर विरोधाभास भी कम नहीं है। अमेरिका में उत्पादित जीएम मक्का की कई खेपें चीन ने इस वजह से नामंजूर कर दीं कि उसने उस नस्ल की जीएम मक्का को मंजूरी नहीं दी है।
दुनिया के 28 देशों में जीएम फसलों की खेती हो रही है। इनमें से दस देशों में 10-10 लाख हैक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र में जीएम फसलों की खेती हो रही है। वर्ष 2012 में बीटी फसलों का एरिया 6 फीसदी यानि 103 लाख हैक्टेयर बढ़कर 1700 लाख हैक्टेयर हो गया। वर्ष 2012 में जीएम फसलों की खेती में विकासशील देश आगे निकल गए।
इन देशों में 52 फीसदी एरिया में बुवाई की गई। दुनिया में सबसे ज्यादा जीएम मक्का की खेती हो रही है। मक्का के अलावा सोयाबीन, कॉटन, गन्ना, पपीता, कनोला और टमाटर की खेती हो रही है। अमेरिका व ब्राजील के अलावा चीन, भारत, अर्जेंटीना और दक्षिण अफ्रीका में जीएम फसलों की खेती हो रही है।
हालांकि अमेरिका को छोड़कर दूसरे देशों में सीमित संख्या में ही जीएम फसलों की खेती करने की अनुमति है। भारत में सिर्फ कपास उगाने की अनुमति है। किसी खाद्य फसल की जीएम किस्म को अनुमति नहीं मिली है। चीन में कपास के अलावा पपीता, टमाटर, शिमला मिर्च और चिनार लगाने की अनुमति है। जीएम फसलों का तेज विकास होने के बावजूद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समन्वय और आपसी सहमति की भारी कमी है।
तमाम देश इसके बारे में अलग-अलग नियम बना रहे हैं और इसके बारे में फैसला कर रहे हैं। इस नई तकनीक को लेकर तालमेल की कमी होने और अंतरराष्ट्रीय संधियों के अभाव में विरोधाभास हो रहा है। पिछले महीनों के दौरान चीन ने अमेरिका में उत्पादित एमआईआर 162 किस्म की जीएम मक्का की कई खेपें रद्द कर दीं।
अमेरिका ने जहां सिंजेंटा द्वारा विकसित इस किस्म को मंजूरी है और इसकी वहां खेती हो रही है वहीं, चीन ने अभी तक इसे मंजूरी नहीं दी है। अनधिकृत किस्म की जीएम मक्का पाए जाने के बाद चीन ने खेपों की कड़ाई से जांच शुरू कर दी। पिछले करीब छह महीनों के दौरान चीन में अमेरिका से आयातित छह लाख टन मक्का की खेपें रद्द हो चुकी है।
भारत में बीटी बैंगन की खेती पर रोक लगने के बाद अब अमेरिकी सीड कंपनी मोनसेंटो बांग्लादेश में इसकी खेती शुरू करवाने की जुगत में है। बांग्लादेश में बीटी बैंगन की खेती शुरू होने पर पड़ोसी देश भारत में इसका जीन आसानी से पहुंच सकता है। इस तरह बिना अनुमति के बीटी बैंगन यहां की जैव विविधता को प्रभावित कर सकता है।
जीएम फसलों के विकास के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सभी देशों को मिलजुलकर काम करना होगा। बेहतर समन्वय होने से जीएम फसलों का लाभ उठाया जा सकता है और इसके जोखिम को कम किया जा सकता है। लेकिन इसके लिए अंतरराष्ट्रीय मंच पर सभी देशों को समझौते करने होंगे और जीएम फसलों के विकास और इनकी खेती के लिए विस्तृत दिशानिर्देश बनाने होंगे। (Business Bhaskar)
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