16 जनवरी 2014
खाद्य प्रसंस्करण
खाद्य प्रसंस्करण
भारत के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग क्षेत्र में प्रसंस्कृत खाद्य के उत्पादन और निर्यात की पर्याप्त संभावनाएँ हैं। खाद्य बाजार लगभग 10.1 लाख करोड़ रुपये का है, जिसमें खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का हिस्सा 53% अर्थात 5.3 लाख करोड़ रुपये का है। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग से 130 लाख लोगों को प्रत्यक्ष और 350 लाख लोगों को परोक्ष रूप से रोजगार मिलता है। वित्तीय वर्ष 2004-05 के दौरान विनिर्माण क्षेत्र के सकल घरेलू उत्पाद में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का योगदान लगभग 14% रहा। भारत का खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मुख्यतः असंगठित है और असंगठित क्षेत्र में इसका हिस्सा 42%, लघु उद्योग क्षेत्र में 33% और संगठित क्षेत्र में 25% है।
उद्योग की संरचना
भारतीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के उत्पाद निर्मित जाते हैं। भारत में फल एवं सब्जियाँ, दुग्ध एवं दुग्ध-निर्मित उत्पाद, मीट एवं मुर्गी पालन, मत्स्य उत्पाद, अनाज प्रसंस्करण, बीयर एवं एल्कोहोलिक पेय पदार्थ, उपभोक्ता खाद्य वस्तुएँ ; अर्थात् कन्फेक्शनरी, चॉकलेट और कोको उत्पाद, सोया-निर्मित उत्पाद, मिनरल वाटर, उच्च प्रोटीनयुक्त खाद्य पदार्थ, सॉफ्ट ड्रिंक, खाने और पकाने के लिए तैयार उत्पाद, नमकीन स्नैक्स, चिप्स, पास्ता उत्पाद, बेकरी उत्पाद और बिस्कुट आदि जैसी मुख्य श्रेणियों में खाद्य प्रसंस्करण कार्य होता है।
खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में उपलब्ध संभावनाएँ
भारत में खाद्य प्रसंस्करण कम्पनियों के लिए प्रचुर संभावनाएँ हैं। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के विभिन्न उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ रही है। इसका कारण भारत के लोगों की प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि होना है, जिसके फलस्वरूप वे उत्कृष्ट गुणवत्ता वाले खाद्य पदार्थों पर खर्च करने की स्थिति में हैं।
उत्पादन की मात्रा की दृष्टि से कुछेक खाद्य उत्पादों में भारत विश्व का सबसे बड़ा देश है। निम्नलिखित तालिका भारत के खाद्य प्रसंस्करण के उन क्षेत्रों को दर्शाती है, जिनमें उत्पादन की पर्याप्त संभावनाएँ हैं-
खाद्य प्रसंस्करण श्रेणी
प्रतिवर्ष प्रसंस्कृत खाद्य की मात्रा ( मिलियन टन में)
उत्पादन की दृष्टि से विश्व में स्थान
दुग्ध एवं दुग्ध निर्मित उत्पाद
88
पहला
फल एवं सब्जियाँ
150
दूसरा
चावल
132
दूसरा
गन्ना
289
दूसरा
मत्स्य उत्पाद
6.3
तीसरा
गेहूँ, मूंगफली, कॉफी, मसाले, गन्ना, अंडे और ऑयल सीडस
-
विश्व के शीर्षस्थ 5 उत्पादकों में
इससे पता चलता है कि भारत में प्रसंस्करण के लिए पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है। प्रसंस्कृत खाद्य की मात्रा का विश्लेषण उत्पादन मात्रा के प्रतिशत से करने पर संभावनाएँ और भी उभर कर आती हैं। भारत में फल और सब्जियाँ के लगभग 2%, दूध के 37%, मीट और मुर्गी पालन के 1% तथा मत्स्य उत्पाद के 12% हिस्से का प्रसंस्करण किया जाता है। इसकी तुलना हम जब विकसित देशों में प्रसंस्कृत किए जा रहे उत्पादन की 80% मात्रा से करते हैं, तो हमें भारत में खाद्य प्रसंस्करण व्यवसाय की अपार संभावनाओं की मौजूदगी का आभास होता है।
भारतीय अर्थ-व्यवस्था के उदारीकरण के बाद तक भी इन अवसरों को पूरी तरह से अनुभव नहीं किया गया था। सरकार ने हाल ही में इस क्षेत्र में संयुक्त उद्यमों, विदेशी सहयोग और विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति प्रदान की है। इस उद्योग के विकास के लिए सरकार ने अनेक योजनाएँ भी कार्यान्वित की हैं। वि-लाइसैंसीकरण, खाद्य पार्कों की स्थापना, पैकेजिंग केद्रों की स्थापना और एकीकृत प्रशीतल शृंखला की सुविधाएँ आदि सरकार द्वारा किए गए प्रयासों में कुछ उल्लेखनीय प्रयास हैं। इस उद्योग में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए 100% तक निवेश करने की अनुमति भी प्रदान कर दी गई है। वित्तीय वर्ष 2008-09 में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 4700 करोड़ रुपये था।
भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का भविष्य
उत्पादन की अधिकता और प्रसंस्करण की कमी की समस्या से समूचा खाद्य प्रसंस्करण उद्योग प्रभावित है और इससे पता चलता है कि इस क्षेत्र में अभी भी विकास की अपार संभावनाएँ विद्यमान है, जिनको तलाश करने की आवश्यकता है। मूलभूत संरचना और अनुसंधान एवं विकास में कम निवेश की बड़ी चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई है। किन्तु, सरकार द्वारा कार्यान्वित निवेश की विभिन्न योजनाओं के फलस्वरूप यह अनुमान लगाया जा रहा है कि निवेश के बढ़ने से इस उद्योग में वृद्धि होगी।
वर्ष 2015 तक लगभग 1.1 लाख करोड़ रुपये के निवेश के अवसर सृजित किए जाने हैं। वर्तमान में घरेलू प्रसंस्कृत-खाद्य बाजार 5.3 लाख करोड़ रुपये का है। इस क्षेत्र में भारी वृद्धि और निवेश की पर्याप्त संभावनाओं के मद्देनज़र यह अनुमानित है कि वर्ष 2015 तक इसका बाज़ार 310 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ जाएगा।
विश्व के प्रमुख खाद्य उत्पादकों में भारत की गणना भी होती है, किन्तु विश्व के खाद्य प्रसंस्करण व्यापार में इसकी हिस्सेदारी मात्र 1.7% (वर्ष 2008 जिसका मूल्य 34400 करोड़ रुपये था) की है। वर्ष 2015 तक यह हिस्सेदारी 3% ( 91800 करोड़ रुपये) तक बढ़ सकती है। इसकी प्राप्ति प्रसंस्करण की मात्रा में वृद्धि करके (कुल उत्पादन की प्रतिशतता के रूप में ) और तत्पश्चात निर्यात को बढ़ाकर की जाएगी।
खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय के विजन दस्तावेज़ से प्रसंस्कृ त खाद्य हेतु निर्धारित लक्ष्यों के अनुमानित मूल्य की जानकारी निम्नलिखित तालिका से मिलती हैः
प्रसंस्कृत खाद्य के लिए निर्धारित लक्ष्य ( कुल उत्पादन के प्रतिशत के रूप में)
खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र
2004
2010 (अनुमानित)
2015 (अनुमानित)
फल एवं सब्जियाँ
1
4
8
दूग्ध उत्पाद
15
20
30
मत्स्य उत्पाद
11
15
20
मीट
21
28
35
मुर्गीपालन
6
10
15
आंकड़ों का स्रोत : मैककिंसे एंड कम्पनी रिपोर्ट, भारतीय खाद्य मंच की भारतीय खाद्य रिपोर्ट 2008, खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय-विजन रिपोर्ट, राष्ट्रीय विनिर्माता प्रतिस्पर्द्धात्मकता परिषद (एनएमसीसी)।
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