30 जनवरी 2014
सरसों उत्पादन पर पाले का असर
रबी सीजन की मुख्य तिलहन फसल सरसों की रिकॉर्ड बुआई होने के बावजूद उत्पादन का नया कीर्तिमान बनना मुश्किल लगने लगा है। प्रमुख सरसों उत्पादक राज्यों में हुई बारिश और अब पाले के कारण सरसों की फसल बुरी तरह प्रभावित हुई है। पाले की मार से सरसों का प्रति हेक्टेयर उत्पादन पांच साल के निचले स्तर पर जाने की आशंका जताई जा रही है। हालांकि मौजूदा स्टॉक के कारण फिलहाल कीमतों में ज्यादा वृद्धि नहीं होगी।
पिछले तीन महीने से सरसों की कीमतों में लगातार गिरावट का रुख बना हुआ है। सरसों के दाम 4,000 रुपये प्रति क्विंटल से घटकर 3,360 रुपये पर आ गए हैं। कृषि मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के मुताबिक चालू रबी सीजन में सरसों का रकबा 71.10 लाख हेक्टेयर पर पहुंच चुका है, जबकि पिछले साल की इसी अवधि तक 67 लाख हेक्टेयर में बुआई हो सकी थी। फसल बुआई के आंकड़ों के आधार पर सरकार इस साल उत्पादन बढऩे का अनुमान लगा रही है।
कृषि मंत्रालय के चौथे अग्रिम फसल उत्पादन अनुमान में वर्ष 2013-14 में सरसों का उत्पादन बढ़कर 78.2 लाख टन होने का अनुमान व्यक्त किया गया है, जबकि पिछले वर्ष 2012-13 में 71.50 लाख टन का उत्पादन हुआ था।
सरकारी अनुमान और रकबे को आधार बनाकर तैयार की गई कमोडिटी एंजेसियों की रिपोर्ट में 2013-14 में उत्पादन 66 लाख टन से 82 लाख टन के बीच रहने का अनुमान लगाया जा रहा है। हाजिर बाजार के कारोबारियों का कहना है कि जनवरी में लगातार दो सप्ताह तक बारिश होने के कारण इस बार उत्पादन पिछले साल से भी कम हो सकता है।
चालू सीजन में रिकॉर्ड सरसों का उत्पादन होने की वजह देश में प्रति हेक्टेयर उत्पादन अधिक होने का अनुमान है। कोटक कमोडिटी के फैयाज हुदायनी कहते हैं कि इस साल खेतों में बेहतर नमी और अनुकूल मौसम से अनुमान लगाया जा रहा था कि प्रति हेक्टेयर उत्पादन पिछले साल के 1,050 किलोग्राम बढ़कर 1,070 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो जाएगा।
लेकिन अब यह अनुमान पूरा होना मुश्किल है, क्योंकि हाल में उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों में जनवरी में हुई लंबी बारिश और तेज हवाओं के कारण सरसों की फसल को काफी नुकसान हुआ है।
वह कहते हैं कि इसके बावजूद उत्पादन के बारे में अभी अनुमान लगाना सही नहीं होगा क्योंकि मौसम का मिजाज कभी भी बदल सकता है। बारिश के बाद पाले के प्रकोप का भी कहर पीले फूलों को झेलना पड़ रहा है, जिससे उत्पादन प्रभावित होगा।
राजस्थान के तिलहन कारोबारी सुरेश तोतलानी कहते हैं कि प्रति हेक्टेयर उत्पादन कहीं सबसे कम उत्पादन का रिकॉर्ड न बना दे। वह कहते हैं कि मौसम में हर दिन अचानक बदलाव फसल को प्रभावित कर रहा है, जिससे प्रति हेक्टेयर उत्पादन प्रभावित होगा।
गौरतलब है कि अभी तक देश में 2010-11 में प्रति हेक्टेयर उत्पादन सबसे ज्यादा 1,151 किलोग्राम था और सबसे कम उत्पादन वर्ष 2007-08 में 1,001 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर दर्ज किया गया है।
कमोडिटी जानकारों का मानना है कि इसके बावजूद कीमतों में खास असर नहीं होगा, क्योंकि इस समय सरसों 3,350 रुपये प्रति क्विंटल के आस-पास है। ऐसे में उत्पादन अधिक होता है और कीमतें गिरती भी हैं तो 3,050 रुपये के नीचे नहीं जाएंगी, क्योंकि सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 3,050 रुपये प्रति क्विंटल है और फसल खराब होने से उत्पादन कम भी होता तो भी 3,600 रुपये प्रति क्विंटल से ऊपर नहीं पहुंच पाएगी, क्योंकि घरेलू बाजार में तिलहन की कीमतें वैश्विक कीमतों पर भी निर्भर करती हैं। (BS Hindi)
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