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24 फ़रवरी 2025

चालू पेराई सीजन में महाराष्ट्र की 38 चीनी मिलों ने पेराई बंद की, उत्पादन 17 फीसदी कम

नई दिल्ली। पहली अक्टूबर 2024 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन 2024-25 (अक्टूबर से सितंबर) में 20 फरवरी तक महाराष्ट्र में चीनी का उत्पादन 17 फीसदी घटकर 70.90 लाख टन का ही हुआ है जबकि राज्य की 38 चीनी मिलों ने पेराई बंद कर दी है।


राज्य के चीनी आयुक्तालय की एक रिपोर्ट के अनुसार चालू पेराई सीजन 2024-25 में 20 फरवरी तक राज्य की चीनी मिलों ने 70.92 लाख टन चीनी का उत्पादन किया है जोकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि के 85.37 लाख टन की तुलना में 17 फीसदी कम है।

बीस फरवरी तक राज्य की 38 चीनी मिलों ने अपना परिचालन बंद कर दिया है। इनमें सबसे ज्यादा सोलापुर की 25 मिलें, नांदेड़ में पांच चीनी मिलें, कोल्हापुर में चार मिलें तथा पुणे की तीन चीनी मिलों के अलावा अहिल्यानगर क्षेत्र की एक चीनी मिल शामिल हैं। मालूम हो कि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि के दौरान राज्य की केवल 11 चीनी मिलों ने ही पेराई बंद की थी। इस समय राज्य की 162 चीनी मिलें गन्ने की पेराई कर रही हैं।

राज्य की चीनी मिलों ने 20 फरवरी तक 763.53 लाख टन गन्ने की पेराई की है, जबकि पिछले सत्र की समान अवधि के दौरान 861.91 लाख टन गन्ने की पेराई की गई थी। चालू पेराई सीजन में राज्य की औसत चीनी रिकवरी की दर 9.29 फीसदी है, जोकि पिछले सत्र की इसी अवधि की 9.9 फीसदी की तुलना में कम है।

जानकारों के अनुसार चालू सीजन में गन्ने की कम पैदावार और मिलें की बढ़ी हुई पेराई क्षमता के कारण मिलों ने इस इस सीजन में जल्दी पेराई सत्र बंद कर दिया है। चालू गन्ना पेराई सत्र शुरू होने में देरी के साथ ही गन्ने से इथेनॉल उत्पादन में अधिक योगदान के साथ ही गन्ने की पैदावार में कमी आने के कारण राज्य में चीनी का उत्पादन पिछले पेराई सीजन में तुलना में कम होने की आशंका है।

स्पिनिंग मिलों की मांग कमजोर होने से गुजरात के साथ ही उत्तर भारत में कॉटन के दाम नरम

नई दिल्ली। स्पिनिंग मिलों की मांग कमजोर होने के कारण शुक्रवार को गुजरात के साथ ही उत्तर भारत के राज्यों में कॉटन की कीमत नरम हो गई।


गुजरात के अहमदाबाद में 29 शंकर-6 किस्म की कॉटन के भाव शुक्रवार को 150 रुपये कमजोर होकर दाम 53,400 से 53,800 रुपये प्रति कैंडी, एक कैंडी-356 किलो रह गए। मालूम हो कि गुरुवार को भी कॉटन के दाम 200 रुपये कमजोर हुए थे।

पंजाब में रुई के हाजिर डिलीवरी के भाव कमजोर होकर 5545 से 5555 रुपये प्रति मन बोले गए। हरियाणा में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के भाव नरम होकर 5520 से 5545 रुपये प्रति मन बोले गए। ऊपरी राजस्थान में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के भाव घटकर 5550 से 5610 रुपये प्रति मन बोले गए। खैरथल लाइन में कॉटन के भाव तेज होकर 53,800 से 53,900 रुपये कैंडी, एक कैंडी-356 किलो बोले गए। देशभर की मंडियों में कपास की आवक 95,500 गांठ, एक गांठ-170 किलो की हुई।

घरेलू वायदा बाजार एमसीएक्स के साथ ही एनसीडीएक्स पर आज शाम को कॉटन की कीमतों में गिरावट का रुख रहा। आईसीई के इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग में कॉटन के दाम कमजोर हुए।

स्पिनिंग मिलों की मांग कमजोर होने के कारण गुजरात के साथ ही उत्तर भारत के राज्यों में कॉटन की कीमत नरम हो गई। व्यापारी कॉटन की कीमतों में अभी एकतरफा बड़ी तेजी के पक्ष में नहीं है। जानकारों के अनुसार खपत में कमी आने के कारण यूएसडीए की विश्व कृषि आपूर्ति और मांग अनुमान (डब्ल्यूएएसडीई) की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी कपास के अंतिम स्टॉक में वृद्धि हुई है साथ ही वैश्विक कपास स्टॉक में भी बढ़ोतरी हुई है।

व्यापारियों के अनुसार खपत का सीजन होने के कारण सूती धागे की स्थानीय मांग आगामी दिनों में बढ़ने की उम्मीद है, हालांकि निर्यात मांग कमजोर बनी हुई है।

कृषि मंत्रालय के पहले आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू खरीफ सीजन में कपास का उत्पादन 299.26 लाख गांठ, एक गांठ-170 किलो होने का अनुमान है, जो क‍ि पिछले खरीफ 2023-24 के 325.22 लाख गांठ के मुकाबले कम है।

कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया, सीएआई ने चौथे आरंभिक अनुमान में कॉटन के उत्पादन अनुमान में 2.50 लाख गांठ की कटौती की है। पहली अक्टूबर 2024 से शुरू हुए चालू फसल सीजन 2024-25 में देश में 301.75 लाख गांठ, एक गांठ-170 किलो कॉटन के उत्पादन का अनुमान है, जबकि इससे पहले 304.25 लाख गांठ के उत्पादन का अनुमान था। पिछले फसल सीजन 2023-24 के दौरान देश में 325.29 लाख गांठ कॉटन का उत्पादन हुआ था।

जनवरी में देश से डीओसी के निर्यात में 5 फीसदी की कमी आई - एसईए

नई दिल्ली। जनवरी में देश से डीओसी के निर्यात में 5 फीसदी की कमी आकर कुल निर्यात 452,352 टन का ही हुआ है, जबकि पिछले साल जनवरी में इनका निर्यात 477,580 टन का ही हुआ था।


सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, एसईए के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2024-25 की पहले 10 महीनों अप्रैल से जनवरी के दौरान डीओसी के निर्यात में 9 फीसदी की गिरावट आकर कुल निर्यात 3,603,030 टन का ही हुआ है, जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इनका निर्यात 3,974,351 टन का ही हुआ था। इस दौरान सरसों डीओसी के साथ ही कैस्टर एवं राइस ब्रान डीओसी के निर्यात में कमी आई है।

चालू वित्त वर्ष के पहले दस महीनों (अप्रैल 2024 से जनवरी 2025) में सोया डीओसी का कुल निर्यात पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि के 15.86 लाख टन की तुलना में बढ़कर 17.71 लाख टन हो गया। इसके निर्यात में बढ़ोतरी का श्रेय जर्मनी और फ्रांस जैसे यूरोपीय खरीदारों द्वारा अधिक आयात को जाता है। हालांकि तेल वर्ष अक्टूबर 2024 से जनवरी 2025 के दौरान सोया डीओसी का निर्यात अक्टूबर 2023 से जनवरी 2024 तक की समान अवधि के 9.98 लाख टन की तुलना में 14 फीसदी कम होकर 8.62 लाख टन का ही हुआ है।

मक्का और अनाज से डीडीजीएस का उत्पादन और आपूर्ति बढ़ने से स्थानीय बाजार से डीओसी की निर्यात मांग कम हुई है। इसके अलावा, सरसों डीओसी के लिए बांग्लादेश एक प्रमुख बाजार है, जहां हाल के महीनों में अनिश्चितता के कारण इसके निर्यात में कमी आई है, तथा आगामी दिनों में इसके निर्यात में और भी कमी आने की आशंका है।

चालू फसल सीजन में केंद्र सरकार ने 11 फरवरी तक 4,892 रुपये प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी की दर से 14.73 लाख टन से अधिक सोयाबीन की खरीद की है। अभी तक कुल खरीद में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी महाराष्ट्र की 8.36 लाख टन तथा मध्य प्रदेश की 3.88 लाख टन और राजस्थान की 0.99 लाख टन हैं। नवंबर में जारी पहले अग्रिम अनुमान के अनुसार, फसल सीजन 2024-25 के दौरान सोयाबीन का उत्पादन 133.60 लाख टन होने की उम्मीद है, जो पिछले साल के 130.62 लाख टन से अधिक है, जबकि सोपा ने वर्ष 2024-25 के लिए 125.82 लाख टन सोयाबीन के उत्पादन का अनुमान लगाया है।

भारतीय बंदरगाह पर जनवरी में सोया डीओसी का भाव तेज होकर 378 डॉलर प्रति टन हो गया, जबकि दिसंबर में इसका दाम 363 डॉलर प्रति टन था। इस दौरान सरसों डीओसी का मूल्य जनवरी में भारतीय बंदरगाह पर 270 डॉलर प्रति टन रहा, जबकि दिसंबर में भी इसका भाव 270 डॉलर प्रति टन ही था। इस दौरान कैस्टर डीओसी का दाम जनवरी में भी 81 डॉलर प्रति टन पर स्थिर है, जबकि दिसंबर में भी यही भाव था।

जनवरी में देश से डीओसी के निर्यात में 5 फीसदी की कमी आई - एसईए

नई दिल्ली। जनवरी में देश से डीओसी के निर्यात में 5 फीसदी की कमी आकर कुल निर्यात 452,352 टन का ही हुआ है, जबकि पिछले साल जनवरी में इनका निर्यात 477,580 टन का ही हुआ था।


सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, एसईए के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2024-25 की पहले 10 महीनों अप्रैल से जनवरी के दौरान डीओसी के निर्यात में 9 फीसदी की गिरावट आकर कुल निर्यात 3,603,030 टन का ही हुआ है, जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इनका निर्यात 3,974,351 टन का ही हुआ था। इस दौरान सरसों डीओसी के साथ ही कैस्टर एवं राइस ब्रान डीओसी के निर्यात में कमी आई है।

चालू वित्त वर्ष के पहले दस महीनों (अप्रैल 2024 से जनवरी 2025) में सोया डीओसी का कुल निर्यात पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि के 15.86 लाख टन की तुलना में बढ़कर 17.71 लाख टन हो गया। इसके निर्यात में बढ़ोतरी का श्रेय जर्मनी और फ्रांस जैसे यूरोपीय खरीदारों द्वारा अधिक आयात को जाता है। हालांकि तेल वर्ष अक्टूबर 2024 से जनवरी 2025 के दौरान सोया डीओसी का निर्यात अक्टूबर 2023 से जनवरी 2024 तक की समान अवधि के 9.98 लाख टन की तुलना में 14 फीसदी कम होकर 8.62 लाख टन का ही हुआ है।

मक्का और अनाज से डीडीजीएस का उत्पादन और आपूर्ति बढ़ने से स्थानीय बाजार से डीओसी की निर्यात मांग कम हुई है। इसके अलावा, सरसों डीओसी के लिए बांग्लादेश एक प्रमुख बाजार है, जहां हाल के महीनों में अनिश्चितता के कारण इसके निर्यात में कमी आई है, तथा आगामी दिनों में इसके निर्यात में और भी कमी आने की आशंका है।

चालू फसल सीजन में केंद्र सरकार ने 11 फरवरी तक 4,892 रुपये प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी की दर से 14.73 लाख टन से अधिक सोयाबीन की खरीद की है। अभी तक कुल खरीद में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी महाराष्ट्र की 8.36 लाख टन तथा मध्य प्रदेश की 3.88 लाख टन और राजस्थान की 0.99 लाख टन हैं। नवंबर में जारी पहले अग्रिम अनुमान के अनुसार, फसल सीजन 2024-25 के दौरान सोयाबीन का उत्पादन 133.60 लाख टन होने की उम्मीद है, जो पिछले साल के 130.62 लाख टन से अधिक है, जबकि सोपा ने वर्ष 2024-25 के लिए 125.82 लाख टन सोयाबीन के उत्पादन का अनुमान लगाया है।

भारतीय बंदरगाह पर जनवरी में सोया डीओसी का भाव तेज होकर 378 डॉलर प्रति टन हो गया, जबकि दिसंबर में इसका दाम 363 डॉलर प्रति टन था। इस दौरान सरसों डीओसी का मूल्य जनवरी में भारतीय बंदरगाह पर 270 डॉलर प्रति टन रहा, जबकि दिसंबर में भी इसका भाव 270 डॉलर प्रति टन ही था। इस दौरान कैस्टर डीओसी का दाम जनवरी में भी 81 डॉलर प्रति टन पर स्थिर है, जबकि दिसंबर में भी यही भाव था।

बुआई में आई कमी से कैस्टर सीड का उत्पादन 8 फीसदी कम होने का अनुमान - एसईए

नई दिल्ली। प्रमुख उत्पादक राज्यों में बुआई में आई कमी से चालू फसल सीजन 2024-25 में कैस्टर सीड का उत्पादन 8 फीसदी घटकर 18.22 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल इसका उत्पादन 19.75 लाख टन हुआ था।

साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, एसईए के अनुसार फसल सीजन 2024-25 के दौरान देशभर में 8.67 लाख हेक्टेयर में ही कैस्टर सीड की बुआई हुई थी, जोकि इसके पिछले फसल सीजन 2023-24 के 9.88 लाख हेक्टेयर की तुलना में 12 फीसदी कम थी।

एसईए के अनुसार बुआई में कमी आने के बावजूद भी मौसम अनुकूल होने के कारण चालू फसल सीजन में कैस्टर सीड की उत्पादकता में 5 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। फसल सीजन 2023_24 में कैस्टर की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 1,999 किलोग्राम की बैठी थी, जबकि चालू सीजन में औसत उत्पादकता 2,101 किलोग्राम की बैठ रही है।

प्रमुख उत्पादक राज्य गुजरात में चालू फसल सीजन में कैस्टर सीड का उत्पादन 14.75 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल राज्य में इसका उत्पादन 15.74 लाख टन का हुआ था। इसी तरह से राजस्थान में चालू फसल सीजन में कैस्टर सीड का उत्पादन घटकर 2.85 लाख टन ही होने का अनुमान है, जबकि पिछले साल राज्य में 3.14 लाख टन का उत्पादन हुआ था। चालू सीजन में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में कैस्टर सीड का उत्पादन 54 हजार एवं अन्य राज्यों में 9 हजार टन होने का अनुमान है।

गुजरात की मंडियों में सोमवार को कैस्टर सीड के भाव 1,250 से 1,265 रुपये प्रति 20 किलो पर स्थिर हो गए, जबकि आवक 45,000 बोरियों, एक बोरी 35 किलो की हुई। राजकोट में कैस्टर तेल कमर्शियल के दाम 1,280 रुपये और एफएसजी के दाम 1,290 रुपये प्रति 10 किलो पर स्थिर हो गए।


चालू वित्त वर्ष में अभी तक कुल सब्सिडी खर्च में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी खाद्य सब्सिडी की

नई दिल्ली। चालू वित्त वर्ष 2024-25 में अब तक केंद्र सरकार द्वारा जारी कुल सब्सिडी खर्च में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी खाद्य सब्सिडी की रही है जोकि वितरित की गई कुल राशि का 50 फीसदी से ज़्यादा है।


बैंक ऑफ बड़ौदा की एक रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार ने चालू वित्त वर्ष के पहले नौ महीनों (अप्रैल-दिसंबर 2024) के दौरान सब्सिडी पर 3.07 लाख करोड़ रुपये खर्च किए है। यह पिछले साल की समान अवधि में खर्च किए गए 2.77 लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा है, लेकिन अप्रैल-दिसंबर 2022 में खर्च किए गए 3.51 लाख करोड़ रुपये से कम है। इस वृद्धि का एक बड़ा कारण खाद्य सब्सिडी खर्च में बढ़ोतरी होना है। सरकार ने अप्रैल-दिसंबर 2024 के दौरान खाद्य सब्सिडी के लिए 1.64 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए है, जोकि पिछले साल की समान अवधि में खर्च किए गए 1.34 लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा है। हालांकि यह अप्रैल-दिसंबर 2022 में खर्च हुए 1.68 लाख करोड़ रुपये से थोड़ा कम है।

इस दौरान खाद्य सब्सिडी में वृद्धि हुई है, जबकि उर्वरक सब्सिडी पर खर्च में थोड़ी इस दौरान कमी आई है। अप्रैल से दिसंबर 2024 के बीच सरकार ने उर्वरक सब्सिडी पर 1.36 लाख करोड़ रुपये खर्च किए है, जबकि पिछले साल यह रकम 1.41 लाख करोड़ रुपये और अप्रैल-दिसंबर 2022 में 1.81 लाख करोड़ रुपये थी। रिपोर्ट में सरकार की गैर-ऋण पूंजी प्राप्तियों में गिरावट पर भी प्रकाश डाला गया है, जिसमें संपत्ति की बिक्री और विनिवेश से राजस्व शामिल है। दिसंबर 2024 तक ये प्राप्तियां 27,296 करोड़ रुपये थी, जोकि दिसंबर 2023 में 29,650 करोड़ रुपये से कम और दिसंबर 2022 में 55,107 करोड़ रुपये से भी काफी कम है। यह कमजोर राजस्व संग्रह और गैर-ऋण स्रोतों के माध्यम से धन जुटाने में कम सफलता को दर्शाता है।

इसके अलावा बैंक द्वारा जारी रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) का प्रवाह कमजोर हुआ है। नवंबर 2024 में एफडीआई का प्रवाह 2.4 बिलियन अमरीकी डॉलर रहा है, जोकि अक्टूबर 2024 में दर्ज 4.3 बिलियन अमरीकी डॉलर से काफी कम है। रिपोर्ट में भारतीय शेयर बाजारों से विदेशी निवेशकों के बाहर होने में हुई बढ़ोतरी का भी उल्लेख किया गया है, जिससे देश के कुल निवेश पर दबाव बढ़ रहा है।

15 फ़रवरी 2025

चालू सीजन में कॉटन का उत्पादन घटकर 301.75 लाख गांठ होने का अनुमान - उद्योग

नई दिल्ली। उद्योग ने कॉटन के उत्पादन अनुमान में 2.50 लाख गांठ की कटौती की है। पहली अक्टूबर 2024 से शुरू हुए चालू फसल सीजन 2024-25 में देश में 301.75 लाख गांठ, एक गांठ-170 किलो कॉटन के उत्पादन का अनुमान है, जबकि इससे पहले 304.25 लाख गांठ के उत्पादन का अनुमान था। पिछले फसल सीजन 2023-24 के दौरान देश में 325.29 लाख गांठ कॉटन का उत्पादन हुआ था।


कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया, सीएआई के अनुमान के अनुसार उत्तर भारत के राज्यों पंजाब, हरियाणा एवं राजस्थान के पहले के अनुमान में 2.50 लाख गांठ कॉटन का उत्पादन कम होने का अनुमान है। उधर गुजरात में चालू सीजन में पहले के अनुमान के मुकाबले 5 लाख गांठ कम होने की आशंका है लेकिन इस दौरान तेलंगाना में 5 लाख गांठ का उत्पादन पहले के अनुमान से ज्यादा होगा।

पंजाब में कॉटन का उत्पादन फसल सीजन 2024-25 में 1.50 लाख गांठ, हरियाणा में 8.30 लाख गांठ, अपर राजस्थान में 9.20 लाख गांठ एवं लोअर राजस्थान के 9 लाख गांठ को मिलाकर कुल 28 लाख गांठ होने का अनुमान है।

सीएआई के अनुसार मध्य भारत के राज्यों गुजरात में चालू फसल सीजन में 75 लाख गांठ, महाराष्ट्र में 90 लाख गांठ तथा मध्य प्रदेश के 19 लाख गांठ को मिलाकर कुल 184 लाख गांठ के उत्पादन का अनुमान है।

दक्षिण भारत के राज्यों में तेलंगाना में चालू फसल सीजन में 47 लाख गांठ, आंध्र प्रदेश में 11 लाख गांठ एवं कर्नाटक में 23 लाख गांठ तथा तमिलनाडु के 4 लाख गांठ को मिलाकर कुल 85 लाख गांठ के कॉटन के उत्पादन का अनुमान है।

ओडिशा में चालू खरीफ में 2.75 लाख गांठ एवं अन्य राज्यों में 2 लाख गांठ कॉटन के उत्पादन का अनुमान है।

सीएआई के अनुसार पहली अक्टूबर 2024 को कॉटन का बकाया स्टॉक 30.19 लाख गांठ का बचा हुआ था, जबकि 301.75 लाख गांठ के उत्पादन का अनुमान है। चालू सीजन में करीब 26 लाख गांठ कॉटन का आयात होने की उम्मीद है। ऐसे में कुल उपलब्धता 357.94 लाख गांठ की बैठेगी।

चालू फसल सीजन में कॉटन की कुल घरेलू खपत 315 लाख गांठ होने का अनुमान है, जबकि इस दौरान 17 लाख गांठ के निर्यात की उम्मीद है।

सीएआई के अनुसार 31 जनवरी 25 तक 16 लाख गांठ कॉटन का आयात हो चुका है, जबकि इस दौरान 8 लाख गांठ निर्यात की शिपमेंट हुई है। उत्पादक मंडियों में जनवरी अंत तक 188.07 लाख गांठ कॉटन की आवक हो चुकी है, जिसमें से 114 लाख गांठ की खपत हो चुकी है। अत: पहली फरवरी को मिलों के पास 27 लाख गांठ एवं सीसीआई, महाराष्ट्र फेडरेशन, एमएनसी, जिनर्स एवं निर्यातकों के साथ ही व्यापारियों के पास 85.26 लाख गांठ कॉटन का स्टॉक है।

कृषि मंत्रालय के अनुसार खरीफ में कपास की बुआई 14 लाख हेक्टेयर घटकर 112.90 लाख हेक्टेयर में ही हुई, जबकि इसके पिछले साल इसकी बुआई 126.90 लाख हेक्टेयर में हुई थी।

कृषि मंत्रालय के पहले आरंभिक अनुमान के अनुसार कपास का उत्पादन 299.26 लाख गांठ, एक गांठ-170 किलो होने का अनुमान है, जो क‍ि इसके पिछले फसल सीजन 2023-24 के 325.22 लाख गांठ के मुकाबले कम है।

अक्टूबर से जनवरी के दौरान सोया डीओसी का निर्यात 14.77 फीसदी घटा - सोपा

नई दिल्ली। चालू फसल सीजन 2024-25 के पहले चार महीनों अक्टूबर 24 से जनवरी 25 के दौरान सोया डीओसी का निर्यात 14.77 फीसदी घटकर केवल 7.96 लाख टन का ही हुआ है, जबकि पिछले फसल सीजन की समान अवधि में इसका निर्यात 9.34 लाख टन का हुआ था।


सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, सोपा के अनुसार चालू फसल सीजन के अक्टूबर से जनवरी के दौरान 33.54 लाख टन सोया डीओसी का उत्पादन हुआ है, जबकि नई सीजन के आरंभ में 1.33 लाख टन का बकाया स्टॉक बचा हुआ था। इस दौरान 7.96 लाख टन सोया डीओसी का निर्यात हुआ है जबकि 2.85 लाख टन की खपत फूड में एवं 22.50 लाख टन की फीड में हुई है। अत: पहली फरवरी को मिलों के पास 1.56 लाख टन सोया डीओसी का बकाया स्टॉक बचा हुआ है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 2.03 लाख टन से कम है।

सोपा के अनुसार फसल सीजन 2024-25 के पहले चार महीनों में देशभर की उत्पादक मंडियों में 57.50 लाख टन सोयाबीन की आवक हुई है, जिसमें से जनवरी अंत तक 42.50 लाख टन की पेराई हुई है। इस दौरान 1.80 लाख टन सोयाबीन की खपत डारेक्ट हुई है जबकि 0.06 लाख टन का निर्यात हुआ है। अत: प्लांटों एवं व्यापारियों तथा किसानों के पास पहली फरवरी को 57.40 लाख टन सोयाबीन का बकाया स्टॉक बचा हुआ है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 82.79 लाख टन की तुलना में कम है।

सोपा के अनुसार चालू फसल सीजन 2024-25 में देश में सोयाबीन का उत्पादन 125.82 लाख टन का हुआ है, जबकि 8.94 लाख टन का बकाया स्टॉक नई फसल की आवक के समय बचा हुआ था। अत: कुल उपलब्धता 134.76 लाख टन की बैठी है, जबकि चालू सीजन में करीब 3 लाख टन सोयाबीन के आयात का अनुमान है। पिछले फसल सीजन में 118.74 लाख टन सोयाबीन का उत्पादन हुआ था, जबकि नई फसल की आवक के समय 24.07 लाख टन का बकाया स्टॉक बचा हुआ था। अत: पिछले साल कुल उपलब्धता 142.81 लाख टन की बैठी थी, जबकि 6.25 लाख टन का आयात हुआ था। 

केंद्र सरकार पीली मटर के शुल्क मुक्त आयात को फरवरी से आगे नहीं बढ़ाएगी

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने पीली मटर के शुल्क मुक्त आयात को फरवरी 2025 से आगे नहीं बढ़ाने का फैसला किया है। इस मामले पर गुरुवार को केंद्रीय मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में होने वाले मंत्री समूह (जीओएम) की बैठक में चर्चा की जाएगी।


द पल्सेस कॉन्क्लेव 2025 के मौके पर खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री प्रहलाद जोशी ने गुरुवार को संवाददाताओं से कहा कि हम पीली मटर के शुल्क मुक्त आयात को रोक रहे हैं। जोशी ने कहा कि खाद्य मंत्रालय ने अपनी टिप्पणी दे दी है और पीली मटर पर सीमा शुल्क लगाने पर अंतिम निर्णय जीओएम द्वारा लिया जाएगा।

मालूम हो कि केंद्र सरकार ने दिसंबर 2023 में पीली मटर के शुल्क मुक्त आयात की अनुमति दी थी और बाद में इसे 28 फरवरी 2025 तक तीन बार बढ़ाया था। वर्ष 2024 में भारत में दलहन का कुल आयात 67 लाख टन का हुआ था, जिसमें पीली मटर की हिस्सेदारी 30 लाख टन की थी।

इस अवसर पर इंडिया पल्सेस एंड ग्रेन एसोसिएशन (आईपीजीए) के अध्यक्ष बिमल कोठारी ने कहा कि सरकार किसानों के हित में पीली मटर के आयात पर प्रतिबंध लगा सकती है। दालों के सम्मेलन के अवसर पर आयोजित संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा कि हमें उम्मीद है कि केंद्र सरकार पीली मटर के शुल्क मुक्त आयात को आगे नहीं बढ़ेगा, तथा आयात पर कुछ प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।

उन्होंने कहा कि पिछले साल देश में दलहन उत्पादन में कमी आई थी, और कीमत बढ़ गई थीं, जिस कारण हमें आयात करना पड़ा। लेकिन मुझे नहीं लगता कि इस साल हम इतनी ही मात्रा में आयात करने जा रहे हैं, अत: दालों के कुल आयात में भी कमी आने का अनुमान है।

पीली मटर के आयात पर संभावित प्रतिबंधों के साथ ही कोठारी ने कहा कि अधिक घरेलू उत्पादन के कारण चालू वर्ष में अनुमानित 5.5 मिलियन टन से 2025-26 वित्त वर्ष में देश का कुल दाल आयात घट सकता है। उद्योग को उम्मीद है कि सरकार पीली मटर पर 15-20 फीसदी का आयात शुल्क लगा सकती है।

मार्च एवं अप्रैल में घरेलू बाजार में रबी दलहन की आवक शुरू हो जायेगी, अतः: सरकार किसानों के हितों को देखते हुए इसके आयात पर शुल्क लगा सकती है।

कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू रबी सीजन में मटर की बुआई थोड़ी बढ़कर 7.94 लाख हेक्टेयर में हुई है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसकी बुआई केवल 7.90 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।

जनवरी में खाद्वय एवं अखाद्य तेलों का आयात 13 फीसदी घटा- एसईए

नई दिल्ली। जनवरी 2025 में खाद्वय एवं अखाद्य तेलों का आयात 13 फीसदी घटकर 1,049,165 टन का ही हुआ है, जबकि पिछले साल जनवरी में इनका आयात 1,200,835 टन का हुआ था। जनवरी 2025 के दौरान खाद्वय तेलों का आयात 1,007,551 टन का एवं अखाद्य तेलों का आयात 41,614 टन का हुआ है।


सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार चालू तेल वर्ष 2024-25 के पहली तिमाही नवंबर-24 से जनवरी-25 के दौरान देश में खाद्वय एवं अखाद्य तेलों का आयात 6 फीसदी बढ़कर 3,908,233 टन का हुआ है, जबकि पिछले तेल वर्ष की समान अवधि में इनका आयात 3,673,111 टन का हुआ था।

देश में जनवरी 2025 में पाम तेल का आयात पिछले 13 वर्षों में सबसे कम केवल 2.75 लाख टन का ही हुआ है, जबकि पिछले जनवरी 2024 की समान अवधि में 7.80 लाख टन का आयात हुआ था। भारत में पाम तेल की बाजार हिस्सेदारी कम हो रही है और इसकी मांग धीमी पड़ रही है तथा इसके बदले सोया तेल का आयात बढ़ रहा है।

आयातकों द्वारा सोया तेल की ओर रुख करने के कारण मलेशियाई पाम तेल के आयात में गिरावट आई है। हाल के महीनों में सोया तेल की कीमतों में भारी बढ़ोतरी हुई थी, जिस कारण सस्ते सोया तेल के आयात को बढ़ावा मिला है। नवंबर 2024 से जनवरी 2025 के दौरान सोया तेल का आयात पिछले साल की समान अवधि नवंबर 2023 से जनवरी 2024 की पहली तिमाही के 4.91 लाख टन की तुलना में बढ़कर 12.7 लाख टन का हो गया। पिछले एक महीने में पाम ऑयल की कीमत में 80 से 100 अमेरिकी डॉलर की गिरावट आई है, लेकिन अभी भी सोया तेल की कीमत पाम तेल की तुलना में अधिक है।

दूसरा प्रमुख कारण नेपाल से भारत में सस्ते रिफाइंड सोया तेल और पाम तेल की भारी आवक होने से घरेलू रिफाइनर, किसानों को नुकसान पहुंचा रही है और सरकार को राजस्व का नुकसान हो रहा है। 15 अक्टूबर, 2024 से 15 जनवरी, 2025 (3 महीने) के दौरान, नेपाल ने लगभग 2.0 लाख टन खाद्य तेल मुख्य रूप से क्रूड सोया तेल और सूरजमुखी तेल का आयात हुआ है।

एसईए के अनुसार नवंबर 2024 से जनवरी 2025 के दौरान 667,412 टन की तुलना में 480,292 टन रिफाइंड तेल (आरबीडी पामोलीन) का आयात किया गया तथा जबकि नवंबर 2023 से जनवरी 2024 के दौरान 2,980,287 टन की तुलना में 3,303,222 टन क्रूड तेल का आयात किया गया। जनवरी 2025 में आरबीडी पामोलीन के कम आयात के कारण रिफाइंड तेल का अनुपात 18 फीसदी से घटकर 13 फीसदी का रह गया, जबकि क्रूड पाम तेल का अनुपात 82 फीसदी से बढ़कर 87 फीसदी का हो गया।

दिसंबर के मुकाबले जनवरी में आयातित खाद्वय तेलों की कीमतों में गिरावट रुख रहा। जनवरी में भारतीय बंदरगाह पर आरबीडी पामोलिन का भाव घटकर 1,126 डॉलर प्रति टन रह गया, जबकि दिसंबर में इसका दाम 1,236 डॉलर प्रति टन था। इसी तरह से क्रूड पाम तेल का दाम जनवरी में घटकर 1,170 डॉलर प्रति टन का रह गया, जबकि दिसंबर में इसका भाव 1,270 डॉलर प्रति टन था। क्रूड सोयाबीन तेल का भाव जनवरी में घटकर भारतीय बंदरगाह पर 1,113 डॉलर प्रति टन का रह गया, जबकि दिसंबर में इसका भाव 1,123 डॉलर प्रति टन था। इसी तरह से क्रूड सनफ्लावर तेल का भाव भारतीय बंदरगाह पर दिसंबर के 1,206 डॉलर से घटकर जनवरी में 1,182 डॉलर प्रति टन का रह गया।

11 फ़रवरी 2025

भारतीय चावल की निर्यात की कीमतें 19 महीने के निचले स्तर पर

नई दिल्ली। बढ़ती आपूर्ति और रुपये में गिरावट के कारण भारतीय चावल की निर्यात कीमत इस सप्ताह 19 महीने के निचले स्तर पर आ गई, जबकि वियतनाम की दरें सितंबर 2022 की शुरुआत के बाद से अपने सबसे निचले स्तर पर आ गईं।


सूत्रों के अनुसार भारत के 5 फीसदी टूटे हुए पारबोइल्ड चावल की कीमत इस सप्ताह 418 से 428 डॉलर प्रति टन थी, जो पिछले सप्ताह के 429 से 435 डॉलर प्रति टन से कम है।

सूत्रों के अनुसार खरीदार भारतीय चावल की खरीद में रुचि तो रखते हैं, लेकिन कीमतों में तेज गिरावट के कारण चिंतित हैं। वे कीमतों के निचले स्तर पर पहुंचने का इंतजार कर रहे हैं। जनवरी की शुरुआत में भारत के चावल के भंडार ने 60.9 मिलियन टन का रिकॉर्ड उच्च स्तर छुआ, जो सरकार के लक्ष्य से आठ गुना अधिक है।

इस बीच, बीते गुरुवार को रुपया नए रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया, जिससे विदेशी बिक्री से व्यापारियों का मार्जिन बढ़ गया।

वियतनाम में 5 फीसदी टूटे चावल की कीमत 404 डॉलर प्रति टन थी, जो 29 महीने का न्यूनतम स्तर था, जबकि दो सप्ताह पहले यह 417 डॉलर प्रति टन थी।

वियतनाम खाद्य एसोसिएशन के अनुसार, चंद्र नववर्ष की छुट्टियों के कारण पिछले सप्ताह बाजार बंद थे।

बीते गुरुवार को जारी सरकारी आंकड़ों से पता चला कि वियतनाम ने जनवरी में 527,000 टन चावल का निर्यात किया, जोकि एक वर्ष पहले की तुलना में 6.5 फीसदी अधिक है।

सरकार के सामान्य सांख्यिकी कार्यालय ने एक रिपोर्ट में कहा कि जनवरी में चावल निर्यात राजस्व 5.6 फीसदी घटकर 325 मिलियन डॉलर रह गया।

थाईलैंड का 5 फीसदी टूटा चावल पिछले सप्ताह 450 से 455 डॉलर प्रति टन से घटकर 415 से 420 डॉलर प्रति टन पर आ गया।

इंडोनेशिया और फिलीपींस जैसे खरीदारों द्वारा खरीद में देरी के कारण मांग शांत रही है, वियतनाम और थाईलैंड की आगामी फसल के कारण खरीदार मूल्य प्रवृत्तियों को देखने के लिए निर्णय में देरी कर रहे हैं।

इस बीच, अधिकारियों ने बताया कि बांग्लादेश राजस्व बढ़ाने तथा व्यापार को बढ़ावा देने और निर्यात आय बढ़ाने के लिए व्यापारिक समुदाय के निरंतर अनुरोधों पर प्रतिक्रिया देने के लिए सुगंधित चावल के निर्यात पर प्रतिबंध हटाने पर विचार कर रहा है।

साफ्टा के दुरुपयोग से भारतीय खाद्य तेल एवं तिलहन किसानों को भारी नुकसान - एसईए

नई दिल्लीं। दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार समझौते (साफ्टा) के तहत नेपाल के रास्ते खाद्य तेलों के शुल्क मुक्त आयात बढ़ने के कारण देश के खाद्वय तेल उद्योग के साथ ही तिलहन की खेती  करने वाले किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।


सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार नेपाल से सस्ते रिफाइंड खाद्य तेल का आयात घरेलू तेल रिफाइनिंग उद्योग को प्रभावित कर रहा है। एसोसिएशन ने प्रधानमंत्री और अन्य मंत्रियों का पत्र लिखकर के आग्रह किया है कि वे नेपाल और अन्य सार्क देशों से खाद्य तेल की आवक को विनियमित करके भारतीय खाद्य तेल अर्थव्यवस्था और किसानों को होने वाले नुकसान को रोकने के लिए हस्तक्षेप करें तथा इस बारे में आवश्यक कदम उठाएं।

एसईए के अनुसार नेपाल के रास्ते भारत में रिफाइंड सोया तेल और पाम तेल की भारी आवक हो रही है, जोकि मूल नियमों का उल्लंघन है। इससे घरेलू रिफाइनर, किसान और सरकार को राजस्व का भारी नुकसान हो रहा है। साफ्टा समझौते के तहत नेपाल से शून्य शुल्क पर खाद्य तेल का आयात न केवल उत्तरी और पूर्वी भारत में बल्कि अब दक्षिण भारत और मध्य भारत में भी तबाही मचा रहा है।

एसईए के अनुसार शुरुआत में इसका आयात कुछ मात्रा में शुरू हुआ था, लेकिन अब यह खतरनाक रूप ले चुका है और न केवल पूर्वी और उत्तरी भारत में खाद्वय तेल रिफाइनिंग उद्योग के अस्तित्व को खतरे में डाल रहा है, बल्कि भारत सरकार को भारी राजस्व की हानि पहुंचा रहा है। इन नुकसानों के अलावा यह तिलहन किसानों के हितों को भी नुकसान पहुंचा रहा है क्योंकि इससे हमारे बाजार विकृत हो रहे हैं और खाद्य तेलों पर उच्च आयात शुल्क रखने का उद्देश्य ही विफल हो रहा है। इससे किसानों को अपनी फसलों का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है।

दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र समझौते के तहत साफ्टा देशों से शून्य शुल्क पर खाद्य तेलों के आयात की अनुमति है। 

सीसीआई चालू सीजन में 86 लाख गांठ से ज्यादा कपास की कर चुकी है खरीद

नई दिल्ली। पहली अक्टूबर 2024 से शुरू हुए चालू फसल सीजन 2024-25 के दौरान कपास कारपोरेशन ऑफ इंडिया, सीसीआई किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी पर 86 लाख गांठ, एक गांठ-170 किलो की खरीद कर चुकी है।


सूत्रों के अनुसार चालू सीजन में स्टॉकिस्टों एवं व्यापारियों ने कपास की खरीद सीमित मात्रा में ही की है, क्योंकि पिछले दो सीजन से स्टॉकिस्टों को नुकसान उठाना पड़ा है। अत: इस बार सीसीआई द्वारा ज्यादा मात्रा में कपास की खरीद की गई। हालांकि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कपास की खरीद में अब पहले की तुलना में कमी आने लगी है, क्योंकि उत्पादक मंडियों में इसकी आवकों में कमी आई है, साथ ही दूसरी एवं तीसरी तुड़ाई के माल होने के कारण क्वालिटी भी हल्की आ रही है।  

स्पिनिंग मिलों की मांग बढ़ने के कारण शुक्रवार को गुजरात के साथ ही उत्तर भारत के राज्यों में कॉटन की कीमतों में सुधार आया।

गुजरात के अहमदाबाद में 29 शंकर-6 किस्म की कॉटन के भाव शुक्रवार को 100 रुपये तेज होकर दाम 52,700 से 53,100 रुपये प्रति कैंडी, एक कैंडी-356 किलो हो गए।

पंजाब में रुई के हाजिर डिलीवरी के भाव 5510 से 5530 रुपये प्रति मन बोले गए। हरियाणा में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के भाव 10 रुपये बढ़कर 5490 से 5530 रुपये प्रति मन बोले गए। ऊपरी राजस्थान में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के भाव 5 रुपये तेज होकर 5520 से 5590 रुपये प्रति मन बोले गए। खैरथल लाइन में कॉटन के भाव 52,900 से 53,000 रुपये कैंडी, एक कैंडी-356 किलो बोले गए। देशभर की मंडियों में कपास की आवक 1,23,900 गांठ, एक गांठ-170 किलो की हुई।

स्पिनिंग मिलों की मांग बढ़ने के कारण गुजरात के साथ ही उत्तर भारत के राज्यों में कॉटन की कीमतों में सुधार आया, हालांकि व्यापारी अभी इसके भाव में बड़ी तेजी के पक्ष में नहीं है। विश्व बाजार में कॉटन की कीमत घरेलू बाजार की तुलना में नीचे बनी हुई है जिस कारण इसके आयात पड़ते तो सस्ते है, साथ ही निर्यात सौदे नहीं के बराबर हो रहे हैं।

व्यापारियों के अनुसार खपत का सीजन होने के कारण सूती धागे की स्थानीय मांग आगामी दिनों में बढ़ने की उम्मीद है, लेकिन निर्यात मांग सामान्य की तुलना में कमजोर बनी हुई है।

कृषि मंत्रालय के पहले आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू खरीफ सीजन में कपास का उत्पादन 299.26 लाख गांठ, एक गांठ-170 किलो होने का अनुमान है, जो क‍ि पिछले खरीफ 2023-24 के 325.22 लाख गांठ के मुकाबले कम है।

कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया, सीएआई ने तीसरे आरंभिक अनुमान में चालू सीजन में कॉटन के उत्पादन अनुमान में 2 लाख गांठ की बढ़ोतरी की है। पहली अक्टूबर 2024 से शुरू हुए चालू फसल सीजन 2024-25 में देश में 304.25 लाख गांठ, एक गांठ-170 किलो कॉटन के उत्पादन का अनुमान है, जबकि इससे पहले 302.25 लाख गांठ के उत्पादन का अनुमान था। पिछले फसल सीजन 2023-24 के दौरान देश में 325.29 लाख गांठ कॉटन का उत्पादन हुआ था।

एफसीआई के चावल से इथेनॉल उत्पादन पर सुप्रीम कोर्ट की रोक, याचिका दायर

नई दिल्ली। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के चावल से इथेनॉल उत्पादन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है, जिसके बाद शीर्ष अदालत ने इस मामले में एफसीआई द्वारा कंपनियों को चावल उपलब्ध कराने पर अस्थायी रोक लगा दी है।


सूत्रों के अनुसार याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि विटामिन युक्त और पोषक तत्वों से भरपूर चावल का उपयोग इथेनॉल उत्पादन के लिए किया जाना उचित नहीं है, क्योंकि यह खाद्य सुरक्षा को प्रभावित कर सकता है। उनका कहना है कि इस चावल का प्राथमिक उद्देश्य देश की जनता को सस्ते दरों पर पोषण उपलब्ध कराना होना चाहिए, न कि इसे जैव ईंधन के उत्पादन में उपयोग किया जाए।

क्या है मामला?

भारत सरकार ने इथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए एफसीआई के अधिशेष चावल को डिस्टिलरी कंपनियों को उपलब्ध कराने की योजना बनाई थी। इसके तहत चावल से इथेनॉल बनाकर पेट्रोल में मिश्रित किया जाना था, जिससे देश में ईंधन आयात पर निर्भरता कम की जा सके। लेकिन इस योजना के विरोध में कई सामाजिक संगठनों और विशेषज्ञों ने आपत्ति जताई थी, जिसके चलते यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान एफसीआई से चावल वितरण पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने का निर्देश दिया है और कहा है कि जब तक अंतिम निर्णय नहीं लिया जाता, तब तक एफसीआई कोई भी चावल इथेनॉल उत्पादन के लिए कंपनियों को नहीं देगा। अदालत ने केंद्र सरकार से भी इस मामले में विस्तृत जवाब देने को कहा है।

आगे की कार्रवाई

मामले की अगली सुनवाई जल्द ही होने की संभावना है, जिसमें अदालत यह तय करेगी कि क्या एफसीआई का चावल जैव ईंधन उत्पादन के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है या इसे केवल खाद्य आपूर्ति के लिए ही सुरक्षित रखा जाना चाहिए।

विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को इस मामले में संतुलित निर्णय लेना होगा, जिससे देश की खाद्य सुरक्षा भी बनी रहे और इथेनॉल उत्पादन को लेकर सरकार की योजनाओं पर भी असर न पड़े।

महाराष्ट्र में बंद होने लगी चीनी मिलें, उत्पादन पिछले साल की तुलना में 16 फीसदी कम

नई दिल्ली। पहली अक्टूबर 2024 से शुरू हुए चालू चीनी पेराई सीजन 2024-25 (अक्टूबर से सितंबर) के दौरान महाराष्ट्र में चीनी मिलें बंद होनी शुरू हो गई है, तथा चीनी के उत्पादन में भी 16.08 फीसदी की कमी आई है।  


राज्य के चीनी आयुक्तालय की रिपोर्ट के अनुसार, चालू चीनी पेराई सीजन 2024-25 में 14 मिलों ने 5 फरवरी तक अपना परिचालन बंद कर दिया है, जोकि पिछले सीजन की समान अवधि की तुलना में सात मिलें अधिक है। इनमें मुख्य रूप से सोलापुर क्षेत्र की 12 चीनी मिलें है जबकि नांदेड़ क्षेत्र की 2 चीनी मिलें इसमें शामिल हैं।

महाराष्ट्र में चालू पेराई सीजन 2024-25 के दौरान अभी चीनी का उत्पादन केवल 60.21 लाख का ही हुआ है, जोकि पिछले सीजन की समान अवधि के 71.75 लाख टन की तुलना में 16.08 फीसदी कम है।

इस समय राज्य की 186 मिलों में गन्ने की पेराई चल रही है, जबकि 14 मिलों ने पेराई सत्र समाप्त कर दिया है। 5 फरवरी तक राज्य भर की मिलों ने 660.41 लाख टन गन्ने की पेराई की है, जोकि पिछले सीजन की समान अवधि के 741.13 लाख टन पेराई की तुलना में कम है।

राज्य की चालू पेराई सीजन में चीनी की रिकवरी की दर 9.12 फीसदी की बैठी है, जोकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि के दौरान हासिल की गई 9.68 फीसदी की रिकवरी की दर से कम है।

जानकारों के अनुसार, गन्ने की कम पैदावार और पेराई क्षमता में वृद्धि के कारण मिलों ने इस सीजन में पहले ही पेराई का काम बंद कर दिया है। पेराई सत्र की शुरुआत में देरी, इथेनॉल उत्पादन की और चीनी का रुख और गन्ने की पैदावार में कमी के कारण राज्य में चीनी का उत्पादन भी पिछले सीजन की तुलना में कम हुआ है।

गेहूं के साथ ही दलहन की बुआई रबी में बढ़ी, मोटे अनाज एवं तिलहनी फसलों की घटी

नई दिल्ली। चालू रबी सीजन में फसलों की बुआई 1.47 फीसदी बढ़कर 661.03 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल इस समय तक केवल 651.42 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई थी। गेहूं के साथ ही दलहन की बुआई में बढ़ोतरी हुई है, जबकि तिलहनी फसलों की पिछले साल की तुलना में घटी है।


कृषि मंत्रालय के अनुसार 4 फरवरी तक गेहूं की बुआई बढ़कर चालू रबी सीजन में 324.88 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल इस समय तक केवल 318.33 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।

धान की रोपाई चालू रबी में 42.54 लाख हेक्टेयर में हुई है, जबकि पिछले साल इस समय तक 40.59 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।

इस दौरान दलहनी फसलों की बुआई बढ़कर 140.89 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल समय तक केवल 137.80 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।

चना की बुआई चालू रबी में 98.55 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल इस समय तक केवल 95.87 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।

मसूर की बुआई चालू रबी में 17.43 लाख हेक्टेयर में हुई है, जोकि पिछले साल के लगभग बराबर है।

मटर की बुआई चालू रबी में थोड़ी बढ़कर 7.94 लाख हेक्टेयर में हुई है, जबकि पिछले साल इस समय तक 7.90 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।

उड़द की बुआई चालू रबी में 6.12 लाख हेक्टेयर में और मूंग की 1.40 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई क्रमश: 5.89 लाख एवं 1.38 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।

मंत्रालय के अनुसार तिलहनी फसलों की बुआई घटकर 96.15 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, जबकि पिछले साल इस समय तक 101.37 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।

रबी तिलहन की प्रमुख फसल सरसों की बुआई घटकर 97.47 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुआई 99.23 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।

कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू रबी में सरसों की बुआई 89.30 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, जबकि पिछले साल 91.83 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई थी।

मूंगफली की बुआई बढ़कर 3.65 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल 3.42 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई थी।

मोटे अनाजों की बुआई थोड़ी घटकर 55.25 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, जबकि पिछले साल इस समय तक 55.46 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।

ज्वार की बुआई 24.35 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, जबकि पिछले साल 27.36 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई थी।

मक्का की बुआई बढ़कर 23.67 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल 21.75 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई थी।

जौ की बुआई 6.20 लाख हेक्टेयर में हुई है, जबकि पिछले साल 5.51 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई थी।

खरीफ विपणन सीजन 2024-25 में 677.58 लाख टन हुई धान की सरकारी खरीद

नई दिल्ली। खरीफ विपणन सीजन 2024-25 में धान की न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी पर खरीद 677.58 लाख टन की हुई तथा कुल खरीद में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी पंजाब एवं छत्तीसगढ़ के बाद उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा रही।


सेंट्रल फूड ग्रेन प्रोक्योरमेंट पोर्टल के अनुसार पंजाब की मंडियों से खरीफ सीजन में 173.55 लाख टन धान की खरीद एजेंसियों और एफसीआई ने की। इस दौरान छत्तीसगढ़ की मंडियों से 149.15 लाख टन धान समर्थन मूल्य पर खरीदा गया है। उत्तर प्रदेश की मंडियों से खरीफ में 54.36 लाख टन एवं हरियाणा की मंडियों से 53.93 लाख टन धान की खरीद हुई।

अन्य राज्यों में तेलंगाना से 53,87,299 टन के अलावा उत्तराखंड से 6,28,526 टन धान की खरीद समर्थन मूल्य पर हुई है। केरल से 1,46,620 टन, हिमाचल से 36,903 टन, जम्मू कश्मीर से 32,679 टन, बिहार से 27,56,069 टन तथा आंध्र प्रदेश से 31,51,642 टन धान की एमएसपी पर खरीद हुई है।

खरीफ सीजन में गुजरात से 35,121 टन एवं असम से 1,65,192 टन के अलावा चंडीगढ़ से 25,796 टन तथा महाराष्ट्र से 8,27,526 टन तथा ओडिशा से 42,15,197 टन के अलावा त्रिपुरा से 15,965 टन और पश्चिमी बंगाल से 21,53,189 टन धान की सरकारी खरीद हुई है।

खरीफ सीजन में मध्य प्रदेश से 40,05,955 टन एवं तमिलनाडु से 9,32,435 टन धान की समर्थन मूल्य पर खरीद हुई है।

केंद्र सरकार के अनुसार खरीफ विपणन सीजन 2024-25 के दौरान पंजाब से करीब 185 लाख टन और हरियाणा से 60 लाख टन धान की खरीद की खरीद का लक्ष्य तय किया गया था। अत: इन राज्यों में खरीद तय लक्ष्य से कम हुई है।

केंद्र सरकार ने खरीफ विपणन सीजन 2024-25 के लिए कॉमन धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी 2,300 रुपये और ग्रेड-ए धान का समर्थन मूल्य 2,320 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है।

03 फ़रवरी 2025

आम बजट में दालों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता के साथ, कपास की उत्पादकता बढ़ाने पर जोर

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने शनिवार को पेश आम बजट में जहां देश को दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने पर जोर दिया, वहीं कपास की उत्पादकता बढ़ाने का ऐलान भी किया जिससे किसानों की आय में बढ़ोतरी होगी।


वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शनिवार को कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के मकसद से 6 नई योजनाओं की घोषणा की है। वित्त मंत्री ने कहा कि उनका लक्ष्य देश में फसल उत्पादन को बढ़ाना है। संसद में अपना आठवां बजट पेश करते हुए सीतारमण ने कहा कि दालों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता के लिए एक बड़े कदम के रूप में छह साल का मिशन अरहर, उड़द और मसूर के उत्पादन को बढ़ावा देने पर केंद्रित होगा। इस पहल के तहत, सहकारी संस्थाएं नेफेड और एनसीसीएफ इन एजेंसियों के साथ समझौते करने वाले पंजीकृत किसानों से चार साल तक दालों की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी पर करेंगी।

बजट में पांच वर्षीय कपास मिशन उत्पादकता में सुधार और ‘एक्स्ट्रा-लॉन्ग स्टेपल’ कपास किस्मों को बढ़ावा देने पर काम करेगा, जो कपड़ा क्षेत्र के लिए भारत के एकीकृत 5-एफ दृष्टिकोण का समर्थन करेगा।

उन्होंने कृषि को विकास का पहला इंजन बताया और प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना का प्रस्ताव किया। यह सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है, जिसका लक्ष्य कम उत्पादकता, कम फसल लेने वाले क्षेत्र (जिन स्थानों पर दो या तीन की जगह कम या केवल एक ही फसल ली जाती हो) और कर्ज लेने के औसत मापदंडों से कम लोन लेने वाले 100 जिलों को टारगेट करना है। राज्य सरकारों के साथ साझेदारी में लागू की जाने वाली इस योजना से 1.7 करोड़ किसानों को लाभ मिलने की उम्मीद है।


किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) पर लोन की लिमिट को पांच लाख रुपये से बढ़ाकर सात लाख रुपये कर दिया गया है। वित्त मंत्री ने 7.7 करोड़ किसानों, मछुआरों और डेयरी किसानों के लिए सब्सिडी वाले अल्पकालीन ऋण की सीमा को तीन लाख रुपये से बढ़ाकर पांच लाख रुपये करने का प्रस्ताव किया गया है।

एक नया रिसर्च इकोसिस्टम मिशन, अधिक उपज, कीट-प्रतिरोधी और प्रतिकूल जलवायु-सहिष्णु बीजों को विकसित करने और प्रचारित करने पर ध्यान केंद्रित करेगा, जिसमें जुलाई, 2024 से शुरू की गई 100 से अधिक बीज किस्मों को व्यावसायिक रूप से जारी करने की योजना है।