18 मार्च 2013
आज बदल सकती है चीनी उद्योग की किस्मत
केंद्रीय मंत्रिमंडल सोमवार को बहुप्रतीक्षित लेवी चीनी प्रणाली खत्म करने के बारे में विचार करेगा। बैठक में 80,000 करोड़ रुपये के चीनी क्षेत्र के आंशिक विनियंत्रण का रास्ता साफ हो सकता है। लेवी चीनी प्रणाली के तहत निजी मिलों को चीनी का एक निर्धारित हिस्सा सरकार को रियायती दर पर बेचना होता है। हालांकि इसके बाद सब्सिडी के बोझ में बढ़ोतरी होगी, जिसकी भरपाई के लिए चीनी पर उत्पाद शुल्क बढ़ाया जा सकता है।
इससे जुड़े जानकार लोगों ने बताया कि मंत्रिमंडल नियंत्रित रिलीज ऑर्डर व्यवस्था समाप्त करने और खुले बाजार में चीनी की कितनी भी मात्रा की बिक्री की छूट के प्रस्ताव पर भी विचार करेगा। फिलहाल सरकार ही तय करती है कि प्रत्येक मिल हर तिमाही या महीने में बाजार में कितनी चीनी बेच सकती है।
अधिकारियों ने कहा कि मंत्रिमंडल की बैठक में खाद्य सुरक्षा विधेयक पर भी विचार किया जाएगा। इस विधेयक में पुराने विधेयक में किए गए संशोधनों को शामिल किया गया है, जिनकी सिफारिश खाद्य पर संसद की स्थायी समिति ने की है। खाद्य मंत्रालय ने लेवी चीनी की प्रणाली समाप्त करने का सुझाव दिया था। लेवी चीनी के तहत मिलों को अपने सालाना उत्पादन का 10 फीसदी हिस्सा सरकार को बेचना होता है, जिसकी बिक्री सरकार कम कीमतों पर राशन की दुकानों के जरिये करती है।
वित्त मंत्री ने चिंता जताई थी कि अगर यह प्रणाली खत्म की जाती है तो सब्सिडी के बोझ में अचानक भारी बढ़ोतरी होगी। क्योंकि तब राशन की दुकानों के जरिये सस्ती चीनी बांटने का पूरा बोझ सरकार को ही उठाना पड़ेगा। अभी यह बोझ केंद्र और मिलें उठाती हैं। जवाब में अधिकारियों ने कहा कि खाद्य मंत्रालय का सुझाव था कि सब्सिडी के बोझ में बढ़ोतरी की भरपाई के लिए उत्पाद शुल्क बढ़ाया जा सकता है। साथ ही, मंत्रियों की उच्चाधिकार प्राप्त समिति बनाई जा सकती है या सचिवों का एक अंतर-मंत्रालय समूह चीनी पर निर्यात और आयात शुल्कों के नियमन के प्रस्ताव पर चर्चा कर सकता है। (BS hindi)
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