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09 अक्तूबर 2024

नई कपास की आवकों में बढोतरी से कीमतों में गिरावट जारी

नई दिल्ली। उत्पादक मंडियों में नई कपास की आवक बढ़ने से कीमतों पर दबाव बना हुआ है।  स्पिनिंग मिलों की मांग कमजोर बनी रहने के कारण मंगलवार को भी गुजरात के साथ ही उत्तर भारत के राज्यों में कॉटन की कीमतों में गिरावट दर्ज की गई।


गुजरात के अहमदाबाद में 29 शंकर-6 किस्म की कॉटन के भाव मंगलवार को 100 रुपये का मंदा आकर भाव 55,800 से 56,200 रुपये प्रति कैंडी, एक कैंडी-356 किलो रह गए। पहली अक्टूबर से मंगलवार तक राज्य में इसकी कीमतों में 2,900 रुपये प्रति कैंडी का मंदा आ चुका है।

पंजाब में नई रुई के हाजिर डिलीवरी के भाव 5,770 से 5780 रुपये प्रति मन बोले गए।हरियाणा में नई रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के भाव 5760 से 5770 रुपये प्रति मन बोले गए।ऊपरी राजस्थान में नई रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के भाव 5770 से 5790 रुपये प्रति मन बोले गए। खैरथल लाइन में कॉटन के भाव 55,000 से 55,200 रुपये कैंडी, एक कैंडी-356 किलो बोले गए।

देशभर की मंडियों में कपास की आवक 36,600 गांठ, एक गांठ-170 किलो की हुई।

घरेलू वायदा बाजार एमसीएक्स के साथ ही एनसीडीएक्स पर आज शाम को कॉटन की कीमतों में में गिरावट का रुख रहा। इस दौरान आईसीई के इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग में भी कॉटन की कीमतों में भी मंदा आया।

स्पिनिंग मिलों की मांग कमजोर होने के कारण गुजरात के साथ ही उत्तर भारत के राज्यों में कॉटन की कीमतों में मंदा जारी है। व्यापारियों के अनुसार नई फसल को देखते हुए स्पिनिंग मिलें कॉटन की खरीद सीमित मात्रा में ही कर रही है, इसलिए कीमतों पर दबाव बना हुआ है। उत्पादक राज्यों में मौसम साफ है इसलिए आगामी दिनों में नई फसल की आवक बढ़ेगी। हालांकि चालू सीजन में कपास की बुआई में कमी आई, जिस कारण उत्पादन अनुमान तो घटने की आशंका है, लेकिन उत्पादकता पिछले साल की तुलना में ज्यादा बैठ रही है। इसलिए कॉटन की कीमतों में और भी नरमी बन सकती है।

व्यापारियों के अनुसार मध्य पूर्व के देशों में तनाव बढ़ रहा है, जिसका असर विश्व बाजार में कॉटन की कीमतों पर पड़ने का डर है। ऐसे में घरेलू बाजार में स्पिनिंग मिलें अभी इंतजार करों एवं देखो की नीति अपना रही है। जानकारों के लिए विश्व बाजार में कॉटन की कीमत नीचे होने के कारण आगामी महीनों के आयात सौदे ज्यादा मात्रा में हो रहे हैं।

कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ सीजन में कपास की बुआई 10.96 फीसदी घटकर 112.76 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में 123.71 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।

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