31 मार्च 2014
मजबूत मांग के बीच चने की खरीद
मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्टï्र जैसे प्रमुख चना उत्पादक राज्यों में ओलावृष्टि और प्रतिकूल मौसम की वजह से चने की फसल को नुकसान पहुंचा है, जिससे स्टॉकिस्टों और मिलों की ओर से इसकी ज्यादा मांग आ रही है। व्यापारियों ने इस साल चने की अच्छी पैदावार का अनुमान लगाया था, लेकिन बाजार में आवक काफी कम है। अहमदाबाद की एक प्रमुख ब्रोकिंग फर्म के अनुसार चने के लिए मांग उत्तर और पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में अच्छी बनी हुई है। प्रमुख ब्रोकिंग फर्म दलाल सूरजभान खंडेलवाल ऐंड कंपनी के राजनभाई ने कहा, 'इस महीने पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और अन्य उत्तर-पूर्वी राज्यों से मांग काफी मजबूत है और अप्रैल में भी चने की मांग बनी रह सकती है, क्योंकि बाजार में पहुंच रही मौजूदा फसल की गुणवत्ता ज्यादा अच्छी नहीं है। इस महीने स्टॉकिस्टों और मिलों से अच्छी मांग की वजह से चने की कीमत लगभग 125-150 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ी हैं।'
ऑस्ट्रेलियाई चने के उत्पादन में कथित 23 फीसदी गिरावट की वजह से भी बाजार का रुझान मजबूत हुआ है। कम दरों पर अच्छे आयात से दलहन में तेजी पर रोक लगी है। पिछले साल पूरे देश में अच्छे मॉनसून से चने की बुआई बढ़ी है, लेकिन गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में ओलों और बेमौसम बारिश से फसल को काफी नुकसान हुआ है। सबसे ज्यादा नुकसान मध्य प्रदेश में होने की खबरें आ रही हैं। मध्य प्रदेश देश का सबसे बड़ा चना उत्पादक राज्य है। पड़ोसी राज्य गुजरात और महाराष्ट्र में चने की फसल प्रभावित हुई है। मध्य प्रदेश में चने की खरीद इस सप्ताह के प्रारंभ में शुरू होनी थी, लेकिन बारिश से इसमें देरी हुई है।
एमपी मार्कफेड (मप्र राज्य सहकारी विपणन संघ लिमिटेड) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'मध्य प्रदेश में कुछ जगहों पर बारिश हुई है, जिससे इस जिंस में नमी बढ़ गई है। खरीद केंद्र 14 फीसदी से ज्यादा नमी वाले चने को खरीदने से मना कर सकते हैं, इसलिए हमने किसानों को और ज्यादा समय दिया है।' अधिकारी ने कहा, 'अब खरीद 1 अप्रैल से शुरू होगी।' विपणन वर्ष 2014-15 के लिए चने का एमएसपी 3,100 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है। गुजरात में अच्छे चने का भाव इस समय 2,800 से 3,250 रुपये प्रति क्विंटल के बीच है, जबकि हल्की गुणवत्ता वाले चने का भाव 1,800 से 2,700 रुपये के बीच चल रहा है। महाराष्ट्र में अच्छे चने का भाव 3,000 से 3,375 रुपये प्रति क्विंटल के बीच है। देश में चने का औसत भाव 1,750 रुपये से 3,350 रुपये प्रति क्विंटल के बीच है। कारोबारी अनुुमानों के मुताबिक खराब मौसम की वजह से देश में 20-25 फीसदी फसल खराब हो गई है।
केंद्र सरकार के दूसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक वर्ष 2013-14 में देश में चने का उत्पादन करीब 97.9 लाख टन रहेगा, जो वर्ष 2012-13 में 88.3 लाख टन था। इस साल देश में चने की बुआई 102.1 लाख हेक्टेयर में की गई है, जो पिछले साल 95 लाख हेक्टेयर थी। सामान्य मॉनसून और मिट्टी में अच्छी नमी की वजह से रकबे में बढ़ोतरी हुई है। भारतीय दलहन एवं अनाज संघ (आईपीजीए) के आंकड़ों के मुताबिक चने की घरेलू खपत कीमतों से तय होती है। 2012-13 में खपत 90 से 92 लाख टन रहने का अनुमान है। (BS Hindi)
इस साल 376 लाख गांठ कपास उत्पादन का अनुमान
आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में बेहतर फसल से इस साल देश का कुल कपास उत्पादन 376 लाख गांठ (प्रति 170 किलो) होने का अनुमान है। यह पिछले अनुमान से 15 लाख गांठ अधिक है। भारतीय कपास महासंघ (आईसीएफ) के अध्यक्ष जे तुलासिद्धरण ने आज यहां बताया कि आड्डध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में बेहतर फसल के अनुमान से देश के कुल कपास उत्पादन में बढ़ोतरी होने का अनुमान है। उन्होंने बताया कि आंध्र प्रदेश के कपास उत्पादन में सुधार दर्ज किया जा गया है और यहां की फसल कीट अथवा अन्य किसी कारण से प्रभावित नहीं हुई है, जबकि महाराष्ट्र की कपास की उपज और गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार आया है।
उल्लेखनीय है कि कपास का वर्ष अक्टूबर से सितंबर तक चलता है। इस वर्ष गुजरात में सर्वाधिक 120 लाख गांठ कपास उत्पादन का अनुमान है, जो पिछले अनुमान से 5 लाख गांठ कम है। महाराष्ट्र में 80 लाख गांठ कपास उत्पादन रहने का नया अनुमान है जो पहले 70 लाख गांठ अनुमानित था। आंध्र प्रदेश में संशोधित अनुमान 73 लाख गांठ है, जबकि पहले इस राज्य में 65 लाख गांठ उत्पादन होने का अनुमान लगाया गया था। इसी प्रकार तमिलनाडु और ओडिशा में क्रमश: 5 लाख एवं 3 लाख गांठ कपास उत्पादन का अनुमान लगाया गया है। (BS Hindi)
फल-सब्जी बाजार भी निगरानी में
भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) की नजर अब सब्जियों एवं फलों के थोक बाजारों के साथ ही पेय पदार्थ निर्माताओं पर है। जल्द ही ऐसे बाजारों और निर्माताओं को प्राधिकरण की औचक जांच का सामना करना पड़ सकता है। अधिकारियों ने बताया कि प्राधिकरण निगरानी बढ़ाने और जांच के वास्ते नमूने लेने के लिए एक पैनल का गठन करने की योजना बना रहा है ताकि इनकी नियमित तौर पर जांच सुनिश्चित की जा सके।
एफएसएसएआई के मुख्य कार्याधिकारी दिलीप कुमार सामंतराय ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, 'हम जल्द ही फल एवं सब्जियों के बाजारों में नियमित जांच की तैयारी कर रहे हैं। इसके साथ ही फल आधारित पेय पदार्थ निर्माण इकाइयों की भी जांच की जाएगी। निकट भविष्य में नमूने लेकर सतत निगरानी की जाएगी। इस दिशा में पहले ही काम शुरू किए जा चुके हैं।'
एक अन्य अधिकारी ने बताया कि एफएसएसएआई की केंद्रीय सलाहकार समिति की इस माह के शुरुआत में हुई बैठक में जांच और निगरानी के लिए विस्तृत प्रारूप तैयार करने और दिशानिर्देशों को लागू करने के लिए एक विशेष निगरानी समिति का गठन किया गया है। एफएसएसएआई देश में खाद्य उत्पादों और आयातित खाद्य उत्पादों की गुणवत्ता पर नजर रखने वाली नियामकीय एजेंसी है।
पिछले साल अक्टूबर में उच्चतम न्यायालय ने कर्बोनेटेड पेय पदार्थों में हानिकारक तत्वों के कारण लोगों के स्वास्थ्य पर असर पडऩे को लेकर गंभीर चिंता जताई थी। इसी को ध्यान में रखते हुए एफएसएसएआई ने यह कदम उठाया है। उच्चतम न्यायालय ने एफएसएसएआई को कार्बोनेटेड पेय पदार्थ इकाइयों के साथ ही प्रमुख फल एवं सब्जि बाजारों की निगरानी करने को कहा था ताकि खाद्य पदार्थों में कीटनाशकों की मौजूदगी को कम किया जा सके।
सामंतराय के मुताबिक अगर विनिर्माण इकाइयों या बाजार में बिकने वाले उत्पाद मानदंड पर खरे नहीं उतरते हैं तो संबंधित कंपनियों पर खाद्य सुरक्षा एवं मानक कानून के तहत भारी जुर्माना लगाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि गंभीर मामले में दोषी पाए जाने पर कानूनी कार्रवाई का भी सामना करना पड़ सकता है। अधिकारी ने बताया कि निगरानी प्रारूप तैयार करने के लिए गठित समिति द्वारा एक माह के अंदर रिपोर्ट सौंपे जाने की उम्मीद है। रिपोर्ट में ऐसी जांच के मानदंड और प्रक्रिया में एकरूपता लाई जाएगी। प्रारूप तैयार होने के बाद नियामक अपनी जांच शुरू करेगा। हालांकि कुछ जांच केंद्रीय नियामकीय एजेंसी करेगी लेकिन इसमें राज्य स्तर पर खाद्य सुरक्षा अधिकारियों की भी अहम भूमिका होगी। (BS Hindi)
कमोडिटी बाजारः चीनी की कीमतों में तेजी
चीनी की कीमतें लगातार बढ़ती जा रही हैं। वायदा में आज इसका दाम करीब 1 फीसदी बढ़कर 3140 रुपये के ऊपर तक पहुंच चुका है। पिछले एक हफ्ते में चीनी करीब 4 फीसदी और इस महीने करीब 11 फीसदी महंगी हो चुकी है। दरअसल सरकार की ओर से रियायत मिलने से चीनी के एक्सपोर्ट में जोरदार बढ़त हुई है। वहीं इस साल प्रोडक्शन करीब 10 फीसदी तक कम रहने के कयास लगाए जा रहे हैं। ऐसे में चीनी की कीमतें बढ़ती जा रही हैं। इस बीच दुनिया के कई देशों ने भारत में चीनी एक्सपोर्ट पर दी जाने वाली सब्सिडी पर कड़ी आपत्ति जताई है। यूरोपीय यूनियन, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील और कोलंबिया जो कि डब्ल्यूटीओ के सदस्य हैं, ने भारत से रियायत खत्म करने की मांग की है।
एमसीएक्स पर कच्चे तेल में दबाव देखा जा रहा है और इसका भाव 6100 रुपये के नीचे आ गया है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में गिरावट के असर से कच्चे तेल में गिरावट आई है। हालांकि क्रूड से ज्यादा नैचुरल गैस में दबाव है। एमसीएक्स पर इसका दाम 1 फीसदी तक फिसल चुका है और नैचुरल गैस 267.90 रुपये पर कारोबार कर रही है।
सोने और चांदी में आज बेहद सुस्त कारोबार हो रहा है। इस हफ्ते अमेरिका में जारी होने वाले नॉन फार्म पेरोल से पहले सोने की चाल सुस्त देखी जा रही है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में सोना 1,5 महीने के निचले स्तर पर कारोबार कर रहा है।। घरेलू बाजार में भी सोने का दाम 28500 रुपये के नीचे आ चुका है। चांदी में हल्की बढ़त है लेकिन अभी भी ये 43000 रुपये के नीचे है। फिलहाल चांदी 0.32 फीसदी चढ़कर 42894 रुपये पर कारोबार कर रही है।
एमसीएक्स पर बेस मेटल्स में काफी मिलाजुला रुझान है। कॉपर में दबाव है और ये 0.11 फीसदी टूटकर 404 रुपये पर आ गया है।। जबकि निकेल का दाम 0.82 फीसदी तक चढ़ गया है और इसमें 950 रुपये के ऊपर कारोबार हो रहा है। लेड में 0.28 फीसदी की बढ़त देखी जा रही है और जिंक में भी 0.3 फीसदी की तेजी पर कारोबार हो रहा है। हालांकि एल्यूमीनियम में 0.05 फीसदी की मामूली कमजोरी दर्ज की जा रही है।
एग्री कमोडिटीज में चने में दबाव पर कारोबार हो रहा है। फसल को नुकसान होने से पिछले दिनों इस कमोडिटी में तेजी रही थी, लेकिन आज बिकवाली हावी है। मंडियों में सप्लाई बढ़ने से चने पर दबाव बढ़ता जा रहा है। एनसीडीईएक्स पर चने का दाम करीब 0.5 फीसदी गिर गया है। आज दिल्ली में भी चना गिरावट के साथ कारोबार कर रहा है।
निर्मल बंग कमोडिटीज की निवेश सलाह
कच्चा तेलः एमसीएक्स (अप्रैल वायदा) बेचें 6110 रुपये लक्ष्य 6020 रुपये स्टॉपलॉस 6160 रुपये
नैचुरल गैसः एमसीएक्स (अप्रैल वायदा) बेचें 272 रुपये लक्ष्य 261 रुपये स्टॉपलॉस 279 रुपये
निकेलः एमसीएक्स (अप्रैल वायदा) खरीदें 950 रुपये लक्ष्य 970 रुपये स्टॉपलॉस 938 रुपये
चांदीः एमसीएक्स (मई वायदा) खरीदें 42,700 रुपये लक्ष्य 43,250 रुपये स्टॉपलॉस 42,400 रुपये (Hindi Moneycantrol.com)
EGoM okays Rs 352cr relief for 4 states to replant horti crops
New Delhi, Mar 31. The Centre will provide Rs 352
crore assistance to farmers for replanting horticultural crops
that were hit by untimely rains and hailstorms early this
month in Maharashtra, Madhya Pradesh, Karnataka and Rajasthan,
a government source said today.
That apart, the Centre has decided to release Rs 92 crore
to Karnataka for providing relief to farmers who lost the rabi
crops and homes to unseasonal rains, the source said.
"The Empowered Group of Ministers, headed by Agriculture
Minister Sharad Pawar has approved Rs 352 crore as relief for
replanting and rejuvenation of damaged horticultural crops in
four states," the source said.
The funds will be released from the National Disaster
Response Fund (NDRF). This would be over and above the
assistance that is already being provided as part of a scheme
under the National Horticultural Mission (NHM).
While the assistance of Rs 92 crore, to be released from
NDRF, to Karnataka was approved in a separate meeting of the
High Level Committee, also headed by Pawar, the source said.
Finance Minister P Chidambaram and Home Minister Sushil
Kumar Shinde were present at both the meetings.
On March 20, the EGoM had approved a financial assistance
of Rs 1,351 crore to Maharashtra and Madhya Pradesh for damage
to the crops.
Unseasonal rains, winds and hailstorms early this month
have affected rabi (winter) crops like wheat, pulses, oilseeds
and horticultural crops in the four states.
29 मार्च 2014
एफएमसी उपभोक्ता सुरक्षा के सुधार 1 मई से लागू करेगा
जिंस डेरिवेटिव्ज बाजार नियामक वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) अपने अधीन आने वाले एक्सचेंजों को निर्देश दिया है कि उपभोक्ता सुरक्षा पर वित्तीय क्षेत्र विधायी सुधार आयोग (एफएसएलआरसी) द्वारा सुझाए गए सुधारों को लागू किया जाए। एफएसएलआरसी ने सदस्यों, अधिकृत व्यक्तियों और ग्राहकों के अधिकारी और दायित्वों में अहम बदलावों का सुझाव दिया है। एफएमसी ने एक्सचेंजों को आदेश दिया है कि ये सुझाव नए सदस्यों के लिए 1 मई से और वर्तमान सदस्यों के लिए 31 दिसंबर से लागू होंगे। पिछले साल दिसंबर में एफएमसी ने एक्सचेंजों और आम जनता से इस विषय पर राय मांगी थी। रोचक बात यह है कि एक्सचेंजों ने भी इन बदलावों का समर्थन किया था, लेकिन नियामक को आम जनता से कोई सुझाव नहीं मिले।
नियामक ने सदस्यों को चेतावनी दी है कि ग्राहकों की उतनी ही सूचनाएं इक्ट्ठी की जाएं, जितनी वित्तीय लेन-देन के लिए जरूरी हों। सूचनाओं को समय पर अद्यतन करें और यह सुनिश्चित करें कि ग्राहक अपनी व्यक्तिगत सूचनाएं प्राप्त कर सकें। हालांकि संबंधित सदस्य ग्राहकों की सूचनाओं का उनकी स्वीकृति पर खुलासा कर सकते हैं। लेकिन ग्राहकों की व्यक्तिगत सूचनाओं की धोखाधड़ी, अनधिकृत लेन-देन और दावे आदि से सुरक्षा करने की जिम्मेदारी सदस्यों पर होगी। एफएमसी ने सदस्यों को आदेश दिया है कि शिकायत निवारण की व्यवस्था की जाए, जहां ग्राहक अपनी शिकायतें दर्ज करा सकें। (BS Hindi)
Gold, silver decline on stockists selling, weak global cues
New Delhi, Mar 29. Gold prices declined by Rs 5 to
Rs 29,350 per ten gram in the national capital today following
stockists selling coupled with weak global trend.
Silver also eased by Rs 39 to Rs 43,500 per kg on lack of
buying support from industrial units and coin makers.
Traders said stockists selling along with lower global
trend and strengthening rupee against the dollar mainly
influenced the trading sentiment.
Gold in New York, which normally set the price trend on
the domestic front, fell by less than 0.1 per cent to USD
1,294.30 an ounce.
Investors shifting their funds from bullion to soaring
equities also brought down demand for the precious metals,
they said.
On the domestic front, gold of 99. 9 and 99.5 per cent
purity shed Rs 5 each at Rs 29,350 and Rs 29,150 per ten gram
respectively. It had gained Rs 5 yesterday. Sovereign,
however, held steady at Rs 24,800 per piece of eight gram.
Silver ready declined by Rs 39 to Rs 43,500 per kg and
weekly-based delivery by Rs 279 to Rs 42,760 per kg. The white
metal had gained Rs 139 in the previous session.
Silver coins also plunged by Rs 1,000 to Rs 80,000 for
buying and Rs 81,000 for selling of 100 pieces.
26 मार्च 2014
उत्तर भारत में कम होगी बारिश : रिपोर्ट
अल-नीनो का खतरा धीरे-धीरे बढ़ रहा है, जिससे आगामी मॉनसून सीजन के दौरान भारत के उत्तरी राज्यों में कम बारिश की ज्यादा आशंका है। स्काईमेट के संस्थापक और मुख्य कार्याधिकारी जतिन सिंह ने कहा, 'दक्षिण भारत के दोनों तरफ महासागर हैं। इसलिए चालू सीजन में इस क्षेत्र को या तो बंगाल की खाड़ी या अरब सागर या दोनों की मदद से पर्याप्त बारिश मिलेगी। दूसरी ओर उत्तर भारत पूरी तरह महासागर पर निर्भर है और यह तट पर स्थित नहीं है, इसलिए उत्तर भारत को इस सीजन में बारिश की कमी झेलनी पड़ सकती है।' स्काईमेट का दावा है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत के मौसम पैटर्न के बारे में उसके पूर्वानुमान सबसे सटीक रहे हैं।
पिछले 138 वर्षों के दौरान करीब 98 फीसदी अलनीनो की घटनाओं में सामान्य से कम बारिश हुई है और 60 फीसदी मामलों में सूखा रहा। इस दौरान अत्यधिक बारिश नहीं दर्ज की गई। अलनीनो की घटनाओं और इसके लिए लगाई गई मशीनों के बीच सांख्यिकी सह-संबंध रहा है। लेकिन समस्या यह है कि सिस्टम का आकार इतना बड़ा है कि कोई भी व्यक्ति वैज्ञानिक रूप से इन मशीनों की हर तरह से जांच नहीं कर सकता।
इसका सिद्धांत यह है कि दक्षिण अमेरिका में गर्मी से बंगाल की खाड़ी की नमी उधर जा रही है, जिससे भारत के कुछ हिस्सों में कम बारिश होगी। सिंह ने कहा, 'पूरा सीजन 8-9 मिलीमीटर बारिश पर आधारित है। अगर हम भारत के सभी मौसम उपखंडों को अध्ययन में शामिल करें और 31 सितंबर 2014 तक 8-9 मिलीमीटर की 90-95 फीसदी बारिश होती है तो इसका वितरण कम हो सकता है।'
वर्ष 2002 में अलनीनो सक्रिय था, जिस से बारिश सामान्य से 21 फीसदी कम रही और यह वर्ष सूखा रहा। फिर 2004 में अलनीनो की वजह से बारिश 12 फीसदी कम रही। वहीं, वर्ष 2009 और 2012 में अलनीनो के असर की वजह से बारिश लंबी अवधि के औसत से क्रमश: 27 फीसदी और 7 फीसदी कम रही। इसलिए इस बात के आसार हैं कि इस साल भी बारिश कम रहेगी। सभी अनुमानों में यह दिखाया जा रहा है कि जून में अलनीनो का असर दिखना शुरू हो जाएगा। सिंह ने कहा कि हालांकि 95 फीसदी औसत बारिश होना चिंताजनक नहीं होगा। मगर इससे कम बारिश होने पर सूखे से इनकार नहीं किया जा सकता। (BS Hindi)
एफसीआई को गेहूं खरीद में टक्कर
पिछले साल की तरह इस साल भी भारतीय खाद्य निगम सहित सरकारी गेहूं खरीद एजेंसियों को निजी कारोबारियों से कड़ी टक्कर मिल सकती है। हालांकि गेहूं की खरीद 1 अप्रैल से शुरू होनी है, लेकिन पंजाब और हरियाणा में जल्दी बोई जाने वाली किस्मों की आवक शुरू होने से कीमतें नरम पडऩे लगी हैं। मध्य प्रदेश में 25 मार्च से खरीद शुरू हो गई है। सरकार ने इस सीजन में 3.1 करोड़ टन गेहूं खरीदने का फैसला लिया है, क्योंकि उत्पादन 9 करोड़ टन से ज्यादा होने का अनुमान है। केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने राज्यों के खाद्य सचिवों के साथ 17 मार्च को हुई बैठक में खरीद लक्ष्य 3.1 करोड़ टन तय किया था, लेकिन यह देखना होगा कि यह लक्ष्य कितना पूरा होता है। आमतौर पर निजी कारोबारी उन राज्यों में खरीद करते हैं, जहां राज्य एजेंसियों की मजबूत पकड़ नहीं होती है।
एक पुराने कारोबारी ने नाम न छापने का आग्रह करते हुए कहा कि पंजाब और हरियाणा जैसे मुख्य गेहूं उत्पादक राज्यों में खरीद की अच्छी व्यवस्था है, इसलिए वहां निजी कारोबारियों के हाथ नहीं पड़ेंगे। वे अपनी ज्यादातर खरीद उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और गुजरात से करेंगे। इस सीजन के लिए सीएसीपी (कृषि लागत एवं मूल्य आयोग) द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 1,400 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है। निजी कारोबारियों को उत्तर प्रदेश का बाजार लुभाता है, क्योंकि वहां पर्याप्त बुनियादी ढांचा न होने के कारण कीमत एमएसपी से नीचे रहती है।
गुजरात और महाराष्ट्र में निजी कारोबारियों की भागीदारी अहम होने की संभावना है, क्योंकि निर्यातकों ने गेहूं के वायदा सौदे किए हुए हैं। अहमदाबाद के एक ब्रोकर ने कहा कि सिंगापुर को निर्यात करने से उन्हें दाम 1,660 रुपये प्रति क्विंटल मिल रहे थे और घरेलू बाजार में कीमत 1,675 रुपये प्रति क्विंटल थी। गांधीधाम से सीमेंट की आवाजाही सुस्त पडऩे से ट्रकों की उपलब्धता पर असर पड़ा है और इससे मालभाड़े की लागत में बढ़ोतरी हुई है। उन्होंने कहा कि आवक में सुधार से वे पहले से किए हुए निर्यात अनुबंधों को पूरा करने की कोशिश करेंगे।
निजी कारोबारियों को कुछ गेहूं ऊंची कीमतों पर खरीदना पड़ सकता है, क्योंकि मध्य प्रदेश में बारिश से कुछ हिस्सों में गेहूं की गुणवत्ता पर असर पड़ सकता है। राज्य में गेहूं पर 150 रुपये के बोनस दिए जाने से निजी कारोबारियों के लिए ज्यादा मौके नहीं होंगे। मुख्य गेहूं उत्पादक राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश में खराब मौसम का वास्तविक खरीद पर असर पड़ सकता है। वर्ष 2013-14 में गेहूं की खरीद 2.5 करोड़ टन थी।
सरकार द्वारा खुले बाजार में बिक्री की योजना (ओएमएसएस) के तहत निविदाएं बंद करने से मार्च के दूसरे सप्ताह में गेहूं की कीमत बढ़कर 1,700 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गई थी। हालांकि अब उत्तर भारतीय राज्यों में कीमत गिरकर 1,650 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गई हैं। कारोबारी उम्मीद कर रहे हैं कि नई दिल्ली में अप्रैल के दूसरे और तीसरे सप्ताह में कीमत 1,520 रुपये से 1,550 रुपये प्रति क्विंटल के दायरे में रहने की उम्मीद कर रहे हैं। मिलों के पास गेहूं स्टॉक नहीं है, जिसकी वजह से आगामी सप्ताह में कीमतें नीचे आने पर निजी कारोबारियों के भारी खरीद करने की संभावना है। उत्तर में मौसम का फसलों पर असर पड़ा है। इस वजह से पंजाब और हरियाणा में आवक 10 दिन देरी से शुरू होने की संभावना है। (BS Hindi)
बायोटेक कंपनियां शोध पर करेंगी ज्यादा निवेश
जीन संवर्धित (जीएम) फसलों की 200 से ज्यादा ट्रांसजैनिक किस्मों के भूमि परीक्षण को मंजूरी मिलने के सरकारी फैसले से उत्साहित बायोटेक्नोलॉजी कंपनियों ने बीजों के शोध एवं विकास पर भारी निवेश की योजना बनाई है। इस क्षेत्र के नियामक जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी ने भी अंतिम बाधा दूर कर दी है। कमेटी ने भी जीएम बीजों की 11 किस्मों को मंजूरी दे दी है और अपनी अगली बैठक में और किस्मों पर विचार करने का आश्वासन दिया है।
पिछले एक साल के दौरान शोध एवं विकास में निवेश रुक गया है, क्योंकि अपना फायदा चाहने वाले समूहों विशेष रूप से गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) के विरोध के कारण इसे नियामकीय मंजूरी मिलने पर अनिश्चितता बनी हुई थी। अब उद्योग जीएम बीजों की ट्रांसजैनिक किस्मों में निवेश करने के ïिलए फिर उत्साहित है। एडवांटा सीड्स के प्रबंध निदेशक और भारत में जीएम बीजों को प्रोत्साहित करने वाली संस्था एबीएलई-एजी के चेयरमैन वीआर कौंडिन्य ने कहा, 'भारत के बायोटेक्नोलॉजी क्षेत्र के शोध एवं विकास में निवेश बढऩे की उम्मीद है, जो उन्होंने पिछले साल बंद कर दिया था। हमें उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2014-15 से विकसित बीजों के शोध एवं विकास पर 600 करोड़ रुपये का वार्षिक निवेश होने लगेगा। एक वर्ष पहले बायोटेक्नोलॉजी कंपनियां हर साल समग्र रूप से करीब 200 करोड़ रुपये का निवेश कर रही थीं।'
निवेश के अलावा बायोटेक्नोलॉजी कंपनियां कृषि फसलों के ज्यादा उत्पादन के लिए जीन के अणु और जैविक स्थानांतरण पर काम कर रही हैं। इस समय चावल, गेहूं, ज्वार, मूंगफली, मक्का, आलू, टमाटर, बंद गोभी, फूलगोभी, भिंडी, बंैगन, सरसों, तरबूज, पपीता और गन्ने जैसी बहुत सी जीएम फसलों को भारत में वाणिज्यिक बिक्री शुरू होने का इंतजार है। शोध करने वाली कंपनियां जैसे मोनसैंटो और माहिको रोग प्रतिरोधी फसलों की खोज पर लगातार काम कर रही हैं, ताकि उत्पादकता बढ़ाई जा सके और बढ़ती आबादी को खाद्य उपलब्ध कराया जा सके। मोनसैंटो शोध के लिए कर्मचारियों और वैज्ञानिक तकनीक पर भारी निवेश कर रही है। (BS Hindi)
जीएम फसलों के परीक्षण के लिए राज्य अब भी नहीं तैयार
जीन अभियांत्रिकी स्वीकृति समिति (जीईएसी) ने 11 फसलों की प्रायोगिक खेती को पिछले हफ्ते मंजूरी दे दी, लेकिन अभी यह पहला पड़ाव ही है। इसके आगे और भी रुकावटें हैं। असली दिक्कत यह है कि खेतों में फसलों का परीक्षण राज्य सरकारों की रजामंदी के बगैर शुरू नहीं हो सकता है और ज्यादातर राज्य जीन संवद्र्घित फसलों के परीक्षण के वास्ते तैयार नहीं दिख रहे हैं।
बिजनेस स्टैंडर्ड के एक सर्वेक्षण में पता चला है कि ज्यादातर राज्य इन फसलों के परीक्षण की इजाजत नहीं देना चाहते और कुछ अन्य राज्य इसकी सशर्त अनुमति देने के पक्ष में हैं। कुछ राज्य ऐसे भी हैंं, जो न तो इनकार कर रहे हैं और न ही इसके लिए हामी भर रहे हैं। वे चुनाव होने के बाद ही फैसला करना चाहते हैं। हालांकि सरकार के लिए राहत की बात यह है कि खेती-बाड़ी के लिहाज से दो बड़े राज्य महाराष्टï्र और पंजाब जीएम फसलों की प्रायोगिक खेती के लिए तैयार हैं।
जीईएसी अधिकारियों ने बताया कि मक्का, सरसों और चावल सहित कुछ अन्य फसलों की प्रायोगिक खेती की अनुमति दी गई है, लेकिन जिन राज्यों में इनकी ज्यादा खेती होती है, वे प्रायोगिक परीक्षण के लिए तैयार ही नहीं हैं। हालांकि अधिकारी कह रहे हैं कि खाद्यान्न, सब्जियों और तिलहन की मांग लगातार बढ़ रही है और इन परिस्थितियों में जीएम फसलें बेहतर विकल्प साबित हो सकती हैं। अधिकारियों ने कहा कि इनसे उत्पादन में खासा इजाफा होगा।
हालांकि इन फसलों के इस्तेमाल से स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं की आशंका जताई जा रही है। दूसरे देशों में भी इस तरह की आशंका जताई जा रही है। कुछ साल पहले भारत ने जीएम फसलों की प्रायोगिक खेती रोक दी थी। हालांकि पिछले सप्ताह जीईएसी से 11 फसलों को अनुमति मिलने के बाद इस मुद्दे ने एक बार फिर ध्यान आकर्षित किया है। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने जुलाई 2011 में कंपनियों, संस्थानों और शोध इकाइयों के लिए उन राज्यों की अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया था, जहां वे जीएम फसलों की प्रायोगिक खेती करना चाहते हैं। जीईएसी विश्लेषकों ने स्थानों का विश्लेषण किया जहां विभिन्न मानदंडों पर प्रायोगिक खेती का प्रस्ताव दिया गया है।
उत्तर प्रदेश और ओडिशा जीएम फसलों का सशर्त समर्थन करते हैं। उत्तर प्रदेश बीटी कपास के पक्ष में है, लेकिन उपभोग की जाने वाली फसलों के लिए जीएम बीजों के यह खिलाफ है। ओडिशा का कहना है कि वह जीएम फसलों की प्रायोगिक खेती की अनुमति दे सकता है, लेकिन जीएम बीजों पर किसानों के अधिकार पर भी विचार करना होगा। दिलचस्प बात है कि आंध्र प्रदेश में कई बीज कंपनियां सक्रिय हैं और बीटी कॉटन सबसे पहले इसी राज्य में लाया गया था। लेकिन अब तेलंगाना में नई सरकार बनने तक इंतजार करना होगा।
एक तकनीकी समिति पहले ही इस विषय पर अध्ययन कर रही है। गुजरात और कर्नाटक ने अब तक आपत्ति नहीं जताई है, लेकिन वे इस मुद्दे पर कोई फैसला लेने से पहले चुनाव संपन्न होने तक इंतजार करना चाहते हैं। दक्षिण के कुछ अन्य बड़े राज्यों तमिलनाडु और केरल पूरी तरह जीएम फसलों के खिलाफ हैं और इनकी प्रायोगिक खेती की अनुमति नहीं दे रहे हैं। मध्य प्रदेश भी नीतिगत तौर पर प्रायोगिक खेती का विरोध कर रहा है। छत्तीसगढ़ इस मुद्दे पर तटस्थ है। (Business Bhaskar)
एमसीएक्स को नए कांट्रेक्ट से रोक सकता है एफएमसी
देश के सबसे बड़े कमोडिटी एक्सचेंज एमसीएक्स में जिग्नेश शाह और फ्यूचर टैक्नोलॉजीज इंडियन लि. (एफटीआईएल) की कुल हिस्सेदारी घटाकर दो फीसदी नहीं की जाती है तो उसे नए कमोडिटी कांट्रेक्ट लांच करने से रोका जा सकता है।
एनएसईएल घोटाले की जांच के बाद फॉरवर्ड मार्केट्स कमीशन (एफएमसी) ने शाह और उनकी कंपनी एफटीआईएल को कुल हिस्सेदारी घटाकर दो फीसदी करने का निर्देश दिया था।
एफएमसी ने एनएसईएल में 5600 करोड़ रुपये के भुगतान संकट पर शाह को सबसे बड़ा लाभार्थी बताते हुए उन्हें कोई भी एक्सचेंज संचालित करने के लिए अयोग्य करार दिया था। एक अधिकारी ने बताया कि अगर एमसीएक्स 30 अप्रैल तक आदेश के अनुसार शेयरहोल्डिंग में बदलाव नहीं करता है तो एफएमसी उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर सकता है।
एफएमसी के आदेश को बांबे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। एफएमसी ने एफटीआईएल के प्रमुख शाह को कोई भी संचालित करने के लिए अयोग्य माना था और एमसीएक्स में हिस्सेदारी घटाकर दो फीसदी करने का आदेश दिया था। इस समय उसकी हिस्सेदारी 26 फीसदी है। (Business Bhaskar)
मक्का एमएसपी से नीचे बिकने का अनुमान
पोल्ट्री और स्टार्च मिलों की कमजोर मांग से रबी सीजन में भी मक्का के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे ही रहने का अनुमान है। केंद्र सरकार ने विपणन सीजन 2013-14 के लिए मक्का का एमएसपी 1,310 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है जबकि मंडियों में इसके दाम 1,200-1,250 रुपये प्रति क्विंटल रहने की संभावना है।
बी एम इंडस्ट्रीज के डायरेक्टर एम एल अग्रवाल ने बताया कि विश्व बाजार में मक्का के दाम कमजोर होने के कारण निर्यात मांग सुस्त बनी हुई है। साथ ही पोल्ट्री और स्टॉर्च मिलर भी जरूरत के हिसाब से खरीद कर रहे हैं। अप्रैल-मई में रबी मक्का की आवक शुरू हो जायेगी।
ऐसे में उत्पादक मंडियों में मक्का के दाम एमएसपी से नीचे ही रहने की संभावना है। इस समय उत्पादक मंडियों में मक्का के दाम 1,150 से 1,200 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं जबकि केंद्र सरकार मक्का का एमएसपी 1,310 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है।
गोपाल ट्रेडिंग कंपनी के प्रबंधक राजेश अग्रवाल ने बताया कि रबी में मक्का की पैदावार पिछले साल से ज्यादा ही होने का अनुमान है। चुनाव की वजह से गाडिय़ों की शॉर्टेज होने के कारण खपत केंद्रों पर मक्का की कीमतों में आंशिक तेजी तो आ सकती है लेकिन उत्पादक मंडियों में दाम नीचे ही बने रहने की संभावना है। दिल्ली में मक्का की कीमतें 1,400 से 1,440 रुपये प्रति क्विंटल चल रही हैं।
कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार वर्ष 2013-14 में रबी सीजन में मक्का की पैदावार 64 लाख टन होने का अनुमान है जबकि वर्ष 2012-13 में पैदावार 63.6 लाख टन की पैदावार हुई थी। मक्का के निर्यातक पूनमचंद गुप्ता ने बताया कि अमेरिका में मक्का का स्टॉक ज्यादा है। साथ ही ब्राजील और अर्जेंटीना की फसल की आवक शुरू हो चुकी है।
यही कारण है कि विश्व बाजार में मक्का के दाम नीचे बने हुए है। इस समय भारत से निर्यात सौदे सीमित मात्रा में ही हो रहे हैं। अक्टूबर से शुरू हुए चालू सीजन में अभी तक केवल 9-10 लाख टन मक्का के निर्यात सौदे ही हुए है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 18-19 लाख टन के निर्यात हुए थे। फसल वर्ष 2012-13 (अक्टूबर से सितंबर) के दौरान करीब 38 लाख टन मक्का का निर्यात हुआ था। (Business Bhaskar)
प्रतिकूल मौसम से गेहूं की सरकारी खरीद 11%घटने की संभावना
आर एस राणा : नई दिल्ली... | Mar 26, 2014, 03:13AM IST
स्पर्धा संभव : निर्यातक, फ्लोर मिलें व स्टॉकिस्ट खरीदेंगे ज्यादा गेहूं
चालू रबी विपणन सीजन 2014-15 में गेहूं की सरकारी खरीद तय लक्ष्य से 11.2 फीसदी घटकर 270-275 लाख टन ही होने की आशंका है। असमय की बारिश से गेहूं की फसल को नुकसान हुआ है, साथ ही रोलर फ्लोर मिलर्स, निर्यातकों और स्टॉकिस्टों द्वारा गेहूं की ज्यादा खरीद किए जाने की संभावना है।
खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिजनेस भास्कर को बताया कि चालू रबी विपणन सीजन 2014-15 में गेहूं की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद तय लक्ष्य 310 लाख टन से घटकर 270-275 लाख टन ही रहने का अनुमान है। पिछले रबी विपणन सीजन में एमएसपी पर 250.84 लाख टन गेहूं की खरीद हुई थी। विश्व बाजार में गेहूं के दाम बढऩे से निर्यातकों की खरीद भी इस साल बढ़ेगी।
स्टॉकिस्टों के साथ ही रोलर फ्लोर मिलर्स की भी खरीद में इस बार ज्यादा भागीदारी रहेगी। वैसे भी उत्पादक क्षेत्रों में मौसम खराब होने से गेहूं की फसल को नुकसान हुआ है, साथ ही अप्रैल में भी मौसम विभाग ने मौसम प्रतिकूल रहने की ही भविष्यवाणी की है, जिससे गेहूं की नई फसल की क्वालिटी प्रभावित होने की आशंका है।
उन्होंने बताया कि भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने मध्य प्रदेश में गेहूं की सरकारी खरीद शुरू कर दी है तथा अन्य राज्यों पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश से सरकारी खरीद पहली अप्रैल से शुरू हो जायेगी, लेकिन खराब मौसम से नई फसल की आवक में देरी होगी, जिससे सरकारी खरीद में भी देरी होने के आसार हैं।
पंजाब से गेहूं की खरीद का लक्ष्य 110 लाख टन, मध्य प्रदेश से 80 लाख टन, हरियाणा से 65 लाख टन, उत्तर प्रदेश से 30 लाख टन, राजस्थान से 18 लाख टन, गुजरात से 1.50 लाख टन, उत्तराखंड से 1.60 लाख टन, महाराष्ट्र से 0.17 लाख टन, पश्चिमी बंगाल से 0.20 लाख टन और अन्य राज्यों से 3.53 लाख टन का है। गेहूं की खरीद के लिए देशभर में 12,076 खरीद केंद्र खोले जायेंगे।
चालू रबी विपणन सीजन 2014-15 के लिए केंद्र सरकार ने गेहूं के एमएसपी में 50 रुपये की बढ़ोतरी कर भाव 1,400 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार वर्ष 2013-14 में गेहूं की रिकॉर्ड पैदावार 956 लाख टन होने का अनुमान है लेकिन प्रतिकूल मौसम से उत्पादन अनुमान से कम होने की आशंका है।
केंद्रीय पूल में पहली मार्च को 397.22 लाख टन खाद्यान्न का स्टॉक मौजूद है। कुल खाद्यान्न के स्टॉक में 208.39 लाख टन गेहूं और 188.83 लाख टन चावल मौजूद है। (Business Bhaskar....R S Rana)
सीआईएफटी की तकनीक से महिलाएं आत्मनिर्भर
आर एस राणा : नई दिल्ली... | Mar 26, 2014, 01:33AM IS
फिश मेड : केरल की सुनामी पीडि़त महिलाओं को मत्स्य प्रौद्योगिकी संस्थान की तकनीक से हुआ काफी फायदा
सुनामी से पीडि़त महिलाएं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के केंद्रीय मत्स्य प्रौद्योगिकी संस्थान (सीआईएफटी) की तकनीक से न सिर्फ आत्मनिर्भर हो रही हैं, बल्कि अच्छी-खासी आमदनी भी कर रही हैं। सीआईएफटी के वैज्ञानिक राष्ट्रीय कृषि नवोन्मेषी परियोजना (एनएआईपी) के तहत महिलाओं को फिश मेड नाम से मछली उत्पाद तैयार करने की तकनीक सिखा रहे हैं, साथ ही सी-फ्रेश स्टालों के तहत ताजा मछली उत्पादों की बिक्री भी की जा रही है।
सीआईएफटी की प्रधान वैज्ञानिक एवं सूक्ष्म जीव विज्ञान की प्रमुख डॉ.के.वी. ललिता ने बिजनेस भास्कर को बताया कि महिलाओं को मछली उत्पाद तैयार करने की तकनीक सिखाई जा रही है। फिश मेड के नाम से संस्थान में महिलाओं को करीब 28 उत्पाद फिश कोफ्ता बाल्स, फिश कटलेट, बर्गर पेटीज, फिश मंचूरियन, मोमोज तथा फिश समोसा आदि बनाने की तकनीक सिखाई जाती है।
एक बैच में 20 महिलाओं को ट्रेनिंग दी जाती है तथा ट्रेनिंग के बाद संस्थान के आउटलेट पर नौकरी भी दी जाती है। उन्होंने बताया कि सीआईएफटी ने उत्पादों के विपणन के लिए केरल स्टेट कोऑपरेटिव फेडरेशन से भी अनुबंध किया हुआ है तथा फिश उत्पादों की बिक्री के लिए केरल में करीब 30 आउटलेट खोले हैं।
फिश मेड के उत्पादों की बाजार में भारी मांग है तथा आगामी दिनों में आउटलेटों की संख्या को बढ़ाकर 100 करने की योजना है। सीआईएफटी पिछले दो साल यह योजना चला रहा है। सीआईएफटी के प्रधान वैज्ञानिक डॉ नसीर ने बताया कि हमारा उद्देश्य महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना है।
फिश प्रोसेसिंग केंद्र में एनएआईपी के तहत महिलाओं को सी-फ्रेश की तकनीक सिखाई जाती है। सुशीला नाम की सी-फ्रेश फिश विक्रेता ने बताया कि सुनामी से उनको भारी आर्थिक नुकसान हुआ था लेकिन अब सीआईएफटी से ट्रेनिंग लेने के बाद उनकी जिंदगी न सिर्फ पटरी पर लौट आई है बल्कि उन्हें हर महीने पांच हजार रुपये से ज्यादा की आमदनी भी हो रही है।
नई तकनीक से बने प्रोपेलर ज्यादा सक्षम
सीआईएफटी की तकनीक से ब्राइट मेटल कंपनी के मालिक एस राधाकृष्णन की कमाई पिछले दो साल में दोगुनी हो गई है। राष्ट्रीय कृषि नवोन्मेषी परियोजना (एनएआईपी) के सहयोग से मोटर बोट और मछली पकडऩे वाले जहाजों में प्रयोग होने वाले मरीन प्रोपेलर्स के उपयोग से औसतन 10 फीसदी डीजल की बचत हो रही है।
इससे मोटर बोट और मछली पकडऩे वाले जहाज की स्पीड भी 10 से 15 फीसदी तक बढ़ जाती है। उन्होंने बताया कि यह कार्य उनका परिवार सदियों से कर रहा था लेकिन पिछले दो सालों से उन्होंने सीआईएफटी के वैज्ञानिकों की तकनीक को अपनाया है।
नई तकनीक से उनकी कंपनी द्वारा निर्मित 5 हार्सपावर से लेकर 680 हार्सपावर तक के मरीन प्रोपेलर्स की मांग में भारी बढ़ोतरी हुई है। ब्राइट मेटल सालाना 400 मरीन प्रोपेलर की बिक्री देशभर में कर रही है। साइज के हिसाब से एक प्रोपेलर की कीमत 10 हजार रुपये से लेकर 1.50 लाख रुपये तक है। (Business Bhaskar.....R S Rana)
Gold recovers as Ukraine weighed against rates
London, Mar 26. Gold today recovered from
five-week low as investors weighed the crisis over Ukraine
against the outlook for higher US interest rates.
Gold added 0.2 per cent to USD 1,314.10 an ounce. It
reached USD 1,305.02 yesterday, the lowest since February
14. Silver also rose 0.3 per cent to USD 20.05 an ounce,
after reaching a six-week low of USD 19.88 yesterday.
Bullion dropped 3.5 per cent last week as US Federal
Reserve Chair Janet Yellen said the central bank's debt-buying
program may end this year.
Fed Bank of Atlanta President Dennis Lockhart said he
expects interest rate increases in the second half of next
year.
US President Barack Obama warned Russian President
Vladimir Putin yesterday that Russia would face more sanctions
if it moved further into eastern Ukraine after its annexation
of Crimea.
Gold extends losses on sluggish demand, appreciating rupee
New Delhi, Mar 26. Gold extended losses for the third
day by falling Rs 270 to Rs 29,580 per ten grams in the
national capital today on reduced offtake and firming rupee
against the dollar.
Silver also maintained a downward trend for the eight
consecutive day by losing Rs 250 to Rs 43,950 per kg on
sustained selling.
Traders said appreciating rupee against the American
currency made imports of dollar denominated precious metal
cheaper, which mainly kept pressure on bullion prices.
They said sluggish demand on end of the marriage and
festival season and investors shifting their funds from
bullion to surging equity markets further influenced the
sentiment.
On the domestic front, gold of 99.9 and 99.5 per cent
purity plunged by Rs 270 each to Rs 29,580 and Rs 29,380 per
ten grams, respectively. It had lost Rs 500 in last two days.
Sovereign followed suit and declined by Rs 100 to Rs
25,000 per piece of eight grams.
Silver ready dropped by Rs 250 to Rs 43,950 per kg and
weekly-based delivery by Rs 220 to Rs 43,570 per kg. The white
metal had lost Rs 3,000 in the previous seven sessions.
Silver coins also lost Rs 1,000 to Rs 82,000 for buying
and Rs 83,000 for selling of 100 pieces.
24 मार्च 2014
अल नीन्यो के डर को मौसम विभाग ने बताया साजिश
माधवी सैली, नई दिल्ली
ऑस्ट्रेलिया से लेकर अमेरिका तक के मौसम वैज्ञानिक खतरनाक 'मॉन्स्टर अल नीन्यो' पैटर्न उभरने के बेहद साफ संकेत मिलने का दावा कर रहे हैं। दावा है कि इससे इस साल साउथ एशिया में सूखा पड़ सकता है, लेकिन भारत के मौसम विभाग ने ऐसे अनुमानों की आलोचना की है और आरोप लगाया है कि ऐसी भविष्यवाणियों के जरिए देश के कमोडिटीज और स्टॉक मार्केट्स में उथल-पुथल मचाने की साजिश रची जा रही है।
स्पेनिश भाषा में अल नीन्यो का मतलब होता है लिटल बॉय। हवा और गर्म जलधारा की दिशा में बदलाव के पैटर्न को अल नीन्यो कहा जाता है, जिससे प्रशांत महासागर के कुछ हिस्सों में सतह का तापमान बढ़ जाता है। अल नीन्यो के चलते दुनिया के कई हिस्सों में जहां ज्यादा बारिश होती है, वहीं कई अन्य इलाकों में सूखे के हालात बन जाते हैं। 2002 और 2004 में जब अल नीन्यो पैटर्न मजबूत हुआ था तो भारत में सूखा पड़ा था। 2009 में जब अल नीन्यो उभरा तो भारत को चार दशकों के सबसे कमजोर मॉनसून का सामना करना पड़ा। इसके चलते खाने-पीने की चीजों के दाम उछल गए थे और आरबीआई को महंगाई पर काबू पाने के लिए मौद्रिक नीति में सख्ती बरतनी पड़ी थी।
अमेरिकी वैज्ञानिकों का कहना है कि इस साल मौसम से जुड़े डेटा साफ संकेत दे रहे हैं कि 1997-98 जैसा खतरनाक अल नीन्यो फिर सामने आ सकता है और यह पैटर्न एक साल या इससे ज्यादा समय तक बना रह सकता है। उनका कहना है कि इसके चलते साल 2015 अब तक का सबसे गर्म साल हो सकता है। हालांकि भारत का मौसम विभाग (IMD) इस बात पर यकीन नहीं कर रहा है कि 'लिटल बॉय' भारत में मानसून का हाल खराब कर सकता है।
आईएमडी के डायरेक्टर जनरल लक्ष्मण सिंह राठौड़ ने कहा कि भारत के कमोडिटीज और स्टॉक मार्केट का पस्त होना तो अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के हित में है। उन्होंने कहा कि ऐसे अनुमानों के डर से लोग जमाखोरी करने लगेंगे और हो सकता है कि कमोडिटीज की कृत्रिम तंगी की हालत बन जाए। राठौड़ ने कहा कि उन साइंटिस्ट्स की सलाह पर ध्यान मत दीजिए। राठौड़ की बात इस लिहाज से समझी जा सकती है कि अल नीन्यो की वजह से हमेशा सूखे के हालात नहीं बने हैं। मॉनसून के बारे में आईएमडी के अनुमान अगले महीने आ सकते हैं। ये अनुमान अहम है क्योंकि जीडीपी में एग्रीकल्चर का हिस्सा भले ही कम हो गया हो, लेकिन देश की बड़ी आबादी अब भी खेती-बाड़ी पर ही निर्भर है।
राठौड़ ने कहा कि मानसून भारत के लिए संवेदनशील मामला है। उन्होंने कहा कि पिछले एक महीने में कई फोरकास्ट आए हैं और कुछ एजेंसियां अपने पहले के अनुमानों से पलट भी गई हैं। हालांकि खतरे का अंदेशा जताने वाले बढ़ रहे हैं। पिछले हफ्ते चीनी वैज्ञानिकों ने भी अल नीन्यो पैटर्न की भविष्यवाणी की थी। जापान के मौसम विभाग, अमेरिकन क्लाइमेट सेंटर और ऑस्ट्रेलिया के ब्यूरो ऑफ मिटीयरोलॉजी ने भी इसी तरह की आशंका जताई है। (ET Hindi)
अल नीन्यो’ का डर मात्र एक साजिशः मौसम विभाग
नई दिल्ली । ऑस्ट्रेलिया से लेकर अमेरिका तक के मौसम वैज्ञानिकों ने खतरनाक ’मॉन्स्टर अल नीन्यो’ पैटर्न उभरने के संकेत मिलने की बात कही हंै। वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि इस वर्ष साउथ एशिया में सूखा पड़ सकता है। हांलाकि भारत के मौसम विभाग ने ऐसे अनुमानों को सिरे से खारिज कर इसकी आलोचना की है,और कहा है कि ऐसी भविष्यवाणियों के जरिए देश के कमोडिटीज और स्टॉक मार्वेâट्स में उथल-पुथल मचाने की साजिश की जा रही है। वहीं स्पेनिश भाषा में अल नीन्यो का मतलब होता है ’लिटल बॉय’ हवा और गर्म जलधारा की दिशा में बदलाव के तरीके को अल नीन्यो कहा जाता है, जिससे प्रशांत महासागर के कुछ क्षेत्रों की सतह का तापमान बढ़ जाता है। अल नीन्यो के चलते दुनिया के कई हिस्सों में जहां ज्यादा बारिश होती है, वहीं कई अन्य क्षेत्रों में सूखे के हालात बन जाते हैं। २००२ और २००४ में जब अल नीन्यो पैटर्न मजबूत हुआ था तो भारत में सूखा पड़ा था। २००९ में जब अल नीन्यो उभरा तो भारत को चार दशकों के सबसे कमजोर मॉनसून का सामना करना पड़ा। इसके चलते खाने-पीने की चीजों के दाम उछल गए थे और आरबीआई को महंगाई पर काबू पाने के लिए मौद्रिक नीति में सख्ती बरतनी पड़ी थी। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने बताया कि इस साल मौसम से जुड़े आकड़े साफ बता रहे हैं कि १९९७-९८ जैसा खतरनाक अल नीन्यो फिर सामने आ सकता है और यह पैटर्न एक साल या इससे ज्यादा समय तक बना रह सकता है। उनका कहना है कि इसके चलते साल २०१५ अब तक का सबसे गर्म साल हो सकता है। हालांकि भारत का मौसम विभाग इस बात पर यकीन नहीं कर रहा है कि ‘लिटल बॉय’ भारत में मानसून का हाल खराब कर सकता है। आईएमडी के डायरेक्टर ने बताया कि भारत के कमोडिटीज और स्टॉक मार्वेâट में नुकसान होता है तो यह अमेरिाक और ऑस्ट्रेलिया के लिए फायदें का होगा।
Wheat harvesting to get delayed due to rains in Pb, Haryana
Chandigarh, Mar 24. Wheat harvesting in Punjab and
Haryana is likely to get delayed by at least 10 days due to
untimely rains lashing several parts of the northern region.
"Wheat harvesting will get delayed by at least 10 days
because of rains," Punjab Agriculture, Director, M S Sandhu
said here today.
Wheat harvesting normally starts by March end or first
week of April month.
Because of delay in harvesting, wheat arrivals in
grain markets of Punjab are likely to pick up only after the
second week of April.
"The crop arrivals will also be delayed due to delay
in harvesting because of inclement weather conditions
prevailing at this stage," said an official of Food
Corporation of India (FCI).
Last season, wheat arrivals picked up from April 10.
Punjab is expecting wheat procurement of 115 lakh
tonnes for Rabi marketing season 2014-15 as against 110 lakh
tonne procured in 2013-14 season.
Rains today lashed several parts of Punjab and Haryana
including Faridkot, Ferozepur, Mohali, Bathinda, Amritsar,
Rajpura and Hissar.
The meteorological department has predicted rains
accompanied by hailstorms in the next 24 hours.
Agriculture experts fear possible adverse impact on crop
yield if showers continue for some more days.
"At this stage, wheat requires sunshine for ripening.
But rains at this stage can hurt prospects of bumper crop," a
farm expert said.
Notably, rains, which lashed earlier this month, had
flattened crops at several places including Ferozepur,
Gurdaspur, Pathankot, Nawanshahar, Mohali, Tarn Taran in
Punjab and a few districts including Palwal and Yamunanagar in
Haryana.
Amritsar district had faced maximum crop loss in Punjab
because of untimely rains and hailstorm, with state's overall
crop yield getting affected by 5 to 7 per cent.
Punjab and Haryana, which are major foodgrain growing
states, have 38 lakh hectares and 25 lakh hectares of area,
respectively, under wheat in rabi season.
Gold plunges on stockists selling, weak global cues
New Delhi, Mar 24. Gold plunged by Rs 150 to Rs
30,200 per ten grams in the national capital today on selling
by stockists against fall in demand amid a weak global trend.
Silver continued to slide for the sixth straight day by
losing Rs 400 to Rs 44,550 per kg on poor offtake by
industrial units and coin makers. The metal had lost Rs 2,250
in last five sessions.
Traders said sentiments in gold turned bearish after it
plunged in overseas markets on speculation that US interest
rates will increase next year, curbing demand for the metal as
a store of value.
Gold in Singapore, which normally sets price trend on the
domestic front, fell by 0.7 per cent to USD 1,325.05 an ounce
and silver by 1.1 per cent to USD 20.10 an ounce.
Shifting of funds from weakening bullion to rising
equities and strengthening rupee against the US dollar also
influenced the sentiment, they said.
On the domestic front, gold of 99.9 and 99.5 per cent
purity plunged by Rs 150 each to Rs 30,200 and Rs 30,000 per
ten grams, respectively. It had gained Rs 20 in last trade.
Sovereign followed suit and declined by Rs 50 to Rs 25,200
per piece of eight grams.
Silver coins, however, held steady at Rs 84,000 for buying
and Rs 85,000 for selling of 100 pieces.
22 मार्च 2014
चीनी कंपनियां लौटेंगी मुनाफे में
खुले बाजार में ऊंची कीमतें मिलने और सरकार द्वारा घोषित निर्यात सब्सिडी के चलते देश की चीनी मिलों की हालत में जल्द ही सुधार आ सकता है। पिछले दो महीने के दौरान खुले बाजारों में चीनी के दाम 12-14 फीसदी बढ़े हैं, जबकि वायदा में इसका कारोबार 14.2 फीसदी ज्यादा कीमत पर हो रहा है। उद्योग के फंडामेंटल में सुधार आया है, जिससे अगले वर्ष से चीनी कंपनियों के मुनाफे में आने की संभावना है। ज्यादातर मिलों को जून तिमाही से परिचालन लाभ होने की उम्मीद है। कारोबार में राजस्व, आमदनी, परिसंपत्तियों, देनदारियों और वृद्धि आदि से संबधित सूचनाओं को फंडामेंटल माना जाता है।
उद्योग के अधिकारियों का कहना है कि फरवरी की शुरुआत तक मिलों को प्रति किलोग्राम चीनी के उत्पादन पर करीब 4 रुपये का नुकसान हो रहा था। अब मिलों को ज्यादा कीमत मिलने लगी है, लेकिन अब भी उन्हें 1 से 1.5 रुपये प्रति किलोग्राम का घाटा हो रहा है। अगले साल से चीनी निर्यात में इजाफे और गन्ने के कम उत्पादन के अनुमान से ज्यादा चीनी उपलब्धता की समस्या दूर होगी। इससे मिलें मुनाफे की राह पर आ जाएंगी। कच्ची चीनी के निर्यात के लिए सरकार द्वारा सब्सिडी की घोषणा किए जाने के बाद कारोबारी गतिविधियों में तेजी आई है। वायदा में भी एनसीडीईएक्स पर लंबे अरसे के बाद चीनी अनुबंध सक्रिय हुए हैं। एनसीडीईएक्स पर चीनी के ओपन इंटरेस्ट और मात्रा में बढ़ोतरी हो रही है।
भारतीय चीनी मिल संघ के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने कहा, 'कच्ची चीनी के उत्पादन और निर्यात को प्रोत्साहित करने की खातिर दो चीनी सीजनों के लिए सरकार द्वारा दी गई सब्सिडी से चीनी मिलों को अपना घाटा कम करने में मदद मिली है। आने वाले महीनों में उद्योग के फंडामेंटल बदलने से किसानों के बकाये को कम करने और मुनाफे में लौटने में मदद मिलेगी।'
महज एक महीने पहले मिलों को चीनी उत्पादन में करीब 4 रुपये प्रति किलोग्राम का घाटा हो रहा था, लेकिन सब्सिडी और घरेलू कीमतों में वृद्धि से उन्हें कीमत प्राप्ति में हो रहे नुकसान को घटाकर अब 1.5 से 2 रुपये प्रति किलोग्राम करने में मदद मिली है। हालांकि खुले बाजार में कीमतें अब भी कई वर्षों के निचले स्तर पर हैं और ये अगस्त 2012 की ऊंची कीमतों से अब भी करीब 20 फीसदी कम हैं।
वर्मा ने कहा कि चालू चीनी सीजन में फरवरी अंत तक 12 लाख टन चीनी का निर्यात किया गया है। सब्सिडी की घोषणा होने के बाद सितंबर तक 7-8 लाख टन का और निर्यात हो सकता है। इस्मा ने चीनी सीजन 2013-14 (अक्टूबर से सितंबर) के लिए चीनी उत्पादन का अनुमान 250 लाख टन से घटाकर 238 लाख टन कर दिया है। निर्यात और उत्पादन लक्ष्य में कटौती से उद्योग के फंडामेंटल स्थिर होंगे।
अब गर्मी के सीजन में कोला और आईसक्रीम बनाने वाली कंपनियों की मांग बढ़ेगी, जिससे कीमतों की स्थिति बेहतर होगी। सुधरते फंडामेंटल का चीनी कंपनियों की बैंलेस शीट पर सकारात्मक असर पड़ा है। डालमिया भारत शुगर ऐंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड के सीईओ बीबी मेहता ने कहा, 'सब्सिडी और इसके बाद एक्स-फैक्टरी कीमत में इजाफे से उद्योग की वित्तीय स्थिति सुधर रही है।' (BS Hindi)
किसान से मक्का खरीद में उद्योग को फायदा
अगर भारत में मक्का उद्योग कारोबारियों और ब्रोकरों के बजाय किसानों से सीधे खरीद करता है तो उसे 50 रुपये प्रति क्विंटल का फायदा होता है। यह बात वैश्विक सलाहकार कंपनी केपीएमजी के एक अध्ययन में कही गई है। आज भारतीय मक्का सम्मेलन में जारी अध्ययन में कहा गया है कि कृषि जोत का आकर छोटा होने के कारण भारत का मक्का उद्योग किसानों से सीधे इस जिंस की खरीद नहीं कर पाता है। हालांकि वर्ष 2004-05 से 2013-14 के बीच देश में मक्के का उत्पादन 5.5 फीसदी बढ़ा है।
त्पादन में बढ़ोतरी की मुख्य वजह हाइब्रिड बीजों का इस्तेमाल बढऩा है। अध्ययनों में तो यहां तक कहा जा रहा है कि 2050 तक देश में 90 फीसदी रकबे में हाइब्रिड बीज उगाए जाएंगे। वर्ष 2004-05 से 2013-14 के दौरान इस जिंस की खपत करीब 4 फीसदी और रकबा 2.5 फीसदी बढ़ा है। देश से हर साल करीब 30-50 लाख टन मक्के का निर्यात होता है। इंडियन मेज डेवलपमेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष सैन दास ने कहा, 'भारत वर्ष 2014-15 में करीब 40 लाख टन मक्के का निर्यात कर सकता है।'
जिंस बाजार अस्थिर
भारत में अलनीनो से मॉनसून पर असर पडऩे की खबरों के बीच जिंस बाजारों में एक लंबे अरसे के बाद कृषि जिंसों में उतार-चढ़ाव दर्ज किया जा रहा है। अल नीनो का मतलब मध्य एवं पूर्वी प्रशांत महासागर में पानी गर्म होने और पश्चिम में ठंडा होने से है। यह स्थिति हर 4 से 12 वर्षों में पैदा होती है। इससे पहले इसका असर 2009 में मॉनसून पर पड़ा था, जिससे उस साल करीब चार दशकों का सबसे भयंकर सूखा रहा था। एनसीडीईएक्स के सीईओ समीर शाह ने कहा, 'हमने यह बात दर्ज की है कि ब्राजील की मौसम स्थितियों और संभवतया अल-नीनो की वजह से जिंस बाजारों में उतार-चढ़ाव बना हुआ है।' (BS Hindi)
दो-तिहाई से कम गेहूं की बिक्री हुई ओएमएसएस के तहत
फीका रिस्पांस : 95 लाख टन में से 58 लाख टन गेहूं का उठान
केंद्रीय पूल से खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत केवल 58 लाख टन गेहूं की ही बिक्री हुई है। जबकि सरकार ने 95 लाख टन गेहूं का आवंटन किया था। इस तरह सिर्फ 61 फीसदी गेहूं की बिक्री हो पाई है। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के गोदामों से बल्क कंज्यूमर के लिए गेहूं की बिक्री बंद कर दी गई है लेकिन स्मॉल ट्रेडर्स को बिक्री जारी है।
खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिजनेस भास्कर को बताया कि ओएमएसएस के तहत बल्क कंज्यूमर को गेहूं की बिक्री बंद कर दी गई है लेकिन स्मॉल ट्रेडर्स को 9 टन (एक ट्रक) के आधार पर बिक्री की जा रही है। उन्होंने बताया कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर गेहूं की खरीद मध्य प्रदेश से 25 मार्च को और अन्य राज्यों से पहली अप्रैल से खरीद शुरू की जायेगी। इसीलिए ओएमएसएस के तहत गेहूं की बिक्री बंद कर दी गई।
उन्होंने बताया कि ओएमएसएस के तहत कुल 58 लाख टन गेहूं बिका है। अभी तक हुई कुल बिक्री में सबसे ज्यादा गेहूं हरियाणा से 11.39 लाख टन, पंजाब से 7.64 लाख टन, दिल्ली से 7.61 लाख टन, राजस्थान से 3.32 लाख टन, तमिलनाडु से 3.93 लाख टन, मध्य प्रदेश से 6.24 लाख टन, महाराष्ट्र से 3.57 लाख टन, पश्चिमी बंगाल से 2.60 लाख टन, जम्मू-कश्मीर से 1.70 लाख टन, आंध्र प्रदेश से 1.57 लाख टन, उड़ीसा से 1.42 लाख टन और गुजरात से 1.72 लाख टन बिका है।
आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने 21 जून को ओएमएसएस के तहत 95 लाख टन गेहूं बेचने का फैसला किया था। इसके तहत 85 लाख टन गेहूं की बिक्री बल्क कंज्यूमर को और 10 लाख टन की बिक्री स्मॉल ट्रेडर्स को करनी थी।
केंद्रीय पूल में पहली मार्च को 397.22 लाख टन खाद्यान्न का स्टॉक मौजूद है। कुल खाद्यान्न के स्टॉक में 208.39 लाख टन गेहूं और 188.83 लाख टन चावल मौजूद है। वर्ष 2013-14 में गेहूं की रिकॉर्ड पैदावार 956 लाख टन होने का अनुमान है। (Business Bhaskar)
चीनी में निवेश कर काटें मुनाफा
आर एस राणा : नई दिल्ली... | Mar 22, 2014, 00:04AM IST
7.6% की तेजी चीनी की कीमतों में आई चालू महीने के दौरान वायदा बाजार में
400-450 रुपये प्रति क्विंटल का इजाफा हुआ हाजिर बाजार में चीनी की कीमतों में
उत्पादन अनुमान में कटौती के साथ ही केंद्र सरकार द्वारा रॉ-शुगर के निर्यात पर इनसेंटिव देने से चीनी की कीमतों में तेजी बनी हुई है। वायदा बाजार में चालू महीने में ही इसकी कीमतों में 7.6 फीसदी की तेजी आ चुकी है।
हाजिर बाजार में महीने भर में चीनी की कीमतों में 400 से 450 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आकर भाव 3,400 रुपये प्रति क्विंटल हो गए हैं। गर्मियों का सीजन शुरू हो रहा है जिससे आगामी दिनों में बड़े खपत उद्योगों की चीनी की मांग बढ़ेगी। ऐसे में निवेशक मौजूदा कीमतों पर चीनी में निवेश करके मुनाफा कमा सकते हैं।
एनसीडीईएक्स पर अप्रैल महीने के वायदा अनुबंध में चालू महीने में चीनी की कीमतों में 7.6 फीसदी की तेजी आकर शुक्रवार को भाव 3,055 रुपये प्रति क्विंटल पर कारोबार करते देखे जबकि पहली मार्च को अप्रैल महीने के वायदा अनुबंध में इसका भाव 2,839 रुपये प्रति क्विंटल था। एग्री विश्लेषक अभय लाखवान ने बताया कि गर्मियों का सीजन शुरू हो रहा है जिससे चीनी में बड़े खपत उद्योगों की मांग बढ़ जायेगी। वैसे भी उद्योग ने चीनी उत्पादन अनुमान में12 लाख टन की कटौती कर दी है। ऐसे में निवेशक चीनी में मौजूदा कीमतों पर निवेश करके मुनाफा कमा सकते हैं।
एसएनबी इंटरप्राइजेज के प्रबंधक सुधीर भालोठिया ने बताया कि चालू पेराई सीजन में उद्योग ने पहले 250 लाख टन चीनी के उत्पादन का अनुमान लगाया था लेकिन अब अनुमान को घटाकर 238 लाख टन कर दिया है।
केंद्र सरकार चीनी मिलों को रॉ-शुगर के निर्यात पर 333 रुपये प्रति क्विंटल की सब्सिडी दे रही है जिससे घरेलू बाजार में चीनी कीमतों में तेजी आई है। आगामी पेराई सीजन में चीनी के उत्पादन अनुमान में और भी 10 फीसदी की कमी आने की आशंका है, साथ ही गर्मियों का सीजन शुरू होने आगामी दिनों में चीनी में बड़े उपभोक्ताओं की मांग बढ़ेगी।
ऐसे में आगामी दिनों में चीनी की मौजूदा कीमतों में ओर भी 100 से 150 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आने का अनुमान है। शुक्रवार को दिल्ली में चीनी की थोक कीमतें बढ़कर 3,400 रुपये प्रति क्विंटल हो गई जबकि फरवरी महीने में इसके भाव 3,000 से 3,100 रुपये क्विंटल थे।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के अनुसार चालू पेराई सीजन 2013-14 (अक्टूबर से सितंबर) के दौरान 15 मार्च तक देश में 193.8 लाख टन चीनी का उत्पादन ही हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 211 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। कुल उत्पादन अनुमान पहले के 250 लाख टन से घटकर 238 लाख टन होने का अनुमान है लेकिन अक्टूबर में पेराई सीजन के शुरू में करीब 80 लाख टन चीनी का बकाया स्टॉक भी था।
देश में चीनी की सालाना खपत करीब 225 से 230 लाख टन की होती है। कुल उपलब्धता मांग के मुकाबले ज्यादा ही है। चीनी के थोक कारोबारी पी आर गर्ग ने बताया कि महीने भर में यूपी में चीनी की एक्स-फैक्ट्री कीमतें 2,800 रुपये से बढ़कर 3,200 से 3,250 रुपये प्रति क्विंटल गई है।
उन्होंने बताया कि सरकार द्वारा रॉ-शुगर के निर्यात पर मिलों को इनसेंटिव देने की अधिसूचना के बाद से अभी तक करीब 4 लाख टन रॉ-शुगर के निर्यात सौदे हो चुके हैं। रॉ-शुगर के निर्यात का फायदा महाराष्ट्र और कर्नाटक की मिलों को ज्यादा मिल रहा है, यूपी की मिलों को इसका अप्रत्यक्ष फायदा हो रहा है। (Business Bhaskar)
Gold snaps four-day falling trend, recovers on global cues
New Delhi, Mar 22. Snapping 4-day falling streak,
gold prices rose by Rs 20 at Rs 30,350 per 10 gram here today
on low level buying by stockists and retailers amid firm trend
in global markets.
However, silver extended losses for the 5th day and fell
further by Rs 250 to Rs 44,950 per kg.
Traders said the global prices were driven up amid
tensions between Russia and the West over Ukraine, increasing
demand for gold as a safe investment.
Gold in New York, which normally set price trend on the
domestic front, rose by 0.4 per cent to 1,336 dollar an ounce.
On the domestic front, gold of 99.9 and 99.5 per cent
purity recovered by Rs 20 each to reach Rs 30,350 and Rs
30,150 per ten gram respectively. It had lost Rs 500 in last
four days. Sovereign also rose by Rs 50 at Rs 25,250 per piece
of eight gram.
On the other hand, silver ready fell by Rs 250 to Rs
44,950 per kg and weekly-based delivery by Rs 270 to Rs 44,650
per kg. The white metal had lost Rs 2,000 in the previous four
sessions.
Meanwhile, silver coins held steady at Rs 84,000 for
buying and Rs 85,000 for selling of 100 pieces.
19 मार्च 2014
एफएमसी ने बदलीं जुर्माने की शर्तें
वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) ने फैसला किया है कि अगर राष्ट्रीय जिंस एक्सचेंजों के सदस्य ग्राहकों से आवश्यक मार्जिन मनी नहीं लेंगे तो उन पर 5 फीसदी तक जुर्माना लगाया जाएगा। मार्जिन मनी में कमी की गलत सूचना देने पर 100 फीसदी जुर्माना लगाया जाएगा। नैशनल स्पॉट एक्सचेंज के भुगतान घोटाले के संदर्भ में जिंस वायदा बाजार नियामक ने कहा, 'सदस्यों के खातों की जांच और अन्य मामलों की छानबीन के दौरान हमें कई ऐसे सबूत मिले, जिसमें सदस्यों ने अपने ग्राहकों से या तो मार्जिन मनी लिया ही नहीं या कम लिया। इसलिए जिंस एक्सचेंजों के सदस्यों पर ग्राहकों से मार्जिन न वसूलने या कम वसलूने पर 2 कारोबार दिनों बाद जुर्माना लगाया जाएगा।' इस पत्र के संदर्भ का मतलब यह है कि नियामक ने सदस्यों को यह स्वीकृति दी है कि वह ट्रेडिंग ऑर्डर के दो दिनों के भीतर ग्राहक से मार्जिन मनी वसूल कर लें।
ये दिशानिर्देश 1 अप्रैल से लागू हो जाएंगे। एफएमसी ने यह भी प्रावधान किया है कि अगर किसी ग्राहक का मार्जिन लगातार तीन दिनों तक कम रहा तो इस राशि पर हर दिन एक फीसदी जुर्माना लगेगा। मार्जिन वसूली न करने के मामले में जुर्माना कारोबार के पहले दिन से लागू होगा। नियामक ने एक्सचेंजों को निर्देश दिया है कि वे ऐसी व्यवस्था बनाएं, जिसमें सदस्य ग्राहकों से प्राप्त होने वाले मार्जिन मनी की रिपोर्ट कारोबारी दिवस के अंत में और मार्जिन मनी में कमी की रिपोर्ट कारोबार के पांच दिनों के अंदर (टी पल्स 5) एक्सचेंज को दे सकें।
एफएमसी ने यह बात साफ कर दी है कि मार्जिन मनी कम प्राप्त होने की रिपोर्ट न देने को यही माना जाएगा कि मार्जिन का संग्रहण ही नहीं हुआ और इसके मुताबिक ही जुर्माना लगेगा। एक महीने में तीन या इससे ज्यादा बार डिफॉल्ट करने वालों पर जुर्माना मार्जिन मनी में कमी 5 फीसदी लगाया जाएगा। जुर्माने की वसूली एक्सचेंजों द्वारा कारोबारी माह के अंतिम कार्यदिवस के 5 से ज्यादा दिनों के बाद नहीं की जाएगी। जुर्माने की पूरी राशि निवेशक सुरक्षा फंड में जमा करानी होगी। एक्सचेंजों को जुर्माने के संग्रहण के बारे में एफएमसी को रिपोर्ट कारोबारी माह के अगले माह की 10 तारीख तक देनी होगी। (BS Hindi)
Sell black and green gram upon harvest: TNAU to farmers
Coimbatore, Mar 19. Tamil Nadu Agricultural
University has advised farmers cultivating black gram and
green gram to sell their crop on harvest without going in for
storage, saying there is virtually no possibility of price
increase till end of May.
An analysis by TNAU's Domestic and Export Market
Intelligence Cell (DEMIC) on prices prevailing in Villupuram
Regulated market in the State suggested that black gram and
green gram would rule at Rs 52-53 and Rs 62-64 per kg
respectively in April.
There are no chances for price increase upto end of May
and so farmers should sell the crop without going for storage,
it said, adding the wholesale price attained its maximum of Rs
55 for black gram and Rs 66 for green gram per kg in February
last.
The cell attributed the current rise in the price to
lower production.
Quoting the union agriculture ministry, the cell said
pulses production in the country stood at 18.45 million tonnes
in 2012-13 and is expected to touch 19.7 million tonnes in
2013-14.
India should stop exporting sugar: HSBC
New Delhi, Mar 19. India should stop exporting sugar
as in the long term production is likely to match domestic
demand, and its output cost is already higher compared to
other countries, a HSBC survey has said.
Titled 'Global Agricultural Commodities', the survey has
said that Brazil is the lowest cost producer of sugar at USD
17 per pound and the cost in India is almost 40 per cent
higher than that. As a result, Brazilian exports of sugar have
soared in the last two decades.
"In long term, India should stop exporting. In our long
term projections, we believe India's internal sugar
consumption will be equal to its production capacity." the
survey said.
Historically, sugar production in India had been the
determining factor for global sugar prices which is not the
case now, it said.
The survey added: "When prices go up, farmers would plant
sugarcane, and India would switch from a net importer to a net
exporter. A collapse in sugar prices, caused by the switch to
exports, would pressure the margins of millers and eventually
to delay payments to farmers. The farmers in turn switch to
other crops forcing India to switch back to being importer of
sugar."
It pointed out that there will be a further fall in the
sugar production in the country, as several mills have been
operating with very low to negative margins, and the levels of
arrears to farmers is reaching historic highs.
Gold, silver extend losses on weak global cues
New Delhi, Mar 19. Prices of gold and silver fell
for the second day today at the bullion market here due to
sustained selling by stockists amid weak global trends.
While gold fell further by Rs 45 to Rs 30,680 per ten
gram, silver declined by Rs 210 to Rs 46,240 per kg on
sluggish demand.
Gold in global markets fell toward a one-week low as
investors awaited the outcome of the US Federal Reserve’s
meeting and assessed the situation in Ukraine, which impacted
the prices at domestic markets, traders said.
Gold in Singapore fell by 0.3 per cent to 1,351.16 dollar
an ounce and silver by 0.4 per cent to 20.74 dollar an ounce.
On the domestic front, gold of 99.9 and 99.5 per cent
purity shed another Rs 45 each to Rs 30,680 and Rs 30,480 per
ten gram respectively. It had lost Rs 105 yesterday.
However, sovereign held steady at Rs 25,300 per peice of
eight gram.
Silver ready fell further by Rs 210 to Rs 46,240 per kg
and weekly-based delivery by Rs 410 to Rs 45,840 per kg. The
white metal had lost Rs 750 in the previous session.
Silver coins continued be asked around previous level of
Rs 86,000 for buying and Rs 87,000 for selling of 100 pieces.
18 मार्च 2014
एमसीएक्स-एसएक्स जुटाएगा धन
एमसीएक्स स्टॉक एक्सचेंज (एमसीएक्स-एसएक्स) ने घोषणा की है कि वह नए निवेशकों से धन जुटाकर अपनी कुछ पूंजी जरूरत पूरी करने पर विचार कर सकता है। इसका फैसला इस महीने के अंत में राइट्स इश्यू समाप्त होने के बाद लिया जाएगा। सूत्रों के मुताबिक कंपनी 500 करोड़ रुपये की ताजा पूंजी जुटाने के लक्ष्य में से 300 करोड़ रुपये वर्तमान निवेशकों से राइट्स इश्यू के जरिये और शेष 200 करोड़ रुपये नए निवेशकों से जुटाने की योजना बना रही है।
एक्सचेंज द्वारा जारी किए गए एक बयान के मुताबिक, 'राइट्स इश्यू पटरी पर है और बहुत से शेयरधारकों ने इसमें हिस्सा लेने के लिए हामी भरी है।' एक्सचेंज के मुख्य शेयरधारकों में आईएफसीआई (13.2 फीसदी), यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (11.47 फीसदी) और आईएलऐंडएफएस फाइनैंशियल सर्विसेज (9.18 फीसदी) शामिल हैं। अन्य शेयरधारकों में एचडीएफसी बैंक, ऐक्सिस बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा शामिल हैं।
बयान में कहा गया है, 'राइट्स इश्यू का नतीजा चालू महीने के अंत तक इसकी समाप्ति के बाद सार्वजनिक कर दिया जाएगा। हमें नए निवेशकों से अभिरुचि पत्र (एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट) मिले हैं और अगर राइट्स इश्यू पूरी तरह सब्सक्राइब हो जाता है तो एक्सचेंज राइट्स इश्यू की समाप्ति के बाद तरजीही आवंटन कर सकता है।' फाइनैंशियल टेक्नोलॉजिस इंडिया लिमिटेड (एफटीआईएल) और मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड (एमसीएक्स) की एमसीएक्स-एसएक्स में 5 फीसदी हिस्सेदारी और वारंट हैं, जिनको अगर संयुक्त रूप से मिलाया जाए तो यह एक्सचेंज में 70 फीसदी हिस्सेदारी के बराबर है। उन्हें प्रवर्तक से सार्वजनिक शेयरधारकों में फिर से वर्गीकृत किया गया है और कहा जा रहा है कि वे एमसीएक्स-एसएक्स में हिस्सेदारी बेचेंगे।
शेयरधारकों ने इस आधार पर शुरुआती शेयर कीमत में कटौती का सुझाव दिया था कि एक्सचेंज को मुनाफा नहीं हो रहा है और इसके करेंसी सेगमेंट में कारोबार की मात्रा घट रही है। हालांकि कहा जा रहा है कि एक्सचेंज को इस बात की पूरी उम्मीद है कि अगर पिछले साल मुद्रा कारोबार पर लगाए गए प्रतिबंध हटाए जाते हैं तो कारोबारी मात्रा में इजाफा होगा। एक्सचेंज ने हाल में ब्याज दर वायदा कारोबार शुरू किया है।
पिछले वित्त वर्ष के पहले 9 महीनों में एक्सचेंज को 31.5 करोड़ रुपये का लाभ हुआ था, जबकि चालू वर्ष में 140.5 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है। बोर्ड अपनी बैलेंस शीट को बढ़ाने के लिए लागत में कटौती की योजना बना रहा है। एक्सचेंज द्वारा शुक्रवार को जारी एक बयान में कहा गया है, 'पिछले कुछ महीनों के दौरान बोर्ड लागत को तर्कसंगत बनाने में काफी हद तक सफल रहा है। हमें पूरा भरोसा है कि करेंसी डेरिवेटिव सेगमेंट के लिए नीतिगत सुधारों से कारोबारी मात्रा में इजाफा होगा, जिसेस बैलेंस शीट में भी सुधार आएगा।' (BS Hindi)
एक्सचेंज की अब तक की दिक्कतों की कहानी
जब पहली बार एमसीएक्स स्टॉक एक्सचेंज (एमसीएक्स-एसएक्स) अस्तित्व में आया था, तब इसे मुद्रा एक्सचेंज माना गया था। 21 जुलाई 2008 को भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) को भेजे अपने पहले आवेदन में यह 'एमसीएक्स करेंसी एक्सचेंज लिमिटेड' के नाम से एक नया एक्सचेंज स्थापित करना चाहता था, जो केवल मुद्रा वायदा सेगमेंट ही कारोबार करना चाहता था। संयोग से इसी दिन नियामक के पूर्णकालिक सदस्य के रूप में 1982 बैच के आईएएस अधिकारी केएम अब्राहम ने पदभार संभाला। नियामक के चेयरमैन सीबी भावे खुद को इस पद पर आए महज 5 महीने हुए थे, जिन्होंने उस साल फरवरी में पदभार संभाला था।
इसके बाद सेबी ने एमसीएक्स के साथ 29 जुलाई, 2008 को बैठक की थी। एक दिन बाद एमसीएक्स ने नाम बदलकर 'इंडियन एक्सचेंज लिमिटेडÓ कर दिया। सेबी की फाइलों से पता चलता है कि एक्सचेंज के संचालन को नियंत्रित करने वाले प्रतिभूति अनुबंध नियमन अधिनियम (एससीआरए) में एक कानूनी अड़चन की वजह से नाम में बदलाव किया गया। हालांकि आरबीआई-सेबी की तकनीकी समिति ने इसकी रूपरेखा तैयार कर भारत में एक्सचेंज आधारित मुद्रा कारोबार को स्वीकृति दी, लेकिन इस नई अवधारणा के लिए कोई प्रावधान नहीं था।
बिज़नेस स्टैंडर्ड को सूचना के अधिकार (आरटीआई) तहत मिली सूचना से पता चलता है कि हालांकि वर्तमान स्टॉक एक्सचेंज इस सेगमेंट को अपने लाइसेंसों में अतिरिक्त शामिल कर सकते थे, लेकिन कानून में नए मुद्रा एक्सचेंज का प्रावधान नहीं था। इस तरह सेबी अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर कार्य कर रहा था। बहुत से मसले उठे और इन पर बहस हुई। एमसीएक्स का वर्तमान नाम 'एमसीएक्स स्टॉक एक्सचेंज' आखिर 6 अगस्त, 2008 को सामने आया, जब एक्सचेंज ने एक पत्र के जरिये सेबी को यह जानकारी दी। समूह के स्पॉट एक्सचेंज को 'नैशनल' नाम देने वाले रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज ने इस बार कहा कि 'इंडियन' नाम उपलब्ध नहीं है।
सेबी के नोट में कहा गया है, 'एससीआरए में 'करेंसी एक्सचेंज' को मान्यता देने का कोई प्रावधान नहीं है और सेबी एससीआरए की धारा खंड 4 (1) के तहत किसी स्टॉक एक्सचेंज को ही मान्यता दे सकता है, इसलिए एमसीएक्स ने स्टॉक एक्सचेंज के रूप में मान्यता देने का प्रस्ताव रखा है और इसने शुरुआती चरण में ही मुद्रा वायदा शुरू करने की मंजूरी मांगी है।
समूह के परिसरों में आयकर छापे के संबंध में बैठक के दो दिन बाद एमसीएक्स के वरिष्ठ उपाध्यक्ष (कानूनी एवं सेक्रेटेरियल) थॉमस आर फर्नाडिंस ने हलफनामा सौंपा था। इस हलफनामे में कहा गया है, '19 जून, 2007 को एमसीएक्स की प्रवर्तक एमसीएक्स और एफटीआईएल में आयकर (आईटी) अधिनियम की धारा 1321 और 133ए के तहत जांच, जब्ती और सर्वे की कार्रवाई की गई थी। छापे के दौरान एमसीएक्स के परिसरों से आयकर अधिकारियों द्वारा कुछ दस्तावेज, कंप्यूटर सीडी और रिकॉर्ड जब्त किए गए थे।' (BS Hindi)
चुनाव बाद आएगा तुअर एवं उड़द वायदा
देश के कई हिस्सों में बेमौसम बारिश के कारण दलहन उत्पादन पर असर पडऩे की आशंका है। लेकिन कारोबारियों को उम्मीद है कि यह साल दलहन उद्योग के लिए बेहतर रेहगा। वैश्विक कारोबार में भारत की बढ़ती हिस्सेदारी की वजह से उनको लगता है कि चुनाव के बाद देश में तुअर और उड़द का वायदा शुरू हो सकता है। वायदा बाजार आयोग ने भी कुछ ऐसा इशारा किया है। रिकॉर्ड उत्पादन की आस पर बारिश भारी पड़ी है। इस कारण चने सहित अन्य दालों की कीमतों बढ़ रही हैं। मगर कारोबारियों का कहना है कि यह साल दलहन उद्योग के लिए अच्छा रह सकता है। इंडिया पल्सेज ऐंड ग्रेन्स एसोसिएशन (आईपीजीए) के चेयरमैन प्रवीण डोंगरे कहते हैं कि हाल में पल्सेस कॉन्क्लेव 2014 हुआ है। तीन दिन के इस सम्मेलन में 500 करोड़ रुपये से ज्यादा का कारोबार हुआ और 20 देशों के 800 से ज्यादा कारोबारी आए।
डोंगरे के मुताबिक भारत वैश्विक दलहन उद्योग का केंद्र है। ऐसे में दलहन की सभी फसलों का वायदा कारोबार शुरु होना चाहिए। दलहन कारोबारी लंबे समय से इसकी कोशिश कर रहे हैं। फिलहाल चुनाव तक इंतजार करना होगा। वायदा बाजार आयोग के चेयरमैन रमेश अभिषेक ने हाल में कहा था कि आयोग तुअर, उड़द और चावल के वायदा कारोबार से पाबंदी हटाने की सोच रहा है। आईपीजीए के वाइस चेयरमैन विमल कोठारी कहते हैं कि इस साल भी दलहन की कीमतें स्थिर रहेंगी। उनके अनुसार वर्ष 2010 से 2014 के बीच देश में दलहन फसलों का उत्पादन 37 फीसदी बढ़ा है जबकि वैश्विक आधार पर दलहन फसलों का उत्पादन थोड़ा घटा है। केंद्र के दूसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक वर्ष 2013-14 में खाद्यान्न उत्पादन 2.3 फीसदी बढ़कर 26.32 करोड़ टन रिकॉर्ड होने का अनुमान है। कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2013-14 में दलहन की पैदावार बढ़कर 197.7 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले वर्ष 2012-13 में 183.4 लाख टन पैदावार हुई थी। चने की रिकॉर्ड 97.9 लाख टन पैदावार होने का अनुमान है। अरहर की भी पैदावार रिकॉर्ड 33.4 लाख टन होने का अनुमान लगाया जा रहा है। (BS Hindi)
दुग्ध उत्पादन की ओर कदम बढ़ा रहे किसान
जमीन के छोटे टुकड़ों से होने वाली आय में गिरावट के कारण पंजाब के युवा और शिक्षित किसान अब व्यावसायिक दुग्ध उत्पादन (डेयरी फॉर्म) की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं। किसानों का कहना है कि व्यावसायिक दुग्ध उत्पादन से उन्हें पारंपरिक कृषि से ज्यादा मुनाफा मिलता है। गौरतलब है कि दिनोदिन खेती योग्य जमीन के टुकड़ों का आकार घट रहा है और ऐसे में उन पर पारंपरिक खेती अव्यावहारिक होती जा रही है। पंजाब में करीब 6,000 दुग्ध उत्पादक हैं और उनकी संख्या देश के किसी अन्य राज्य के मुकाबले यहां कहीं ज्यादा है। यहां किसानों के पास अधिक दूध देने वाली नस्ल की 10 से लेकर 500 तक गायें हैं।
इन फार्म से प्रतिदिन करीब 12 से 15 लाख लीटर दूध का उत्पादन होता है। व्यावसायिक दुग्ध उत्पादन की सफलता की कहानी इन आंकड़ों से समझी जा सकती है। सात साल पहले राज्य में करीब 600 व्यावसायिक डेयरी फॉर्म थे जिनकी संख्या अब बढ़कर 6,000 हो चुकी है। जैसे जैसे इस उद्यम की सफलता की कहानी अन्य लोगों तक पहुंच रही हैं, वे भी डेयरी कारोबार में प्रवेश कर रहे हैं।
स्नातक और डेयरी कारोबारी हरिंदर सिंह ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'मैं इससे पहले ट्रांसपोर्ट के धंधे में था लेकिन बाद में मैंने इसे कम मुनाफे की वजह से छोड़ दिया। हमारे पास करीब 8 एकड़ भूमि है जबकि एक डेयरी फॉर्म शुरू करने के लिए 4 से 5 एकड़ भूमि काफी होती है जहां आप दुधारु नस्ल की गायें रख सकते हैं। इसलिए मैंने 10 पशुओं के साथ अपने कारोबार की शुरुआत की और आज मेरे पास 270 पशुधन है।' उन्होंने कहा कि व्यावसायिक डेयरी फॉर्मिंग काफी फायदेमंद है क्योंकि इसमें यह निश्चित है कि आपके उत्पाद बिक जाएंगे। उन्होंने कहा, 'लागत नियंत्रित करने के लिए किसान मशीनीकरण में निवेश कर रहे हैं और उन्होंने अपने फॉर्म में जो मशीनें लगाई हैं, उनमें मिल्क पार्लर और प्रशीतक शामिल हैं।'
एक अन्य स्नातक किसान दलजीत सिंह ने कहा, 'स्नातक की पढ़ाई के बाद मैं अपना कारोबार शुरू करना चाहता था और डेयरी फॉर्मिंग का कारोबार मुझे ठीक लगा। आज मेरे पास 500 से अधिक पशुधन है।' सिंह प्रोगेसिव डेयरी फॉर्मर्स एसोसिएशन (पीडीएफए) के अध्यक्ष भी हैं जो कि किसानों की मदद करता है। सिंह ने कहा, 'हमारे एसोसिएशन के करीब 80 फीसदी सदस्य 22 से 45 साल की उम्र के हैं और शिक्षित भी हैं। यह स्पष्ट करता है कि इस कारोबार में अधिक से अधिक संख्या में शिक्षित लोग आ रहे हैं।
शिक्षा की मदद से उन्हें प्रौद्योगिकी अपनाने में आसानी होती है। एसोसिएशन सभी नए कारोबारियों को प्रौद्योगिकी की जानकारी मुहैया कराती है ताकि सभी लोगों को निश्चित तौर पर मुनाफा मिल सके।' पीडीएफए के महासचिव बलबीर सिंह ने कहा, 'किसान तेजी से आधुनिक प्रौद्योगिकी अपना रहे हैं जिसका इस्तेमाल यूरोप और अमेरिका में हो रहा है। किसानों की मदद के लिए हम उन्हें हाथोहाथ मदद मुहैया करा रहे हैं और साथ ही उच्च नस्ल का वीर्य मुहैया करा रहे हैं।' पंजाब में सफलता के बाद पीडीएफए की योजना अब अन्य राज्यों में व्यावसायिक डेयरी फॉर्मिंग को प्रोत्साहित करने की है। एसोसिएशन ने ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव डेयरी फॉर्मर्स एसोसिएशन बनाई है और उसकी योजना किसानों को डेयरी खोलने के बारे में जानकारी मुहैया कराने की है।
पीडीएफएम के तकनीकी संयोजक डॉ. जसविंदर सिंह भट्टी ने कहा, 'पंजाब में प्रोगेसिव डेयरी फॉर्मिंग को काफी सफलता मिली है और यह अन्य राज्यों के लिए रोल मॉडल है। इसलिए एसोसिएशन की योजना हरियाणा, उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में इस सफलता को दोहराने की है।' (BS Hindi)
सरसों और चना की सरकारी खरीद टलने की संभावना
आर एस राणा : नई दिल्ली... | Mar 15, 2014, 09:46AM IST
भाव सुधरने के बाद सरकारी केंद्र पर उपज पहुंचने की उम्मीद नगण्य
बाजार में मजबूती
मंडियों में सरसों की कीमतें बढ़कर एमएसपी 3,050 रुपये से ऊपर
चने के भाव बढ़कर 2900-3000 रुपये प्रति क्विटंल पर पहुंचे
हफ्ते भर में चने की कीमतें 300-400 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ी
कीमतों में तेजी से चना व सरसों की खरीद होने की संभावना नहीं
नेफेड ने 3.22 लाख टन मूंगफली खरीदी, पिछले हफ्ते खरीद बंद
प्रमुख उत्पादक राज्यों में भारी बारिश और ओला वृष्टि से चना और सरसों की फसल को हुए नुकसान से कीमतों में तेजी आई है। इसके चालू रबी में नेफेड द्वारा चना और सरसों की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद टलने की संभावना बन गई है। मध्य प्रदेश सरकार ने चालू रबी में केंद्र सरकार से एमएसपी पर 20 लाख टन चना और राजस्थान ने 7 लाख टन सरसों की खरीद के लिए केंद्र से मांग की थी।
कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिजनेस भास्कर को बताया कि मध्य प्रदेश और राजस्थान में प्राकृतिक आपदा से चना और सरसों की फसल को हुए नुकसान से इनकी कीमतों में तेजी आई है। उत्पादक मंडियों में सरसों की कीमतें बढ़कर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से 3,050 रुपये प्रति क्विंटल से ऊपर चल रही हैं।
इसी तरह से चने की कीमतें सप्ताहभर में 300 से 400 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। इसीलिए मध्य प्रदेश सरकार ने 40 हजार गांठ जूट बोरो की खरीद योजना को भी टाल दिया है। नेफेड ने एमएसपी पर 3.22 लाख टन मूंगफली की खरीद की है तथा पिछले सप्ताह खरीद बंद कर दी।
उन्होंने बताया कि मध्य प्रदेश सरकार ने केंद्र से एमएसपी पर 20 लाख टन चना खरीदने के लिए पत्र लिखा था। कृषि मंत्रालय ने चने की खरीद के लिए नेफेड और अन्य खरीद एजेंसियों को अधिकृत भी कर दिया था लेकिन कीमतों में आ रही तेजी से खरीद होने की संभावना नहीं है।
मध्य प्रदेश की मंडियों में बढिय़ा क्वालिटी के चने के दाम 300 से 400 रुपये प्रति क्विंटल बढ़कर 2,900 से 3,000 रुपये प्रति क्विंटल हो गए हैं। आगामी दिनों में मौजूदा कीमतों में और भी तेजी की संभावना है।
राजस्थान सरकार ने भी केंद्र सरकार से 7 लाख टन सरसों खरीदने के लिए पत्र लिखा था लेकिन सरसों के दाम उत्पादक मंडियों में 3,200 से 3,300 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। दिल्ली बाजार में चना के 3,175-3,200 रुपये और सरसों के दाम 3,450-3,500 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं।
कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू रबी में चना की रिकॉर्ड पैदावार 97.9 लाख टन होने का अनुमान है जबकि सरसों की पैदावार भी चालू रबी में रिकॉर्ड 82.51 लाख टन होने का अनुमान है।
हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान तथा अन्य राज्यों में भारी बारिश और ओला वृष्टि से चना और सरसों की फसल को हुए नुकसान से पैदावार 10 से 15 फीसदी घटने की आशंका है। (Business Bhaskar....R S Rana)
सरसों में निवेश करके ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं निवेशक
आर एस राणा : नई दिल्ली... | Mar 15, 2014, 09:43AM IS
प्रमुख उत्पादक राज्यों राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में बारिश और ओलावृष्टि से सरसों की फसल को नुकसान हुआ है जबकि आयातित खाद्य तेलों के दाम ऊंचे बने हुए हैं। इसलिए आगामी दिनों में सरसों की कीमतों में तेजी की ही संभावना है। ऐसे में निवेशक वायदा बाजार में सरसों में निवेश करके मुनाफा कमा सकते हैं।
एनसीडीईएक्स पर निवेशकों की बिकवाली से शुक्रवार को अप्रैल महीने के वायदा अनुबंध में सरसों की कीमतों में 1.29 फीसदी की गिरावट आकर भाव 3,442 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुए जबकि सुबह भाव 3,480 रुपये प्रति क्विंटल पर खुला था।
एग्री विश्लेषक अभय लाखवान ने बताया कि उत्पादक राज्यों में प्रतिकूल मौसम से सरसों की फसल को नुकसान हुआ है। नुकसान के साथ ही नई फसल की आवकों का दबाव बनने में भी 10-15 दिन की देरी होगी। आयातित खाद्य तेलों के दाम बढऩे से घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में तेजी आई है। ऐसे में आगामी दिनों में सरसों की मौजूदा कीमतों में तेजी की ही संभावना है।
शाकम्भरी खाद्य भंडार के प्रबंधक राधाकिशन गुप्ता ने बताया कि खराब मौसम के कारण उत्पादक मंडियों में सरसों की दैनिक आवकों का दबाव नहीं बना पा रहा है, जबकि खाद्य तेलों में मांग अच्छी होने के कारण तेल मिलों की मांग बराबर बनी हुई है। उत्पादक मंडियों में 42 फीसदी कंडीशन सरसों के दाम 3,200 से 3,300 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं जबकि दिल्ली में सरसों का भाव 3,450 से 3,500 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं।
साई सिमरन फूड्स लिमिटेड के डायरेक्टर नरेश गोयनका ने बताया कि आयातित खाद्य तेलों में डिस्पेरिटी होने के कारण आयात कम हुआ है इसीलिए आयातित खाद्य तेलों का स्टॉक भी कम है जिससे घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में भी तेजी आई है।
साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार फरवरी महीने में खाद्य तेलों के आयात में 40 फीसदी की गिरावट आकर कुल आयात 5.78 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 9.69 लाख टन खाद्य तेलों का आयात हुआ था।
आयात कम होने के कारण भारतीय बंदरगाहों पर मार्च महीने में खाद्य तेलों का स्टॉक कम होकर 4.75 लाख टन का ही रह गया जबकि फरवरी महीने में 7.05 लाख टन खाद्य तेलों का स्टॉक था। आरबीडी पामोलीन तेल का भाव जनवरी महीने में भारी बंदरगाह पर 830 डॉलर प्रति टन था जोकि फरवरी में बढ़कर 870 डॉलर प्रति टन हो गया।
इस दौरान क्रूड पाम तेल का भाव 837 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 882 डॉलर प्रति टन हो गया।
कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू रबी में सरसों की रिकॉर्ड पैदावार 82.51 लाख टन होने का अनुमान है जबकि वर्ष 2012-13 में 80.29 लाख टन की पैदावार हुई थी।
दिल्ली वैजिटेबल ऑयल ट्रेडर्स एसोसिएशन के सचिव हेमंत गुप्ता ने बताया कि उद्योग ने चालू रबी में 72.5 लाख टन सरसों उत्पादन का अनुमान लगाया है लेकिन हाल ही में हुई भारी बारिश और ओलावृष्टि से उत्पादन घटकर 68 से 70 लाख टन का ही होने का अनुमान है। (Business Bhaskar....R S Rana)
रुपये की मजबूती से कपास निर्यातक मुश्किल में
आर एस राणा नई दिल्ली | Mar 16, 2014, 09:46AM IST
कम मार्जिन
कपास के निर्यात सौदों में घट गया है मार्जिन
ऐसे में निर्यात सौदे पहले की तुलना में घट गए हैं
बढ़ेगी कीमत
घरेलू बाजार में बढिय़ा क्वालिटी की कपास की कीमतों में तेजी आने की संभावना
डॉलर के मुकाबले रुपये में आई मजबूती से कपास निर्यात सौदों में मार्जिन कम हो गया है। भारतीय मुद्रा मजबूत होकर अब 61.19 रुपये प्रति डॉलर के स्तर पर पहुंच गई है।
हालांकि विदेशी बाजार में कपास की कीमतों में भी इस दौरान हल्का सुधार आया है लेकिन घरेलू बाजार में बढिय़ा क्वालिटी की कपास की आवक कम हो गई है। ऐसे में घरेलू बाजार में बढिय़ा क्वालिटी की कपास की कीमतों में तेजी आने की संभावना है।
कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (सीसीआई) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने 'बिजनेस भास्कर' को बताया कि डॉलर के मुकाबले रुपये के मजबूत होने से कपास के निर्यातकों का मार्जिन कम हो गया है इसलिए निर्यात सौदे पहले की तुलना में कम हो गए हैं। चालू फसल सीजन 2013-14 (अक्टूबर से सितंबर) में अभी तक करीब 85 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलो) कपास के निर्यात सौदों का रजिस्ट्रेशन हो चुका है तथा करीब 78 लाख गांठ की शिपमेंट भी हो चुकी है।
हालांकि इस दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजार में कपास के भाव 89.05 सेंट प्रति पाउंड से बढ़कर 91.5 सेंट प्रति पाउंड हो गया है। कपास की आवक चालू सीजन में अभी तक 8 फीसदी घटकर 247 लाख गांठ की हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 268 लाख गांठ की आवक हुई थी।
नार्थ इंडिया कॉटन एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश राठी ने बताया कि निर्यातकों की मांग कम होने से उत्पादक मंडियों में महीनेभर में कपास की कीमतों में करीब 600 रुपये की गिरावट आकर शनिवार को अहमदाबाद में शंकर-6 किस्म का भाव 42,500-42,700 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी-356 किलो) रह गया, जबकि फरवरी के आखिर में भाव 43,300 रुपये प्रति कैंडी था।
उन्होंने बताया कि बढिय़ा क्वालिटी की कपास की आवक कम हो रही है जबकि घरेलू मिलों की मांग अच्छी है। देशभर की मंडियों में इस समय दैनिक आवक लगभग 1.50 लाख गांठ की आवक हो रही है तथा होली की छुट्टियों के कारण अगले तीन-चार दिन दैनिक आवक में कमी आने की संभावना है।
मुक्तसर कॉटन प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर नवनीत ग्रोवर ने बताया कि कॉटन यार्न में निर्यात मांग पहले की तुलना में कम हुई है जिससे घरेलू बाजार में कॉटन यार्न की कीमतें 235-240 रुपये प्रति किलो से घटकर 225 से 230 रुपये प्रति किलो रह गईं।
उन्होंने बताया की बढिय़ा क्वालिटी की कपास की कीमतें आगामी दिनों में बढऩे की संभावना है। कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार वर्ष 2013-14 में कपास की पैदावार 356.02 लाख गांठ होने का अनुमान है, जबकि वर्ष 2012-13 में 342.20 लाख गांठ की पैदावार हुई थी। (Business Bhaskar...R S Rana)
Rains lash Punjab and Haryana, may hurt crops
Chandigarh, Mar 18. Haryana and Punjab received heavy
rainfall last night, mounting worries for farmers as the crops
nears harvesting stage.
Chandigarh measured heavy rains (19.6 mm), the MeT
Department here said.
In Haryana, Ambala received 7.6 mm of rain, Hisar
received 2.8 mm of showers while Karnal gauged 4.6 mm of rain.
Bhiwani (1.4 mm), Panchkula (3 mm), Kalka (5 mm),
Kurukshetra (6 mm) and Yamunanagar were also lashed by rains.
In Punjab, heavy rains lashed Amritsar at 18 mm.
Ludhiana (6 mm), Patiala (9.4 mm) and Pathankot received
8 mm of rain. Showers were also reported from Ropar, Mohali
and Phagwara.
A MeT official said Western disturbance was the main
reason behind the showers. Another weather system - an
induced upper air cyclonic circulation which lay over Central
Pakistan and adjoining West Rajasthan - had also caused change
in the weather in the plains of Punjab and Haryana, he said.
A week back, unusual widespread rains accompanied by
strong winds had flattened wheat crop at many places in the
two states.
The current spell of rains is not good for the crops
which are at harvesting stage, agriculture experts have said.
Sugar output down 8.5% till Mar 15 of this year: ISMA
New Delhi, Mar 18. The country's sugar production
has declined by 8.5 per cent to 19.38 million tonnes till
March 15th of the current marketing year due to lower output
in key producing states, according to industry body ISMA.
The production stood at 21.1 million tonnes in the
corresponding period last year.
Indian Sugar Mills Association (ISMA) has revised
overall sugar production forecast downward by five per cent to
23.8 million tonnes for the ongoing 2013-14 marketing year
(October-September). Last year, the output was 25.1 million
tonnes.
In an official release, ISMA said the gap in sugar
production is narrowing down. About 428 sugar mills were still
crushing sugarcane as on March 15 of this year, as against 362
mills in the year-ago period.
According to latest data, sugar mills in top two
producing states -- Maharashtra and Uttar Pradesh -- have
produced less sugar so far. A similar situation prevailed
in Gujarat and Andhra Pradesh.
Sugar production in Maharashtra was 6.41 million tonnes
till March 15 of this year, down from 7.23 million tonnes in
the year-ago period.
Sugar output in Uttar Pradesh was down at 5.07 million
tonnes from 5.89 million tonnes, while sugar production in
Gujarat remained lower at 9,70,000 tonnes from 9,91,000 tonnes
in the review period.
Production in Andhra Pradesh too was lower by four per
cent at 8,80,000 tonnes till March 15th of this year, while
the output in Tamil Nadu was down at 8,00,000 tonnes as
against 11,50,000 tonnes in the same period a year ago.
However, sugar production in Karnataka was up by eight
per cent at 3,45,000 tonnes in the review period.
During the October-February period of this year, mills
manufactured around 1.1 million tonnes of raw sugar. About
6,00,000 tonnes of raw sugar has been exported, ISMA said.
The industry body said that mills dispatched 10 million
tonnes of sugar for sale in domestic market between October
and February of this year, as compared to 9.6 million tonnes
in the year-ago period.
13 मार्च 2014
तोडऩे होंगे जी एम फसलों पर पूर्वाग्रह
कृषि जगत : दुनिया भर में 1996 से 2013 के बीच बायोटेक फसलों की खेती में हुई है सौ गुना बढ़ोतरी
वर्ष 2013 की शुरूआत में जी एम फसलों के महत्व को लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सार्वजनिक तौर पर अपने विचार देश के सामने रखे थे। कुछ उसी तरह वर्ष 2014 की शुरूआत भी एग्रीबायोटेक उद्योग के लिए खुशनुमा है।
हमारे तमाम वैज्ञानिक प्रधानमंत्री के स्पष्ट वक्तव्य से उत्साहित हैं। अनुवांशिक रूप से परिवर्तित जीएम फसलों के लिए एक सक्षम नीति के लिए अपनी सरकार की प्रतिबद्धता दर्शाते हुए डॉ.सिंह ने कहा है कि जेनेटिकली मॉडिफाइड फसलों के बारे में अवैज्ञानिक पूर्वाग्रहों के सामने सरकार झुक नहीं सकती।
अपने इस खरे बयान के साथ ही उन्होंने किसी भी अन्य विवाद पर यह कहते हुए लगाम लगा दिया कि सरकार जीएम फसलों के बारे में अब और ज्यादा पुनर्विचार न करते हुए आगे बढ़ेगी। गत चार फरवरी को भारतीय विज्ञान कांग्रेस में प्रधानमंत्री ने कहा,बायोटेक फसलों से संबंधित अवैज्ञानिक पूर्वाग्रहों के सामने अब और नहीं झुकना है। बायोटेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से कृषि फसलों के अधिक पैदावार में मदद मिलेगी।
ग्यारह फरवरी को संसद में पूछे गए एक प्रश्न पर कृषि मंत्री शरद पवार ने भी इस तथ्य को दोहराते हुए कहा कि वर्ष 1992 से 2002 के बीच कपास की पैदावार तकरीबन 300 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी, जो 2013 के दौरान बढ़कर 488 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गई। अन्य फसलों के पैदावार के मामले में भी इसी प्रकार की प्रभावशाली बेहतरी की सख्त जरूरत है, क्योंकि हमारे देश की आबादी दिनोंदिन बढ़ रही है और सभी का पेट भरने और उन्हें खिलाने की चुनौती सामने है।
वर्ष 2030 तक हमारी जनसंख्या मौजूदा आबादी से 25 प्रतिशत बढ़कर 1.5 अरब से ज्यादा हो जाएगी, जबकि खेती के लिए उपलब्ध जमीन उतनी ही रहेगी। पिछले कुछ दशकों से भारत में जोते जाने वाले खेतों का क्षेत्रफल 14 करोड़ हेक्टेयर पर लगभग स्थिर बना हुआ है। इसका अर्थ है कि कृषि योग्य भूमि में वृद्धि की बेहद सीमित संभावना है।
जाहिर है,मौजूदा उत्पादन प्रणालियों को ही प्रखर बनाना होगा, जो कि एकमात्र संभावना है। परंतु यह संभावना भी पानी और बिजली की कमी के चलते सीमित रहेगी। शहरीकरण और उद्योगीकरण की बढ़ती मांग के चलते जमीन, पानी और बिजली के लिए मुकाबला आने वाले समय में और कड़ा होने की उम्मीद है। ऐसे में समय रहते तैयारी आवश्यक है। भारत बड़ी मात्रा में ऊर्जा सघन उर्वरक व तेलों का अन्य देशों से आयात करता है।
इस तरह आने वाले समय में बढ़ती लागत कीमतों से कृषि की लागत में भी इजाफा होगा और खेतों से होने वाले लाभ में कमी आएगी, जिससे किसानों को और अधिक नुकसान होगा। इसके साथ ही आने वाले समय में भारतीय बाजार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी दूसरे देशों की तुलना में अपेक्षाकृत कम प्रतिस्पर्धी हो जाएगा।
इसके अलावा हमें जलवायु परिवर्तन का भी सामना करना होगा, जो कृषि क्षेत्र के चिरस्थायी विकास के समक्ष विकट चुनौतियां पेश कर रहा है।
बतौर एग्रो.इंडस्ट्री हम जी एम फसलों से संबंधित गलत सूचनाओं की बमबारी से भौंचक हैं। जी एम टेक्नोलॉजी, जो किसानों के लिए इतनी लाभकारी है, उसे नकारने की प्रवृत्ति देश के भीतर बढ़ती जा रही है, जो हमारे लिए चिंता का विषय होना चाहिए। इस तरह की तमाम भ्रामक जानकारियां प्रतिष्ठित सूचना माध्यमों से भी फैलाने की कोशिश हो रही है, जिसके प्रति हमें सतर्क रहना होगा।
जीएम फसलों के फायदों व इसकी अहम जरूरत को नकारने की जिद में विरोधी पक्ष इस हद तक चला जाता है कि वह संदर्भ से बाहर जाकर कई बार तथ्यों को तोड़ मरोड़कर पेश करने की कोशिश करता है, ताकि लोगों को भ्रमित किया जा सके और कुछ निहित स्वार्थों के उद्देश्यों को पूरा किया जा सके। ऐसे दावे भी किए जाते हैं कि जी एम फसलों से कृषि उत्पादन में बेहद मामूली बढ़त होगी और ये फसलें स्वास्थ्य की दृष्टि से सुरक्षित नहीं होंगी। ऐसे भ्रम विरोधियों द्वारा बेशर्मी से प्रचारित किए जा रहे हैं।
दुनिया भर में 1996 से 2013 के बीच बायोटेक फसलों की खेती में सौ गुना वृद्धि हुई है। वर्ष 1996 में जहां 17 लाख हेक्टेयर पर बायोटेक फसलें उगाई जाती थीं, वहीं 2013 में 27 देशों में 17.5 करोड़ हेक्टेयर पर बायोटेक फसलें उपजाई गईं।
यह तमाम आंकड़े इंटरनेशनल सर्विस फॉर द एक्विजिशन ऑफ ऐग्रो.बायोटेक एप्लीकेशंस के हैं। अमेरिका बायोटेक फसलों का अग्रणी उत्पादक देश है, जो 7.01 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर जी एम फसलों की खेती करता है। मकई, सोयाबीन, कपास, कोनोला, सुगरबीट, अल्फाफा,पपीता व स्कवैश जैसी प्रमुख फसलों में अमेरिका में नब्बे प्रतिशत की औसत से बायोटेक फसलों को अपनाया गया है।
अगर इस टेक्नोलॉजी से लाभ नहीं होता है तो इतनी बड़ी तादात में वहां के किसान इसे क्यों अपनाते? यदि बायोटेक से उनकी उपज नहीं बढ़ती, उनकी आमदनी नहीं बढ़ती तो फिर उसे इस्तेमाल करने की क्या जरूरत है? जीएम फसलों पर संसद में दिए अपने जवाब में शरद पवार ने यह भी कहा कि 2002 में बीटी कॉटन को पेश करने के बाद से कीटनाशकों का औसत इस्तेमाल कम हुआ है।
जहां वर्ष 2002 में प्रति हेक्टेयर 0.88 किग्रा कीटनाशक का छिड़काव हुआ करता थाए वहीं 2011 में यह घटकर 0.56 किग्रा प्रति हेक्टेयर रह गया। पवार ने भी उसी बात को दोहराया जिनकी पुष्टि डब्ल्यूएचओ और यूएसएफडीए जैसी कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने की है। इस बात की कोई विश्वसनीय वैज्ञानिक रिपोर्ट नहीं है कि जीएम फसलों का पर्यावरण मानव स्वास्थ्य और मवेशियों पर कोई विपरीत असर पड़ता है।
यह भी जाना माना तथ्य है कि सरकार ट्रांसजेनिक बीजों की जैव सुरक्षा एवं कृषि प्रदर्शन की गहन समीक्षा के बाद ही जीएम फसलों को वाणिज्यिक खेती को स्वीकृति देती है। यहां यह जानना अहम है कि पर्याप्त नियामकीय निरीक्षण के जरिये व्यापक जनविश्वास बनाने के लिए सरकार की ओर से निरंतर आश्वासन दिए जा रहे हैं।
अब देश प्रतीक्षा कर रहा है कि इस बिल को शीघ्रातिशीघ्र पास किया जाए। जीएम फसलों पर हम एक ऐसी बहस में उलझे हैं जिसमें भ्रम अधिक और सच्चाई कम है। जरूरत प्रगतिशील कदम उठाने की है। जीएम फसलों के पक्ष में या उसके विरोध में प्रस्तुत की गई कहानियां वास्तविकता से काफी दूर हैं। इस बारे में गोलमोल बातें की जा रही हैं और बातों को गलत रूप में पेश किया जा रहा है।
डॉ. एन सीतारामा
लेखक बायोटेक व कृषि मामलों के विशेषज्ञ हैं।
प्रस्तुत आलेख में बहुचर्चित जीएम फसलों के बारे में पड़ताल (Business Bhaskar)
एनएमसीई को भाव में गड़बड़ी रोकने को निगरानी के निर्देश
फॉरवर्ड मार्केट्स कमीशन (एफएमसी) ने नेशनल मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज को निर्देश दिया है कि मूल्य में गड़बड़ी रोकने के लिए सौदों की कड़ी निगरानी की जाए। यह जानकारी एफएमसी ने अपनी ताजा रिपोर्ट में दी है।
रिपोर्ट के अनुसार कमीशन ने 20 फरवरी को इस संबंध में निर्देश जारी किए थे। एनएमसीई से कहा गया कि वह अपने प्लेटफार्म पर हो रहे कारोबार में सभी सौदों की कड़ी निगरानी करे। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कमोडिटी अनुबंधों के प्रचलित मूल्य में किसी तरह की बनावटीपन नहीं है।
एनएमसीई प्लांटेशन उपज, मसालों, खाद्यान्न, मेटल्स और तिलहन के तमाम अनुबंधों में इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफार्म पर वायदा कारोबार की सुविधा मुहैया कराता है।
एफएमसी ने अपनी रिपोर्ट में कारोबार के बारे में कहा कि पिछले अप्रैल से फरवरी तक देश के सभी कमोडिटी एक्सचेंजों का कुल कारोबार 40 फीसदी घटकर 95.13 लाख करोड़ रुपये रह गया।
पिछले साल समान अवधि में 157.82 लाख करोड़ रुपये का कारोबार हुआ था। देश में 17 एक्सचेंज काम कर रहे हैं। इनमें से एमसीएक्स, एनसीडीईएक्स, एनएमसीई, आईसीईएक्स, एसीई और यूसीएक्स राष्ट्रीय स्तर के एक्सचेंज हैं।
एफएमसी के आंकड़ों के मुताबिक इस दौरान बुलियन कमोडिटी का कारोबार 44 फीसदी घटकर 40.83 लाख करोड़ रुपये रह गया। पिछले साल समान अवधि में 73.26 लाख करोड़ रुपये रह गया। इसी तरह एनर्जी कमोडिटी में कारोबार 34.41 लाख करोड़ से घटकर 23.39 लाख करोड़ रुपये रह गया।
कॉपर जैसी मेटल्स का कारोबार 45 फीसदी घटकर 16.46 लाख करोड़ रुपये रह गया। पिछले साल इस अवधि में 29.95 लाख करोड़ रुपये का कारोबार हुआ था। एग्री कमोडिटी का कारोबार 20.20 लाख करोड़ से घटकर 14.44 लाख करोड़ रुपये रह गया।
कमोडिटी फ्यूचर्स से जुड़े जानकारों का कहना है कि सरकार द्वारा कमोडिटी ट्रांजेक्शन टैक्स (सीटीटी) लगाए जाने और एनएसईएल में 5500 करोड़ रुपये के घोटाले के बाद निवेशकों का रुझान कम हो गया। सीटीटी से जहां निवेशकों की लागत बढ़ गई जबकि एनएसईएल से भरोसे में कमी आई। एमसीएक्स के सिस्टर एक्सचेंज एनएसईएल में निवेशकों के 5500 करोड़ रुपये के भुगतान संकट में फंस गए।
एमसीएक्स को कोल्ड स्टोरों को पंजीयन में छूट
: नई दिल्ली... एफएमसी ने आलू के कोल्ड स्टोरों को वेयरहाउसिंग डेवलपमेंट एंड रेगुलेटरी अथॉरिटी (डब्ल्यूडीआरए) से पंजीकृत कराने से चालू सीजन के लिए छूट दे दी है। एमसीएक्स ने इस संबंध में एफएमसी से अनुरोध किया था।
एमसीएक्स ने कहा था कि चालू सीजन में आलू की सुचारु रूप से आपूर्ति और प्राइस डिस्कवरी के लिए अभी पंजीयन की अनिवार्यता लागू न की जाए। एक्सचेंज को चालू सीजन खत्म होने के बाद अपने पंजीकृत कोल्ड स्टोरों का डब्ल्यूडीआरए से पंजीकरण कराना होगा। (Business Bhaskar)
Gold rises to 6-mth high as demand climbs on Ukraine to China
London, Mar 13. Gold today advanced to the
highest level in almost six months as tension between Ukraine
and Russia and concern about slowing Chinese economic growth
increased demand for a store of value.
Gold rose 0.4 per cent to USD 1,372.54 an ounce, after
touching USD 1,375.21, the highest since September 19. Silver
also rose 0.5 per cent to USD 21.40 an ounce.
The US pressed Russia to cancel or postpone the March 16
referendum on Crimea joining Russia or at least agree not to
implement any annexation vote as President Barack Obama met at
the White House with Ukrainian interim Prime Minister Arseniy
Yatsenyuk.
Obama and US allies in Europe are ratcheting up the threat
of sanctions if Putin does not take steps to defuse the
situation.
Meanwhile, China's retail sales, industrial output and
investment last month trailed estimates, data showed today.
The dollar fell to the lowest level against the euro since
October 2011.
Bullion advanced 14 per cent this year, rebounding from
the biggest annual drop since 1981, as concern economic growth
in the US and China is slowing and the crisis in Ukraine
spurred demand for a haven.
Gold falls on profit-selling; silver remains higher
New Delhi, Mar 13. Gold prices fell by Rs 220 to Rs
30,800 per ten grams in the national capital today on
emergence of profit-selling at prevailing higher levels.
However, silver gained for the third-day by adding Rs 200
to Rs 46,900 per kg on sustained buying by industrial units
and coin manufacturers.
Traders said profit-selling by stockists at prevailing
higher levels against sluggish demand mainly pulled down gold
prices.
Rising equities lured investors to park their funds for
quick gains and that reduced the gold demand, they said.
On the domestic front, gold of 99.9 and 99.5 per cent
purity plunged by Rs 220 each to Rs 30,800 and Rs 30,600 per
ten grams, respectively. It had shot up by Rs 320 yesterday.
Sovereign fell by Rs 50 to Rs 25,350 per piece of eight
grams.
On the other hand, silver ready advanced by Rs 200 to Rs
46,900 per kg and weekly-based delivery by Rs 240 to Rs 46,690
per kg. It had gained Rs 770 in last two days.
Silver coins also spurted by Rs 1,000 to Rs 87,000 for
buying and Rs 88,000 for selling of 100 pieces.
बासमती चावल का निर्यात 10% बढऩे के आसार
आर एस राणा : नई दिल्ली... | Mar 13, 2014, 10:53AM IS
बेहतर शिपमेंट
38 लाख टन बासमती का निर्यात हो सकता है चालू वित्त वर्ष में
34 लाख टन निर्यात रहा था वित्त वर्ष 2012-13 के दौरान
30 लाख टन के निर्यात सौदे हो चुके हैं पहले दस माह में
27 लाख टन निर्यात सौदे हुए थे पिछले साल समान अवधि में
चालू वित्त वर्ष 2013-14 में बासमती चावल के निर्यात में 9.8 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल निर्यात 38 लाख टन होने का अनुमान है। एपीडा के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2013-14 के पहले 10 महीनों (अप्रैल से जनवरी) के दौरान बासमती चावल के निर्यात सौदों में 13.5 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल निर्यात सौदे 30.88 लाख टन के हो चुके हैं।
एपीडा के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिजनेस भास्कर को बताया कि चालू वित्त वर्ष 2013-14 में बासमती चावल का निर्यात बढ़कर 38 लाख टन होने का अनुमान है जबकि वित्त वर्ष 2012-13 में 34.59 लाख टन का निर्यात हुआ था।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2013-14 के पहले 10 महीनों अप्रैल से जनवरी के दौरान बासमती चावल का निर्यात मूल्य के हिसाब से 58.84 फीसदी बढ़कर 23,517.11 करोड़ रुपये का हो चुका है। जबकि वित्त वर्ष 2012-13 की समान अवधि में 14,805.87 करोड़ रुपये मूल्य का निर्यात हुआ था।
ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष एम पी जिंदल ने बताया कि ईरान की मांग कम होने से जनवरी-फरवरी में बासमती चावल के निर्यात सौदे कम हुए हैं। हालांकि आगामी महीने में निर्यात सौदों में फिर से तेजी आने की संभावना है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में पूसा-1121 बासमती चावल सेला के निर्यात सौदे 1,400 से 1,450 डॉलर और ट्रेडिशनल बासमती के निर्यात सौदे 1,650-1,750 डॉलर प्रति टन की दर से हो रहे हैं। खुरानिया एग्रो के प्रबंधक रामविलास खुरानिया के बताया कि बासमती चावल में निर्यातकों की मांग कम होने से कीमतों में गिरावट आई है।
उत्पादक मंडियों में पूसा-1121 बासमती चावल सेला की कीमतों में महीनेभर में 500 रुपये की गिरावट आकर भाव 7,200 से 7,500 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। इस समय मंडियों में बासमती पूसा-1121 धान की कीमतें 4,000 से 4,500 रुपये प्रति क्विंटल चल रही है लेकिन इन भावों में मांग कमजोर है।
(Business Bhaskar....R S Rana)
रबर आयात 91 फीसदी बढ़ा
रबर बोर्ड के ताजा आंकड़ों के मुताबिक प्राकृतिक रबर का आयात फरवरी में 91 फीसदी की भारी-भरकम बढ़ोतरी के साथ 18,141 टन रहा है। विदेशी बाजारों से रबर खरीदने पर होने वाला लाभ रबर आधारित उद्योगों को लुभा रहा है। रबर की खपत वाले उद्योगों के लिए शुल्क चुकाने के बाद भी आयात फायदेमंद है, इसलिए फरवरी के दौरान आयात में रिकॉर्ड बढ़ोतरी रही है।
स्थानीय बाजार में आरएसएस-4 ग्रेड की कीमत 146 रुपये प्रति किलोग्राम है, जबकि बैंकॉक के बाजार में एसएमआर-20 ग्रेड का भाव केवल 116 रुपये प्रति किलोग्राम है। एसएमआर-20 ग्रेड आरएसएस-4 ग्रेड के समान ही है। वहां आरएसएस-4 रबर 136 रुपये प्रति किलोग्राम की कीमत पर उपलब्ध है। कीमत के मोर्चे पर पिछले 12-15 महीनों से मिल रहा इस लाभ ने उद्योग, विशेष रूप से टायर विनिर्माताओं के लिए आयात को ज्यादा आकर्षक बना दिया है। चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से फरवरी के दौरान कुल आयात 44 फीसदी बढ़कर 2,98,877 टन रहा है, जो पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 2,07,443 टन था। यह इस बात को इंगित करता है कि चालू वित्त वर्ष में कुल आयात 3 लाख टन का स्तर पार कर जाएगा। (BS Hindi)
11 मार्च 2014
एफसीआई कर्मियों को मिलेगी पेंशन!
आर एस राणा : नई दिल्ली... | Mar 11, 2014, 08:30AM IST
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25,000 निगम कर्मचारी लाभान्वित होंगे पेंशन की स्कीम लागू होने के बाद
: इस सौगात से सरकारी खजाने पर 118 करोड़ की सब्सिडी का पड़ेगा बोझ
: चुनाव आचार संहिता के चलते सरकार को इस बारे में पहले चुनाव आयोग से लेनी होगी इसकी अनुमति
केंद्र सरकार भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के कर्मचारियों को पेंशन की सौगात देने की तैयारी कर रही है। इससे सरकारी खजाने पर सालाना करीब 118 करोड़ रुपये की सब्सिडी का अतिरिक्त भार तो पड़ेगा, लेकिन पेंशन की स्कीम लागू होने के बाद निगम के लगभग 25,000 कर्मचारियों को इसका लाभ मिलेगा। हालांकि, चुनाव आचार संहिता लागू होने के कारण सरकार को इस आशय के प्रस्ताव के लिए पहले चुनाव आयोग से अनुमति लेनी होगी।
खाद्य मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी ने 'बिजनेस भास्कर' को बताया कि देश के अन्य सार्वजनिक उपक्रमों की तरह केंद्र सरकार का एफसीआई के कर्मचारियों को भी पेंशन देने का प्रस्ताव है। इससे केंद्र सरकार पर सालाना करीब 118 करोड़ रुपये की अतिरिक्त सब्सिडी का भार पड़ेगा।
उन्होंने बताया कि वर्ष 2007 से ही इस आशय के प्रस्ताव को लागू करने की योजना है। अगर यह वर्ष 2007 से लागू होता है तो इससे बकाया राशि के रूप में करीब 700 करोड़ रुपये का भार पड़ेगा। इसके अलावा पोस्ट रिटायरमेंट मेडिकल बेनेफिट स्कीम के तहत लगभग 45 करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च भी पड़ेगा।
उन्होंने बताया कि देश के ज्यादातर सार्वजनिक उपक्रमों ने अपने कर्मचारियों को पेंशन देने का प्रावधान किया हुआ है। केंद्र सरकार और एफसीआई के कर्मचारियों के मध्य भी हुए समझौते के आधार पर सरकार ने निगम के कर्मचारियों को पेंशन देने के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर तो किए हुए हैं लेकिन पेंशन स्कीम अभी तक शुरू नहीं हो पाई है।
पेंशन स्कीम शुरू हो जाती है तो निगम की एक से चार कैटेरिगी तक के कर्मचारियों को इसका लाभ मिलेगा। उन्होंने बताया कि लोकसभा चुनाव-2014 की अधिसूचना लागू होने के कारण इस समय देशभर में चुनाव आचार संहिता लागू है, इसलिए सरकार को इस आशय के प्रस्ताव से पहले चुनाव आयोग से इसकी अनुमति लेनी होगी।
चुनाव आयोग से अनुमति मिलने के बाद ही इस आशय का प्रस्ताव पहले उच्चाधिकार प्राप्त मंत्रियों के समूह (ईजीओएम) की बैठक में पेश किया जाएगा। ईजीओएम की बैठक में इस आशय का प्रस्ताव पास हो जाता है तो फिर आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) में इस प्रस्ताव को भेजा जाएगा। (Business Bhaskar...R S Rana)
Gold inches towards 4-month high as Ukraine spurs haven demand
London, Mar 11. Gold today climbed toward a
four-month high as the standoff between Russia and Ukraine
spurred demand for a haven.
Gold rose 0.6 per cent to USD 1,348.39 an ounce. It
reached USD 1,354.87 on March 3, the highest since October
30. Silver rose one per cent to USD 21.02 an ounce, after
reaching 20.61 yesterday, the lowest since February 14.
Ukraine began military drills as Russian forces tightened
their hold on the Crimean peninsula, where residents will have
the choice of joining Russia in a March 16 referendum.
Ukraine's prime minister prepared to meet US President Barack
Obama and western nations threatened further repercussions if
Russia failed to defuse tensions.
Bullion advanced 12 per cent this year, rebounding from
the biggest annual drop since 1981, even as the Federal
Reserve announced a USD 10 billion reduction to bond buying
at each of its past two meetings, leaving purchases at USD 65
billion.
Fed Chair Janet Yellen said the central bank will probably
maintain its strategy of trimming the stimulus programme.
Global equities are within 1 per cent of a six-year high set
last week.
Gold falls further on sustained selling; silver recovers
New Delhi, Mar 11. Gold fell by Rs 30 to Rs 30,700
per ten grams here today on sustained selling by stockists
against declining demand following the end of marriage season.
However, silver recovered by Rs 170 to Rs 46,100 per kg on
increased offtake by industrial units.
Traders said sustained selling by stockists against
falling demand on end of marriage season mainly pulled down
gold prices while silver recovered on increased offtake by
industrial units and coins makers.
On the domestic front, gold of 99.9 and 99.5 per cent
purity shed Rs 30 each to Rs 30,700 and Rs 30,500 per ten
grams, respectively. It had lost Rs 330 in last two trades.
Meanwhile, sovereign found selective buying from retailers
and recovered by Rs 100 to Rs 25,400 per piece of eight grams.
On the other hand, silver ready recovered by Rs 170 to Rs
46,100 per kg and weekly-based delivery by Rs 220 to Rs 45,900
per kg, after falling Rs 1,400 in last two sessions.
Silver coins held steady at Rs 86,000 for buying and Rs
87,000 for selling of 100 pieces.
10 मार्च 2014
महाराष्ट्र में भीषण ओलावृष्टि, करोड़ों की फसलें चौपट
मुंबई [जासं]। पिछले दस दिनों से महाराष्ट्र में चल रही बारिश और ओलावृष्टि ने राज्य में फलों की फसलें लगभग चौपट हो गई हैं। नुकसान कई हजार करोड़ का आंका जा रहा है। बड़ी संखया में पशु-पक्षियों के भी मारे जाने की खबर है। इस बीच राज्य के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान ने कहा है कि ओलावृष्टि से फसलों के नष्ट होने का आंकलन के लिए जल्द केंद्रीय टीम यहां पहुंचेगी।
बरसारत और ओलावृष्टि का ज्यादा असर मराठवाड़ा एवं विदर्भ क्षेद्दों में देखा जा रहा है। मराठवाड़ा की लोहा और कंधार तहसीलें सर्वाधिक प्रभावित हुई हैं। इन क्षेद्दों में रोज दोपहर बाद शुरू होनेवाली बारिश रात-रात भर चालू रहती है। इन तहसीलों में ओलावृष्टि से कहीं-कहीं तो बर्फ की चार-चार फुट मोती सतह जमा हो चुकी है। सामान्यत: बर्फ की इतनी मोती सतह जममू-कश्मीर और हिमाचल आदि राज्यों में ही देखी जाती है। मौसम विभाग के अनुसार ऐसी ओलावृष्टि इस क्षेद्द में इससे पहले 100 साल में भी नहीं देखी गई है।
इस प्रकार ओले गिरने से नांदेड़ और परभणी में मौसंबी, विदर्भ में संतरे, नासिक क्षेद्द में अंगूर और प्याज की फसलें पूरी तरह चौपट हो गई हैं। गौरतलब है कि देश में संतरों का सर्वाधिक उत्पादन नागपुर के आसपास होता है। इसी प्रकार देश के कुल मौसम्मी उत्पादन का आधा हिस्सा मराठवाड़ा में होता है। प्याज और अंगूर के लिए पूरा देश नासिक का मुंह देखता है। परभणी में मौसंबी और कागजी नींबू का उत्पादन करनेवाले कांतराव देशमुख बताते हैं कि पिछले 10 दिनों से चल रही ओलावृष्टि के कारण हर प्रकार की 90 फीसद फसलें बर्बाद हो चुकी है। ज्वार और गेहूं का भी यही हाल है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 3.5 लाख हेक्टेयर भूमि पूरी तरह बर्बाद हो चुकी है, जबकि एक लाख हेक्टेयर पर आंशिक नुकसान हुआ है। रविवार को केंद्रकृषिमंद्दी शरद पवार स्वयं इस क्षेद्द में जाकर किसानों से मिले और नुकसान का जायजा लिया। प्रभावित किसानों को राहत पहुंचाने में चुनाव आचारसंहिता बाधा न बने, इस विषय में मुखयमंद्दी पृथ्वीराज चह्वाण ने राज्य के चुनाव आयुक्त से भी चर्चा की है। मुखयमंद्दी ने किसानों को राहत देने के लिए केंद्र सरकार से भी 340 करोड़ रुपये की मांग की है। लेकिन किसानों का मानना है कि ओलावृष्टि से हुए नुकसान की तुलना में कोई भी सरकारी मदद ऊंट में के मुंह में जीरा ही साबित होगी। (Jagran)
Gold decline as US Jobs data back stimulus reduction
London, Mar 10. Gold today declined as US jobs
data backed the case for the Federal Reserve to keep reducing
stimulus.
Gold fell by 0.3 per cent to USD 1,335.94 an ounce. It
reached USD 1,354.87 on March 3, the highest since October
30. Silver also fell 0.2 per cent to USD 20.89 an ounce, after
reaching 20.61 an ounce, the lowest since February 14.
Gold posted a fifth weekly gain last week as tension
between Ukraine and Russia escalated, boosting demand for a
haven. Pro-Russian forces advanced in the Crimean peninsula,
ignoring Western calls to halt a military takeover before the
region holds a referendum on separation.
Bullion rose 11 per cent this year, rebounding from the
biggest annual drop since 1981, even as the Fed announced a
USD 10 billion reduction to bond buying at each of its past
two meetings, leaving purchases at USD 65 billion.
Fed Philadelphia President Charles Plosser said the pace
of stimulus reduction is likely to be maintained. US employers
added 175,000 workers last month, compared with 149,000
forecast in a Bloomberg survey.
Gold, silver extend losses on weak global cues
New Delhi, Mar 10. Extending losses for the second
session, gold prices fell by Rs 100 to Rs 30,730 per ten gram
in the national capital today on sustained selling by
stockists influenced by a weakening global trend.
Silver also declined by Rs 470 to Rs 45,930 per kg on lack
of buying support from jewellery makers and industrial units.
Marketmen said sustained selling by stockists influenced
by a weakening global trend as US jobs data backed the case
for the Federal Reserve to keep on reducing stimulus mainly
led to the fall in the precious metals.
Gold in Singapore, which normally sets price trend on the
domestic front, fell by 0.9 per cent to USD 1,327.94 an ounce
and silver by 1.6 per cent to USD 20.61 an ounce.
On the domestic front, gold of 99.9 and 99.5 per cent
purity fell further by Rs 100 each to Rs 30,730 and Rs 30,530
per ten gram, respectively. It had lost Rs 230 in the previous
session. Sovereign traded lower by the same margin to Rs
25,300 per piece of eight gram.
Silver ready dropped by Rs 470 to Rs 45,930 per kg and
weekly-based delivery by Rs 520 to Rs 45,680 per kg. The white
metal had lost Rs 930 in last trade.
Silver coins also plunged by Rs 1,000 to Rs 86,000 for
buying and Rs 87,000 for selling of 100 pieces.
06 मार्च 2014
Sugar output for 2013-14 revised lower by 5% at 23.8 mn tonnes
New Delhi, Mar 6. Country's sugar production for the
marketing year 2013-14 has been revised downwards by 1.2
million tonnes to 23.8 million tonnes due to lower output
estimates in Uttar Pradesh, industry body ISMA said today.
The production was projected at 25 million tonnes for the
marketing year 2013-14 (Oct-Sep) in September last year by the
Indian Sugar Mills Association.
"The Committee of ISMA in its meeting held on 6th March
2014 and after detailed deliberations has revised its earlier
estimate of sugar production from 250 lakh tonnes to 238 lakh
tonnes," ISMA said in a statement.
The revision was done after examining in January satellite
images of sugarcane crops, the harvested and unharvested
areas and other factors.
Estimated sugar production for the ongoing marketing year
would be almost at par with annual domestic consumption of
23.5 million tonnes, but there would be adequate availability
considering an opening stock of over 8 million tonnes.
Sugar production of India, the world's second largest
sugar producer and biggest consumer, stood at 25.1 million
tonnes in the marketing year 2012-13.
Compared with the estimates made in September last year,
ISMA has lowered the output of Uttar Pradesh and Tamil Nadu by
1.1 million tonnes and 1,00,000 tonnes, respectively.
"The main reasons behind the lower sugar production in UP
is damage of sugarcane crops due to heavy rainfall in Eastern
UP region and diversion of sugarcane by farmers to alternate
sweetener producers to make way for sowing of wheat due to
late start of sugar mills. Though recovery percentage is good
in the State, yield is estimated to be lower than last year,"
ISMA said.
The sugar production in Maharashtra is expected to be at
7.8 million tonnes, followed by Uttar Pradesh (6.6 million
tonnes), Karnataka (3.5 million tonnes), Tamil Nadu (1.5
million tonnes), Gujarat (1.17 million tonnes) and Andhra
Pradesh (0.95 million tonnes).
In Tamil Nadu, both yield and recovery percentage of sugar
is lower than the last year's level.
05 मार्च 2014
चालू सीजन में चीनी उत्पादन 10.5% गिरा
168.6 लाख टन चीनी का उत्पादन हो पाय है फरवरी के अंत तक
चालू पेराई सीजन 2013-14 (अक्टूबर से सितंबर) के दौरान 28 फरवरी तक चीनी उत्पादन में 10.5 फीसदी की गिरावट आकर कुल उत्पादन 168.6 लाख टन का हुआ है। देश भर में इस समय 460 चीनी मिलों में पेराई चल रही है जो पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 23 चीनी मिलें ज्यादा हैं।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के अनुसार चालू पेराई सीजन में प्रमुख उत्पादक राज्यों महाराष्ट्र के साथ ही उत्तर प्रदेश में चीनी का उत्पादन कम हुआ है। अक्टूबर से शुरू हुए चालू पेराई सीजन में 168.6 लाख टन चीनी का ही उत्पादन हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 188.4 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था।
महाराष्ट्र में चालू पेराई सीजन में 28 फरवरी तक 57.1 लाख टन चीनी का उत्पादन ही हुआ है जबकि पिछले पेराई सीजन में 65.7 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका था। राज्य में चालू पेराई सीजन में रिकवरी 11.1 फीसदी की ही आ रही है जबकि पिछले पेराई सीजन में औसतन रिकवरी 11.15 फीसदी की थी।
उत्तर प्रदेश में चालू पेराई सीजन में अभी तक 42.75 लाख टन चीनी का ही उत्पादन हुआ है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में 50.09 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था।
चालू पेराई सीजन में राज्य में अभी तक 475 लाख टन गन्ने की पेराई हुई है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में 560 लाख टन गन्ने की पेराई हुई थी। कर्नाटक में चालू पेराई सीजन में अभी तक 31.50 लाख टन, गुजरात में 8.60 लाख टन और तमिलनाडु में 5.70 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है। (Business Bhaskar....R S Rana)
जीएम फसलों का ट्रायल रोकना ठीक नहीं: आईसीएआर
कृषि विशेषज्ञों ने कहा- अवैज्ञानिक तरीके से विरोध हो रहा है नई तकनीक का
ट्रालय करने से पहले ही जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम) फसलों को हानिकारक बताना सही नहीं है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक डॉ. एस अय्यप्पन ने कहा कि जब बड़ी आबादी वाले तमाम विकासशील देश जीएम फसलों पर अनुसंधान कर रहे हैं, तब भारत में जीएम फसलों के ट्रालय को रोकना उचित नहीं है।
उन्होंने कहा कि जीएम फसलों का, जो विरोध हो रहा है, वह विज्ञान के तौर पर नहीं, बल्कि कुछ दूसरे डर से हो रहा है। अवैज्ञानिक दुराग्रहों के कारण जीएम फसलों का विरोध नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि देश की बढ़ती आबादी और जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरों को देखते हुए खाद्यान्न संकट का हल निकालना जरूरी है।
जब बड़ी आबादी वाले ज्यादातर विकासशील देश जीएम फसलों पर अनुसंधान कर रहे हैं, तब भारत में उस पर रोक लगाना उचित नहीं होगा। वैसे भी विश्व में अभी तक एक भी प्रमाणिक या फिर वैज्ञानिक रिपोर्ट नहीं आई है, जिसमें जीएम फसलों से मनुष्य, जानवर या फिर पर्यावरण को नुकसान होने की बात पता चली हो।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के ज्वाइंट डायरेक्टर (रिसर्च) डॉ. के वी प्रभू ने कहा कि देश में कृषि पर निर्भरता लगातार बढ़ रही है तथा बीजों में वैज्ञानिक ढंग से सुधार की लंबी परंपरा रही है, जिससे पैदावार बढ़ाने में लगातार मदद मिली है। उन्होंने कहा कि जीएम फसलों के उपयोग में सतर्कता जरूरी है, लेकिन इनसे मुंह मोड़ लेना बुद्धिमानी नहीं है।
अगर परीक्षण ही रुक गए, तो फसलों की सुरक्षा से जुड़े प्रयोगों पर भी विराम लग जायेगा। ऐसे में वह समय आ ही नहीं पायेगा, जब जीएम फसलों को सुरक्षित मानकर उनकी खेती की जायेगी। जीएम फसलों से जिंसों की प्रति हैक्टेयर उत्पादकता बढ़ेगी, इसलिए इससे बड़े किसानों के साथ ही छोटे किसानों को भी फायदा होगा।
हाल ही में केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने भी जीएम फसलों की वकालत करते हुए कहा था कि कृषि उत्पादन बढ़ाने, कीटों, बीमारियों और फसल खराब करने के अन्य कारकों से लडऩे के लिए जीएम फसलें जरुरी हैं। मालूम हो कि देश में बीटी कपास की खेती व्यापक पैमाने पर हो रही है तथा बीटी कपास की खेती से किसानों की आय में बढ़ोतरी हुई है। (Business Bhaskar....R S Rana..)
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