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07 मार्च 2022

रूस-यूक्रेन संकट से धागे का निर्यात घटा, फिर भी कॉटन में बड़ी गिरावट के आसार नहीं

नई दिल्ली। रूस और यूक्रेन के बीच चल रही जंग के कारण यूरोपीय देशों को धागे का निर्यात कम हो गया है, जिस कारण घरेलू बाजार में धागे की कीमतों में 35 से 40 रुपये प्रति किलो की गिरावट आई है, जबकि इस दौरान कॉटन की कीमतों में केवल 1,000 से 1,500 रुपये प्रति कैंडी, एक कैंडी-356 किलो का मंदा आया है। ऐसे में स्पिनिंग मिलों को मौजूदा भाव पर कॉटन की खरीद करने पर नुकसाना उठाना पड़ रहा है। इसलिए मिलें इस समय केवल जरुरत के हिसाब से ही कॉटन की खरीद कर रही हैं।

व्यापारियों के अनुसार अगर यूं कहें की धागा बिक नहीं रहा है, और कॉटन मिल नहीं रही है, तो उचित होगा। क्योंकि इस समय धागे में निर्यातकों के साथ ही स्थानीय मांग भी कमजोर बनी हुई है, जबकि जिनिंग मिलें भाव घटाकर गांठों की बिकवाली नहीं कर रही हैं। इसलिए हाजिर बाजार में कॉटन की कीमतों में बड़ी गिरावट की उम्मीद नहीं है।

आईसीई कॉटन वायदा की कीमतों में शुक्रवार को बड़ी गिरावट दर्ज की गई। आईसीई कॉटन के मई वायदा अनुबंध में 338 प्वाइंट की गिरावट आकर भाव 116.42 सेंट पर बंद हुए। जुलाई वायदा अनुबंध में 275 प्वांइट की गिरावट आकर भाव 113.11 सेंट रह गए, जबकि दिसंबर वायदा अनुबंध में दाम 93 प्वांइट नरम होकर भाव 100.65 सेंट रह गए। जानकारों के अनुसार डॉलर मजबूत से कॉटन की कीमतों में नरमी आई थी।

विदेशी बाजार में आई बड़ी गिरावट के बावजूद भी घरेलू बाजार में कॉटन की कीमतों में हल्की नरमी आई। गुजरात की मंडियों में कॉटन की कीमतों में 150 से 200 रुपये की गिरावट आकर ए ग्रेड कॉटन के दाम 76,500 से 77,500 रुपये, बी ग्रेड किस्म की कॉटन के भाव 75,000 से 75,500 रुपये और एवरेज ग्रेड की कॉटन के भाव 73,500 से 74,500 रुपये प्रति कैंडी क्वालिटीनुसार बोले गए।

चालू सीजन में देश में कपास का उत्पादन उद्योग के दूसरे अनुमान 348.13 लाख गांठ, एक गांठ-170 किलो से भी कम होने की आशंका है, यही कारण है कि उत्पादक मंडियों में कपास की दैनिक आवकों में कमी आई है, तथा होली के बाद दैनिक आवकों में और कमी आयेगी। देशभर की मंडियों में कुल आवक घटकर 60 से 65 हजार गांठ की ही रह गई है। जानकारों के अनसुार जिस तरह से देशभर में कोरोना के मामलों में कमी आई है, उसे देखते हुए चालू सीजन में कॉटन की कुल खपत पिछले साल की तुलना में बढ़ेगी, ऐसे में कॉटन के आयात में बढ़ोतरी का अनुमान है। विदेश में भी कॉटन के दाम तेज हैं, इसलिए आयात भी महंगा होगा। अत: घरेलू बाजार में कॉटन की कीमतों में अभी बड़ी गिरावट के आसार नहीं है।

पिछले साल कॉटन कारर्पोरेशन आफ इंडिया, सीसीआई एवं महाराष्ट्र फैडरेशन के साथ ही अन्य कंपनियों के पास कॉटन का बकाया स्टॉक अच्छा था, जबकि चालू सीजन में दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी से तेज बने रहे। इसलिए इन कंपनियों को एमएसपी पर खरीद नहीं करनी पड़ी। इसीलिए इनके पास कॉटन का बकाया स्टॉक सीमित मात्रा में ही है। उधर स्पिनिंग मिलों के पास भी डेढ़ से दो महीने की खपत की कॉटन का स्टॉक है, ऐसे में मिलों की मांग भी बनी रहने की उम्मीद है।

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