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21 अगस्त 2025

चालू वित्त वर्ष के पहले चार महीनों में डीओसी का निर्यात 2.4 फीसदी घटा - एसईए

नई दिल्ली। चालू वित्त वर्ष 2025-26 के पहले चार महीनें अप्रैल से जुलाई के दौरान डीओसी के निर्यात में 2.4 फीसदी की कमी आकर कुल निर्यात 1,516,982 टन का ही हुआ है, जबकि पिछले तेल वर्ष की समान अवधि में इनका निर्यात 1,554,426 टन का हुआ था।


सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, एसईए के अनुसार जुलाई में डीओसी के निर्यात में 7 फीसदी की कमी आकर कुल निर्यात 422,388 टन का ही हुआ है, जबकि पिछले साल जून में इसका निर्यात 451,794 टन का हुआ था।

भारत जुलाई 2023 से पहले 5 से 6 लाख टन डी-ऑयल राइस ब्रान का निर्यात मुख्य रूप से वियतनाम, थाईलैंड और अन्य एशियाई देशों को करता था और अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत का नाम एक विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता के रूप में था। सरकार ने 28 जुलाई को डी-ऑयल राइस ब्रान के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, इसका कारण घरेलू बाजार में चारा महंगा होना था, जिसमें डी-ऑयल राइस ब्रान एक प्रमुख खपत होती है। सरकार द्वारा प्रतिबंध को समय-समय पर बढ़ाया गया और अब यह 30 सितंबर, 2025 तक लागू है। जानकारों के अनुसार डी-ऑयल राइस ब्रान की कीमतें अब निचले स्तर पर हैं। डी-ऑयल राइस ब्रान की कीमतों में भारी गिरावट को देखते हुए, एसोसिएशन ने एक बार फिर सरकार से इसके निर्यात पर लगे प्रतिबंध को हटाने की मांग की है।

सरसों के तेल, विशेष रूप से पारंपरिक 'कच्ची घानी' किस्म की अच्छी घरेलू मांग के कारण, देशभर के उत्पादक राज्यों में इसकी पेराई में तेजी आई हैं, जिससे सरसों डीओसी का उत्पादन बढ़ा है। अत: सरसों डीओसी के निर्यात में बढ़ोतरी हुई है। चीन सरसों डीओसी के आयातक के रूप में प्रमुख देश रहा है। चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से जुलाई 2025 के दौरान चीन ने लगभग 277,000 टन भारतीय सरसों खली का आयात किया है। 14 अगस्त 2025 तक, भारतीय सरसों खली हैम्बर्ग एक्स-मिल मूल्य 236 अमेरिकी डॉलर प्रति टन के मुकाबले 195 अमेरिकी डॉलर प्रति टन थी। प्रमुख उपभोक्ता देशों के साथ भारत की लॉजिस्टिक निकटता के साथ इस मूल्य प्रतिस्पर्धात्मकता ने वैश्विक ऑयलमील व्यापार में एक विश्वसनीय, लागत प्रभावी आपूर्तिकर्ता के रूप में इसकी प्रतिष्ठा को मजबूत किया है।

कृषि मंत्रालय के अनुसार 15 अगस्त 2025 तक खरीफ तिलहनों की बुआई 178.64 लाख हेक्टेयर में हुई है, जो कि पिछले साल के 185.38 लाख हेक्टेयर से थोड़ी कम है। फसलवार आंकड़ों से पता चलता है कि मूंगफली की बुआई में थोड़ी कमी आई है और पिछले साल इसी अवधि के 46.07 लाख हेक्टेयर की तुलना में 43.98 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हो पाई है। सोयाबीन का रकबा 124.59 लाख हेक्टेयर से घटकर 119.82 लाख हेक्टेयर रह गया, जो संभवतः कीमतों में उतार-चढ़ाव और अन्य लाभकारी फसलों की प्रतिस्पर्धा के कारण है। कपास की बुवाई 107.87 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में हुई है, जो कि पिछले वर्ष की समान अवधि के 111.11 लाख हेक्टेयर की तुलना में कम है। कुल मिलाकर मजबूत मानसून ने खरीफ फसलों के उत्पादन के लिए एक ठोस आधार तैयार किया है, हालांकि फसल की कटाई तक मौसम कैसा रहता है इस पर उत्पादन के आंकड़े निर्भर करेंगे।

भारतीय बंदरगाह पर जुलाई में सोया डीओसी का भाव नरम होकर 385 डॉलर प्रति टन रह गया, जबकि जून में इसका दाम 389 डॉलर प्रति टन था। इस दौरान सरसों डीओसी का मूल्य जुलाई में भारतीय बंदरगाह पर घटकर 196 डॉलर प्रति टन का रह गया, जबकि जून में इसका भाव 198 डॉलर प्रति टन था। इस दौरान कैस्टर डीओसी का दाम जून के 79 डॉलर प्रति टन से तेज होकर जुलाई में 88 डॉलर प्रति टन का हो गया।

घरेलू बाजार में कॉटन की कीमतों की पर दबाव, आयात शुल्क हटाने का असर

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने कॉटन के आयात पर लगने वाले 11 फीसदी शुल्क को शून्य कर दिया है, साथ ही सीसीआई ने मंगलवार को कॉटन की बिक्री कीमतों में 600 रुपये प्रति कैंडी, एक कैंडी 356 किलो की कटौती कर दी है। इससे घरेलू बाजार में कॉटन की कीमतों पर दबाव है।


केंद्र सरकार ने घरेलू कपड़ा एवं परिधान उद्योग को अल्पकालीन राहत प्रदान करने के उद्देश्य से कॉटन के आयात को मौजूदा 11 फीसदी शुल्क को 42 दिनों की सीमित अवधि, 30 सितंबर तक छूट दे दी। केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड ने आयात शुल्क को तत्काल प्रभाव से हटा दिया है। यह कदम उद्योग की बढ़ती इनपुट लागत और कपड़ा उत्पादों पर अमेरिका द्वारा लगाए गए उच्च शुल्कों के प्रभाव को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच उठाया गया है।

केंद्र सरकार के अनुसार इस उपाय से संपूर्ण कपड़ा मूल्य श्रृंखला धागा, कपड़ा एवं वस्त्र उद्योग को लाभ होने की उम्मीद है। हालांकि उद्योग के विशेषज्ञों का मानना है कि तत्काल लाभ सीमित हो सकता है। आयातकों के अनुसार अमेरिका, ब्राजील और पश्चिम अफ़्रीकी देशों जैसे प्रमुख आपूर्तिकर्ताओं से प्राप्त कॉटन को शिपिंग और हैंडलिंग प्रक्रिया के कारण भारतीय बंदरगाहों तक पहुँचने में आमतौर पर 40-50 दिन लगते हैं। केंद्र सरकार ने शुल्क छूट केवल 30 सितंबर तक ही मान्य होने के कारण, यह छूट संभवतः उन्हीं के लिए फायदेमंद होगी जोकि पहले से सौदे हो चुके हैं ना कि नए होने वाले सौदों के लिए।

उद्योग विशेषज्ञों के अनुसार इस छोटी सी अवधि में केवल 1.0 से 1.5 लाख गांठ, एक गांठ 170 किलो की ही आयात में बढ़ोतरी हो सकती है।

कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) ने मंगलवार के कॉटन की बिक्री कीमतों में 600 रुपये प्रति कैंडी की कटौती कर दी। यह कदम सरकार द्वारा 30 सितंबर तक कॉटन के आयात शुल्क हटाने के फैसले के बाद उठाया गया है।

सीसीआई द्वारा संशोधित निविदा भाव फसल सीजन 2024-25 की खरीदी कॉटन के लिए 54,300 रुपये से 58,000 रुपये प्रति कैंडी के बीच तय गई हैं, जो कि स्टेपल लेंथ और वैरायटी पर निर्भर करता है

अकोला में 30 एमएम की कॉटन की बिक्री निविदा 57,400 प्रति कैंडी तय की गई हैं, जबकि आदिलाबाद में 31 एमएम की कॉटन की बिक्री निविदा 58,000 प्रति कैंडी तय की गई। गुजरात के राजकोट और अहमदाबाद में कॉटन के बिक्री दाम 55,900 से 57,400 रुपये प्रति कैंडी के बीच तय किए गए हैं।

व्यापारियों के अनुसार आयात शुल्क हटने से विदेशी कॉटन सस्ती हो गई है, जिससे घरेलू बाजार में इसकी कीमतों पर दबाव बन गया है। यही कारण है कि सीसीआई को बिक्री कीमतों में कटौती करनी पड़ी। माना जा रहा है कि आगे सीसीआई बिक्री कीमतों में और भी कटौती कर सकती है।

नकली खाद एवं बीज बेचने वालों के खिलाफ होगी कड़ी कार्रवाई - शिवराज सिंह

नई दिल्ली। नकली खाद एवं बीज तथा कीटनाशकों की बिक्री के मामले में केंद्रीय कृषि मंत्री कड़ा रुख अपनाया है। दिल्ली में कृषि विभाग और आईसीएआर के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ उच्चस्तरीय बैठक के बाद उन्होंने कहा कि उर्वरक, बीज या पेस्टीसाइड के घटिया या नकली मिलने की स्थिति में फैक्ट्री और दुकानों को सील किया जाए।

शिवराज सिंह ने नई दिल्ली में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण विभाग व भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के वरिष्ठ अधिकारियों की इस संबंध में उच्चस्तरीय बैठक लेकर नकली खाद-बीज व कीटनाशक बेचने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के निर्देश दिए है। उन्होंने कहा कि किसानों की फसलें खराब होने को सभी अधिकारी अत्यंत गंभीरता से अधिकारी लें, ताकि किसानों को नुकसान से बचाया जा सकें। इस अवसर पर उन्होंने व्यापक पैमाने पर छापेमारी और खेतों में जाकर जांच करने के निर्देश भी दिए।

बैठक में केंद्रीय मंत्री ने कहा कि नकली खाद बीज और कीटनाशकों के कारण कोई एक नहीं, बल्कि विभिन्न जिलों में सैकड़ों किसान परेशान हो रहे हैं। कई जगह से ऐसी शिकायतें आती है, कि किसान बोलते हैं कि खेत में दवाई डाल रहे हैं पर इसका असर नहीं हो रहा है, मैं तो बहुत चिंतित हूं। इन किसानों की पीड़ा को गंभीरता से समझा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि मैंने खुद किसान के खेत में जाकर देखा, एक दवाई किसान ने डाली, जिसके कारण सोयाबीन की फसल पूरी तरह से नष्ट हो गई। इस अवसर पर सैकड़ों किसान वहां मौजूद थे। इन सबने मुझे शिकायत की, परेशानी बताईं। उन्होंने कहा कि ऐसे घटिया या नकली दवाई और खाद-बीज बेचने वालों को बिल्कुल बख्शा नहीं जाना चाहिए, इनके खिलाफ कठोरतम कार्रवाई सुनिश्चित की जाएं। केंद्रीय मंत्री ने कृषि अधिकारियों से इस संबंध में अब तक की गई कार्रवाई की जानकारी लेते हुए कहा कि नकली खाद, बीज और कीटनाशक किसानों के लिए अभिशाप है।

केंद्रीय कृषि मंत्री ने निर्देश दिए कि कृषि विभाग का अमला राज्य सरकारों के साथ किसानों के खेतों में जाकर जांच करें और अभियान चलाकर व्यापक पैमाने पर आकस्मिक छापेमारी कर कड़ी कार्रवाई करें। सैंपल लिए जाएं व फेल होने पर कार्रवाई करें। उन्होंने कहा कि जो कंपनी या निर्माता गड़बड़ियां कर रहे हैं, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करेंगे तो गड़बड़ करने वाले लोगों में भय पैदा होगा और किसानों को राहत मिलेगी। उन्होंने कहा कि गड़बड़ी मिलने पर फैक्ट्रियां व दुकानें सील की जाएं।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि अगर कहीं कुछ गलत हो रहा हो तो किसानों के हित में कड़ी कार्रवाई करना हमारा धर्म है। उन्होंने इस संबंध में किसानों की शिकायतों को भी सुनने के साथ उनका पूरा समाधान जल्द से जल्द करने के निर्देश दिए, साथ ही कहा कि प्राप्त शिकायतों की वे स्वयं नियमित समीक्षा करेंगे। केंद्रीय मंत्री ने इस संबंध में राज्य सरकारों के साथ बात करके किसानों के मामले में पूरी संवेदना के साथ प्रभावी कार्रवाई करने को कहा। उन्होंने इस संबंध में किसानों के बीच जागरूकता का प्रसार भी व्यापक रूप से करने के दिशा-निर्देश दिए, ताकि किसान परेशान होने से बच सकें।

केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि विकसित कृषि संकल्प अभियान के दौरान भी किसानों के बीच प्रचार-प्रसार किया जाए, ताकि किसान नुकसान और परेशानी से बच सकें। उन्होंने एक अन्य विषय में पॉली हाउस, ग्रीन हाउस, मैकेनाइजेशन के लिए केंद्र सरकार द्वारा दी जा रही सब्सिडी सहायता का कृषि विभाग की टीमों के द्वारा सत्यापन करने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि यह चेक किया जाना चाहिए कि पॉली हाउस, ग्रीन हाउस, मैकेनाइजेशन के लिए केंद्र से दी जा रही सब्सिडी का लाभ किसानों को वास्तविक रूप से कितना मिल रहा है। केंद्र से सब्सिडी की योजनाओं का लाभ किसान को समय से मिलना चाहिए। 


कॉटन का आयात 157 फीसदी बढ़ने का अनुमान - सीएआई

नई दिल्ली। पहली अक्टूबर 2024 से शुरू हुए चालू फसल सीजन 2024-25 के दौरान देश में कॉटन का आयात 156.57 फीसदी बढ़कर 39 लाख गांठ, एक गांठ 170 किलो होने का अनुमान है जबकि फसल सीजन 2023-24 के दौरान कुल आयात 15.20 लाख गांठ कॉटन का ही हुआ था। उद्योग के अनुसार जुलाई अंत तक कॉटन का आयात बढ़कर 33 लाख गांठ का हो चुका है।


कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया, सीएआई के अनुसार चालू फसल सीजन में जुलाई अंत तक देश से 18 लाख गांठ कॉटन के निर्यात का अनुमान है, जबकि 17 लाख गांठ के निर्यात का अनुमान था। जुलाई अंत तक देश से 16 लाख गांठ कॉटन का निर्यात हो चुका है।

पहली अक्टूबर 2024 से शुरू हुए चालू फसल सीजन 2024-25 में देश में कॉटन का उत्पादन 311.40 लाख गांठ, एक गांठ-170 किलो होने का अनुमान है।

सीएआई के अनुमान के अनुसार पंजाब में कॉटन का उत्पादन फसल सीजन 2024-25 में 1.50 लाख गांठ, हरियाणा में 8.05 लाख गांठ, अपर राजस्थान में 10.35 लाख गांठ एवं लोअर राजस्थान के 9.65 लाख गांठ को मिलाकर कुल 29.55 लाख गांठ होने का अनुमान है।

सीएआई के अनुसार मध्य भारत के राज्यों गुजरात में चालू फसल सीजन में 77.50 लाख गांठ, महाराष्ट्र में 90 लाख गांठ तथा मध्य प्रदेश के 19 लाख गांठ को मिलाकर कुल 186.50 लाख गांठ के उत्पादन का अनुमान है।

दक्षिण भारत के राज्यों में तेलंगाना में चालू फसल सीजन में 49.50 लाख गांठ, आंध्र प्रदेश में 12 लाख गांठ एवं कर्नाटक में 24 लाख गांठ तथा तमिलनाडु के 4 लाख गांठ को मिलाकर कुल 89.50 लाख गांठ के कॉटन के उत्पादन का अनुमान है।

ओडिशा में चालू खरीफ में 3.85 लाख गांठ एवं अन्य राज्यों में 2 लाख गांठ कॉटन के उत्पादन का अनुमान है।

सीएआई के अनुसार पहली अक्टूबर 2024 को कॉटन का बकाया स्टॉक 39.19 लाख गांठ का बचा हुआ था, जबकि 311.40 लाख गांठ के उत्पादन का अनुमान है। चालू सीजन में करीब 39 लाख गांठ कुल कॉटन का आयात होने की उम्मीद है। ऐसे में कुल उपलब्धता 389.59 लाख गांठ की बैठेगी।

चालू फसल सीजन में कॉटन की कुल घरेलू खपत 314 लाख गांठ होने का अनुमान है, जबकि इस दौरान 18 लाख गांठ के निर्यात की उम्मीद है।

सीएआई के अनुसार उत्पादक मंडियों में जुलाई अंत तक 302.24 लाख गांठ कॉटन की आवक हो चुकी है, जिसमें से 261.66 लाख गांठ की खपत हो चुकी है। अत: पहली अगस्त को मिलों के पास 32.50 लाख गांठ एवं सीसीआई, महाराष्ट्र फेडरेशन, एमएनसी, जिनर्स एवं निर्यातकों के साथ ही व्यापारियों के पास 64.27 लाख गांठ कॉटन का बकाया स्टॉक है।

चालू तेल वर्ष के पहले 9 महीनों में खाद्वय एवं अखाद्य तेलों का आयात 9 फीसदी कम - एसईए

नई दिल्ली। चालू तेल वर्ष के पहले 9 महीनों नवंबर-24 से जुलाई-25 के दौरान देश में खाद्वय एवं अखाद्य तेलों का आयात 9 फीसदी कम होकर 11,013,634 टन का ही हुआ है, जबकि पिछले तेल वर्ष की समान अवधि में इनका आयात 12,124,182 टन का हुआ था।


सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार चालू तेल वर्ष 2024-25 के जुलाई 2025 में खाद्वय एवं अखाद्य तेलों का आयात 17 फीसदी कम होकर 1,579,041 टन का ही हुआ है, जबकि पिछले साल जुलाई में इनका आयात 1,895,076 टन का हुआ था। इस दौरान खाद्वय तेलों का आयात 1,548,041 टन का एवं अखाद्य तेलों का आयात 31,000 टन का हुआ है।

इसके अलावा नेपाल से साफ्टा समझौते के तहत देश में मुख्य रूप से रिफाइंड सोया तेल और सूरजमुखी तेल तथा थोड़ी मात्रा में आरबीडी पामोलिन और रेपसीड तेल का आयात शून्य शुल्क पर हुआ है। नवंबर 2024 से जून 2025 (8 महीने) के दौरान नेपाल से कुल आयात 5.21 लाख टन का हुआ।

अत: नवंबर 2024 से जुलाई 2025 के दौरान देश में कुल खाद्य तेलों का आयात 107.56 लाख टन + नेपाल से 5.21 लाख टन को मिलाकर कुल आयात 112.77 लाख टन का हुआ है।

एसईए के अनुसार सीपीओ और आरबीडी पामोलिन के बीच आयात शुल्क के अंतर को 8.25 फीसदी से बढ़ाकर 19.25 फीसदी करने के बाद, 31 मई, 2025 से रिफाइंड तेल के आयात पड़ते महंगे हुए है। अत: जुलाई 2025 के दौरान इसका आयात लगभग 5,000 टन कम हो गया, जबकि पिछले महीने जून 2025 में 1.63 लाख टन और पिछले साल जुलाई 2024 में 1.36 लाख टन का आयात हुआ था। शुल्क अंतर बढ़ाने का केंद्र सरकार का फैसला एक साहसिक और समय पर उठाया गया कदम है। उसने रिफाइंड पामोलिन के आयात को हतोत्साहित करना शुरू कर दिया है और मांग को वापस क्रूड तेल की ओर मोड़ दिया है। घरेलू रिफाइनिंग उद्योग को इसका फायदा मिलेगा।

चालू तेल वर्ष की पहली तिमाही (नवंबर 2024 - जनवरी 2025) के दौरान सोया और सूरजमुखी तेल के अधिक आयात के कारण कुल खाद्वय तेलों का आयात 6 फीसदी बढ़ा। दूसरी तिमाही (फरवरी 2025 - अप्रैल 2025) में आरबीडी पामोलिन और सीपीओ की ऊंची कीमतों के कारण खाद्वय तेलों का आयात 20 फीसदी कम हुआ और तीसरी तिमाही (मई 2025 - जुलाई 2025) में, खाद्वय तेलों का आयात बढ़कर 43.15 लाख टन हो गया। हालांकि पिछले वर्ष की तीसरी तिमाही की तुलना में इसमें 13 फीसदी की गिरावट आई है, जिसका मुख्य कारण पिछले वर्ष जुलाई 2024 में 18.6 लाख टन का रिकॉर्ड आयात हुआ था।

कृषि मंत्रालय के अनुसार 8 अगस्त 2025 तक, खरीफ तिलहनी फसलों की बुआई घटकर 171.03 लाख हेक्टेयर में हुई है, जो कि पिछले वर्ष के 178.14 लाख हेक्टेयर की तुलना में 7.11 लाख हेक्टेयर कम है। इस दौरान मूंगफली की बुआई 41.56 लाख हेक्टेयर (पिछले वर्ष के 43.45 लाख हेक्टेयर की तुलना में कम), सोयाबीन की 118.54 लाख हेक्टेयर ( पिछले साल की समान अवधि के 123.45 लाख हेक्टेयर की तुलना में कम) और कपास की 105.87 लाख हेक्टेयर में (पिछले साल के 108.43 लाख हेक्टेयर की तुलना में कम) है। सोयाबीन और कपास की बुआई में कमी का कारण मक्का की बुआई में हुई बढ़ोतरी है।

जून के मुकाबले जुलाई में आयातित खाद्वय तेलों के दाम भारतीय बंदरगाह पर तेज हुए हैं। जुलाई में आरबीडी पामोलिन का भाव भारतीय बंदरगाह पर बढ़कर 1,052 डॉलर प्रति टन हो गया, जबकि जून में इसका भाव 1,006 डॉलर प्रति था। इसी तरह से क्रूड पाम तेल का भाव भारतीय बंदरगाह पर जुलाई में बढ़कर 1,095 डॉलर प्रति टन हो गया, जबकि जून में इसका भाव 1,055 डॉलर प्रति टन था। क्रूड सोया तेल का भाव जून में भारतीय बंदरगाह पर 1,122 डॉलर प्रति टन था, जोकि जुलाई में बढ़कर 1,191 डॉलर प्रति टन हो गया। 

अक्टूबर से जुलाई में सोया डीओसी का निर्यात 11 फीसदी से ज्यादा घटा - सोपा

नई दिल्ली। चालू फसल सीजन 2024-25 के पहले 10 महीनों अक्टूबर 24 से जुलाई 25 के दौरान सोया डीओसी का निर्यात 11.22 फीसदी घटकर केवल 17.08 लाख टन का ही हुआ है, जबकि पिछले फसल सीजन की समान अवधि में इसका निर्यात 19.24 लाख टन का हुआ था।


सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, सोपा के अनुसार चालू फसल सीजन के अक्टूबर से जुलाई के दौरान 75.75 लाख टन सोया डीओसी का उत्पादन हुआ है, जबकि नई सीजन के आरंभ में 1.33 लाख टन का बकाया स्टॉक बचा हुआ था। इस दौरान 17.08 लाख टन सोया डीओसी का निर्यात हुआ है जबकि 6.85 लाख टन की खपत फूड में एवं 52 लाख टन की फीड में हुई है। अत: पहली अगस्त को मिलों के पास 1.17 लाख टन सोया डीओसी का बकाया स्टॉक बचा हुआ है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 1.98 लाख टन से कम है।

सोपा के अनुसार फसल सीजन 2024-25 के पहले 10 महीनों में देशभर की उत्पादक मंडियों में 96 लाख टन सोयाबीन की आवक हुई है, जिसमें से जुलाई अंत तक 96 लाख टन की ही पेराई हुई है। इस दौरान 4.55 लाख टन सोयाबीन की खपत डारेक्ट हुई है जबकि 0.10 लाख टन का निर्यात हुआ है। अत: प्लांटों एवं व्यापारियों तथा किसानों के पास पहली अगस्त को 15.13 लाख टन सोयाबीन का बकाया स्टॉक बचा हुआ है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 27.11 लाख टन की तुलना में कम है।

सोपा के अनुसार चालू फसल सीजन 2024-25 में देश में सोयाबीन का उत्पादन 125.82 लाख टन का हुआ है, जबकि 8.94 लाख टन का बकाया स्टॉक नई फसल की आवक के समय बचा हुआ था। अत: कुल उपलब्धता 134.76 लाख टन की बैठी है, जबकि चालू सीजन में करीब 5 हजार टन सोयाबीन के आयात का अनुमान है। पिछले फसल सीजन में 118.74 लाख टन सोयाबीन का उत्पादन हुआ था, जबकि नई फसल की आवक के समय 24.07 लाख टन का बकाया स्टॉक बचा हुआ था। अत: पिछले साल कुल उपलब्धता 142.81 लाख टन की बैठी थी, जबकि 6.25 लाख टन का आयात हुआ था।

सोपा के अनुसार चालू खरीफ में 13 अगस्त तक देशभर में सोयाबीन की बुआई 115.20 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, जबकि कृषि मंत्रालय के अनुसार बुआई 119.51 लाख हेक्टेयर में हुई है। 

13 अगस्त 2025

खरीफ फसलों की बुआई 995 लाख हेक्टेयर के पार, धान की रोपाई ज्यादा

नई दिल्ली। चालू खरीफ सीजन में फसलों की बुआई की 4.02 फीसदी बढ़कर 995.63 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई केवल 957.15 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी। चालू खरीफ में जहां धान की रोपाई बढ़ी है, वहीं तिलहन के साथ ही कपास की बुआई घटी है।


कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ में 8 अगस्त तक देशभर के राज्यों में धान की रोपाई बढ़कर 364.80 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसकी रोपाई केवल 325.36 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।

दलहनी फसलों की बुआई चालू खरीफ सीजन में थोड़ी बढ़कर 106.68 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में इनकी बुआई 106.52 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई थी। इस दौरान अरहर की बुआई 40.86 लाख हेक्टेयर में, मूंग की बुआई 33.21 लाख हेक्टेयर में और उड़द की 20.15 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले खरीफ सीजन में इस समय तक इनकी बुआई क्रमश: 42.87 लाख हेक्टेयर में, 32.33 लाख हेक्टेयर और 19.91 लाख हेक्टेयर में हुई थी।

मोठ की बुवाई चालू खरीफ में बढ़कर 9.06 लाख हेक्टेयर में तथा अन्य दलहन की 3.24 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई क्रमश: 8.04 और 3.21 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।

चालू खरीफ सीजन में तिलहनी फसलों की बुआई घटकर 175.61 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय 182.43 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। तिलहनी फसलों में मूंगफली की बुआई 43.23 लाख हेक्टेयर में, सोयाबीन की 119.51 लाख हेक्टेयर में तथा सनफ्लावर की 61,000 हेक्टेयर में हुई है। पिछले साल की समान अवधि में इनकी बुआई क्रमश: 45.06 लाख हेक्टेयर में, 124.24 लाख हेक्टेयर में तथा 68,000 हेक्टेयर में ही हुई थी।

शीशम सीड की बुआई चालू खरीफ में 8.89 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 9.81 लाख हेक्टेयर की तुलना में कम है। कैस्टर सीड की बुआई 3.19 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक 2.32 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हो पाई थी।

मोटे अनाजों की बुआई बढ़कर चालू खरीफ सीजन में 178.73 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई केवल 170.96 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई थी। मोटे अनाजों में मक्का की 91.89 लाख हेक्टेयर में तथा बाजरा की 64.86 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इनकी बुआई क्रमश: 83.15 और 65.76 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी। ज्वार की बुआई 13.69 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 13.96 लाख हेक्टेयर की तुलना में घटी है।

चालू खरीफ में गन्ने की बुआई 57.31 लाख हेक्टेयर में और कपास की 106.96 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले खरीफ सीजन की समान अवधि में इनकी बुआई क्रमश: 55.68 लाख हेक्टेयर और 110.49 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।

सीसीआई 71.47 लाख गांठ कॉटन की कर चुकी है बिक्री, सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में

नई दिल्ली। कॉटन कारपोरेशन ऑफ इंडिया, सीसीआई चालू फसल सीजन 2024-25 के दौरान खरीदी हुई 71,47,600 गांठ, एक गांठ - 170 किलो कॉटन की बिक्री 8 अगस्त तक घरेलू बाजार में कर चुकी है। अत: निगम के पास अब 29 लाख गांठ से कम का स्टॉक बचा हुआ है।


सूत्रों के अनुसार सीसीआई ने चालू फसल सीजन 2024-25 की खरीदी हुई सबसे ज्यादा कॉटन की बिक्री महाराष्ट्र में 26,65,400 गांठ की है। इसके अलावा निगम ने तेलंगाना में 21,15,100 गांठ, गुजरात में 12,10,300 गांठ तथा कर्नाटक में 4,57,300 गांठ कॉटन 8 अगस्त तक बेची है। अन्य राज्यों मध्य प्रदेश में निगम ने 2,92,900 गांठ, ओडिशा में 1,67,400 गांठ के अलावा आंध्र प्रदेश में 1,27,900 गांठ तथा हरियाणा में 56,800 गांठ के अलावा राजस्थान में 52,700 गांठ तथा पंजाब में 1,800 गांठ की बिक्री की है।

व्यापारियों के अनुसार भारतीय कॉटन बाजार में इस समय अनिश्चितता बनी हुई है, क्योंकि एक तरफ जहां विश्व बाजार में इसके दाम घरेलू बाजार की तुलना में नीचे बने हुए है वहीं दूसरी तरफ अमेरिका द्वारा 50 फीसदी टैरिफ लगा देने से गारमेंट उत्पादों का निर्यात भी प्रभावित होने का डर है। सूती धागे की स्थानीय एवं निर्यात मांग कमजोर है जबकि उत्तर भारत के राज्यों में नई फसल की आवक सितंबर में तथा अन्य राज्यों में अक्टूबर में बनेगी। यही हालात बने रहे तो पहली अक्टूबर 2025 से शुरू होने वाले नए सीजन में सीसीआई को कॉटन की खरीद चालू सीजन में खरीद गई 100 लाख गांठ से भी ज्यादा मात्रा में करनी पड़ सकती है। अत: नई फसल की आवक बनने पर कॉटन की कीमतों में तेजी, मंदी काफी हद तक सीसीआई की खरीद कैसी होती है इस पर भी निर्भर करेगी।

स्पिनिंग मिलों की मांग सीमित होने के कारण सोमवार को शाम के सत्र में गुजरात के साथ ही उत्तर भारत के राज्यों में कॉटन की कीमत स्थिर बनी रही।

गुजरात के अहमदाबाद में 29 शंकर-6 किस्म की कॉटन के भाव सोमवार को 56,500 से 56,700 रुपये प्रति कैंडी, एक कैंडी-356 किलो पर स्थिर हो गए।

पंजाब में रुई हाजिर डिलीवरी के भाव 5,970 से 5,980 रुपये प्रति मन बोले गए। हरियाणा में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के भाव 5,840 से 5,850 रुपये प्रति मन बोले गए। ऊपरी राजस्थान में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के दाम 5,980 से 6,000 रुपये प्रति मन बोले गए।लोअर राजस्थान में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के दाम 57,100 से 57,200 रुपये कैंडी बोले गए।

देशभर की मंडियों में कपास की आवक 5,550 गांठ, एक गांठ-170 किलो की हुई।

घरेलू वायदा कारोबार में कॉटन की कीमतों में गिरावट का रुख रहा। एनसीडीईएक्स पर अप्रैल 26 महीने के वायदा अनुबंध में कपास के दाम 6 रुपये कमजोर होकर 1,584 रुपये प्रति 20 किलो रह गए। आईसीई के इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग में कॉटन की कीमतों में तेजी का रुख रहा।

कृषि मंत्रालय के अनुसार 1 अगस्त तक चालू खरीफ सीजन देशभर में कपास की बुआई 2.36 फीसदी कम होकर 105.87 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है, जबकि पिछले साल इस समय तक 108.43 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी थी।

नेपाल से खाद्वय तेलों के आयात से भारतीय रिफाइनर्स की चिंता बढ़ी

नई दिल्ली। भारतीय खाद्वय तेल रिफाइनर्स का कहना है कि नेपाल से सोया, सनफ्लावर और पाम तेल का री-एक्सपोर्ट तेजी से बढ़ रहे हैं। ये तेल क्रूड फर्म में थर्ड कंट्रीज से आयात करके नेपाल में सीमित स्तर की प्रोसेसिंग के बाद साउथ एशियन फ्री ट्रेड एरिया (साफ्टा) के तहत ड्यूटी-फ्री शुल्क में भारत को आयात हो रहा हैं। इससे घरेलू रिफाइनिंग मार्जिन और किसानों की आय पर सीधा प्रेशर पड़ रहा है, क्योंकि नॉन साफ्टा ओरिजिन्स पर लगने वाले हाई टैरिफ यहां समाप्त हो जाते हैं।


नेपाल से पहले 10 महीनों में खाद्वय तेल निर्यात में तेजी आई ह। सिर्फ भारत को सोया तेल निर्यात 0.56 अरब अमेरिकी डॉलर (मात्रा 3,74,086 टन) और सनफ्लावर ऑयल 71.19 मिलियन अमेरिकी डॉलर (मात्रा 4,57,760 टन) का हुआ है। इन री-एक्सपोर्ट के लिए क्रूड तेल ज्यादातर अर्जेंटीना, ब्राज़ील, यूक्रेन, इंडोनेशिया और थाईलैंड से नेपाल आयात करता है, जिसे नेपाल में सीमित स्तर की प्रोसेसिंग कर भारत में भेजा जाता है। इंडस्ट्री एस्टीमेट्स के मुताबिक वैल्यू एडिशन अक्सर 30 फीसदी साफ्टा थ्रेशहोल्ड से कम होता है, जो लगभग रीपैकेजिंग जैसा है।

भारतीय खाद्वय तेल रिफाइनर्स का मानना है कि ये इनफ्लो डोमेस्टिक प्राइसेज को डिस्टॉर्ट करते हैं, लोकल रिफाइंनिंग क्रशिंग की डिमांड घटाते हैं, और सोया व सनफ्लावर उत्पादक किसानों पर भी इसका सीधा असर पड़ता है। क्योंकि ऑफ सीजन में बड़ी मात्रा आने से प्रोक्योरमेंट प्लानिंग भी मुश्किल हो जाती है।

मार्च में भारत ने आयात नियमों में सख्ती की थी, जिसमें सर्टिफिकेट ऑफ ओरिजिन की जगह स्ट्रिक्टर प्रूफ ऑफ ओरिजिन रिक्वायरमेंट लागू की गई थी, ताकि साफ्टा का मिसयूज रोका जा सके। लेकिन इंडस्ट्री का कहना है कि जब तक एनफोर्समेंट स्ट्रॉन्ग नहीं होता और वैल्यू एडिशन क्लेम्स वेरिफाई नहीं होते, नेपाल का ये री-एक्सपोर्ट मॉडल भारतीय खाद्वय तेल रिफाइनर्स सेक्टर और फार्म-गेट प्राइसेज पर प्रेशर बनाए रखेगा।

आने वाली पीढ़ियों को ध्यान में रखते हुए की प्राकृतिक कृषि मिशन की शुरुआत - शिवराज सिंह

नई दिल्ली, 7 अगस्त 2025। स्वामीनाथन के बताए रास्ते पर चलते हुए हम देश व दुनिया में भूख और अभाव नहीं होने देंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज पूसा, नई दिल्ली में भारत रत्न डा. एम.एस. स्वामीनाथन शताब्दी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन किया। इस अवसर पर केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने समारोह की अध्यक्षता की।


केंद्रीय कृषि मंत्री ने जीवन की सार्थकता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि दूसरों के लिए जीना ही असली जीवन है, जो देश के लिए जीता है, समाज के लिए जीता है, औरों के लिए जीता है, दुनिया के लिए जीता है, वही सही अर्थों में जीवन का अर्थ सिद्ध कर पाता है। डा. स्वामीनाथन  ऐसे ही व्यक्तित्व के धनी थे, जिन्होंने अपना जीवन दूसरों के लिए समर्पित कर दिया।

चौहान ने स्वामीनाथन के योगदान का स्मरण करते हुए कहा कि 1942-43 में बंगाल के अकाल के कारण जब लाखों लोग भुखमरी के कगार पर पहुंच गए थे, तब स्वामीनाथन का हृदय व्यथित हो गया। उन्होंने अपने आप को खेती, किसान और भुखमरी मिटाने के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने कहा कि केवल इतना स्मरण दिलाना चाहता हूं कि 1966 में मैक्सिको से अठारह हजार टन मैक्सिकन गेहूं आया था, जिसे मिश्रित करके पंजाब की किस्मों के साथ एक नई संकर किस्म गेहूं की विकसित की थी और उसी किस्म के कारण एक साल में गेहूं का उत्पादन पांच मिलियन टन से बढ़कर सत्रह बिलियन टन हो गया था। स्वामीनाथन हरित क्रांति के जनक थे और उसके बाद उन्होंने जो कृषि विज्ञान के लिए व्यवस्था बनाई वह आज सुदृढ़ता से सही दिशा में काम कर रही है।

केंद्रीय मंत्री ने कृषि विकास व किसान कल्याण की दिशा में सरकार की प्रतिबद्वता दोहराते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का हर शब्द हमारे लिए मंत्र जैसा होता है। एक साल पहले जब प्रधानमंत्री इस पूसा परिसर में पधारे थे तब उन्होंने हमें कहा था कि लैब टू लैंड जोड़ो, विज्ञान और किसान जब तक नहीं मिलेंगे, तब तक खेती सही दिशा में आगे नहीं बढ़ेगी। प्रधानमंत्री की प्रेरणा से आज लैब टू लैंड जोड़ने सहित अनेक अभियान चलाए जा रहे हैं। उसमें से एक कृषि चौपाल और दूसरा विकसित कृषि संकल्प अभियान भी है। केंद्रीय मंत्री ने बताया कि विकसित कृषि संकल्प अभियान के तहत वैज्ञानिकों की 2,170 टीमों का गठन किया गया था। ये टीमें चौसठ हजार से ज्यादा गांवों में गईं और एक करोड़ से ज्यादा किसानों के साथ सीधा संवाद किया।

केंद्रीय मंत्री ने खाद्यान्न वृद्धि का जिक्र करते हुए बताया कि देश में खाद्यान्न की स्थिति बहुत बेहतर हो गई है। चावल के मामले में हम सरप्लस हैं, गेहूं में हम आत्मनिर्भर है और खाद्यान्न भंडारण की व्यवस्था की जा रही है। प्रधानमंत्री के नेतृत्व में आज 80 करोड़ लोगों को नि:शुल्क राशन देने का कम हो रहा है।    

शिवराज सिंह चौहान ने प्रति हेक्टेयर दलहन और तिलहन की उत्पादकता बढ़ाने की बात करते हुए कहा कि सोयाबीन हो, मूंगफली हो, सरसों हो, तिल हो या चना मसूर, उड़द, अरहर हो, उसमें उत्पादन कैसे बढ़े, इस दिशा में भी प्रधानमंत्री के नेतृत्व में तत्परता से काम किया जा रहा है।

केंद्रीय मंत्री ने बताया कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक प्राकृतिक कृषि मिशन की शुरुआत की गई है। आने वाली पीढ़ियों के लिए भी धरती से अन्न, फल और सब्जियों की उपज होती रहें, इसके लिए इस मिशन के माध्यम से वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ गंभीरता से काम किया जा रहा है।

यह सम्मेलन कृषि विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी हस्ती एवं खाद्य सुरक्षा के अग्रदूत, प्रो. डा. एम.एस. स्वामीनाथन की जन्मशती के उपलक्ष्य में, एम.एस. स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन, केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी के सहयोग से 7-9 अगस्त, 2025 पूसा कैंपस, नई दिल्ली में आयोजित किया गया है। सम्मेलन का थीम "सदाबहार क्रांति - जैव-सुख का मार्ग" है। यहां शिवराज सिंह ने प्रो. स्वामीनाथन के जीवन परिदृश्य और उनके अमूल्य योगदान को दर्शाती हुई प्रदर्शनी का भी अवलोकन किया।

07 अगस्त 2025

राजस्थान में खरीफ की बुआई 93 फीसदी पूरी, कपास के साथ दलहन एवं तिलहन की बढ़ी

नई दिल्ली। चालू खरीफ सीजन में राजस्थान में फसलों की बुवाई 93 फीसदी क्षेत्रफल में पूरी हो चुकी है। दलहन एवं तिलहन के साथ ही मोटे अनाज तथा कपास की बुआई में बढ़ोतरी हुई है।


राज्य के कृषि निदेशालय के अनुसार 4 अगस्त तक राज्य में खरीफ फसलों की बुआई 153.10 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में केवल 147.12 लाख हेक्टेयर में ही बुआई थी। चालू खरीफ सीजन में राज्य में 165.39 लाख हेक्टेयर में फसलों की बुआई का लक्ष्य तय किया है।

चालू खरीफ सीजन में मोटे अनाजों की बुआई बढ़कर 61.84 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में इनकी बुआई केवल 60.08 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी। मोटे अनाजों में बाजरा की 42.09 लाख हेक्टेयर में तथा मक्का की 9.77 लाख हेक्टेयर में हुई है। इसके अलावा धान की रोपाई 3.40 लाख हेक्टेयर और ज्वार की बुआई 6.52 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है। पिछले साल की समान अवधि में बाजरा और मक्का की बुआई क्रमश: 41.41 लाख हेक्टेयर में तथा 9.54 लाख हेक्टेयर में हुई थी।

दलहनी फसलों की बुआई चालू खरीफ सीजन में बढ़कर 36.06 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 33.06 लाख हेक्टेयर की तुलना में ज्यादा है। खरीफ दलहन में मूंग की बुआई 23.23 लाख हेक्टेयर में और मोठ की 8.98 लाख हेक्टेयर तथा उड़द की 3.12 लाख हेक्टेयर तथा छौला की 57 हजार हेक्टेयर में हो चुकी है। पिछले साल इस समय तक मूंग की बुआई 21.67 लाख हेक्टेयर और मोठ की 7.93 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।

चालू खरीफ सीजन में तिलहनी फसलों की बुआई राज्य में बढ़कर 21.92 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक केवल 21.60 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हो पाई थी। तिलहनी फसलों में मूंगफली की बुआई 9.67 लाख हेक्टेयर में, सोयाबीन की 9.77 लाख हेक्टेयर में तथा शीशम की 1.85 लाख हेक्टेयर में और कैस्टर सीड की 26 हजार हेक्टेयर में हुई है।

चालू खरीफ में कपास की बुआई राज्य में 6.28 लाख हेक्टेयर में तथा ग्वार सीड की बुआई 23.44 लाख हेक्टेयर में और गन्ने की बुआई 4 हजार हेक्टेयर में हो चुकी है। पिछले साल की समान अवधि में इनकी बुआई क्रमश: 5.11 लाख हेक्टेयर में, 23.39 लाख हेक्टेयर और गन्ने की 5 हजार हेक्टेयर में हुई थी।

खरीफ फसलों की बुआई 932 लाख हेक्टेयर के पार, कपास एवं दलहन तथा तिलहन की कम

नई दिल्ली। चालू खरीफ सीजन में फसलों की बुआई की 5.06 फीसदी बढ़कर 932.93 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई केवल 887.97 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी। इस दौरान जहां कपास की बुआई में 2.36 फीसदी की कमी आई है, वहीं धान एवं मोटे अनाजों की बुआई बढ़ी है। दलहन तथा तिलहनी फसलों की बुआई पीछे चल रही है।


कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ में 1 अगस्त तक देशभर के राज्यों में धान की रोपाई बढ़कर 319.40 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसकी रोपाई केवल 273.72 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।

दलहनी फसलों की बुआई चालू खरीफ सीजन में थोड़ी कम होकर 101.22 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में 101.54 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी थी। इस दौरान अरहर की बुआई 38.32 लाख हेक्टेयर में, मूंग की बुआई 32.18 लाख हेक्टेयर में और उड़द की 18.62 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले खरीफ सीजन में इस समय तक इनकी बुआई क्रमश: 41.06 लाख हेक्टेयर में, 31.13 लाख हेक्टेयर और 19.09 लाख हेक्टेयर में हुई थी।

मोठ की बुवाई चालू खरीफ में बढ़कर 8.95 लाख हेक्टेयर में तथा अन्य दलहन की 2.99 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई क्रमश: 7.16 और 2.94 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।

चालू खरीफ सीजन में तिलहनी फसलों की बुआई घटकर 171.03 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय 178.14 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। तिलहनी फसलों में मूंगफली की बुआई 41.56 लाख हेक्टेयर में, सोयाबीन की 118.54 लाख हेक्टेयर में तथा सनफ्लावर की 58,000 हेक्टेयर में हुई है। पिछले साल की समान अवधि में इनकी बुआई क्रमश: 43.45 लाख हेक्टेयर में, 123.45 लाख हेक्टेयर में तथा 66,000 हेक्टेयर में ही हुई थी।

शीशम सीड की बुआई चालू खरीफ में 8.38 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 9 लाख हेक्टेयर की तुलना में कम है। कैस्टर सीड की बुआई 1.79 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक 1.29 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हो पाई थी।

मोटे अनाजों की बुआई बढ़कर चालू खरीफ सीजन में 172.75 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई केवल 164.76 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई थी। मोटे अनाजों में मक्का की 91.62 लाख हेक्टेयर में तथा बाजरा की 61.58 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इनकी बुआई क्रमश: 81.99 और 62.36 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी। ज्वार की बुआई 13.17 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 13.53 लाख हेक्टेयर की तुलना में घटी है।

चालू खरीफ में गन्ने की बुआई 57.31 लाख हेक्टेयर में और कपास की 105.87 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले खरीफ सीजन की समान अवधि में इनकी बुआई क्रमश: 55.68 लाख हेक्टेयर और 108.43 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।

सीसीआई से खरीदी हुई कॉटन की बिक्री कर रहे हैं व्यापारी, गुजरात में भाव 200 रुपये घटे

नई दिल्ली। व्यापारी सीसीआई से खरीदी हुई कॉटन दाम घटाकर बेच रहे हैं, जिससे घरेलू बाजार में इसकी कीमतों पर दबाव है। गुजरात में सोमवार को कॉटन की कीमतों में 200 रुपये प्रति कैंडी, एक कैंडी-356 किलो का मंदा आया, जबकि उत्तर भारत के राज्यों में इसके दाम स्थिर से तेज हुए।


सूत्रों के अनुसार सीसीआई पहली अगस्त तक चालू सीजन 2024-25 की खरीदी करीब 66.71 लाख गांठ, एक गांठ 170 किलो कॉटन की बिक्री घरेलू बाजार में कर चुकी है तथा इसमें से व्यापारियों ने भारी मात्रा में खरीद की थी। अमेरिका द्वारा भारत से आयात पर टैरिफ दर 25 फीसदी करने के साथ ही हाल ही में विश्व बाजार में कॉटन की कीमतों में आई गिरावट को देखते हुए रिसेलर सक्रिय हुए हैं, जिस कारण घरेलू बाजार में कॉटन की कीमतों पर दबाव बढ़ा है।

गुजरात के अहमदाबाद में 29 शंकर-6 किस्म की कॉटन के भाव सोमवार को 200 रुपये कमजोर होकर 56,000 से 57,000 रुपये प्रति कैंडी, एक कैंडी-356 किलो रह गए।

पंजाब में रुई हाजिर डिलीवरी के भाव 5,960 से 5,970 रुपये प्रति मन बोले गए। हरियाणा में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के भाव 5,750 से 5,850 रुपये प्रति मन बोले गए। ऊपरी राजस्थान में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के दाम 5,850 से 6,020 रुपये प्रति मन बोले गए।लोअर राजस्थान में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के दाम 57,400 से 57,500 रुपये कैंडी बोले गए। देशभर की मंडियों में कपास की आवक 6,000 गांठ, एक गांठ-170 किलो की हुई।

स्पिनिंग मिलों की मांग कमजोर होने के कारण गुजरात में कॉटन की कीमत कमजोर हो गई, जबकि उत्तर भारत में इसके दाम स्थिर से तेज हुए। व्यापारियों के अनुसार विश्व बाजार में हाल ही में कॉटन के दाम नीचे बने हुए है, जिस कारण इसके आयात में पड़ते लग रहे हैं। वैसे भी स्पिनिंग मिलों के पास कॉटन का बकाया स्टॉक अच्छा है, जबकि घरेलू बाजार में यार्न में उठाव कमजोर है। हालांकि कॉटन का बकाया स्टॉक प्राइवेट बाजार में कम है। इसके बावजूद भी अभी कॉटन की कीमतों में बड़ी तेजी के आसार कम है। उत्तर भारत के राज्यों में कपास की नई फसल की आवक अगले महीने शुरू हो जायेगी।

कृषि मंत्रालय के अनुसार 25 जुलाई तक चालू खरीफ सीजन देशभर में कपास की बुआई 2.25 फीसदी कम होकर 103.15 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है, जबकि पिछले साल इस समय तक 105.52 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी थी।

जून के मुकाबले जुलाई में कैस्टर तेल का निर्यात 11 फीसदी से ज्यादा घटा

नई दिल्ली। जुलाई में देश से कैस्टर तेल का निर्यात 11.49 फीसदी घटकर 49,928 टन का ही हुआ है, जबकि जून में इसका निर्यात 56,412 टन हुआ था।


सूत्रों के अनुसार चालू वर्ष 2025 के पहले 7 महीनों जनवरी से जुलाई के दौरान कैस्टर तेल का निर्यात 390,823 टन का ही हुआ है।

गुजरात में कैस्टर सीड के भाव शनिवार को लगातार दूसरे दिन 5 रुपये तेज होकर 1,280 से 1,305 रुपये प्रति 20 किलो हो गए, जबकि दैनिक आवक 22 हजार बोरियों (1 बोरी-35 किाले) की हुई। राजकोट में कैस्टर तेल कमर्शियल के दाम 1,335 रुपये एवं एफएसजी के भाव 1,345 रुपये प्रति 10 किलो पर स्थिर बने रहे। इस दौरान राजस्थान की मंडियों में कैस्टर सीड की आवक 6,000 बोरी और प्लांटों में सीधी की आवक करीब 2,000 बोरियों की हुई।

व्यापारियों के अनुसार बुआई में आई कमी से पिछले साल कैस्टर सीड के उत्पादन अनुमान में कमी आई थी। हाल ही में उत्पादक मंडियों में कैस्टर सीड की दैनिक आवक पहले की तुलना में कम हुई है।

कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2024-25 के दौरान कैस्टर सीड का उत्पादन 17.30 लाख टन का ही होने का अनुमान है, जोकि इसके पिछले फसल सीजन के दौरान उत्पादन 19.59 लाख टन का हुआ था।

गुजरात के कृषि निदेशालय के अनुसार चालू खरीफ सीजन में राज्य में 28 जुलाई तक कैस्टर सीड की बुआई 1,30,440 हेक्टेयर में हो चुकी है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 78,058 हेक्टेयर की तुलना में अधिक है। इसी तरह से राजस्थान में चालू खरीफ में पहली अगस्त तक कैस्टर सीड की बुआई 40,887 हेक्टेयर में हो चुकी है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 34,910 हेक्टेयर की तुलना में बढ़ी है। 

02 अगस्त 2025

तेल मिलों की खरीद सीमित होने से सरसों के दाम स्थिर

नई दिल्ली। तेल मिलों की खरीद सीमित होने के कारण शुक्रवार को घरेलू बाजार में सरसों की कीमत स्थिर हो गई। जयपुर में कंडीशन की सरसों के भाव 7,600 रुपये प्रति क्विंटल बोले गए।


ब्रांडेड तेल मिलों ने शाम के सत्र में सरसों की खरीद कीमतों में 25 रुपये प्रति क्विंटल की कटौती की।

विश्व बाजार में खाद्वय तेलों की कीमतों में मिलाजुला रुख रहा। मलेशियाई पाम तेल की कीमतों में शाम के सत्र में तेजी आई, जबकि इस दौरान सोया तेल की कीमतों में गिरावट दर्ज की गई। व्यापारियों के अनुसार मलेशिया के क्रूड पाम तेल (सीपीओ) वायदा शुक्रवार को मजबूती के साथ बंद हुआ। चीन के डालियान मार्केट में सोया तेल में तेजी के साथ ही कमजोर रिगिंट और अमेरिका द्वारा मलेशियाई से आयात पर शुल्क 25 फीसदी से घटाकर 19 फीसदी करने के फैसले से बाजार को सहारा मिला। हालांकि क्रूड और शिकागो में सोया तेल में कमजोरी ने तेजी को सीमित रखा। घरेलू बाजार में सरसों तेल की कीमतों दूसरे दिन गिरावट दर्ज की गई।

व्यापारियों के अनुसार त्योहारी सीजन होने के कारण आगामी दिनों में घरेलू बाजार में खाद्वय तेलों की मांग बढ़ने की संभावना है। हालांकि घरेलू बाजार में खाद्वय तेलों की कीमतों में तेजी, मंदी काफी हद तक आयातित खाद्य तेलों के दाम पर ही निर्भर करेगी।

बर्सा मलेशिया डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (बीएमडी) पर अक्टूबर 2025 के क्रूड पाम तेल (सीपीओ) वायदा अनुबंध में 15 रिगिंट यानी की 0.36 फीसदी की तेजी आकर दाम 4,245 रिगिंट प्रति टन पर बंद हुए। इस दौरान शिकागो में सोया तेल के दिसंबर के वायदा अनुबंध के भाव में 0.26 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई।

व्यापारियों के अनुसार मलेशिया और इंडोनेशिया में पाम तेल का उत्पादन बढ़ने की संभावना के साथ ही निर्यात मांग कमजोर होने तथा चीन से सस्ते सोया तेल के आयात में बढ़ोतरी और बढ़ती सनफ्लावर तेल की सप्लाई के चलते बाजार पर दबाव बना रहने का अनुमान है। उधर थाईलैंड द्वारा 3.5 मिलियन टन सरप्लस में से 1.2 मिलियन टन पाम तेल भारत को निर्यात करने की योजना भी कीमतों पर दबाव बनायेगी।

कोटा में सरसों तेल कच्ची घानी के दाम 1,650 रुपये प्रति 10 किलो पर स्थिर हो गए, जबकि गंगानगर में कच्ची घानी सरसों तेल के भाव 5 रुपये कमजोर होकर 1,630 से 1,640 रुपये प्रति 10 किलो रह गए। टोंक में कच्ची घानी सरसों तेल के दाम 2 रुपये घटकर 1,633 से 1,635 रुपये प्रति 10 किलो रह गए।

चरखी दादरी मंडी में सरसों खल के दाम 20 रुपये कमजोर होकर 2,180 रुपये प्रति क्विंटल रह गए, जबकि सुमेरपुर मंडी में इसके दाम 2,290 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर हो गए। चरखी दादरी मंडी में सरसों खल के दाम 2,180 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर हो गए।

राजस्थान में खरीफ की बुआई 90 फीसदी पूरी, दलहन एवं तिलहन के साथ कपास की ज्यादा

नई दिल्ली। चालू खरीफ सीजन में राजस्थान में फसलों की बुवाई 90 फीसदी क्षेत्रफल में पूरी हो चुकी है। दलहन एवं तिलहन के साथ ही मोटे अनाज तथा कपास की बुआई में बढ़ोतरी हुई है।


राज्य के कृषि निदेशालय के अनुसार 28 जुलाई तक राज्य में खरीफ फसलों की बुआई 149.30 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में केवल 139.70 लाख हेक्टेयर में ही बुआई थी। चालू खरीफ सीजन में राज्य में 165.39 लाख हेक्टेयर में फसलों की बुआई का लक्ष्य तय किया है।

चालू खरीफ सीजन में मोटे अनाजों की बुआई बढ़कर 61.02 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में इनकी बुआई केवल 58.22 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी। मोटे अनाजों में बाजरा की 41.66 लाख हेक्टेयर में तथा मक्का की 9.66 लाख हेक्टेयर में हुई है। इसके अलावा धान की रोपाई 3.16 लाख हेक्टेयर और ज्वार की बुआई 6.50 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है। पिछले साल की समान अवधि में बाजरा और मक्का की बुआई क्रमश: 40 लाख हेक्टेयर में तथा 9.48 लाख हेक्टेयर में हुई थी।

दलहनी फसलों की बुआई चालू खरीफ सीजन में बढ़कर 35.29 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 31.68 लाख हेक्टेयर की तुलना में ज्यादा है। खरीफ दलहन में मूंग की बुआई 22.57 लाख हेक्टेयर में और मोठ की 8.88 लाख हेक्टेयर तथा उड़द की 3.11 लाख हेक्टेयर तथा छौला की 57 हजार हेक्टेयर में हो चुकी है ।

चालू खरीफ सीजन में तिलहनी फसलों की बुआई राज्य में बढ़कर 21.37 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक केवल 21.08 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हो पाई थी। तिलहनी फसलों में मूंगफली की बुआई 9.58 लाख हेक्टेयर में, सोयाबीन की 9.70 लाख हेक्टेयर में तथा शीशम की 1.81 लाख हेक्टेयर में और कैस्टर सीड की 26 हजार हेक्टेयर में हुई है।

चालू खरीफ में कपास की बुआई राज्य में 6.28 लाख हेक्टेयर में तथा ग्वार सीड की बुआई 21.83 लाख हेक्टेयर में और गन्ने की बुआई 3 हजार हेक्टेयर में हो चुकी है। पिछले साल की समान अवधि में इनकी बुआई क्रमश: 5.03 लाख हेक्टेयर में, 20.38 लाख हेक्टेयर और गन्ने की 5 हजार हेक्टेयर में हुई थी।

पिछले तीन वर्षों में देश के पांच प्रमुख राज्यों में 17 नई चीनी मिलें चालू हुई

नई दिल्ली। देश के पांच प्रमुख राज्यों में पिछले तीन वर्षों के दौरान 17 नई चीनी मिलों की स्थापना हुई, जिसका सीधा फायदा इन राज्यों के गन्ना किसानों को हुआ है।


केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण राज्य मंत्री, निमुबेन जयंतीभाई बंभानिया ने चीनी क्षेत्र से संबंधित प्रश्नों का उत्तर देते हुए लोकसभा में यह जानकारी साझा की। उन्होंने कहा कि चीनी उद्योग को अनिवार्य लाइसेंसिंग की आवश्यकता वाले उद्योगों की सूची से हटा दिया गया था। इसके बाद, कोई भी उद्यमी समय-समय पर संशोधित गन्ना (नियंत्रण), आदेश 1966 के खंड 6ए से 6ई में निर्धारित प्रावधानों के अनुसार देश के किसी भी हिस्से में चीनी मिल स्थापित करने के लिए स्वतंत्र है।

पहली अक्टूबर 2024 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन (अक्टूबर-24 से सितंबर-25) में देश भर में कुल 534 चीनी मिलों ने गन्ने की पेराई की है तथा पिछले तीन वर्षों के दौरान देश में कुल 17 नई चीनी मिलें स्थापित की गई हैं।

कर्नाटक ने पिछले तीन वर्षों में गन्ना पेराई के लिए छह नई चीनी मिलें जोड़कर अग्रणी राज्य के रूप में उभरा है। इन आधुनिक मिलों की स्थापना से स्थानीय स्तर पर महत्वपूर्ण रोजगार सृजन और ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं को समर्थन मिलने की उम्मीद है, जिससे भारत के चीनी क्षेत्र में कर्नाटक की भूमिका और मजबूत होगी।

इसी तरह से पिछले तीन वर्षों के दौरान चीनी उत्पादन में देश के दूसरे प्रमुख उत्पादक राज्य महाराष्ट्र में पांच नई चीनी मिलें स्थापित की गई हैं, जबकि मध्य प्रदेश में चार नई मिलें स्थापित हुई हैं। भारत के प्रमुख चीनी उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश ने अपने पहले से ही व्यापक नेटवर्क में एक नई मिल इस दौरान जोड़ी है।

तेलंगाना जो कि अपने चीनी क्षेत्र को पुनर्जीवित करने के प्रयासों के लिए जाना जाता है, में भी एक नई चीनी मिल की स्थापना हुई है।

यह पहल कृषि-आधारित उद्योगों को पुनर्जीवित करने और किसान कल्याण नीतियों का समर्थन करने के व्यापक स्थानीय प्रयासों के अनुरूप है।

उद्योग के अनुसार पहली अक्टूबर 2024 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन (अक्टूबर-24 से सितंबर-25) के पहले 10 महीनों पहली अक्टूबर 24 से जुलाई 25 के अंत तक चीनी के उत्पादन में 18.38 फीसदी की गिरावट आकर कुल उत्पादन 258.2 लाख टन का ही हुआ है। उद्योग के अनुसार चालू पेराई सीजन में कुल चीनी उत्पादन 261.1 लाख टन होने का अनुमान है, जो कि 2023-24 सीजन के उत्पादन 319 लाख टन से कम है।

जुलाई अंत तक चीनी के उत्पादन में 18 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई - एनएफसीएसएफ

नई दिल्ली। पहली अक्टूबर 2024 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन (अक्टूबर-24 से सितंबर-25) के पहले 10 महीनों पहली अक्टूबर से जुलाई अंत तक चीनी के उत्पादन में 18.38 फीसदी की गिरावट आकर कुल उत्पादन 258.2 लाख टन का ही हुआ है।


राष्ट्रीय सहकारी चीनी कारखाना महासंघ लिमिटेड (एनएफसीएसएफ) का अनुमान है कि चालू पेराई सीजन में कुल चीनी उत्पादन 261.1 लाख टन होने का अनुमान है, जो कि 2023-24 सीजन के उत्पादन 319 लाख टन से कम है।

एनएफसीएसएफ के अनुसार कर्नाटक और तमिलनाडु में जून से सितंबर तक विशेष पेराई कार्य चल रहा है, जिस कारण चीनी के कुल उत्पादन में कुछ अतिरिक्त टन की वृद्धि होने की उम्मीद है।

एनएफसीएसएफ के अनुसार देश के सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में जुलाई तक उत्पादन घटकर 92.7 लाख टन का रह गया, जो कि पिछले साल के 103.6 लाख टन से कम है। दूसरे सबसे बड़े उत्पादक राज्य महाराष्ट्र में भी उत्पादन में भारी गिरावट देखी गई, जहां उत्पादन पिछले पेराई सीजन के 110 लाख टन से घटकर 80.90 लाख का ही हुआ है। इसी तरह से कर्नाटक में चीनी का उत्पादन पिछले साल के 51.6 लाख टन से घटकर 40.6 लाख टन का रह गया।

चीनी के उत्पादन में आई गिरावट का प्रमुख कारण गन्ने की कम उपलब्धता, प्रतिकूल मौसम, इथेनॉल उत्पादन के लिए गन्ने के बढ़ते उपयोग और कीट एवं रोगों के प्रकोप के कारण फसल हो हुआ नुकसान है। एनएफसीएसएफ को उम्मीद है कि अनुकूल मानसून, महाराष्ट्र और कर्नाटक में गन्ने की खेती में वृद्धि और सरकार द्वारा उचित एवं लाभकारी मूल्य में समय पर की गई वृद्धि के कारण आगामी पेराई सीजन 2025-26 में देश में चीनी का उत्पादन बढ़कर 350 लाख टन तक पहुंच जाएगा।

एनएफसीएसएफ ने सरकार से नीतिगत उपायों की मांग की है, जिनमें एथेनॉल खरीद मूल्यों में संशोधन, चीनी के लिए न्यूनतम बिक्री मूल्य में बढ़ोतरी के साथ ही स्वास्थ्य जागरूकता के कारण प्रति व्यक्ति खपत में आई गिरावट को देखते हुए अतिरिक्त भंडार के प्रबंधन हेतु चीनी निर्यात की अनुमति शामिल है।