नई दिल्ली। चालू वित्त वर्ष 2025-26 के पहले चार महीनें अप्रैल से जुलाई के दौरान डीओसी के निर्यात में 2.4 फीसदी की कमी आकर कुल निर्यात 1,516,982 टन का ही हुआ है, जबकि पिछले तेल वर्ष की समान अवधि में इनका निर्यात 1,554,426 टन का हुआ था।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, एसईए के अनुसार जुलाई में डीओसी के निर्यात में 7 फीसदी की कमी आकर कुल निर्यात 422,388 टन का ही हुआ है, जबकि पिछले साल जून में इसका निर्यात 451,794 टन का हुआ था।
भारत जुलाई 2023 से पहले 5 से 6 लाख टन डी-ऑयल राइस ब्रान का निर्यात मुख्य रूप से वियतनाम, थाईलैंड और अन्य एशियाई देशों को करता था और अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत का नाम एक विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता के रूप में था। सरकार ने 28 जुलाई को डी-ऑयल राइस ब्रान के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, इसका कारण घरेलू बाजार में चारा महंगा होना था, जिसमें डी-ऑयल राइस ब्रान एक प्रमुख खपत होती है। सरकार द्वारा प्रतिबंध को समय-समय पर बढ़ाया गया और अब यह 30 सितंबर, 2025 तक लागू है। जानकारों के अनुसार डी-ऑयल राइस ब्रान की कीमतें अब निचले स्तर पर हैं। डी-ऑयल राइस ब्रान की कीमतों में भारी गिरावट को देखते हुए, एसोसिएशन ने एक बार फिर सरकार से इसके निर्यात पर लगे प्रतिबंध को हटाने की मांग की है।
सरसों के तेल, विशेष रूप से पारंपरिक 'कच्ची घानी' किस्म की अच्छी घरेलू मांग के कारण, देशभर के उत्पादक राज्यों में इसकी पेराई में तेजी आई हैं, जिससे सरसों डीओसी का उत्पादन बढ़ा है। अत: सरसों डीओसी के निर्यात में बढ़ोतरी हुई है। चीन सरसों डीओसी के आयातक के रूप में प्रमुख देश रहा है। चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से जुलाई 2025 के दौरान चीन ने लगभग 277,000 टन भारतीय सरसों खली का आयात किया है। 14 अगस्त 2025 तक, भारतीय सरसों खली हैम्बर्ग एक्स-मिल मूल्य 236 अमेरिकी डॉलर प्रति टन के मुकाबले 195 अमेरिकी डॉलर प्रति टन थी। प्रमुख उपभोक्ता देशों के साथ भारत की लॉजिस्टिक निकटता के साथ इस मूल्य प्रतिस्पर्धात्मकता ने वैश्विक ऑयलमील व्यापार में एक विश्वसनीय, लागत प्रभावी आपूर्तिकर्ता के रूप में इसकी प्रतिष्ठा को मजबूत किया है।
कृषि मंत्रालय के अनुसार 15 अगस्त 2025 तक खरीफ तिलहनों की बुआई 178.64 लाख हेक्टेयर में हुई है, जो कि पिछले साल के 185.38 लाख हेक्टेयर से थोड़ी कम है। फसलवार आंकड़ों से पता चलता है कि मूंगफली की बुआई में थोड़ी कमी आई है और पिछले साल इसी अवधि के 46.07 लाख हेक्टेयर की तुलना में 43.98 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हो पाई है। सोयाबीन का रकबा 124.59 लाख हेक्टेयर से घटकर 119.82 लाख हेक्टेयर रह गया, जो संभवतः कीमतों में उतार-चढ़ाव और अन्य लाभकारी फसलों की प्रतिस्पर्धा के कारण है। कपास की बुवाई 107.87 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में हुई है, जो कि पिछले वर्ष की समान अवधि के 111.11 लाख हेक्टेयर की तुलना में कम है। कुल मिलाकर मजबूत मानसून ने खरीफ फसलों के उत्पादन के लिए एक ठोस आधार तैयार किया है, हालांकि फसल की कटाई तक मौसम कैसा रहता है इस पर उत्पादन के आंकड़े निर्भर करेंगे।
भारतीय बंदरगाह पर जुलाई में सोया डीओसी का भाव नरम होकर 385 डॉलर प्रति टन रह गया, जबकि जून में इसका दाम 389 डॉलर प्रति टन था। इस दौरान सरसों डीओसी का मूल्य जुलाई में भारतीय बंदरगाह पर घटकर 196 डॉलर प्रति टन का रह गया, जबकि जून में इसका भाव 198 डॉलर प्रति टन था। इस दौरान कैस्टर डीओसी का दाम जून के 79 डॉलर प्रति टन से तेज होकर जुलाई में 88 डॉलर प्रति टन का हो गया।
