कोच्चि : पिछले कुछ साल से भारतीय मसालों की मांग बढ़ी है। एशियाई देशों में भारत की काली मिर्च, हल्दी, लौंग, जीरा, करी पाउडर और अन्य मसालों की अच्छी मांग है। यहां से कुल मसालों का 65 फीसदी हिस्सा पश्चिम और पूर्वी एशियाई देशों को निर्यात किया जाता है।
3 साल पहले यह हिस्सा करीब 35 फीसदी था। कीमतों के मामले में कुल राजस्व का 49 फीसदी हिस्सा एशियाई देशों से आता है। इसके पहले तक अमेरिका और यूरोपीय बाजार में भारतीय मसालों की बड़ी मांग थी, लेकिन अब काली मिर्च और कुछ अन्य प्रीमियम मसालों की मांग इन देशों से आती है।
मिर्च के निर्यात में हुई बढ़ोतरी से आंकड़ों में यह बदलाव आया है। भारत हर साल करीब 1 लाख टन मिर्च से ज्यादा का निर्यात करता है। वर्ष 2007-08 में इसने 2.09 लाख टन यानी 1,097.50 करोड़ रुपए की मिर्च का निर्यात किया था।
इसके पिछले साल 1.48 लाख टन यानी 807.55 करोड़ रुपए की मिर्च का निर्यात किया गया था। मलेशिया भारतीय काली मिर्च के सबसे बड़े खरीदार के रूप में उभरा है। इसके अलावा बांग्लादेश, श्रीलंका और पाकिस्तान से अच्छी मांग बनी हुई है।
मसाला बोर्ड के सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तान अपनी घरेलू मांग को पूरा करने के लिए मिर्च का आयात करता है। गुणवत्ता के मामले में वैश्विक मानकों पर मिर्च की पैदावार करने से निर्यात मांग में बढ़ोतरी हुई है। मसाला बोर्ड के चेयरमैन वी. जे. कुरियन ने बताया, 'एशियाई देशों से मसालों का आयात कर उनमें मूल्य संर्वद्घन करने से हमारे मसालों की मांग बढ़ी है। हम इसमें और संभावनाओं पर काम कर रहे हैं।'
उधर, एशियाई देशों से भारतीय जीरे की मांग में तेजी आई है। पिछले साल 28,000 टन यानी 291.5 करोड़ रुपए मूल्य के जीरे का निर्यात किया गया है। इस साल इसमें और बढ़ोतरी होने का अनुमान है।....ET Hindi
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