31 जुलाई 2008
उत्पादक क्षेत्रों में वर्षा से सोयाबीन को लाभ
नई दिल्ली, 30 जुलाई। सोयाबीन के प्रमुख उत्पादक राज्यों महाराष्ट्र व मघ्यप्रदेश में वर्षा होने से फसल को लाभ हुआ है। अघिकारिक सूत्रों के अनुसार चालू बिजाई सीजन में देश में अभी तक सोयाबीन की बिजाई 85.35 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है जोकि गत वर्ष के मुकाबले तो ज्यादा है ही, साथ ही सामान्य क्षेत्रफल से भी ज्यादा है। गत वर्ष की समान अवघि में जहां बिजाई 77.79 क्षेत्रफल में हुई थी वहीं सामान्यत: देश में सोयाबीन की बिजाई 72.53 लाख हैक्टेयर में होती है। व्यापारिक सूत्रों के अनुसार अगस्त माह में मौसम फसल के अनुकूल रहता है तो नई फसल का रिर्काड उत्पादन हो सकता है। अगस्त माह के दूसरे पखवाड़े में सोयाबीन प्लांटों की खरीददारी बन्द हो जायेगी क्योंकि नई फसल से पहले प्लांटों के रखरखाव का काम चलता है। माना जा रहा है कि नई फसल की आवकों तक मौजूदा भावों में 400 से 500 रूपये प्रति क्विंटल की गिरावट की संभावना है। वर्तमान में सोया डीओसी में निर्यातकों की मांग अच्छी बनी हुई है जिससे इसके भाव बढ़कर 22000 रूपये प्रति टन बोले जा रहे हैं। वर्तमान में मंडियों में सोयाबीन के भाव 2500 रूपये प्रति क्विंटल व प्लांट पहुंच भाव 2560 से 2565 रूपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। ....R S Rana
कपास के निर्यात पर फिलहाल पाबंदी नहीं: पवार
नई दिल्ली : केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने बुधवार को कहा कि सरकार कपास के निर्यात पर तत्काल पाबंदी लगाने के बारे में नहीं सोच रही है। यहां एक कार्यक्रम के दौरान पवार से जब पूछा गया कि क्या सरकार कपास के निर्यात पर किसी तरह की पाबंदी लगाने की सोच रही है, तो उन्होंने बताया, 'अभी ऐसा कुछ नहीं है।'
पवार ने वायदा कारोबार से जुड़े सवालों पर भी अपनी राय रखी, 'कुछ कृषि उत्पादों पर वायदा कारोबार खत्म करने की दिशा में व्यवहारिक कदम उठाने का भरोसा दिया।' उन्होंने कहा कि हम कुछ विशेष कृषि कमोडिटी के वायदा कारोबार पर से प्रतिबंध हटाने के लिए कदम उठाएंगे, लेकिन इसके पहले वायदा कारोबार पर प्रतिबंध लगाने से हुए प्रभाव का आकलन किया जाएगा।
कृषि मंत्री ने बताया, 'कुछ राज्यों में अच्छी वर्षा नहीं हुई है, इससे पैदावार प्रभावित होगी। हालांकि देश में पैदावार की स्थिति पहले बहुत अच्छी थी। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में स्थिति गंभीर है। लेकिन इस सप्ताह से अच्छी वर्षा हो रही है। इससे कुछ हद तक बुआई पर सकारात्मक असर दिखाई पड़ेगा।'
पवार ने वायदा कारोबार से जुड़े सवालों पर भी अपनी राय रखी, 'कुछ कृषि उत्पादों पर वायदा कारोबार खत्म करने की दिशा में व्यवहारिक कदम उठाने का भरोसा दिया।' उन्होंने कहा कि हम कुछ विशेष कृषि कमोडिटी के वायदा कारोबार पर से प्रतिबंध हटाने के लिए कदम उठाएंगे, लेकिन इसके पहले वायदा कारोबार पर प्रतिबंध लगाने से हुए प्रभाव का आकलन किया जाएगा।
कृषि मंत्री ने बताया, 'कुछ राज्यों में अच्छी वर्षा नहीं हुई है, इससे पैदावार प्रभावित होगी। हालांकि देश में पैदावार की स्थिति पहले बहुत अच्छी थी। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में स्थिति गंभीर है। लेकिन इस सप्ताह से अच्छी वर्षा हो रही है। इससे कुछ हद तक बुआई पर सकारात्मक असर दिखाई पड़ेगा।'
मॉनसून की वापसी से खिले किसानों के चेहरे
अहमदाबाद : गुजरात के किसानों पर आखिरकार मॉनसून मेहरबान हो गया। राज्य में पिछले 3 दिनों से अच्छी बारिश हो रही है, जिससे मूंगफली और कपास की खेती करने वाले किसानों के चेहरे खिल गए हैं। कृषि विश्लेषकों के मुताबिक अच्छी बारिश से किसानों का नुकसान कम होने की उम्मीद है।
मॉनसून के दूसरे चरण में एक इंच और छह इंच के बीच बारिश हुई है। गुजरात के जिन जिलों में अच्छी बारिश हुई है उनमें अहमदाबाद, खेड़ा, बांसकांठा, भरूच, सूरत, गांधीनगर, नवसारी, नर्मदा, पांचमाला, साबरकांठा, वड़ोदरा और तापी शामिल है।
मानसून की शुरुआत में भरपूर बारिश न होने की वजह से किसानों और राज्य सरकार की चिंता बढ़ गई थी। आंकड़ों के मुताबिक, 7 जुलाई तक सिर्फ 35 लाख हेक्टेयर भूभाग पर ही खेती हुई थी, जो पिछले साल तकरीबन 49 लाख हेक्टेयर के करीब थी। गुजरात सरकार के कृषि विभाग के डायरेक्टर डॉक्टर एस. आर. चौधरी का कहना है कि मॉनसून के दूसरे चरण की बारिश से सभी फसलों को फायदा नहीं हुआ है, लेकिन मूंगफली, कपास और अनाजों के उत्पादन में इससे जरूर बढ़ोतरी होगी।
वहीं दूसरी तरफ, पाटन, बांसकांठा और कच्छ में अभी तक पर्याप्त बारिश नहीं हुई है। हालांकि, इन जिलों में भी अच्छी बारिश होने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि बहुत जल्द उत्तरी गुजरात में अरंडी या कैस्टर की खेती की जाएगी। हालांकि, विश्लेषकों को अभी भी मूंगफली और कपास के उत्पादन में 25-30 फीसदी कमी आने की आशंका है। ...ET Hindi
मॉनसून के दूसरे चरण में एक इंच और छह इंच के बीच बारिश हुई है। गुजरात के जिन जिलों में अच्छी बारिश हुई है उनमें अहमदाबाद, खेड़ा, बांसकांठा, भरूच, सूरत, गांधीनगर, नवसारी, नर्मदा, पांचमाला, साबरकांठा, वड़ोदरा और तापी शामिल है।
मानसून की शुरुआत में भरपूर बारिश न होने की वजह से किसानों और राज्य सरकार की चिंता बढ़ गई थी। आंकड़ों के मुताबिक, 7 जुलाई तक सिर्फ 35 लाख हेक्टेयर भूभाग पर ही खेती हुई थी, जो पिछले साल तकरीबन 49 लाख हेक्टेयर के करीब थी। गुजरात सरकार के कृषि विभाग के डायरेक्टर डॉक्टर एस. आर. चौधरी का कहना है कि मॉनसून के दूसरे चरण की बारिश से सभी फसलों को फायदा नहीं हुआ है, लेकिन मूंगफली, कपास और अनाजों के उत्पादन में इससे जरूर बढ़ोतरी होगी।
वहीं दूसरी तरफ, पाटन, बांसकांठा और कच्छ में अभी तक पर्याप्त बारिश नहीं हुई है। हालांकि, इन जिलों में भी अच्छी बारिश होने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि बहुत जल्द उत्तरी गुजरात में अरंडी या कैस्टर की खेती की जाएगी। हालांकि, विश्लेषकों को अभी भी मूंगफली और कपास के उत्पादन में 25-30 फीसदी कमी आने की आशंका है। ...ET Hindi
Mixed trend in essential commodities
NEW DELHI: Retail prices of essential commodities have either remained stable or shown mixed trend for the week ended July 25, a government statement said on Wednesday.
According to the data maintained by the Consumer Affairs Ministry, wheat prices remained steady in major cities of the country except for an increase in Lucknow.
Prices of sugar, however, witnessed some fluctuations, with rates increasing in Delhi and Mumbai and declining in Bhubaneswar and Bangalore.
Gram prices saw some upward movement in Delhi, Bhubaneswar, Guwahati and Chennai. However, the prices fell in Mumbai and Thiruvanthapuram.
Prices of tur dal, too, became dearer in Lucknow, Bhubaneswar, Bangalore, Chennai and Thiruvananthapuram and cheaper in Delhi and Mumbai.
In Delhi, prices of rice, sugar, and groundnut oil remained stable for one week. Vanaspati prices stayed unaffected for a month. Prices of wheat, atta, milk and salt held steady during the last six months.
State-owned trading firms have contracted to import about 1.4 million tons of pulses, of which about 1.22 million tons have already arrived and 1.10 million tons have been disposed till date. The pulses being imported include urad, moong, tur and yellow peas. - PTI
According to the data maintained by the Consumer Affairs Ministry, wheat prices remained steady in major cities of the country except for an increase in Lucknow.
Prices of sugar, however, witnessed some fluctuations, with rates increasing in Delhi and Mumbai and declining in Bhubaneswar and Bangalore.
Gram prices saw some upward movement in Delhi, Bhubaneswar, Guwahati and Chennai. However, the prices fell in Mumbai and Thiruvanthapuram.
Prices of tur dal, too, became dearer in Lucknow, Bhubaneswar, Bangalore, Chennai and Thiruvananthapuram and cheaper in Delhi and Mumbai.
In Delhi, prices of rice, sugar, and groundnut oil remained stable for one week. Vanaspati prices stayed unaffected for a month. Prices of wheat, atta, milk and salt held steady during the last six months.
State-owned trading firms have contracted to import about 1.4 million tons of pulses, of which about 1.22 million tons have already arrived and 1.10 million tons have been disposed till date. The pulses being imported include urad, moong, tur and yellow peas. - PTI
Nitish asks PM to lift ban on export of maize
Patna (PTI): Bihar chief minister Nitish Kumar has sought prime minister Manmohan Singh's intervention for lifting the ban on export of maize, saying the measure would slow down the state's efforts to improve agricultural productivity.
"The agricultural roadmap of Bihar envisages an increase in production of maize and the ban on its export will slow down our efforts to improve agricultural productivity, which would finally affect the country's food security," Kumar said in a letter to the prime minister on Tuesday, a spokesman for the chief minister's office said Wednesday.
"The agricultural roadmap of Bihar envisages an increase in production of maize and the ban on its export will slow down our efforts to improve agricultural productivity, which would finally affect the country's food security," Kumar said in a letter to the prime minister on Tuesday, a spokesman for the chief minister's office said Wednesday.
30 जुलाई 2008
सितम्बर से पहले मक्का में मंदे के आसार कम
नई दिल्ली, 29 जुलाई। सूत्रों के अनुसार वर्तमान में बिहार की उत्पादक मंडियों में मक्का की दैनिक आवकें घटकर 30 से 35 हजार बोरियों की रह गई हैं जबकि स्टॉर्च के साथ-साथ पोर्ल्टी की मांग भी बराबर होने से इसकी कीमतें मजबूत बनी हुई है। जानकारों के अनुसार इस समय बिहार में मक्का की 25 से 30 फीसदी फसल ही बची हुई है जबकि प्रमुख खरीफ उत्पादक राज्यों महाराष्ट्र, कर्नाटक व आंध्रप्रदेश की नई फसल की आवकें सितम्बर माह के आखिर में ही बन पायेगी इन हालातों में उम्मीद की जा रही है कि सितम्बर माह से पहले मक्का में मंदे के आसार न के बराबर है। बिहार की मंडियों में इस मक्का के बिल्टी कट भाव 750 रूपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। अघिकारिक सूत्रों के अनुसार चालू खरीफ सीजन में देश में अभी तक मक्का की बिजाई 40.96 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जोकि गत वर्ष की समान अवघि के मुकाबले कम है। ज्ञात हो कि गत वर्ष की समान अवघि में देश में मक्का की बिजाई 42.67 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी। सामान्यत: खरीफ सीजन में देश में मक्का की बिजाई 63.70 लाख हैक्टेयर में होती है। पिछले एक सप्ताह से महाराष्ट्र, कर्नाटक व आंध्रप्रदेश में अच्छी वर्षा हो रही है जिससे बिजाई हो चुकी फसल को तो फायदा होगा ही साथ ही जिन क्षेत्रों में बिजाई नहीं हो पाई है वहां भी बिजाई हो सकेगी। आने वाली खरीफ फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्यों की घोषणा अभी तक नहीं हो पाई है जबकि कृषि लागत एवं मूल्य आयोग मक्का का न्यूनतम समर्थन मूल्य 840 रूपये प्रति क्विंटल घोषित करने की मांग कर चुका है। वर्तमान में मक्का का न्यूनतम समर्थन मूल्य 620 रूपये प्रति क्विंटल है।
वर्तमान में दिल्ली में मक्का की दैनिक आवकें मात्र 18 से 20 मोटरों की हो रही है जबकि यहां इसके भाव 930 से 935 रूपये प्रति क्विंटल पर मजबूत बने हुए है। उघर निजामाबाद मण्डी में मक्का के भावों में आज 10 रूपये प्रति क्विंटल की गिरावट आकर भाव 1111 रूपये प्रति क्विंटल, सांगली मण्डी में भाव 1125 रूपये प्रति क्विंटल व अकोला में भाव 960 रूपये प्रति क्विंटल बोले गये।......R S Rana
वर्तमान में दिल्ली में मक्का की दैनिक आवकें मात्र 18 से 20 मोटरों की हो रही है जबकि यहां इसके भाव 930 से 935 रूपये प्रति क्विंटल पर मजबूत बने हुए है। उघर निजामाबाद मण्डी में मक्का के भावों में आज 10 रूपये प्रति क्विंटल की गिरावट आकर भाव 1111 रूपये प्रति क्विंटल, सांगली मण्डी में भाव 1125 रूपये प्रति क्विंटल व अकोला में भाव 960 रूपये प्रति क्विंटल बोले गये।......R S Rana
एशियाई देशों में फैली भारतीय मसालों की महक
कोच्चि : पिछले कुछ साल से भारतीय मसालों की मांग बढ़ी है। एशियाई देशों में भारत की काली मिर्च, हल्दी, लौंग, जीरा, करी पाउडर और अन्य मसालों की अच्छी मांग है। यहां से कुल मसालों का 65 फीसदी हिस्सा पश्चिम और पूर्वी एशियाई देशों को निर्यात किया जाता है।
3 साल पहले यह हिस्सा करीब 35 फीसदी था। कीमतों के मामले में कुल राजस्व का 49 फीसदी हिस्सा एशियाई देशों से आता है। इसके पहले तक अमेरिका और यूरोपीय बाजार में भारतीय मसालों की बड़ी मांग थी, लेकिन अब काली मिर्च और कुछ अन्य प्रीमियम मसालों की मांग इन देशों से आती है।
मिर्च के निर्यात में हुई बढ़ोतरी से आंकड़ों में यह बदलाव आया है। भारत हर साल करीब 1 लाख टन मिर्च से ज्यादा का निर्यात करता है। वर्ष 2007-08 में इसने 2.09 लाख टन यानी 1,097.50 करोड़ रुपए की मिर्च का निर्यात किया था।
इसके पिछले साल 1.48 लाख टन यानी 807.55 करोड़ रुपए की मिर्च का निर्यात किया गया था। मलेशिया भारतीय काली मिर्च के सबसे बड़े खरीदार के रूप में उभरा है। इसके अलावा बांग्लादेश, श्रीलंका और पाकिस्तान से अच्छी मांग बनी हुई है।
मसाला बोर्ड के सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तान अपनी घरेलू मांग को पूरा करने के लिए मिर्च का आयात करता है। गुणवत्ता के मामले में वैश्विक मानकों पर मिर्च की पैदावार करने से निर्यात मांग में बढ़ोतरी हुई है। मसाला बोर्ड के चेयरमैन वी. जे. कुरियन ने बताया, 'एशियाई देशों से मसालों का आयात कर उनमें मूल्य संर्वद्घन करने से हमारे मसालों की मांग बढ़ी है। हम इसमें और संभावनाओं पर काम कर रहे हैं।'
उधर, एशियाई देशों से भारतीय जीरे की मांग में तेजी आई है। पिछले साल 28,000 टन यानी 291.5 करोड़ रुपए मूल्य के जीरे का निर्यात किया गया है। इस साल इसमें और बढ़ोतरी होने का अनुमान है।....ET Hindi
3 साल पहले यह हिस्सा करीब 35 फीसदी था। कीमतों के मामले में कुल राजस्व का 49 फीसदी हिस्सा एशियाई देशों से आता है। इसके पहले तक अमेरिका और यूरोपीय बाजार में भारतीय मसालों की बड़ी मांग थी, लेकिन अब काली मिर्च और कुछ अन्य प्रीमियम मसालों की मांग इन देशों से आती है।
मिर्च के निर्यात में हुई बढ़ोतरी से आंकड़ों में यह बदलाव आया है। भारत हर साल करीब 1 लाख टन मिर्च से ज्यादा का निर्यात करता है। वर्ष 2007-08 में इसने 2.09 लाख टन यानी 1,097.50 करोड़ रुपए की मिर्च का निर्यात किया था।
इसके पिछले साल 1.48 लाख टन यानी 807.55 करोड़ रुपए की मिर्च का निर्यात किया गया था। मलेशिया भारतीय काली मिर्च के सबसे बड़े खरीदार के रूप में उभरा है। इसके अलावा बांग्लादेश, श्रीलंका और पाकिस्तान से अच्छी मांग बनी हुई है।
मसाला बोर्ड के सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तान अपनी घरेलू मांग को पूरा करने के लिए मिर्च का आयात करता है। गुणवत्ता के मामले में वैश्विक मानकों पर मिर्च की पैदावार करने से निर्यात मांग में बढ़ोतरी हुई है। मसाला बोर्ड के चेयरमैन वी. जे. कुरियन ने बताया, 'एशियाई देशों से मसालों का आयात कर उनमें मूल्य संर्वद्घन करने से हमारे मसालों की मांग बढ़ी है। हम इसमें और संभावनाओं पर काम कर रहे हैं।'
उधर, एशियाई देशों से भारतीय जीरे की मांग में तेजी आई है। पिछले साल 28,000 टन यानी 291.5 करोड़ रुपए मूल्य के जीरे का निर्यात किया गया है। इस साल इसमें और बढ़ोतरी होने का अनुमान है।....ET Hindi
खारिज हुआ धान का एमएसपी बढ़ाने का सुझाव
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को 850 रुपये से बढ़ाकर 1,000 रुपये करने की सिफारिश को खारिज कर दिया है।
सूत्र के मुताबिक, परिषद ने साफ कर दिया है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा पिछले महीने घोषित धान का अस्थायी मूल्य ही अंतिम तौर पर इस सीजन में धान का एमएसपी होगा। हालांकि परिषद ने धान के अलावा दूसरे सभी फसलों के प्रस्तावित एमएसपी को मान लिया है।
सी रंगराजन की अध्यक्षता वाली इस परिषद ने यह भी सुझाव दिया है कि बाजार की स्थितियों और भारतीय खाद्य निगम के पास मौजूद भंडार के अनुसार किसानों को धान की बिकवाली के लिए उचित बोनस देना चाहिए। उल्लेखनीय है कि पिछले महीने केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2008-09 खरीफ सीजन के लिए कीमत तय करने की पूरी जिम्मेदारी प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी) को सौंप दिया था। ...bshindi
सूत्र के मुताबिक, परिषद ने साफ कर दिया है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा पिछले महीने घोषित धान का अस्थायी मूल्य ही अंतिम तौर पर इस सीजन में धान का एमएसपी होगा। हालांकि परिषद ने धान के अलावा दूसरे सभी फसलों के प्रस्तावित एमएसपी को मान लिया है।
सी रंगराजन की अध्यक्षता वाली इस परिषद ने यह भी सुझाव दिया है कि बाजार की स्थितियों और भारतीय खाद्य निगम के पास मौजूद भंडार के अनुसार किसानों को धान की बिकवाली के लिए उचित बोनस देना चाहिए। उल्लेखनीय है कि पिछले महीने केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2008-09 खरीफ सीजन के लिए कीमत तय करने की पूरी जिम्मेदारी प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी) को सौंप दिया था। ...bshindi
Govt releases 8,200 tonnes of raw sugar for export
New Delhi, 29th July (PTI): The government on Tuesday released 8,200 tonnes of raw sugar from the free sale quota of 2007-2008 season for export to the US.
In a notification issued today, the Director General of Foreign Trade said it has allocated 8,200 tonnes of raw sugar from the free sale quota of 2007-08 (October 2007- September 2008) for exports of tariff rate quota to US.
Indian Sugar Exim Corp Ltd is the designated agency for export of sugar to the US under preferential quota.
Meanwhile, the sugar export in 2007-08 season has already crossed 35 lakh tonnes and is expected to reach 40 lakh tonnes by September when the season ends. Of the 35 lakh tonnes of sugar that has been exported, over 22 lakh tonnes was raw sugar while the remaining 13 lakh tonnes was white sugar.
In 2006-07 season, the country exported about 17 lakh tonnes of sugar. Sugar season runs from October-September.
The government is providing assistance to the sugar mills to liquidate the surplus sugar in the overseas markets.
Sugar industry is facing a glut from 2006-07 season. Sugar production stood at 283 lakh tonnes in 2006-07 while it is estimated to touch 267 lakh tonnes in the current season.
In a notification issued today, the Director General of Foreign Trade said it has allocated 8,200 tonnes of raw sugar from the free sale quota of 2007-08 (October 2007- September 2008) for exports of tariff rate quota to US.
Indian Sugar Exim Corp Ltd is the designated agency for export of sugar to the US under preferential quota.
Meanwhile, the sugar export in 2007-08 season has already crossed 35 lakh tonnes and is expected to reach 40 lakh tonnes by September when the season ends. Of the 35 lakh tonnes of sugar that has been exported, over 22 lakh tonnes was raw sugar while the remaining 13 lakh tonnes was white sugar.
In 2006-07 season, the country exported about 17 lakh tonnes of sugar. Sugar season runs from October-September.
The government is providing assistance to the sugar mills to liquidate the surplus sugar in the overseas markets.
Sugar industry is facing a glut from 2006-07 season. Sugar production stood at 283 lakh tonnes in 2006-07 while it is estimated to touch 267 lakh tonnes in the current season.
29 जुलाई 2008
आयात के बावजूद महंगी हो रही हैं दालें
July 29, 2008
भले ही सरकार ने आयात के जरिए घरेलू बाजार में दालों की आपूर्ति बढ़ाने की कोशिशें की हों, लेकिन दालों की कीमतों को लेकर आम आदमी को फिलहाल कोई राहत नहीं मिल रही है और कीमतों में तेजी का रुख बना है।
घरेलू बाजार में अरहर, मूंग और उड़द जैसी प्रमुख दालों की खुदरा कीमतें काफी ऊंची हैं और देश के कई हिस्सों में कीमतें करीब 50 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गई हैं। वास्तव में कीमतें पिछले एक महीने के दौरान बढ़ी हैं।
उदाहरण के तौर पर राष्ट्रीय राजधानी में एक महीने पहले अरहर की दाल 42-44 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव पर उपलब्ध थी, लेकिन अब कीमतें 48-50 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गई हैं। इसी तरह, धुली उड़द दाल की कीमतें 42-44 रुपये प्रति किलोग्राम से बढ़कर 55-56 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गईं।
हालांकि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 11 जुलाई, 2008 को दिल्ली में अरहर की खुदरा कीमत 43 रुपये प्रति किलोग्राम पर थीं, जबकि चने की दाल की कीमत 34.50 रुपये प्रति किलोग्राम थीं। सार्वजनिक क्षेत्र की ट्रेडिंग एजेंसियों ने अप्रैल, 2007 से अभी तक 14 लाख टन विभिन्न दालों के आयात का अनुबंध किया है। .....(bshindi)
भले ही सरकार ने आयात के जरिए घरेलू बाजार में दालों की आपूर्ति बढ़ाने की कोशिशें की हों, लेकिन दालों की कीमतों को लेकर आम आदमी को फिलहाल कोई राहत नहीं मिल रही है और कीमतों में तेजी का रुख बना है।
घरेलू बाजार में अरहर, मूंग और उड़द जैसी प्रमुख दालों की खुदरा कीमतें काफी ऊंची हैं और देश के कई हिस्सों में कीमतें करीब 50 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गई हैं। वास्तव में कीमतें पिछले एक महीने के दौरान बढ़ी हैं।
उदाहरण के तौर पर राष्ट्रीय राजधानी में एक महीने पहले अरहर की दाल 42-44 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव पर उपलब्ध थी, लेकिन अब कीमतें 48-50 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गई हैं। इसी तरह, धुली उड़द दाल की कीमतें 42-44 रुपये प्रति किलोग्राम से बढ़कर 55-56 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गईं।
हालांकि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 11 जुलाई, 2008 को दिल्ली में अरहर की खुदरा कीमत 43 रुपये प्रति किलोग्राम पर थीं, जबकि चने की दाल की कीमत 34.50 रुपये प्रति किलोग्राम थीं। सार्वजनिक क्षेत्र की ट्रेडिंग एजेंसियों ने अप्रैल, 2007 से अभी तक 14 लाख टन विभिन्न दालों के आयात का अनुबंध किया है। .....(bshindi)
आंध्रप्रदेश में लालमिर्च का 60 लाख बोरी का स्टॉक
नई दिल्ली, 29 जुलाई। सूत्रों के अनुसार आंध्रप्रदेश की विभिन्न मंडियों में इस समय लाल मिर्च का करीब 60 लाख बोरियों का स्टॉक बचा हुआ है जबकि किसान ने बिजाई हेतु नई फसल के लिए पौघ लगाने का काम शुरू कर दिया है उम्मीद की जा रही है कि अप्रैल माह के मध्य तक नई फसल की रौपाई का कार्य भी प्रारंभ हो जायेगा। वर्तमान में निर्यातकों की मांग कमजोर होने से भाव गुंटूर मण्डी में 5500 रूपये प्रति क्विंटल से घटकर 5200 रूपये प्रति क्विंटल रह गए हैं। उधर महाराष्ट्र में रौपाई का कार्य प्रारंभ हो चुका है मध्यप्रदेश की नई फसल की आवकें नवंबर माह में बनेगी तथा मध्यप्रदेश में लाल मिर्च की बिजाई गत वर्ष के मुकाबले 20 फीसदी कम बताई जा रही है। ज्ञात हो गत वह मध्यप्रदेश में लालमिर्च का उत्पादन 40 लाख बोरियों का हुआ था।
घनियॉ में तेजी का रूख बरकरार
नई दिल्ली, 29 जुलाई। व्यापारिक सूत्रों के अनुसार घनियॉ की प्रमुख मण्डी कोटा में वर्तमान में इसके भाव 8100 रूपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं जबकि मार्च में नई फसल की आवकों के समय भाव 4000 से 4200 रूपये प्रति क्विंटल खुले थे। नई फसल की आवकों के समय से अभी तक कीमतों में आई तेजी का प्रमुख कारण उत्पादन में कमी को माना जा रहा है। भाव ऊंचे होने के कारण वर्तमान में इसका निर्यात भी न के बराबर हो रहा है। जानकारों की माने तो निर्यातकों को 2000 डॉलर तक तो पड़ता लग रहा था लेकिन भाव ऊंचे होने के कारण पड़ता नहीं लग रहा है। स्टॉक कम होने के कारण घनियॉ में भविष्य में तेजी का रूख कायम रह सकता है जबकि वर्तमान में जो भाव चल रहे हैं वे भी रिकार्डस्तर पर हैं।
Pulses coverage lagging behind by 14 lakh hectares
New Delhi, July 27
Pulses production may be the biggest casualty of the extended dry spell across Maharashtra, Karnataka and Andhra Pradesh (AP) right until the third week of this month.
While the south-west monsoon has staged a revival over Peninsular India in the last 3-4 days, it may turn out to be somewhat late. “Arhar (pigeon-pea) planting can take place in Andhra Predesh and Karnataka even in August. But for moong (green gram) and urad (black matpe), the time is over”, the Agriculture Commissioner, Dr N.B. Singh, told Business Line.
Cumulative pulses coverage so far has been lagging behind by about 14 lakh hectares (lh) over last year’s level, with the decline being nearly six lh in moong, 4.8 lh in arhar and 2.4 lh in urad. The sharpest drops have been reported from Maharashtra (9.42 to 6.44 for arhar, 5.97 to 3.36 for moong and 4.95 to 2.28 for urad), followed by Karnataka (4.24 to 1.63 for moong, 3.12 to 1.62 for arhar and 1.60 to 0.72 for urad) and AP (2.75 to 1.26 for arhar and 2.76 to 1.18 for moong).
High acreage in N. India
The above shortfalls have been partially made up by higher acreages in northern and central India, which have had relatively better rainfall activity this season. Arhar area has gone up in Madhya Pradesh (2.75 to 3.25) and Uttar Pradesh (1.62 to 2.99), while that of urad has risen in UP (1.24 to 3.02) and Rajasthan (1.06 to 1.41). Rajasthan has also registered increased coverage under moong (7.10 to 7.92).
Dr Singh felt that the monsoon’s revival — projected to last the next week and perhaps beyond — will particularly help oilseeds.
“Groundnut sowing can be taken up in Karnataka and the Rayalaseema districts of AP till end-July. But it is the crop already sown from the middle of June that will really stand to benefit”, he added.
Echoing a similar view, Mr B.V. Mehta, Executive Director of the Solvent Extractors’ Association of India, held that “the picture is not as gloomy as it was just a week back, when we had virtually given up on the standing crop”.
Groundnut
Progressive groundnut acreage up to now, at 34.88 lh, is below the corresponding last year’s figure of 38.63 lh. While area is down in AP (7.68 to 5.36), Karnataka (4.78 to 2.69) and Maharashtra (2.78 to 1.72), it is up for Gujarat (16.11 to 17.46) and Rajasthan (2.87 to 3.23).
The situation is even better in the case of soyabean, where an additional 7.5 lh has been sown this year and production is poised to hit a fresh high.
Soyabean
“Soyabean has not been a problem this time as Madhya Pradesh and Rajasthan have had good rains. Hopefully things will improve in Maharashtra as well”, Mr Mehta added.
Soyabean area has increased in M.P. (44.13 to 49.99) and Rajasthan (5.76 to 8.16), while dipping in Maharashtra (23.49 to 22.30).
What about cotton, which has witnessed a 9.5 lh area reduction, mainly courtesy Maharashtra (down 3.7 lh), Gujarat (1.4 lh) and AP (one lh)?
Punjab, Haryana and Rajasthan have also registered a combined three lh decline, though the reason has not been dry weather, but threat from the mealy bug insect pest and diversion to paddy and maize.
According to Dr K.R. Kranthi of the Nagpur-based Central Institute for Cotton Research, sowing can go on till end-July in Gujarat and the first week of August in AP.
“In Maharashtra, the normal cut-off is July 15 and if you plant after the third week, yields could fall by a quarter or more”, he said.
But that may still not deter farmers from going ahead. “Cotton is, after all, a cash crop and it has also yielded good returns in recent times”, Dr Singh pointed out..(Business Line)
Pulses production may be the biggest casualty of the extended dry spell across Maharashtra, Karnataka and Andhra Pradesh (AP) right until the third week of this month.
While the south-west monsoon has staged a revival over Peninsular India in the last 3-4 days, it may turn out to be somewhat late. “Arhar (pigeon-pea) planting can take place in Andhra Predesh and Karnataka even in August. But for moong (green gram) and urad (black matpe), the time is over”, the Agriculture Commissioner, Dr N.B. Singh, told Business Line.
Cumulative pulses coverage so far has been lagging behind by about 14 lakh hectares (lh) over last year’s level, with the decline being nearly six lh in moong, 4.8 lh in arhar and 2.4 lh in urad. The sharpest drops have been reported from Maharashtra (9.42 to 6.44 for arhar, 5.97 to 3.36 for moong and 4.95 to 2.28 for urad), followed by Karnataka (4.24 to 1.63 for moong, 3.12 to 1.62 for arhar and 1.60 to 0.72 for urad) and AP (2.75 to 1.26 for arhar and 2.76 to 1.18 for moong).
High acreage in N. India
The above shortfalls have been partially made up by higher acreages in northern and central India, which have had relatively better rainfall activity this season. Arhar area has gone up in Madhya Pradesh (2.75 to 3.25) and Uttar Pradesh (1.62 to 2.99), while that of urad has risen in UP (1.24 to 3.02) and Rajasthan (1.06 to 1.41). Rajasthan has also registered increased coverage under moong (7.10 to 7.92).
Dr Singh felt that the monsoon’s revival — projected to last the next week and perhaps beyond — will particularly help oilseeds.
“Groundnut sowing can be taken up in Karnataka and the Rayalaseema districts of AP till end-July. But it is the crop already sown from the middle of June that will really stand to benefit”, he added.
Echoing a similar view, Mr B.V. Mehta, Executive Director of the Solvent Extractors’ Association of India, held that “the picture is not as gloomy as it was just a week back, when we had virtually given up on the standing crop”.
Groundnut
Progressive groundnut acreage up to now, at 34.88 lh, is below the corresponding last year’s figure of 38.63 lh. While area is down in AP (7.68 to 5.36), Karnataka (4.78 to 2.69) and Maharashtra (2.78 to 1.72), it is up for Gujarat (16.11 to 17.46) and Rajasthan (2.87 to 3.23).
The situation is even better in the case of soyabean, where an additional 7.5 lh has been sown this year and production is poised to hit a fresh high.
Soyabean
“Soyabean has not been a problem this time as Madhya Pradesh and Rajasthan have had good rains. Hopefully things will improve in Maharashtra as well”, Mr Mehta added.
Soyabean area has increased in M.P. (44.13 to 49.99) and Rajasthan (5.76 to 8.16), while dipping in Maharashtra (23.49 to 22.30).
What about cotton, which has witnessed a 9.5 lh area reduction, mainly courtesy Maharashtra (down 3.7 lh), Gujarat (1.4 lh) and AP (one lh)?
Punjab, Haryana and Rajasthan have also registered a combined three lh decline, though the reason has not been dry weather, but threat from the mealy bug insect pest and diversion to paddy and maize.
According to Dr K.R. Kranthi of the Nagpur-based Central Institute for Cotton Research, sowing can go on till end-July in Gujarat and the first week of August in AP.
“In Maharashtra, the normal cut-off is July 15 and if you plant after the third week, yields could fall by a quarter or more”, he said.
But that may still not deter farmers from going ahead. “Cotton is, after all, a cash crop and it has also yielded good returns in recent times”, Dr Singh pointed out..(Business Line)
28 जुलाई 2008
सरकार ने फिर बढ़ाया प्याज का निर्यात मूल्य
प्याज निर्यातकों की अपेक्षा के अनुरूप सरकार ने प्याज के न्यूनतम निर्यात मूल्य (मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस; एमईपी) में 50डॉलर प्रति टन की बढ़ोतरी करने की घोषणा की।
शुक्रवार को की गयी इस घोषणा के बाद प्याज का निर्यात मूल्य 185 डॉलर से बढ़कर अब 235 डॉलर प्रति टन हो गया है। बताया जा रहा है कि प्याज निर्यात को बढ़ावा देने और घरेलू स्तर पर प्याज की उचित कीमत बनाए रखने के लिए सरकार ने ये कदम उठाए हैं।
सरकार द्वारा अभी 1 जुलाई को ही प्याज के न्यूनतम निर्यात मूल्य में 25 डॉलर की वृद्धि के बाद इसका एमईपी 160 डॉलर से बढ़कर 185 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गया था। लेकिन एक ही महीने के भीतर अब इसमें फिर 50 डॉलर की वृद्धि कर दी गई है। इस तरह, मौजूदा सीजन में प्याज का यह सबसे ऊंचा स्तर हो गया है।
जानकारों के अनुसार, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और गुजरात में मानसून के आने में देर होने से प्याज की खरीफ फसल पर काफी बुरा असर पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में प्याज की पैदावार घटने के पूरे आसार हैं। मालूम हो कि कुल प्याज उत्पादन का 40 फीसदी खरीफ सीजन में पैदा होता है जबकि शेष 60 फीसदी रबी सीजन में। दिल्ली की मंडियों में 1 जुलाई से इसका भाव 40 फीसदी बढ़कर 600 से 900 रुपये प्रति क्विंटल तक पहंच चुका है। खुदरा में इसका भाव 25 फीसदी बढ़कर 12 रुपये प्रति किलोग्राम हो गया है।
कारोबारियों के अनुसार, कम और देर बारिश होने के चलते रकबे में कमी होने की खबरों का प्याज की घरेलू कीमत पर मनोवैज्ञानिक असर पड़ा है। राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (नैफेड) के एक अधिकारी ने बताया कि बाजार में कीमतें बढ़ने से हम लोगों ने कीमतों में दोबारा संशोधन करने का फैसला लिया है। गौरतलब है कि नैफेड के जिम्मे हर महीने प्याज के न्यूनतम निर्यात मूल्य को तय करने की जिम्मेदारी होती है। पिछले साल अप्रैल से जुलाई के बीच 3.11 लाख टन प्याज का निर्यात किया गया था।
जबकि इस साल अप्रैल से अब तक निर्यात में 36 फीसदी का उछाल आ गया है। जुलाई खत्म होने से पहले ही अब तक 4.25 लाख टन प्याज का निर्यात किया जा चुका है। अप्रैल से अब तक रुपये में हुई 5.5 फीसदी की मजबूती ने भी निर्यात बढ़ाने में असरदार भूमिका निभायी है। नैशनल हॉर्टीकल्चर रिसर्च एंड डेवलपमेंट फाउंडेशन (एनएचआरडीएफ) के मुताबिक, 2007-08 सीजन के दौरान प्याज का अनुमानित उत्पादन 70.45 लाख टन रहने का अनुमान है। यह 2006-07 की तुलना में 12 फीसदी ज्यादा है।......bs-Hindi
शुक्रवार को की गयी इस घोषणा के बाद प्याज का निर्यात मूल्य 185 डॉलर से बढ़कर अब 235 डॉलर प्रति टन हो गया है। बताया जा रहा है कि प्याज निर्यात को बढ़ावा देने और घरेलू स्तर पर प्याज की उचित कीमत बनाए रखने के लिए सरकार ने ये कदम उठाए हैं।
सरकार द्वारा अभी 1 जुलाई को ही प्याज के न्यूनतम निर्यात मूल्य में 25 डॉलर की वृद्धि के बाद इसका एमईपी 160 डॉलर से बढ़कर 185 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गया था। लेकिन एक ही महीने के भीतर अब इसमें फिर 50 डॉलर की वृद्धि कर दी गई है। इस तरह, मौजूदा सीजन में प्याज का यह सबसे ऊंचा स्तर हो गया है।
जानकारों के अनुसार, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और गुजरात में मानसून के आने में देर होने से प्याज की खरीफ फसल पर काफी बुरा असर पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में प्याज की पैदावार घटने के पूरे आसार हैं। मालूम हो कि कुल प्याज उत्पादन का 40 फीसदी खरीफ सीजन में पैदा होता है जबकि शेष 60 फीसदी रबी सीजन में। दिल्ली की मंडियों में 1 जुलाई से इसका भाव 40 फीसदी बढ़कर 600 से 900 रुपये प्रति क्विंटल तक पहंच चुका है। खुदरा में इसका भाव 25 फीसदी बढ़कर 12 रुपये प्रति किलोग्राम हो गया है।
कारोबारियों के अनुसार, कम और देर बारिश होने के चलते रकबे में कमी होने की खबरों का प्याज की घरेलू कीमत पर मनोवैज्ञानिक असर पड़ा है। राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (नैफेड) के एक अधिकारी ने बताया कि बाजार में कीमतें बढ़ने से हम लोगों ने कीमतों में दोबारा संशोधन करने का फैसला लिया है। गौरतलब है कि नैफेड के जिम्मे हर महीने प्याज के न्यूनतम निर्यात मूल्य को तय करने की जिम्मेदारी होती है। पिछले साल अप्रैल से जुलाई के बीच 3.11 लाख टन प्याज का निर्यात किया गया था।
जबकि इस साल अप्रैल से अब तक निर्यात में 36 फीसदी का उछाल आ गया है। जुलाई खत्म होने से पहले ही अब तक 4.25 लाख टन प्याज का निर्यात किया जा चुका है। अप्रैल से अब तक रुपये में हुई 5.5 फीसदी की मजबूती ने भी निर्यात बढ़ाने में असरदार भूमिका निभायी है। नैशनल हॉर्टीकल्चर रिसर्च एंड डेवलपमेंट फाउंडेशन (एनएचआरडीएफ) के मुताबिक, 2007-08 सीजन के दौरान प्याज का अनुमानित उत्पादन 70.45 लाख टन रहने का अनुमान है। यह 2006-07 की तुलना में 12 फीसदी ज्यादा है।......bs-Hindi
पाम ऑयल में जोरदार गिरावट की उम्मीद
July 25, 2008
कच्चे और सोयाबीन तेल की कीमतों में हो रही गिरावट से पाम तेल की कीमत पिछले चार महीने के सबसे निचले स्तर की ओर जाती दिख रही है।
कारोबारियों के अनुसार, पाम तेल के खाद्य और ईंधन उत्पादों में प्रयुक्त होने का आकर्षण कम होने से बाजार में इसकी कीमत में काफी कमी होने की उम्मीद जतायी जा रही है। मलयेशियन डेरिवेटिव एक्सचेंज में अक्टूबर डिलीवरी वाले पाम तेल की कीमतों में 1.1 प्रतिशत की गिरावट आई और इसका कारोबार 946 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गया।
मालूम हो कि कच्चे तेल की कीमत के प्रति बैरल 123.50 डॉलर होने से इस सप्ताह पाम तेल की कीमत सात महीने के न्यूनतम स्तर तक चली गयी थी। अमेरिका और जापान में कच्चे तेल की मांग घटने से 5 जून के बाद पाम तेल की यह सबसे कम कीमत थी। अक्सर पाम और अन्य वनस्पति तेल कच्चे तेल के मूल्यों का अनुसरण करते हैं। क्योंकि उनका इस्तेमाल वैकल्पिक ईंधन के रुप में किया जाता है।
मलयेशिया में वनस्पति तेलों के रेकॉर्ड भंडार और अर्जेंटीना, जिसका सोयाबीन उत्पादन में विश्व में तीसरा स्थान है, के खाद्य निर्यात पर कर लगाने की योजना के टलने से पिछले महीने वनस्पति तेल की कीमतों में 13 प्रतिशत की कमी आई थी। शिकागो में दिसंबर डिलीवरी वाले सोयाबीन के तेल की कीमत 0.25 प्रतिशत घट कर 60.05 सेंट प्रति पौंड रह गई।
कच्चे और सोयाबीन तेल की कीमतों में हो रही गिरावट से पाम तेल की कीमत पिछले चार महीने के सबसे निचले स्तर की ओर जाती दिख रही है।
कारोबारियों के अनुसार, पाम तेल के खाद्य और ईंधन उत्पादों में प्रयुक्त होने का आकर्षण कम होने से बाजार में इसकी कीमत में काफी कमी होने की उम्मीद जतायी जा रही है। मलयेशियन डेरिवेटिव एक्सचेंज में अक्टूबर डिलीवरी वाले पाम तेल की कीमतों में 1.1 प्रतिशत की गिरावट आई और इसका कारोबार 946 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गया।
मालूम हो कि कच्चे तेल की कीमत के प्रति बैरल 123.50 डॉलर होने से इस सप्ताह पाम तेल की कीमत सात महीने के न्यूनतम स्तर तक चली गयी थी। अमेरिका और जापान में कच्चे तेल की मांग घटने से 5 जून के बाद पाम तेल की यह सबसे कम कीमत थी। अक्सर पाम और अन्य वनस्पति तेल कच्चे तेल के मूल्यों का अनुसरण करते हैं। क्योंकि उनका इस्तेमाल वैकल्पिक ईंधन के रुप में किया जाता है।
मलयेशिया में वनस्पति तेलों के रेकॉर्ड भंडार और अर्जेंटीना, जिसका सोयाबीन उत्पादन में विश्व में तीसरा स्थान है, के खाद्य निर्यात पर कर लगाने की योजना के टलने से पिछले महीने वनस्पति तेल की कीमतों में 13 प्रतिशत की कमी आई थी। शिकागो में दिसंबर डिलीवरी वाले सोयाबीन के तेल की कीमत 0.25 प्रतिशत घट कर 60.05 सेंट प्रति पौंड रह गई।
सोने में अभी और हो सकती है फिसलन
सोने में गिरावट का दौर इस हफ्ते भी बरकरार रहने की उम्मीद है। कच्चे तेल की कीमतों के गिरने से महंगाई से निपटने के लिए किए जाने वाले निवेश हेतु सोने की मांग में कमी आयी है।
उम्मीद की जा रही है कि इसकी मांग में और कमी आएगी। लिहाजा इस हफ्ते सोने की कीमत प्रति औंस 905 डॉलर से नीचे चले जाने की उम्मीद है। अगस्त में डिलीवर होने वाले सोने का भाव न्यू यॉर्क के कॉमैक्स डिवीजन में शुक्रवार को 1.10 डॉलर यानी 0.1 फीसदी की कमी के साथ 921.20 डॉलर तक फिसल गया।
वहीं न्यू यॉर्क के हाजिर कारोबार में सोना 927.40 डॉलर प्रति औंस तक चला गया। लंदन में भी सोने का हाजिर भाव 927 डॉलर प्रति औंस पर बंद हुआ। मालूम हो कि पिछले हफ्ते कच्चे तेल के कमजोर और डॉलर के मजबूत होने से सोने में 40 डॉलर यानी 3.9 फीसदी तक की गिरावट हुई थी।
एमसीएक्स में अगस्त डिलीवरी वाले सोने में 5.56 फीसदी की गिरावट हुई और यह 12,624 रुपये प्रति 10 ग्राम पर बंद हुआ। अप्रैल 09 के अनुबंध में 5.56 फीसदी की कमी हुई और यह 12,900 रुपये पर बंद हुआ। मार्च में सोना 1033.90 डॉलर प्रति औंस तक पहुंच गया था और अब तक इसमें 10 फीसदी से अधिक की कमी आ चुकी है। जबकि कच्चा तेल इस समय 122.50 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर है।
11 जुलाई को रेकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचने के बाद तेल के मूल्य में अब तक 17 फीसदी की कमी हो चुकी है। इस तरह, पिछले साल की तुलना में शुक्रवार तक कच्चे तेल में 71 फीसदी और सोने में 35 फीसदी की वृद्धि हो चुकी थी। कई जानकारों का मानना है कि यदि सोना 900 डॉलर के मनोवैज्ञानिक स्तर से नीचे चला जाता है तब उम्मीद है कि यह 888 डॉलर तक भी पहुंच जाएगा। रेलिगेयर कमोडिटीज के जयंत मांगलिक के अनुसार, अगले एक पखवाड़े के भीतर सोने में 6 से 7 फीसदी की कमी हो सकती है।
उनके मुताबिक, फिलवक्त बुनियादी परिस्थितियां ऐसी हैं कि सोने और कच्चे तेल दोनों में कमी आएगी। उनके मुताबिक, देश में महंगाई की समस्या से जूझने के लिए किए जा रहे प्रयासों के मद्देनजर इन जिंसों में जारी कमजोरी के रुझान कुछ ज्यादा देर तक टिकने की उम्मीद है। इस समय अन्य विदेशी मुद्राओं की तुलना में डॉलर लगातार गिरता जा रहा है। तेल में तेजी का बुलबुला फूटने की बात कही जा रही है। जानकारों के अनुसार, अभी कच्चे तेल की कीमत अपेक्षाकृत नरम रहेगी, जबकि सोने का भाव कच्चे तेल की ही राह पर चलेगा।
अमेरिका और ईरान के बीच का तनाव थोड़ा कम होने से अनुमान लगाया जा रहा है कि कच्चे तेल का यही हाल अगले हफ्ते भी जारी रहेगा। वैसे भी इस वक्त देश में न कोई त्योहार है, न ही शादी-विवाह का मौसम। ऐसे में दुनिया के इस सबसे बड़े उपभोक्ता देश में अभी सोने की कुल खपत बहुत कम है। फिलहाल सोने की कीमत के कम होने की सबसे बड़ी वजह यह भी है।
मुंबई में सोने के कारोबार का मुख्य हब माने जाने वाले जावेरी बाजार के एक कारोबारी ने बताया कि इस वक्त निवेशकों को उम्मीद है कि सोने में अभी और गिरावट आएगी। इसलिए वे अभी निवेश करने से परहेज कर रहे हैं। पिछले महीने ऑफ सीजन होने के बावजूद सोने की खरीदारी सामान्य रही थी लेकिन इन दिनों इसकी खरीदारी बिल्कुल ही शून्य हो गयी है।....bshindi
उम्मीद की जा रही है कि इसकी मांग में और कमी आएगी। लिहाजा इस हफ्ते सोने की कीमत प्रति औंस 905 डॉलर से नीचे चले जाने की उम्मीद है। अगस्त में डिलीवर होने वाले सोने का भाव न्यू यॉर्क के कॉमैक्स डिवीजन में शुक्रवार को 1.10 डॉलर यानी 0.1 फीसदी की कमी के साथ 921.20 डॉलर तक फिसल गया।
वहीं न्यू यॉर्क के हाजिर कारोबार में सोना 927.40 डॉलर प्रति औंस तक चला गया। लंदन में भी सोने का हाजिर भाव 927 डॉलर प्रति औंस पर बंद हुआ। मालूम हो कि पिछले हफ्ते कच्चे तेल के कमजोर और डॉलर के मजबूत होने से सोने में 40 डॉलर यानी 3.9 फीसदी तक की गिरावट हुई थी।
एमसीएक्स में अगस्त डिलीवरी वाले सोने में 5.56 फीसदी की गिरावट हुई और यह 12,624 रुपये प्रति 10 ग्राम पर बंद हुआ। अप्रैल 09 के अनुबंध में 5.56 फीसदी की कमी हुई और यह 12,900 रुपये पर बंद हुआ। मार्च में सोना 1033.90 डॉलर प्रति औंस तक पहुंच गया था और अब तक इसमें 10 फीसदी से अधिक की कमी आ चुकी है। जबकि कच्चा तेल इस समय 122.50 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर है।
11 जुलाई को रेकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचने के बाद तेल के मूल्य में अब तक 17 फीसदी की कमी हो चुकी है। इस तरह, पिछले साल की तुलना में शुक्रवार तक कच्चे तेल में 71 फीसदी और सोने में 35 फीसदी की वृद्धि हो चुकी थी। कई जानकारों का मानना है कि यदि सोना 900 डॉलर के मनोवैज्ञानिक स्तर से नीचे चला जाता है तब उम्मीद है कि यह 888 डॉलर तक भी पहुंच जाएगा। रेलिगेयर कमोडिटीज के जयंत मांगलिक के अनुसार, अगले एक पखवाड़े के भीतर सोने में 6 से 7 फीसदी की कमी हो सकती है।
उनके मुताबिक, फिलवक्त बुनियादी परिस्थितियां ऐसी हैं कि सोने और कच्चे तेल दोनों में कमी आएगी। उनके मुताबिक, देश में महंगाई की समस्या से जूझने के लिए किए जा रहे प्रयासों के मद्देनजर इन जिंसों में जारी कमजोरी के रुझान कुछ ज्यादा देर तक टिकने की उम्मीद है। इस समय अन्य विदेशी मुद्राओं की तुलना में डॉलर लगातार गिरता जा रहा है। तेल में तेजी का बुलबुला फूटने की बात कही जा रही है। जानकारों के अनुसार, अभी कच्चे तेल की कीमत अपेक्षाकृत नरम रहेगी, जबकि सोने का भाव कच्चे तेल की ही राह पर चलेगा।
अमेरिका और ईरान के बीच का तनाव थोड़ा कम होने से अनुमान लगाया जा रहा है कि कच्चे तेल का यही हाल अगले हफ्ते भी जारी रहेगा। वैसे भी इस वक्त देश में न कोई त्योहार है, न ही शादी-विवाह का मौसम। ऐसे में दुनिया के इस सबसे बड़े उपभोक्ता देश में अभी सोने की कुल खपत बहुत कम है। फिलहाल सोने की कीमत के कम होने की सबसे बड़ी वजह यह भी है।
मुंबई में सोने के कारोबार का मुख्य हब माने जाने वाले जावेरी बाजार के एक कारोबारी ने बताया कि इस वक्त निवेशकों को उम्मीद है कि सोने में अभी और गिरावट आएगी। इसलिए वे अभी निवेश करने से परहेज कर रहे हैं। पिछले महीने ऑफ सीजन होने के बावजूद सोने की खरीदारी सामान्य रही थी लेकिन इन दिनों इसकी खरीदारी बिल्कुल ही शून्य हो गयी है।....bshindi
Pulses Market onpen rat
New Delhi, 28th July! In the benchmark Delhi Market Chana is maintaining firm position. Chana of Jaipur opened firm at Rs.2675 per quintal. Chana firm by Rs.50 per quintal good demand and good supply.
In the benchmark Delhi market chana is witnessing firm position. MP Chana opened firm at Rs 2600 where as Rajasthan Chana at Rs 2625 both up by Rs50. Strengthening of demand along with moderate arrivals are witnessed in the market.
Monday, Moong, of Jaipur origin in Delhi physical market Opened firm at Rs.3200 per quintal as compared with previous day’s price level of Rs.3300 per quintal.
In the benchmark Delhi market chana is witnessing firm position. MP Chana opened firm at Rs 2600 where as Rajasthan Chana at Rs 2625 both up by Rs50. Strengthening of demand along with moderate arrivals are witnessed in the market.
Monday, Moong, of Jaipur origin in Delhi physical market Opened firm at Rs.3200 per quintal as compared with previous day’s price level of Rs.3300 per quintal.
Vegetable oil prices are likely to revive slightly
New Delhi 28th July! Vegetable oil prices in the domestic spot markets are likely to trade range –bound with firm bias on Monday following bearish and bullish factors.
Recovery of soy oil at CBOT during the weekend and decrease in oilseeds acreage compared to last year will provide necessary support to the market. On the other hand lack of demand around current levels is weighing on the market.
CPO futures at BMD opened firm and the active Oct ’08 contract is currently trading at MYR 3134/ton, up by 64 ringgit per ton in comparison with previous close....Agriwatch
Recovery of soy oil at CBOT during the weekend and decrease in oilseeds acreage compared to last year will provide necessary support to the market. On the other hand lack of demand around current levels is weighing on the market.
CPO futures at BMD opened firm and the active Oct ’08 contract is currently trading at MYR 3134/ton, up by 64 ringgit per ton in comparison with previous close....Agriwatch
India’s ban on maize export hits Lanka’s poultry industry
Sri Lanka’s poultry industry faced a serious situation after India banned maize exports, the All Island Poultry Association (AIPA) said. AIPA Chairman Dr. D.D. Wanasinghe said that if the authorities failed to give a solution the industry would collapse.
Over 50% of the poultry food is maize and the industry depends heavily on Indian maize imports. India banned maize exports from July and today the millers have stocks only for ten days.
We met Ministry officials and they said that the Ministry would discuss the matter with the Indian authorities and try to get some relief, Dr. Wanasinghe said. The total demand for maize in the country is around 200,000 MT a year and the local production is limited to 25,000-30,000 Mt per year.
As maize is used to produce ethanol the price of maize in the world market has increased sharply.
Though there is a huge domestic market there is no attempt to increase production. Today, the Government charges 20% cess on maize imports but this money has never been used to assist farmers to increase production. The tax only benefited the intermediaries.
Dr. Wanasinghe said that the market has just begun to recover from the crisis created after the Consumer Protection Authority (CPA) enforced the maximum retail price for chicken.
In January, the CPA set a maximum retail price of Rs. 300 per kilogram for chicken, below the cost of production, Dr. Wanasinghe said.
After the price control most of the small farmers abandoned production while large-scale farmers limited production and there has been a big shortage of chicken in the market since January this year.
After lengthy discussions with the CPA, the authorities, agreed to increase the maximum price of chicken to Rs. 320 per kg from July 1.
However, the price is still at break even and for the business to be profitable the price should be Rs. 350 per Kg. The price of maize increased by 12% from July 1 and the industry is again getting deeper into the crisis. However, after the CPA revised the price there is progress in the market as farmers resumed chicken raring.
Dr. Wanasinghe said the CPA should be flexible and the authorities should help the industry to sustain this progress.
The Government could reduce the huge tax it charges at several stages in the chicken production process to make chicken an affordable commodity for consumers, without harming the industry. Today, the Government charges Rs. 55 as VAT per kg of chicken, Dr. Wanasinghe said. ....sunday observer
Over 50% of the poultry food is maize and the industry depends heavily on Indian maize imports. India banned maize exports from July and today the millers have stocks only for ten days.
We met Ministry officials and they said that the Ministry would discuss the matter with the Indian authorities and try to get some relief, Dr. Wanasinghe said. The total demand for maize in the country is around 200,000 MT a year and the local production is limited to 25,000-30,000 Mt per year.
As maize is used to produce ethanol the price of maize in the world market has increased sharply.
Though there is a huge domestic market there is no attempt to increase production. Today, the Government charges 20% cess on maize imports but this money has never been used to assist farmers to increase production. The tax only benefited the intermediaries.
Dr. Wanasinghe said that the market has just begun to recover from the crisis created after the Consumer Protection Authority (CPA) enforced the maximum retail price for chicken.
In January, the CPA set a maximum retail price of Rs. 300 per kilogram for chicken, below the cost of production, Dr. Wanasinghe said.
After the price control most of the small farmers abandoned production while large-scale farmers limited production and there has been a big shortage of chicken in the market since January this year.
After lengthy discussions with the CPA, the authorities, agreed to increase the maximum price of chicken to Rs. 320 per kg from July 1.
However, the price is still at break even and for the business to be profitable the price should be Rs. 350 per Kg. The price of maize increased by 12% from July 1 and the industry is again getting deeper into the crisis. However, after the CPA revised the price there is progress in the market as farmers resumed chicken raring.
Dr. Wanasinghe said the CPA should be flexible and the authorities should help the industry to sustain this progress.
The Government could reduce the huge tax it charges at several stages in the chicken production process to make chicken an affordable commodity for consumers, without harming the industry. Today, the Government charges Rs. 55 as VAT per kg of chicken, Dr. Wanasinghe said. ....sunday observer
Fears of major crop damage recede as met predicts revival of monsoon
New Delhi, 26th July! The monsoon, which had played truant in southern and western India after early enthusiasm, is likely to revive soon, abating fears of a major drop in production of oil seeds, pulses and rice in large parts of the country, reports Our Bureau in New Delhi.
According to the India Meteorological Department (IMD), the rains are likely to gather momentum around Sunday. In fact, breaking a disconcertingly long dry spell, it’s been raining in most parts of Maharashtra, including Mumbai, for the past couple of days.
A low pressure area over west-central and adjoining north-west Bay of Bengal around July 27 could mark the revival of monsoon activity, IMD told a multi-expert Crop Weather Watch Group (CWWG) on Friday.
“Rainfall activity is likely to increase considerably over central and adjoining peninsular India, particularly over Andhra Pradesh and Maharashtra... it is also likely to increase along the west coast and Gujarat, with the possibility of heavy to very heavy rainfall,” the agency maintained. The turnaround, if it happens, should be a welcome relief for the government, which is battling double-digit inflation and does not want scanty rains to hit crop production.
Rains have been scanty in 15 out of the country’s 36 meteorological sub-divisions. Since the beginning of the monsoon on June 1 till July 23, rainfall across the country has been 2% short of the long period average (LPA) of 89 cm. For July 17-23, the deficit was 33%. Northwest India has seen bounteous rains since June 1 — 43% more than the LPA — while central India and the southern peninsula witnessed shortfalls of 15% and 32%, respectively.
Rainfall was 62% below LPA in Marathwada. The shortfall was 49% in madhya Maharashtra and 43% in Kerala.
The marked rainfall deficit till the crucial sowing month of July has already impacted prices of commodities, including pulses, oilseeds (groundnut and soyabean), sugar, maize and even rice, threatening high retail prices as tight output fears loom. Spurred by lower output fears and fresh rainfall deficit data, maize August futures were up 1.18% at Rs 1,075 per 100 kg on NCDEX on Friday. Agriculture ministry data showed that acreage under corn was 4.10 million hectares till July 18, compared with 4.27 million hectares in the same period last year.
Poor monsoons in the first half of July have already affected the prices of pulses and sugar. Between July 1-15, lack of rains in the sowing period for pulses in Maharashtra, Andhra Pradesh and Karnataka —which together account for 65% of the country’s kharif pulses output — pushed up the prices by a good Rs 300-400/quintal, pegging moong at a high of around Rs 3,125/quintal, urad at Rs 3,200/quintal and tur dal in the range of Rs 3,200-3,225/quintal.
According to Friday’s data released by the agriculture ministry, pulses acreage has come down to 63.8 lakh hectares this year compared to 77.8 lakh hectares in the corresponding period last year. Normally, around 109 lakh hectares come under pulses during each kharif season. “If the rains don’t revive to boost sowing, the prices of pulses will be driven up higher on projections of lower output,” commodity watchers said.
Meanwhile, reports of poor rains in Madhya Pradesh and Gujarat have also boosted northward the prices of soyabean and groundnut. Overall oilseed acreage is also down this year at 134.5 lakh hectares compared to 136.9 lakh hectares last year, with the fall mainly in groundnut. With soyabean sowing at crucial stages in Maharashtra, Karnataka and Madhya Pradesh, rains would be beneficial to the soya crop.
Lower sugarcane planting has also been spurred by poor monsoons in cane-growing regions. Planting, thus far, is pegged at a lower 43.2 lakh hectares compared with 52.8 lakh hectares during the year-ago period. The lower planting is expected to tighten sugar prices by 20-25% in the medium-to-long term. Spot prices for sugar in Delhi ruled in the Rs 1,730/quintal on July 18-19, a Rs 125-135/quintal increase.
Significantly, there are also reports of transplantation of key kharif staple, paddy, being impacted adversely in both Andhra Pradesh and Tamil Nadu. Although the CWWG was told that acreage till this week was 170.1 lakh hectares, much higher than last year’s 143.1 lakh hectares, rains are crucial for that to translate into output. “Unless there are rains in the next few days, the paddy crop is likely to be affected,” commodity watchers said. In some other parts, there are reports of heavy rains affecting the crop. -----ET Bureau
According to the India Meteorological Department (IMD), the rains are likely to gather momentum around Sunday. In fact, breaking a disconcertingly long dry spell, it’s been raining in most parts of Maharashtra, including Mumbai, for the past couple of days.
A low pressure area over west-central and adjoining north-west Bay of Bengal around July 27 could mark the revival of monsoon activity, IMD told a multi-expert Crop Weather Watch Group (CWWG) on Friday.
“Rainfall activity is likely to increase considerably over central and adjoining peninsular India, particularly over Andhra Pradesh and Maharashtra... it is also likely to increase along the west coast and Gujarat, with the possibility of heavy to very heavy rainfall,” the agency maintained. The turnaround, if it happens, should be a welcome relief for the government, which is battling double-digit inflation and does not want scanty rains to hit crop production.
Rains have been scanty in 15 out of the country’s 36 meteorological sub-divisions. Since the beginning of the monsoon on June 1 till July 23, rainfall across the country has been 2% short of the long period average (LPA) of 89 cm. For July 17-23, the deficit was 33%. Northwest India has seen bounteous rains since June 1 — 43% more than the LPA — while central India and the southern peninsula witnessed shortfalls of 15% and 32%, respectively.
Rainfall was 62% below LPA in Marathwada. The shortfall was 49% in madhya Maharashtra and 43% in Kerala.
The marked rainfall deficit till the crucial sowing month of July has already impacted prices of commodities, including pulses, oilseeds (groundnut and soyabean), sugar, maize and even rice, threatening high retail prices as tight output fears loom. Spurred by lower output fears and fresh rainfall deficit data, maize August futures were up 1.18% at Rs 1,075 per 100 kg on NCDEX on Friday. Agriculture ministry data showed that acreage under corn was 4.10 million hectares till July 18, compared with 4.27 million hectares in the same period last year.
Poor monsoons in the first half of July have already affected the prices of pulses and sugar. Between July 1-15, lack of rains in the sowing period for pulses in Maharashtra, Andhra Pradesh and Karnataka —which together account for 65% of the country’s kharif pulses output — pushed up the prices by a good Rs 300-400/quintal, pegging moong at a high of around Rs 3,125/quintal, urad at Rs 3,200/quintal and tur dal in the range of Rs 3,200-3,225/quintal.
According to Friday’s data released by the agriculture ministry, pulses acreage has come down to 63.8 lakh hectares this year compared to 77.8 lakh hectares in the corresponding period last year. Normally, around 109 lakh hectares come under pulses during each kharif season. “If the rains don’t revive to boost sowing, the prices of pulses will be driven up higher on projections of lower output,” commodity watchers said.
Meanwhile, reports of poor rains in Madhya Pradesh and Gujarat have also boosted northward the prices of soyabean and groundnut. Overall oilseed acreage is also down this year at 134.5 lakh hectares compared to 136.9 lakh hectares last year, with the fall mainly in groundnut. With soyabean sowing at crucial stages in Maharashtra, Karnataka and Madhya Pradesh, rains would be beneficial to the soya crop.
Lower sugarcane planting has also been spurred by poor monsoons in cane-growing regions. Planting, thus far, is pegged at a lower 43.2 lakh hectares compared with 52.8 lakh hectares during the year-ago period. The lower planting is expected to tighten sugar prices by 20-25% in the medium-to-long term. Spot prices for sugar in Delhi ruled in the Rs 1,730/quintal on July 18-19, a Rs 125-135/quintal increase.
Significantly, there are also reports of transplantation of key kharif staple, paddy, being impacted adversely in both Andhra Pradesh and Tamil Nadu. Although the CWWG was told that acreage till this week was 170.1 lakh hectares, much higher than last year’s 143.1 lakh hectares, rains are crucial for that to translate into output. “Unless there are rains in the next few days, the paddy crop is likely to be affected,” commodity watchers said. In some other parts, there are reports of heavy rains affecting the crop. -----ET Bureau
26 जुलाई 2008
कमजोर उठाव से इलायची नरम
कमजोर उठाव से इलायची नरम
नई दिल्ली, 26 जुलाई। व्यापारिक सूत्रों के अनुसार पहाड़ी क्षेत्रों में हल्की वर्षा होने की वजह से इलायची के भावों में 15 रूपये प्रति किलोग्राम की गिरावट दर्ज की गई। पिछले दिनों फसल अच्छी मानते हुए उत्पादन 12 हजार टन के आसपास रहने की संभावना व्यक्त की जा रही थी लेकिन, वर्तमान में उत्पादन आंकड़ों को लेकर व्यापारियों के बीच मतभेद शुरू हो गए हैं। कुछ व्यापारी इस उत्पादन को कम इसलिए मान रहे हैं क्योंकि चालू फसल सीजन में वर्षा का लेवल औसत स्तर से काफी कम रहा है। वर्तमान में इलायची की आवक 18 से 20 टन की हो रही है।
नई दिल्ली, 26 जुलाई। व्यापारिक सूत्रों के अनुसार पहाड़ी क्षेत्रों में हल्की वर्षा होने की वजह से इलायची के भावों में 15 रूपये प्रति किलोग्राम की गिरावट दर्ज की गई। पिछले दिनों फसल अच्छी मानते हुए उत्पादन 12 हजार टन के आसपास रहने की संभावना व्यक्त की जा रही थी लेकिन, वर्तमान में उत्पादन आंकड़ों को लेकर व्यापारियों के बीच मतभेद शुरू हो गए हैं। कुछ व्यापारी इस उत्पादन को कम इसलिए मान रहे हैं क्योंकि चालू फसल सीजन में वर्षा का लेवल औसत स्तर से काफी कम रहा है। वर्तमान में इलायची की आवक 18 से 20 टन की हो रही है।
काली मिर्च का उत्पादन घटने के आसार
काली मिर्च का उत्पादन घटने के आसार
नई दिल्ली, 26 जुलाई। रूपये के मुकाबले डॉलर में गिरावट से कालीमिर्च निर्यातकों को एक झटका जरूर लगा है जिसके कारण निर्यातकों ने भाव घटाकर कालीमिर्च खरीदने की कोशिश की लेकिन, हाजिर में उनको माल नहीं मिला। इस समय कालीमिर्च निर्यातक कालीमिर्च का वायदा नीचे होने से वायदा बाजार में खरीद कर रहे हैं। उत्पादक क्षेत्रों के व्यापारियों का कहना है कि इस साल वर्षा पिछले सालों की अपेक्षा काफी कम होने से कालीमिर्च की फसल अपने समय से कुछ देरी से आ सकती है। इसके अलावा, उत्पादन भी कुछ कम रहने की संभावना व्यक्त की जा रही है। व्यापारियों का मानना है कि कुछ अभी कुछ समय के लिए इंतजार करो व देखों की नीति अपनानी चाहिए।
नई दिल्ली, 26 जुलाई। रूपये के मुकाबले डॉलर में गिरावट से कालीमिर्च निर्यातकों को एक झटका जरूर लगा है जिसके कारण निर्यातकों ने भाव घटाकर कालीमिर्च खरीदने की कोशिश की लेकिन, हाजिर में उनको माल नहीं मिला। इस समय कालीमिर्च निर्यातक कालीमिर्च का वायदा नीचे होने से वायदा बाजार में खरीद कर रहे हैं। उत्पादक क्षेत्रों के व्यापारियों का कहना है कि इस साल वर्षा पिछले सालों की अपेक्षा काफी कम होने से कालीमिर्च की फसल अपने समय से कुछ देरी से आ सकती है। इसके अलावा, उत्पादन भी कुछ कम रहने की संभावना व्यक्त की जा रही है। व्यापारियों का मानना है कि कुछ अभी कुछ समय के लिए इंतजार करो व देखों की नीति अपनानी चाहिए।
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