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04 अप्रैल 2013
खरीद में निजी हाथ का लेंगे साथ : थॉमस
खाद्य मंत्री के वी थॉमस ने इस बात को स्वीकार किया कि निजी क्षेत्र की सक्रिय भागीदारी के बिना सरकार के लिए अपने बूते गेहूं और चावल के भारी स्टॉक की खरीदारी और उसका प्रबंधन करना एक बड़ी चुनौती है। उन्होंने बुधवार को कहा कि खरीद में निजी भागीदारी बढ़ाने के लिए प्रमुख औद्योगिक संस्थाओं के साथ मिलकर योजना बनाई जा रही है।
थॉमस ने 'भारत की खाद्य सुरक्षा और दूसरी हरित क्रांति परÓ आयोजित परिचर्चा से इतर कहा, 'वर्ष 2013-13 में सरकार करीब 4.4 से 4.6 करोड़ टन गेहूं खरीद सकती है, जबकि पिछले साल खरीद करीब 3.8 करोड़ टन थी। देश की जरूरत महज 2.6-2.7 करोड़ टन है। इसलिए सरकार खाद्यान्न की सबसे बड़ी खरीदार बन गई है, क्योंकि निजी कंपनियां पिछले दो वर्षों से प्रमुख गेहूं और चावल उत्पादक क्षेत्रों से गायब हैं। इसे बदला जाना चाहिए।'
यह परिचर्चा भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की वार्षिक आम बैठक का हिस्सा थी। उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र आलोचना से नहीं बच सकता, क्योंकि उसकी प्रवृत्ति है कि जब गेहूं और चावल की बंपर आपूर्ति होती है तब वह खरीद नहीं करता है और बाद में सरकार से सस्ती दरों पर अपने लिए स्टॉक निकालने की मांग करता है। थॉमस ने कहा, 'निजी कारोबारियों की भी कुछ सामाजिक प्रतिबद्धताएं हैं और आप न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे खाद्यान्न की खरीद नहीं कर सकते।Ó
भारत का खाद्यान्न स्टॉक 1 मार्च 2013 को 6.5 करोड़ टन से ज्यादा होने का अनुमान है। सरकार अगले कुछ महीनों में 4.4-4.6 करोड़ टन गेहूं खरीदने की योजना बना रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि 1 जुलाई 2013 तक अनाज का स्टॉक 9 करोड़ टन के आंकड़े को छू सकता है। कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) के चेयरमैन अशोक गुलाटी ने कहा, 'यह चिंतित करने वाली स्थिति है और हम देश के खाद्यान्न कारोबार के राष्ट्रीयकरण की स्वीकृति नहीं दे सकते। हमने बाजार की उचित गतिविधि को रोक दिया और भारत के खाद्यान्न कारोबार से निजी कारोबारियों को बाहर कर दिया।'
गुलाटी ने कहा, 'मैंने खाद्य मंत्री से कुछ मुद्दों पर चर्चा की थी और कहा था कि नकद हस्तांतरण एक उचित तरीका हो सकता है।Ó परिचर्चा में कृषि सचिव आशीष बहुगुणा ने कहा कि भारतीय किसानों ने ही यह सुनिश्चित किया है कि देश आने वाले कुछ समय तक खाद्य सुरक्षा के मामले में आत्म निर्भर बना रहे। बहुगुणा ने कहा, 'कृषि से आय औसतन 10,000 रुपये प्रति वर्ष है, लेकिन गैर-कृषि स्रोतों से आय औसतन 80,000 रुपये है। इसलिए हमें कृषि पर बोझ घटाना होगा और गैर-कृषि क्षेत्र में पर्याप्त मौके सृजित कर ग्रामीण क्षेत्र के ज्यादा से ज्यादा लोगों को इससे जोडऩा होगा।' (BS Hindi)
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