महीनों से कोई निर्यात सौदा कर पाने में नाकाम रहे भारतीय मक्का उत्पादक अब स्थानीय चिकन फार्मों से लाखों टन मक्के की खपत करने की उम्मीद कर रहे हैं। एशिया में मक्के के प्रमुख निर्यातक भारत को अपना स्टॉक बेचने के लिए इस वर्ष कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। इसकी वजह है कि अमेरिका और दक्षिण अमेरिका के देशों में रिकॉर्ड उत्पादन है जिसके कारण वैश्विक बेंचमार्क कीमतें पांच साल के निचले स्तर तक गिर गई हैं और भारत का मक्का उसके मुकाबले महंगा है। यूएस ग्रेंस काउंसिल के भारत के प्रतिनिधि अमित सचदेव के मुताबिक, 'अक्टूबर से अब तक कोई भी मक्का निर्यात सौदा नहीं हुआ है।'
विश्लेषकों का कहना है कि घरेलू स्तर पर मुर्गीदाने की मांग में इजाफा होने से मक्के की खपत कुछ हद तक बढऩे की उम्मीद है। पोल्ट्री उत्पादकों को उम्मीद है कि मक्के की खपत 10 फीसदी तक बढ़ सकती है। भारत के पोल्ट्री उत्पादन में हर साल इजाफा हो रहा है क्योंकि आय बढऩे की वजह से दुनिया के दूसरे सबसे अधिक आबादी वाले देश में मांस की मांग में इजाफा हो रहा है।
स्थानीय मांग पर नजर
दिग्गज भारतीय मक्का निर्यातकों को राहत मिलने की उम्मीद नजर आ रही है क्योंकि खरीदार भारतीय आपूर्तियों के लिए उचित प्रीमियम मिलने की उम्मीद कर रहे हैं। अगस्त से भारतीय मक्के की कीमत में 10 फीसदी की गिरावट के साथ इसकी कीमत 210-220 डॉलर प्रति 100 किग्रा तक पहुंच गई इसके बावजूद इसकी कीमत अमेरिका जैसे देशों के मुकाबले अधिक ही रही। भारत आमतौर पर सौदे के ऑफर हासिल करने में तभी सफल होता है जब वह अपने प्रतिद्वंद्वी आपूर्तिकर्ताओं के मुकाबले 5-6 फीसदी छूट देता है।
कारोबारियों की उम्मीद है कि इस साल मक्के का उत्पादन 220 लाख टन रहेगा जो एक साल पहले के मुकाबले 10 फीसदी कम है। चूंकि निर्यात सौदे होने बहुत ही मुश्किल है ऐसे में पोल्ट्री क्षेत्र की मांग पर ही मक्का किसानों की उम्मीदें टिकी हुई हैं। पोल्ट्री फार्मों के लिए भी अपनी जरूरत के मुताबिक मक्का स्थानीय स्तर पर खरीदना ज्यादा बेहतर होगा क्योंकि आयातित मक्का मालभाड़े और परिवहन के अन्य शुल्कों के बाद महंगा हो जाएगा। (BS Hindi)
विश्लेषकों का कहना है कि घरेलू स्तर पर मुर्गीदाने की मांग में इजाफा होने से मक्के की खपत कुछ हद तक बढऩे की उम्मीद है। पोल्ट्री उत्पादकों को उम्मीद है कि मक्के की खपत 10 फीसदी तक बढ़ सकती है। भारत के पोल्ट्री उत्पादन में हर साल इजाफा हो रहा है क्योंकि आय बढऩे की वजह से दुनिया के दूसरे सबसे अधिक आबादी वाले देश में मांस की मांग में इजाफा हो रहा है।
स्थानीय मांग पर नजर
दिग्गज भारतीय मक्का निर्यातकों को राहत मिलने की उम्मीद नजर आ रही है क्योंकि खरीदार भारतीय आपूर्तियों के लिए उचित प्रीमियम मिलने की उम्मीद कर रहे हैं। अगस्त से भारतीय मक्के की कीमत में 10 फीसदी की गिरावट के साथ इसकी कीमत 210-220 डॉलर प्रति 100 किग्रा तक पहुंच गई इसके बावजूद इसकी कीमत अमेरिका जैसे देशों के मुकाबले अधिक ही रही। भारत आमतौर पर सौदे के ऑफर हासिल करने में तभी सफल होता है जब वह अपने प्रतिद्वंद्वी आपूर्तिकर्ताओं के मुकाबले 5-6 फीसदी छूट देता है।
कारोबारियों की उम्मीद है कि इस साल मक्के का उत्पादन 220 लाख टन रहेगा जो एक साल पहले के मुकाबले 10 फीसदी कम है। चूंकि निर्यात सौदे होने बहुत ही मुश्किल है ऐसे में पोल्ट्री क्षेत्र की मांग पर ही मक्का किसानों की उम्मीदें टिकी हुई हैं। पोल्ट्री फार्मों के लिए भी अपनी जरूरत के मुताबिक मक्का स्थानीय स्तर पर खरीदना ज्यादा बेहतर होगा क्योंकि आयातित मक्का मालभाड़े और परिवहन के अन्य शुल्कों के बाद महंगा हो जाएगा। (BS Hindi)
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