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07 जुलाई 2009
किसानों के साथ मात्र छलावा
आम बजट में चालू वित्त वर्ष के दौरान कृषि विकार दर चार फीसदी करने का लक्ष्य तय कर सरकार ने भले ही यह संदेश देने की कोशिश की हो कि वह किसानों के साथ है। लेकिन यह छलावे से ज्यादा कुछ नहीं है। सरकार अगर किसान और कृषि क्षेत्र को लेकर गंभीर होती तो किसानों को चार फीसदी ब्याज पर कर्ज मुहैया कराने की घोषणा करती। लेकिन सरकार ने ऐसा कुछ भी नहीं किया है। अभी भी किसानों को ऊंची ब्याज दर पर कर्ज मिल रहा है। यही नहीं, सिर्फ 27 फीसदी किसानों को बैंकों के लोन मिल पा रहा है।इतना ही नहीं देश में आज भी 62 फीसदी खेती और किसान मानसून पर निर्भर करते हैं। या यूं कहें कि देश के आधे से ज्यादा किसान आज भी भगवान के भरोसे है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। सरकार ने बजट में सिंचाई सुविधाओं के विकास और गिरते भूजल स्तर को रोकने की दिशा में कोई पहल न करके देश के किसानाें को एक बार फिर भगवान के भरोसे ही छोड़ दिया है। सरकार ने पिछले वित्त वर्ष में किसानों के 72 हजार करोड़ रुपये के कर्ज माफ कर भले ही वाहवाही लूट ली हो, पर इससे किसानों को कोई खास फायदा नहीं मिला। कर्ज माफी से अगर किसी को फायदा हुआ तो वह बैंक थे, जिन्हें बढ़ते एनपीए से निजात मिल गई। सरकार वाकई किसानों के बार में सोचती तो कृषि क्षेत्र के लिए सकारात्मक कदम उठाती, जिनका इस बजट में बिलकुल अभाव है। इस बात को ऐसे भी समझा जा सकता है कि आज भी देश के 27 फीसदी किसान ही बैंकों से कर्ज हासिल कर पा रहे हैं जबकि शेष 73 फीसदी साहूकारों के चंगुल में फंसे हुए हैं। सरकार किसानों को लेकर कितनी चिंतित है। इसका एक नमूना यह भी है कि गन्ना के समर्थन मूल्यों को 145 से 155 रुपये प्रति क्विंटल करने की सिफारिश के बावजूद सरकार ने समर्थन मूल्य बढ़ाकर 107 रुपये ही किया था। इसी तरह सरकार के जीडीपी के आंकड़े भी भ्रामक है।सरकार बजट में ऐसे प्रावधानों के बूते चार फीसदी कृषि विकास दर और नौ फीसदी आर्थिक वृद्धि दर हासिल करने का सपना देख रही है जो पूरा होने वाला नहीं दिखता। सरकार ने किसानों को 1.16 लाख करोड़ रुपये के कृषि अनुदान की बात भी की है। यह अनुदान किसानों तक पहुंच ही नहीं पा रहा है। इस बजट में सरकार ने खाद पर सीधे अनुदान के प्रावधान की घोषणा की है। पर यह नहीं बताया कि किसानों को यह अनुदान कैसे मिलेगा। सरकार को जल्दी से जल्दी इस बार में ठोस कदम उठाने होंगे वरना यह प्रावधान घोषणा तक ही सीमित रह जाएंगे। कुल मिलाकर देखें तो आम बजट से किसानों को विशेष लाभ होने की संभावना बहुत कम दिखाई देती है।कृष्णवीर चौधरीअध्यक्ष भारतीय कृषक समाज, नई दिल्ली (Buisnes Bhaskar)
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