नई दिल्ली June 18, 2009
कच्चे तेल की पिछले साल दिसंबर महीने के 32.40 डॉलर प्रति बैरल के न्यूनतम मूल्य से दोगुनी हो चुकी कीमतों के बीच बायोडीजल की कीमतें भी बढ़ने लगी हैं।
अप्रैल महीने से ही यूरोप में बायोडीजल की कीमतों में 72 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है। इसकी प्रमुख वजह मांग का बढ़ना है। भारत के उत्पादक इस बढ़ोतरी से मुनाफा काट रहे हैं।
काकीनाडा स्थित नैचुरल बायोएनर्जी प्लांट के प्रबंध निदेशक डीएस भास्कर ने कहा, 'अप्रैल में बायोडीजल की कीमतें अप्रैल महीने में 550 डॉलर प्रति टन थीं, जो इस समय बढ़कर 950 डॉलर प्रति टन पर पहुंच चुकी हैं। कीमतें स्थिर हैं।' काकीनाडा के इस संयंत्र से प्रति माह 8,000 टन बायो डीजल का निर्यात यूरोपीय देशों को किया जाता है। देश के इस पहले बायोडीजल संयंत्र की वार्षिक उत्पादन क्षमता 100,000 टन है।
पिछले साल जुलाई महीने में कच्चे तेल की कीमतें 142 डॉलर प्रति बैरल थीं, जबकि दिसंबर में 32.40 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गईं। बहरहाल इस समय कीमतें लगातार बढ़ रही हैं, क्योंकि बाजार में सुधार के साथ साथ मांग में बढ़ोतरी हो रही है। वर्तमान में इसकी कीमतें 70 डॉलर प्रति बैरल के आसपास हैं।
हैदराबाद की क्लीनसिटी बायोडीजल्स ने देश के सबसे बड़े बायोडीजल संयंत्र की स्थापना की, जिसकी क्षमता 2,50,000 टन प्रतिवर्ष की है। कंपनी ने पिछले सप्ताह निर्यात मांग की पहली खेप भेजी। कंपनी के चेयरमैन और सीईओ श्रीनिवास प्रसाद ने कहा, 'पिछले सप्ताह हमने 10000 टन बायोडीजल स्पेन को भेजा है। पिछला साल बहुत बुरा गया, क्योंकि कच्चे तेल की कीमतें बहुत गिर गईं थीं। अब बाजार में सुधार है और यूरोप तथा अमेरिका में मांग बहुत अच्छी है। अब हम उम्मीद कर रहे हैं कि लगातार निर्यात होगा।'
पिछले साल 12 सितंबर को केंद्रीय कैबिनेट ने बायो ईंधन पर राष्ट्रीय नीति को स्वीकृ ति दे दी थी। इसका उद्देश्य यह था कि पेट्रोल और डीजल में 2017 से 20 प्रतिशत बायो ईंधन मिलाया जा सके। बहरहाल इस समय केवल एथेनॉल की मिलावट (5 प्रतिशत) पेट्रोल में होती है। बायोडीजल मिलाए जाने का काम अभी तक शुरू नहीं हो सका है। इसका परिणाम यह है कि घरेलू उत्पादक विदेशी बाजारों में जगह तलाश रहे हैं।
बहरहाल, खाद्यान्न क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने के साथ खाद्यान्नों की कीमतें भी बढ़ रही हैं, जिसके चलते मक्के और खाद्य तेल की ओर रुझान बढ सकता है। नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनविस का कहना है, 'अगर कच्चे तेल की कीमतें 75 डॉलर प्रति बैरल के आंकडे क़ो पार करती हैं तो यह खाद्य परिदृष्ट को प्रभावित कर सकता है, जिससे बायो ईंधन से रुझान घटकर एक बार फिर खाद्य तेल और अनाज की ओर हो सकता है।'
इंटरनैशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीच्यूट के एशिया प्रमुख अशोक गुलाटी का कहना है कि अगर कच्चे तेल की कीमतों में तेजी बनी रहती है तो अमेरिका में ईंधन के रूप में मक्के की वार्षिक खपत 8 करोड़ टन से बढ़कर 10 करोड़ टन हो जाएगी। (BS Hindi)
19 जून 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें