नई दिल्ली: सरकार ने चावल निर्यात नीति पर फैसले के सिलसिले में सितंबर के आने का राग अलापना शुरू कर दिया है। यह राग खाद्य और वाणिज्य, दोनों ही मंत्रालय एक सुर में गा रहे हैं, हालांकि मॉनसून की अनिश्चितता से चावल के उत्पादन और इससे सरकार की साल 2009-10 में चावल खरीद पर असर पड़ सकता है। खाद्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने ईटी को बताया, 'हम नई चावल निर्यात नीति को मंजूरी देने से पहले यह जान लेना चाहते हैं कि तमाम कल्याणकारी योजनाओं और पीडीएस के लिए खाद्यान्न के कितने भंडारण की जरूरत होगी। हमारे देश के मानसून पर निर्भर होने की वजह से यह बेहद जरूरी है कि हम नए मार्केटिंग सीजन का इंतजार करें और इससे आने वाले सीजन में चावल के उत्पादन का आकलन करें।
इसके साथ ही कोई फैसला करने से पहले चावल की सरकारी खरीदारी की मात्रा जैसे अहम सवालों को सुलझा लिया जाए।' चावल का मार्केटिंग सीजन अक्टूबर से सितंबर तक चलता है। देश में चावल और गेहूं के मौजूदा भंडार निश्चित तौर पर खाद्य सुरक्षा एक्ट को बेहतर तरीके से लागू करने में मदद करेंगे। इस एक्ट के जरिए जरूरतमंद बीपीएल और एएवाई ग्राहकों को पीडीएस के जरिए 25 किलो खाद्यान्न तीन रुपए प्रति किलो की दर से मुहैया कराने की गारंटी दी गई है। पीडीएस के अलावा सरकार की चलाई जा रही मिड डे मील, नरेगा जैसी कल्याणकारी योजनाओं के लिए भी काफी खाद्यन्न की जरूरत होती है। खाद्य, पीडीएस और नागरिक आपूर्ति मंत्री शरद पवार कारोबारियों और निर्यातकों के साथ नई निर्यात पॉलिसी पर लंबी चर्चा कर चुके हैं। नई नीति में चावल को केवल बासमती और गैर बासमती में नहीं बांटा गया है, बल्कि इसमें एक तीसरी क्वालिटी को भी शामिल किया गया है। इसमें साफ, औसत क्वालिटी या एफएक्यू वैराइटी को शामिल किया गया है और इसे पीडीएस के तहत वितरण के लिए तय किया गया है। नई पॉलिसी में निर्यात किए जाने वाले कुल चावल की मात्रा को भी 20 लाख टन के आसपास तय किया गया है। इसके बाद इस पर कारोबारियों की ओर से निर्यात आंकड़ों को लेकर कई तरह के स्पष्टीकरण भी मांगे गए। खाद्य मंत्रालय को दिए गए अपने ज्ञापन में कारोबारियों ने कहा है, 'हमने सरकार से मांग की है कि वह अगले नौ महीने में निर्यात किए जा सकने वाले चावल की सुविधाजनक मात्रा के बारे में अपना रुख साफ करे। इससे हम सरकार को अपनी राय दे पाएंगे। इस तरह की योजनाबद्ध रणनीति से ही हम आने वाले वक्त में उतार-चढ़ाव और खराब नीतिगत बदलावों से बच सकेंगे।' पिछले हफ्ते के अंत में तमाम गतिरोध के बावजूद दक्षिण-पश्चिमी मॉनसून ने आगे बढ़ने में सफलता हासिल की। हालांकि खाद्य मंत्रालय कारोबारियों को इस बारे में बता चुका है कि वह खरीदे जाने वाले चावल की मात्रा और भंडारों के बारे में कोई भी फैसला कम से कम सितंबर शुरुआत तक करेगा। देश की आबादी और पीडीएस सिस्टम के लिए जरूरी भारी खाद्यान्नों की मात्रा के चलते चावल एक अहम तत्व है जिसे सरकार नजरअंदाज नहीं कर सकती है। (ET Hindi)
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