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19 जून 2009

मांग घटने से ईसबगोल निर्यात हुआ कम

अहमदाबाद June 18, 2009
देश से जनवरी से मई के दौरान ईसबगोल के निर्यात में सुधार नहीं हुआ है। वैश्विक आर्थिक संकट की वजह से विदेशी खरीदारों द्वारा कम आयात जा रहा है।
इसी वजह से ईसबगोल का निर्यात वर्ष 2009 के दौरान 20 फीसदी कम ही रहा है। हालांकि उद्योग के खिलाड़ियों को यह उम्मीद है कि जुलाई के महीने में निर्यात मांग में तेजी आएगी।
भारत ने इस साल जनवरी से मई की अवधि के दौरान 2-2.5 लाख बोरी का निर्यात किया है। सन सिलियम इंडस्ट्रीज के मालिक विष्णुभाई पटेल का कहना है, 'पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले निर्यात में 20 फीसदी तक की गिरावट आई।'
जनवरी से मार्च के दौरान अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों ने ज्यादा खरीदारी नहीं की। घरेलू बाजार में वैश्विक मंदी के साथ जिंस की तेज कीमतों ने खरीदारों को बाजार से दूर रहने के लिए मजबूर कर दिया। विष्णुभाई पटेल का कहना है, 'दुनिया भर में मंदी की वजह से ईसबगोल की खरीदार बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने उत्पादों को खरीदने के बजाय भंडार का इस्तेमाल करना ही बेहतर समझा। इस वजह से भी विदेशी ग्राहकों की ओर से मांग कम।'
पूरे सीजन के दौरान ईसबगोल की कीमतें स्थिर रही हैं। फिलहाल घरेलू बाजार में ईसबगोल की कीमतें 1,050 से 1,200 रुपये प्रति 20 किलोग्राम पर चल रही हैं। निर्यात बाजार के लिए ईसबगोल की कीमत 200 रुपये प्रति किलोग्राम है। दूसरे ईसबगोल निर्यातकों का कहना है, 'कॉर्पोरेट खरीदारों की कोशिश होती है कि वह अपनी लागत को कम रखें।
इसी वजह से वे जिंस को कम कीमत पर खरीदना चाहते हैं और कीमतें ज्यादा होने की वजह से घरेलू निर्यातकों की दिक्कतें बढ़ती हैं।' ईसबगोल प्रोसेसर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष नरेन्द्र पटेल का कहना है, 'वित्तीय वर्ष 2007-08 के दौरान ईसबगोल का उत्पादन 11 लाख बोरी हो गया जिसमें से 70 से 80 फीसदी तक का निर्यात हो जाता था।'
अब तक कई बाजारों में पहले से ही 8.5 लाख बोरी ईसबगोल की आवक हो चुकी है। वित्तीय वर्ष 2008-09 में कुल उत्पादन 12 लाख बोरी होने का अनुमान है। गुजरात के ईसबगोल कारोबारियों को यह उम्मीद है कि जुलाई से मांग बढ़ेगी।
इसकी वजह यह वे यह भी मानते हैं कि विदेशी खरीदारों ने पहले से ही अपने भंडार का इस्तेमाल कर लिया है और वे बाजार में जल्दी फिर से लौट सकते हैं। इसके अलावा घरेलू खपत भी पिछले कुछ सालों से 5-7 फीसदी के दायरे में बढ़ रही है। कुल उत्पादन में से 30 फीसदी तक का उपभोग स्थानीय स्तर पर किया जाता है। (BS Hindi)

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