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19 जून 2009
धान की 83 विलुप्त होती किस्में बुवाई के लिए फिर से तैयार
हाईब्रिड किस्मों का बोलबाला होने के बावजूद वैज्ञानिक धान की ऐसी पारंपरिक किस्मों को दुबारा प्रचलन में लाने की कोशिश कर रहे हैं जिनमें कीटों, सूखा या बाढ़ से लड़ने की प्राकृतिक क्षमता है। उन्होंने ऐसी विलुप्त होने के कगार पर पहुंची धान की किस्मों की अशुद्धियां दूर करके 83 किस्में एकत्रित की हैं जिनकी बुवाई के लिए इस साल किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इन किस्मों से धान की खेती में लागत कम होगी।धान की लगभग विलुप्त हो चुकी 83 किस्मों को वैज्ञानिकों ने फिर से उगाने में सफलता पा ली है। इनमें से कुछ किस्में कीट के प्रकोप, सूखा और बाढ़ को सहने की क्षमता रखती हैं और इनमें पोषक तत्व भी संकर किस्मों की तुलना में अधिक हैं। बंगलुरूमें यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंस स्थित ऑर्गेनिक फार्मिग रिसर्च सेंटर (ओएफआरसी) के प्रोजेक्ट कोर्डिनेटर डॉ. एन. देवा कुमार ने बिजनेस भास्कर को बताया कि हरित क्रांति के बाद से ही अधिक पैदावार देने वाली संकर किस्मों के आने से पारंपरिक किस्मों को किसानों ने धीरे-धीरे बोना छोड़ दिया था जिससे ये किस्में विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई थी। लेकिन ओएफआरसी के वैज्ञानिकों ने दो वषों के अथक प्रयास के बाद धान की पुरानी 83 किस्मों को फिर से उगाने और उनके बीज बनाने में सफलता पा ली है। डॉ. कुमार के मुताबिक इन किस्मों के बीजों को उन्होंने स्थानीय किसानों और गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) से जमा किया है। उनका कहना है कि कई वर्षो के बाद इन किस्मों की शुद्धता में काफी कमी आ गई थी, जिसे संस्थान के वैज्ञानिकों ने कई प्रयोगों के बाद पूरी तरह शुद्ध करने में सफलता पा ली है। डॉ. कुमार के मुताबिक इस खरीफ के मौसम में इन किस्मों को और बड़े स्तर पर उगाकर इनकी पैदावार का सही आकलन किया जाएगा और इनके बीजों का उत्पादन बढ़ाया जाएगा। उनका कहना है कि फिलहाल जैविक खेती करने वाले और पारंपरिक फसलों को बोने की चाहत रखने वाले किसानों और संस्थाओं को 250 ग्राम और 500 ग्राम बीज मुफ्त दिए जा रहे हैं, जिससे इनका प्रचार-प्रसार हो सके। इन फसलों के गुणों के कारण किसानों की उत्पादन लागत काफी कम आती है क्योंकि कीटनाशी और रासायनिक खाद का काफी कम उपयोग करना होता है। इसके अलावा इनमें से कई किस्मों में पानी भी कम लगता है। डॉ. कुमार का कहना है कि कीटों के प्रकोप से बचने, सूखा और बाढ़ सहने के इन किस्मों के गुणों को अधिक पैदावार देने वाली संकर धान की किस्मों में भी डाला जा सकता है। संस्थान के वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि अगले खरीफ सीजन तक 90 पारंपरिक किस्में तैयार कर ली जाएंगी। (Business Bhaskar)
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