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11 जून 2009
चीन की मांग बढ़ने से कॉपर के दाम 12 फीसदी सुधरे
चीन में मई के दौरान कॉपर की मांग में काफी इजाफा हुआ है। इस वजह से पिछले एक माह के दौरान कॉपर की कीमतों में 12 फीसदी की तेजी आई है। जानकारों के मुताबिक आर्थिक सुधार के संकेतों की वजह से कॉपर की औद्योगिक मांग बढ़ी है। आगे भी कॉपर की कीमतों में और बढ़ोतरी होने की संभावना है। एक माह के दौरान लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) में कॉपर नकद अनुबंध के दाम 4500 डॉलर से बढ़कर 5046 डॉलर प्रति टन हो चुके हैं। वहीं घरेलू बाजार में इसके दाम 222 रुपये से बढ़कर 248 रुपये प्रति किलो हो गए हैं। बीते महीनों में चीन में सरकार द्वारा राहत पैकेज देने के बाद धातुओं की औद्योगिक मांग में इजाफा हुआ है। दरअसल कॉपर का उपयोग कारों के पाट्र्स और बैटरी आदि बनाने में उपयोग किया जाता है। अप्रैल और मई में वाहनों की बिक्री में जबरदस्त इजाफा हुआ है। चीन की ऑटो मैन्यूफैक्चरिंग एसोसिएशन के मुताबिक अप्रैल में वाहनों की बिक्री 37 फीसदी बढ़कर 8.31 लाख और मई में 34 फीसदी बढ़कर 11.2 लाख हो गई। इसके अलावा चीन में निर्माण क्षेत्रों में भी काफी तेजी से कार्य हुआ है। इस दौरान सड़क, भवन निर्माण और एयरपोर्ट भवन निर्माण का कार्य भी तेजी से हुआ। इन्हीं कारणों से चीन में कॉपर की मांग में इजाफा हुआ है।मेटल विशेषज्ञ अभिषेक शर्मा ने बिजनेस भास्कर को बताया कि कॉपर की चीन में मांग बढ़ने और इक्विटी मार्केट में अधिक निवेश होने के कारण इसकी कीमतों में 12 फीसदी तक की वृद्धि हुई है। उनके मुताबिक प्रमुख कॉपर उत्पादक देश चिली में इसका उत्पादन 1.3 फीसदी घटकर 4.25 लाख टन रह गया। आगे की मांग को देखते हुए चीन की जिआंग जी कॉपर कंपनी माइनिंग क्षमता बढ़ा रही है। डॉलर कमजोर होने के कारण भी इसकी खरीदारी अधिक हो रही है। एंजिल कमोडिटीज के टेक्नीकल विश्लेषक अनुज गुप्ता का कहना है कि इन दिनों डॉलर कमजोर होने से कारोबारियों को कॉपर की खरीदारी करने में फायदा दिख रहा है। इस वजह से इसकी खरीदारी अधिक हो रही है। आने वाले दिनों में कॉपर के मूल्यों में और तेजी आने की संभावना है। झिलमिल एंड फ्रेंडस कॉलोनी इंडस्ट्रियल एरिया सीईटीपी सोसायटी के उपाध्यक्ष और कॉपर कारोबारी सुरेश चंद गुप्ता ने बताया कि आने वाले दिनों में कॉपर के घरेलू दाम 270 रुपये प्रति किलो तक जा सकते हैं। कॉपर की सबसे अधिक खपत इलैक्ट्रिकल में 42 फीसदी, भवन निर्माण में 28 फीसदी, ट्रांसपोर्ट में 12 फीसदी, कंज्यूमर प्रोडक्ट में 9 फीसदी और इंडस्ट्रियल मशीनरी में 9 फीसदी होती है। इसका सबसे अधिक उत्पादन एशिया में 43 फीसदी होता है इसके बाद 32 फीसदी अमेरिका,19 फीसदी यूरोप में किया जाता है। (Business Bhaskar)
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