07 अप्रैल 2009

मांग में कमी से कच्चे रेशम के आयात में दस फीसदी की कमी

दुनिया भर में छाई आर्थिक मंदी का असर सिल्क उद्योग पर भी दिखाई देने लगा है। अमेरिका और यूरोपीय देशों से आई मांग में कमी के चलते देश में रेशमी कपड़़ों का उत्पादन काफी कम हो गया है। इससे देश में कच्चे सिल्क का आयात 10 फीसदी तक कम हो गया। वित्त वर्ष 2007-08 में जनवरी तक देश में कच्चे सिल्क का आयात 6769 टन हुआ था जो 1235 करोड़ रुपये का हुआ था। दूसरी ओर वित्त वर्ष 2008-09 की इसी अवधि में आयात घटकर 6076 टन हो गया है। यह आयात 1350 करोड़ रुपये का हुआ है। घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में सिल्क कपड़ो की मांग में आई कमी और पॉलिएस्टर सिल्क के बढ़ते उपयोग के कारण रेशमी कपड़ों के निर्माता कच्चे सिल्क का आयात कम कर रहे है। हनुमान वीविंग लिमिटेड के चेयरमैन वी. आर. मारुति ने बिजनेस भास्कर को बताया कि सिल्क कपड़ो की मांग में भारी कमी के कारण देश में इनका उत्पादन कम हो गया है, जिसके कारण कच्चे सिल्क के आयात में गिरावट आई है। इसके अलावा चीन से आने वाले कच्चे सिल्क पर लगने वाले भारी शुल्क की वजह से भी इसका आयात कम हुआ है। इस समय चीन के कच्चे सिल्क पर 30 फीसदी का सीमा शुल्क और 20 फीसदी की एंटी डंपिग ड्यूटी लगती है। चीनी कच्चे सिल्क पर एंटी डंपिग डयूटी जनवरी फ्क्क्9 से समाप्त हो रही थी, जिसे सरकार ने अगले एक साल की लिए और बढ़ा दिया है। इसके अलावा उद्योग जगत में कच्ची सिल्क के बजाय पॉलिएस्टर सिल्क का उपयोग तेज़ी से बढ़ा है। भारत पॉलिस्टर का बड़ा उत्पादक देश है। इसके अलावा कच्ची सिल्क के मुकाबले यह सस्ती भी होती है। इस समय कच्चे सिल्क के दाम 1540 रुपये प्रति किलो है, जबकि पॉलिस्टर सिल्क के दाम 1225 रुपये प्रति किलो है। पायल इंटरनेशनल के निदेशक और सिल्क कपड़ों के निर्यातक सुभाष मित्तल के अनुसार अमेरिका और यूरोपीय देशों में कच्चे सिल्क के कपड़ों की बजाय पॉलिएस्टर सिल्क की मांग ज्यादा है। यही वजह है कि देश में इसके कपड़ों का उत्पादन तेज़ी से बढ़ा है। देश में वर्ष 2008 की शुरूआत में घरेलू सिल्क बाजार में पॉलिस्टर सिल्क का हिस्सा 30-35 फीसदी था जो फिलहाल बढ़कर 45-50 फीसदी हो गया है। (Business Bhaskar)

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