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13 अप्रैल 2009
छोटे डेयरी प्लांट भी हैं बेहद फायदेमंद
दूध बेचने की तुलना में उससे बने प्रसंस्कृत उत्पादों को बेचना हमेशा अधिक लाभदायक होता है। इसे ध्यान में रखते हुए इन दिनों दूध के प्रसंस्कृत उत्पादों के निर्माण पर अधिक बल दिया जा रहा है। देश में डेयरी उद्योग को आधुनिक बनाने की जरूरत है और ऐसा दूध के आधुनिक प्लांट लगाकर ही संभव हो सकता है। उनके अनुसार, अगर सही प्रबंधन के साथ दूध के उत्पादों पर अधिक ध्यान दिया जाए तो छोटे प्लांट भी आर्थिक रूप से बेहद लाभदायक साबित हो सकते हैं। पुणो स्थित स्र्ट्िलग इक्विपमेंट प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक रमेश नगंद का कहना है कि छोटे प्लांट में प्रतिदिन दो हजार से लेकर पांच हजार लीटर दूध उत्पादन की क्षमता होती है। उनके अनुसार, अगर पाश्ज्युराइजर की क्षमता सिर्फ दो हजार लीटर दूध प्रति घंटे की है, तो अधिक दूध होने पर या तो उसे देर तक चला सकते हैं या फिर सुबह और शाम को दो बार चला कर दूध को प्रोसेस किया जा सकता है। दूध के प्लांट के कई डिजाइन एनडीआरआई समेत कई निजी कंपनियों ने भी बनाए हैं। हम यहां पर विभिन्न विशेषज्ञों से बातचीत के आधार पर पांच हजार लीटर दूध प्रतिदिन की क्षमता के दूध, घी, फ्लेवर्ड मिल्क, लस्सी के प्लांट का डिजाइन और संभावित लागत दे रहे हैं। जमीन की लागत के बिना इस प्लांट लगाने का खर्च करीब चालीस लाख रुपये आएगा। दूध के प्लांट को विभिन्न भागों में बांट सकते हैं, जैसे, बॉयलर रूम, अमोनिया कंप्रेसर रूम, जनरेटर रूम, सफाई का स्थान, मरम्मत का कमरा, स्टोर, प्रोसेसिंग रूम, कोल्ड स्टोर, लैबोरेटरी, दूध प्राप्त करने का स्थान और बाजार भेजने के लिए गाड़ियों में उत्पाद भरने का स्थान आदि।कोल्ड स्टोर-कोल्ड स्टोर में दूध के पॉलीपैक समेत अन्य उत्पादों को रखा जाता है। इसमें दो दरवाजे होते हैं- एक प्रोसेसिंग रूम में खुलता है और दूसरा माल लोड करने के लिए बाहर की ओर गाड़ी में। पांच हजार लीटर क्षमता के प्लांट के लिए करीब 25/25 फुट तक का कमरा उपयुक्त रहता है। कोल्ड स्टोर की दीवारों में चार इंच तक थर्मोकोल की परत लगाई जाती है, जिससे तापमान ठंडा बना रहता है। पहले दीवार पर 3/3 फुट का चार इंच लंबा और दो इंच चौड़ा लकड़ी का फ्रेम बनाया जाता है। इस फ्रेम के बीच में 1.5/3 फुट की दो इंच मोटी थर्मोकोल शीट को गर्म तारकोल से चिपकाया जाता है। फिर इसके ऊपर मुर्गा जाली लगाकर सीमेंट की परत चढ़ा दी जाती है। कोल्ड स्टोर के दरवाजे और फ्रेम टीक (सागौन) की लकड़ी का बनाया जाता है। दरवाजे के बीच में भी चार इंच थर्मोकोल की परत होती है। कोल्ड स्टोर पर करीब तीन लाख तक खर्च आता है।अमोनिया प्लांट-पांच हजार लीटर क्षमता के प्लांट के लिए 15 से 20 टन क्षमता का अमोनिया कंप्रेसर लगाना बेहतर रहता है। सुपर रेफ्रिजरेशन (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड के नीरज चेकर का कहना है कि कम क्षमता के अमोनिया कंप्रेसर भी मिल जाते हैं, लेकिन क्षमता बढ़ने पर दोबारा अमोनिया का प्लांट स्थापित करने के खर्चे से बचने के लिए अधिकतर प्लांट में अधिक क्षमता का कंप्रेसर स्थापित किया जाता है। अमोनिया प्लांट से कोल्ड स्टोर को ठंड़ा करने के साथ ही चिलर पाश्ज्युराइजर को भी ठंडे पानी की आपूर्ति की जाती है। 15 से 20 टन के अमोनिया प्लांट की पूरी फिटिंग का खर्च करीब 9 लाख रुपये आता है।बॉयलर रूम- प्लांट की क्षमता के अनुरूप बॉयलर बाजार में उपलब्ध हैं। छोटे प्लांट का डिजाइन तैयार करते वक्त बॉयलर में पानी की लगातार आपूर्ति के लिए पानी की टंकी का आकार बड़ा रखा जाता है। आमतौर पर पांच हजार लीटर दूध के प्लांट के लिए कम से कम 20 से 25 हजार लीटर पानी की जरूरत होती है। जब तक प्लांट चालू है, बॉयलर रूम में एक व्यक्ति की तैनाती जरूरी है जो हमेशा पानी के स्तर पर नजर रखे र्औ ईधन की सप्लाई का भी ध्यान रखे। शुभ डेयरी प्लांट के निदेशक डा. सरप्रीत सिंह की राय है कि अगर सोलर हीटर का उपयोग किया जाए तो बॉयलर के लिए थोड़ा गर्म पानी मिलेगा जिससे बॉयलर में जल्दी भांप बननी शुरू हो सकेगी। बॉयलर से निकलने वाली भाप को ले जाने वाली पाइपों के ऊपर ग्लास वूल लगा कर उन्हें इंसुलेट किया जाता है। बॉयलर से निकलने वाली इस भाप को पाश्ज्युराइजर, घी कैटल, दूध के कैन को साफ करने वाले उपकरण तक पहुंचाया जाता है। छोटे दूध के प्लांट के लिए बॉयलर और उसकी सारी फिटिंग का खर्च करीब पांच से छह लाख रुपये आता है।एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट-दूध के प्लांट से निकलने वाले हर पदार्थ का नाले या खेत में बहाने से पहले एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट में उपचारित करना आवश्यक है। पांच हजार लीटर क्षमता के प्लांट के एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट का खर्च करीब तीन लाख रुपये है। यह प्रदूषण नियंत्रण के लिए जरूरी है और अधिकतर राज्यों में एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की मंजूरी के बगैर बिजली का कनेक्शन नहीं मिलता। प्रोसेसिंग रूम-इसमें दूध के विभिन्न उत्पाद तैयार किए जाते हैं। प्रोसेसिंग रूम में पाश्ज्युराइजर, चिलर, क्रीम सेपरेटर, घी कैटल, लस्सी और अन्य उत्पादों को तैयार करने और पैक करने वाला स्थान और पाश्ज्युरीकृत दूध को पैक करने के लिए ऑटोमेटिक पैकिंग मशीन आदि होते हैं। आमतौर पर घी बनाने के लिए दूध से अलग की गई क्रीम का मक्खन बनाया जाता है। मक्खन तैयार करने के लिए चर्नर भी प्रोसेसिंग रूम में स्थापित किया जा सकता है। लेकिन कम खर्च के लिए सीधे क्रीम से भी इसे बनाया जा सकता है। हालांकि इससे घी की प्राप्ति थोड़ी कम होती है। बाजार से जितने दूध की मांग रहती है, उतने को पाश्ज्युरीकृत करने के बाद पैक कर दिया जाता है और फिर इन पॉलीपैक को प्लास्टिक के केट्र में भरकर कोल्ड स्टोर में भेज दिया जाता है। बाकी बची क्रीम से घी बना लिया जाता है और बचे दूध से लस्सी बनाकर प्लास्टिक के ग्लास या फिर थैलियों में पैक कर दिया जाता है। बचे हुए दूध का पनीर भी बनाया जा सकता है जिसे 200 ग्राम के पैकेट में पैक किया जा सकता है। इसके अलावा, दूध से सुगंधित मीठा दूध बनाकर और साफ बोतलों में पैक करके उससे भी कमाई की जा सकती है। पांच हजार लीटर क्षमता के प्लांट में पाश्ज्युराइजर और चिलर का खर्च करीब सात लाख रुपये तक आता है। लैबोरेटरी-दूध के प्लांट में उसकी गुणवत्ता परखने के लिए लैब उसका एक अहम हिस्सा है। इससे जुड़े आवश्यक उपकरणों और रसायनों की सूची है : फैट टेस्टिंग सेंट्रीफ्युगल मशीन, दूध में मौजूद वसा के अलावा अन्य ठोस पदाथरें को मापने के लिए लैक्टोमीटर, बनसन बर्नर, टेस्ट ट्यूब, टेस्ट ट्यूब होल्डर, दूध की सैंपल बोतलों का स्टैंड, दूध की अम्लीयता की जांच करने के लिए टाइट्रेशन की सुविधा। (Business Bhasakr)
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