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13 अप्रैल 2009
प्याज की महंगाई फिर रुलाएगी
नई दिल्ली- प्याज की महंगाई की वजह से 1998 में दिल्ली विधानसभा चुनावों में बीजेपी को कांग्रेस के हाथों हार का सामना करना पड़ा। पिछले साल भर में भी प्याज के दाम कई बार बढ़े हैं। इसके बावजूद इस बार के लोकसभा चुनावों में यह कोई मुद्दा नहीं बना है। मार्च के अंतिम हफ्ते के मुकाबले अप्रैल के पहले हफ्ते में प्याज की कीमतें 639 रुपए चढ़कर 1,150 रुपए प्रति क्विंटल पर चली गईं। ये आंकड़े उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने जारी किए हैं। खुदरा बाजार में प्याज की कीमत 15 रुपए प्रति किलो से ज्यादा चल रही है। पिछले साल चीनी, नमक, तूर दाल, दूध और चावल की कीमतों ने भी आम आदमी की जेब पर बोझ बढ़ाया है। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के मुताबिक, चीनी की कीमतों में 34 फीसदी की जबरदस्त तेजी आई है। इसी तरह से दूध की कीमतों में भी 11.25 फीसदी का उछाल देखा गया है। नमक की कीमतों में इस दौरान 17 फीसदी का उछाल देखा गया है और तूर दाल में 21 फीसदी की तेजी आई है। इन कमोडिटी की कीमतों में ऐसे वक्त पर उछाल देखा जा रहा है जबकि थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति की दर शून्य के स्तर के नजदीक चल रही है। 28 मार्च को खत्म हुए सप्ताह के लिए मुद्रास्फीति की दर गिरकर 0.26 फीसदी पर आ गई। मुदास्फीति की दर में आई गिरावट की वजह से अर्थशास्त्रियों और कारोबारियों को आने वाले वक्त में ब्याज दरों में तेज गिरावट की उम्मीद दिखाई दे रही है। महाराष्ट्र प्याज का प्रमुख उत्पादक राज्य है। राज्य में इसकी पैदावार कम होने से मार्च के अंत तक इसके दाम काफी बढ़ गए थे। पैदावार घटने और घरेलू और विदेशी बाजारों में बढ़ रही मांग की वजह से इसकी कीमतों में उछाल आया। नासिक के नेशनल हॉर्टिकल्चर रिसर्च एंड डेवलपमेंट फाउंडेशन (एनएचआरडीएफ) के अतिरिक्त निदेशक सतीश भोंडे ने कहा, 'निर्यात में तेज उछाल ने प्याज की कीमतों में उछाल पैदा होगी। इसके अलावा, खरीफ की फसल की आमद में हुई देरी ने भी कीमतों को चढ़ाने में योगदान दिया।' भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा प्याज उत्पादक देश है। देश से वित्त वर्ष 2007-08 में 16.25 लाख टन प्याज का निर्यात हुआ था। यह इससे साल हुए निर्यात के मुकाबले 40 फीसदी ज्यादा रहा। विशेषज्ञ कहते हैं कि इसी तरह से तूर और चीनी की थोक कीमतें भी कम उत्पादन होने की आशंका की वजह से ऊपर चढ़ रही हैं। प्रमुख रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री डी के जोशी के मुताबिक, 'मुद्रास्फीति की दर में गिरावट का मतलब यह नहीं है कि खाद्य वस्तुओं की कीमतें नीचे आ गई हैं। खाद्य वस्तुओं की कीमतें बिलकुल अलग कारकों पर निर्भर करती हैं। इन पदार्थों की कीमतें मौसम और उत्पादन अनुमान जैसे घरेलू कारकों पर निर्भर करती हैं।' आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, तूर दाल उत्पादन के साल 2008-09 के दौरान 19 फीसदी गिरकर 24.7 लाख टन पर रहने की आशंका जताई गई है। इससे एक साल पहले तूर दाल का उत्पादन 30.8 लाख टन रहा था। इसी तरह से चीनी उत्पादन 39 फीसदी गिरकर 1.6 करोड़ टन रहने की आशंका है। (ET Hindi)
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