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13 अप्रैल 2009
महाराष्ट्र में ऑर्गेनिक फार्मिंग ने पकड़ा जोर
पुणे- जैविक खेती की पुरजोर वकालत करने वाले कुछेक लोगों की कोशिश से महाराष्ट्र में इसने एक अभियान का रूप ले लिया है। बिना केमिकल वाले खाने-पीने के सामान की सोच से श्रीनिवास कुलकर्णी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने एमएनसी की जमी-जमाई नौकरी छोड़ दी। इसके बाद उन्होंने पुणे में ऑर्गेनिक्स एंड नेचुरल्स के नाम से रीटेल आउटलेट खोल लिया। यह बात छह साल पहले की है। वह बताते हैं, 'मैंने जब पहली बार जैविक खाद्य के बारे में सुना, इस क्षेत्र में काम कर रहे कुछ लोगों से मुलाकात की। इस दौरान मैं सामाजिक कार्यकर्ता वंदना शिवा से भी मिला। उनके काम से मैं इतना प्रभावित हुआ कि इस क्षेत्र में कूद पड़ा।' गौरतलब है कि उन के रीटेल जैविक खाद्य स्टोर ने हाल ही में ब्रेक ईवन हासिल किया है। वह कहते हैं, 'एमएनसी में लंबे समय तक काम करने की वजह से मैं 5 साल तक कारोबार चलाए रखने में कामयाब रहा। इस समय मेरे 1000 ग्राहक हैं जो नियमित रूप से जैविक खाद्य सामग्री खरीदते हैं। यह अपनी तरह का अलग मार्केट है। हमारे पास सिर्फ स्वास्थ्य के प्रति जागरूक और एनआरआई आते हैं।' सामाजिक कार्यकर्ता वसुधा सरदार सर्वजनों के लिए जैविक खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराने पर विचार कर रही थीं। ऐसा इसलिए कि डॉक्टरों ने उनके पति को किसी तरह का कच्चा खाना देने से मना कर दिया था। उनके पति को ब्लड कैंसर था और वह भी काफी एडवांस स्टेज में। वसुधा कहती हैं, 'जब मुझे महसूस हुआ कि जो खाना शरीर के पोषण के लिए खाते हैं वह हमारे लिए जहर बन गया है, वह स्थिति मेरे लिए टर्निंग प्वाइंट बन गया।' वसुधा ने पुणे से 60 किलोमीटर दूर परगांव में 15 किसानों के समूह को अपने खेतों में जैविक फसल उगाने के लिए राजी कर लिया। वहां वसुधा की कुछ खेती की जमीन थी। वसुधा ने बताया, 'गांव में कीटनाशक और खाद की दुकान चलाने वाले एक युवा किसान ने इसमें मेरी मदद की। खेती में इस्तेमाल होने वाले रसायन में कितना खतरा होता है, इस बारे में उसे हमसे ज्यादा पता था। हमने जून 2008 से सब्जियों और दूसरे अनाज की आपूर्ति शुरू कर दी। आज पुणे के 300 परिवार हमारे ग्राहक हैं।' महाराष्ट्र ऑर्गेनिक फार्मिंग फेडरेशन एक एनजीओ है जिसकी स्थापना पूर्व आईपीएस अधिकारी विक्रम बोके ने की है। इसने जैविक खेती करने वाले 2000 किसानों का नेटवर्क अपने तहत आने वाले 120 एनजीओ के जरिए तैयार किया है। महाराष्ट्र ऑर्गेनिक फार्मिंग फेडरेशन के वाइस प्रेसिडेंट दिलीपराव देशमुख के मुताबिक 'किसानों के लिए यह बिना कर्ज की सस्ती खेती है।' जैविक खेती करने वाले लोग अपनी फसल सीधे उपभोक्ताओं या रीटेलरों को बेचते हैं। इस तरह इसमें बिचौलिए नहीं होते और जल्द खराब होने वाले खाने के सामानों के भंडारण की दिक्कत नहीं होती। इससे कारोबारी मुनाफा भी बढ़ता है। वसुधा जैसे लोग ग्रामीण बाजार में सामान्य दरों पर जैविक खाद्य सामग्री बेचते हैं, लेकिन यह सामान्य खाद्य उत्पादों से 30-40 फीसदी महंगा होता है। बाजार में जैविक खाद्य पदार्थों की बिक्री की अपार संभावनाएं हैं लेकिन खरीदार को पता नहीं होता कि ये कहां मिलेंगे और बेचने वालों को यह मालूम नहीं होता कि इन्हें कैसे बेचा जा सकता है। कुलकर्णी कहते हैं, 'भरोसे वाले उत्पाद की उपलब्धता भी काफी मुश्किल काम है।' परगांव, जहां वसुधा जैविक खेती कराती हैं, सिंचित गन्ना क्षेत्र है। यहां किसानों को जैविक खेती के लिए मनाना काफी मुश्किल काम है। लेकिन सूखाग्रस्त विदर्भ में प्रसाद देव के लिए अच्छी खासी संख्या में किसानों को जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित करना अपेक्षाकृत आसान था। वह जैविक खाद्य पदार्थों की कमीशन के आधार पर मार्केटिंग करते हैं। लेकिन प्रसाद देव की एक शिकायत है, 'किसानों का रुझान बेहतर गुणवत्ता वाले जैविक खेती की तरफ कम है।' जैविक खाद्य उत्पादों की गुणवत्ता और उनके प्रति लोगों में विश्वास पैदा करने के लिए उनका सर्टिफिकेशन जरूरी है, लेकिन यह काफी महंगा है। मजे कि बात तो यह है कि किसान निर्यात के लिए उच्च गुणवत्ता वाले जैविक खेती कर रहे हैं। कृषि क्षेत्र की शीर्ष संस्था एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (अपेडा) के मुताबिक, भारत से जैविक खाद्य सामग्री का निर्यात 2007-08 में 30 फीसदी बढ़ गया था। इस समय सर्टिफाइड ऑर्गेनिक कल्टीवेशन के तहत देश में 10 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि पर जैविक खेती होती है।नेचुरल एंड ऑगेर्निक सर्टिफिकेशन एसोसिएशन (एनओसीओ), पुणे के सीईओ के मुताबिक, निर्यात के लिए जैविक खेती करने वाले किसानों का बड़ा तबका सर्टिफिकेशन के लिए बच्चों के खाने पीने के सामान का इस्तेमाल करता है। निर्यात के लिए सटिर्फिकेशन हासिल करना काफी खचीर्ला होता है। इसको देखते हुए कुछ एनजीओ ने घरेलू उपभोग के सामानों के सटिर्फिकेशन के लिए कम खचीर्ला तरीका ईजाद किया है। गोवा में काम कर रहे एनजीओ ऑगेर्निक फार्मिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने गरीब किसानों के लिए पाटिर्सिपेटरी गारंटी सिस्टम तैयार किया है। इसमें कुछ एनजीओ आपस में मिलकर किसानों को अपने उत्पादों के लिए सटिर्फिकेशन हासिल करने में मदद करते हैं। (BS Hindi)
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