11 फ़रवरी 2015

निर्यात पर पाबंदी से घाटे में आलू किसान

बीते 15 दिनों में आलू के दाम 600 रुपये से घटकर 400 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं। जिससे आलू खुदाई के दौरान किसानों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। दरअसल खेतों में आलू की फसल लगाने के समय इसकी कीमत 1,500-1,600 रुपये प्रति क्विंटल थी। लिहाजा उस समय कीमत अच्छी मिलने से किसानों द्वारा ज्यादा आलू बोया गया। हालांकि इसके बाद आलू के दाम गिरने शुरू हुए। 

दाम गिरने की वजह महंगाई काबू में करने के लिए सब्जियों के निर्यात पर पाबंदी मानी जा रही है। इससे पहले निर्यात पाबंदी के तहत पाकिस्तान शामिल नहीं था, लेकिन हाल के निर्णय में पाकिस्तान को भी निर्यात प्रतिबंधित कर दिया गया है। इस वित्त वर्ष की अप्रैल-अक्टूबर अवधि के दौरान पाकिस्तान को सबसे ज्यादा आलू निर्यात हुआ था। आलू किसानों को इसके दाम 1,600 रुपये से घटकर 600 रुपये होने पर ही करीब 20,000 रुपये प्रति एकड़ का घाटा हो रहा था। अब किसानों को प्रति एकड़ 30,000 रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति किसानों द्वारा ऊंची कीमत पर बीज खरीदने के कारण बनी है। 

आलू किसान कुलदीप सिंह ने बताया कि आलू बोने के समय उन्होंने 1,700 रुपये प्रति 50 किलो के हिसाब से आलू बीज खरीदा था। बीज, सिंचाई, मजदूरी, कीटनाशक और ईंधन आदि खर्चों को मिलाकर प्रति एकड़ आलू की लागत 80,000 रुपये से कम नहीं होगी। किसानों को इस समय आलू की कीमत करीब 400 रुपये प्रति क्विंटल मिल रही है। एक एकड़ में 100 क्विंटल आलू पैदा होने पर किसानों को करीब 45,000 रुपये मिलेंगे। ऐसे में उन्हे कम से कम करीब 30,000 रुपये प्रति एकड़ का नुकसान होगा। 

कपूरथला के आलू उत्पादक संघ के उपाध्यक्ष रेशम सिंह चंडी किसानों को नुकसान के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए कहते हैं कि सरकार आलू निर्यात पर पाबंदी नहीं लगाती तो किसानों को अच्छी कीमत मिलती। अगर सरकार ने इस समय भी ध्यान नहीं दिया तो आने वाले दिनों में आलू के दाम और गिरेंगे। जिससे होने वाले नुकसान को किसान वहन नहीं कर पाएंगे। सब्जी बाजार के पर्यवेक्षक या जानकार सुखदेव सिंह ने कहा कि कम मांग के बीच आवक बढऩे से दाम गिरना स्वाभाविक है। ऐसा आगे भी होने वाला है।

जालंधर आलू उत्पादक संघ ने पिछले महीने से नई आवक के बाद लगातार दाम गिरने से किसानों को हो रहे नुकसान से बचाने के लिए राज्य सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है। पंजाब में आलू का रकबा करीब 80,000 हेक्टेअर है। जिसमें 25 फीसदी हिस्सा जालंधर जिले का है। इस संघ के प्रतिनिधि जगत प्रकाश सिंह ने कहा कि इस स्थिति से निबटने के लिए आगे क्या किया जाए, इस बारे में चर्चा के लिए बैठक करेंगे। उन्होंने राज्य सरकार से वर्ष 2004 की तरह इस बार भी दूसरे राज्यों को आलू निर्यात करने पर भाड़ा सब्सिडी की मांग की। क्योंकि आलू के दाम अब तक के निचले स्तर पर आ चुके हैं। जिससे किसान भारी नुकसान में हैं। 

सिंह इस स्थिति को किसानों और उपभोक्ताओं का शोषण करार देते हुए कहते हैं कि सरकार किसानों को नुकसान से उबारने के लिए ठोस योजना बनाकर सामने आए। जिसके तहत पाकिस्तान जैसे अन्य पड़ोसी देशों को आलू निर्यात की इजाजत दी जाए। केंद्र सरकार ने आलू के दाम काफी ज्यादा होने पर हस्तक्षेप किया था। इसी तरह केंद्र सरकार को अब दाम काफी गिरने के दौरान भी हस्तक्षेप करना चाहिए। आलू 800 रुपये क्विंटल बिकने पर ही किसानों की लागत निकलेगी। (BS Hindi)

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