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21 जनवरी 2014
संकट में फंसा जूट उद्योग
जूट आयुक्त ने जूट उद्योग पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि यह ज्यादा ऊंची कीमत हासिल करने के लिए जूट की बोरियों को खुले बाजार में बेचकर अपनी आपूर्ति प्रतिबद्धता को तोड़ रहा है। ये बोरियां सरकारी खरीद एजेंसियों को आपूर्ति करने के लिए थीं, जिनका इस्तेमाल 2012-13 के दौरान खाद्यान्न की भराई के लिए किया जाना था। उद्योग पर आरोप है कि इसने आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीईए) द्वारा लिए गए फैसलों पर भ्रामक बयान जारी किए हैं। 28 नवंबर को सीसीईए ने जूट पैकेजिंग मैटेरियल्स ऐक्ट (जेपीएमए) को अनारक्षित करने का फैसला लिया था और प्लास्टिक कट्टों के इस्तेमाल की स्वीकृति दी थी। समिति ने अधिनियम में बदलाव करते हुए 2013-14 के दौरान देश में उत्पादित 80 फीसदी चीनी और 10 फीसदी अनाज की भराई जूट बोरियों में भराई का प्रावधान किया था। अधिनियम के तहत सरकारी खरीद एजेंसियों के लिए पूरे अनाज और चीनी की भराई जूट बोरियों में करना अनिवार्य है।
वहीं जूट बोरियों की मांग में 9 लाख गांठ की भारी गिरावट के चलते इंडियन जूट मिल्स एसोसिएशन ने अनिवार्य पैकेजिंग में कटौती के आदेश को पलटने की मांग की है। केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय को भेजे पत्र में जूट आयुक्त सुब्रत गुप्ता ने कहा कि 2012-13 में जूट मिलों ने अपना माल खुले बाजार में बेचने को तरजीह दी और इस तरह उन्होंने खाद्यान्न की भराई के लिए सरकार को बोरियों की निर्धारित मात्रा में आपूर्ति नहीं की।
इस स्थिति का सामना करने के लिए सरकार को आरक्षित आदेश को पलटने के लिए बाध्य होना पड़ा। वर्ष 2012-13 में सीसीईए ने चीनी की भराई के लिए 60 फीसदी और अनाज की भराई के लिए 10 फीसदी प्लास्टिक बोरियों के इस्तेमाल का फैसला लिया था। गुप्ता ने कहा कि ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जो यह साबित करते हैं कि जूट उद्योग आपूर्ति करने में असमर्थ रहा है, इसलिए सरकार ने प्लास्टिक कट्टों के इस्तेमाल का फैसला लिया है। खरीफ 2012-13 में खाद्यान्न की भराई में करीब 3,50,000 गांठ (180 किलोग्राम प्रति गांठ) और 2013-14 में 8,61,000 गांठ गैर-जूट सामग्री का इस्तेमाल किया गया।
जूट आयुक्त कार्यालय के मुताबिक नवंबर 2012 और अप्रैल 2013 के बीच माह के अंत में जूट बोरियों की बकाया आपूर्ति 3 से 45 फीसदी रही। हालांकि जूट उद्योग ने इन आरोपों को बेबुनियाद बताया है। हेस्टिंग्स जूट मिल के प्रबंध निदेशक संजय कजारिया ने कहा, 'जूट उद्योग ने अपनी आपूर्ति प्रतिबद्धता में कोताही नहीं बरती है।' (BS Hindi)
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