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14 जनवरी 2014
क्यों फीकी पड़ी कमोडिटी मार्केट की चमक!
पिछले पूरे एक साल लगातार सुर्खियों में रहने के बावजूद पूरा कमोडिटी बाजार बेहद ठंडा रहा है। सिर्फ रिटर्न के लिहाज से नहीं, बल्कि बाजार में कारोबार भी काफी घट गया है। एफएमसी के ताजा आंकड़ों पर गौर करें, तो दिसंबर के अंतिम पखवाड़े में एक्सचेंजों का कारोबार घटकर आधा रह गया है। गौर करने वाली बात ये है कि पिछले एक साल लगातार कमोडिटी मार्केट के कारोबार में गिरावट दर्ज हुई।
कमोडिटी एक्सचेंजों का कारोबार लगातार गिरता रहा है। चालू चित्त वर्ष में वायदा कारोबार में करीब 36 फीसदी की भारी गिरावट आई है। घटते कारोबार को संभालने के लिए एफएमसी अब अपने ही फैसलों को उलटने लगा है। सीएनबीसी आवाज़ ने सबसे पहले आयोग के सामने एक्सचेंजों पर गिरते कारोबार का मुद्दा उठाया था।
एफएमसी ने गिरते कारोबार को बढ़ाने के लिए एल्गो और स्प्रेड के नियमों में भारी बदलाव किया है। खास तौर से छोटे निवेशकों को ध्यान में रखकर शुरू किए गए मिनी और माइक्रो वायदा में भी एल्गो की सहूलियत दे दी गई। एल्गो ऑर्डर की लिमिट बढ़ा दी गई और स्प्रेड ट्रेड की मार्जिन में भारी कटौती भी कर दी गई। गौर करने वाली बात ये है कि एल्गो ट्रेड से रिटेल इन्वेस्टर का कोई लेना-देना नहीं है, शायद इसी वजह से जानकारों की नजर में ये कदम काफी नहीं है।
दरअसल चालू वित्त वर्ष में कमोडिटी एक्सचेंजों का वॉल्यूम 36 फीसदी तक गिर गया है। अप्रैल से दिसंबर तक सोने और चांदी के कारोबार में सबसे ज्यादा करीब 40 फीसदी की गिरावट आई है। पिछले एक साल में सबसे ज्यादा रिटर्न देने वाले क्रूड और नैचुरल गैस के कारोबार में भी करीब 30 फीसदी की भारी गिरावट दर्ज हुई है। बगैर सीटीटी वाले एग्री कमोडिटी का कारोबार भी इस दौरान करीब 33 फीसदी गिर गया है।
दूसरी ओर कमोडिटी बाजार में सुधार के लिए फाइनेंशियल सेक्टर लेजिस्लेटिव रिफॉर्म कमीशन ने एफएमसी को कुछ सुझाव दिए हैं। जिसे लागू करने से पहले एफएमसी ने लोगों की राय मांगी है। देखना होगा इन सुझावों को लागू करने के बाद कमोडिटी बाजार की तस्वीर कैसी होती है।
ट्रेड स्विफ्ट कमोडिटीज के डायरेक्टर संदीप जैन का कहना है कि कमोडिटी बाजार के कारोबारी नियमों में एफएमसी के बदलाव का स्वागत है। हालांकि सीटीटी और एनएसईएल जैसे मामलों ने कमोडिटी बाजार पर दबाव बनाने का काम जरूर किया है। डब्बा ट्रेडिंग और वेयरहाउस की कमी भी कमोडिटी बाजार का कारोबार गिराने में जिम्मेदार हैं। वहीं निर्मल बंग कमोडिटीज के कुणाल शाह का भी मानना है कि सीटीटी और एनएसईएल मामले ने कमोडिटी बाजार को गहरी चोट पहुंचाई है।
हिंदू बिजनेस लाइन के कमोडिटी एडिटर जी चंद्रशेखर का कहना है कि पिछले 10 सालों में वैश्विक बाजारों की तेजी से घरेलू बाजारों को फायदा मिला है। लिहाजा तेजी के दौर में निवेशक कमोडिटी बाजार के साथ थे। हालांकि पिछले 2 सालों से जैसे ही कमोडिटी की कीमतों में नरमी दिखी है उससे निवेशक भी बाजार से दूर रहे हैं। ऐसे में निवेशकों के दूर होने से कमोडिटी मार्केट के कारोबार में गिरावट आना स्वाभाविक है। (Hindi>Moneycantorl.com)
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