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02 दिसंबर 2013
भारत ने ठुकराया खाद्य सुरक्षा पर विकसित देशों का प्रस्ताव
खाद्य सुरक्षा के मामले में विकसित देशों की ओर से प्रस्तुत अंतरिम समाधान को खारिज करते हुए वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने डब्ल्यूटीओ की 9वीं मंत्रिस्तरीय बैठक से पहले सोमवार को जी-33 देशों के समूह की बैठक में एक बयान में भारत की चिंताओं को मजबूती से रखते हुए कहा कि खाद्य सुरक्षा का मामला भारत के लिए न केवल एक संवेदनशील मुद्दा है बल्कि यह सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
शर्मा ने कहा कि भारत में खाद्य सुरक्षा के मुद्दे पर राष्ट्रीय आम सहमति है और सभी राजनीतिक दल इस पर एक राय रखते हैं ऐसे में इस समय जो अंतरिम समाधान सुझाया जा रहा है उस समाधान को स्वीकार करना हमें मुश्किल होगा। उन्होंने कहा कि खाद्य सुरक्षा के अधिकार की डब्ल्यूटीओ के मंच पर किसी भी चुनौती से अनिवार्य तौर पर रक्षा की जानी चाहिए।
जी-33 भारत समेत 46 देशों का एक समूह है जो अनाज की सरकारी खरीद और गरीब व कमजोर आबादी को खाद्य सहायता देने के अधिकार के मुद्दे को मिल कर उठा रहा है। अमेरिका और अन्य विकसित देश चाहते हैं कि भारत जैसे देश अपनी खाद्य सब्सिडी (एमएसपी और पीडीएस कार्यक्रम पर सरकारी सहायता) को मौजूदा नियमों के तहत कुल कृषि उत्पादन के 10 प्रतिशत तक सीमित रखे। इसके लिए वे अंतरिम शांति उपबंध के तहत 4 साल की मोहलत देना चाहते है। उसके बाद सीमा उल्लंघन पर दंडात्मक शुल्क लगाया जा सकता है।
शर्मा कह चुके हैं कि इस 10 प्रतिशत सीमा का निर्धारण 1986-88 की अंतरराष्ट्रीय कीमतों के आधार पर किया गया था। महंगाई को देखते हुए इस का पुनर्निधारण किया जाना चाहिए।
शर्मा ने कहा कि एक जिम्मेदार देश होने के नाते भारत इस मामले में कोई भी स्थाई समाधान निकाले के लिए रचनात्मक बातचीत को प्रतिबद्घ है। उन्होंने साथ में यह भी कहा कि जब तक कोई स्थाई समाधान नहीं एक ऐसा अंतरिम समाधान होना चाहिए जो सभी तरह की चुनौतियों से हमारी रक्षा करे।
उन्होंने कहा कि विकासशील देश अपनी आबादी के गरीब और कमजोर तबके के लोगों की खाद्य सुरक्षा की आवश्यकता के लिए अनाज की सरकारी खरीद करते हैं और यह इसके लिए एक महत्वपूर्ण जरिया है। उन्होंने इस मामले में डब्ल्यूटीओ के कृषि समझौते में संशोधन की आवश्यकता पर बल दिया ताकि विकासशील देश अपने खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम को जारी रख सके और उन्हें विश्व व्यापार संगठन की किसी प्रतिबद्घता का उल्लंघन न करना पडे़।
शर्मा ने कहा कि दोहा दौर की वार्ताएं विकास के एजेंडा पर है। हम यदि विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की चिंताओं का समाधान नहीं करते हैं तो विकास के एजेंडा पर बात जबानी जमाखर्च के समान होगी। (Hindustan Hindi)
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