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10 अक्टूबर 2013
गुड़ कोल्हू पर छाया हिंसा का साया
गुड़ की नई आवक तो शुरू हो गई है लेकिन पिछले महीने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में भड़की सांप्रदायिक हिंसा का साया गुड़ के कोल्हू पर मंडरा रहा है। इसके कारण एशिया की सबसे बड़ी गुड़ मंडी मुजफ्फरनगर में बहुत कम कोल्हू में ही गुड़ बन रहा है। दरअसल इस क्षेत्र में कोल्हू चलाने वाले मुस्लिम समुदाय के हैं और मजदूर, गन्ना किसान जिनकी जमीन पर कोल्हू चलते हैं, वे हिंदू समुदाय से आते हैं। हिंसा के चलते दोनों समुदाय के बीच फिलहाल विश्वास बहाली और सद्भाव नहीं बन पाया है, जिससे कारोबार पर भी असर पडऩे की आशंका है। जानकारों के मुताबिक हिंसा और बीते कुछ वर्षों में गुड़ उत्पादन मेंं नुकसान के कारण इस साल 20 फीसदी कम कोल्हू चलने की आशंका है। चुनवी साल में इस बार गन्ने का राज्य परामर्श मूल्य बढऩे की संभावना के बावजूद किसानों को फिलहाल पिछले साल के बराबर ही गन्ने का भाव मिल रहा है।
मुजफ्फरनगर गुड़ कारोबारी संघ के अध्यक्ष अरुण खंडेलवाल ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि मुजफ्फरनगर व शामली में करीब 3,500 गुड़ बनाने वाले कोल्हू हैं लेकिन केवल 100 से 120 कोल्हू में ही काम हो रहा है। खंडेलवाल कहते हैं कि 70 फीसदी कोल्हू वाले मुस्लिम समुदाय से आते हैं और ये गन्ना किसानों खासकर जाटों की जमीन पर कोल्हू चलाते हैं। हिंसा के बाद किसान कोल्हू वालों को जमीन देने और कोल्हू वाले जमीन लेने से फिलहाल परहेज कर रहे हैं। गुड़ कारोबारी हरिशंकर मूंदड़ा भी इस बात को स्वीकार करते हैं। खंडेलवाल के मुताबिक बीते साल गुड़ कारोबार में नुकसान होने से भी इस बार करीब 20 फीसदी कम कोल्हू चलने का अंदेशा है।
कोल्हू में कम उत्पादन होने से मंडियों में गुड़ की आवक भी कम हो रही है।
खंडेलवाल ने बताया कि पिछले साल मुजफ्फरनगर में इस समय 3,000 कट्टïा (1 कट्टïे में 40 किलोग्राम) गुड़ की आवक थी लेकिन अभी आवक 500 से 800 कट्टïा तक ही सीमित है। शामली में ज्यादातर गुड़ कोल्हू वाले हिंदू समुदाय से आते हैं, जिससे वहां मुजफ्फरनगर के मुकाबले ज्यादा गुड़ की आवक हो रही है। कोल्हू मिलों को पिछले साल के भाव (220 से 240 रुपये प्रति क्विंटल) के बराबर ही इस बार भी गन्ना मिल रहा है। गुड़ का भाव भी पिछले साल के बराबर 1200 रुपये प्रति कट्टïा है, जिससे कोल्हू वाले गन्ने की ज्यादा कीमत देने को तैयार नहीं हैं। (BS Hindi)
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