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18 अक्टूबर 2013
सरकारी सहयोग के बिना मिलें चलाना मुश्किल
वजह
चीनी मिलों को चीनी की बिक्री 2,650 से 2,950 रुपये प्रति क्विंटल (एक्स-फैक्ट्री) पर करनी पड़ रही है जबकि मिलों की लागत 3,200 से 3,500 रुपये प्रति क्विंटल आ रही है। इससे चीनी मिलों पर किसानों के बकाया भुगतान का भार लगातार बढ़ रहा है
मिलों को चीनी की बिक्री लागत से भी नीचे दाम पर करनी पड़ रही है जिससे मिलों पर किसानों की बकाया राशि का बोझ लगातार बढ़ रही है। हाल ही में समाप्त हुए पेराई सीज़न 2012-13 (अक्टूबर से सितंबर) में उत्तर प्रदेश में ही मिलों पर करीब 2,400 करोड़ रुपये बकाया बचा हुआ है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम कम होने से चीनी के निर्यात पड़ते भी नहीं लग रहे हैं। उधर बैंकों ने चीनी मिलों को नेगेटिव लिस्ट में डाल दिया है। ऐसे में अक्टूबर से शुरू हुए पेराई सीज़न में केंद्र और राज्य सरकारों की सहायता के बिना चीनी मिलों को चलाना मुश्किल है।
इंडियन शूगर मिल्स एसोसिएशन (एस्मा) और नेशनल फेडरेशन ऑफ को-ऑपरेटिव शूगर फैक्ट्रीज (एनएफसीएसएफ) द्वारा गुरुवार को जारी संवाददाता सम्मेलन में एस्मा के अध्यक्ष एम श्रीनिवासन ने बताया कि चीनी मिलों को चीनी की बिक्री 2,650 से 2,950 रुपये प्रति क्विंटल (एक्स-फैक्ट्री) पर करनी पड़ रही है जबकि मिलों की लागत 3,200 से 3,500 रुपये प्रति क्विंटल आ रही है।
इससे चीनी मिलों पर किसानों के बकाया भुगतान का भार लगातार बढ़ रहा है। अक्टूबर से नया पेराई सीज़न शुरू हो गया है लेकिन भारी घाटे में होने की वजह से मिलों को चलाना मुश्किल हो रहा है।
एस्मा के उपाध्यक्ष अजीत एस श्रीराम ने बताया कि अक्टूबर से शुरू हुए नए पेराई सीज़न के समय करीब 88 लाख टन चीनी का बकाया स्टॉक बचा हुआ है जबकि पेराई सीज़न 2013-14 में 251 लाख टन चीनी का उत्पादन होने का अनुमान है। देश में चीनी की खपत 230-240 लाख टन की होती है। ऐसे में आगामी पेराई सीज़न में चीनी का बकाया स्टॉक 100 लाख टन से भी ज्यादा होगा।
ऐसे में चीनी के दाम लगातार घट रहे है जिससे मिलों को घाटा हो रहा है। उत्तर प्रदेश में मिलों पर किसानों का करीब 2,400 करोड़ रुपये बकाया बचा हुआ है। ऐसे में बैंकों ने भी चीनी मिलों को ऋण देना बंद कर दिया है। इसलिए हमने केंद्र सरकार से मांग की है कि चीनी के आयात पर शुल्क को 15 फीसदी से बढ़कर 40 या फिर 60 फीसदी किया जाये।
रंगराजन समिति की सिफारिशों के आधार पर गन्ने की कीमत को तार्किक बनाया जाए। अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी के दाम कम है ऐसे में केंद्र सरकार निर्यात करने में सहायता प्रदान करे। राज्य सरकारें किसानों के बकाया भुगतान में मिलों की सहायता करे तथा बैंकों को गारंटी दी जाए, ताकि मिलों को ऋण उपलब्ध हो सके।
एनएफसीएसएफ के मैनेजिंग डायरेक्टर एम जी जोशी ने कहा कि सरकार ने 2009 में पेट्रोल में 10 प्रतिशत एथनॉल मिलाने के बीआईएस मानक तय किए था लेकिन फिलहाल 5 प्रतिशत मिश्रण की पूर्ति के लिए खरीदा जा रहा है जिसकी आपूर्ति सी-भारी शीरे से बने एथनॉल से की जा रही है। चीनी का स्टॉक ज्यादा है इसलिए शीरे के साथ गन्ने के रस से भी एथनॉल बनाने की अनुमति दी जाए। (Business Bhaskar....R S Rana)
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