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05 सितंबर 2013
उप्र की चीनी मिलों पर बढ़ता कार्यशील पूंजी का दबाव
उत्तर प्रदेश में चीनी मिलों को पिछले सीजन में चीनी की कम प्राप्ति और अधिक उत्पादन लागत की वजह से हुए नुकसान के कारण अगले सीजन के दौरान परिचालन शुरू करने के लिए कार्यशील पूंजी की भारी कमी का सामना करना पड़ेगा।
उद्योग की संस्था इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के अनुसार 74.9 लाख टन की साझा उत्पादन क्षमता के साथ 122 परिचालन चीनी मिलों को 2012-13 के पेराई सत्र (अक्टूबर-सितंबर) के दौरान 3500 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ सकता है। इस्मा के महा निदेशक अविनाश वर्मा के अनुसार इस नुकसान की मुख्य वजह गन्ने की कीमत में लगातार वृद्घि होना है। उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछले पेराई सत्र के दौरान गन्ने की कीमतें (राज्य समर्थित मूल्य) 240 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ा कर 280 रुपये कर दीं। हालांकि यह वृद्घि उत्
वर्मा ने कहा, 'पिछले साल उत्तर प्रदेश में चीनी मिलों ने कार्यशील पूंजी 3300 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत के दायरे में बढ़ाई। इस साल की औसतन प्राप्ति के आधार पर कुल आय का 90-95 फीसदी ऋण के भुगतान पर खर्च किया गया। इसलिए, चीनी मिलें इस साल अच्छा वित्तीय प्रदर्शन करने में सक्षम नहीं होंगी जिसे बढ़ती कार्यशील पूंजी के लिए आधार के तौर पर समझा जा सकता है।Ó
खराब ऋणों पर सतर्क रुख अपनाते हुए बैंक पूरे चीनी उद्योग को पहले ही कम तरजीह वाली श्रेणी में डाल चुके हैं जिससे संकेत मिलता है कि आगामी पेराई सत्र में बढ़ती कार्यशील पंूजी एक बड़ी चुनौती होगी। 8.15 करोड़ टन के शानदार गन्ना उत्पादन के बावजूद उत्तर प्रदेश की मिलोंं ने अधिक रिकवरी की वजह से 74.9 लाख टन का कुल चीनी उत्पादन दर्ज किया। साथ ही केंद्र सरकार गन्ने के लिए उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) में 5 फीसदी तक का इजाफा पहले ही कर चुकी है।
इस उद्योग के एक वरिष्ठï अधिकारी ने कहा कि गन्ने की कीमत उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों के लिए पिछले कुछ वर्षों में इसीलिए चुनौती बनी हुई हैं। वर्मा ने कहा, 'यदि उद्योग आगामी सत्र में कार्यशील पूंजी के तौर पर बैंकों से 2500 करोड़ रुपये जुटाता है तो इस क्षेत्र को 12 फीसदी की ब्याज दर के हिसाब से 300 करोड़ रुपये चुकाने की जरूरत होगी। राज्य सरकार इस रकम के बराबर बजट आवंटन के साथ सहकारी चीनी मिलों को मदद दे रही है। इसलिए हमने सरकार से निजी और सहकारी चीनी मिलों के बीच उनकी पेराई क्षमता के हिसाब से समान रूप से इस रकम को वितरित किए जाने की मांग की है।Ó
उन्होंने कहा कि इस छोटे से बदलाव से चीनी उद्योग को बड़ी राहत मिलेगी और उसे मिलों का परिचालन बंद करने के जोखिम से बाहर निकलने में मदद मिलेगी। हालांकि इन सब दिक्कतों के बीच चीनी मिलें इस साल नवंबर के दूसरे सप्ताह में पेराई शुरू करने की तैयारी कर रही हैं। (BS Hindi)
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