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20 जुलाई 2013
फिलहाल सोने में चमक लौटने के आसार कम
सोने की कीमतें हाल के महीनों में तेजी से गिरी हैं जिससे यह चर्चा शुरू हो गई है कि क्या यह सोने की खरीदारी का सही समय है? इस सिलसिले में राजेश भयानी ने थॉमसन रायटर्स जीएफएमएस के शोध निदेशक विलियम टैनकार्ड से बातचीत की। विलियम ने स्वर्ण बाजार के भविष्य, खनन क्षेत्र की स्थिति, सोने की मांग आदि के बारे में विस्तार से बताया। पेश है उनसे बातचीत के मुख्य अंश:
सोने की कीमतें हाल के समय में तेजी से नीचे आई हैं। क्या गिरावट का दौर खत्म हो चुका है?
शुरू में हमें लगा था कि 2013 में कीमतें मजबूत रहेंगी और गिरावट 2014 से शुरू होगी। लेकिन सोने के लिए मोहभंग अनुमानित समय से पहले ही दिखने लगा। अब यह आम सहमति है कि सोना शायद कई वर्षों में सर्वाधिक मंदी की चपेट में है। सोने में तेजी की एक प्रमुख वजह यह भी रही है कि निवेशकों को ब्याज दरों और शेयरों जैसे अन्य परिसंपत्ति वर्गों से अच्छा प्रतिफल नहीं मिला। तुलनात्मक रूप से सोना बेहतर परिसंपत्ति के रूप में उभरा। अब सुरक्षित निवेश के अधिक विकल्प उपलब्ध हैं और इससे सोना प्रभावित हो रहा है। ये कारक सोने में निवेश की मांग प्रभावित कर रहे हैं। हमारा मानना है कि सोना अगले कई वर्षों तक खराब प्रदर्शन करेगा।
कीमतों में तेज गिरावट से मांग में इजाफा हुआ है। क्या सोने की पारंपरिक खरीदारी के लिए बढ़ी हुई मांग से ईटीएफ में घटता निवेश रुकेगा?
हाल में जब सोने में तेज गिरावट आई, संस्थागत निवेशक ईटीएफ से परहेज करते देखे गए और सोने की पारंपरिक मांग से बाजार को मदद मिली। हालांकि पारंपरिक मांग पूरी किए जाने में कुछ बाधाएं हैं, क्योंकि बुलियन रिफाइनरियां अचानक मांग पूरी करने में सक्षम नहीं हो सकतीं जबकि निवेशक सोने की बिक्री तुरंत कर सकते हैं। भविष्य में पारंपरिक तौर पर सोने की मांग अहम भूमिका निभा सकती है और इससे निवेश मांग में गिरावट सिर्फ आंशिक रूप से नियंत्रित हो सकती है। यही एक प्रमुख वजह है जिससे हम अगले कुछ वर्षों के लिए सोने पर मंदी का रुख अपना रहे हैं।
आने वाले समय में स्वर्ण खदान गतिविधियों की स्थिति क्या रहेगी?
अतीत में खदानों ने बड़े पैमाने पर हेजिंग की और अब महज 100-150 टन की हेज पोजीशन ही बाजार में बची है। इसलिए अब सोने की कीमतों के लिए डी-हेजिंग का समर्थन नहीं है।
सोने की कीमतें अपनी उत्पादन लागत से कुछ ही ऊपर कारोबार कर रही हैं। खदानों की इस पर कैसी प्रतिक्रिया होगी?
हमने 2012 में अनुमान जताया था कि वैश्विक स्वर्ण खनन की लागत (नकदी और अन्य राशि) 1200 डॉलर प्रति औंस थी और 2013 में इसमें मामूली सुधार दिखेगा। अतीत में जब सोने की कीमतें चढ़ रही थीं, उत्पादकों को लागत वृद्घि से भी जूझना पड़ा। श्रमिक लागत भी बढ़ी है। अब उत्पादक व्यवस्था में लचीलेपन के जरिये ऊंची किस्म के सोने के खनन पर ध्यान देंगे और लागत नियंत्रित करेंगे। हालांकि अधिक लागत की वजह से निश्चित रूप से कम नकदी वाली छोटी खदानें उत्पादन में कटौती भी कर सकती हैं।
बढ़ती लागत और कीमतों में कमी के माहौल में क्या आप स्वर्ण खनन क्षेत्र में स्थायित्व की उम्मीद कर रहे हैं?
2009-10 में जब खनन कंपनियों की पूंजी प्रभावित हुई थी तो समेकन पर जोर दिया गया था, हालांकि अधिग्रहण की पेशकश की कीमतें वास्तविक नहीं थीं। अब यदि समेकन होता है तो यह सही कीमतों पर ही होगा। नकदी की किल्लत या दबाव से जूझ रही खदानों को एकीकरण का रास्ता चुनना पड़ सकता है।
भारत मांग घटाने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में क्या चीन सोने की मांग के संदर्भ में भारत से आगे निकल जाएगा?
हम आगामी वर्षों में चीन से अच्छी मांग देख सकते हैं, क्योंकि सोने के लिए आकर्षण बरकरार है। भारत के लिए मांग को नियंत्रित करना कठिन होगा, क्योंकि सोना उसकी संस्कृति का हिस्सा है। (BS Hindi)
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