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13 जून 2013
खाद्य सुरक्षा बिल पर पीछे हटी सरकार, मोदी ने कुछ यूं किया वार
नई दिल्ली। पीएम के घर पर खाद्य सुरक्षा बिल को लेकर जारी कैबिनेट की बैठक बिना किसी फैसले के समाप्त हो गई है। फिलहाल, कोई अध्यादेश नहीं लाया जाएगा। इससे पहले संप्रग सरकार खाद्य सुरक्षा कानून लागू करने की जल्दबाजी में दिख रही थी। अब संसद के आगामी मानसून सत्र से पहले इस अध्यादेश पर चर्चा के लिए विशेष सत्र बुलाए जाएगा।
बिल को लेकर विपक्ष ही नहीं बल्कि कैबिनेट के सदस्यों में भी असहमति है। अब सरकार खाद्य सुरक्षा बिल पर विशेष सत्र बुलाने के लिए विपक्ष को राजी करने का प्रयास करेगी। इसका जिम्मा कैबिनेट मंत्री कमलनाथ, सुशील कुमार शिंदे और पीजे थॉमस को दिया गया है।
वहीं गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्र पर वार करते हुए कहा है कि कांग्रेस को दस साल बाद याद आये है गरीब। गुजरात में भोजन का अधिकार पहले से ही है।
खाद्य सुरक्षा विधेयक कांग्रेस अध्यक्ष और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की मुखिया सोनिया गांधी का महत्वाकांक्षी विधेयक है, जिसे कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार हर हाल में आगामी लोकसभा चुनाव से पहले लागू करना चाहती है। हालांकि संसद के बीते सत्र में ही सरकार ने इसे सदन में पेश कर दिया गया था, लेकिन इस पर चर्चा नहीं कराई जा सकी थी। आए दिन बदलते राजनीतिक हालात को देखते हुए मनमोहन सिंह सरकार खाद्य सुरक्षा विधेयक को लागू करने की जल्दी में है।
गौरतलब है कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के प्रमुख सहयोगी राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के अध्यक्ष व केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने पिछले हफ्ते खाद्य सुरक्षा विधेयक को अध्यादेश के जरिए जाने पर अपनी नाराजगी जताई थी। मराठा क्षत्रप के नाम से विख्यात पवार ने कहा कि आम लोगों को प्रभावित करने वाला कोई भी प्रावधान व्यापक चर्चा के बाद ही लागू होना चाहिए। उनके अलावा कुछ और भी मंत्री हैं, जो कैबिनेट में इसके विरोध में आवाज उठा सकते हैं।
सूत्रों के मुताबिक विधेयक पारित कराने के लिए सरकार मानसून सत्र में इसे रखेगी भी। इसके पहले इसे अध्यादेश के जरिए लाने की तैयारी है, ताकि राज्यों को इसके प्रावधानों को लागू करने के लिए तैयार किया जा सके। विधेयक के प्रावधानों में देश की 67 फीसद आबादी को अति रियायती दर यानी एक रुपये किलो मोटा अनाज, दो रुपये किलो गेहूं और तीन रुपये किलो चावल उपलब्ध कराना है।
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