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25 मई 2013
चीनी मिलों को वायदा की मिठास
चीनी से नियंत्रण हटने के बाद मिलों को अपने बड़े खरीदारों जैसे आइसक्रीम और पेय कंपनियों को चीनी बेचने की आजादी मिलेगी। राज्य सरकारों से भी धीरे-धीरे मांग आने लगी है। मिलें हर साल करीब 2.5 करोड़ टन चीनी का उत्पादन करती हैं। बड़े खरीदारों को वायदा आधार पर चीनी बेचने से चीनी कंपनियों को कारोबार मिलेगा और बाजार में स्थिरता आएगी।
सिंभावली शुगर के निदेशक (वित्त) संजय तापडिय़ा ने कहा, 'चीनी सीजन 2012-13 से लेवी और कोटा व्यवस्था खत्म हो रही है। इससे चीनी मिलों के लिए बड़े खरीदारों जैसे आइसक्रीम और पेय कंपनियों के साथ वायदा अनुबंध करना आसान हो जाएगा। आमतौर पर बड़े खरीदार गर्मियों में अपने उत्पाद बेचने के लिए सर्दी शुरू होने के समय खरीदारी चालू करते हैं।' इस तरह के अनुबंध चीनी मिलों के लिए अहम होंगे, क्योंकि इससे उन्हें स्थिरता मिलेगी। खुले बाजार में उतार-चढ़ाव के समय चीनी बिक्री रोकी जा सकेगी।
राबो बैंक के प्रमुख (खाद्य एवं कृषि कारोबार शोध एवं सलाह) असिताव सेन ने कहा, 'चीनी की संस्थागत खाद्य एवं पेय मांग भारत में उपलब्ध कुल चीनी की 30 फीसदी है और यह तेजी से बढ़ रही है।' अब तक बड़े खरीदार वायदा अनुबंध नहीं कर सकते थे, क्योंकि रिलीज प्रणाली जटिल थी। मिलें इस बात को लेकर भी सुनिश्चित नहीं होती थीं कि खुले बाजार में बेचने के लिए कितनी चीनी उपलब्ध हो पाएगी। इसके खत्म होने के कारण अब वायदा अनुबंध हो सकेंगे।
इस बीच, नियंत्रण हटने के बाद खुले बाजार में चीनी के दाम नीचे आए हैं, क्योंकि कीमतों के फायदेमंद न होने से निर्यात रुका हुआ है। उत्तर प्रदेश की एक चीनी मिल के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि विनियंत्रण के बाद राज्य सरकारों से कहा गया था कि वे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) की खातिर अपनी चीनी जरूरत के लिए खुले बाजार से खरीद करें। उदाहरण के लिए देश के दूसरे सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में चीनी की कीमतें उत्पादन लागत से 3 रुपये प्रति किलोग्राम कम हैं। चीनी मिलें उपोत्पादों पर निर्भरता बढ़ा रही हैं। पिछले महीने पेट्रोल में मिश्रण की खातिर एथेनॉल की आपूर्ति के लिए निविदा जारी की गई थीं। इसमें एथेनॉल की कीमत 35 रुपये प्रति लीटर तय की गई है, जो पिछले साल से 30 फीसदी ज्यादा है।
रेटिंग एजेंसी इक्रा ने चीनी पर अपने विश्लेषण में कहा, 'खोई और शीरा जैसे उपोत्पादों की कीमतें लाभकारी बनी हुई हैं, क्योंकि इनकी खपत वाले क्षेत्रों जैसे ऊर्जा, कागज और एथेनॉल में अच्छी मांग निकल रही है। फ्यूल एथेनॉल से अच्छी आमदनी के कारण चालू वित्त वर्ष में उपोत्पादों से मिलने वाला प्रतिफल सुधर सकता है।' (BS Hindi)
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