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20 सितंबर 2012
वायदा में 'गोलमाल' से रबर आयात में आएगी उछाल
भारतीय रबर उद्योग प्राकृतिक रबर का आयात बढ़ा सकता है क्योंकि वायदा बाजार में सटोरिया गतिविधियों के चलते हाजिर बाजार में रबर की उपलब्धता पर भारी असर पड़ा है। ऑटोमोटिव टायर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन और ऑल इंडिया रबर इंडस्ट्रीज एसोसिएशन ने बुधवार को यह जानकारी दी।
स्थानीय वायदा कारोबार में प्राकृतिक रबर में एक बार फिर भारी सटोरिया गतिविधियां चल रही हैं और इसने देसी रबर के कारोबार को पटरी से उतार दिया है। हाल में एक्सपायर हुए सितंबर अनुबंध में कारोबार की मात्रा एक दिन में 100 टन रही और स्टॉक 200 टन से कम था। इसने कीमतों में बढ़ोतरी में मदद की। 14 सितंबर को सितंबर वायदा कारोबार के दौरान 4 फीसदी के अपर सर्किट को छू गया था और 193 रुपये प्रति किलोग्राम पर बंद हुआ।
यह रुख इसके फंडामेंटल के मुताबिक नहीं था क्योंकि रबर बोर्ड के मुताबिक हाजिर कीमतें 185 रुपये प्रति किलोग्राम थीं। 15 को जब केरल में हड़ताल थी तब हाजिर बाजार में कारोबार बंद था, लेकिन सितंबर अनुबंध 4 फीसदी चढ़ा और 201 रुपये प्रति किलोग्राम पर बंद हुआ। विडंबना यह थी कि कारोबार की मात्रा महज 48 टन थी। उद्योग के संघ ने इस बारे में वायदा बाजार आयोग को सूचना भेजी है। वायदा बाजार में सटोरिया गतिविधियों के चलते हाजिर बाजार में कीमतें आगे बढ़ीं और उस दिन कीमतें 200 रुपये पर पहुंच गईं। दिलचस्प रूप से ऐसा तब हुआ जब वैश्विक बाजार में कीमतें महज 170 रुपये प्रति किलोग्राम थी।
रबर उद्योग के मुताबिक, वायदा बाजार के ऐसे अप्राकृतिक व अतार्किक रुख से हाजिर कारोबार गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है और इसके परिणामस्वरूप उत्पादकों और इस कारोबार से जुड़े सभी लोगों के बीच गलत संदेश गया है। उनके बीच संदेश गया है कि सटोरिये और एक्सचेंज के ऑपरेटर के चलते ऐसा हुआ है। ऐसी परिस्थिति में किसान व कारोबारी स्टॉक को रोके हुए हैं और उपभोक्ताओं के पास आयात के लिए अनुबंध करने के अलावा कोई चारा नहीं है क्योंकि यहां उपलब्धता काफी कम है और आयातित व देश में खरीद की लागत का अंतर करीब-करीब 25-30 रुपये बैठता है। हालांकि उत्पादक व कारोबारी जोखिम के घेरे में हैं क्योंकि ऐसी सटोरिया गतिविधि बंद नहीं हो रही है और उत्पादन के पीक सीजन में आयात से स्थिति और भी भयावह हो सकती है।
एआईआरआईए के अध्यक्ष विनोद सिमॉन के मुताबिक, घरेलू वायदा कारोबार में चल रही सटोरिया गतिविधियां मांग-आपूर्ति के फंडामेंटल को काफी कम तवज्जो दे रही हैं। कुल मिलाकर देश में रबर की कीमतें वैश्विक बाजार से ज्यादा क्यों होनी चाहिए, जब हमारे यहां उत्पादन का पीक सीजन चल रहा हो और रबर बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक 2.5 लाख टन कैरीओवर स्टॉक हो। इस साल आयात में अब तक 21 फीसदी की उछाल आ चुकी है। अपने संदेश में उद्योग ने कहा है कि वायदा बाजार में कीमतें उतारचढ़ाव की सीमा को मौजूदा चार फीसदी से घटाकर एक फीसदी कर दिया जाना चाहिए।
(BS Hindi)
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