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21 सितंबर 2012
राशन चीनी बढ़ी तो फायदा मिलों को!
केंद्र सरकार ने राज्यों से कहा है कि वह जन वितरण प्रणाली या राशन दुकानों के जरिए बेची जाने वाली चीनी की कीमतों में इजाफा करे। इस कदम से चीनी मिलों को दीर्घावधि में लाभ मिलने की संभावना है। मौजूदा समय में राज्य सरकारें मिलों के कुल उत्पादन का 10 फीसदी औसतन 19.05 रुपये प्रति किलोग्राम पर खरीदती है, जिसे लेवी चीनी कहा जाता है। इसकी ढुलाई में औसतन 2 रुपये प्रति किलोग्राम का खर्च आता है, लिहाजा राज्यों के लिए कुल लागत 21 रुपये प्रति किलोग्राम बैठती है।
इसमें से हालांकि राज्य सरकारों को 13.50 रुपये प्रति किलोग्राम खर्च करने होते हैं जबकि केंद्र सरकार बाकी 7.50 रुपये प्रति किलोग्राम की भरपाई 6-8 महीने में कर देती है। एक ओर जहां केंद्र सरकार का हिस्सा गन्ना भुगतान के लिए इसके द्वारा तय उचित व लाभकारी मूल्य पर निर्भर करता है, वहीं राज्य सरकार का अंशदान साल 2002 से 13.50 रुपये प्रति किलोग्राम पर स्थिर है।
उद्योग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, साल 2002 से केंद्र सरकार ने राज्यों से उसके अंशदान में बढ़ोतरी की कई कोशिशें की है, लेकिन हर बार वह नाकाम रही है। उन्होंने कहा कि कोई भी राज्य सरकार अपना बोझ बढ़ाने का इच्छुक नहीं है जबकि केंद्र हर साल उचित व लाभकारी कीमतों में बढ़ोतरी कर रहा है। आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी ने विपणन वर्ष 2012-13 (अक्टूबर-सितंबर) के लिए उचित व लाभकारी मूल्य बढ़ाकर 170 रुपये करने की मंजूरी दी है। इस वजह से केंद्र सरकार का कुल हिस्सा आनुपातिक रूप से बढऩे की संभावना है। उपभोक्ता मंत्रालय का अनुमान है कि इस साल पीडीएस के लिए चीनी की खरीद कीमत में 19 फीसदी की बढ़ोतरी होगी और यह 25 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच जाएगा।
(BS Hindi)
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